Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha
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________________ * MAMALAY. क घर A 050739 gyanmandir@kobatirth.org GS Serving JinShasan SOTRA CHAHTRA.SPOTRamakaSREENERASTRA श्री श्रीपाल चरित्र. (योजक) : पूज्यपाद विवर्य मुनिवर्य वीरपुत्र श्री आनन्द सागरजी महाराज साहब . 000000 / (प्रकाशक) . . . फलोदी मारवाड़ निवासी श्रावक गणेशमलजी ढढा. .. वीर संवत् 2450 विक्रम संवत् 1981 सन् 1924 प्रथमावृत्तिः / मूल्य 4 . सर्व हक्क स्वाधीन... अमूल्य. मगन पुस्तकालय ) AAMAMMAMAMA, बाथी कैलाससागर हरि शाम मदिए श्री महावीर जैन आगमना मा कोठा महास : श्री जैन भास्करोदय प्रिन्टींग प्रेस -जामनगर. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ भीमापरित्र. ॐ नमः प्रस्तावना प्रस्तावना. प्रिय पाठकवरों ! . इस अनादि प्रवाहरूप संसारके अंदर अनेकानेक महापुरुष हो गये हैं, जिनकी जीवनीको पढकर या सुनकर प्राणियों धर्म प्रिय होसकते हैं, उनके आदर्श चरित्रोंमानो जगत जनके जीवन का उद्धार करनेको ही जन्म लेते हैं। उनमेसे आज़ मैं एक समर्थ धर्मधुरंधर-न्यायनिष्ट-परोपकारी श्री श्रीपाल नरेशका यह - दिव्य जीवन चरित्र आपके सम्मुख उपस्थित कर रहा हूँ ये महापुरुष आज़से अनुमान 12 लाख वर्ष पहिले यानी वीसवें तीर्थंकर भगवान् श्रीमुनिसुव्रत स्वामी के समयमें होगये हैं, इनने अपनी अटल श्रद्धासे श्री सिद्धचक्र महापद ( नवपद ) की अनन्य भावसे आराधना की है, जिससे. राज्य SAGERABHARRISASTERIOR P Gunratnasuri.M.S. / Jun Gun Aaradhak
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________________ -1 . - .-- RAHALAALABLAC लक्ष्मी तथा देवऋद्धि अतुल प्रमाणमें सम्पादन हुइ है और अब मात्र सात मवमें मोक्ष समृद्धि प्राप्त करेंगे-यह चरित्र चार | प्रस्तावोसे अलंकृत किया गया है, उनमें करीब 36 विषयोंका प्रतिपादन है, जिन्हें वांचकर या श्रवण कर पाणी उत्तम धर्मी बन जा सकता है. कितनेक भक्त लोगोंके आग्रहको स्वीकार हमारे परम पूज्य विद्वद्वर्य गुरुवर्य श्रीमान् वीरपुत्र आनंद सागरजी महाराज साहबने परमोपकारार्थ यह ग्रन्थ संस्कृत परसे सरल हिंदी भाषामें निर्मित किया है, यह आपका पारमार्थिक परिश्रम विश्व प्रशंसनीय है-इस चरित्रकी पोने चारसो प्रतियें पाली मारवाड़ निवासी श्रावक श्रेमलजी बलाइ तथा सवासो फलोदी मारवाड़ निवासी श्रावक गणेशमलजी ढहाने छपाकर मेट तरीके वितीर्ण करनेको प्रकाशित की हैं; अतः उनकी उदारताको साधुवाद घटता है. // शिवम् // मु. कच्छन्नुज-दीपावली. . भवदीय हितैषी! 2450-1981 / मुनि महेन्द्रसागर. ANS-AS-45555554 #li Ad Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradha
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________________ णीका पत्र.. CALCASSESAR विषयानुक्रमणिका. कः . विषयोंके नाम... | अंक. विषयोंके नाम... (प्रथम-प्रस्ताव.) : 8 गुरुमहाराजके अपूर्व दर्शन .... * और दुःखका विलय. 1 गणधर महाराजका पदार्पण..... 1. 9 कमलप्रभाका मिलाप. .... . 2 मूल-आख्यान. ... 10 रूपसुन्दरीका समागम...... . 3 कन्याद्वयका पठनाधिकार. 11 उम्बरराणाका परिचय..... 4 कन्याद्वयकी परीक्षा. ....... .... 5 12 प्रजापाल भूपालको सद्धर्मकी प्राप्ति 5 कन्याद्वयका विवाह.................. 6 13 श्रीपाल कुमारका विदेश गमन. .... .... (दूसरा-प्रस्ताव.) - 14 जटिकाद्वय और सुवर्ण खंडकी प्राप्ति. 6 मदनसुंदरीकी परीक्षा...... ... ... (तीसरा प्रस्ताव.) 7 देवाधिदेवके दर्शन. ....... . 15. . / 15 धवलशेठसे मुलाकात. .... ..... RAHESHNECTERASSHRAS** C . Ac. Gunratnasuti M.S. Jun Gun Aaradhe HDF
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________________ 35 विवॐCASERACC क. विषयोंके नाम. 19 बम्बराधीशपर विजय. .... ' . (पहिला-विवाह) 17 जिन मन्दिरके कपाटोका खोलना. 38 (दूसरा-विवाह) 18 धवलकी धृष्टता और उसका भयंकर फल. 46 (तिसरा-विवाह) . . (चौथा-प्रस्ताव.) 19 वीणानादमें जीत......... (चौथा-विवाह). बनावटी कुत्सितरूप. .... (पांचवां-विवाह) . अंक विषयोंके नाम. . 21 समस्याओंकी पूर्ति. .... (छटा-विवाह) | 22 राधावेधका साधन. .... (सातवां-विवाह) 23 प्रतिष्टानपुरके राज्याधिकारकी प्राप्ति उज्जयनी नगरीकी तर्फ प्रस्थान. .... (आठवां-विवाह) 25 उज्जयनी नगरीमें भयंकर भय. .... (माता और ललनासे मुलाकात) . सुसरेका अपमान और सन्मान.. .26 अरिदमन कुमार और सुरसुंदरीकी शुद्धि. 27 अजितसेनसे महायुद्ध..... (विजयमालाकी आप्ति) 69 *SHA%A55555555 ..... / 75 Ac Gurratnasuti M.S. Jun Gun Aaradh!
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________________ अनुक्रम परिण. णीका 78 अंक. विषयोंके नाम. 28 अजितसेनको वैराग्य और दीक्षा..... (श्रीपालजीको स्वराज्य प्राप्ति) 29 अजितसेन राजर्षिको अवधिज्ञान.... (धर्म-देशना) 30 श्रीपाल नरेन्द्रका पूर्वभव. .... RALANCE __79 ASIA%ASHASASARAIGAL अंक.. विषयोंके नाम.... .32 श्रीपालनरेन्द्रका परिवार तथा विभूति. 91 (नवपद-स्तवना) समाधि-अवसान. 33 गणधर महाराजका छेल्ला फरमान.... 34 परमात्मा महावीर देवका पदार्पण... 35 उपसंहार. .... .... .... 1 / R * शुभम् / // 3 // -CASAR ILPAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ घरसव सेवा की GrosERS SMAMMA PASUR Karawwws W गन पुरावा * श्री सिद्धचक्रेभ्यो नमः * महासन - श्री श्रीपाल चरित्र. Powww (मङ्गलाचरण) , सिद्धचक्र भगवन्तको / बंदु वारं वार // रोग शोक सब भय हरे / ऊतारे भव पार // 1 // .. प्रातसमय शुभभावसे / ध्यावे जो नर नार / / दुःख दरिद्र सहजे टले / वर्ते जय जय कार // 2 // श्री सद्गुरु से, सदा / जगजीवन हितकार / / श्री श्रीपाल चरित रचुं / हिन्दी भाषा सार // 3 // परम परमात्मा देवाधिदेव श्रीवीतराग परमदेवको तथा परमोपकारी गुरुमहाराजको अभिवंदन करके श्रीसिद्धचक्रजीके महत्प्रभावको दिखलानेके हेतु श्रीपाल नरेशका चरित्र प्राकृ ..बा.की केन्द्रमामागर सरि मान मंदिर भी थहावार जन आराधना केन्द्र, कोषा Gunratnasuri MLS Jun Gun Aaradhak
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________________ श्रीपालचरित्र, तसंस्कृतके आधारसे हिन्दी भाषामें निर्मित करता हूँ-भव्यात्मागण! प्रमादको त्यागकर সবার इस सरस चरित्रको साद्योपान्त श्रवण करना तथा उसे पूर्ण मननकर अपने मनुष्य भवको || SEASONACAका // गणधर महाराजका पदार्पण. // . विशाल जम्बूछीपके अन्दर भरतक्षेत्रमें नानाविध सम्पति विभूषित मगधदेशान्तरगत || | राजग्रही नामकी एक सुन्दर नगरी थी, उसमें न्यायशील प्रजावात्सल्यादि राजगुणविशिष्ट धर्म-२ // 1 // . Jun Gun Aaradha Ac.Gunratnasun M.S.
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________________ . वान्, तेजस्वी, यशस्वी और चतुर्बुद्धि निधान 'अभयकुमार' नामका एक सुपुत्र था-दूसरी चे. लणा रानी थी जिसके अशोकचंद्र, हल्ल, विहल इस प्रकार तीन पुत्र थे-तीसरी धारिणी नामकी | पत्निके मेघकुमार पुत्र था, और भी अनेक रमणियों सहित महाराजा श्रेणिक आनन्दपूर्वक अ. पना समय व्यतीत करता था. राजग्रही नगरीके समीप वणिक ग्रामके उद्यानमें परमात्मा महावीर देव समवसरे; वहांपर। | भक्तियुत देवोंने समवसरणकी रचना की और प्रभु धर्म देशना देने लगे-इधर प्रथम गणधर श्रीगौतमस्वामी नगरीके वनमें पधारे, वनपालने राजा श्रेणिकको बधाई दी, पृथ्वीपतिने प्रसन्न होकर उसे प्रीतिदान दिया और अपने परिवार सहित जाकर गणधर महाराजको भक्तिपूर्वक | वंदन नमस्कार किया, पश्चात् अपने योग्य स्थानपर बैठ गया, अवसरको पाकर गौतमस्वामीने धर्म देशना प्रारंभ की-दान, शील, तप और भाव इस || गुणचतुष्टय पर प्रभावशाली व्याख्यान किया सर्व धर्मों में 'भाव धर्म' को प्रधान दिखलाते हुवे PARSAAAA R P.AC.Gunratnasur.M.S. Jun Gun Aaradi
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________________ चरित्र पाहला. श्रीपाल- सिद्धचक्रके प्रजावका अतिशय वर्णन किया; आपने फरमाया कि नव पदोंके सम्मेलनसे सिद्ध 1 चक्रपद ' बनता है वे नव पद ये हैं. 1 अर्हत्पद सिद्धपद 3 आचार्यपद 4 उपाध्यायपद 5 है। है। साधुपद 6 दर्शनपद 7 ज्ञानपद 8 चारित्रपद 9 तपपद; ये नव पद सदा सुखको देने वाले, सम|स्त दुःखको हरनेवाले, कल्याणको करनेवाले और राज्यादि अनेक मनोरथोंको पूरनेवाले है; | अतः श्रीपालनरेंद्र के समान निरन्तर इनका आराधन करना चाहिये. . यह सुनकर श्रेणिक भुपालने परम कृपालु श्रीगौतमस्वामीसे निवेदन किया-दे भगवन् ! | है वह श्रीपाल नरेश कौन ? किस प्रकार सिद्धचक्रका आराधन किया तथा उससे कौनसा फल प्राप्त किया? इत्यादि सर्व आख्यान अनुग्रहपूर्वक निरूपण करें-राजाकी इस नम्र प्रार्थनाको स्वी- * कार श्रीगौतम गणधरने सजल मेघ गर्जारवके सदृश श्रीपाल नरेश्वरका चरित्र इस प्रकार फरमायाः-. ASSAMACHAAR RESSk 885 c. Gunratnaeuri M.S. Jun Gurr Aaradhal
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________________ मल-याख्यान. . SHSHSHSHSHSHSHSHSHAUS 8. चौथे आरेके अन्दर वीसवें तीर्थङ्कर श्रीमुनिसुव्रतस्वामीके शासन समय मनोहर मालव || द देशान्तरगत धन धान्य पूरिता, अनेक जिनमन्दिरमण्डिता उज्जयनी नामकी एक विशाल ||SI 6 नगरी थी, वहांपर प्रजापाल नामका राजा राज्य करता था, उसके अनेक भार्याओं में से सौभा ग्यसुन्दरी तथा रूपसुन्दरी नामकी दो रानियें मुख्य थीं, इनके परस्पर गाढ प्रीति होनेपर भी है। दोनोके धर्म अलग 2 थे, अतः आपुसमें कभी 2 धर्मवाद हो जाया करता था, पहिली रानी | शिवधर्मको मानने वाली तथा दूसरी जैन धर्मको माननेवाली थी; इस प्रकार समस्तका काल सुखपूर्वक वीतता था.. ... .. अ- - Call Ac Gunratnasuri MS.. Jun Gun Aaradhali
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________________ * श्रीपाल चरित्र. // 3 // OHOROREGARASHAN . किसी एक समय ये दोनो युवतियें सगर्भा हुई, अपने 2 गर्भका विवेकपूर्वक पालन करने प्रस्ताव लगी, जो 2 डोहले उत्पन्न होते थे वे सब राजा पूर्ण करता था, सौभाग्यसुन्दरी मिथ्या धर्मकी. पहिला. सेवा करती थी तथा रूपसुन्दरी सुदेव, सुगुरु और सुधर्मकी सेवा-पूजा, भक्ति और उन्नती करती थी तथा दीन हीन प्राणियोंको अनुकम्पा दान देती थी, सुगर्भके प्रभावसे धर्म कार्यमें तलालीन रहती थी. गर्भकाल पूरा होनेपर दोनो रानियोंने पुत्रियोंको जन्म दिया, दासियोंने प्रजापाल all महाराजको वधाई दी, राजाने भी प्रसन्न होकर उन्हें प्रीतिदान बक्षा; दोनो कुंवरियोंका जन्म || 6 महोत्सव भारी ठाठसे किया-सौभाग्यसुन्दरीके पुत्रीका नाम सुरसुन्दरी और रूपसुन्दरीके क-5| न्याका नाम मदनसुन्दरी ( मयणासुन्दरी ) रक्खा, अब ये दोनो कुमारिकाओं बालक्रीडा करती हुईं सुखसे बड़ती हैं. सुरसुन्दरी बाल्यावस्थासे ही स्वभाव चपला और मिथ्यात्व रूपी अंधकारमें | निवास करती थी तथा मदनसुन्दरी स्वभाव सुन्दरा, गुणज्ञा, बुद्धिमती, श्रीमती और सर्व जनवल्लभा थी; इस प्रकार सुखसे काल गमन होता था. // 3 // LAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradh
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________________ कन्या क्ष्यका पठनाधिकार. एक दिन प्रजापाल भूपाल अपनी दोनो बालाओंको देखकर इस प्रकार नीतिके वचनोंको विचारने लगाः (श्लोक.) लालयेत् पञ्चवर्षाणि / दशवर्षाणि ताइयेत् // जाते च षोडशे वर्षे / पुत्र मित्रमिवा चरेत्॥ 1 // ___ भावार्थः-पुत्रकी पांच वर्ष तक लालन पालन करना, दस वर्ष तक ताड़ना तर्जना करना || और सोलह वर्षका होने पर मित्रके समान आचरण करना चाहिये. | ऐसा सोचकर सुरसुन्दरी को शिवभूति पण्डितके पास और मदनसुन्दीको जैनधर्ममें निपुण 5 सुबुद्धि पण्डितप्रवरके पास पठनार्थ रक्खी गई; आया बालिका मिथ्या गुरुके उपदेशसे मिथ्या # Ac. Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aarada 4SAK
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________________ प्रस्ताव श्रीपाल- व धर्ममें निपुण हुई तथा द्वितीया सद्गुरुके सदुपदेशसे सम्यग् धर्ममें प्रवीण हुई. इन दोनो ||| चरित्र, पहिला. * कन्याओंका पठन इस प्रकार हुवाः सुरसुन्दरीका पठनः--व्याकरण, तर्क, साहित्य, अलङ्कार, छन्द, ज्योतिष, सागवेद, वेदान्तर, संगीत, नाटक, काव्य, शृङ्गार, कोकशास्त्र, भाषाप्रबंध, गाथाप्रबंध, गंधारादि सप्तस्वर, त. ॥न्त्रीवाथ, तालघन, वंशादि, नृत्य, गांधर्व, वाजिंत्र, मन्त्र, तन्त्र, यन्त्रादि, प्रहेलिका, दोधक, गूढ- | 8 काम शास्त्र वगेरा में निपुण हुई तथा स्त्रियोंकी चौसठ कलाओमें प्रवीण हुई. | मदनसुन्दरीका पठनः--व्याकरण, तर्क अलङ्कार, साहित्य, कोष, हेय-ज्ञेय-उपादेय पदार्थ | विज्ञान, स्वशास्त्र, परशास्त्र, कर्मोंकी मूलोत्तर प्रकृति, बंध-उदय-उदीर्णा-सत्तादि भेदग्रहज्ञान, निश्चयव्यवहार, षद्रव्य, नवतत्व, सप्तनय, सप्तभशी, दस प्रकारके यतिधर्म, ग्यारा प्रतिमा, बारह प्रकारका धर्म, काल-नियति-प्रकृति-भाव-पुरुषाकार, षट्कायविचारसार तथा श्रावक गुणादिमें कुशला, यतीन्द्रिया, सम्यक्त्वगुणविभूषिता, शीलालङ्कारशोभिता, दुर्गतिनिवारका, सकल जन CREAAAAAAA UGGAGARISHISHGASS:97 DIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhanll
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________________ 1 | वल्लभादि गुणोंसे भूषित थी-स्त्रियोंकी चौसठ कलाओंमें प्रवीणा, कर्मग्रन्थमें विशेष निपुणा, श्री. है वीतराग देवके वचनानुसार कर्म ही कर्ता' माननेवाली थी तथा षट्कर्मोमें सदा सावधान थी. कन्याध्यकी परीक्षा. एक दिनका प्रस्ताव है कि प्रजापाल भूपाल अपनी आभ्यन्तर सभामें बैठा हुवा है, इस|5|| वख्त सुबुद्धि और शिवभूति दोनों पण्डितोंने आकर इस प्रकार निवेदन किया-हे महाराज! 13 || आपकी दोनों कन्याओं पढ लिखकर होशियार हो गई हैं, अतः परीक्षा कीजियेगा. राजाने पाठकोंका सत्कारकर अपने नजीक बैठाये और दोनो पुत्रियोंको क्रमशः आसपास बैठाली, हर्ष वश दोनो कन्याओके सामने बुद्धिकी परिक्षाके लिये भूपेन्द्रने एक समस्या पद् रख्खा"पुण्येन किं किं लभ्यते” अर्थात् पुण्यसे क्या 2 मिलता हैं ? stArtNorra Ac.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ श्रीपाल ____ सुरसुन्दरीने जवाब दियाःपरिष. (श्लोक.) || रूपं च राज्यं सुभगं मुभर्ता / नीरोगगात्रं च पवित्रभोज्यम् // गानं च नित्यं परिवारपूर्ण / पुण्येन चैतत्सकलं लभेत // 1 // // . भावार्थ:-हे पिताश्री! रूप, राज्य, शुभगति, उत्तम भर्तार, नैरोग्यशरीर, पवित्र भोजन, गान, पूर्ण परिवार; ये सब पुण्यसे मिलते हैं. ... मदनसुन्दरीने उत्तर दियाः (श्लोक.) शीलं च दक्षं विनयो विवेकः / सद्धर्मगोष्टिः प्रभुभक्तिपूजा // अखण्डसौख्यं च प्रसन्नता हि / लभ्येत पुण्येन समस्तमेतत् / / भावार्थ:-हे तातश्री ! शील, दक्षता, विनय, विवेक, उत्तम धर्मगोष्टी, प्रभुकी भक्ति-पूजा, है || प्रसन्नता और अखण्ड सुख; ये सब पुण्यसे मिलते हैं.' SHIKSHA%AAR AP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradlist . !
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________________ - ऊपर कही हुई समास्याकी पूर्तियें सुनकर राजा वगेरा सर्वने खुश होकर दोनो कन्याओंकी प्रशंसा की और उभय पण्डितोंको विपुल प्रीतिदान देकर बिदा किये, ये सब होजाने बाद स. मस्त सभासद अपने 2 स्थानपर गये-राज रानी और दोनो कुमारिकाओं सानन्द निवास करती हैं. अब इस प्रकरणको यहीं पर छोड़कर एक एसे विषयको दिखलाते हैं कि जिससे दोनो F कन्याओंका विवाहसम्बद्ध आजाय. - * कन्याध्यका विवाद कन्याशयका विवाह. . कुरुजंगल देशमें विपुल धन धान्यपूरिता संखपुरी नामकी एक नगरी थी, वहां पर उ. जयनी नगरीके महाराजका ताबेदार महिपाल राजा राज्य करता था, उसके रूपवान्, लक्ष्मीवान्, यशस्वी, सूरवीर, सदाचारकुशल तथा स्त्रीजनवल्लभादि गुणोसे सुशोभित अरिदमन Ac. Gunratnasuri M.S. ___Jun Gun Adradi
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________________ // 6 // RAA%%% श्रीपाल 8 नामका एक पुत्र था, वह कुमार किसी एक वख्त प्रजापाल भूपाल की सेवा के लिये आया हुवा था. प्रस्ताव चरित्र. पहिला. एक वख्तका जिक्र है कि यह कुमार राज सभामें बैठा हुवा था उस समय वहां पर सुर5 सुन्दरी भी बैठी हुई थी, इन दोनोके परस्पर स्नेह चक्षुओंसे प्रेमभाव हो गया, यह बात रा-5 || जाको मालुम हो गई तब अपनी कन्याको पूछाः-हे पुत्री! तेरे लिये कौन वर करदूं? तब सुर- 18 || सुन्दरीने उत्तर दिया हे तात! मेरे मनमें वशा दुवा अरिदमन कुमार है ऐसा आप श्रीमान् | जान ही चुके हैं अतः मेरा अभिप्राय तो यही है, आगे जैसी आपकी इच्छा हो वह मुझे प्रमाण || हैं, क्यों कि आप मेरे पिता हैं, आपही पालक-पोषक है और आपही मेरे ईश्वर है इत्यादि वचः 15/ नोसे राजाको आनन्दित करके.कुमारिका मौन रही. Mai. राजाने उन दोनोका परस्पर सम्बक (सगाई) करदिया, इस वख्त सबलोगोंमें यह बात / जाहिर होगई और प्रजाजन यह बात करने लगे कि यहां पर बड़ा भारी उत्सव होगा, सौ. ASSISTARIQLAM**AXI ** ** Ac Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradis
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________________ | भाग्य सुन्दरी ( कन्याकी माता ) के दिलमें भी यह कार्य बहुत अच्छा रुचा. दूसरे दिन राजाने मदनसुन्दरीको बुलाकर पूछाः-हे कन्ये! मेरी सेवाके लिये बहुतेरे है। | राजकुमार आये हुवे हैं उनमेंसे जिस पर तेरी रुचि हो जसही के साथ विवाह कर दूं, बोल ! है तेरे लिये कौन वर कर दिया जाय? राजकन्या अपने पिताकी बे समज़ पर हृदयमें स्मित हास कर एकदम मौन रही, जब राजा वारंवार आग्रहपूर्वक पूछने लगा तब लाचार हो कर मदना बोली: हे पिताश्री ! कुलवती कन्या अपने मुखसे क्या यह कह सकती है ? कि मुझे अमुक वर करदो. हे जनक! यह तो कुलटा कन्याकी रीति है कि अपनी इच्छानुसार पति करे; कारण कि विवाह समय मात पितादि तो मात्र निमित्त कारण हैं, जैसा कर्म संस्कार होता है वैसा ही | बनता है अन्यथा नहीं, आपका किया हुवा कुछ नहीं हो सकता भावि भाव सदा बलवान् AAP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradh
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________________ प्रस्ताव पहिला. श्रीपाल है, सर्वज्ञ प्रभुके ये आप्त वचन मेरे हृदयमें रम रहे हैं; अतः मैं हरगीज़ अपने मुखसे यह न चरित्र | कहूँगी कि मुझे अमुक वर कर दो, जिस जीवके साथ सम्बंध होगा उसके साथ अवसर आये स्वतः हो जाय गा-हे पिताजी! आपको यह राज्य वैभव वगेरा किसने दिया? तो कहना होगा। कि शुभ कर्मने ही; क्योंकि महान् पुरुषोंका यह कथन है कि " सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता" यानी सुख दुःख का कोई देने वाला नहीं है, अर्थात् सिर्फ कर्मही दाता है, यह शास्त्र | वचन आप दीर्घ दृष्टिसे विचारिये गा-यहां पर कन्याने “कर्मवाद" प्रकट किया. कन्याके इन भारी जोशीले शब्दोंको सुन कर राजा कोपातुर हुवा " इस दुष्टाको भारी 2] दुःखमें गेर देना चाहिये " ऐसा विचार कर बोला-हे कन्ये! बताओ! कि तुम किसकी कृपासे || सुख, भोजन, राज्य, सम्यग् आभूषण, वस्त्र, ताम्बूल, गृहक्रीडादि आनन्द लूंटती हो ? क्या तुझे मालुम नहीं है कि ये सब मेरे ही आधीन हैं ! मेरे राज्यके होनेसे तुझे सुख और न होनेसे , BOSSARASHTRAKAR CAR DIPAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradili
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________________ %AAAAAAAA KI दुःख है अर्थात् सर्वत्र मेरा ही उपकार है; राजा मानके तानकी शानका भान न रखकर इस है प्रकार गर्व गर्वित वचन बोलने लगा-इस भूतल पर मैं ही कर्ता हूँ, कर्म नहीं! सुख दुःखका है। दाता मैं ही हूं, लोकेश्वर और लोकपाल भी मैं ही हूँ, लोकके अन्दर जितने कार्य हैं वे सब मेरे अधीन हैं, मैं चाहुं उस राजाको रंक और रंकको राजा बना सकता हूँ-हे पुत्री! तुं दुर्भाग्या पठितमूर्खा है अतः अपना हठवाद नहीं छोड़ती मगर याद रखना तेरे लिये रोगग्रस्त || दरिद्री वर करके असीम दुःखमें गेरूंगा तबही मेरे दिलमें सन्तोष होगा-कन्ये! अबतक भी कुछ नहीं बिगड़ा है, समझले और अपने मुखसे इच्छानुसार वर मांगले; इत्यादि राजाने बहुत कुछ कहा. * मदनसुन्दरी बोली हे तात! मैं ही कर्ता हूँ मैं ही परमेश्वर हूँ, इत्यादि अभिमान ग.. र्भित वचन बोलना आपको मुनासिब नहीं है, गर्वसे नानाविध हानियें होती है. इसहीसे बड़े 2 , COIESSAR Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ चरित्र श्रीपाल-15 योजा नाशको प्राप्त हुवे, अखिल जगतमें कर्त्ता तो एक दैव ( कर्म ) ही है अन्य कोई नहीं, || प्रस्ताव ये सर्वज्ञ प्रणीत वचन मेरे मनोमन्दिरमें विलास कर रहे हैं, मुझे अवसर पर जो वर मिल पहिला. // 6 // जायगा उसे सहर्ष स्वीकार लूंगी-इस प्रकारका कथन सुन राजाने दिलमें समझ लिया कि (स्व * गत ) " यह कन्या कर्मवादमें दृढ़चित्ता है, सभामें इसने मेरी हिलना की, दुष्ट पाठकने सभा रंजन की कला नहीं शिखलाई, यह बाला बडी मंदमती है इत्यादि " आगे चलकर मदनसु. न्दरी फिर कहने लगी:-हे पिताजी! मा-बाप जिस कन्याको सुखी कुलमें देते हैं वह दुःखी / और जिसे दुःखी कुलमें देते हैं वह सुखी क्यों कर नज़र आती हैं ? तो मानना होगा कि यहां पर कर्म ही कारण है और कोई नहीं; इस तरह राजा और मदन सुन्दरीके परस्पर महा विवाद हुवा... ... इस समय अवसरज्ञ सुबुद्धि मन्त्रीने नृपतिको धमधमान्त क्रोधातुर जानकर विज्ञप्ति की ARRUKHABAR Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhall य
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________________ HORRIANA || कि हे स्वामिन् ! इस कन्याके साथ आप महान् पुरुष क्या विवाद करते हैं? चलिये वनक्रीडा | करनेको पधारें हाल ही में वनपालकने आकर अर्ज़ किया है कि वनराज सुमनोहर - फल फूलोंसे प्रफुलित हो रहा है, प्रधानके इस निवेदन पर राजा अश्वरत्न पर सवार हो कर कितनेक लोगोंके साथ वनकी ओर चला, उदास चित्तसे नगरकी शोभा देखता हुवा बहार उ. थानमें पहुँचा; इस जगह एक नविन घटना बनती है उसकी हकीकत प्रश्नोत्तरमें लिख दि-|| || खाते हैं: राजा-आमात्यजी! अपने आगे धूलके बड़े 2 गोटे उड़ते आरहे हैं और भारी कोला- 15 हल हो रहा है-यह क्या है ? | मन्त्री-प्रभो! कोड़ रोग प्रसित यह जन समूह आ रहा है. . __राजा-प्रधानजी! इसका स्वरूप क्या है ? Ac.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhali NP
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________________ * श्रीपाल चरित्र मन्त्री स्वामिन् ! पूर्व कर्मके वश सातसो पुरुषोंको एकही साथ कोड़ रोग उत्पन्न हो || गया है, इनके अन्दर भी सब राजरीतियें चलती हैं, ये सब लोग राजा के शिवाय दूसरेके पास याचना नहीं करते. . 18 राजा-( आश्चर्य हो कर पूछता है ) सचीवजी ! इनकी राजरीति क्या है ? मन्त्री-विभो! उम्बर रोग ( कोड़ रोग ) से पीड़ित उम्बर नामका को एक राज पुत्र इनका राजा है उस पर बा कायदा छत्र रख्खा जात है. व चामर वीजे जाते हैं, गलितांगुल नामका मन्त्री है, सर्वाङ्ग गलित नामका कोटवाल है और शेष सब सेवक लोग हैं, ये सब कुष्ट दर्दसे दर्दित हैं, शरीरकी चमड़ी सब गल रही है, सम्पूर्ण शरीरमें फोड़े हो रहे हैं जिसमेंसे पीप और रक्तपात हो रहा है इससे. अनेक कीड़े बिल बिला रहे हैं, सर्वत्र मरिकयें भिन-भिना रही हैं, इनसे इस प्रकार वदबू उबलती है कि पासमें खड़ा तक नहीं रहा जाता * 9-1556* 4 W AC.Gurmratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ -- क ब- है सब लोग खच्चर पर सवार हुवे प्रेतोंके माफिक डरावने मालुम होते हैं और इस प्रकार दिखाई देते हैं कि मानो नरकसे निकल कर साक्षात् नैरईये ही आरहे हों-हे महाराज! इनको दे. खना मानो दुःखको मौल लेना है अतः आगे न पधारें, इनके पवन स्पर्शसे रोग पैदा होजाता है है है इस लिये इस मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग पर चलियेगा; तब राजा परिवार सहित अन्य F रास्ते पर चला. उसही वख्त उन कौष्टिकोका मन्त्री राजाके समीप आपहुँचा और प्रार्थना करने लगा किःहे नाथ-हे पृथ्वीपते-हे प्रजापाल भूपाल! तुमारी कीर्ति विश्व विख्यात है, हमारे उम्बर रा||६|| णाके प्रतापसे धन, धान्य, स्वर्ण, रत्न, मणि, माणक, मोति, हीरा, पन्ना वगेराकी कुछ भी * कमी नहीं है, परन्तु संसारमें इस प्रकार सुना जाता है कि मालवाधीश्वर याचकोकी सब तरह या| चना पूरी करता है; अतः मैं आपसे नम्रता पूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि हमारे राजाके लिये Ac Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ C चरित्र, // 10 // A4%AGRAA है जैसी तैसी आप अपनी एक कन्या प्रदान करें, हम लोग भी सब क्षत्रीय वंशज हैं, कर्म वश इस प्रस्ताव पहिला. से प्रकार रोग युक्त होगये हैं यह बात किसे कहें ? मगर आप बड़े भारी प्रतापशाली नरेन्द्र हैं। है इसलिये आपसे याचना की है. राजा मन्त्रीके वचन सुन ज़रा मुस कराता हुवा बोला हे गलितांगुले! रोगी पुरुषको ल-4 डकी कैसे दी जासके? अतः तुमको अन्य वस्तु जो चाहे सो मांगो में अवश्य प्रदान करूंगा-|| मन्त्री बोला हे नाथ! हमें दूसरी कोई चीज़ की जरूरत नहीं है, हमतो कदाच खाली वापिस | फिर जायंगे मगर तुमारी कीर्ति आजसे परिसमाप्त हुई, हम जहां तहां यही कहेंगे कि माल वेश्वर मनोवांच्छित देता है यह गलत है; अस्तु-तुमारा कल्याण हो; यह कह कर वह मन्त्री | 5 वापिस लौट गया. ... इस समय राजाको मदनसुन्दरीका वचन स्मरण हो आया जिससे विचारने लगा कि पुत्री // 10 // Jun Gun Aaradt
