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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे० जे कर्मने जीववली हो होएपुच् दुषकारिया .३२ द्वेषपामे ५० पुषना समूहनी प० श्रेणी प० द्वेषेकरी दुष्ट चि०चित्तनो धीबांधेकर्म ३९०१) नवे पुस्कोह परंपरा ॥ पफुव्वचित्तोयचिणाङ्गकम्पं ॥ जंसेपुणोहोऽहं विवागो ॥ ७२ ॥ विपाक इहलोक २० पटरसनामनो इस्वादनेविषे बि रागादिक रहित मनुष्यशोकरहितय को ए० एपूर्वेकहाते पुपनासम् न नसिंपाएनघरमा परलोकनेविषे १२ रसेविरत्तोम॒णुन विसोगो ॥ एएएडस्कोहपरंपरे ॥ हना श्रेणी नसिप्पर ए ल० संसारमा हेपावतो ज० जेमपापीएं पु० कमखनुं प० पानऊ सिपाएनहितेमविरक्तमनु हवे फरसेंडीना १३ काका लवमझेविसंतो ॥ जलेावापुस्करणीपलासं ॥ ७३ ॥ ष्यनसिपाए १३ काव्य कहे काय याने ताढानुनादिकफरसगं ग्रहवा जोग्यले एमक हे तीरथंकर तं० तेरागना हेतुबे म० मनोज्ञफरसबे या० एम कहे तीर्थकर तं. ते सफासस्सगहांवयंति ॥ तंराग हेतुसमामा ॥ नंदोसहेन दोषनो हेतु मनोज्ञ फरसबेते एम कहे तीर्थकर स० समो सरषो लाब रोग परहितएँ जो० जेकौर ते लखायामया फरसनेवि समोयजोते सुसवियरागो ॥ ७४ ॥ ये ते वीतराग कहिए ७७ का० कायानीफरस ग० ग्रहबाजोग्यव० एमकहेती तं० रागनु हेतुबे पूरणे ३९१ फासस्सकायंगहांवयंति ।। एमक तीर्थकर कायस्सफासंग्रहांवयंति ॥ विकर रागहेनतुस श्रमएफ समान !! फा० फरसताढाननादिकने का कायाएंकरी ग्रहएाहारव For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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