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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के. केताना एफचव्या वि १ विमानना वसनार पुरु नरगनेविघे जूनो ३१नु इषुकारनामे स्या प्रसिद्ध सन् धनेकरीसहित सु. देवलोक अ.१४ केश्चूयाएग विमाएगवासी पुरेपुराणे नुरूयारनामे रवाए समिकेसरसोयर सरपो रमणिक । सन्पोतानोसुलकमतेनोंजे से शेषरह्योनेलोगवतांपू. पूर्वलवनाकीय कु. कुखनेविषेप्रधानकुलनेविषे म्मे ॥ १॥ सकम्मसे सेएापुराकएए शुलकर्मनेणेंकरी कुलेसुदगेसूयते या पूर्णत्तेबजीन नुपना. नि नदेगणम्या १३ सं० संसारनात्मययकी लोगने मीनें जिन तीर्थकरनामार्गनो सर सरणा पाम्यो. २ पसूया निविष संसारमयाजहाय. . जिणिंदमग सरपंपवन्ना ॥ 'पुर पुरुषपएाने पाम्या कुमार पर पुष्पुरोहिनराजानो गुरु त्रीजो ते पुरोहितनीज जसा एवेनामें पाली यि विस्ती ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमारदोवि पुरोहिन तस्सजस्सायपत्ती . मार्या विसास एपिएीकि की निजेनीवेतन्लेमजइषुकारनापारा राजापांचोअत्रलदेबालबने विषेदेव प्रधान स्त्रीवके करीक जाम्जन्महाय कितीय नहो सूयारो रायबदेवी कमला पईय ॥ ३ ॥ कमलावतीलगजीपजाजरा | स्वामरणात्मय अ पराभव्याडे पति कुमार केयाने बर मुक्तिने विषेअन्धाप्युडेचित्तजेणें संघसंसारसूपच चक्रयी पिविशेषमूकाषया १३८ | मच्चुलयाऽनिलूये बहिविहारालिलिविनुचित्ते संसारचक्कस्स विमोरकपाबा" || For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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