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________________ T all बड़ी निर्भाग्या है उसके योग्य यह उम्बर वर आगया है, अब उसे अवश्य ही कर्मका फल ||4|| | दिखाउंगा तबही मेरा कोप सफल होगा; यह सोच कर राजा वहांसे वापिस फिरा और सभामें है। आकर तुरन्त ही कन्याको बुलाकर इस प्रकार कड़कसे कहने लगा-हे मदने! मैं तो तेरा सुख चहाता हूँ मगर तूं बडी दुष्टा है बता! कि तेरेको पिताकी कृपासे ही सुख दुःख है या नहीं? मदना बोली-हे तात स्वभाग्यसे ही सुख दुःख है, पिताकी कृपासे नहीं; कारण कि | जिनेश्वरके वचन विरुक मैं अपनी जबानसे कभी नहीं कह सकती, तब राजा गुस्से होकर 5 बोला-तेरे भाग्यसे उम्बर राणा वर आगया है सब हकीकतके साथ कहा; मदनाने उत्तर दिया यदि भाग्य वश ही आ गया हो तो उसे दूर कौन कर सकता है ? सुख पूर्वक आवे.. . राजाने अपने सेवकोके द्वारा उम्बर राणा को बुलाकर सभामें बैठाया और कहा, उम्बर! यह मेरी कन्या मदन सुन्दरी तुझे चहाती है, अतः मेने तुझे दी. उम्बर बोला हे महाराज! कन्याके OSCALCACANCHARACK VIRAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ 5 चारित्र श्रीपाल-15 साथ क्या विवाद है, यह उत्तम कुलमें उत्पन्न हुई रूपवती, चन्द्रमुखी आदि गुण सम्पन्ना है, देखियेः- || प्रम - (श्लोक) पहिला. // 11 // गजराजगतिः मृगराजकटिः / तरुराजविराजितज़ानुतटिः॥ .. यदि सा तरुणी हृदये वसति / क जपः क तपः क समाधिविधिः // 1 // * भावार्थः-हाथी के समान जिसकी घूमत चाल है, मृगराजके सदृश जिसकी लचकेदार || कमर है, विस्तृत तरुवरके सरीखी जिसकी जङ्घा तटी सुशोभित है; वह ललना यदि किसीके Pl| मनोमन्दिरमें वसे तो उसके तप, जप और समाधि वगेरा कहां रह सकते हैं; अर्थात् सबही नष्टप्रायः हो जाते हैं. .. यह मदनसुन्दरी चन्द्रवदनी तो हंसनीके समान है और मैं तो कुष्टी काकके समान हूँ, इसके साथ मेरा सम्बंध युक्त नहीं; हे राजन्! इसमें आपकी अप्कीर्ति होगी, यह वचन सुन CESSUSUSASURAL Hall Ac. Gunratnasuri MS Jun Gun'Aaradha
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________________ है राजा बोला-हे उम्बर ! मुझे किसी तरह विवाद नहीं है मगर भाग्य परीक्षाके समय तुमही | आगये इसमें मैं क्या करूं? इत्यादि. उम्बरराणा बोला हे महाराज ! मैं तो इसे ग्रहण करना नहीं चहाता, आपकी जैसी तैसी कोइ कन्या हो तो मुझे दे दो बस मैं शान्तिसे वापिस चला है। जाउं गा-राजा आगे पीछे कुछ भी नहीं विचार कर क्रोधाग्निमें जलता हुवा इस प्रकार बोला हे मदने ! यदि कर्म वादमें तेरी दृढ श्रद्धा हो तो इस उम्बरको वरले; मयणासुन्दरी अपने पि* ताके इन कटाक्ष वचन बाणोंको झीलकर धैर्यता पूर्वक बड़े अदमसे उम्बर राणाका करस्पर्श है। किया अर्थात् 'हथ लेवा जोड़ा' इस वख्त सब लोग हा! हा! कार करने लगे; उम्बर राणा तो मदनाको वेसारूढ कराकर अपने मुकाम पर लेगया इधर लोग मदनसुन्दरी की निन्दा और सुरसुन्दरीकी तारीफ करने लगे, सच है! लोगोंके मुहपर कुछ ताला नहीं होता, अनेक लोग नाना विध बोलने लंगे; तद्यथाः-- Ac Gunratnasu M.S. Jun Gun Aaradhali
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________________ पहिला // 12 // (श्लोक) प्रस्ताव जननी केऽपि निन्दन्ति / केऽपि निन्दन्ति पाठकम् // पितरं केऽपि निन्दन्ति / धर्म निन्दन्ति केऽपि च // 1 // भावार्थः-कितनेक लोग माताकी और कितनेक पाठककी निन्दा करने लगे तथा कित. 8 नेक जैन धर्मकी और कितनेक पिताको निन्दा करने लगे—यह दुनियाके रिवाजके अनुसार ठीक ही है, कारण कि संसार चतुर्मुख दूतके समान है. राजा अपने अपवादको सुन हृदयमें विचारने लगा कि इस वख्त कोइ नवीन पवन फं Pi कना चाहिये जिससे प्रस्तूत बात जुला जाय, यह सोच नरेन्द्र ने शिवभूति पंडितको बुलाकर कहा-भो शिवभूते! सुरसुन्दरीके विवाहका मुहूर्त शीघ्र अवलोकन कर निश्चय करो, पंडितजी | | ने उत्तर दिया-महाराज! इस मासमें तो जो कुछ उत्तम मुहूर्त था वह मदन सुन्दरीके विवाह |5|| // 12 // |5/ में चला गया अब जल्दी में उत्तम लग्न समय नहीं है. राजाको यह जबाब पसन्द न पड़ा तब Ac Gunratnasuri MS. Jun Gun Aaradhak
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________________ %AAAAAAESEASON | आग्रहपूर्वक कहा-ज्योतिषीजी! जैसा हो वैसा ही मगर लग्न तुरन्त नक्की करो; शिवभूतिने ला. चार होकर अनबनता मुहूर्त बनाकर अमुक दिन निश्चय किया. इधर राजाने अपने सुबुद्धि मन्त्रीको हुकम किया कि अपनी बड़ी कन्याके विवाह निमित्त 8 महा विभूतिके साथ सामग्री तैयार कराओ-मन्त्रीश्वरने स्थान 2 पर महोत्सव आरंभकरवाये; तोरण, ध्वजा, पताकादि सारे शहरमें बंधवाई-गीत, गान, नृत्यादिका आनन्द उछलने लगा, ताल, कंसाल, ढोल, नकारा, भेरी, झबरी वगेरा वाजिन्त्र बजने लगे-गणिकाएं नाच करने 81 लगी-भट्ट लोग विरुदावली बोलने लगे-चारण लोग जय 2 शब्दोंकी घोषणा करने लगे-सधवा || स्त्रियें धवल मगल गाने लगी-सर्व ज्ञातीय, गौत्रीय और अनेक राजा वगेरा लोग एकत्रित हुवे; अब आज खास लमका दिवस आन पहुँचा है. ... * मात्र गाने बजानेका धंधा करने वालीको ‘गणिका' कहते हैं. R A C.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradell
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________________ प्रस्ताव श्रीपाल- अरिदमन कुमार सुगंधित जलसे स्नान मंजन कर, अतर फूलेल लगा बड़िया वस्त्राभूषण ||2|| चरित्र. पहिला. में धारणकर अनेक राज-राजेश्वर, गणनायक, दंडनायक, मन्त्री, महामन्त्री, सामन्त, श्रेष्टी, सार्थ वाह आदि परिवारसे परवरित अपने निज स्थानसे विवाह मण्डपकी तर्फ रवाना हुवा; छत्र, || चामर, मुकुट आदिसे सशोभित हाथी पर आरूढ हवा भारी शोभा दे रहा है, नाना प्रकारके 5 वाजिंत्रोंकी ध्वनी गूंज रही है। इस प्रकार आडम्बरपूर्वक चलता हुवा अनेक याचकोंको दान || || देता हुवा तोरणको सर करके चवरी मण्डपमें प्रवेश किया. ... / इधर चन्द्रमुखी सुरसुन्दरी कन्याभी अलङ्कारों से अलङ्कृत होकर महदाडम्बरसे चवरी मण्डपमें प्रवेश हुई; वहांपर दोनोका परस्पर कर सम्मेलन कराकर (हथलेवा जौड़ाकर ) यज्ञ | कर्ताओंने अग्नि साक्षीसे विवाह विधि की, इस वख्त बाजिंत्रोंकी मधुर ध्वनीसे सारा राजभुवन गूंज रहा था, राजाने करमोचन के समय बहुतसा धन, धान्य, रत्न, सुवर्ण, कोष्टागार ( नगद SHIRISASIRANGAISCHE SARACELSOSI // 13 // -921306 MP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ नाणेका खज़ाना) हाथी, घोड़े, दास, दासिये, नगर, प्रामादि अरिदमन कुमारको दिये-इस | तरह करनेपर प्रजापाल भूपालकी जगतमें महती कीर्ति हुई. कितनेक दिनोंके पश्चात् अरिदमन कुमारने राजाके पाससे शीख लेकर अपने नगरकी है। तर्फ प्रस्थान किया, सुरसुन्दरीभी अपने मात-पिताओंको प्रणामकर, उनकी आज्ञा लेकर तथा उनकी दीहुई हित शिक्षा ग्रहण कर रवाना हुई-अरिदमन कुमार अपने परिवार सहित सातसो कोषकी मार्ग यात्रा सम्पूर्णकर शंखपुरी नगरी के समीप उद्यानमें पहुँचा; बहुतसे सेना वगे राके लोग अपना नगर समीप जानकर कौटम्बिकोंको मिलनेके उत्साहसे कुमारकी आज्ञा ले|| कर नगरमें चले गये, यहांपर अरिदमन कुमार सुरसुन्दरी के साथ थोड़े परिवारसे उस उ| द्यानमें ठहरा हुवा है. * हिन्दी भाषाके श्रीपाल चरित्रका पहिला प्रस्ताव सम्पूर्ण हुवा. * ॐAGEAAWARA P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ श्रीपालचरित्र प्रस्ताव पहिला. // 14 // ravenaverma दूसरा-प्रस्ताव. // मदनसुन्दरीकी परीक्षा // उम्बर राणा मदनाको अपने मकान पर ले जाकर परीक्षार्थ इस प्रकार कहने लगा है भामिनी! तेरे पिताने यह अयोग्य काम किया है कि मुझ कुष्टिको तुझे सोंप दी, कहां तो मैं काक और कहां तूं हंसनी! यह सम्बंध उचित नहीं कहा जा सकता, राजाने कोपवश इस 8 तरह किया और तूंने भी कर्मवादमें आकर मेरा. कर स्पर्श कर लिया, मेरे शरीरमें कोड़का मोटा रोग है; अतः मेरा कहना है कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, तूं किसी अन्य योग्य पुरुषके WiAcGunsatnasuriM.S. Jun Gun Aaradh
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________________ | साथ सम्बंध करले-इन असह्य दुःखद वचनोंको सुनकर मयणासुन्दरीके नेत्रोंमेंसे चोधारा आँसु वहने लगे और गद् गद् कण्ठ हो अपने प्राणपतिसे प्रार्थना करने लगी:-हे प्राणाधार! इस भवमें मेरे आपही भर्त्ता और भरण-पोषण कर्ता हैं; मैं शील व्रतको धारण करनेवाली; सच्चे | जिन धर्मको पालन करनेवाली आपको हरगीज़ नहीं छोड़ सकती; हे स्वामिन् ! दैव योगसे | कदाचित् सूर्य पश्चिम दिशामें उगने लग जाय, मन्दराचलगिरी चलायमान हो जाय, पृथ्वी सहन शीलता त्याग करदे, समुद्र मर्यादा उलंघन करने लगे, अमृत मरण और ज़हर जीवन देने || लग जाय, अग्नि शीतता और जल उष्णता को स्वीकार ले इत्यादि अनहोती बातें जी आश्चर्य भूत होकर होने लग जाय मंगर तो भी मदना अपने शीलरत्नसे चल नहीं सकती; इन्द्र-चन्द्र- | नागेन्द्र-नरेन्द्र की भी यह ताकात नहीं कि मुझे चला सके-हे प्रियतम! आगे से इस प्रकार वज़ तुल्य वचन आप कृपाकर कभी न फरमावे; उम्बरराणा मदनाको सुदृढ़चित्ता जानकर | उसके साथ पलिव्यवहार किया और रात्री में दम्पति युगल सानन्द सो गये. ROCALECबारब P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradh
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________________ श्रीपाल SCREEGAA प्रस्ताव चरित्र. ... देवाधिदेवके दर्शन. 1 दूसरा. - प्रातःकाल होते ही मयणासुन्दरीने अपने पतिराजको निवेदन किया कि हे नाथ! इस नगरमें युगादीश्वरं देवाधिदेव श्रीऋषभदेव प्रजुका चैत्य ( मन्दिर-देरासर ) है; वहां पर दर्शनके लिये चलिये गा--यह मधुर वचन सुनते ही उम्बर राणा शीघ्र ही स्नान मञ्जन कर पुष्प अ. क्षतादि प्रभु पूजाकी सामग्री लेकर मदनाके साथ प्रथम जिनेश्वरके जिनभुवन में गया, वहां पर प्रजुको सादर नमन कर मदनसुन्दरी भावपूर्वक स्तुति करने लगी और उम्बर राणा शान्तिसे श्रवण करने लगा; तद्यथाः हे आदिनाथ-हे देवाधिदेव-दे वीतराग-हे वीतष-हे परमेश्वर-हे दीनबंधो-हे कृपा. OSTEOPOROSL086*% CAREECRECOSCRIGAON // 15 // Ac. Gunratrasuri MS. . . Jun Gun Aaradh
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________________ 6 वतार-हे कृपासिन्धो-हे त्यक्तसंग-हे जिनेश्वर-हे जगदीश्वर-हे प्रभो! हमें आप नाथका ही शरण है, आप देव-दानव और मनुष्यसे सुसेवित हैं, परम पदके दाता हैं, पूर्णचन्द्र समान केवल|| ज्ञानसे लोका लोकके भाव-विभावको जाननेवाले हैं, हे जगत्पूज्य ! हमें भवोभवमें आपका ही शरण हो, जगदाधार आप ही हैं, हे रोग, शोक विनाशक-हे विश्वम्भर-दे विश्वनाथ-हे सकल | गुण गण वाटिका विकश्वर करनेमें मेघधारा समान-हे विभो! हमारी आधि-व्याधि-उपाधि हर्ता आप ही हो, हे करुणारस भंडार! निज सेवकको निर्मल शिव-सुख देनेवाले एक अधि15 तीय मूर्ति आप ही हो, हे तरण-तारणतरी समान! आपके दर्शनसे हमारे दुष्ट कुष्टादि तमाम मानो आज ही नाश होकर हमें असीम शान्ति प्राप्त हुई; इत्यादि प्रजुकी स्तवना करके मदना विरमित हुई. उम्बरराणाने यह स्तुति भावपूर्वक श्रवण की. इसवख्त शासन देवी चक्रेश्वरीकी प्रेरणासे प्रजुके कण्ठसे पुष्पमाला तथा करकमलसे SCHLOSSESSERIKALI Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarad be
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________________ प्रस्ताव दूसरा. श्रीफल लुड़कता हुवा आता देख तुरन्त ही मयणासुन्दरी बोली-हे प्राणपते! प्रजुके प्रतापसे आज़ आपका सब रोग गयाः देखिये-यह आता हुवा श्रीफल आप ले लीजिये और मैं || माला ले लेती हूँ, इन दोनोने अपनी 2 वस्तु ग्रहण कर ली और पुनः प्रजुको अभिवंदन कर जिन मन्दिरके बहार आये. ORRIGIRIGIROPASKIRAIASHAR गुरुमहाराजके अपूर्व दर्शन ...... (और) . दुःखका विलय. . - // 16 // TE अब मदना और उम्बर दोनो उपाश्रयमें आये, वहां पर विराजमान पूज्यपाद श्रीमुनि XPAC.GunratnasuriM.S. . . Jun GurAaradha
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________________ | चन्द्र महाराजको वंदन कर अपने उचित स्थान पर बैठ गये-मुनिश्वरने धर्मोपदेश प्रारम्भ किया: (श्लोक) धर्मात्सुखं दुःख क्षयं हि याति / धर्मेण राज्यं सुकुलोद्भवःस्यात् // धर्मस्य सेवा सफला सदैव / धर्मे प्रयत्नो मनुजैविधेयः॥१॥ भावार्थः-धर्मसे सुखकी प्राप्ति और दुःखका नाश होता है तथा धर्मसे राज्य वैभव मिलता है और सत् कुलमें उत्पत्ति होती है, धर्मकी सेवा सदैव सफल होती है; अतः अहो महा|नुभावों! मनुष्य लोगोंको धर्मकी सम्पूर्ण सेवा करनेमें यत्न करना चाहिये. इत्यादि धर्मदेशना सुनकर सब लोग अपने 2 स्थानपर चले गये किन्तु कितनेक श्रद्धालु श्रावक वहीं पर बैठे हुवे हैं, इस वख्त मुनि महाराजने पूर्व परिचिता मदनाको पूछा-हे मदने! SOCARIOCASSASSUOLOGY Ac. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ 35--%E9%ABH श्रीपाल- 18 तेरे पास बैठा हुआ यह शुभ लक्षणवाला कौन पुरुष है ? तब रुदन करती हुइ मयणाने गद्चरित्र. गद् कण्ठसे अपनी. सर्व कर्मकथा कह सुनाई, हे गुरुवर्य! मेरे दिलमें और कोई प्रकारका // 17 // दुःख नही है मात्र इतना ही है कि नगरीके लोग पवित्र जैन धर्मको निन्दा और मिथ्या धर्मकी है। द स्तुति करते हैं, यह असह्य दुःख मुझसे सहा नहीं जाता; अतः अनुग्रह कर कोई ऐसा पवित्र उपाय बताईये कि आपके श्रावकका ( मेरे जरिका ) रोग नाश हो जाय. परमोपकारी गुरुमहाराजने लाभ समझ कर परम पवित्र उपाय इस प्रकार दिखलायाहे भद्रे! पूर्वकृत कर्म नाश करनेके लिये चौदह पूर्वका सार लोक यमें सुख करने वाला, र सकल धर्म प्रधान, दुष्टकुष्ट हरण समर्थ, महाकष्ट हर्ता, पुत्र-पौत्र-धन-धान्य-राज्यप्रताप द कर्ता, आधि-व्याधि-शोक-सम्ताप-दौर्भाग्य-वंध्यता-विषकन्या (जिसके स्पर्शसे ज़हर चड़ जाय.) के विषको दूर करने वाला, मोक्ष पदको देने वाला इत्यादि गुण विशिष्ट 'नवपद' ISHEKHAR // 17 // Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ SUGGESAG454649496 महापदका उपाय जिन धर्ममें विद्यमान है; हे वत्से! तूं अपने पति सहित नवपद महाराजका भक्तिपूर्वक आराधन कर जिससे दुष्टकुष्टादि शिघ्र ही नाश हो जाय गे-वे नवपद ये हैं: 1 अर्हत्पद. 2 सिळपद. 3 आचार्यपद.. .. 4 उपाध्यायपद... 5 साधुपद. 6 दर्शनपद. . ] " 7 ज्ञानपद. 8 चारित्रपद. 9 तपपद. . . . . -ये नव पद जिन शासनमें परम तत्वभृत हैं, नव पदका-सिद्धचक्रका महा मङ्गलकर्ता है। यंत्र विद्याप्रवाद नामके नौवें पूर्वसे उध्धृत किया गया है, यहां पर मुनिश्चन्द्र महाराजने इस पवित्र यन्त्रकी विधि विस्तारपूर्वक दिखाई जिसकी हकीकत प्राचिन लेखी चरित्रोंसे जानी जा. सकती है. गुरुमहाराजने फरमाया हे सुभगे ! यह सिद्ध चक्र परम पद इन्द्र-चन्द्र-नागेंद्र-नरेन्द्रसे सुसेवित SEAAAAAAAG Ac.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ H श्रीपाल प्रस्ताव दूसरा. 181ಕೆ, ತy &a ata ava, gia fan #ಇತ # 47 3gg #ಳಿಗೆ ತಾ : - %E RIt wl qMI RHRat wrea, fe same da a fala a det है यदि रोगादि नष्ट हो जाय तो आश्चर्य ही क्या है-तुम दोनो शुज नावसे इस पवित्र पदका ατττατ πι πα πα ππτα πάη, πgά ετιττ εττι, σπά αισΙτι : HTra प्राप्त होता है. [ 4[q Heritera Ꮔe 6{H[qr f
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________________ __ आश्विन शुक्ला सप्तमीसे पूर्णिमा तक इसही प्रकार चैत्र मासमें यह तप करना चाहिये, || इस व्रतमें प्रतिदिन अष्टप्रकारी प्रजुपूजा तथा आचाम्ल ( आंबिल) करना चाहिये, नौमे दिन | पंचामृत पूर्वक शक्ति अनुसार सविस्तार पूजा करना चाहिये-वर्षमें दोवार करके साड़े चार वर्षमें | नौ ओलियें यानी इक्यासी आंबिलोंसे यह व्रत पूरा किया जाता है, व्रत सम्पूर्ण होनेपर यथा शक्ति उद्यापन ( उजमणा) करना चाहिये, जिसकी विधि प्रसङ्गोपात आगे दिखलाई जायगी; 4 | इस व्रतके करने वालेको सम्पूर्ण समृद्धि-सिद्धि-बुद्धि एवं परंपदकी प्राप्ति होती है, नर नारियों के ज्वर, भगंदर, खास, स्वास, कुष्टादि सकल व्याधिये नाश होती हैं, पुत्र-पौत्रादिकी वृद्धि होती 15 है; हे धर्मानुरागियों! यह संक्षेप विधि तथा उसका फल तुमको दिखलाया-परमोपकारी गुरु महाराजके अमृतमय वचन मदनसुन्दरीने मय उम्बरराणाके सादर शिरोधार्य किये... . इसके बाद गुरु महाराजने भाविक श्रावकोंको इशारा किया कि अहो देवानुप्रिय! स्खध KolP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradt
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________________ श्रीपाल प्रस्ताव चरित्र / र्मियोंकी भक्ति करना चाहिये; यह सुन कर विवेकी श्रावकोने धन-धान्य पूरित एक विशाल है। है मकान रहनेके लिये उन्हे सादर अर्पण किया, उसमें दोनो दम्पति सानन्द निवास करते हैं॥१९॥ है अब वह उम्बरराणा गुरु महाराजके व मदनाके वचनसे भावपूर्वक श्रीसिद्धचक्रकी सेवा-भक्ति / | करने लगा और मुनिमहाराजके पास निरन्तर व्याख्यान श्रवण करता है, मदनाके साथ धर्मः | // ध्यान करता हुवा गुरुमहाराजको वस्त्र-पात्रादि दान देता हुवा सुख पूर्वक निवास करता है. कितनेक दिन व्यतीत होने पर ओलीपर्व आन पहुँचा, आसोज सुदी सातमके दिनसे है उम्बरराणा मयणासुन्दरीके साथ नौपदजीका आराधन करने लगा, मुनिश्चन्द्र महाराजका प्रतिष्ठित श्री सिद्धचक्रका यन्त्र प्रभु प्रासादमें स्थापन किया, प्रतिदिन अष्ट प्रकारी पूजा सहित | आयबिल तप करने लगा, मदना श्री ऋषभ जिनेश्वरका तथा उस परम पवित्र यन्त्रका स्नात्र | जल लेकर हमेशां अपने पतिके शरीर पर सींचन करने लगी, दृढ़ श्रद्धासे आराधित धर्मके OGHOSAROSAROACADCASSACRORESCRESCORE RASTAIGAARASSHOSHIRISA - 6*6* 8 // AcGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ | पसाय प्रथम दिनसे ही उम्बरका रोग शमन होने लगा। इस प्रकार क्रमशः दिन ब दिन विशेष शान्ति होती गई, नौमे दिन दोनो जनोने पंचामृतसे विस्तारपूर्वक पूजन कर भावस्तवना की बाद मयणाने पूर्ण शुद्ध अध्यवसायोंसे स्नात्र जल लेकर सम्पूर्ण शरीरमें विलेपन किया उस | वख्त रहा कहा सर्व रोग नाश होकर उम्बर राणाका शरीर कंचन समान निर्मल हो गया. ___सब लोग इस अनूठे बनावको देखकर चकित हो गये एक वख्त गुरुमहाराजने फरमाया 6 कि भो जव्यात्माओं! इसमें तुम्हें क्या ताजुब हुवा ? इस सिद्धचक्रका तो अवर्णनीय प्रताप है, | सामान्यतासे भी देखो-इसके प्रभावसे ग्रहदोष, भूत-पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-याकिनीव्यंतरी-राक्षसी आदिका भय, सप्त भय, भगंदर रोग, वात-पित्त-कफसे उत्पन्न हुवे समग्र रोग विनाशको प्राप्त होते हैं, मृतवत्सा (मरी हुश् सन्तान हो) दोषसे दूषित स्त्रियोंके पुत्र-पुत्री जीवित होते हैं, ग्रहादिकोकी शान्ति होती है, स्त्रीके पति वशवर्ति होता है; कहां तक कहा AT HAQIRILISHIRIPAIG G PAL. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradha
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________________ प्रस्ताव दूसरा. आपा जाय इसके अतुल प्रतापसे मुनिजन मुक्ति पदको प्राप्त होते हैं, आगमोंमें ज्ञानी महात्माओंने 15 अनेक प्रभाव प्रदर्शित किये हैं, मैने तो तुमको मात्र दिग्दर्शन ही कराया है-गुरु महाराजके | इन आप्त वचनो को सुन कर तथा प्रत्यक्ष आश्चर्य देख करके सर्व जन हर्षित हुवे. व्रतके उसही नौमे दिन परोपकारिणी मदनसुन्दरीने उन सातसो कुष्टियोंके शरीरमें भी | स्नात्र जल सींचा; बस तुरन्त ही उनका रोग नाश होकर सुन्दर शरीर बन गये-सारे नगरमें | जैन धर्मकी तथा मुनिश्चन्द्र महाराजकी महति प्रशंसा हुई इस वख्त मदना अपने प्राणेशका सुन्दर खरूप निहाल कर गुरुमहाराजकी स्तुति करने लगी-हे प्रभो! मेरे पतिका पूर्व संचित | कर्म नाश हुवा यह आपहीकी पूर्ण कृपाका फल हैं, आपही इस रोगको हटाने में समर्थ हुवे-हे तरण-तारण! आपने यह उत्तमोत्तम उपाय बताया जिससे मेरे सब मनोरथ पूर्ण हुवे; इस प्रकार स्तुति कर दोनो दम्पति आनन्दित होकर अपने स्थान पर चले गये. RAHASONRY SKSORRISISISIHIASEX LAC.GunratnasuriM.S. Jun Gon Aaradhat
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________________ थर PIESAISTESCOGAS कमलपनाका मिलाप. AUGGESAKARA रोग मुक्त होनेके बाद किसीएक दिन उम्बरराणा मदनसुन्दरी सहित जिनेश्वर प्रभुके 8 दर्शन कर अपने मुकाम पर जा रहा था उस समय अपनी दुःखिनी माता कमलप्रभाको देख शीघ्र ही उसके चरणों में गिर पड़ा, माताने दोनो हाथोंसे उठाकर अपने प्यारे पुत्रको हृदयसे लगाया; इस वख्त माताके दिलमें हर्षकी सीमा न रही-उम्बर बोला हे मातेश्वरी! तेरी बहुके प्रसादसे मेरा सर्व रोग नाश हुवा, मदना भी परस्पर मातृ-पुत्र भाव जान कर अपनी सासुके पदकमलोंमें अभिवंदन किया; सासुने शुभ आशीर्वाद दिया-हे सुशीले! तूं पुत्रवती-सौभाग्यवती हो, तुमारा सुन्दर युगल (जौड़ा) अखण्ड रहो; अब ये तीनो मिलकर अपने स्थानपर गये. CHE* K # Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak i
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________________ चीन HORSECRECCA प्रस्ताव दूसरा. // 21 // मुकाम पर पहुँचने के बाद उम्बर अपनी माताजीको पूछने लगा-दे जननि! मुझको 6 छोड़ कर आप कहां गइथीं, आपने क्या 2 काम किये वगेरा सर्व हकीकत बताईये गा! माहै ताने कहा-हे मेरे प्यारे पुत्र! बहुत औषधियों करने पर भी जब तेरा रोग शमन न हुवा तब किसी एक सत्पात्रकी सलाहसे मैं वैद्यकी तलाश करनेको कौशंबी नगरी गईथी, वहां पर | लोगोंके मुखसे सुना कि वैद्यतो यात्रा करने गया है, अतः मैं उसकी प्रतीक्षा करती हुई वहीं से पर ठहरी; जिन चैत्यमें प्रभुके दर्शनार्थ मैं हमेश जाया करती थी, एक दिन मैने किसी एक शान्त-दान्त-जितेन्द्रीय-ज्ञानी-ध्यानी-करुणारसभंडार-परमोपकारी मुनि महाराजको वंदनहै नमस्कार कर पूछाः-हे मुनिपुङ्गव! मेरा पुत्र रोग मुक्त कब होगा ? तब दयालु मुनिराजश्रीने फरमाया-हे भद्रे! तेने अपने पुत्रको उज्जयनी नगरीमें कुष्टिसमूहको सोंपा है, उन लोगोंने है। उसे अपना स्वामी बना कर ‘नम्बरराणा' ऐसा नाम स्थापन किया है, अभी मालवाधीश्वर // 21 // प्रजापाल राजाकी सुशीला कन्या मदनसुन्दरीके साथ उसका विवाह हो गया है, मुनिश्चन्द्र 5 Jun Gun Aaradi P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ महाराजके बतलाये हुवे उपायको मयणाके वचनसे श्रीसिद्धचक्र महाराजका आराधन किया है | उससे तेरे पुत्रका शरीर सुवर्ण वर्णसा हो गया हैं, साधर्मियोंके दिये हुवे धन-धान्य पूरित एक मकानमें मदना सहित आनन्दसे रहता है, कुमार अब तक उज्जैनमें ही है, तुझे मार्गमें मिलेगा; इत्यादि. हे पुत्र! मुनिवर्यके इस प्रकार हितैषी वचन सुन उन्हे वंदनकर तथा प्रजुके दर्शनकर ह. हैती हुई उस नगरीसे यहां पर आई हूँ, मुनिवर्यके कथनानुसार ही मार्गमें वधुसहित तुझे 8 से देखा, ये सब वातचित होजाने के बाद पुत्र बोला-हे अम्ब ! प्रजुके दर्शन करने चलो, बस दे-16 रही क्याथी माता पुत्र और पुत्रवधु तीनो मिलकर श्रीऋषभदेव स्वामीके दर्शन करने गये, वहां पर प्रजु भक्तिकर मुनिश्चन्द्र महाराजको वंदन कर यथा योग्य स्थानपर बैठ गये-यतीश्वरने धर्म / / देशना सुनाई; इस अमृतरसका पान कर तीनो जने अपने मुकाम पर पहुँचे और शान्तिसे धर्म || ध्यान करने लगे-अब इस प्रस्तावको यहीं पर छोड़कर रूपसुन्दरीको कुछ हकीकत सुनाते हैं. Stoneheng Jun Gun Aaradhal FLAC.Gunratnasures..
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________________ श्रीपाल प्रस्ताव चरित्र. रूपसुन्दरीका समागम. // 22 // SAURAHAAG SSEUROTECERIES राजाने मदनसुन्दरीका इस प्रकार अयोग्य सम्बंध कर दिया इससे उसकी माता रूपसुन्दरी राजासे कलह कर अपने पीयर चली आई, बहुत दिनोतक शोकातुर रह कर धर्म-कर्म सब छोड़ बैठी, अखीर धर्म शास्त्रोंके वचन स्मरण कर शोकको त्याग किया और श्रीऋषभदेव स्वामीके मन्दिरमें दर्शन करने गई; उस वख्त वहांपर उम्बर, कमला और मयणा तीनों द्रव्य पूजा करके भाव पूजा-चैत्यवंदन कर रहे थे, अपनी सुता मदनाको एक स्वरूपवान पुरुषके साथ देख कर रूपसुन्दरी शंकित हृदयमें इस प्रकार विचार करने लगीः-"क्या यह मदना है या है अन्य ?" खूब निरीक्षण करके पहचानी पुनः "क्या मयणाने नवीन पति किया है ? " अहा! . कर्मोंकी गति विचित्र है, कर्म वश जीव क्या 2 नहीं करता? अर्थात् सबही करता है; अतः अ. // 22 // Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ R4ESAKARBACRes न्य पति धारण किया मालुम होता है, परन्तु यह कुशीला तो ज्ञात नहीं होती क्योंकि बड़ी | | भारी धर्म चुस्त है, क्या हुवा वह कुष्टीवर कहां चला गया, “क्या यह वही तो न हो"? कुछ | समझमें नहीं आता; इस प्रकार संकल्प-विकल्प करती हुई जिन दर्शन भी भूल गई, पुनः वि. | कल्प करने लगी-हा! हा!! हा!!! इस पुत्रीने हमारे कुलको कलङ्क दिया, जिन धर्मको दूषित |किया, अरे! मेरी कुंखको निन्दित की, हा! इसने नवीन पति अङ्गीकार कर लिया, अहो! जी| वनसे इसका मरजाना अच्छा था, सर्व स्थानपर हिलना हुई; इस तरह अनुच्च शब्दोंसे रुदन || करने लगी. ____ मयणासुन्दरी अपनी जननीको शोकपूर्ण दीन स्वरसे रुदन करती हुइ देखकर बोली-हे मात! हर्षके ठिकाने दुःख क्यों करती हो? पिताजीका दिया हुवा यह वही कुष्टीवर है, भावपूर्वक श्रीसिद्धचक्रका आराधन करनेसे सर्व रोग नाश हुवा, जिनेश्वरके मन्दिरमें सांसारिक वात HEAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhat
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________________ श्रीपाल-11 करनेसे 'नैषेधिक' नामका दोष लगता है, अतः तुम शान्तिपूर्वक चैत्यवंदन कर बाहार आवो / प्रस्ताव चरित्र वहांपर सर्व हाल निवेदन करूंगी; इतने में कुमारकी माता बोली-हे सम्बंधिनी! तुमारी पुत्री है // 23 // महा सती है, दैव योगसे सूर्य पश्चिममें उगने लगे, समुद्र मर्यादा लोप करदे तो भी तुमारी है। कुक्षिसे उत्पन्न हुश् कुमारिका धर्मसे कदापि चलायमान नहीं हो सकती. . ये सुखशब्द सुन कर रूपसुन्दरी सहर्ष चैत्यवंदन कर जिन मंन्दिर के बाहार आई, इधर है। वे तीनों जने भी बाहार आये तब कुमारकी माता कमलप्रभाने अपने मकानपर आनेका उसे है |आग्रहपूर्वक आमन्त्रण किया, ये सब लोग मिलकर उम्बर राणाके मुकाम पर गये-कुमारकी मा-1 | ताने मदनाकी माताको श्रीसिझचक्र महाराजके प्रभावका सब स्वरूप कहा, सुनकर रूपसुन्दरी | बड़ी हर्षित हुई और कहने लगी हे सम्बंधिनी! अब कुमारका वंशादि स्वरूप सुननेकी मेरी बड़ी अभिलाषा है, कृपाकर सुनाओ-तब कमला बोली प्रिय सम्बंधिनी ! ध्यानपूर्वक सुनोः ROSSARIESECU ASIC Jun Gun Aaradhak Ac.Gunratnasuri M.S. .'
