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नुतः|| धन्दशविध न सुपराज्योप बुठ तत्त्वनोजाएाते सब स- तक तेशुद्ध व्यवहार ग हीसाने नाउ नपामे ॥५२॥ ममनो-अ१ | धर्मकरी . दपूरएा व्यवहार व्यवहारने अादस्यो दाए आचरतीयको
गतनाधम्मनियंचववहारं।बुद्धे आयरियं सया॥तमायरंतोवहारं गहरं नानिगराइ॥५२॥ मगो बने य वचन बोषा जाजा श्राच् श्राचा उनकारथी तंब्ने अनिमा क काया उनिफ्नावे ५३ ___ये जाएयाअभिमा एपीने ... ने कायगतनावने यनेतहनकरीने एंकरि
गयं वक्तगयं ॥ जात्तिायरियस्सन ॥ तैपरिगिनवायाए ॥ कम्मुणा ययायए ॥४३॥ |विक पि 'अकअपामेत्यो जो चिंतित रिचव शीघ्र होइ सुन्गुरु ए रूकीपरें जा जेमगुरूएजे कार्य करोडे नेते सु प.गुरुकहे एम नितशिष्य कार्य करे सदाए
सिषवने थके तिमहिज करे एते कार्य रूको कीयो वित्ते अचोइएनिच्चे ॥ खिप्पंहवई सचोइन ॥ जहोवश्वं सकयं ॥ 'किं किंचित उपजता स सदाए एवा विन- नच जाएगीने मे बुद्धिवं. खो खो कि कीर्ति ते विनित होई किन किंचितन कार्य करे या गुण नियवंत होइ त कनेविषे गुरुना अनुष्ठाननो पजतां कार्य करे. किं चइ कुच्चइसया ॥४॥ नच्चानमइ मेहावी॥सोए कित्ती सेजायइ ॥ हवइकिच्चाएं
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