________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|सं संजमपालवाने अर्थे तन्तेमज पान् आनुषानिर्वाहवाने अर्धेषुघाचेदनीमाटेड उठोकारगावसीय धर्मध्याननी विचारणाने अर्थे एडकारणे संजमचाए॥ तहपागवत्तियाए बईपुगधम्मचिंताए ॥३३॥ आहार करे . ३३ नि निग्रंथ सापुद्रवेल कारणेनकरेनेकहेले विधीयवंतनिम्साघची पानाहारनकरे बल अवधारणेना थानक ए. पण अाज्ञानो निग्गंयो विश्मंतो ॥ निग्गंधीविषयकरिध बहिचेव॥ वगगोहिन इमेहिं ॥ अपार नसंघनारनहि से नेहोएआज्ञानो मानगुहार ३५ आ ततकालकसूलादिकमरणांतक रोगनुपनेर्थक नुव्वाघप्रमुस्वनोचपसर्गचप व ब्रह्मचर्यनीयकमायसेहोइ ॥३५॥ आयंके जवसग्गे । तितिरकया मेथके निक्षुधातृषानुपम खत्मचेरगु|प्तीनेविषे पा प्राणी जीचनेनुत्पत्ति घणीजाएीन तपकत्त्याने हेतुएंसंानुपुत्लाव्यानोअवसर जाएगीनेसरीरमूकवानेअ एबकारणे आहार तीसु ॥ पाणिदयातवहे। सरीरखुबेयएनाए ॥ ३५॥ नजेलोयाज्ञाडेतजनांप्राज्ञानोत्नंगनही हवेगोचरी ने मानीविधिकहेले अन् सर्वत्नांमपात्रादिक नुपगरपने गृहीने च इष्टीकरी पमिलहे जाए पन्चत्क्रष्टोबेगानुसूची विन्याहा
अवसेसं लंमगंगिशा। चस्कूसापमिखेहए। परमह जोयगा। विहा रने विहारनेविचरे मु०साधुआहार कीघापरी ३६ चम्चोयी पोरसीनविषे नि अलगा मूकीने ला लाजनने सब सशायने ततिवारपग |२८६ रंविहरएमुएि ॥३६॥ चबीए पोरसीए ॥ निरिकवित्ताए लायएं ॥ सशायंतनकुया॥
(२५)
For Private and Personal Use Only