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________________ नम्बरराणाका परिचय. भ ATGRIGLISHICHIGOAKSIANGAS . अंग देशमें चंपापुरी नामकी एक नगरी है, वहांपर सिंहरथ नामके राजा राज्य करते थे, है उनके कुंकणराजाकी बहन कमलप्रभा नामकी पट्टरानी थी; बहुत काल तक जब उनके कोश सन्तान न हुवा तब अनेक देव देवियोंका आराधन करनेसे भाग्यानुसार वृद्ध अवस्थामें एक पुत्र रत्न प्राप्त हुवा, बड़े भारी होंशसे जन्ममहोत्सव करके उसका नाम 'श्रीपाल ' रख्खा, पुत्र है। जब दो वर्षका हुवा तब दौर्भाग्यवश उसके पिता शूल रोगसे पीड़ित होकर काल प्राप्त हो गये, इस वख्त रानीको अतिशय रुदन करती हुई देखकर मुख्य प्रधान मतिसागर मन्त्री बोला-हे महाराणी ! कुमारको मुझे दो मैं राज्यगद्दीपर उसे स्थापन कर सम्पूर्णतासे प्रजाकी रक्षा करता ASSISHISHISHISHISHG- Jun Gun Aaradhak The HA Gunratnasuri M.S.
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________________ CHIRA प्रस्ताव दसरा. श्रीपाल-||६|| रहूँ गा; ऐसा कह कर उस राजपुत्रको राज्यसिंहासन पर स्थापित किया, शान्तिपूर्वक दो वर्ष |||| द तक राज्य चलता रहा, पश्चात् पापोदयसे उसके काके अजितसेनने राज्य ले लेने के इरादेसे || सर्वत्र राज्यभेद करके सामन्तादि सबको अपने वशमें किये और राणी-श्रीपाल तथा मन्त्रीश्व| रको मारनेका प्रपंच रचने लगा. __मन्त्रीराजको किसी तरह यह भेद मालुम हो गया कि तुरन्त ही रानीके पास जाकर है सब हाल निवेदन किये और यह सूचित किया कि आप अपने पुत्रको लेकर कहीं परभी शीघ्र || || चली जाईये-रानीने पूछा मैं कहां जाउं? मन्त्रीने उत्तर दिया जहां बने तहां मगर अब यहां 5 पर रहना ठीक नहीं ‘जीवन्नरो भद्रशतानि पश्यति' यानी जीवित मनुष्य सेकड़ो कल्याणोंको देखता है, इस लिये जीवनकी रक्षा करना चाहिये, मैं भी सही वख्त चला जाता है. ऐसा 4 कह कर मन्त्रीराज चला गया. URTARRIGARRIA ATASHIALI 2 // FAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ A%A4A4%AASHRA ___शायंकाल होते ही अपने पुत्र-रत्नको लेकर रानी एकाकी नगरसे बाहार निकल गई और * किसी एक निर्जन वनमें प्रवेश किया, इस वख्त गद्गद् कण्ठ होकर कहने लगी-दे सम्बधिनी! राजपद धारक लीलायुक्त बालपुत्र सहित भयानक अरण्यमें वह रानी व्रमण करने लगी, नवनीत (मख्खन ) सदृश सुकोमल शरीरवाली, चन्द्रवदना, पति वियोगिनी, राजसमृद्धिविहीना है। नृपतिभार्याने उस कष्टतरा अटवी में कैसे 2 घोर दुःख सहन किये कि जिसका स्वरूप उसकी है। आत्मा या ज्ञानी महाराज ही जान सकते हैं, जो 2 अशुभ कर्म पूर्वमें संचय किये थे मानो वे 5 सब एक ही साथ सहसा उदय आ गये; इतना कष्ट गुज़रनेपर भी उस रानीने धैर्य धारण कर | 6 जैसे तैसे रात्रीभरमें उस भयङ्कर वन-खण्डको उलंघन किया और प्रभात समय एक रास्ते 5 पर चड़ी. थोड़ी ही दूर जाने पर एक कुष्टिसमूह उसे मिला, उसको देख कर रानी चमकी और il Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव // 25 // श्रीपाल डरी! इतने में तुरन्त ही वे लोग बोले-दे भद्रे! इस प्रकार स्वरूपवती, महामूल्यआभरणचरित्र, विराजिता, भयसे कम्पित तनुलतावाली तूं कौन है ? और इस विकट मार्ग पर कैसे चड़ आई है। है ? इत्यादि सत्य 2 कथन कर! हम लोगोंका किसी तरह भय मत करना हम सब तेरे भाई। समान हैं-ये विश्वासपात्र शब्द सुनकर रानीने निर्भयतासे अपना सब वृतान्त कह सुनाया | " इनके विना अपना निर्वाह नहीं हो सकेगा” ऐसा सोचकर पुनः रानी बोली-अहो भाईयों! | हम दोनोको अजितसेनसे रक्षा करो? उन लोगोंने आश्वासन दिया और उसका बालपुत्र एक खच्चर पर बैठाकर वस्त्रसे ढक दिया, इधर एक कुष्टिके वहान पर उस रानीको वेश बदला कर || बैठा दी, इस वख्त रानीने विचारा कि अब भी मेरे कुछ पुण्य अवश्य है कि इस प्रकार सुसं- ||2|| 15 योग मिला है. .. . . इतना हो चुकनेके बाद अजितसेनके सुभट " मार-मार” शब्द करते हुवे वहां पर आन पहुँचे ORIGAIRIRASCLISAIASSASSICA-96406 ककककबाल // 26 MAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ EXAE% 4- 63+CCECA ERABASIC है और कुष्टियोंसे पूछा-अहो! तुमने एक सुन्दराकारा-पुत्रसहिता-नृपभार्याको देखी है? उन * लोगोंने उत्तर दिया-भाईयों ! हमें मालुम नहीं, दमतो पूर्व कर्मके उदयसे रोगग्रस्त हुवे हैं; है। हमारे पास रानी नहीं है, आप लोग हमारे निकट नहीं आना वर्ना हमारा पवन लगने मा-है द से आप को रोग उत्पन्न हो जायगा; उन सुभटोंने जान लिया कि ये कुष्टि लोग हैं सब है। l मिल कर भिक्षाके लिये जा रहे हैं, ऐसा समझ कर वे सब वापिस लौट गये तब रानी मय | अपने पुत्र के निर्भयतासे उस कुष्टिसमुदायके साथ क्रमशः उज्जैनी नगरी में पहुँची. . कितनाक समय वीतजाने पर अपना पुत्र उन कुष्टियोंको सोंपा, उन्होंने उसे अपना नाथ है। बनाकर रख्खा-पुत्रने जब युवान अवस्थामें प्रवेश किया तब दैवयोगसे कोड़ रोगके सपाटेमें आगया, माताने अनेकानेक उपचार किये मगर रोग शान्त न हुवा, कश्यक लोगोंको हमेशां उ- है | पाय पूछती रही अन्तमें किसी एकने कहा-भो भद्रे! कौशम्बी नगरीमें अढार प्रकारका कुष्टरोग SSSSCGEOGUESS Ac.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradha
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________________ HIS प्रस्ताव दसरा. श्रीपाल | मिटादेनेमें समर्थ एक कुशल वैद्य रहता है, वहांपर तुम जाओ; ऐसा सुनकर वह रानी अपने ||5|| I पुत्र रत्नकी संभाल उन लोगोंको देकर शीघही कौशम्बी नगरीको गई, वहांपर पृच्छा करनेसे || मालुम हुवा कि वैद्य तो जियारत (यात्रा) करनेको गया है, कितनेक दिनों तक वहींपर ठहर है। | कर उसकी राह देखती रही, एक दिन एक समर्थ मुनिराजसे अपने प्यारे पुत्रके शुभ समा चार (जो ऊपर पुत्रको कहे हैं वे पुनः यहांपर कहे ) सुनकर वह रानी यहाँपर अपने पुत्रसे है। | मिली-हे सम्बद्धिनी! वह कमलप्रभा रानी खुद मैं ही हूँ और वह श्रीपाल कुमार यही मेरा पुत्र है जो कि तेरी पुत्रीका नाथ है. ANTISIPASAstong CHECKCE // 26 // / अपने सहोदर भाई पुण्यपालके आगे श्रीपाल और मयणासुन्दरीके सब हाल कह सुनाये; तब | पुण्यपाल अत्याग्रहकर श्रीपाल कुमारको सकुटुम्ब अपने घर ले गया, रहने के लिये धन-धान्य EMAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ SEKA4% A पूरित एक निवास स्थान सादर अर्पण किया; अब श्रीपालकुमार अपने कुटुम्ब सहित यहां पर सुखपूर्वक निवास करने लगा. ACC S EENOV / प्रजापाल नूपालको सद्धर्मकी प्राप्ति.. . एकदिन प्रजापाल भूपाल श्रीपालके रहनेके मकानके पास होकर हवाखोरी करने जा रहा था , M] उस वख्त मकानके गवाक्षमें देवकुमार सदृश रूपवान् कुंवरके साथ मदनाको बैठी हुइ देख कर | चमका और शंका करने लगा कि " हा-हा! कामवश होकर इस दुष्टा पुत्रीने कुष्टिका त्याग कर | नवीन पति कर लिया है, अरे! पहिली भूल तो मैने की, दूसरी भूल इसने की, बड़ा अयोग्य हुवा इसने हमारा कुल कलङ्कित किया!” दुःख-विशमय राजाको देखकर अवसरज्ञ पुण्यपालने AGA4%A Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhali
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________________ श्रीपालचरित्र. RAGANAGAR मयणाका सब वृतान्त कह सुनाया, महाराजा सुनते ही प्रसन्न होकर शीघ्रही पुण्यपालके साथ ||5|| प्रस्ताव मदनाके निवास भुवनमें गये, मयणासुन्दरी सहित श्रीपाल कुमारने वंदनादिपूर्वक राजाका स- दूसरा. |म्मान किया; इस वख्त प्रजापाल लज्जातुर होकर बोला-हे वत्से! तूं धन्या है-कृतपुण्या है-विवेकिनी है। | और तत्वज्ञा है, जो कुछ तेने कहा सो सत्य हुवा, इत्यादि प्रशंसा की 'यथा राजा तथा प्रजा' PI के नियमसे सब लोगोंने महति महिमा की. पुनः राजा बोला-हे पुत्री ! तुने मेरे कुलको उद्धृत किया, तेरी माताकी रत्नकुक्षि उज्ज्व 5. ल हुई तथा जिन धर्म द्योतित हुवा, हे मदने! मैने तुझको दुःख दिया उसकी क्षमा करना, तब मयणा बोली-हे तात! आप खेद न करे कोंकी गति विचित्र है, मुझे लेश मात्र भी चिन्ता , नहीं, जीवने जैसा संचय किया हो वैसा ही पाता है इसलिये प्राणी मात्रको चाहिये कि गर्व न करे! मैंही कर्ता हूँ, एसा कहना योग्य नहीं-हे. पिताजी ! जो कुछ हुवा सो हुवा अब आप HRANOURIS SUCH // 27 S AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ Arrrrr.KAINOS || मिथ्या धर्मको त्याग कर जिनधर्म (सकर्म)को अङ्गीकार करें वगेरा-इस वख्त प्रजापाल महाराज नव | / तत्वमें रुचिवन्त हुवा और जिन धर्मको स्वीकार कर सम्यक्त्व प्राप्त किया, इस समय नृपति श्रीपाल: की स्तुति करता हुवा बोला-अहा! धन्य हूँ मैं कि सिंहरथ राजाका पुत्र मेरा जवांइ हुवा; अन्तमें है। राजाने अनिवार्य आग्रह कर श्रीपाल और मदनसुन्दरीको दायीके होहे पर बैठाकर महदाडम्ब| रसे अपने राजजुवनमें ले गया-महाराजने कुमारको बहु धन-धान्य-अश्व-गज-रथ-सेवकादि परिपूर्ण एक मोटा दिव्यमहल रहनेको दिया, अब यहांपर कुमार सकुटुम्ब आनन्द पूर्वक निवास करते हैं; ईस समय परम पवित्र जैन धर्मकी सर्वत्र नूरि श्लाघा हुई. sam800MMmmmsantiy श्रीपाल कुमारका विदेश गमन. RETREETTERTAINEERINEERESTER एक दिनका जिक्र है कि हाथी-घोड़े-रथ-सुभटादिसे. परवरित श्रीपाल कुमार बीचोंबाजार SACRECAREEN PHIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ श्रीपाल प्रस्ताव चरित्र 1 // 28 // SUSREGIONALISHTRESAISTOSAS है। होकर वन क्रीडा करने को जा रहे थे, इस वख्त देवकुमार सदृश मालुम होते थे, इस समय है। किसी एक गामडे में रहने वाले अपरिचित पुरुषने दूसरे को पूछा कि क्या यह राजा है ? उत्तर || दूसरा. ! मिला कि राजा नहीं किन्तु मदनसुन्दरीका पति राजाका जवांइ है, ये वचन श्रीपालके कान 2 तक पहुंचे कि तुरन्त वहांसे वापिस फिरे और उदास होकर घरके एकान्तस्थानमें बैठ गये; क- | मलप्रभा माताने अपने पुत्रकी यह हालत देख कर पूछा हे पुत्ररत्न ! आज़ तेरे शरीरमें क्या है 2 कोइ व्याधि है-या किसीने तेरी आज्ञा खण्डित की है-अथवा स्त्रीने कुछ अनुचित कहा है ? कहो! हुवा क्या, इस प्रकार शोकातुर होकर क्यों बैठा है ? तेरा मुखकमल मलीन हो गया है, सच कहो! बात क्या है ? श्रीपाल कुमार अपनी माताको चिन्तातुर जान कर बोले| हे मातेश्वरी! तुमारे पूछे हुवे कारणों मेंसे एकभी नहीं है किन्तु अन्यही है और वह यह है। कि (सब हाल कह कर) मुझे यहां पर कोई नहीं पहिचानता, न पिताश्रीके नामसे, न तुमारे RECECAESAककब-5 DHAc.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ XSUSSEISLUSASSUOSISANG ki नामसे और न मेरे गुणोंसे किन्तु सुसराके नामसे सब मुझे जानते हैं; यह मुझे बडा खटकता है है; नीतिकारोंने कहा है : ' (श्लोक) ... उत्तमाः स्वगुणैः ख्याताः / पितृख्यातास्तु मध्यमाः // अधमा मातुलख्याताः / श्वसुरैस्त्वधमाऽधमाः // 1 // भावार्थ:-जो प्राणी अपने गुणोंसे जगतमें प्रसिद्ध हों वे उत्तम पुरुष कहे जाते हैं तथा || पिताके नामसे मशहूर हों वे मध्यम, मामाके नामसे ज़ाहिर हों वे अधम तथा सुसराके नामसे है प्रख्यात हों वे अधमाऽधम कहे जाते हैं. हे जननि! इसलिये मेरा इधर ठहरनेका इरादा नहीं, माताने कहा-जो ऐसा हो तो तुम | / सुसरे की सेना लेकर अपना राज्य ग्रहण करो, पुत्र बोले-हे मात! स्वसुरके बल पर राज्य लेना तो न लेनाही उत्तम है क्यों कि लोकापवाद तो ज्योंका त्यों कायम रहे गा, अतः विदेश Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल- चरित्र // 29 // Pornototanssig जाकर अपने जुजाबलसे धन-जनका संग्रह करके अपने पिताका राज्य करूंगा वास्ते देशान्तर || प्रस्ताव | गमनकी आपसे आज्ञा मांगता हूँ, माताने उत्तर दिया-पुत्र! विदेश-गमन बड़ा कठिन है! श्री. दूसरा. पालने झड़पसे जबाब दिया, माताजी! कायर पुरुषोंके लिये सब कुछ मुश्किल है, सुरवीरोंके लिये नहीं, माताने कहा-अस्तु, तब मदना के सहित मैं भी साथ चलूंगी, कुंवर बोले विदेशमें PI स्त्रियोंका साथ अच्छा नहीं, मुझे एकाकी जानेकी इजाजत दो; कमलप्रभाने लाचार होकर स्वीकार किया तब मदना बोली-हे प्राणेश्वर! देवछायावत् मैं अलग नहीं रह सकती, आपके 5| 3 साथ ही चलूँगी, यह सुन कुमारने बड़े गंभीरतासे कहा-प्राणप्रिये ! तेरा कहना ठीक है म-8|| || गर तीर्थ समान मेरे वृक्ष मातेश्वरीकी सेवामें तूं यहीं पर ठहर, विदेशमें खतन्त्रता पूर्वक ए. [6] | काकी जाना ही श्रेष्ठ है, स्त्रीका साथ रहनेसे पग बंधन हो जाता है और कार्य में अनेक विध हानियें पहुँचती हैं-सुशीला मदनाने अपने पतिराज के वचन सादर शिरोधार्य किये और निवेदन किया कि हे प्राणेश! कुशलतासे पधारना, मार्गमें नव पद महाराज का ध्यान करना और पीछे JHAc.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ SS है शीघही दर्शन देना, यह पुनः 2 प्रार्थना है. अब श्रीपाल कुमार अत्यन्त हर्षित होकर खग हा॥ थमें धारण कर एक दम तैयार हो गये, मातेश्वरी को सादर वंदन कर मदनसुन्दरीसे मिले | और मङ्गल तिलक कराकर शुभ मुहूर्तमें एकाकी विदेशके लिये प्रस्थान किया. जटिकाध्य और स्वर्णखण्डकी प्राप्ति. AAAYS श्रीपालकुमार ग्राम-नगर-पट्टानादिमें कौतुक देखते हुवा सिंहकी तरह निर्भय चित्त एक गिरिवरपर पहुंचे, वहांपर नन्दन वन सदृश वनमें हंस-सारसकुंजित रम्य सरोवर पर अखण्ड | वनखण्डमें चंपक नामका एक सुन्दर तरुवर है, उसके नीचे एक मन्त्रधारी विद्याधरको उदा. | सीन भावमें देखा तब कुमार उसके प्रति बोले-महानुभाव! उदास क्यों बेठे हो? उत्तर मिला GolLAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव श्रीपाल-8 कि गुरुमहाराजकी प्रदान की हुई मेरे पास एक विद्या है, मगर उत्तरसाधकके विना सिद्ध नहीं | परित्र. होती, यह सुन कुमारने तुरन्त ही उत्तरसाधक बनना कबूल कीया, इस वख्त इनके समक्ष 8|| दूसरा. 5 पुनः साधन करनेसे तत्काल सिह हो गई, तब विद्याधरने कुमारको दो औषधियें दी-एक जल-16 | तारणी ( जिसके प्रभावसे जलमें न डूब सके ) दूसरी शस्त्रनिवारणी (जिसके प्रभावसे शस्त्रका | 6 घाव शरीरमें न लग सके ) और यह सूचना किया कि इन जड़ियोंको धातुत्रयमें ( सोना-चा-18 शान्दी-ताम्बेमें ) जड़वाकर दोनो जुजाओंपर बांध लेना, कुमारने दोनो जटिकाओं लेकर अपने 2 पास रखलीं-यहांसे विदेश गमनके लाभका शुभ मङ्गलाचरण हुवा. P कुमार विद्याधरके साथ गिरीवरकी तलेटीमें आया, वहांपर सुवर्णसिद्धि करनेवाले पुरु षोंको देखे-उन धातुर्वादियोंने उत्तम पुरुष समझ कर श्रीपालको कहा-हे नरोत्तम! हमने अनेक PM विध परिश्रम किये मगर सुवर्णसिकि नहीं होती, प्रजु जाने क्या कारण हुवा, कुमार बोले भा. // 30 // K Ac.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ ईयों! सर्व क्रियाएं फिरसे मेरे रूबुरू करो? कीमिया वालोंने वैसा ही किया कि शीघ्र ही सुवर्ण| सिद्धि सिद्ध हो गई; इस समय वे लोग बड़े प्रसन्न होकर बोले-हे परमोपकारी! यह सब सोना 5/ || तुम ले जाओ, कुमारने बेदरकारी बताई, तब धातुर्वादियोंने गुरुभक्तिके विवश होकर हजारों || |5|| रूपेकी कीमतका एक सुवर्णखण्ड जबरदस्ती उनके पल्ले बांध दिया. / अब कुमार यहांसे क्रमशः सफर करता हुवा भरुवच्छ (भरूच ) नगर में आया, वहां पर हा सुवर्णखण्ड बैंच कर वस्त्र-शस्त्रादि खरीदे और उन दोनो जड़ियोंको धातुत्रयमें मढवाकर दोनो || जुजाओंपर बांधली-देवकुमार के सदृश लीलायुक्त नगरमें अटन करते हुवे श्रीपालकुमार | यहांपर सुखपूर्वक निवास करते हैं. KARANABARASHTRA * हिन्दी भाषाके श्रीपाल चरित्रका दूसरा प्रस्ताव सम्पूर्ण हुवा. * Jun Gun Aaradha ALLPAC.Gunratnasur M.S. .
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________________ श्रीपासचरित्र, PRESEAR T STRALREATRE प्रस्ताव तीसरा. तीसरा-प्रस्ताव. APHORLORARAKA=96+%* // धवल सेठसे मुलाकात // FALSCHOGORURSACEAG-280 कौशंबी नगरीका रहनेवाला कुंवेरके सदृश धनेश्वर अनेक वाणोत्तरयुक्त पंचशत पोतनायक धवल नामक सेठ व्यापारके लिये इस भरुवच्छ नगरमें प्राप्त हुवा; यहां पर बहुतसा क्रयाणा |बेंचा और नानाविध पुष्कल माल खरीद कर जहाजों में भर लिया, प्रसंगोपात सेठके जहाजोंकी | गिनती बताते हैं: Ac. Gunratnasari M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ RRCASEAN 1 सोलह कूपस्तंभसे विराजित मध्यम जंगी पोत 4 लघु जंगी पोत 100 सफरी पोत | 100 बेड़ी पोत 74 द्रोणमुखी पोत 64 बड़ेगा पोत 54 भिल्ल पोत 50 आवर्त पोत 35 क्षुर* प्रमा पोत-कुल 500 जहाजें हुई. इन जहाजोंके अन्दर नानाविध उच्च क्रयाणोंके साथ हिंग, मिरच, जीरा, नमक, धान्य, 6 काष्ट, जल, औषधिये वगेरा परिपूर्ण भरी गई थीं-सेठने इन नौकाओंकी रक्षाके लिये माल, भिल्ल, किरातादि जातिवाले दस हजार सुभट रख्खे थे; उनमें तोपें, बंदूकें, तलवारें, बाण, बर-2 छियें; भाले वगेरा शस्त्र रख्खे गये थे-हाथी, घोड़े भी साथ में थे-छत्र, चामर, मुकुट, ध्वजा, है पताकाओ से सुशोभित थीं-भेरी भुंगल, झबरी वगेरा वाजिंत्रोंसे व्याप्त थीं-गीत नृत्यादिसे भूषित थीं-नाना देशोंके यात्री लोग ओर निर्यामक ( जहाजे चलाने वाले) उसमें आनन्द | * करते थे-समुद्रमें गमन करते समय के जहाजें एक जंगम नगरके समान दीपती थीं. KIGORISESSORAS GROSS R Ac.Gunratnasuri M.S. jun Gun Aaradhak
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________________ श्रीपाल प्रस्ताव तीसरा. चरित्र. 32 // RERASARAGARMER अब धवल सेठने राजाको बहुतसा भेटना किया और उनकी आज्ञा लेकर नानाविध वार्जित्रोंके | बजाते हुवे जहाजोंमें सवार हुवा, बीचमें अनेक याचकोंको योग्य दान दिया-सेठने तमाम यात्रियोंको यथोचित सूचना कर नाविक लोंगोंको हुकम दिया कि अहो पोतसंचालकों! अपने पोत समुदायको रत्नछीपके प्रति चलाओ! आज्ञा पातेहि निर्यामक लोग लंगर खींच कर चलाने लगे किन्तु जहाजें न चल सकी, तब धवल सेठ चिन्तातुर होकर नीचे उतरा और शहरमें जाकर सिकोत्तरी मातासे पूछा हे मात! मेरी जहांजे क्यों अटक गई हैं ? जबाब मिला कि हे वत्स! क्षुद्र देवताओने उन्हें 5 स्थगित कर दी हैं अतः यदि तूं को बत्तीस लक्षण वाले पुरुषका बलिदान दे तो वे अभी चल 5 सकती हैं, यह सुनकर सेठ पुनः भेटना लेकर नृपतिके पास गया और मुक्ताफलादि (मोति | वगेरा ) भेट कर अपना दुःख जाहिर किया और उसकी शान्तिके लिये बत्तीस लक्षणी पुरुषकी 6 याचना की, सुनकर राजा बोले-तुम नगरमें शोधकर ऐसे पुरुषका खुशीसे बलिदान देदो, म. | गर यह खयाल रखना कि वह पुरुष विदेशका हो-इस नगरका नही-इस आज्ञाको पाकर से // 3 Ac.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ ARSAC HOST-MECHECER में ठने बतीस लक्षणवाले पुरुषकी गवेषणा करनेके लिये शहरमें अपने सुभटोंको भेजे, उन्होंने क्रमशः घूमकर श्रीपाल कुमारको देखा और धवल सेठको खबर दी-सेठने आझा की कि शीघही उस पुरुषको लेआओ? तब वे सुभट लोग कुमारको जाकर कहने लगे-अहो वैदेशिक ! शीघ्रही चलो! कुमार बोले कहां ? सुभटोने उत्तर दिया (सब हाल कह कर ) श्रेष्टी शिरोमणि धवलP|| शेठकी जहाजोंके आगे बलिदानके लिये, कुंवरने सपाटेसे जबाब दिया-महानुभावों! धवलका ही बलिदान देदो, वीर पुरुषका बलिदान नहीं हो सकता; इस वख्त परस्पर कलह जाग पड़ा, सुभटोंने चारों ओरसे कुमारको घेर लिया तब कुंवरने सिंहनाद किया जिससे सब सुभट लोग भग गये. इस वख्त धवलने जाकर राजाको मददके लिये प्रार्थना की, तब नरनाथने श्रीपालको बांधकर लेआनेके लिये अपनी सेना भेजी मगर वह भी कुमारके सिंहनादसे भग गई; तदनन्तर -ॐ ROCAL e R Ac.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल चारच. 33 // 15 धवलकी और भूपतिकी सेनायुगल शस्त्रसज्जित हो कर कुमारके साथ संग्राम करने लगी, सु-|| प्रस्ताव 8 भटोंने बाणोंकी वर्षासे तथा खड्डु, भाले, बरछियें आदिसे श्रीपालका शरीर आच्छादित कर दी तीसरा. || दिया, इतना होने पर भी उस पुण्यशालीका शरीर श्रीसिद्धचक्र महाराजके प्रसादसे तथा | शस्त्रांनवारणी औषधी (जड़ी-बूटी) के प्रभावसे छेदित नहीं हुवा-जरा सुनो श्रीपालकुमारने | उन सुभटोंकी क्या दशाकी:-किसीके नाक काट लिये, किसीके कान, शिखाएं और किसीकी / P डाढी-मूंछ काटली तथा किसीका शिर मुंडन कर दिया और किसीके मुखसे रुधिर वहने लग trennt || दृश्य देख कर सारे नगर वासियोंको भारी आश्चर्य हुवा-इस समय धवलशेठ विचारने लगा क्या यह को विद्याधर है अथवा देव है वा दानव है या किन्नर है ? अस्तु, चाहे जो हो, अपन तो | व्यापारी हैं अपने काममें सावधान रहना ही अपनेको श्ष्ट है, इसके साथ लड़ाई करना ठीक नहीं, अपना कार्य इसहीको कहना श्रेष्ठ है; यह सोच कर सेठ श्रीपालजीके चरणों में गिर पड़ा DilAc. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 5 और दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा-हे वीररत्न! कोपाक्रान्त होने पर भी महापुरुष / 5 नमन-नरका तिरस्कार नहीं करते; अतः आप कृपा करके देवस्तम्भित जहाजोंको चला दी- || जियेगा; क्योंकि आप एक समर्थ पुरुष हैं, श्रीपालकुमार बोले यदि तुमारा कार्य सिद्ध करदें तो तुम हमें क्या बदला दो? शेठ बोला एक लाख सुवर्ण-दीनार ! कुंवर सहर्ष स्वीकार कर धवलके | साथ सबसे आगेकी जहाजमें सवार हुवे, सर्व प्रवासक लोग सावधान हुवे; अब श्रीपाल कुंव-5 करने श्रीनवपद महाराजका ध्यानकर बड़े जोरसोरसे (कार-शब्द कियाकी तत्कालही क्षुद्र-देवता || भग गये और सब जहाज चलने लगीं; इस वख्त नाना प्रकारके वाजिंत्र बजने लगे, नृत्तिकाएं P|| ना करने लगीं, चारण लोग विरुदावली बोलने लगे, भजन जय 2 शब्द करने लगे, इस है प्रकार चारों और आनन्दही आनन्द छा गया. धवलशेठ कुमारको सातिशय पुरुष समझ लक्ष दीनार देकर कहने लगा-तुम भी तनख्वाह Jun Gun Aaradhak Ac. Gunratnasuri M.S. .
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________________ प्रस्ताव तीसरा. - चरित्र // 34 // श्रीपाल-हैलेकर हमारे साथ चलो, कुंवर बोले, क्या दोगे? शेठने कहा, जहाजोंकी रक्षा करनेके लिये है। मेरे साथ दस हज़ार अजितसुभट हैं उन सबका मूल्य वार्षिक कोटी दीनार है, इस हिसाबसे है। एकका एक हज़ार होता है, तो तुमको दुगुना देंगे, अर्थात् सालियाना दो हज़ार सोनामोहर | | देंगे-श्रीपालजी बोले कि सब सुभटों जितना यदि मुझ अकेलेको दो तो मैं तुमारी जहाजोंकी | रक्षा बराबर कर सकता हूँ, यह सुनकर धवलने सोचा कि इस तरह तो वार्षिक दो कोड़ दीनार | होते हैं, यह तो निभ नहीं सकता-बस खामोस हो गया-इस समय कुमार धवलको कहने / लगे-हे शेठजी ! यदि तुम इसमें राजी न हो तो मैं किराया देकर चलनेको तैयार हूँ कारण MP कि विदेशगमनकी मुझे बड़ी इच्छा है ? सुनकर शेठ बड़ा प्रसन्न हुवा और कहा-अच्छा प्रति- || मास सो दिनार देना, तुम सानन्द नौकामें बैठ जावो-श्रीपालजीने एक महिनेका पेशगी किराया देकर सम्यक् स्थान ग्रहण किया, वहांपर सुखपूर्वक निवास करने लगे. HARLEROSASHARAN RISASIGA SCEGLISHLISTSHAHIS-2234%* // 34 // IAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhali
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________________ अब नाविकोंने समस्त जहाजों वहासे इंकाली, अनुकूल पवनके प्रयोगसे वेगपूर्वक वे चलने | म लगी, इस वख्त श्रीपालजीके साथ धवल उच्चस्थान पर बैठकर रत्नाकरमें चित्र विचित्र कुतूहल देखने लगा, इसही प्रकार कुमार भी बड़े 2 मगरमच्छ, मच्छलियें, काछबे वगेरा जलचर जान| वरोंकी नाना गतियें अवलोकन करने लगे. वहां सर्व हकीकत देखने के लिये महाकपस्तम्भ पर PI काष्टपिंजरमें बैठा हुवा दिग्दर्शक पुरुष कहने लगा-अहो सुभटों! चौरों की जहाजें सामने || आरही है, अतः तुम लोग अपनी 2 जहाजोमें सावधान रहना-चन्द्रकिरणों और सूर्यकिरणों |5|| 5 करके जलमें अनेकविध आश्चर्य देखे जाते हैं, समुद्रके तीर पर जल तरङ्गे उछाला खा रही हैं, 5 | स्थान 2 पर वाड़वानल ( जलमें अग्नि ) जल रही है, सूर्यके उदय और अस्तमन समय तता. वस्था शान्ततामें प्रवेश होजाती है, इन सब आश्चर्यों को श्रीपालकुमार वगेरा अवलोकन करते हैं-इस समय काष्टपिंजरमें बैठा हुवा पुरुष बोला-अहो नाविक लोगों!अन्न जल, काष्टादि यदि ग्रहण करना हो तो बब्बरकुल आगया है, धवल सेठने भी तुरन्त हुकम दिया कि यहीं 3RASEIRRAHIRKARIAKOO Jun Gun Aaradh .AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ श्रीपाल18|| पर पड़ाव डालो, आज्ञा पातेही सब जहाजे एक दम ठरहा दी गई, अब दस हजार सुभटों के || प्रस्ताव तीसरा. चरित्र साथ श्रेष्ठीशिरताजने जहाजोंसे नीचे उतरकर भूतल पर प्रवेश किया, अन्य जात्री लोग जी 35 // जल, काष्टादिकी व्यवस्था करने लगे; इस प्रकार चारों ओर लोग अटन कर रहे हैं. . HEGNOOSSAARHUS नाम - बब्बराधीश पर विजय. (पहिला-विवाह) . इस वख्त बब्बरकुलके नगररक्षक पुरुष कोलाहल श्रवण कर जहाज़ोका कर लेनेके लिये || * वहां पर आये मगर धवल शेठको अपने दस हज़ार सुभटोंका मगरूर होनेसे कर नहीं दिया | | इससे परस्पर कलह उत्पन्न हुवा, शेठके सुभटोंने राजपुरुषोंको तर्जित किये इससे वे लोग ||8| AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ SCAUSAGARSAEX नगरमें जाकर राजाको ( सब हाल कह कर) विज्ञप्ति करने लगे-हे नाथ! धवलने हमको | | ताड़ित किये, यह बात सुनकर महाकाल भूपाल कोपाक्रान्त हुवा और अपनी सैन्य सज-धज | कर धवलके सुनटोंके साथ भारी संग्राम आरंभ किया, राजाका जय हुआ, धवलकी सैन्य दशों | | दिशाओंमें जग गई, धवलको अवली मुस्की बांधकर वृक्ष पर जकड़ दिया और सर्व पोतोंमे अपने सुन्जट रख कर नगरको वापिस चला-इस स्वरूपको देखकर श्रीपाल कुमार धवलको कहने || लगे-अहो महाभाग! तुमारे वे कोटी दिनार रोज़गार खाने वाले सुभट लोग कहां चले गये ? | |क्षकी शाखा पर वंदरके समान अधोमुख लटका हुवा धवल श्रीपालजीको कहता है-नो महा-18|| नुभाव! 'दते दारः' क्यों करते हो-यानी जले हुवे पर नमक क्यों डालते हो? तब कुंवर बोले 8 | अहो सेठ! यदि मैं तुमारा सब धन महाकाल राजासे छुडा ला, तो तुम मुझे क्या दो? उत्तर मिला कि तमाम मिलकतमेंसे आधी तुम्हें दे दूं, कुमार बोले इसमें प्रमाण क्या ? धवलने कहा दे | तुमारे और हमारे बीच परमेश्वर साक्षी है. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ प्रस्ताव श्रीपालचरित्र EARSA%AAKAAREAKING ____ तब श्रीपालकुमार कवचको धारण कर शस्त्रसज्जित हो पोतसे नीचे उतर महाकाल राजाके पीछे दौड़ पड़े और इस प्रकार पुकार 2 कर कहने लगे-अहो कातर बब्बराधीश! अपराध क-II रके कहां भग जाता है, बलपूर्वक वापिस फिर कर मेरे साथ संग्राम कर ? अगर तू सच्चा क्षत्री हो तो रणक्षेत्रमें आ जा! महाकाल राजा श्रीपालके वचन पर मुसकराकर बोला-अरे! तूं बा. लक है-सुन्दर है-तेरे अकेलेके साथ युद्ध करनेसे लोकमें प्रतिष्ठा नहीं हो सकती, मेरी सेनाका तुझसे अवश्यही चूर्ण हो जायगा यह मैने अच्छी तरह समझ लिया है। अब तूं दूर चला जा! || | इसहीमें तेरा कल्याण है, श्रीपाल कुमार बोले-राजन् ए वचनाडम्बरसे क्या? यदि सुरवीर हो / | तो सामने आजा-इतना कहने पर भी राजा बेदरकारी करके आगे चलने लगा, श्री- 15 | पालजीने विचारा कि कुछ छेड़ किये विना वापिस नहीं फिरेगा, बस शीघही राजाके आगे चलती हुई विजय-ध्वजको बाणसे जमीनदोस्त की, इस वख्त राजाकी सेना बिगड़ी और पीछे // 36 // मुड़कर श्रीपालजीका शरीर बाणोंसे ढक दिया, तलवारे और भालोसे शरीरपर प्रहार करने लगे VP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha SE
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________________ ARRRractors ARS 6 मगर नवपद महाराजके और शस्त्रनिवारणी औषधीके प्रभावसे शरीर सहीसलामत रहा; तद| नन्तर श्रीपाल कुमार बोले-तुम लोगोंका बल तो मैनें अच्छीतरह देखा, अब दो दो हाथ मेरे / भी होने दो, ऐसा कह कर कुंवरने बलपूर्वक बाणोंद्वारा महाकालकी सेनाको ताड़ित कीसेनाके कितनेक लोग पृथ्वीपटल पर लौटने लगे, कितनेक पर लोक सिधा गये और कितनेक श्याममुख होकर भग गये; इस तरह सब फोज़ दशों-दिशाओंमें पलायन हो गई, इस विषमाsवस्थाको देख महाकाल कोपाटोप होकर स्वयं युद्ध करनेको आया मगर श्रीपाल कुमारने एकदम फाल मारकर महाकाल जूपालको बंधनसे बांध दिया और अपने स्थान पर लेआया; है इस हालतको देख कर जहाजोंमें रहे हुवे राजाके सुभट चारों ओर भग गये-इस वख्त श्रीपाल र कुमारने धवल के बंधन दूर किये बस शीघही " कमज़ोर और गुस्सा भारी की तरह " धवलसेठ हाथमें खड्ड लेकर महाकालको मारने दौड़ा, तब नीतिवान् कुंवर कहने लगे-अहो सेठ! घर पर प्राप्त हुवे मनुष्यको मारना युक्त नहीं-नीति शास्त्रका फरमान है: Ac.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak
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________________ SOSTES श्रीपाल परित्र. प्रस्ताव (गाथा) तीसरा. गेहागयं च शरणा-गयं बद्धं च रोगपरिभूयं / / // 37 // नस्संत बूढ बालयं / न हणंति सयणा पुरिसा // 1 // भावार्थः-सजन पुरुष घर पर आये हुवेको, शरणागतको, बंधनसे बंधे हुवेको, रोगसे कायल हुवेको, पीठ देकर भगते हुवेको, वृद्धको और बालकको कभी नहीं मारते. श्रीपाल कुमारका विजय होनेके बाद सेठके सब सुभट उसके पास आये मगर धवलने || P गुस्से होकर उनको न रख्खा, तब दयालु श्रीपालने उसही वेतनसे उन सबको नोकर रख लिये और अपनी जहाज़ोंमें रक्षाके लिये स्थापन कर दिये, वे सब लोग अब कुमारके सेवक बन गये, | इस वख्त श्रीपालने महाकाल राजाके बंधन दूर किये और उसे जहाजोंका कर देकर वस्त्रादि / नेटके साथ विसर्जन किया-इस समय बब्बराधीशने श्रीपाल कुंवरको प्रार्थनाकी कि हे महा AAAAAAAAKASA-KALA S O SIS199420 // 37 Jun Gun Aaradhak Wil Ac. Gunratnasuri M.S.
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________________ || पुरुष! आप मेरे नगरको पावन करों ? इस वख्त बीचमेंही डेड़ पंच बनकर धवल बोला-हे | है कुमार! शत्रुके घरपर जाना ठीक नहीं, किन्तु श्रीपालने तो "आप जला तो जग जला" |3|| | इस कहावतको लक्षमें लेकर सपरिवार राजाके साथ हो लिया-महाकाल नरेशने बड़े महो- || सवसे कुमारका नगरप्रवेश कराया और अपने राजनुवनमें लेजाकर सुवर्ण-सिंहासन पर बिराजमान किये इस वख्त बब्बराधीश श्रीपालजीको विज्ञप्ति करने लगा-हे महाभाग! मदनसेना के नामकी मेरी एक पुत्री है कृपाकर उसके साथ पाणिग्रहण (विवाह ) करना स्वीकारें; कुमारने | कहा, तुम मेरे जाति-कुलसे अज्ञात हो तो फिर ऐसा करनेका आग्रह क्यों करते हो? उत्तर - | मिला कि आपके पराक्रमने ही यह साबित कर दिया कि आप उत्तम कुलके हैं-श्रीपालजीने इस प्रार्थनाको सहर्ष स्वीकारी, तब राजाने महदाडम्बरसे अपनी लड़कीका विवाह कुंवरके साथ कर दिया, करमोचनके समय हाथी, घोडे, सेना, धन, धान्य, पोतरत्न और नव नाटक भेट किये; महाकालके किये हुवे महोत्सवसे श्रीपाल कुमार मदनसेना सहित वापिस अपने || RECISCUSCHALASUSASISRAGUA Jun Gun Aaradhak Ac. Gunratnasuri M.S.
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________________ |स्थानपर सानन्द प्राप्त हुवे, महाकाल राजा अपनी पुत्रीको शुभ शिखामण देकर अपने नगरको | प्रस्ताव चला गया.. तीसरा. PUSSISSSHOSSSSSSSSSSS जिनमन्दिरके कपाटोंका खोलना. (दूसरा-विवाह) Matkastasia // 38 // धवलसेठं चौसठ कूपस्तम्भसे विराजित महाजंगी नामक पोतरत्नको देखकर हृदयमें जलने 8 द लगा और कजलसे भी अधिक काला-मुख हो गया, दिलमें विचारता है कि हा! मेरा आधा | धन गया, कौन जाने मासिक भाड़ा देगा कि नहीं? इस प्रकार विमासन करने लगा, कुमारने F ACGunratnasuliM.S. Jun Gun Aaradhak i
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________________ MAHARAK इस अभिप्रायको जानते ही दस गुणा भाड़ा दे दिया; अस्तु, अब जहाजे वहांसे रवाना होकर पवनवेगकी तरह क्रमशः रत्नशीप जा पहुँची; नौकाओंमेंसे सब माल असबाव उतारा, किना-है। रे पर तम्बू-डेरे तान कर यात्री लोग सानन्द रहने लगे; श्रीपाल कुमार भी सपरिवार सुन्दर है। 2 पटमन्दिरमें नृत्य वगेराका आनन्द लूँटते हुवे मदनसेना के साथ सुखपूर्वक निवास करते हैं| इस वख्त धवलसेठ कुमारको पूछता है-तुमारी जहाजोंके क्रयाणे बेंच डालो! जबाब मिला कि | तुमही मेरे क्रयाणेको बेंच देना और योग्य लगे उस तरह नवीन खरीद लेना, सेठने सहर्ष / स्वीकारा, हृदयमें विचारा कि अहा! मेरे हाथमें वैपार आया बस मन माना काम बन गया, | सेठको इस वख्त उतनाही आनन्द हुवा जितना कि बिलाड़ेको दूधकी निगरानी सोंपनेसे होता है. / / अब देवकुंवर सदृश अश्वरत्नपर बैठ कर एक पुरुष श्रीपालजीके पटमन्दिर पर आया, | पहरेदारने कुंवरको निवेदन किया, आज्ञा पाकर उस पुरुषको कुंवरके समीप पहुँचा दिया, नम (GoliAc.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ श्रीपाल चरित्र. // स्कार कर वह नर शान्तिसे योग्य स्थान पर बैठ गया, श्रीपालजीकी रीति-नीति देखकर वह प्रस्ताव तीसरा. | विचारने लगा यह कोई महापुरुष है? इनके पास संगित-नृत्यादि सब राज-रीति मालुम होती || // 39 // है, अतः अवश्य कोश राजपुत्र होना चाहिये-नाच पूरा होनेपर परस्पर इस प्रकार बातचित / होने लगी: श्रीपालजीने पूछा अहो! तुम कौन हो-कहांसे आये हो-तुमारा नाम क्या है ? क्या तुमने को अजीब आश्चर्य देखा है ? उसने निवेदन किया-हे महापुरुष ! यहां पर रत्नद्वीपमें वलयाकारे नानाविध शिखरोंसे शोभित शैलमण्डित रत्नसंचया नामकी एक सुन्दर नगरी है वहांपर कनककेतु नामका विद्याधर राजा राज्य करता है, कनकमाला नामकी उसके एक रानी है तथा है। 1 कनकप्रभ 2 कनकशेखर 3 कनकध्वज 4 कनकरुचि, इस तरह चार पुत्र हैं, उनके उपर || मदनमंजूषा नामकी एक तत्वज्ञा, सुशीला, सुन्दर पुत्री है, उस नगरीमें जिनदेव नामका एक || CARSAARAARA // 39 // AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ श्रावक रहता है, उनका पुत्र में जिनदास हूँ, आपके सम्मुख एक अपूर्व आश्चर्य निवेदन करता हूँः - अहो महाभाग ! रत्नसानुशिखर पर कनककेतुके पिताका बनाया हुवा अंधकारको नष्ट करने8|| वाला सूर्यमंडल समान देदिप्यमान, उत्तंग, धवल ऐसा एक जगत्प्रनु श्रीऋषभदेवस्वामीका IS मंदिर है उसके अन्दर सुवर्णमयी प्रतिमा है उसकी वह विद्याधर राजा प्रतिदिन पूजन करता हा है, उसकी लड़की विशेष आदरपूर्वक जिनेश्वर प्रजुकी अष्टप्रकारी पूजा और अंग रचना करती हैएक दिन उस कन्याने विस्तारसे प्र[पूजा की और सुन्दर अंगरचना बनाई, आजकी अंगरचनाको देख राजा बड़ा प्रसन्न होकर विचारने लगा-अहा! धन्य है ! इस सुपुत्रीको कि जिसने इस प्रकार दिव्य-भक्ति की, सच मुचही यह कृतपुण्या है, सुशीला, दक्षा, और जिन | भक्तिरक्ता है; इसही के समान यदि कोई योग्य वर मिल जाय तो बड़ा अच्छा हो; इस प्रकार सोचता हुवा क्षणमात्र शून्य भावी हुवा, बाद शीघ्रही शुद्ध भावसे वीतराग देवके दर्शन कर AAAAAEROESCANASALALA IAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल चरित्र. प्रस्ताव तीसरा. // 40 // रंगमण्डपसे बहारके मण्डपमें आया तब राजकन्या भी मूल मन्दिरके पीछले दरवाजेसे निकलकर / रंगमण्डपमें आई, इतनेमें मूल मन्दिरके दोनो कपाट एकदम बंध हो गये; हे सत्पुरुष! यह है आश्चर्य जनक घटना हुई-इस वख्त सब लोगोंने और राजाने मिलकर बहुतेरे उपाय किये किन्तु / किंवाड़ नहीं खुलसके, कुंवरी बड़ा पश्चाताप करने लगी कि मुझसे कोइ मोटी आशातना बन गई है जिससे यह अघटित घटना बनी; इस तरह विचारती हुई दूःखपूर्वक रुदन करने लगी। इतनेमें राजा बोला-हे कन्ये! तूने कोश् आशातना नहीं की आज़ मैनेही अनुचित किया है। कि जिनेश्वरकी मनोरञ्जन अंगरचना देखकर शून्य भावसे वहीं पर तेरे लिये वरकी चिन्ता की 8 इससे कपाट बंद हो गये, मालुम होता है कि शासन-देव कुपित हो गये; अत एव सबके प्रजु | दर्शनमें अन्तराय पड़ी-अब कन्या सहित राजा कपूर, केशर, चंदन, कस्तुरी, बरासादिका बलिदान करके दशांगी धूपसे सारा जिननुवन सुगंधित किया और परिवार सहित अहम तप करके || वहांपर रहे हुवे हैं; सामन्त, शेठ, सेनापति, प्रजा, प्रधान मंडलादि सब इकठे हुवे हैं, कितनेक Vil Accuratasun Jun Gun Aaradh RECAR
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________________ 5 लोग राजाकी निन्दा और कितनेक जन कन्याकी निन्दा करते हैं तथा कितनेक समझदार || अपने भाग्यको निन्दा करते हैं; अखीर तीसरे दिन पिछली रातको इस प्रकार देववाणी हुई: (श्लोक) नास्ति दोषोऽत्र कन्याया। नरेन्द्रस्याऽपि नास्ति च // कपाटौ मुद्रितौ येन / कारणं तन्निशम्यताम् // 1 // ____ भावार्थः-अहो नगरनिवासियों! यहां पर राजकन्याका कोई दोष नहीं, इसही तरह रा|| जाका भी नहीं है; ये दोनो किंवाड़ किस लिये बंद हो गये उसका कारण सुनो-यह देववाणी सुनकर राजा, कन्या और प्रजाके सब लोग हर्षित हुवे और सोचने लगे कि क्या कारण बयान | करेगी ? इतने में पुनः देववाणी हुई: (श्लोक) दृष्टेऽपि यस्मिन् , जिनमन्दिरस्य / कपाटद्वंद्वं हि समुद्घटेच्च // . ' स एव भर्ता नृपकन्यकाया / जानीत लोकाः किल देववाण्या // 2 // Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ प्रस्ताव श्रीपाल चरित्र. . // 41 // तीसरा. MOGLOSAKKOSHISHIRISHIRINI . भावार्थः—जिस महा पुरुषके दृष्टिपातसे जिन मन्दिरके दोनो कपाट खुल जाय वही राज- || कन्याका भर्तार होगा, अहो लोगों! इस विध तुम देववाणीसे जानो-यह श्रवण कर सब लोग बहुत प्रसन्न हुवे और परस्पर बातें करने लगे कि यह काम कितनी मुदतमें होगा, इतनेमें पुनः आकाशवाणी हुई: (श्लोक) आदिदेवस्य चेटी हि / नाम्ना चक्रेश्वरी सुरी // मासस्याभ्यन्तरे चास्या / आनयिष्याम्यहं वरम् // 3 // . . भावार्थः-आदिश्वर भगवानकी दासी चक्रेश्वरी नामकी मैं देवी हूँ, अहों लोगों! इस क. न्याका वर एक महिनेके अन्दर में ले आउंगी. इस प्रकार प्रातःकाल होते ही राजा अपना ध्यान पूरा करके परिवार सहित उठा, चारों ओर जेरी-भंगलादि मंगल वाजिंत्र बजने लगे, अपने राजमहलपर जाकर घर देरासरमें जिने. RESSURSESEISLUSASOSLUSAS Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ न्द्र प्रतिमाकी भक्तिपूर्वक सेवा-पूजा करके सबने शान्तिसे पारणा किया, देववाणी के शुभ में | समाचार सारे नगरमें 'जल तैल बिन्दुवत् ' फैल गये, अगण्य लोग हर्षित होते हुवे जिन| मन्दिरमें किंवाड़ खोलनेका प्रयास करते हैं और परस्पर इस तरह वदते हैं कि जो सक्ष कपाट खोलेगा उसने मानो अपना जाग्यही खोल दिया, वहांपर इस वख्त एक मोटा मेला ( सम्मे| लन) सा मच रहा है, हे सत्पुरुष! इस मामले को कुछेक कम एक महिना हो गया है मगर किंवाड़ अबतक ज्यों के त्यों बंद पड़े हैं। इस प्रकार अनुपम आश्चर्य जो मैने देखा है वह आपके | सामने निवेदन किया, अन्तमें जाते समय वह कहता गया कि आप छीपान्तरसे आये हुवे हैं / अतः यदि आप के हाथसे यह कार्य हो तो देवीकी वाणी सार्थक हो जाय. यह हकीकत सुन श्रीपाल कुमार अश्वरत्न पर आरूढ होकर धवल सेठके पास आये और कहने लगे-अहो सेठ! प्रभु दर्शनके लिये जिनमन्दिर चलो? उत्तर मिला कि मुझे मात्र अपने RESISERICHORACIS- P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha SHES
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________________ श्रीपाल-5 काममें प्रीति है, जिनमन्दिर वगेरामें नहीं; अतः तुमको जाना हो तो जाओ; तब श्रीपालजी प्रस्ताव चरित्र. 18 परिवार सहित प्रभु-मन्दिर पर आये, देखते क्या हैं कि एक मोटा मेला लग रहा है, अश्वरत्न || तीसरा. // 42 // पर बैठे हुवे कुमारने कहा-भाईयों! तुम लोग अपने 2 भाग्यकी परीक्षाके लिये किंवाडोंको हाथोंसे स्पर्श करो, सबने जबाव दिया कि सूर्य विना कमलवन कौन प्रतित कर सकता है? | अर्थात् आप समर्थ विना कौन खोल सकता है, इतना कह कर श्रीपालजीकी आज्ञाका आदर है। करने के लिये सबने करसे कपाटोंको स्पर्श किया मगर कुछ भी न हुवा; अब श्रीपालजी अश्वरत्नसे नीचे उतरे और उत्तरासण डालकर निस्सही शब्द ( अन्य कार्योंका निषेधवाचक शब्द ) कहते हुवे भक्तिपूर्वक रंगमंडपमें प्रवेश हुवे, वहांपर मूल मन्दिर (मूल गंभारा) के पास आकर सर्वार्थ सिद्धि कर्त्ता नवपद महाराजका ध्यान किया कि तत्काल भड़ाकेसे दोनो किंवाड एकदम खुल पडे, इस समय कुंवरने केसर-चन्दनादिसे तथा खिले हुवे पुष्पोंकी मालासे प्रभु पूजा की, फलादि चड़ाकर विधिपूर्वक चैत्यवंदन. किया; इस वख्त वहांपर कुमारिका सहित RISALIERICKOU 93439 . AC.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak
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________________ ALATAIATARRAGAICHISHTARISTES राजा भी शीघ्र आया और साश्चर्य कुमारके कर्त्तव्य को देखकर आनन्दित हुवा-श्रीपाल कुमार | इस वख्त प्रभुकी स्तुति इस प्रकार करने लगेः जय त्वं जगदानंद / जय त्वं जगदीश्वर // जय त्वं त्रिजगबंधो / जय त्वं त्रिजगत्पभो // 1 // जय त्वं त्रिजगन्नेत्र / जय त्वं त्रिजगत्पते // जय स्वं त्रिजगन्नाथ / जय त्वं नामिनंदन // 2 // नमस्ते केवलालोक-लोकालोकविलोकिने // नमस्ते भुवनादित्य / भव्यांभोजविकाशिने // 3 // . नमस्ते सर्वतः सर्प-मोहध्वान्तविनाशिने // नमस्ते विश्वविख्यात सर्वनीतिप्रकाशिने // 4 // नमस्ते सर्वकल्याण-कारिणे क्लेशवारिणे // नमस्ते भक्तिमल्लोक-भवसंतापहारिणे // 5 // ... . भावर्थः-हे जगत्को आनन्द देनेवाले-जगत्के इश्वर-विश्वबंधो-हे जगत्प्रभो! तुम इमेशां जयवन्ता वतों // 1 // ... .. हे तीन जगत्के नेत्र समान-तीनजगत्के स्वामिन्-तीन जगत्के नाथ-हे नाभिनरेन्द्रके नदन! तुम निरन्तर जयवन्ता वता // 2 // .... : ... ... .. XIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhalise .. - II
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________________ प्रस्ताव श्रीपालपरिच. तीसरा. // 43 // STARLIGHIRRATIGRICAAT . हे लोकालोकको देखनेमें समर्थ-केवलज्ञानको धारण करनेवाले-हे भव्यात्मारूपी कम* लोंको विकस्वर करनेमें सूर्य समान! आपको पुनः 2 नमस्कार हो. // 3 // हे चारों तर्फ फैलते हुवे मोहरूपी अंधकारको नाश करनेमें विख्यात सर्व नीतियें प्रकाश | करनेमें प्रसिझ-हे. प्रभा! आपको वारंवार नमस्कार हो. // 4 // . . . . हे सर्व कल्याणके कर्ता-क्लेशके निवारक-भक्तिवन्त लोकोके संतापको नाश करनेवालेहे विभो! आपको अनेकशः नमस्कार हो. // 5 // ___इत्यादि प्रस्तुति करके श्रीपाल कुमार विरमित हुवे और कन्या सहित राजा वगेरा | सब लोग सुनकर आनन्दित हुवे, अब कुमार प्रभु मन्दिरके बहार आये और राजाको सादर नमस्कार कर उनके समीपमें बैठ गये, इस समय राजाने कुमारको पूछाः-हे महाभाग! तुमारा कुल क्या है ? नाम क्या है तथा तुमारा चरित्र क्या है ? यह सुन कुंवर विचारने लगे कि अ. SEGIRRESIRASINCA // 4 // Gunnatasun MS Jun Gun Aaradh
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________________ SSINESSHOSHOSIS. HIS | पना स्वरूप अपने मुखसे कहना उचित नहीं है, इतनेहीमें आकाशसे चारण-मुनिका सहसा | 6 पधारना हुवा बस सब लोग एकदम उठ खड़े हुवे, मुनिवर्य जिन मन्दिरमें गये और प्रजुको है। * वंदन कर बाहर प्रदेशमें ठहरे तब तुरन्तही राजा वगेराओंने गुरु वर्यको वंदन-नमस्कार किया है। | और अपने 2 उचित स्थानपर बैठ गये, अवसरको पाकर मुनिराजने धर्म-देशना प्रारंभ की:__अहो भव्यात्माओं! पवित्र जिन धर्मके अन्दर तीन तत्व फरमाये हैं:-१ देव तत्व 5 गुरु है। | तत्व 3 धर्म तत्व; इनके नव भेद इस प्रकार बन जाते हैं-देव तत्व के दो नेद-१ अरिहन्तपद है || 2 सिद्धपद+गुरु तत्वके तीन जेद-१ आचार्यपद 2 उपाध्याय पद 3 साधु पद+धर्म तत्वके चार नेद-१ दर्शन पद 2 ज्ञान पद 3 चारित्र पद 4 तप पदइन नव पदोंसे सिद्धचक्र महापद | || बनता है-इस सिद्धचक्रका ध्यान राज्य लक्ष्मी-तीन लोकका पूज्यपद-सुख समृद्धि कुष्टादिरोग | विनाशता-नेत्र ज्योति आदि गुणोंको देनेवाला है; इतनाही नहीं किन्तु यावत् परम पद Cell Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव तीसरा. दारम // 44 // MI ( मोक्षपद ) को देनेवाला है ' श्रीपालः कुमारवत् ' इसही लिये सब कार्योंमें इस महापदका | 15 स्मरण करना चाहिये, यह सुनकर राजा बोला-हे प्रभो! वह श्रीपाल कुमार कौन ? महात्माने | / उत्तर दिया तेरे समीपमें बैठा हुवा वही यह श्रीपाल कुमार हैं, नृपति शीघ्रतर बोला हे प्रभा! || | कृपाकर इनका सम्पूर्ण चरित्र फरमाईये गा, गुरु महाराजने जन्मसे लेकर जिन मन्दिरके किंवाड 5. | खोले तहांतककी समस्त जीवनी कह सुनाई, अब आगे नाना राजाओंकी कन्याओंसे विवाह होगा, पिताका राज्य प्राप्त होगा, धर्मकी अनेकशः महिमा करके अन्ते नवमे स्वर्गमें प्राप्त होगा, | वहांसे चवकर फिर मनुष्य होगा; इस तरह इस भवसे नौमे भव मोक्ष पहुँचेगा, यहांपर चार, | देव भव और पांच मनुष्य भव समझना चाहिये; इस प्रकार कथन कर मुनिवर्य पुनः गगन मार्गमें चले गये.. SUSISIRISHISHIG // 44 // Ac. Guinratnasuri M.S. Sun Gun Aaradha न
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________________ ECORAGARCASSAGAGAR ___ तब राजा श्रीपाल सहित अपने स्थान पर पहुँचा और विवाह-सामग्री तैयार कर बड़े हैं। महोत्सवसे सादी की करमोचनके समय हाथी-घोड़े-माणक-मोती-दास-दासी वगेरा प्रदान किये; कुमारकी भारी प्रतिष्टा हुई, राजाके दिये हुवे एक सुन्दर महलमें अपनी स्त्रीसह आ नन्द पूर्वक रहने लगे, नित्य प्रजु पूजा करके और मुनियोंको दान देकर अपनी लक्ष्मी सफल.. 2 करते हैं, इस प्रकार चैत्र मास आन पहुँचा कि श्रीपालजीने विस्तार पूर्वक नौपदके तपकी आ राधना की-एक वख्त कुमारके साथ राजा जिन मन्दिरमें विस्तारसे पूजा कर रहा था कि इस समय कोटवालने आकर कहा-हे प्रभो! जहाजोंके अन्दर महादुष्ट-पापिष्ट एक पुरुषने कर | भंगरूपी आज्ञा भंग किया है; अतः मैं उसको पकड़ कर यहां पर ले आया हूँ, उसके लिये क्या है। आज्ञा है ? राजाने हुकम किया कि आज्ञा भंग वालेका प्राण हणना चाहिये, यह सुन तुरन्त / | ही कृपालु श्रीपालजीने कहा-हे राजन् ! प्रजु मंदिरमें प्राण हरणकी आज्ञा न करना चाहिये / ESCENGERSAREERA Cal Ac, Gunratnasurit Jun Gun Aaradhak CAब
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________________ प्रस्ताव चरित्र. 45 // | राजाने कबूल किया और उसके बंदन दूर कराकर अपने पास बुलाया, तव कुमारने ' यह धवल है' ऐसा जान कर राजाके प्रति निवेदन किया-हे. राजन्! यह धवल सेठ मेरे पिताके | तीसरा. समान है, मैं इसही के साथ आया हूँ इस लिये आप इनकासन्मान कीजिये गा, तब राजाने 5 5 वस्त्र वगेरा प्रदान कर उसका सत्कार किया, इस वख्त कुमारने सेठको सम्बोधन कर कहा|| अहो! कर दानका लोभ न किया करो; सेठने चुपचाप सुनकर कुमारको कहा-अपनी जहाजोंमें ||6|| ह सब तैयारी कर स्वदेशमें जानेकी इच्छा है; अतः तुम शीघ्र आना, तब श्रीपालने राजासे शीख 31 * ली और उसके किये हुवे महोत्सवसे दोनो रमणीयों सहित जहाजोंमें प्राप्त हुवे, कनककेतु नृप. | तिने अपनी पुत्रीको हित-शिक्षा देकर कुमारको सोंपी और वह उदास भावसे अपने नगरीको वापिस चला गया. ROSKASOS ARROCARROCK // 45 // II AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ PRASARSATIOAADRISANSISTORY धवलकी धृष्टता और उसका जयङ्कर फल. (तीसरा-विवाह) HAIR-CHIRGANA सरल-शान्त स्वभाववाले कुंवरने वृद्ध पुरुष समझ कर धवल सेठको अपनी जहाजमें बैठाया और दूसरोंको अन्य जहाजोंमें दाखिल किये, इस समय प्रस्थानकी मंगल-जेरी बजने लगी, तमाम जहाजें पवन वेगके समान चलने लगीं, कुमार जहाजोंमें गमन करता हुवा इस प्रकार शोभता था मानो देवेन्द्र विमानमें चल रहा हो-श्रीपालजीको इस तरह लीला युत समृद्धि तथा देवाङ्गनाके समान स्त्रीरत्न घ्यको देखकर चलचित्त धवल हृदयमें जल गया; (स्वगत) अहा! यह एकाकी मेरे साथ आया था और किस उच्च दशामें पहुँच गया, हाय ! IPI मेरा आधा धन भी गया क्या करूं? इत्यादि रात दिन चिन्ता करता हुवा महा लोभी-कृतघ्नी AASAREENALS REGA ASTER SHAcGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ V // 46 // SSICAISHIGASHISASHASHASH54 ई विश्वासघातक धवल उसपर वेष धरता हुवा दुर्बल होने लगा, श्रीपालके सुखके आगे इसे | सेठकी भूख-तृषा सब भग गई, सच है! अन्य तरुवरोंको फूले फले देख कर जवासा सुक | जाता है, ठीक यही दशा सेठकी भी हुई-मारे आधिके (मन चिन्ताके ) धवल क्षणवार शय्यासे | Pउठता है, क्षणवार उसमें पड़ता है इस तरह असाधारण बेचैनी व्याप गई, धवलके चार | मित्रोंने अपने सेठकी इस बुरी दशाको देख कर निवेदन किया-हे श्रेष्ठि ! आपके शरीरमें क्या है को व्याधि है या मनमें कोई चिन्ता है-सत्य 2 कहिये है क्या? तब सेठ एकान्त अवसर जानकर बोला-अहो मेरे प्रिय मित्रों! तुमारे साथ मेरी बड़ी प्रीति है इसही लिये में अपने दिलकी बात तुमारे आगे कहता हूँ मगर ध्यान रहे तुम किसीके आगे न कहना, उन्होंने कहा बहुत अच्छा ! तब धवल सेठ अपनी कथनी कथने लगाः- . अहो मेरे परम मित्रों! यह श्रीपाल एकला पुरुष है, इसकी स्त्रीरत्नयुगल और मोटीऋद्धि 4GEOGRECOGESSESSURES DILAc.Gunratnasuri M.S. INDI Jun Gun Aaradhal
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________________ &ll कोई उपायसे ले लेनी चाहिये, तबही मेरी इष्ट सिकि सिक हो सकती है; अतः कुमारको मार 6 डालनेका कोइ प्रयोग करना चाहिये, यह सुन उन चार मित्रोंमेंसे एक दुष्ट मौन कर रहा, शेष तीन इस प्रकार मीठे खट्टे शब्दोंसे बोलने लगेः-हे सेठजी! जिस किसीका भी धन हरण तथा है स्त्री हरण महा दोष है इसलिये सत्पुरुषोंको यह उचित नहीं और उपकारियोंका तो विशेष अ. नुचित है, यह निःसंदेह बात है कि इसका फल भयंकर होगा, यह महापुरुष धर्मी-परोपकारी त्यागी-दाता-भाग्यवान् आदि प्रशस्त गुणोंसे शोभित है, इससे वेष रखने पर समुद्र पार होना भी कठिन हो जाय गा, इसके पुण्यको तुमारा पुण्य कभी नहीं लग सकता, आज इस प्रकाभरके अनिष्ट कथनसे तुमारे साथ हमारा स्वामी सेवक भाव गया-तूं दुष्ट-पापिष्ट है, तेरा मुख || देखनेसे पाप लगता है, अहा! श्रीपालजीका उपकार आज ही भूल गया? अरे! तेरी स्तम्जित | जहाजे चलाई, महाकालसे छुडाया, रत्नहीपमें मरणान्तसे बचाया क्या ये सब उपकार तू * शीघ्र हीनूल गया-हे सेठ! तुं दुष्ट सर्पके समान है " पयःपानं जुजंगाना, केवलं विषवर्धनं " ASHIRISHISHIGA IMAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aacadha
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________________ श्रीपाल चरित्र प्रस्ताव तीसरा. TERSISESEOSES // 47 // 6 यानी सोको दूध पिलाना मानो मात्र ज़हरको वड़ाना है; अरे! तूं महा कुटिल है, यतः (श्लोक) ___ कुटिलगतिः कुटिलमतिः / कुटिलात्मा कुटिलशीलसम्पन्नः // सर्व पश्यति कुटिलं / कुटिलः कुटिलेन भावेन // 1 // भावार्थः-कुटिल चालको धारण करनेवाला, कुटिल बुजिवाला, कुटिल आत्मा और कु. टिल खभाव युक्त ऐसा कुटिल पुरुष अपने कुटिल भावसे सब कुटिल ही कुटिल देखता है. | सेठ ! तूं काले सर्पके तुल्य है दूध पिलाने पर भी डंसता है, तूं बुरी तरह भोंकते हुवे M कुत्तेके समान है, तूं किंपाक फल ( ऊपरसे मनोहर और अन्दरसे ज़हर ) के सरीखा है, हे धवल! इस प्रकार पापाचार मत कर-तेरे करनेसे कुछ भी नहीं हो सकता, तेरा नाम धवल (सपेत ) है मगर हृदय तेरा काला है, तेरे दिलमें कृष्ण लेश्या (क्रूर परिणाम ) वस रही है, PAHESAGERASESSIRea . Ac. Gunratnasuri M.S. 46556 Jun Gun Aaradha
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________________ || तेरे दर्शनसे हम मलीन हो गये; हे उषी-हे दुर्गति गामी! यह कार्य करनेसे तेरा अनिष्ट होगा; कहा है: (श्लोक) अनाचारे मतिर्यस्य / स हन्ति जन्मनो द्वयं // दुर्गतिः परलोकस्य / इह लोके विडम्बना // 1 // भावार्थः—जिसकी गति अनाचारमें विद्यमान है उसने अपने दोनो भव नाश किये इस * लोकमें विटम्बना पाता है और परलोकमें दुर्गति आप्त करता है. हे सेठ! इस कार्यमें जो तुझे सलाह दे वह तेरा परम शत्रु समझना; इत्यादि वचन कह कर वे तिनों मित्र अपने 2 स्थानपर चले गये-धवलने इस बातको न माना, सचहै ! * विनाश र काले विपरीतबुद्धिः ' चौथा मित्र अभी तक वहींपर बैठा हुवा है, इस समय उसने कहा-हे वामिन् ! हृदयकी बात इनके सामने न कहना चाहिये, ये तीनो तुमारे दुश्मन हैं, मैं एक AcGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ फ . . - - प्रस्ताव भोपाल-||5|ही लाखके बरोबर हूँ, तुम श्रीपालके साथ परम प्रीतिकर विश्वास पैदा करो? यह सन धवल चरित्र. बड़ा प्रसन्न होकर बोला-अहो! तू ही मेरा परम मित्र-परम वल्लभ है, तूं ही काम सिक क- |5|| तीसरा.. रनेवाला है, तेरेको मनोवांच्छित फल दूंगा; कुंवरको मारने का उपाय विचार! यह सुन वह | दुष्ट पुनः बोला-अहो सेठ! जहाज पर एक उंची मांचड़ी बंधाओ उसपर कुतुहल देखनेके | बाहने श्रीपालको बुलाना और तुम नीचे आजाना तब शीघही में मंचीकी डोरी काट डालूंगा बस अपना कार्य सिद्ध हो जायगा-" इसही का नाम रौद्र ध्यान-ऐसे उष्ट कामोंसे ही जीव | घोर नरकको पाता है " यह गुप्त मंत्र कह कर वह मित्र गया, इधर कुमारके साथ सेठ अ. | पूर्व प्रीति करने लगा, यह तो बड़े भद्रिक हैं इसलिये ठीक धवलके कहनेमें लग गये, श्रीपा लको सेठका विश्वास उत्पन्न हुवा-सेठके साथ भोजन-पुष्प-ताम्बूल-विलेपन-गीत-नृत्य कुतुहल |||| कथा-कथन आदि व्यवहार करने लगे और समुद्रके कोतुक देखते हुवे सेठको अपना परम | | मित्र मानने लगे; सत्य है! सज्जन सजनताको कभी नहीं छोड़ता, तब धवलने एक उंची मांचड़ी। AMAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhat! -5
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________________ 54: | डोरीसे बंधाई और उस पर बैठ कर कौतुक देखने लगा, एक वख्त रात्रीमें धवल बैठा हुवा | | कुमारको कहता है-अहो श्रीपाल कुंवर! आजतो सागरमें ऐसा कौतुक दिखाई देता है कि || पहिले मैंने कभी नहीं देखा, यह सुनकर कुमार पूर्वकृत अशुभ कर्मके संयोगसे अहो कहां है ? जबाब मिला यहां आओं! श्रीपालजी ऊपर पहुँचे कि तुरन्त धवल जहाजमें आ गया, सूचना पाते ही धवलके उस दुष्ट मित्रने कसाईकी तरह उस मंचीकाकी डोर काट डालो कि उसी | वख्त कुमार समुद्रमें गिरपड़े; गिरते 2 नवपदका ध्यान किया, उसके प्रभावसे पड़तेही एक मगरमच्छके पीठपर सवार हो गये, नवपदके प्रभावसे तथा जल-तारणी औषधी के बदौलत कुंकण देशके तटपर जा पहुँचे. ___तब श्रीपाल कुमार मगर मच्छके पीठसे उतर कर पृथ्वीपर आये और वहांपर चंपक वृक्षके ||5| नीचे शान्तिसे सोगये, जागते ही क्या देखत हैं कि चारों ओर सुभट लोग खड़े हैं, उनने कहा 58 hill Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल चरित्र. // 49 // हे नाथ! इस कुंकण देशमें बसाहुवा प्रतिष्ठान नगरमें वसुपाल राजा राज्य करता है, उनने हमें में प्रस्ताव | यह आदेश किया है कि समुद्रके किनारे अपरिवर्तित छायावाले चंपक वृक्षके नीचे जो पुरुष हो / el तीसरा. | उसे अश्व-रत्नपर चड़ाकर पिछली पहरमें विनयपूर्वक यहांपर ले आना, इस स्थितिमें हमने | | आपहीको देखे हैं; अतः कृपाकर चलिये गा, तब कुमार घोड़ेपर सवार होकर नगरके समीप पहुँचे, | वसुपालने सन्मुख आकर समहोत्सव नगर-प्रवेश कराया और सिंहासन पर स्थापित कर विनय | पूर्वक प्रार्थना करने लगा-अहो महानुभाव ! मैने किसी निमित्तियेको एक वख्त पूछा था कि IS मेरी पुत्री मदनमंजरीका वर कौन होगा? तब उसने कहा-वैशाख सुदी दसमीके पिछले पहरमें है दरियेके किनारे चंपक वृक्षके नीचे जो ठहरा हो वही उसका पतिराज होगा, वह दसमीका शुभ है। दिन आजही है, उसका कथन मिला और आपका शुभागमन हुवा, अतः मेरी कन्याके साथ | विवाह करो! श्रीपाल कुमारने इस नम्र विज्ञप्तिको सहर्ष स्वीकारी, तुरन्त ही राजाने सर्व सा. || मग्री तैयार कर मोटे आडम्बरसे विवाह कर दिया, करमोचन समय बहुतसा माल अस्बाव दिया KARNAGARIKA A // 49 // AC.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhal
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________________ और अवसरपर यह भी कहा कि तुमको कोइ राज-कार्य करनेकी इच्छा हो तो ग्रहण करो! तब ||3|| | कुंवरने अन्दरखाने ऊंडा 2 विचार कर महिमानोंको ताम्बूलदान देनेका काम हाथमें लिया, हूँ | अब श्रीपाल कुमार राजाके दिये हुवे महलमें अपनी प्रियतमाके साथ विषय सुख भोगवते हुवे है। | आनन्दपूर्वक रहने लगे-इस सम्बद्धको यहींपर छोड़ कर श्रीपालजी अब समुद्रमें गिरपड़े उसके है समय जहाजोंमें क्या 2 बनाव बने उसका आख्यान करते हैं: . श्रीपाल कुंवरके समुद्रमें गिरते ही दुष्ट-पापीष्ट-धृष्ट-धूर्त धवल अपना शीर फोड़ने लगा, || छाती कूटने लगा और चिल्ला 2 कर रुदन करता हुवा कहने लगा-हाय ! मेरे स्वामी श्रीपाल || नरोत्तम सागरमें गिरपड़े; यह सुन सब जहाजोंमें कोलाहल मच गया, दोनो स्त्रियोंने वज्रपातके || | समान पति-पतनके हाल सुनकर महा विलापात करने लगीं, वे ललनाएं हाहा-रव करती हुई है। मूर्छित होकर पोत-पटपर गिर पड़ी, तब दासियोंने शीतल जल सींचनकर पुनः सचेत की, | Ac.Gunratnasun M.S.... Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल-|| इस वख्त दोनो स्त्रियें अपने मस्तकके घूघर बालोंको लटूरियेकी तरह बीखेरकर अविरल रुदन || प्रस्ताव चारित्र करने लगी:-हे प्राणनाथ-हा गुणभंडार-हा हृदयहार-हा नयन सुखसदन-हा चन्द्रवदन- तीसरा. // 50 // हा कामभवन-हा रूपजित् मदन-हा महाधीर-हा ज्ञानसागर-हे स्वामिन् ! आप कहां चले |गये! हम दोनोका मरण क्यों न कर दिया? हमारा असीम दुःख ज्ञानी महाराज ही जान स कते हैं, हे प्रभो! हम किसके आगे अपनी पुकार करें, हमारा पीयर तो पेले किनारे रहा, हम 5 निराधारणियोंको अब किसका आधार है; इत्यादि विरह विलाप करने लगीं-'किसका आधार | 18 है' यह वचन सुन आश्वासनके लिये धूर्त धवल आकर कहने लगा-हे भामिनियों! मेरी आज्ञा-15|| || का पालन करो जिससे तुमको सुख होगा, यह ' कर्णशूलवत् ' वचन सुन वे चतुरा नारियें | है बखूबी समझ गई कि इसही दुष्टने अपने पतिको समुद्र में गिराया है, तब रुदनको दूरकर दृढ 6 चित्ता हो शीलकी रक्षाके लिये अपने इष्टदेवको स्मरण करने लगीं; इनके शीलके महाप्रभावसे | // 50 // वहांपर इस प्रकार घोर उत्पाद प्रकट हुवा-कल्पान्त कालके समान महावायुसे समुद्रका जल मSAHASKAR : VIP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ | उछाले खाने लगा, किनारे बड़ने लगे, छोटी 2 कल्लोलेसे जल इधर-उधर डावां-डोल करने लगा, चारों ओर आकाशमें मेघ घटा छागई, मुसलधार वर्षा वर्षने लगी, बिजलिये चमकने | | लगी, गाजने अपने गर्जारव शब्दसे ब्रह्माण्डको गर्जा दिया, नीचेसे सागरका जल बड़ता है | और उपरसे मेघ धारा वर्षती है, इस वख्त तमाम जहाजें हिल हिलाने लगीं, यात्री-जन भयङ्कर आफतमें आगिरे, अपने 2 इष्ट देवको स्मरण करते हुवे एक दूसरेको कहने लगे-हा अफसोस! | आज पोत-स्वामी जलमें गिर गये, धवलने यह मोटा पाप किया, अहो! अब अपन किसकी | सायतासे बचें गे; इस तरह दुःखसे दुःखी होकर दान-पुण्यमें सावधान हुवे, जहाजोंके वायु. दान पख्खें टूट पड़े, इस समय अमावश्यासे भी अधिक घोर अंधकार दसों दिशाओंमें छागया, | यहां तक कि एक दूसरेको आपुसमें देख नहीं सकते, इस अवसरमें-डमरुका डम-डमंत शब्द करते हुवे अत्यन्त भयङ्कर रूपको धारणकर हाथमें समशेर ( तलवार ) को लिये हुवे सबसे पहिले क्षेत्रपाल प्रकट हुवे, पश्चात् विकराल रूप धारक मानभद्र-पूर्णभद्र-कपिल और पिंगल LOSRAECAUSERECAUSESS-C WIP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarad!
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________________ तीसरा. . वन-रन- 15 ये चार वीर हाथमें मुद्गर लिये हुवे आपहुँचे, तब देव-वाणी हुई-अहो! प्रथम ही प्रथम इस || प्रस्ताव // दुष्ट बुद्धिदायक पुरुषको पक़डो-पकडो, बाद श्रीसिद्धचक्रके पदेरदार कुमुद-अंजन-वामन और || 6 पुष्पदन्त, ये चार हाथमें दंड धारणकर खड़े रहे, अन्तमें बहुत देवदेवियों सहित अग्नि शिखाः / है ओंसे झल-झलाट करते हुवे चक्रको घुमाती हुई-चक्रेश्वरी देवी अवतरी, बस प्रकट होते ही तुरन्त हुक्म किया-हे वीर! डोरीको काटने वाले दुष्ट पुरुषको झड़पसे पकडो, तब शीघ्रतर क्षेत्रपालने उस पुरुषको अवली मुस्की बांधकर कूप-स्तम्भपर उलटे शीर लटका दिया और 6 खद्गसे सारे शरीरके कटके 2 कर दशों दिशाओंमें शान्तिके लिये बलिदान दे दिया इस || विषम दशाको देख धवल डरता हुवा उन सतियोंके पास आकर कहने लगा-हे महा सतियों! रक्षा करो-रक्षा करो-मुझ शरणागतकी रक्षा करो! यह सुन चक्रेश्वरी देवी बोली-हे दुष्टपापिष्ट-धृष्ट तेरेको जीता कभी नहीं छोड़ सकती मगर सतियोंका शरण लेनेसे तुझे जीवन || मुक्त करती हूँ; पश्चात् दोनो स्त्रियों को इस प्रकार आश्वासन दियाः RSSIOSASRAEOSSANCECC BARSA Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ क AndhArts . (श्लोक ):... बल्लभो वां महालक्ष्मी-सम्पूर्णः संमिलिष्यति // मासस्याभ्यन्तरे वत्से। खेदं मा कुरुतं युवाम् // 1 // भावार्थः-अहो पुत्रियों! महालक्ष्मीसे सम्पूर्ण तुमारा वलभ एक महिनेके अन्दर तुम्हें ||2|| | मिलेगा, अतः कोश् तरह तुम खेद मत करो. ... इस समय दोनो ललनाओंने प्रार्थना की-हे मात ! इस दुष्टसे भय उत्पन्न न हो वैसा कोई / / उपाय कर दो! तब देवीने दोनो स्त्रियोंके कण्ठमें सुरपुष्पमाला डालदी और कहा-हे पुत्रियों! इन पुष्पमालाओंके प्रभावसे कोई भी दुष्ट तुमारी तर्फदुष्टभावसे नहीं देख सकेगा, ऐसा कह कर देवी / श्रीचक्रेश्वरी अपने स्थानपर वापिस चली गई-जहाजोंमें सब तरह शान्ति होगई-इस वख्त वे शुद्ध सलाहकारक तीनों मित्र धवलके पास आकर कहने लगे-अहो देखा न ? उस तेरे कुबुद्धिके / AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 'श्रीपाल चरित्र. // 52 // SINGALAAMAA देनेवालेकी क्या दशा हुई, भो धवल! जो पर-स्त्री तथा पर-धनमें चपलता करता है उसकी यह प्रस्ताव | स्थिति होती है, उनका कथन धूर्त धवलने न माना, सच है / यथा गतिस्तथा मतिः ' जैसी | तीसरा. गति हो वैसी ही मति उत्पन्न होती है-अब जहाजोंको सागरमें चलते हुवे कितनेक दिन बीत गये हैं तब एक दिन धवलने विचार किया-अहा! अब तक भी मेरे पुण्य अवश्य हैं कि || प्राप्तकष्ट नष्ट हो गया, श्रीपालजीकी लक्ष्मी यदि मेरे हाथ लगे तो मैं ईन्द्र तुल्य हो जाउं, || दोनो कामिनियोंको वसमें करनेका कोई उपाय सोचना चाहिये; किसी एक दिन काम-भावसे | उन्मत्त धवल नारीका वेष करके उन मदनाओंके जहाजमें आया, मगर सुरमालाके प्रनावसे || | देखतेही तत्क्षण अंधासा होगया, इससे. इधर उधर गिरने लगा, तब दासीने धवल है ऐसा | जानकर मुष्टि प्रहार-लत प्रहार-हस्त चपेटा-लकड़ी सन्मान वगेराओंसे खूब सत्कार किया | जिससे उसका शरीर निःसत्व होगया, बड़ी भारी मुश्कीलीसे वहांसे भगकर अपनी जहाजमें || // 52 // पहुँचा-दैव योगसे जहाजें अपना प्रस्तुत निशान चूक कर सब कुंकण देशके किनारे जा पहुँचों, SA- ATES SHP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradi!
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________________ SHRESEARSHA श्रीपालजीका विरहदुःख प्राप्त हुवे आज़ कुछ कम. एक मास हो गया है; धवलसेठने पृथ्वीतलपर अपना पड़ाव डाला, बाद नेटना लेकर राजाके पास गया वहांपर श्रीपाल कुमारको देखे, बस है। धवल एकदम कजलसे भी अधिक श्याम मुख हो गया, क्या यह वही है या अन्य ! सेठ वि. | चारने लगा, कुंवरने भी सेठको बखूबी पहिचान लिया; सेठने कुछ टाइम तक राजाकी सत्कार है। व प्रवृति कर जाते समय कुंवरके हाथसे पान बीड़ा लेकर चिन्तातुर होता हुवा बाहर आकर पहरे दारको पूछा-भो! ताम्बूल देनेवाला राजाके पास कौन है ? चोकीदारने कुमारकी सब हकीकत है। कही, सुनतेही वज्रहतवत् हो गया मानो सात पेढी आजही मर गई हो, सेठ हृदयमें विचाग्ने लगा हाय! मैं जो काम करता हूँ, वह सब निष्फल जाता है; परन्तु अस्तु, अब भी इसको मारनेका कोइ उपाय करना चाहिये, हा! यहांपर भी यहतो राजाका जवांइ होकर मोटे दरजे / पर पहुँच गया; इत्यादि चिन्ता करता हुवा अपने मुकामपर पहुँचा. . G P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ क PER चार 53 // - इस वख्त गायनमें निपुण डुम लोग सेठके पास आये और अनेक प्रकार गायन किये प्रस्ताव मगर चिन्तातुर सेठने थोडासा दान दिया तब डुमोंने पूछा-हे ऋद्धिपते! आपने हमपर क्यों है। तीसरा. कोप कर रख्वा है ? सेठ बोला कोपका कोई कारण नहीं; अहो म्लेच्छों! विदेशसे आया हुवा राजाके जमाईको जो मारडालो तो मैं मन माना द्रव्य तुम्हें हूँ! पैसे के लोभसे गायकोने स्त्रीकार किया, सत्य है ! 'धनेन जायन्तेऽनर्थाः' धनसे अनर्थ होते हैं धवलने कहा क्या उपाय | करोगे, उत्तर मिला कि अज्ञात कुल ( म्लेच्छ कुल ) का दोष आरोपण करेगे, सेठने कहा || सत्य है म्लेच्छ समझकर राजा अपने आप मरवा डालेगा, तब लोभांध धवलने कोड़ मूल्यकी | एक मुद्रिका ( अंगुठी-वींटी ) देकर उने रवाना किये-अब गायक लोग सज-धज अपनी कला-सामग्री लेकर कुटुम्ब सहित राज सभामें गये, वहांपर राजाके आगे नाना विध नृत्यगान किये, तब भूपति प्रसन्न होकर बोला-अहो गायकों! इच्छित दान मागलो? उन्होंने निवेदन किया-हेमहाराज! हमें दानसे काम नहीं मानसे काम है, नृपति बोले कौन मान चाहते हो? ASA 4-4 // 53 // P AC.Gunratnasuri M.S.' Jun Gun Aaradhal
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________________ CSC056746464-Ck 646 हैउन्होने कहा तुमारे जवाईके हाथसे ताम्बूल दान, राजाने स्वीकारा और कुमारको कहा तुम में सहर्ष इनका सत्कार करो, उनने उनको सादर ताम्बूल दान दिया; इस वख्त पूर्व कर्मके निबिड़ उदयसे एक बुढ़ी शाकिनीके समान कुमारके कण्ठमे चिपटकर कहने लगी-हे पुत्र-हे ||2|| P पुत्र! तूं कहां चला गया था ? बहुत कालसे मुझे मिला; मैं कश्यक ठिकाने भमी, पहिले तो | सिंहलद्वीपकी खबर मिली थी, बाद नौकापर चड़कर क्रमशः यहां पर आई, देख! यह लम्बे || बूंघटवाल। तेरी बहु खडी है, इसका तुझे क्या को दुःख है ? तूं तो अच्छे नसीब के उदयसे / 4. राज-कुंवरी परण गया मगर बीचारी इस गरीबड़ी की क्या दशा होगी! इतने में दूसरी कहने लगी भाई। भाई। करके कणठमें लग गई. एक कहने लगी मैं तेरी सास हूँ. दसरी जेठ जेठ पूंकारने लगी, कोइ एक हे जाणेज-भाणेज, दूसरी देवर-देवर बोलने लगी, एक वृक्षा कहने लगी आज मेरा जन्म सफल हुवा कि मेरा पौत्र (पोत्रा ) मिल गया, एक बुढा बोला है || मैं तेरा पिता हूं, दूसरेने कहा मैं सुसरा हूं, तीसरे बोले हम तीनों तेरे भाई हैं, एकने कहा 4-4-04CACAAAA-SEX Suntainasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ तीसरा. . . भोपाल- ||6|| मैं तेरा काका हूँ, इत्यादि डुमके सारे परिवारने कुमारको आकुल व्याकुल कर दिया, कितनेक ||6|| प्रस्वार 6 गायिकाओं कुमार के गले लिपट गई, कितनेक गायक हाथ पर और कितनेक पेर पर: चिपट | |गये-इस स्थिति को देख राजा हृदयमें विचारने लगा-हा ! मेरा कुल कलङ्कित हुवा, इस | जमाई को शीघ्र ही मरवाडालना चाहिये, राजाने हुकुम किया अहो कोतवाल! उस निमित्ति। येको शीघ्रही बांधकर यहांयर ले आओ, उसने उसे हाजिर किया, राजाने पूछा-रे दुष्ट! || | यहतो मात्तंग (डुम-भांड ) है, निमित्तियेने कहा-हे राजन् ! यह मात्तंग नहीं किन्तु मात्तंग-18 पति अवश्य है; यह सुन अति रुष्ट होकर राजाने निमित्तिये व कुमारको मारनेकी आज्ञा करी, - यह विकट स्थिति जान मदनमंजरी शीघ्र ही अपने पिताके पास आई और निवेदन किया हे तात! आप यह विना-विचारा काम क्या करने लगे! आचारसे इनका (मेरे पतिका.) कुल उत्तम मालुम होता है; अतः आपको पूर्णतया निर्णय करना चाहिये. ' ... तब राजाने कुंवरको कहा अहो! तुम अपना कुल प्रकाशन करो? सुन कर श्रीपालजी कुछ MEGASARSANSLA RS RIAc Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhali
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________________ मुस कराए और कहने लगे-हे राजन् ! 'पानी पीकर घर पूछना' इस कहावतको तुमने || चरितार्थ करदी; अस्तु यदि तुमको मेरा कुल जानना ही हो तो सैन्य सजकर युद्ध करलो तो तुमें 8 | अपने आप ज्ञात हो जायगा, नहीं तब मैं तो अपने मुखसे कहना नहीं चढ़ाता अथवाइसही | तरह तुम्हें जानना हो तो समुद्रके किनारे जहाजों में अमुक 2 दो स्त्रिये हैं उन्हें बुलाकर पूछलो, . दि राजाने धवलको पूछा-क्या तुमारे जहाजोंमें फला 2 स्त्रियें हैं या नहीं? धवलका मुख यहां पर भी काली श्याहीसे रंग गया, कुछ भी उत्तर नहीं दिया, तब राजाको आज्ञासे प्रधान म-2 ण्डलने जाकर दोनो ललनाओंको निवेदन किया कि हमारे राजा साहब अपने जवांईकी कुल* पृच्छा करनेको तुम्हें बुलाते हैं, उनने विचारा कि अवश्यही अपने प्राणवद्धभ यहांपर होना | चाहिये, खुश होती हुई पालखीमें बैठकर राज-जुवनमें पहुँची, योग्यतापूर्वक उन्हें परदेके अ. न्दर स्थापित की, इस वख्त राजाने पूछा-हे कन्याओं! इस मेरे जमाई श्रीपालका वंशादि च. रित्र कहो-गगनचारी मुनिके मुखसे सुना हुवा और कितनाक अनुभवा हुवा सर्व चरित्र विद्या ASTROACHCHERRENCESCHSSCCICC USARAॐॐॐ 10 IMAc.GunratnasunM.s. Jun Gun Aaradhal
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________________ प्रस्ताव श्रीपालन चरित्र, // 55 // HECHISMUSEOSS धरकी पुत्रीने आयन्त कह सुनाया और अन्तमें यह भी कहा कि यह हमारे प्राणपति हैं; सुन तीसरा. * कर राजा अत्यन्त हर्षित हुवा और कहने लगा कि अहा! यह तो मेरी बेनका लड़का अर्थात् मेरा भानजा ही है; अब पृथ्वीपति गायकोपर क्रुजित होकर हुक्म किया कि इन सबको एक साथ है। मारडालो, तब मरणभयसे डुम लोग सत्य बोल पड़े कि हे कृपालो-महाराज! जहाजोंमें रहे || हुवे धवल सेठने कोटी मूल्यकी मुद्रिका देकर हमसे यह काम कराया हैं, सुभट लोगोंने डुमों से की खूब पूजा की, सब वे दुःखसे विलापात करने लगे और कहने लगे कि हमें छोड़दो कुमारके साथ हमारा कोई सम्बंध नहीं, इधर राजाने धवलको बंधनसे जकड़वाकर मंगवाया और आज्ञा | फरमाई कि-ए कोतवाल! डुमके कुटुम्ब सहित धवलको यमराज के हाथों में देदो-इस वख्त / करुणा परायण श्रीपाल कमारने राजासे नम्र निवेदन कर सबको जीवितदान दिलाया; धन्य हैकुमार! तुम्हारा सत्यस्वरूपी उपकार अति प्रशंसनीय है. .. REPLICEAGEREGSHOSHASI-MAX cSunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ इस वख्त राजाने निमित्तियेको बुलाकर पूछा-क्योंरे! तू हमारे जमाई को मात्तंगपति | कैसे कहता था? प्रतिवचन मिला कि-मात्तंग माने हाथी तो हाथियोंका स्वामी राजाधिराज' है। | समझना चाहिये नृपति प्रसन्न हो प्रीति दान देकर निमित्तियेको शीखदी, फिर राजा अपनी है। | पुत्रीके बुद्धिबलपर बड़ा भारी आनन्दित हुवा, नरपतिने श्रीपालसे अपने कृतअपराधकी सा-है। दर क्षमा मांगी, चारो ओर शान्तिका साम्राज्य फैल गया, कुमार अपनी तीनो रमणियों के साथ है। आनन्दपूर्वक समय बिताने लगे.. __ श्रीपाल कुमारतो भद्रिक परिणामोंसे उसही प्रकार धवलके साथ प्रेम रखने लगे, निर्लज्ज ||6|| || धवल सदा वहींपर रहने लगा, एक दिन रात्रीमें कुमारको मारनेका दृढ विचारकर सावधान तासे वहीं पर सो गया, उस दिन कुमार सातवें मंज़लपर एकाकी सोये हुवे थे, तब धवलने है। | बराबर अवसर पहिचानकर रात्रिमें महलके पिछले भागमें जाकर चंदनगोके पेर पर रेशमकी IAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव चरित्र श्रीपाल-5 मजबूत डोरी बांधी और गोको सातवें मालपर पहुँचाई उसने वहां जाकर अपने पेर मजबूतीसे || स्थिर किये, तब डोरीको चोकसकर धवल रौद्र-ध्यानको धारण करता हुवा हाथमें तीक्षण तल तीसरा. 8 // 56 // वार लेकर श्रीपालजीको मारनेके लिये ऊपर चड़ने लगा, कुंवरके प्रबल पुण्य प्रतापसे तथा ब| लवत्तर आयुष्यके कारण आधे मार्गमें डोरी एकदम तड़ाकसी टूट पडी जिससे धवल शिरके बल | जमीनपर आगिरा, इस वख्त उसकी खड्ग उसहीके पेटमें लगी, महा वेदना वेदकर अन्ते कृष्ण || | लेश्या (काले परिणाम ) से मरकर सातमी नरकमें गया, सच है! " अत्युग्रपुण्यपापाना-मिहैव फलमश्नुते" यानी अतिउग्र पुण्यात्माओं तथा पापात्माओंको सही भवमें फल मिल जाता है, पापका || घड़ा अन्तिममें फूटे विना नहीं रहता यह कहावत यहांपर चरितार्थ हुई जब सुबह हुवा तो हज़ारों है। लोग इकट्ठे हो गये, आस-पासके सब संजोगोको देखकर सर्व लोग कहने लगे कि यह कुंवरको | अवश्य मारनेके लिये आया था, सब लोग कुमारका यशः गाने लगे और धवलकी निन्दा क HLASILIS-ENGLIS // 56 // HIRIKthes P AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 4 रने लगे, तब श्रीपाल कुमार भी वहांपर आ पहुँचे और धवलका सादर अग्निसंस्कार कराया, है सब मृतक कार्य पूरा कराकर अपने स्थानपर गये, बाद जहाजोंमेंसे धवलके नेक सलाह कारक है उन तीनो मित्रोंको बुलाकर धवलके ठिकाने स्थापित किये और सेठका सब काम उन्हे सोंपाअब श्रीपाल कुमार अपनी तीनो ललनाओंके साथ विषय-सुख भोगते हुवे आनन्दपूर्वक रहने लगे. (r) हिन्दी भाषाके श्रीपाल चरित्रका तीसरा प्रस्ताव सम्पूर्ण हुवा. * ASTROSSESSAGARCISESS-CLOS 3G-ALALAROSHISHIGA KOGO Jun Gun Aaradhak IAC.GunratnasuriM.S.
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________________ सापालन चरित्र. प्रस्ताव चोथा. // 57 // चौथा-प्रस्ताव.. वीणानादमें जीत. (चौथा विवाह ) किसी एक दिन श्रीपाल कुमार अपने परिवार सहित क्रिड़ा करनेके लिये नगरके उद्याई नमें गये, वहांपर एक संघको उतरता हुवा देखा, इधर घोड़ेपर सवार हुवे कुमारको देखकर || सार्थ-पति इनके नजीक नेटना लेकर आया, इस वख्त कुंवरने पूछा-अहो महाभाग! तुम में कहांसे आये हो-कहां जाना है-क्या कोइ कहींपर आश्चर्य देखा है ? सार्थवाहने कहा-हे महा-ई| Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ बरAARRERA राज! कान्ति नगरसे में आया हूँ और कम्बू छीप जाना है, रास्ते मैने एक अजायब देखा है, | || वह सुनियेगाः-हे पुण्य-पुंज! यहांसे सातसो जोजन दूर कुंडलपुर नामका एक नगर है, वहां 8 पर मकरकेतु नामका राजा है और कर्पूरतिलका नामकी रानी है, उसकी कुक्षिसे उत्पन्न हुवे || | सुन्दर और पुरन्दर दो पुत्र हैं, उनपर गुणसुन्दरी नामकी एक कन्या है, उसने ऐसी प्रति ज्ञा की है कि जो मुझे वीणा-नादमें जीतेगा वही मेरा पति हो सकेगा, दूसरा नहीं-उस प्रतिज्ञाको सुनकर अनेक राज-पुत्र वहां पर आकर वीणाका अभ्यास करने लगे हैं, प्रतिमास | उनकी परीक्षा ली जाती है, मगर आजतक किसीने भी उस राज-कुंवरीको वीणाद्वारा न है जिती, परीक्षाके दिन एक वख्त उस देवकन्या सदृश कुमारिकाको मैने देखी थी, भाग्यवश | | आपके साथ समागम हो जाय तो अत्युत्तम है-तब श्रीपालजी उस पुरुषको वस्त्रादि देकर शायं| कालमें अपने स्थानपर आये और विचारने लगे कि यह आश्चर्य किस तरह देखा जाय? फिर | सोचने लगे कि संकल्प-विकल्प करनेकी क्या जरूरत है ! नवपद महाराजके ध्यानसे सब कुछ RIAC.Gunratnasun M.S. . Jun Gun Aaradhal
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________________ श्रीपाल चरित्र, | हो सकता है, ऐसा सोचकर उनके ध्यानमें लयलीन हो रहे, तब श्रीसिद्धचक्र महाराजका सेवक सौधर्म देवलोकमें रहने वाला विमलेश्वर देव हाथमें हार लेकर एकदम प्रकट हुवा 18 और कुमारको कहने लगाः // 58 // ... (श्लोक) -CA4%AECAववव | इच्छाकृतियॊमगतिः कलासु / मौढिर्जयः सर्वविषापहारः // कण्ठस्थिते यत्र भवत्यवश्यं / कुमार हारं तममुं गृहाण // 1 // भावार्थ:--हे कुमार! लेआ तुम इस हारको ग्रहण करो? यह हार जिसके कण्ठमें रहा | हुवा होगा उसको इच्छित आकृति, आकाश गमन, कला कुशलता, विजयता, सर्व विषयोंका | हरण आदि अवश्य सिद्ध होंगे. इस प्रकार हारके गुण कहकर विमलेश देवने कुमारके कण्ठमें हार पहनाया, बाद अपने है। निज स्थानपर वापिस चला गया, कुंवर हारको प्राप्त कर निश्चिन्त हो शान्तिसे सो गया-सुबह G Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ है ऊठतेही कुंडलपुर जानेका इरादा हुवा, तब हारके प्रत्नावसे आकाश मार्ग-द्वारा वामन ( बाव निया) रूप करके नगरमें प्रवेश किया और अभ्यासशालामें पहुँचा, जहां अनेक राज-कुंवर वीणा अभ्यास कर रहे हैं, जाकर पाठकसे मुलाकात की और उसे निवेदन किया-अहो अध्या पक! मुझे पढाओ, यह सुन सब राजपुत्र खड़ 2 शब्दसे इसने लगे और यह पूछने लगे-अहो / 18 वामन ! वीणाभ्याससे तुम्हें क्या मतलब है? जबाव मिला कि तुम लोगोंको भला क्या जरू | रत है? उन्होने कहा राजकन्याके साथ शादी करना है, उसने कहा बस मुझे भी विवाह करना | है है! तब सब लोग उदरको पकड़ 1 कर खूब हसने लगे और परस्पर कहने लगे-अहा! इसको भी 8 | लग्नकी आशा है; यह सुन वामनराज बोले-अरे! तुमारे नज़रो नज़र मैं परणुं गा और तुम सब |ज्यों के त्यों रहजाओगे-तबही मेरा नाम वामन समझना, इस वख्त वामनने खड्ग-रत्न पाठकको भेट किया, बस तुरन्त ही अध्यापकने अपनी वीणा. उसे शीखनेको दे दी; सच है! "सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति" यानी तमाम गुण पैसेमें रहे हुवे हैं-वामनने हाथमें वीणा || SHREASEARSAHASREE R AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव चरित्र 159 // श्रीपाल- लेकर उसकी तांत तौड़ डाली, तुंबी फोड़ डाली, कीलिये फेंकदी और दण्डके टुकड़े 2 कर डाले, इस प्रकार क्रीड़ा करके राज कुमारों को हास्य उत्पन्न कराता है, वे कुमार भी पेट फुला 2 कर हसते हैं; इस प्रकार रमत-गमतमें सुखपूर्वक दिन बीतते थे, दान बलसे वामनने पाठकको है। | वशीभूत कर लिया था. - एक दिन राज कन्याने समस्त छात्रोंको परीक्षाके लिये बुलाये, उस वख्त वामन भी मंड-8 पके अन्दर जाने लगा, मगर कुरूपी और हलका समझ कर पहरेदारने उसे रोका, तुरन्त ही 5 उसने उसे रत्न-कुंडल देकर अन्दर प्रवेश किया " हाथ पोला तो जगत गोला” यह दाखला है। यहां पर चरितार्थ हुवा, इस समय राज कुंवरी श्रीपालजीको दिव्य मूल रूपमें देख रही है, तब कुमारिका हृदयमें विचारने लगी कि यदि मेरे सद्भाग्य हों तो यह मेरी प्रतिज्ञा पूरे गा, है // 59 सब लोक इसे वामन कहते हैं और मैं तो एक भास्वर सुन्दराकार नररत्न देख रही हूँ, अस्तु है। PEGASUGUST HOCAKHIRAIRPORARISHIRIGIRIAIS Ac, Gunmatrnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रजु कृपासे सब अच्छा होगा; तब पाठकने छात्रोंको कहा-अपनी 2 कला दिखलाओ! सब कुंव रोंने कला दिखलाई मगर कन्याने एक भी पसन्द न की, अखीर कुमारिकाने वीणा बजाई, P| सुनकर सब लोग हर्षित हुवे और कन्याकी कलाको वखाणी, इस समय वामन रोषातुर होकर बोला-अहो! कुंडलपुरके निवासी सब लोग मूर्ख हैं, व्यर्थ कन्याकी स्तुति करते हैं, तब राज पुत्रिने बावनियेको पूछा-अहो! तुमने राग रागणीका अभ्यास किया है क्या ? उत्तर मिला सब | कुछ किया है ! सुनकर कन्याने अपनी वीणा बावनेको बजाने दी, उसने वीणा लेतेही कहा॥ अहा! इसकी तांत अशुद्ध है, तुम्बड़ी गली हुई है, दण्ड भी युक्त नहीं है, ग्राम-मूर्च्छना-नाद | (ये गायनके लक्षण विभाग हैं ) करके यह वीणा अयोग्य है; यह हकीकत सुनकर राज-क| न्याने जाना कि मेरे भाग्यका वीणामें निपुण प्रधान-पुरुष आगया है, अब वीणाको ठीक-ठाक || करके वामनने बजाई, इस के मस्त-गायनको सुनकर तमाम लोग मूर्च्छित हो इधर उधर | भूमिपर लौटने लगे अखीर निद्रावश हो गये; इस वख्त कितनेककी अंगुठियें, कितनेक के PERISHISHIGURASNAIGUAG MESSAGAR cell Ac Gunratnasur M.S Jun Gun Aaradhali
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________________ प्रस्ताव चौथा... है कुण्डल, कड़े, उतरासन और कितनेक के अधो-वस्त्र उतार लिये; इसप्रकार वीणा नादमें सब जने महा मोहदशामें प्राप्त होगये, इस आश्चर्यको देखकर राजकन्याने त्रैलोक्यसाररूप कुमा-5 रको वरे, इस समय राजा विचारता है कि-हा! कन्याने वामनको वरा यह बड़ा बुरा हुवा, 3 तब कुमारने अपना निज दिव्य स्वरूप प्रकट किया, राजा वगेरा आनन्दित हुवे, महोत्सव ||| पूर्वक उनका परस्पर विवाह कर दिया, श्रीपाल कुमारको हाथी-घोड़े-सुवर्ण-रत्न वगेरासे परि-5 पूर्ण एक महल रहनेको दिया; वहां पर गुणसुन्दरीके साथ सुख भोगवते हुवे सानन्द रहने लगे. | ॐॐॐ Jun Gun Aaradha PAC.GunratnasuriM.S.
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________________ wala बनावटी कुत्सित रूप. (पांचवां-विवाह ) AUSTRIAISASUBIRIKIANA किसी एक दिन श्रीपाल कुमार नगरके उद्यानमें लीला करनेको गये, वहां पर एक बदाउको देखा, उसे कुमारने पूछा-अहो मुसाफिर ! तुम कहांसे आये हो? रास्तेमें कोइ आश्चर्य देखा है क्या? उसने जबाव दिया-हे नाथ! धनावह सेठने मुझे कुंडनपुर नगरसे प्रतिष्टानपुरके लिये नेजा है, भार्गमें मैंने एक आश्चर्य अवश्य देखा है, वह सुनियेगाः-कंचनपुर शहर में वनसेन नामका राजा है, उसकी कनकमाला नामकी रानी है, उसके चार पुत्र हैं-१ यशधवल 2 यशोधर 3 बजसिंह 4 गंधर्व; इनके उपर त्रिलोकसुन्दरी नामकी एक पुत्री है, उसके विवाहके SHIRISASIRIK******** TAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ श्रीपाल प्रस्ताव चौथा. हे वास्ते स्वयंवर-मण्डप रचा गया है; उस मण्डपकी शोभा इस प्रकारकी है:-रत्न जड़ित सुवर्ण * स्तम्भोंसे विराजमान, बड़ी 2 पताकाओंकी पंक्तियोंसे शोभायमान, चार मोटे दरवाजोंसे विभू-|| // 6 // |षित, चित्र-विचित्र पुतलियोंसे सुमनोहर, ऊचे 2 तोरणोंसे शृंगारित, अष्टमंगलोसे युक्त, ना- |PI P नाविध आसनोसे दूषित; इत्यादि सुन्दरतासे वह मंडप स्वर्गविमानके सदृश आदर्श बना हुवा है है-अनेक देशके राजा लोग वहां पर इकत्रित हुवे हैं, अन्न-जल-घास वगेरा मोटे प्रमाणमें 5 | संग्रह किया गया है; आषाढ कृष्णा बीजको वह कन्या वर वरेगी, वही बीज आते कल है; 8 और नगर यहांसे तीनसो जोजन दूर है; यह सुन श्रीपालजी उस मुसाफिरको वर्णानूषण देकर | | अपने स्थान पर आये. ... कुमार पिछली रातको हारके प्रभावसे कुबड़ेका रूप करके कंचनपुरके राज-मण्डपमें प्राप्त हुवे, जबकि स्वयम्बर-मण्डपमें प्रवेश होने लगे कि पहरेदारने उन्हें रोका, तुरन्तही हाथोंमेंसे सोनेके कड़े निकाल कर उसे दिये और सानन्द अन्दर चले गये, वहां पर एक स्तम्भ पर ESSAABLICACERI ASHAOS OGGA SHIRISHIGIJGHIHIRAXIS c.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ R-C- SARLAGAKARE लगी हुई पुत्तलीके नीचे जाकर खड़े रहे। यहां पर कुब्जके रूपका कुछ वर्णन कर देते हैं:-पीहै ठका भाग जिसका ऊंचा हो रहा है अर्थात् दुम निकल रही है, पेट जिसका पातालमें चल है & गया है, जिसकी नाक चपटी और ऊंटके मुआफिक होठ लम्बे हो रहे हैं, गधेके समान जिसके | फच्चर दान्त और बन्दरके समान बुरे केश हैं, पीलियेके रोगी समान जिसके पीले नेत्र होगये / || हैं, जिसके मुहसे कुत्तेकी तरह लाले टपक रही हैं और पिंजरसा शरीर बना हुवा है; इस प्रकार || ॐ घृणित देहधारी कुबड़ेको लोग पूछते हैं-अहो! तूं यहांपर क्यों आया है ? जबाब मिला तुम सब ||6| 5. क्यों आये हो? उन्होने कहा कन्याके साथ विवाह करनेको ! उसने कहा बस मुझे भी यही |8 | काम है; यह सुनकर सब लोग हड़ 2 हसने लगे और उच्चस्वरसे कहने लगे-अहा! राज क-1) |न्याके योग्य यही वर है! इस तरह दिल्लगियें हो रही हैं। इस वख्त वह राजकन्या उत्तम वस्त्रा | भूषण पहनकर दुग्ध समान उज्ज्वल कमलकी माला हाथमें धारण की हुई पालखीमें आरूढ हो। स्वयम्वर-मण्डपमें संप्राप्त हुई, उस वख्त वह तो कुबड़ेको निज दिव्य-रूपमें देख रही है, C.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ श्रीपालचरित्र. BAGASJIACHIGAS OIARTE अत्यन्त हर्षमें आकर विचार करने लगी-अहा! लोग तो इसे कुब्ज कहते हैं और मैं तो सुन्द- 8 | राकार नर-रत्न देख रही हूँ, बस आपुसमें दोनोको प्रीतियुक्त कटाक्ष-बाणोंसे स्नेह उत्पन्न हुवाअब अंगरक्षिका दासीने उस कन्याको वर वरनेके लिये राज-मण्डपमें दाखिल की-क्रमशः एक 2 है राजाका रूप-ऋद्धि-कला कौशल्यादि ख्याति वह दासी प्रकट करती जाती है, सुन 2 कर , वह कुमारिका आगे 2 कदम बढाती जाती है, अखीर सब राजाओंका त्याग कर जहां कुब्ज | खड़ा है वहां पर पहुँची, तब हारके प्रभावसे उपर रही हुई पुत्तलीका इस प्रकार बोली: (श्लोक) यदि धन्यासि विज्ञासि / जानासि च गुणान्तरम् // तदेनं कुब्जकाकारं / घृणु वत्से नरोत्तमम् // 1 // भावार्थ:-हे वत्से ! यदि तूं भाग शालिनी हो, विदुषी हो, नाना गुणोंकी ज्ञाता हो तो इस कुब्ज आकार वाले नरोत्तम वरको वर ले. . ... // 62 / / Jun Gun Aaradhak Gunratasun MS
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________________ यह सुनकर उस राज कुंवरीने उस बनावटी कुंबड़ेके गलेमें मोहन-वरमाला डाल दी, तब तमाम // 5/ राजा लोग कुब्जको कहने लगे-अरेरे-कुब्ज! इस मालाको छोड दे 2 वर्ना तेरे शीर पर काल आगया 15 समझ लेना, कन्या भी महा मूर्खा है कि हंस सदृश राज कुमारोंको छोड़कर काक सदृश तुझ कुबड़ेको 6 वरा, तब कुब्ज हस कर बोला-अहो भाईयों! क्रोध मत करो इस राज-कन्याने तुम सबको नाकके मेलकी तरह त्याग कर रत्न समान मुझे स्वीकारा है; सुनते ही कुबड़ेको मारनेके लिये और वर-5 | माला छीन लेलेनेके लिये तमाम राजाओं समकाल टूट पडे, परस्पर भारी संग्राम छिड पडा. कुब्जने अपना जुजाबल दिखलाया जिससे वे राजाओं दशों दिशाओंमें पलायमान हो गये, इस वख्त नवपद महाराजके पसायसे देवताओंने कुब्जाकार श्रीपाल कुमारपर कुसुम-वृष्टि की, यह | स्वरूप वज्रसेन राजाने अपनी नज़रों-नज़र देखा तब कुबड़ेके पास आकर कहने लगे-हे कला|5|| वान् ! जिस तरह तुमने नुजाबल दिखलाया उसही तरह अपना मूल रूप दिखलाकर हमें आ|| नन्दित करो! तब कुब्जने अपना दिव्य रूप प्रकट किया बस राजाने अत्यन्त हर्षित हो तुरन्त HO6-04वककवर DIAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव चौथा. ही महोत्सवपूर्वक विवाह किया, धन-धान्यादि परिपूर्ण एक विशाल मकान रहनेको दिया, कुमार अपनी कान्ताके साथ आनन्द लहर करते हुवे शान्तिसे रहने लगे. Sammanasamachat.memastry - सम्यसाओंकी पूर्ति... BOSSELARASTESKOSLASTIKAL (छटा-विवाह.) wiNSTRURTERSNEERRRRRRR किसी एक दिन राज-सभामें आकर एक बटाउ श्रीपालजीको मिला और इस प्रकार नि|वेदन करने लगाः-हे नाथ! दलपतन नामके एक विशाल शहरमें धरापाल नामका राजा राज्य || करता है, उसके चौरासी राणियोंमेंसे गुणमाला नामकी एक पट्टरानी है, उसके पांच पुत्र हैं:-॥ 63 / / हिरण्यगर्भ 2 रत्नगर्भ 3 जगञ्चन्द्र 4 शिवचन्द्र 5 कीर्तिचन्द्र, इनपर श्रृंगार सुन्दरी नामकी। RESSESSAESASASRASARAS MIAc. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ एक कन्या है, उसके पांच सहेलिये हैं-१ पंडिता 2 विचक्षणा 3 प्रगुणा 4 निपुणा 5 दक्षा; ये 8 तमाम समान वयवाली जिन धर्ममें निपुणा हैं, राज कन्याके पास पांचों सखियें धर्म-करणी करती हैं-एक वख्त राज कुमारिकाने पांचों सहेलियोंके साथ यह प्रतिज्ञा की कि अपन सब || एकही वर करेंगी, जो कि निष्कपटपनसे जिन धर्ममें आसक्त हो, सबने यह बात कबूलकी, है| फिर शृंगार सुन्दरीने कहा-अपने हृदय गत भावोंको समस्याओंसे जो कहदे वही अपना भ तर हो सकता है, अन्य नहीं; यह बात चारों ओर पवनके वेगकी तरह फैल गई, इससे अ-* 5/ नेक पंडितोने आ आकर अपनी बुद्धि टकराइ मगर कोई भी समस्याओंकी पूर्ति न कर सका, 8 अनेक राज-कुमार वहांपर आकर शास्त्राभ्यास करने लगे हैं, मगर अब तक कुछ नहीं हुवा, हे | 6 कुमार ! मैने जो आश्चर्य देखा वह आपके सामने कह सुनाया; यह बात सुनकर कुंवर अपने || मुकामपर आये और वहांपर जानेका निश्चय किया. OXIGENSCHIROPSHOT* AC.Gunratnasun.M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल परित्र R64 // प्रातःकालमें हारके प्रभावसे गगन-मार्गद्वारा शृंगार सुन्दरीके मकानपर जा पहुँचे, वहां M पर स्थित सिंहासनपर जाकर बैठ गये-पांचों सखियों सहित राज-कन्या श्रीपालजीका रूप देखकर इर्षित हुई और विचारने लगी कि यदि यह महा-पुरुष हमारी समस्या पूरदे तो हम धन्या हैं-कृत पुण्या हैं-इतनेमें कुमार बोले, अहो तुमारे समस्यापद सब प्रकाशित करो! तब || राज-कन्याकी प्रेरणासे सब सखियें क्रमशः इस प्रकार पूछने लगी:____पंडिता बोली-" वाँच्छाफलं चित्तगतं भवेच्च " यानी चित्तमें रहा हुवा वाँच्छित फल किससे प्राप्त होता है ? कुंवरने सुनकर विचारा कि राज कुंवरीने अपने मुखसे सम्यस्यापद नहीं कहा तो मुझे भी अन्यके मुखसे पूर्ति कराना चाहिये; तब पासमें रहे हुवे स्तम्भपर विराजित कठ-पुत्तलीके शिरपर हाथ रख्खा कि शीघ्रही वह उत्तर देने लगी:-: SUGARCACA-ARASHRECASA-AM CO-CA-%AECAबककवल Gunatnasun Jun Gun Aaradhak
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________________ (श्लोक ) ये सिद्धचक्रं परमं पवित्रं / ध्यायन्ति नित्यं निजमानसे हि / / तेषां नराणां च तथा हि स्त्रीणां / वांच्छाफलं चित्तगतं भवेच्च // 1 // * भावार्थः-जो लोग परम-पवित्र श्रीसिद्धचक्र महापदको हृदयमें हमेशा ध्याते हैं उन पुरुष / है और स्त्रीयोंको मनोगत वांच्छित-फल मिलता है. . विचक्षणा बोली- अन्यच्च लोकेऽत्र विलापतुल्यम् " इस लोकमें बाकी सब विलापात है 1के तुल्य है; अर्थात् सार क्या है ? पुत्तलीका बोली: (श्लोक) देवे जिनेशो शुरुषु यथार्थ-वक्ता हि धर्मेषु दया प्रधानः॥ . - मन्त्रेषु सारं परमेष्ठिमन्त्रं / अन्यच्च लोकेऽत्र विलापतुल्यम् // 2 // Jun Gun Aaradha T EAC.Gunratnasun M.S.
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________________ प्रस्ताव चौथा. 9854-9-964ERARAA5-% भावार्थः-देवके अन्दर जिनेश्वर देव, गुरुओंके अन्दर यथार्थ उपदेश करने वाले गुरु, || धोंमें प्रधान धर्म दया और मन्त्रोंमें परमेष्ठि मन्त्र सार है बाकी सब जगतमें विलाप तुल्य है. हैं| ___ प्रगुणा बोली- " आत्मा हि येन सफलीभवेञ्च" निश्चय जिससे आत्मा सफल होता है | | वह क्या है ? पुत्तलीकाने उत्तर दियाः (श्लोक ) आराधय त्वं सुगुरुं सुदेवं / पात्रेषु दानं कुरु सत्सु सनम् / / तीर्थेषु यात्रां च विधेहि नित्यं / आत्मा हि येन सफलीभवेच // 3 // __ भावार्थः-तुम सुदेव और सुगुरुकी आसधना करो, सुपात्रमें दान दो, सत्पुरुषोंका संग // 65 // करो, तीर्थोंकी हमेशां यात्रा करो जिससे आत्मा निश्चय सफल होता है. VIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ निपुणा बोली:-" यावद्विधात्रा लिखितं ललाटे " जितना विधाताने ( भाग्यने ) लला. IPटमें लिख दिया है, उतना हि होता है-पुत्तलिकाने जबाव दिया: (श्लोक) हे चित्त खेदं परिमुंच नित्यं / चिन्तासमूहे न कुरुष्व जीवम् / / फलं भवेदत्र परत्र तावद् / यावद्विधात्रा लिखित ललाटे // 4 // भावार्थ:-हे चित्त तूं खेदको हमेशा त्यागकर; चिन्तासमूहमें अपना जीवन मत कर - यानी मत गाल, जितना विधाताने ललाटमें लिख दिया है-उतना ही इस भव और पर भवमें | फल मिलेंगा. दक्षा बोली-" तस्यैव दासाश्च त्रिलोकलोकाः " त्रिलोक जन उसहीके दास होते हैं | एसा कौन है ? पुत्तलिकाने प्रत्युत्तर दिया:-: RIA.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki
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________________ (श्लोक ) . प्रस्ताव यत्संचितं पूर्वजजन्मनीह / तेनैव पुण्येन भवन्ति कामाः // . . चौथा. भोगाश्च राज्यानि शिवेन्द्ररौघाः। तस्यैव दासाश्च त्रिलोकलोकाः॥५॥ ___भावार्थ:--पूर्व भवमें जो संचय किया है उसही पुण्यसे इस भवमें भाग-समृद्धि-राज्यलक्ष्मी और मोक्षपद वगेरा इच्छाएं प्राप्त होती हैं-उसही महापुरुषके तीन लोकके जन दास होते हैं. ___ ये पांचों समस्याओंकी पूर्ति सुनकर श्रृंगारसुन्दरी अपनी सखियों सहित आश्चर्य सगरामें गोता लगाने लगी और मनोगत जावोंकी पूर्ति जानकर उन कुमारको वरे यानि पतिराज पने 8 स्वीकारे-पुत्तलिये द्वारा कुमारने समस्याओं पूरी यह सुन कर राजा हर्षित हुवा और विवाह | सामग्री तैयार करा कर पांचों सहेलियों सहित शृंगार सुन्दरीका विवाह महोत्सव पूर्वक श्री. पाल कुमारके साथ किया; कर मोचनके समय बहुतसा माल-असबाब, सेनादि देकर एक मोटाई मकान रहेनेको दिया, अब कुमार वहांपर सानन्द निवास करते हैं...... . SCAGLIARIAS GRAIKAS AAGRA HEAc. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhat
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________________ 38- 39R राधावेधका साधन. (सातवां-विवाह) SAGRIC KASONGSVEReg एक दिन किसी भट्टने मारकी महिमा देखकर उच्च स्वरसे उन्हें कहने लगा-अहो-| | अहो महा भाग! मेरे आश्चर्य कारक वचन सुनोः-कोल्लागपुर नगरमें पुरन्दर नामका राजा है, | IF उसकी विजयाख्या राणी है, उसके हरिविक्रम-नरविक्रम-हरिसेनादि सात पुत्र हैं, उन्हके 2 ऊपर जय सुन्दरी नामकी. एक पुत्री है, वह कन्या पाठकसे नाना विध कलाएं शीखी है, जब |कि युवा अवस्थामें प्राप्त हुई तो राजा उसकी वर-चिन्ता करने लगा, तब कन्याका अभिप्राय | जान कर पाठकने राजासे निवेदन किया कि हे महाराज ? आपकी इस पुत्रीका ऐसा अभिप्राय Ac.Gunratnasu12 AAAAAAEESH SAMASALAMARCASSS . Jun Gun Aaradhaki
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________________ श्रीपालचरित्र So // 67 // 3- है कि जो राधावेध सिद्ध करेगा वही मेरा भार हो सकेगा, अन्य नहीं; यह सुन कर राजाने में प्रस्ताव में शीघ्र ही राधावेध की सामग्री तैयार की; उसका वर्णन इस प्रकार है:-मण्डपमें एक महा है। || स्तम्भ खड़ा किया गया है, उसके आस-पास आठ चक्र लगाये गये हैं वे यन्त्रके योगसे सब ||2|| || फिरते हैं उसके ऊपर राधा नामकी एक काष्ट-पुत्तली लगाई गई है वह बड़े वेगसे फिरती है, || उसके नीचे एक तेलका कड़ाह रख्वा गया है उसमें उस पुत्तलिका प्रति बिम्ब पड़ता है, उस 3 प्रतिज्ञाकी तर्फ दृष्टि रखकर ऊंचे हाथसे इस प्रकार बाण तान कर मारे कि वह उस पूर्ण 8 वेगसे फिरती हुई राधा-पुत्तलीके डावी आंखकी कनीनिका ( कीकी ) को विंध डाले; बस 8 | इसहीका नाम राधा वेध है, वह काम अबतक किसीने न किया, वहांपर बहुतेरे राजा इकठे हो रहे हैं। इस प्रकार भट्टके मुखसे बात सुन कर उसे कुण्डल दे विदा किया और कुमार घर पर वापिस आगया-प्रातःकाल होतेही आकाश मार्गसे कुंवर कोल्लागपुर में जहां राधा-वेधका स्थान है वहांपर आन पहुँचे, उधर बहुतसे लोग मिले हुवे हैं, हारके प्रभावसे राधा-वेध सिद्ध किया %-3-4-5-1 // 6 // Jun Gun Aaradhak AC.Gunratnasun M.S. -9
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________________ तब जयसुन्दरीने श्रीपाल कुमारके कंठमें वर-माला पहनाई, राजाने मोटी धाम-धूमसे उनका || विवाह किया, धन धान्यादि-परिपूर्ण एक महल रहनेको दिया, वहांपर श्रीपालजी लीला-लहर | करते हुवे सानन्द रहने लगे. 4:34OOSECSCALESED प्रतिष्ठानपुरके राज्याधिकारकी माप्ति.. एक वख्त मातुल नृप ( मामा-राजा ) के पुरुष श्रीपालजीको बुलानेके लिये आये तब है। जहां 2 अपनी स्त्रियें छोड़ आये थे वहां 2 से उन्हें बुलानेको कुमारने अपने विश्वास पात्र / सुभट भेजे, वे सब ललनाएं अपने 2 भाईयोंको साथ लेलेकर श्रीपालजी के चरणोंमें हाजिर Jun Gun Aaradhak RIAC.Gunratnasun M.S.
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________________ श्रीपाल- // 18 // BEEGAANAGAR हुई, आज़ तक जितने हाथी-घोड़े-रथ-पेदल-धन-धान्यादि प्राप्त हुवे हैं उन सबका संग्रह कर प्रस्ताव मोटो सेनाके साथ श्रीपालजी रवाना हुवे, क्रमशः प्रतिष्ठानपुर नगरमें पहुँचे, वहांके वसुपाल राजाने / | अनेक राजाओंको सामीलकर अपने भानजे श्रीपाल कुंवरको राज्य गद्दीपर स्थापन किये-मुकुट | कुण्डल हारसे कुंवरको विजूषित किये, छत्र चामरादि राजचिन्होंसे विराजित किये, श्रीपाल नरेश इस वख्त राज्य-सिंहासन पर विराज रहे हैं, अनेक राजाओंके नेटने स्वीकारे, कुंवर है। श्रीपाल आजसे नरेन्द्र पदसे भूषित हुवे. G Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ कर उज्जयनी नगरीकी तर्फ प्रस्थान. AAAAAAE+ (आठवां-विवाह.) PARTNERISERIES अब श्रीपालजी तीर्थ स्वरूप अपनी जननीके दर्शनके लिये तथा अपनी उपकारिणी / प्राणप्रिया मदन सुन्दरीको मिलनेके लिये उत्सुक हुवे, बस शीघ्रही सकल सेनादि लेकर प्रतिष्ठान पुरसे उज्जयनीके लिये प्रस्थान किया, बीचमें सोपार पत्तन आया वहां पर सैन्य सहित पड़ाव डाला, श्रीपाल राजाने पूछा-अहो लोगों! यहांका नृपति सेवाके लिये क्यों न आया? | 2 इतनेमें तो इस नगरका मन्त्री आन पहुँचा और नमस्कार करके अपने भूपतिके नहीं आनेका है कारण बयान करने लगा-हे महाराज! यहांका प्रजापति महासेन है, उनकी तारा नामकी Jun Gun Aaradhak Ac Gunnatasun M.S.
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________________ CING चौथा // 9 // RA%AAAAAAAEGASIS 5 पट्टरानी है उसके एक तिलकसुंदरी नामकी पुत्री है, उसको सहसा एक दुष्ट सर्पने डसा है जिससे वह प्रस्ताव | मृत्युगत होगई है, उसकी दहन क्रियाके लिये राजा वगेरा सब श्मसान नूमिमें गये हैं और मैं आपकी |5|| || सेवाके लिये यहांपर आया हूँ; यह सुन परम दयालु-परभोपकारी श्रीपाल नरेश शीघ्र अश्व-रत्नपर ||3|| + सवार होकर श्मसानमें पहुँचे, वहापर राजादि तमाम लोग मिले, तब श्रीपालजीने कहा-अहो! कन्याको तुरन्त दिखाओ! राजाने उत्तर दिया-महाराज ! मृतक-कन्याको क्या देखना है, जबाव | मिला, भाई! सर्पके ज़हरसे इतनी मूर्छा व्याप जाती है कि प्राणी मृतक सदृश मालुम होता है, | परन्तु प्रायः मरता नहीं है, तब राजा वगेराने शीघ्र उस कन्याके बंधन छोड़े और महाराजको दिखलाई, करुणासागर श्रीपालजीने वह सुर-माल इसके कण्ठस्थलमें निवेश की और नवपद महामन्त्रसे मन्त्रित निर्मल जल उस पर छींटा कि तत्काल ही वह सजित होकर उठ खड़ी || हुई, और अपने पिताजीको पूछने लगी-हे तात! ये सब लोग यहांपर क्यों इकट्ठे हुवे हैं? // 69 // राजाने सर्व हकीकत कही और अन्तमें कहा कि इन परम कृपालु महाराजके पसायसे तेरा LAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ HOCOLARSARASHTRA पुनर्जीवन हुवा है, सब लोग प्रसन्न होते हुवे वापिस नगरको आगये, इस वख्त राजांने महा राजाको प्रार्थना की-हे नाथ! यह बाला मैने आपको अर्पण की: इस प्रकार मोटे महोत्सवसेन है श्रीपालजीके साथ अपनी कन्याका विवाह किया, महासेनने श्रीपाल नरेन्द्रको बहुतेरा धन|| जन दिया और सेना लेकर महाराजके साथ चला; यहां पर आठ रानियें और पांच सखियोंके | साथ लीला-लहर करते हुवे महाराज श्रीपालने आगे प्रयाण किया. . . RECEKANKARRERAR GETRESCRECR . ... 8 नज्ज्य नी नगरीमें जयङ्कर जय. .. .... (माता और ललनासे मुलाकात) . .: . मुसरेका अपमान और सन्मान. ...HARRCRACIRECTOR अब हाथी, घोड़े रथ, पेदल, मणि, रत्न, कंचनादि प्रशस्त वस्तुओंका नेटना ग्रहण करते " RIAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhaki
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________________ श्रीपाल प्रस्वार RET. चाया. -67-ACTERS- // 7 // है हुवे बहुतर सैन्य-संग्रह करते हुवे क्रमशः खंधार, हल्लार, मरहट्ट, सोरठ, लाट, धाट, मेदपा | टादि देशोंमें संचरते हुवे मालव देशमें प्राप्त हुवे, उज्जयनी नगरीके चोतर्फ अपनी अगण्य है द सेना सहित श्रीपालजीने पड़ाव डाला-इस वख्त मालवेश्वर राजा प्रजापालने दूतके मुखसे / सुना कि परछिपके राजाने आकर अपनी सेनासे नगरी वीट ली है, बस तुरन्तही किल्लेको सज-धजकर तैयार किया, वहां पर तृण, धान्य, काष्ट, जल, वस्त्र, धनादि संग्रह किया, यंत्र | तोप (मसीन-गन) आदि शस्त्रों सज्जित किये, वीर सुभटोंको तैयार किये-श्रेष्ठी, सार्थपति और तमाम प्रजाके लोग आकुल-व्याकुल होकर भयङ्कर भयमें आगिरे हैं; श्रीपालजीकी सेनाने सारी | नगरी इस तरह वींटली जिस तरह सागरने लङ्काको वीट लीधीथी-अब श्रीपाल नरेश रात्रीकी पहली प्रहरमें अपनी मातेश्वरीको मिलनेके लिये गगनमार्गद्वारा मकानके खास दरवज्जे पर जा| पहुँचे, इस वख्त दरवाजा बंद है; अन्दर रहे हुवे सासु बहु इस प्रकार गोष्टी कर रहे हैं: 19 1516 CIAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak T
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________________ ... कमलप्रभा माताने मदनाको कहा-हे वत्से ! अन्य किसी राजाने सारी नगरीको घेर || है रख्वी है, लोग सब चलाचल हो रहे हैं, प्रनु जाने क्या 2 बनाव बनेगा.? अरे! मेरा पुत्र तो पर. 6|| देश गया है, आज़ बारह महिने होगये उसका कोई संदेश भी नहीं है, अपने दोनो की क्या दशा होगी? तब मदना बोली-हे मात! नवपद महाराजके प्रतापसे अपनेको कोइ तरह भय || नहीं है, चित्तमें कुछ भी खेद मत करो; फिर बोली-आज़ शायंकालको घर-देरासरमें जिन|| प्रजुकी मैं आरती कर रही थी उस वख्त मुझे अपूर्व दर्शन हुवे, इससे इतना हर्ष हुवा कि || P मेरी समस्त रोम-राजि विकखर हो रही है, इस वख्त मेरा डावा नेत्र व अंग फरक रहा है, || इससे मालुम होता है कि आज ही और इस ही वख्त आपके पुत्र मिलना चाहिये; यह सुनकर 5 कमलप्रभाने कहा-हे वत्से! तेरी जबानमें अमृत वसो-बस इस तरह श्रीपालजी माताके || चिन्तातुर वचन तथा प्रियाके दृढतर वचन सुन कर एकदम बोले-हे मात ! दरवाजा खोलो! | दरवाजा खोलो!! यह हर्षप्रवर्षक वचन सुनकर माताने कहा-हे वधु! यह मेरे पुत्रका वचन Jun Gun Aaradhak Ac. Sunratnasuri M.S.
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________________ IP श्रीपाल-8 मालुम होता है, तब मदना बोली जिन-दर्शन को दिन निष्फल नहीं जाता, यह बात यथार्थ है, चरित्र, | अब मयणा सुन्दरीने शीघ्र किंवाड़ खोले, श्रीपालजीने अपनी माताको नमन किया और प्रियासे // 71 // ती मुलाकात की बाद जननीको अपने खंधे पर बैठाकर और मदनाको हाथ में लेकर अपने उतारे पर आन पहुँचे, इस वख्त मातेश्वरी कमलप्रभाको भद्रासनपर विराजमान की और नाना प्रकार के आनूषण, वस्त्र, रत्न, मणि, माणेक, मोती आदि अगण्य द्रव्य सामने रखकर कुंवर | बोले-हे जननि ! ये तमाम विनूति और सकल सेना आपके पसायसे प्राप्त हुई है, इस स्थिति को देख पांच सखियों सहित आठ रानियोंने सासुके चरणोंमें अभिवंदन किया, बाद मदन|| सुंदरीको नमन किया, इस लीला-लहरको देखकर माताको दर्षकी सीमा न रही, विद्याधरकी 5 6 पुत्रीने उज्जयनीसे रवाना हुवे तबसे लेकर वापिस आये तहांतककी श्रीपालजीकी समस्त जी-15 वनी कह सुनाई-माताजीने सब रानियोंको एक 2 नाटक और नाना प्रकारके आभूषण अपने हाथसे दिये, बस अब सब लोग शान्तिके शरण हुवे; पश्चात् श्रीपाल नरेशने अपनी प्राणपत्नि CIENCE SCAR-A-SA-%ECASE // 71 // ADGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ UCAUGAAAAAG मदनसुन्दरीको पूछा-दे प्रिये! अब तेरे पिताके साथ अपनेको क्या करना चाहिये ? तब मयणा - बोली-हे नाथ! खंधेपर कुठार (कुहाड़ा) और मुंहमें घास लिवाकर मेरे पिताको बुलावो मदनसुन्दरीका यह कहना मानो अपने पिताको दृढ़ श्रद्धालु बनाना ही आशय था; अख़ीर र श्रीपाल नरेन्द्र वगेरा सब आन्दसे सो गये. है प्रातःकालमें महाराज श्रीपालने निश्चित कीहुइ हकीकत दूतके साथ राजाको कहल वाई, प्रजापालको दूतने आबेहूब वचन कह सुनाये और यह सूचनाकी कि यदि तुम्हें मंजूर है। न हो तो युद्धके लिये तैयार होजावो-राजाने विचारा की मैं इनके बराबर किसी तरह न पहुँच से / सकुंगा तो व्यर्थ प्रजाका नाश करना उचित नहीं, बस दूतका कहना तुरन्त स्वीकार लिया और प्रजापाल भूपाल खंधे पर कुठार धारणकर मुखमें तृण लेकर अर्थात् किशान-बेलसा रूप बनाकर महाराज श्रीपालजीके दरवज्जेपर आया, तब महाराजने देखते ही वह वेष दूर कर 1969-04ROCCAREER-PRORK AAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhaka
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________________ श्रीपालपरित्र. व-- 54 - चौथा. वाया और नवीन वस्त्र-अलंकार पहना कर बहु मानपूर्वक अपने पास बैठाया; इस वख्त / 8 मदना मर्मसे बोली-हे तात! मेरे कर्मसे प्राप्त हुवा वर देखा ? जिसने आपकी कुठार दूर 6 किया है, तब लज्जित होकर राजाने कर्मस्वरूपको अटूट श्रद्धासे माना, श्रीपालजीका समस्त || स्वरूप जानकर आनन्दित हुवा और वहां पर ठहरा; इस वख्त सारी उज्जयनी नगरी में परम शान्ति होगई.. -0% A * अरिदमन कुमार और सुरसुन्दरीकी शुद्धि.. 5 // 72 // अब सौभाग्यसुन्दरी और रूपसुन्दरी सपरिवार वहां पर आई हुई हैं तथा प्रजाकेभी / | अनेक लोग उस स्थान पर प्राप्त हुवे हैं, इस तरह श्रीपालजीके पड़ावमें एक मोटा जमाव जमा ||| AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 45 154041454-55136 | होगया, इस वख्त महाराजने नृत्तिकाओंको नाच करनेके लिये बुलाई, तमाम सज-धजकर तैयार हुई मगर एक मूल नृत्तिका आग्रह करने पर भी आना कानी करने लगी, अखोर महा मुश्कीलसे रंग मंडपमें लेआईगई, इस समय मूल नटवी अपने परिवारको देखकर घबराई | और अपना हृदय गत दुःख एक दोहेमें इस प्रकार व्यक्त कियाः . (दोहा) . ... किहां मालव किहां शंखपुर / किहां बब्बर किहां नदृ / / सुरसुन्दरी नचाविये / पडो दैवशिर दट्ट // 1 // इस दोहरे को सुनते ही सौभाग्य सुन्दरीने उठकर अपनी पुत्रीको हृदयसे लगाई और | दोनो रुदन करने लगी, माताने पूछा-हे पुत्रि! क्या हुवा सब हाल कह सुनाओ! इस बनावको देख कर सब लोग आश्चर्यमें लीन होगये, तब सुर सुन्दरी अपना बयान करने लगी-हे मात -तात! यहां से रवाना होकर महदाडम्बरसे शंखपुरीके समीप उद्यान में पहुँचे, शुभ मुहत्तमें, .5* ॐॐॐॐ ॐ Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ नापाक प्रस्ताव बोचा. // 73 // SISUSTOSHIGA95H54% * नगर प्रवेश करेंगे, ऐसा सोचकर वहीं पर ठहरे, अपने परिवारको मिलनेके लिये थोड़े 2 लोग है में खिसकने लगे, क्रमशः एकदम अल्प समुदाय हमारे पास रह गया, किसी एक सेनाको यह है। बात मालुम होनेसे रात्रीमें वह हम पर चड़ आई, उस वख्त सेनाको देखकर मेरे पति मुझे || | छोड़कर भग गये, तब उन फोजके लोगोंने लक्ष्मी सहित मुझे पकड़ली और नेपाल देशमें किसी 5/ एक सार्थ पतिको बेंच दी, उसने बब्बर कुलमें वैश्याको बेंचदी, वहांपर गणिकाने मुझे वेश्या-||| कला शिखलाई तब मैं नाच-गानमें होशियार हुई, वहांके राजा महाकालको नाच-गानका 8 | भारी शोख होनेसे मुझे निपुणा समझकर मेरी मांगणी की और एंसी नृत्तिओंके ऊपर अफसर 8 बनाई, तब नाना प्रकारके नाच करके दररोज मैं राजाको रंजित करती-तब मदनाके पति | श्रीपालजी वहां पर आये, राजाने अपनी कन्या परणाई, अनेक वस्तु देनेके साथ प्रीतिवश | नव नाटक भी इन्हें प्रदान किये, इनके आगे जी बाकायदा अन्य नृत्तिकाओं के साथ मैं नाच | करती रही; मगर आज़ सब कुटुम्बको देखकर मेरा हृदय दुःखसे उभरा गया इस लिये दोह 647-55** HIS // 73 // un Gun Arad JAC.Gunratnasuri M.S.
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________________ + GEETA BRECEN-LAASHUAGES / रेमें मैने अपने हाल ज्ञापित किये-दे पिताजी ! में अभागिनी हूँ, आपने तो मेरा विवाह भारी | विभूतिसे कियाथा, परन्तु मेरे नाग्यने मेरी यह दशा की, किसे दोष दिया जाय-नीतिकारोंका कथन है: (श्लोक) ____ भाग्यं फलति सर्वत्र / न च विद्या न पौरुषं // समुद्रमथनालेभे / हरिर्लक्ष्मी हरो विषम् // 1 // जावार्थः-सब जगह भाग्य फलता है, मगर विद्या और पुरुषार्थ फलता नहीं है; एकही है तरह समुद्रके मथन करनेसे श्रीकृष्णने लदमी और शंकरने जहर प्राप्त किया; गरज़ कि भाग्य. हीके सब खेल हैं. . मैरी नगिनी मयणा सुन्दरी धन्या-कृत पुण्या है इसको धर्म फला, इस प्रकार सुर सुन्दरी की हकीकत जानकर श्रीपाल नरेशने अपनी अगण्य सेनामेंसे अरिदमन कुमारकी शोध करा Jun Gun Aaradhak C AD. Gunratnasuri M.S.
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________________ चरित्र चाया. / भोपाल-15// कर सुर सुन्दरी उसे प्रदान की, इन दोनोकी धर्म पर अटूट श्रद्धा होनेसे इस वख्त सम्यक्त्व 18// उपार्जन किया, इस शुभ प्रसंगसे श्रीसिद्धचक्र महाराजकी महति महिमा चारों ओर प्रसिद्ध हुई-अब महाराज श्रीपालने अपने निज़ मन्त्री मतिसागरको बुलाकर पूर्ववत् 'आमात्य-पदवी' वक्षी और अपनी दुःखावस्थाके साथी सातसो जनेको 'राणा-पदवी' ( मनुष्यके अमुक जथ्थेके नायक ) देकर अपने पासमें रख्वे, बाद सुसरेको, सालाओंको इसही तरह अन्य राजओंको तथा सुनटोंको बहुमान दिया; वे जी सर्वलोग महा प्रतापी श्रीपाल भूपाल के चरण-कमलोंकी / सेवा करने लगे. 174 // PEHACKERAKASI // 74 T .AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhall
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________________ अजितसेनसे महायुद्ध. (विजयमालाकी आप्ति.) एक दिन मतिसागर आमात्यने श्रीपाल नरेन्द्रको विज्ञप्ति की कि हे नाथ! दुष्ट अजितसेन बाल्यावस्थामें ही आपको राज्यसे उठाकर स्वयं राज्याधिपति बन गया, अतः अब उसे हटाकर आप अपना राज्य ग्रहण करो तब ही आपकी विपुल ऋद्धि तथा सेना संग्रह सार्थक हो, इतना ही नहीं मगर तब ही आपका जीवन सफल समझा जा सकता है, जहां तक || आपने घोरशत्रु अजितसेनको न साधा तहां तक मानो कुछ भी नहीं साधा-यह अहेवाल सुन कर श्रीपाल भूपाल बोले-मन्त्रीराज़! तुमारा कहना यथार्थ है, अपनेको राज-नीतिके अनुसार Jun Gun Aaradhak AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ प्रस्ताव चौथा. || साम-दाम-नेद-दंड (शान्ति-लालच-फूटफाट-युज) इन नीतियोंकी आचरणा करनी चाहीये, ||3|| इस लिये सबसे पहिले वहांपर दूत नेजना उचित है-आमात्यजीने सादर स्वीकारा, तब समझा॥ 75 // || बुझाकर एक चतुर्मुख ( चारों तर्फ बोलने में कुशल ) दूतको चंपा नगरी नेजा, उसने जाकर || अजितसेनको इस प्रकार कहा-हे राजन् ! श्रीपाल महाराजा पहिले तो बालक थे, राज्य भार | धारण करनेमें समर्थ नहीं थे अतः आपने राज्य लेलिया तो कुछ हर्ज नहीं, अब आप उनका | राज्य वापिस लौटा दें, जिससे आपको सब तरह शान्ति रहेगी अन्यथा आपका कुल नाश हो / जायगा, आपके और श्रीपालनरेश्वरके बीच कोश् अन्तर नहीं है, इस वख्त उनके पास अगण्य क सेना है उसके बल पर वे अपना राज्य अवश्य लेंगे, श्रीपालजी तीनखंडके भोक्ता महाराजा | हैं, तमाम राजा उनकी सेवा करते हैं इस ही तरह आप नी सेवाके लिये चलियेगा-दूतके || नरम-गरम शब्द सुनकर क्रोधसे धम-धमान्त अजितसेन इस प्रकार बोला-हे दूत! तुं अवध्य I है (मारने योग्य नहीं है ) इस लिये में तेरेको जीता छोड़ता हूँ, अहो चतुर्मुखि! तेरा स्वामी PARSAATRAIGHALCAUSA - // 75 / / % AST HIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ || मेरा शत्रु है, बालपनेमें जी मैने उसे जीता छोड़ दिया है और इस पख्त उसने सोते सिंहको ||8 8 जगाया है, मेरे अजित बलसे तेरा स्वामी जस्मीभूत हो जायगा तोही मेरेको सञ्चा अजितसेन 8 समझना, इस प्रकारके तीक्षण शब्द सुन दूतने रोकड़ा परखाया-हे राजन् ! तूं तो आगिये | सरखा और वे सूर्य समान, तेरे और उनके तेज प्रतापमें जमीन आसमानकासा फेर है, प्रजा| का व्यर्थ संहार करनेसे क्या? मुझे मालुम होता है कि तेरा काल तेरे शिरपर छागया है-इन || कड़क शब्दोंको सुनकर अजिससेनने दूतको तिरस्कारकर निकाल दिया और कहा जा-तेरे स्वामीको तैयारकर शीघ्र भेज, अजितसेन भी सामने आकर युद्ध करेगा; ये अन्तिम शब्द सुन दूत वापिस आया और सब हकीकत महाराजको कही.. ... / अब श्रीपाल भूपाल मोटी सेनाके साथ अविछिन्न प्रयाणकर चंपानगरीकी सीमापर आन मा पहुँचे, अजितसेन भी अपनी प्रबल सेना लेकर सामने आया, सबसे प्रथम रण-क्षेत्र शोधा PAR AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ AAAAAAAAAG गया, परस्पर जय-स्तंज देखने लगे, सुभट लोगोंने शस्त्र-पूजा की, जाटलोग वीरोंकी विरुदा| वलि बोलने लगे, योद्धाओंने लाल-चन्दन अपने शरीरपर लगाया; अश्व हेंषारव करने लगे, गज गर्जित शब्दसे गर्जने लगे, रथ चीतकार शब्द गुंजाने लगे, उलट सुन्जट लोग मारे हर्षके | नाचने लगे, रण-नेरी चूंजाट शब्द करने लगी, इस तरह रण-क्षेत्रमें कल-कलाट शब्द होने || | लगा सुभट लोग अपनी जयके खातिर दीन-हीनको दान देने लगे, वीरोंने वीर-वलय जुजाओं | पर धारण की-इस वख्त को सुजटकी माता अपने पुत्रकों कहती है-अहो! मेरी कुक्षि मत || | लजाना, स्वामीके कार्यके लिये वैरीके टुकड़े 2 करके वापिस आना; किसीकी जननी बोलती है| | -मैं वीर-पुत्री और वीर-पत्नि हूँ, अहो सुत! तूं जी इसह) प्रकार वीर होना; किसीकी पत्नि अपने पतिको कथती है युद्धमें मुझे याद न करना वर्ना-मूर्छित होजाओगे; किसीकी ललना | वदती है: यदि तुम मेरे कटाक्ष बाणों के सामने नहीं ठहर सकते हो तो युद्धन करना चाहिये; इस प्रकार वीरोंकी माताओं और स्त्रियों शिक्षा दे दे कर अपने अपने मकानपर वापिस चली गई. WSPACHOSHIHIHIRIS RE Ac. Gunrainasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ - अब सब योका लोग जिराबखतर (कवच) पहन 2 कर रण-नूमिमें आ धसे, श्रीपालजीके || || और अजितसेनके उद्भट सुभट लोग अपने 2 स्वामीका नाम उच्चार करके आपुसमें भिड़ पड़े-|| -खड़वालोंसे खड्वाले, बाणवालोंसे बाणवाले, बरछीवालोंसे बरछीवाले, दण्डवालोंसे दण्डवाले, भालेवालोंसे भालेवाले और इसही तरह यथा-तथा शस्त्रवाले एक दूसरे पर इस प्रकार टूट पड़े || || कि मानो एकाकार हो गये; इस महायुद्धमें कितनेक सिपाहियोंके शिर कबीटके फलकी तरह है | पृथ्वीतलपर तड़ा तड़ गिरने लगे, कितनेक वीरोंके शिर समसेरके सपाटेसे ऊंचे उछल कर राहु18|| वत् सूर्यको शंकित करने लगे, कितनेककी धड़ झूझने लगी, कितनेक जीव लेलेकर भगने लगे, 5|| इस महायुद्धमें रजके गोटे इस प्रकार आकाशमें चढने लगे कि जिससे सूर्य ढक गया; हाथीहूँ घोड़े-रथ-पेदल दड़ा दड़ भूमिपट पर गिरने लगे; इस घोर संग्रामके होनेसे लोहुकी नदी वहने || // लगी, इस रुधिर नदिमें सुभटोंके शिर मच्छके समान जाते हुवे मालुम होते हैं, उनके केंश से| वालके सदृश ज्ञात होते हैं, चारों ओर मृतक जनोंके चरबीका कीच मच गया; धन धनाइट Jun Gun Aaradha XLAC.GunratnasuriM.S.
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________________ वाब चरित्र. इस प्रकार होने लगा कि कानपड़े शब्द सुनाइ नहीं देते, महाराज श्रीपालके वीरोंने अजितसेनके सिपाहियोंको इटाये, तब अजितसेन अपनी सेनाको वायुवेगसे रुश्की तरह उड़ती हुए हैं। ( विव्हल होती हुई ) देख स्वयं सेना लेकर आया और मल युद्धकरके श्रीपालजीकी सेनाके | छक्के छुड़ाये, इस वख्त अनेक राजा मरण शरण हुवे, तब सातसो राणाओंने अपनी फौजकी है। सोचनीय दशा देखकर प्रबल बल द्वारा गर्जना करते हुवे अजितसेन पर टूट पड़े, परस्पर महा युद्ध हुवा तब अजितसेनकी सेना चारों दिशाओंमें तितर-बितर हो गई, इस वख्त सिंहनाद | 5|| करके राणाओंने अजितसेनको घेर लिया और निवेदन करने लगे-अहो महाराज! अब भी कुछ ||5|| नहीं बिगडा है, हमारे साथ चलकर श्रीपाल महाराजाका शरण लो, तब कोपाक्रान्त होकर अजित-18|| | सेन महायुद्ध करने लगा, अखीर उन राणाओंने अपने अजित बलसें अजितसेनको हाथी परसे पटक बंधनोंसे जकड़कर श्रीपाल महाराजके आगे रख्खा, महाराज श्रीपालने इस अवस्थासे अपने हैं। | काकेको मुक्त कराया और निवेदन करने लगे-हे तात! आप अपने दिल में खेद मत करो! Jun Sun Aaradhak 99 Il DIAC.Gunratnasuri M.S..
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________________ * आपका निज़ राज्य खुशीसे भोगवो, अन्य चाहिये सो लेओ! तब अजितसेन विचारने लगे|| मैने दूतका वचन न माना यह अयोग्य किया. . अजितसेनको वैराग्य और दिदा. (श्रीपालजीको स्वराज्य प्राप्ति) अब महाराज अजितसेनका वीररस वैराग्य-रसमें प्रणित हो गया, अतः विचार करने लगे-कहां तो मैं वृक्ष पापिष्ट परद्रोह परायण और कहां यह बालक परोपकारी-धर्म परायण, || अरे! गौत्र द्रोहसे कीर्तिका नाश होता है, राज द्रोहसे नीतिका नाश होता है और बाल ||| द्रोहसे सुगतिका नाश होता है; हा! ये तीनोही अकृत्य मैने किये-हे प्रभो! मेरी क्या गति || R Ac. Guriratnasuri thi.s. - Jun Gun Aacadhal
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________________ CHICA बीपाक परित्र. 78 // CHOCHOSHUGHUISKUSIC * होगी! इस प्रकार गमगिनी करते हुवे नाना विध पश्चाताप करने लगे, अखीर इस निश्चय पर ||7| आये कि इस वख्त पापको विध्वंस करनेके लिये पारमेश्वरी दीक्षाही एक उत्तम उपाय है, & इस समय अनन्य भावोंसे पश्चाताप करके कितने ही पाप-पटलोंको धोडाले और स्वयं दीक्षा ग्रहण की, शासन देवीने यतिलिङ्ग ( साधु-वेष ) अर्पण किया, महाराज श्रीपालने संयम स्व| रूप देखकर सपरिवार नमन किया और इस प्रकार स्तुति करने लगे-हे महामुने! आपने || क्षमारूप खडसे क्रोधरूप सुजटको जिता, मृदुतारूप वज्रसे मानरूप पर्वतका चकचूर किया, | सरलता रूप अंकुशसे माया रूप विष-वेलको जड़मूलसे उखेड दी, और मुक्ति ( त्याग) रूप नौकासे लोन रूप गहन सागरको तिरगये; अतः आपको पुनः 2 नमस्कार हो, तप, संयम सत्य, शौच, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह धर्मके धारक हे प्रनो! आपको अनेकशः वंदन हो-अब | श्रीअजितसेन राजर्षि वहांसे अन्यत्र विहार कर गये-अजितसेन राजाके स्थानपर महाराजने उनके पुत्रको स्थापन किया. Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 549-6CALCCA ___अब महाराजा श्रीपाल नरेश शुभ मुहूर्तमें महामहोत्सवसे चंपानगरी में प्रवेश हुवे, इस * वख्त सधवा स्त्रिये मंगल गीत गाने लगी, नह लोग विरुदावली बोलने लगे, बंदीजन जय 2 है। || शब्द उच्चारने लगे, इस प्रकार अनेक राजा, प्रधान, सेठ, सेनापति और अखिल प्रजाके समक्ष || महा मान-सन्मानके साथ महाराज श्रीपाल अपने पिताके राज-सिंहासनपर विराजित हुवे, | इस समय सकल राजा और प्रजाजनोंने मिलकर राज्याभिषेक किया और नाना प्रकारके नेटनाओं नेटकर सुखपूर्वक उनकी सेवा करने लगे-महाराजने अमुक 2 को इस प्रकार पदाधिकारी कियेः-मयणासुन्दरीको महापट्टरानीके पद पर नियुक्त की, शेष आठको लघु पट्टरानियें बनाई, ||SHI Pमतिसागर और धवलके तीन सच्चे मित्रोंको महा आमात्यकी पदवी दी, धवलके पुत्र विमलको नगर सेठकी उपाधि दी; इस तरह किसीको आमात्य, किसीको सेनापति वगेरा यथा योग्य पद M पर कायम किये, अब महाराज श्रीपाल लीला लहर करते हुवे आनन्दपूर्वक रहते हैं-महारा15 जाने नव सुवर्णमय (सुनेरी कामवाले ) जिन-मन्दिर बनवाये उनमें रत्नमय नव जिन-प्रतिमा र GILAGunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradh
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________________ A4 A परिष श्रीपाल- * स्थापन की; इस तरह वह नरेश्वर परिवार सहित नवपद महाराजकी पूजा और ध्यान करते हैं सर्वत्र जिन जुवन, गुरु वंदन और नवपदजीकी महा महिमा की, अपने राज्यमें सब जगह // 79 // सप्तव्यसन निषेध करवाया, अमारी घोषणा कराई, दान-शील-तप-जावनादि धर्म कृत्य तलालीनपने करते हैं; इन महापुरुषके राज्यमें धन-धान्य-पुत्र-पौत्रादिकी अनिवर्धित वृद्धि होने लगी; महाराज श्रीपाल ईन्द्र तुल्य लीला करते हुवे सुखपूर्वक निवास करते हैं. SROSAGACASEA4 - अजितसेन राजर्षिको अवधिज्ञान. 1 . . (धर्म-देशना) अब राजर्षि अजितसेन महाराजको अवधिज्ञान उत्पन्न हुवा है, ऋषिराज इस भूमंडल पर X P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradh
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________________ C USS- 5-45%ECRUAR-H-MASSRO | विचरते 2 क्रमशः एक वख्त चंपानगरीके उद्यानमें पधारें हैं, वनपालने आकर श्रीपाल नूपेन्द्रको बधाई दी, राजाने उसे प्रीति दान दिया-नरेन्द्र अपनी माता-समस्त ललनाओं और कुटुंम्ब परिवार सहित महति ऋफि लेकर महात्माको वंदनके लिये उद्यान में आये, वहां पर पूज्यश्रीको तीन प्रदक्षिणा (ज्ञान-दर्शन-चारित्र शुद्धिकी क्रिया विशेष, अथवा भव भ्रमण नाशरूप विधान ) देकर मन-वचन और कायासे नमन किया, पश्चात् अपने 2 उचित स्थानपर सब लोग यथा योग्य शान्तिसे बैठ गये अवसरको जानकर महामुनिने भवतापहरणी-देशना | प्रारम्भ की: भो भो भव्यात्माओं! इस विकटाटवी रूप संसारमें चुल्लग-पासगादि ( उत्तराध्ययनमें आलेखितं दस दृष्टान्त ) दृष्टान्तों करके यह मनुष्य भव मिलना दुर्लभ है, कदाचित कोश पुण्य योगसे नर नव मिल जी गया तो आर्यक्षेत्र मिलना दुष्वार है इसही तरह क्रमशः उत्तम कुल परिपूर्ण पचेन्द्रीय, नीरोगता; दीर्घायु, सद्गुरु समागम, गुरु दर्शन, गुरु भक्ति, आगम I RiPAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh |
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________________ प्रस्ताव पर, 80 // श्रीपाल-|| श्रवण, तत्वरुचि, तत्वबोधादि प्राप्त होना उत्तरोत्तर दुर्लभ है, देखो! जगतमें ये दस तत्व प्रसि / छ हैं:-१ क्षान्ति-क्रोधका अभाव 2 मार्दव-मानका अभाव ३आर्जव-मायाका अनाव 4 मुक्ति* लोभका अनाव 5 तप-इच्छाका निरोध 6 दया-जीव रक्षा 7 सत्य-पाप रहित वचन 8 शौच है। -चित्तकी निर्मलता 9 ब्रह्म-अठार प्रकारका मैथुन यानी औदारिक और वैक्रिय शरीर सम्बधि है। | स्त्री संसर्गका तीन करण, तीन योगसे त्याग 10 आकिंचन-परिग्रह यानी मूर्छाका त्याग. [5] इस प्रकार कल्पवृक्षके समान यह धर्म सम्पूर्ण सुखको देनेवाला है-अहो महानुभावों! | जिनेन्द्र नगवानने दो प्रकारका धर्म फरमाया है, एक साधु धर्म दूसरा श्रावक धर्म; साधु धर्मके 5 मुख्यतः दस अङ्ग हैं जो ऊपर बता चूकें हैं और श्रावक धर्मके मुख्यतः बारह नेद हैं: सुदेव-सुगुरु और सुधर्मके ऊपर अटल श्रझारूप समकित व्रतके पश्चात् बारह व्रत लिये जाते हैं SEARNAKSHARA SAA H Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ पंच अणुव्रत-१ प्राणी वध 2 मृषावाद 3 अदत्तादान 4 मैथुन 5 परिग्रहइन पांचोका स्थूलरूपसे त्याग करना. तीन गुणवत-६ दिशा परिमाण 7 जोगोपजोगका मान 8 अनर्थ दण्डका त्याग. चार शीक्षाव्रत-९ सामायिक 10 देशावगासिक 11 षौषधोपवास 12 अतिथि संविनाग| ये बारह व्रत नाम मात्र यहाँपर दिखाये गये हैं, इनकी व्याख्या ग्रन्थान्तरसे जानना. सकल धर्मों में नवपद सार धर्म है-जिनेन्द्र देवोंने धर्मकी प्ररूपणा की है अतः अरिहन्त / // प्रजु तत्वभूत हैं-धर्मके फलभूत सिह नगवान तत्व हैं-धर्मके आचारको दिखलाने वाले आचार्य महाराज तत्व हैं-धर्मको शीखानेवाले उपाध्याय महाराज तत्व हैं-धर्मको समग्रतः साधन | करनेवाले साधु महाराज भी तत्व हैं-धर्मपर श्रद्धा करानेवाला दर्शनपद तत्व है-धर्मका बोध करानेवाला ज्ञान पद तत्व है-धर्मकी आराधना करानेवाला चारित्र पद तत्व है-कर्मकी निर्जरा T AcGunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ श्रीपाल- | 31 कराकर आत्मधर्मको उपलब्ध करानेवाला तप पद जी तत भूत है; इस प्रकार ये तमाम पद परिष. | सर्वोत्कृष्ट तत्व हैं और अपूर्व फलको देनेवाले हैं. अतः भव्यात्माओंको इन्हे जानना चाहिये | और ध्याना चाहिये, इत्यादि धर्म देशना देकर मुनिवर महात्मा विरमित हुवे. . प्रस्ताव चौथा. // 81 // RECARE .. श्रीपाल नरेन्द्रका पूर्वनव.. 34-OTESSENSESS165654 __ध्यानपूर्वक धर्म देशना सुननेके पश्चात् महासजश्री श्रीपाल कुमारने विनयपूर्वक मुनीश्वME रको प्रार्थना की:-हे मुनीश ! किस कर्मके उदयसे बालपनेमे ही मुझे दुष्ट-कुष्ट रोगने घेर लिया M और किस शुज कर्मके प्रतापसे रोग शमन हो गया.? हे नाथ ! किस सत्कर्मके संयोगसे स्थान 2 पर मुझे विपुल ऋद्धि मिली और किस कसके कारण मैं सागरमें गिरपड़ा ? हे प्रनो ! किस 1 // VIRAc. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarad
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________________ 5 नीच कर्मके हेतु मैं डूमपने प्राप्त हुवा और किस पवित्र कर्मके पसाय में सर्वतः आनन्दित हुवा? हे जगवन् ! मेरा कर्म स्वरूप सब कथन करियेगा; इस वीनतिको लक्षमें लेकर परमोपकारी मुनि 15] महाराज वदने लगे-हे नरश्रेष्ठ! इस संसारके अन्दर जीव पूर्वकृत कोंके अधीन होकर सुख 15|| दुःखका अनुजव करता है तो अब तुम अपना पूर्वभव ध्यानपूर्वक सुनोः इस जरतक्षेत्रके अन्दर हिरण्यपुर नगरमें श्रीकान्त नामका राजा राज्य करता था; वह || बड़ा भारी शीकारी और कठोर हृदयी था उसकी एक जिनधर्म निपुणा, विशुद्ध शील युक्ता, कृपा-शान्ति-वैराग्य-आस्ता करके सहिता श्रीमती नामकी रानी पूर्णतः पतिभक्ता थी, वह धर्मणी 6) रानी हमेंशां अपने पतिराजको उपदेश करती-हे स्वामिन् ! महावुःखका दातार नरकका कारण- 14 भूत इस जीव वषरूप व्यसनको जलांजली देदेवा चाहिये, घोड़ेपर सवार होकर तृण-जलपर -निर्वाह करनेकाले निरपराधी जीवोंको तीक्षण पापोंसे असीम दुःख देकर हर्षित होतेहो, यह GASCOGGESKAKKU Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ भोपाल- प्रस्ताव परित्र // 82 // SRAJSAAAAAA-. क्षत्रियोंका आचार नहीं है-हे नाथ! मृग-सावर-सुकर कोरा पशु जाति तथा तीतर-कबूतर| पोपट वगेरा पक्षियोंको मारना आपका कर्म नहीं है, यह तो चांडालका कर्म है, आपतो नीति वान् हैं, जो लोग परप्राणको नाशकर अपनी पुष्टि करते हैं वे. थोड़ेही दिवसोंमें अपनी आत्माका || | नाश करते हैं, इस प्रकार रानी उपदेश देती हुई कहने लगी-... : (श्लोक)........... वैरिणोऽपि विमुच्यन्ते / माणान्ते तृणभक्षणात् // तृणाहाराः सदैवैते / हन्यते पशवः कथम् // 1 // नावार्थः-मारनेके समयपर जो वैरी तृण लक्षण करे यानी मुहमें घास लेले तो वह छोड़ || दिया जाता है तो जो प्राणी सदा घास खाते हैं उनको कैसे मारे जांय ? || . : शीकारमें आसक्त राजा उस वख्त तो कबूल करलेता है कि मैं अबसे न मारूंगा, मगर जब बहार जाता है.तब उसही तरह मारने लगता हैं, किसी एक वरूत सातसो पराकमी सुभ बबाल LAC.Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ 5+%ASALAAA-%ESARIA 5 टोंको साथ लेकर बनमें शिकार खेलनेको गया, वहां पर धर्मध्वज ( रजोहरण-ओघा ) धारण किये हुवे एक साधु महाराजको देखे, तब राजा बोला-अहो सुनटों! यह चामर धारण करने * वाला कोई कोडिया है तब सातसोही वीरोंने हां साहब! कुष्टि है, ऐसा कहा और उन महात्माको लकड़ियोंसे ज्यों 2 मारने लगे त्यों 2 राजा हर्षित होने लगा, और क्षमाके सागर मुनिराज तो है। क्षमारसमें झीलने लगे, इस प्रकार मुनिको उपसर्ग करके एक हिरणोंके टोलेके पीछे दौड़े, शिकार हाथमें नहीं आया, लाचार होकर सब लोग वापिस अपने नगरको चले गये; रात्रीमें राजा अ पने शयन जुवनमें गया वहांपर दिनकी सब कथा रानीको कह सुनाई, रानी आग्रहपूर्वक निवाA रण करती है, उस समय राजा स्वीकार कर लेता है और फिर बाहर निकला कि अपनी प्रियाका 6 वचन भूल जाता है-किसी एक दिन भूपति सेनाको लेकर शिकार के लिये गया हुवा था, सेनासे | | अलग पड़कर एक मृगके पीछे धावा किया, वनमें नदीके किनारे एक सघन वृक्षके समूहमें वह हिरण बुप्त होगया, उस वख्त राजाने नदीके तट पर एक ध्यानस्थ मुनिको देखे, दुष्टता वश AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ PS श्रीपाल कौतुकके लिये दोनों हाथोंसे मुनिको उठाकर नदीमें फेंक दिये, इस समय मुनिराजको आकुल-15 8 व्याकुल देखकर नृपतिको करुणा रस उत्पन्न हुवा कि शीघ्रही जलसे निकालकर बाहर पृथ्वीपर | रख्खे; ये सब हकीकत रात्री में अपनी वलभाको कही, सुनकर रानीको बड़ा खेद हुवा तब कहने || 5/ लगी-हे नाथ! जिस किसीको जी दुःख नहीं दिया जासकता तो साधु महात्माको दुःख देनेसे हैं। तो अवश्य घोर नरक मिलती है दूसरा मुनिकी हीलना करनेसे हानि होती है, निन्दा करनेसे || वेरा-मुख रोगी तथा नेत्र रोगी होता है, ताड़ना तर्जुना करनेसे राज्यका नाश तथा मरण होता है| है और मुनिराजको उपसर्ग करनेसे जीव अनन्त संसारी बनता है, अर्थात् बोध बीजको प्राप्त है। नहीं होता; यदुक्तम्..... .. ... ... ... (गाथा.):... ........... ........ . . . वेश्यदबविणासे / रिसिपाए पम्वषणस्स हाहे // संजानउत्थम / मूलागी योहिलामसः॥१॥: . SASKARIBUCH ENARAK Ac.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ 9GACSC ESEAR-AAG भावार्थः-चैत्य द्रव्य (देव व्य)का नाश, मुनिका घात, शासनकी हिलना और आर्याके ब्रह्मचर्यव्रतका जंग करना इससे बोधवीज (समकित) रूप लाजके मूलमें अग्नि दिया जाता है. इस प्रकार सुनकर राजा कुछ धर्म नावमें हर्षित होकर बोला-दे प्रिये! अब इस प्रकार है। र काम न करूंगा और कितनेक दिनतक हिंसा-काण्ड न भी किया फिर जी प्रजापति तो.ज्योंका त्यों है श्रीमतीकी शीक्षा भूल गया-एक वख्त नृपति अपने महलके गोखमें बैठा हुवा है इस वख्त एक * मुनिराजको भिक्षा लेनेके लिये शहरमें आते हुवे देखे तब राजा. बोला-अहो सेवकों ! इस मलीन है। डूमको नगरके बाहर निकाल दो, इसने मेरी नगरी मलीन करदी है, आज्ञा पातेही नोकरोंने है। कण्ठ पकड़कर बाहर निकाल दिये; इस करुणा जनक स्वरूपको गवाक्षमें बैठी हुश् श्रीमतीने | देखा, तुरन्तही राजाको बुलाया और कोपातुर होकर उसका भारी तिरस्कार किया, इस समय के | पृथ्वीपति लजित होकर कहने लगा-हे प्रिये! उन महात्माको यहांपर बुलाओ में उनसे क्षमा / HAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki
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________________ प्रस्थान चौथा.. // 84 // मांगूगा, तब नृत्योंके द्वारा मुनिराजको बुलाये, शुद्ध जावना छारा विनयपूर्वक उनको क्षमाकर || भूपत्ति सामने खड़ा रहा, श्रीमतीने कहा-हे मुने! मेरेपतिने मुनीश्वरको ताड़ना तर्जनादि कर || मोटा पाप किया है, इसके नाशका को उपाय दिखाईयेगा? करुणारस जंडार मुनि पुङ्गवने कहाहे भद्रे! इसने मुनि संताप-जीवघातादि, गहन पाप किये हैं, उसके नाशका उपाय तूं सावधानतासे सुन-तुम दोनों श्रीसिद्धचक्रजोका आराधन करो, उन्होंने सहर्ष स्वीकारा और मुनि / महाराजको बताई हुइ विधिपूर्वक नवपद महाराजका आराधन किया, उद्यापन (उजमना ) के | समय आठ सखियोंने सिद्धचक्र आराधन की अनुमोदनाकी, सातसो अंग रक्षकरूप सुजटोने धर्मकार्यकी प्रशंसा की-एक वख्त श्रीकान्तभूपालने सातसो पुरुषोंको साथलेकर सिंहसेन राजाका एक गाम लूट लिया, वे सर्वधन-धान्य-गाय-भैंस वगेरा लेकर वापिस फिरे इतने में सिंहसेन राजाको खबर पड़नेसे अपनी सेनाको लेकर उनपर धावा किया, आपुसमें संग्राम जामा, सिंह | राजाने उन सातसो सुनटोंको एकही साथ मारडाले; अजितसेन राजर्षि कहने लगे-हे नृपते! AKG674% 56 DINC.Gunratnasuri M.S. jun Gun Aaradhat
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________________ हा पूर्वजवके फल तुझको यहांपर इस तरह मिलेःMail वे सातसो नर मरकर तमाम क्षत्रीय कुलमें उत्पन्न हुवे, पूर्वभवोमें मुनिराजक मारपीट कि-5 || याथा-कुष्टि कहाथा इससे सब लोग कोड़िये हुवे, धर्मकी प्रशंसा की थी जिससे रोग मुक्त हुवे18/वह श्रीकान्तराजा श्रीपाल! तू स्वयं है और वह श्रीमती रानी तेरी महापट्टरानी मदनसुन्दरी 5 || है-पूर्व नवमें तेरा हित इच्छकर नौपदका तुझसे आराधन कराया था और उसही तरह इस जवमें जी कराया-हे राजन् ! पूर्वभवमें तेने मुनिको कुष्टि कहाथा इससे इस भवमें तूं कुष्टि हुवा और श्रीसिद्धचक्रजीके ध्यानसे पुनः रोग मुक्त हुवा, मुनि महाराजको एक वख्त नदिमें गिरा: दिये थे इससे तूं समुद्रमें गिर पड़ा और दया करके उन्हें पोछे बाहर निकाले थे इससेतूंनी शान्तिसे - बाहर निकल गया, किसी एक साधु माहात्माको तूंने डूंम कहाथा इससे तू डूंम पनेको प्राप्त हुवा और उन्हें बुलाकर क्षमा मागी थी इससे तेरा इंमत्व नाश हुवा, श्री नवपद महाराजके HEHRA+C++ + + Gunratnasur 948 Jun Gun Aaradhak
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________________ // 5 // So CASSASAKAA-%A || पसाय समस्त समृद्धि तुझे मिली है; श्रीमती रानीके साथ आठ रानियोंने पूर्वजवमें धर्मकी ||| प्रत्ताप | अनुमोदना की थी इससे वे लघु पट्टरानियें हुई, उनमें आठवी रानीने अपनी एक सोक बहनके साथ कलह करते कहाथा कि-हे दुराशये! तुझे सर्प डसो, बस उसही कर्मके उदयसे उसे इस जवमें सर्प डसा, उस सिंह राजाने प्रहारों द्वारा जर्जरीत शरिर होजानेसे दीक्षाका शरण लिया था | और अखीरमें एक मासका अनशन करके अजितसेन पने यहांपर उत्पन्न हुवा, हे नृपते! पूर्व-5 भवमें तेने मेरा एक गाम लूट लिया था इससे इस जवमें मैने तेरा राज्य ले लिया-मेने सातसो सुज टोंको एकही साथ मारेथे. इससे उन्होंने इस वख्त मुझे बंधनोसे बांधकर तेरे सामने पेश | किया-पहिले नी मैने दीक्षाका आश्रय किया था और अब भी उसहीका शरण लिया-शुज नावना द्वारा उसही प्रवृज्याके प्रतापसे मुझे अवधिज्ञान उत्पन्न हुवा; इस प्रकार हे राजन् ! जिस जीवने जैसा कर्म कियाहो वैसाही उसे फल मिलता है-इस नवताप हरणी वाणीको सुनकर श्रीपाल | P राजा हृदयमें विचारने लगे अहा! संसारका नाटक कैसा अज़ब गज़ब है !!! इस वख्त भूपतिने 84- %% Gunrannasun MS JunGut Aaradha
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________________ SHISHASHX-LOUISHIGASHICHICH | बड़े आदरके साथ राजर्षि अजितसेन महाराजको नम्र प्रार्थना की-हे महामुने! दीक्षा ग्रहण का * करने में तो मेरी सामर्थ्य नहीं है, कृपाकर मेरे योग्य धर्म कार्य बताईये? जिससे मेरा जन्म 5 सफल हो और अन्तमें मोक्ष प्राप्त हो, तब कृपालु मुनिवरने फरमाया-तेरे जोगावली कर्मके | कारण दीक्षा तो उदय नहीं आसकती, मगर नवपद महाराजके ध्यानमें लयलीन होकर यहांसे / नवमें देवलोकमें तूं उत्पन्न होगा फिर आगे मनुष्य और देवताओंके सुखोंका अनुजव करके नवमें / जवमें तेरा मोक्ष हो जाय गा, बड़े हर्षित होते हुवे राजा मुनिराजको वंदन-नमस्कार कर अ. | पने स्थानपर वापिस चले गये, मुनिमहाराज जी अन्यत्र विहार कर गये-श्रीपाल महाराज || है अपनी मातेश्वरी तथा समस्त रानियोंके साथ श्रीसिद्धचक्र महाराजकी पूजामें तथा ध्यानमें है। तलालीन पने रहते हुवे आनन्दपूर्वक निवास करते हैं... Cli-A.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki
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________________ Recenesesesesececenesceneseseseseseseceae%% नद्यापन महोत्सव. . (नवपद-भक्ति) RANISAAR किसी एकदिन महापट्टरानी मयणासुन्दरीने अपने प्राणपति महाराजाधिराजको प्रार्थना की। PI कि हे स्वामिन् ! पहिले तो अपनोंने संक्षेपसे उद्यापन किया था, अब पुनः नौपद तप.करके | || विस्तारपूर्वक भक्तिसहं उद्यापनं करें-महाराजने इस निवेदनको सहर्ष स्वीकारकर नौ नवीन जिनमंदिर बनाये, नौ जिन' नुवनोंका जिर्णोद्वार कराया और नाना विध पूजादिसे प्रथम अरि-150 || हन्त पदकी आराधना करने लगे, जिनबिंब भराकर सिझपद ध्याने लगे, बहुमान पुरस्सर वं-18 || दन-विनय-वैयावच्चसे आचार्यपद साधने लगे, स्थान-अन्न-वस्त्रादि तथा पठन-पाठनमें सायता करते हुवे उपाध्याय पद सजने लगे, सन्मुख गमन-वंदन-असन-पान-वस्त्रादिसे साधुपद सेवने है। ASASALARIALAJA CALICHES Jun Gun Aaradhak
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________________ AM लगे; रथयात्रा-तीर्थयात्रा-संघपूजा-शासन प्रजापना आदिसे दर्शनपद आराधने लगे, सिद्धाMEन्त-पठन-पाठन-लेखनादि ज्ञानोपगरणसे ज्ञानपदकी भजना करने लगे, व्रत-नियम-यतिधर्म है E अनुमोदनादिसे चारित्रपद ज्याने लगे, असनादि बास तथा प्रायश्चितादि आभ्यन्तर कर्तव्योंसे | तपपद सेवने लगे; इस तरह श्रीसिकपक्र महाराजका तप करते हुवे श्रीपाल नरेन्द्रने पांचवें || वर्ष अपनी विपुल राज्य लक्ष्मीसे विस्तारपूर्वक महाशक्ति-महाभक्तिसे उजमना प्रारंभ किया; ||2|| उसका संक्षेप आख्यान यहांपर लिख दिखाते हैं: एक सुमनोहर विशाल प्रदेशमें या विशाल जिनजुषनमें तीन वेदिकाओं सहित श्वेत चित्रयुक्त एक जबरदस्त पीठिका बनाई उसपर मन्त्रसे पवित्र किये हुवे पंच वर्णके अन्न ( चावल| गेहूँ-चणा-मूंग-उड़द )से नौ दल वाले कमलरूप सुन्दर सिद्धचक्र मंडलकी रचना की, हरएक पदमें घृत साकर मिश्रित श्रीफलके गोले रख्खे गये-बीचोबीच स्थापन किये हुवे प्रथम अरि- 2 PROGटककछ Dil Ac, Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhar
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________________ माल प्रश्वाव चोखा हन्त पदपर चौतीस सपेत हीरे और आठ कर्केतन युक्त कर्पूर मिश्रित चन्दन लिप्त एक गोला स्थापन किया, उई शाखारूप दूसरे सिझपदपर लाल वर्ण के इकत्रीस प्रवाल और आठ माणक || | सहित रक्त चन्दनसे लिप्त एक गोला रख्वा, वाम शाखरूप तीसरे आचार्य पदपर पीले पांच गोमेद रत्न-छत्तीस पुष्पक रत्न और कनक कुसमपूर्वक केशरसे लिप्त एक गोला स्थापन किया, || अधः शाखारूप चौथे पाठक पदपर पचीस मरकत मणि और चार इन्द्रनील सहित नीले वर्णको अमुक वस्तुसे लिप्तएक गोला चड़ाया, दक्षिण शाखारूप पांचवें साधु पदपर सत्तावीस श्याम 6 नीलकरत्न और पंचराजपद ( एक जातकी काली मणि.) युक्त कस्तुरीसे लिप्त एक गोला स्था| पन किया, पहिले प्रतिशाखारूप छट्टे दर्शनपदपर सड़सठ मुक्ताफलसे राजित चंदन लिप्त एक है। गोला चड़ाया, दूसरे प्रति शाखारूप सातवें ज्ञानपदपर एकावन मोतियों सहित चंदन लिप्त एक गोला रख्वा, तीसरे प्रतिशाखारूप आठवें चारित्र पदपर, सित्तर मुक्ताफल पूर्वक चंदन लिप्त एक गोला स्थापन किया, चौथे प्रतिशाखारूप नवमें तप पदपर पच्चास मोतियों सहित चन्दन लिप्त // 87 // क atasun Jun Gun Aaradhak
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________________ CALCREC II एक गोला चड़ाया; इसही प्रकार वस्त्र-ध्वजा-माला-आजूषण नैवेद्य-श्रीफलादि नवपद महा| राजको चड़ाये, इसके उपरान्त' ज्ञानोपगरणमें-१ सूत्र 2 पुठ्ठा 3 विटांगणा 4 पाटी 5 पोथी 6 ठवणी 7 कवली नवकरवाली 9 रील 10 दस्तरी 11 कागज़ 12 दाउत 13 कलम 14 काम्बी 15 स्थापनाचार्यजी 16 मुहपत्तिये 17 झीलमिल 17 वासदेपके बटवे वगेरा तथा || दर्शनोपगरणमें-१ मोरपीछी 2 कलश 3 वालाकूची 4 अंगलुहना 5 केशर 6 कस्तूरी 7 चन्दन | 8 बरास 9 धूपदान 10 आरीसा 11 आरति 12 मंगलदीवा वगेरा प्रजु पूजाके सर्व उपगरण Fil एवं चारित्र उपगरणमें 1 रजोहरण 2 मुहपत्ति 3 कम्बल 4 वस्त्र 5 पात्र 6 पूंजनी 7 गुच्छकादि | || मुनिके चौदह उपगरण तथा 1 आसन 2 मुहपत्ति 3 चरवला वगेरा श्रावकके धर्मोपगरणादि . अनेक वस्तुएं बहुत प्रमाणमें रख्वीं; कायदेसर हरेक वस्तु नव 2 अथवा पचीस 2 या इससे भी है || अधिक रखी जा सकती है, कम शक्तिवाले अख़ीर एक 2 वस्तुभी रख सकते हैं; महाराजा श्री. पालने महाविऋतिसे स्नात्र महोत्सव करके समस्त द्रव्य नवपद महाराजके सन्मुख चड़ाये; अष्ट LACEMESSAGARIBRAR %A AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ GAAAAAAAAAAA प्रकारी पूजा कर आति उतारी, शुभ समयमें सर्व संघने महाराजा व महारानीको मंगल तिलक किया तथा मंगल माल पहनाई; नाना वार्जित्रों पूर्वक भूपेंद्रने अपनी पहरानी सहित || द्रव्य पूजा की; पश्चात् नाव पूजा (प्रजु स्तुति ) इस प्रकार करने लगेः (गाथा) जो धुरि सिरी अतिहंत मूल दिड पीउ पइडिओ / सिद्ध-परि-उवमाय-साहु साहा गरिडिओ दसण-नाण-चरण-तव पड़िसाहा हि सुंदरुं / तत्तखर सुरवग्ग लद्धि गुरुपय दल दुषरं // दिसी पाल-जरक-जरकणी पमुहसुरकुसुमे हिं अलंकिओसोसिद्धचक गुरु कप्पतरु अम्ह हिमण वंछिओ दिओ॥१॥ (षट् पदात्मक गाया) जावार्थ:-जिसके आदिमें मूल दृढ पीठपर अरिहन्त देव प्रतिष्ठित हैं और जो सिक-आ-al || चार्य-उपाध्याय-साधु पद रूपी रम्य शाखाओंसे शोभित है तथा दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप पद | रूपी प्रतिशाखाओंसे भूषित है एवं तत्वाक्षर. (ॐ-ही इत्यादि) सोलह स्वर, बत्तीस व्यंजन, OCTEGCOEACCA SIK IAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ 15|| अड़तालीस लब्धि पद, अरिहन्त पादुका, दिग् पाल, यक्ष, यक्षणी, देव-पुष्पोंसे अलंकृत है, वह | सिझचक्र महाकल्पवृक्ष हमारे मनोवांच्छितको प्रदान करो; इत्यादि नमस्कार करके शकस्तवादि // बोले; तदनन्तर पुनः प्रत्येक पदकी पृथक् 2 इस प्रकार स्तवना करने लगेः (गाथा) उपन्न सन्माण महो मयाणं / सप्पड़िहासण संठियाणं / सइसणा गंदिय सजणाणं / नमोनमो होउ सया जिणाणं // 1 // जावार्थः-उत्पन्न हुवा है केवलज्ञानका महा तेज जिसको ऐसे छत्र-चामरदि प्रातिहार्य || P करके अलंकृत, सुवर्ण सिंहासन पर विराजमान, अपनी जव ताप हरणी सदेशनासे आनन्दित किये हैं सजनोंको जिसने ऐसे जगदुपकारी अरिहन्त प्रजुको अनेकशः निरन्तर नमस्कार होवो. . . . (गाथा) सिद्धाण माणंद रमा लयाणं / नमो नमो गंत चउकयांणं // शरीष दूरी कय कुग्गहाणं / नमो नमो सूर समप्यहाणं // 2 // 4 %A8 G AC GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha i
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________________ ल SHAHREALANAGE भावार्थः-परमानन्दरूपी लक्ष्मी है निवास स्थान जिसका ऐसे अनन्त ज्ञान-दर्शन-चारित्र और वीर्य गुणचतुष्ठय विराजित सिद्ध जगवानको पुनः 2 नमस्कार होवो-दूर किये हैं अभिनिवेशादि कुत्सित ग्रहों जिसने ऐसे सूर्य समान आचार्य महाराज को नमस्कार होवो. (गाथा) मुत्तत्थ वित्थारण तप्पराणं / नमो नमो वायक कुंजराणं // साहूण संसाहिय संजमाणं / नमो नमो सुद्धदया इमाणं // 3 // जावार्थः-सूत्रार्थके विस्तारमें तत्पर, समुदायकी शोभा करनेमें समर्थ कुंजर हस्ति समान || || उपाध्याय महाराजको वारं 2 नमस्कार होवो-सम्यक् प्रकारसे साधन किया है संयम जिसने | ऐसे प्रशम गुणको धारण करने वाले दयावान्, जितेन्द्रीय साधु महाराजको अनेक वार नम- ||7|| |स्कार होवो. . SUHAGAURUSH* (गाथा) &aa जिणत तत्तेरुड लक्खणस्स / नमोनमो निम्मल सणस्स // अनाणं संमोह तमो हरस्स / नमोनमो नाण दिवायरस्स // 4 // HORAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha
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________________ नावार्थ:-जिनेन्द्र परमात्माके फरमाये हुवे तत्वों पर रुचि करानेका लक्षण है जिसका ऐसे निर्मल सम्यग् दर्शन ( समकीत-श्रद्धा ) को वंदन होवो-अज्ञान रूपी व्यामोहसे मतित्रम रूप P अंधकार छा गया है जिसको उसको नाश करनेमें सूर्य समान ऐसे सम्मग् ज्ञानको पुनः पुनः नमस्कार होवो. (गाढा) 51 आरहिआ खंडिय सक्कियस्स / नमो नमो संयम वीरियस्स // कम्मदुसुम्मूलण कुंजरस्स / नमो नमो तिव्य तंवोभरस्स // 5 // // भावर्थः-पराक्रम पूर्वक नाना विध क्रियाओंसे आराधन किया है जिसको ऐसे साध्वाचार | रूप चारित्र पदको अभिवन्दन होवो-कुंजर हाथीकी तरह कर्म रूपी वृक्षको जड़मूलसे उखेड़ || दिया है जिसने ऐसे उग्र तप पदको वारंवार नमस्कार होवो. (गाथा) . . इय नव पयसिद्ध-लद्धि विज्झा समिद्धं / पयडिय सर वग्ग-ही तिरेहास म्मगं / / REISEBAGAIGSASA ARMAS Jun Gun Aaradhak XIAC.Gunratnasuri M.S.
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________________ दिसीपइ सुर सारं-खोणि पीठावयारं / तिजय विजयचकं सिद्धचकं नमामि // 6 // भावार्थ:-इस प्रकार नव पदोंसे निष्पन्न, लब्धियों और विद्याओंसे सम्पूर्ण, स्वर-वर्गादि AAAAA% E5C देवोंके समूहसे प्रधान भूमंडल पर अवतरित ऐसे तीन जगत्के विजय करनेमें चक्र समान विजय | चक्ररूप श्रीसिद्धचक्रको में अनेकशः नमस्कार करता हूँ. छ इस तरह श्रीसिझचक्रकी स्तवना करके वहांसे रवाना हुवे, पश्चात् गुरु महाराजके पास || आकर वंदन-नमस्कार-सत्कार-सन्मानादि किया और यथा अवसर वस्त्र-पात्र वगेरा प्रदान | कर उनकी भक्ति की; इस तौरपर संघ समस्त के साथ मंगल वाजिंत्रोंसे शुभ भावना द्वारा | जिन शासनकी महती प्रजावना की, संघनक्ति-स्वामीवात्सल्यादि धर्म कृत्य करने लगे-माते- | // 90 // श्वरी और सर्व पट्टरानियोंके साथ तथा अनेक अन्योंके साथ श्रीसिद्धचक्रमहाराजकी अनन्य जावोंसे श्रीपाल नृपेन्द्र आराधना करते हुवे आनन्द पूर्वक निवास करते हैं. #CHURCIA SAINK Jun Gun Aaradhak Te!
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________________ RSSC " AAAAA-KARAN MANTRA . आरा -RAMROMASTRASTRASMS श्रीपाल नरेन्द्रका परिवार तथा विभूति नवपद-स्तवना . समाधि-अवसान. REGarbarabardGREE श्रीपाल राजेन्द्रके मयणासुन्दरी प्रमुख नव पट्टरानियें थीं, उनकी कुक्षिमें अवतरित हुवे | त्रिनुवनपाल आदि नव पुत्र थे, नव हज़ार हाथी, नव हजार रथ, नव लक्ष घोड़े और नव कोड़ || | पेदल थे; इसही तरह राजाओं, देश, ग्राम, नोकर, चाकर वगेरा अनेक समृद्धि थी, महाराजा ईन्द्र तुल्य लीला-लहर करते थे; बहुत वर्षोंतक सुखका अनुभव करते हुवे धर्म नीतिद्वारा नि| कंटक राज्यपालते हुवे जब कि नवसो वर्षकी अवस्था हुई तब मयणासुन्दरीके पुत्र त्रिभुवनपाल युवराजको बड़े महोत्सवसे राज्य सिंहासन पर स्थापन किया, पश्चात् योग्यता पूर्वक अपना | RAA - RIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhali -%
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________________ श्रीपाल- ACAAAAAAAAM द्रव्य सात क्षेत्रों में ( साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका-जिनमंदिर-जिनप्रतिमा-ज्ञान ) पुष्कल द्र. व्य व्यय किया और सब लोग नवपद महाराजकी स्तवनामें इस प्रकार लयलीन हुवेः___मदनाके साथ श्रीपाल नरेन्द्र प्रथम अईत् पदकी स्तुति करने लगेः-चौतीस अतिशय || | विराजमान, पेंसि गुणवाणी सुशोभित, स्याहादधर्म प्ररूपक, महागोप, महानिर्यामक ,महा-|| सार्थवाह, जगद्गुरु श्रीअर्हत् परमात्माको अन्तर आत्मासे अनिवंदन करता हूँ; इस तरह पहिले. पदके गुणग्राम करते हुवे अपना समय शान्तिपूर्वक गमन करने लगे-दूसरे सिद्धपदकी स्तवना करने लगे-पूर्व प्रयोगके ज़रिये, संयोगके त्यागधारा, बंधन छेदन करके, स्वनावसे असंख्यात | योजन दूर सिझसिलाके ऊपर जोजनके चौवीसवें जागमें सिझस्थानको मात्र एक समयमें प्राप्त // 91 // किया है जिसने, ऐसे सिद्ध भगवान्को मैं नमन करता हूँ; इस तरह समय व्यतीत करते हैं. AIRIAIPAISHIRICI Ac.Gunratriasuri M.S.. Jun Gun Aaradha
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________________ + CA%ASEASI-RIGARASI .. तीसरा आचार्यपद-पंचाचार पालक, उत्तमदेश-कुल-जातिमे उत्पन्न एसे युगप्रधान आचार्य महाराजकी आराधना करते हुवे अपना काल शन्तिसे गालते हैं-चौथा उपाध्याय पद-छादशङ्गमें पारांगत, मूर्ख शिष्योंको भी प्रमोद उपजाने वाले ऐसे पाठक महाराजकी सेवा करते हुवे है | अपना जीवन बिताने लगे-पांचवां साधुपद-क्रोधादि चार कषायोंसे मुक्त, सूत्रार्थ ज्ञाता, यतिधर्म धारक, रत्नत्रयाराधक ऐसे साधु महाराजकी उपासना करते हुवे अपना मानव भव है सफल करने लगे. ___छटा दर्शन पद सड़सट भेदोंसे शोभित-सातवां ज्ञान पद मत्यादि पंच भेदोंसे अलंकृत-आ| ठवां चारित्र पद सत्तर भेदोंसे विभूषित-नवमा तप पद बाह्य आभ्यन्तर करके बारह नेदोंसे है। | विराजित; इन पवित्र चारों पदोंका ध्यान करते हुवे श्रीपाल महाराज अपना जीवन लीला ल. हरसे व्यतीत कर रहे हैं. 1 Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्ताव SARANA अब श्रीपाल कुमार नवपदके ध्यानमें तलालीन होते हुवे काल समय काल करके (पूर्ण | आयुष्य नोगकर) नवमें स्वर्गमें सामान्य ईन्द्र पदे उत्पन्न हुवे, इनकी माता-महापदरानी पट्टरा. नियों सब अपनी 2 आयु पूर्णकर शुभ ध्यानद्वारा काल करके उसही देवलोकमें उत्पन्न हुवे.. posses88888860806ecer ॐ गणधर महाराजका बेला फरमान. RO000000000000000000 | हे राजन् ! श्रीपाल नरेन्द्रादि सब जीव अपने भवसे लेकर नवमें नव अनन्त सुखका स्थान है मोक्ष पद प्राप्त करेंगे-हे मगधेश्वर! श्रीसिद्धचक्रका महात्म्य प्रदर्शक यह श्रीपाल राजेन्द्रका | आदर्श चरित्र तुमारे सन्मुख कह सुनाया-यह परमोपकारी जीवन चरित्र सुनकर श्रेणिक महा. || राज बड़े जारी आनन्दित हुवे और इस प्रकार कहने लगे-अहा! नवपद महाराजका अतिशय 43UGUSLASHIRISH RICHICO HiAc.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ SANSAR जारी चमत्कृत है, तब गणधर महाराजने फरमाया-हे नरेन्द्र ! ऐक 2 पदका अपूर्व प्रजाव है तो फिर नवपदकी तो बात ही क्या कहना! देखोः| अरिहन्त पदके आराधनसे देव राजाने मोक्ष महल प्राप्त किया, सिद्धपदके ध्यानेसे पुंड| रीक-पांडवोंने मुक्ति निकेतन उपलब्ध किया, आचार्य पदके सेवनसे परदेशी नृपने निर्वाण फल | है। हाँसिल किया, उपाध्याय पदकी भक्तिसे वजस्वामी स्वर्ग पधारे, साधुपदकी नजनासे रूपी-रो-| 6 दणी प्रमुखने सिमिजुवन आप्त किया, दर्शनपदके आराधनसे सुलसाको महा आनन्द मिला, || है ज्ञान पदके ध्यानेसे माष-तुष साधुको केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा, चारित्र पदके सेवनासे जम्बू कुमा रको केवल ज्ञान प्राप्त हुवा, तप पदकी भजनासे दृढ प्रहारी शिवसदनको प्राप्त हुवा; इत्यादि P|| अनेक मोक्ष गये-जाते हैं और जावेंगे, यह सब श्रीसिद्धचक्र महाराजका ही प्रभाव समझना; इस प्रकार गौतम गणधरने श्रेणिक राजाके आगे नवपद महात्म्य सविस्तार वर्णन किया, जक्ति URUCHARISHIRISHIRIQISHNIQI PIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak 12
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________________ पूर्वक मगधेश्वरने श्रावण किया, तमाम लोग आनन्दपूर्वक हर्षित हुवे. प्रस्ताव चौथा. परित्र. 93 // परमात्मा महावीर देवका पदार्पण AAAAAAAAASANSAESO ये सब होजानेके बाद एक मङ्गल समाचार सुने कि परमात्मा महावीर देव पधारे, बस श्रे. || णिक आदि सकल लोगोंके हर्षकी सीमा न रही. सब लोग समवसरणमें गये, वहां जाकर प्र. है। जुको नमन कर नवपद महाराजका स्वरूप पूछा, पहिले गौतम स्वामीने कहा था उसही त रह देवाधिदेवने भी फरमाया तदपि इतना विशेष प्रतिपादन किया:-हे नरनाथ! यह नवपदका म- // 93 // हात्म्य तेरे चित्तमें महदाश्चर्य करता है, परन्तु जो कुछ कि तूंने सुना है वह तो अल्पमात्र है सम्पूर्ण तो . || वाणी के अगोचर है-इसका आराधन सकल धर्मरूपी शाखाओंका मूल है, इसके सेवनका मुख्य हेतु MAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhal
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________________ मात्र प्राणियों के शुभ नावकी प्राप्ति है, शुभ नावोंसे आत्मा निर्मल होता है, निश्चय नयकी अपेक्षा आत्माही नवपद है; तद्यथाः ___ध्यानको करनेवाला ध्याता पुरुष पिंडस्थ, पदस्थ और रूपस्थ, इस तरह त्रिविध अरिहन्तहै पद आत्माको ही माने; पिंडस्थ-शरीरमें रहे हुवे अरिहन्त, पदस्थ-समवसरणमें विराजे हुवे / अरिन्हत, रूपस्थ-सर्वातिशय विराजमानरूप अरिहन्त देव आत्माही है. 1 रूपातीत पौगलिक दशासे सर्वाशे रहित, परिपूर्ण केवलज्ञान, केवलदर्शनादिगुण चतुष्टय विराजित परम परमात्मा | 8 रूप सिजभगवान आत्माही कहा जाता है 2 सूरिमंत्र संबकि पंच प्रस्थानयुक्त, पंचाचार पा| लकादि गुणविशिष्टरूप आचार्य पद आत्माही समझना चाहिये 3 महाप्राण ध्यानके चिन्तक, छादशाङ्ग सूत्रार्थके रहस्य वेत्ता रूप उपाध्याय पद आत्माही मानना चाहिये 4 रत्नत्रय (ज्ञान| दर्शन-चारित्र) से शिवमार्ग साधनेमें सावधान, योगत्रयकी शुक्ल प्रवृनिमें नलालीनरूप माधु IAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ प्रस्थान पद यात्माही जानना चाहिये 5 मोहके क्षयोपशमसे उत्कृष्ट शुज परिणामरूप दर्शनपदई है आत्माही होसकता है 6 ज्ञानावर्णीय कर्मके क्षयोपशमसे यथाऽवस्थित जीवाजीवादि तत्वोंका है। / शुझावबोधरूप ज्ञानपद जी आत्मा ही मानाजासकता है 7 सोलह कषाय, नव नोकषाय रहित शुभ परिणामरूप चारित्र पद आत्मा ही कहा जाता है 8 इच्छानिरोधसे शुद्ध संवरयुक्त, | समभावसे कर्म निर्जरा करने में तत्पर रूप तप पद जी आत्मा ही जानना चाहिये 9 इस प्रकार ये नवपद आत्मा ही है ऐसा समझकर अहो भव्यात्माओं! तुम अपने आत्म-स्वरूपमें सदा लय1 लीन रहो-देशना सुनकर अत्यन्त प्रमुदित हो मगधेश्वर राजा श्रेणिक आदि समस्त परमात्मा 2 महावीर देवको वंदन-नमस्कार अपने 2 स्थानपर चले गये; जगद्गुरु जी सपरिवार अन्यत्र विहार कर गये. . PADAARA.GASTRA WEBISSAGAR ZN Gumratnasuri Ms. Jun Gun Aaradhak Tr
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________________ 28 नप-संहार. BRECAREERSESAMEERIENCE अहो जव्यात्माओं! नवपद महाराजके अतिशय माहात्म्यको प्रकाशित करनेवाला यह है पवित्र श्री श्रीपाल चरित्र आपने आद्योपान्त शान्तिपूर्वक श्रवण किया होगा; इसमें कष्टावस्थासिद्धचक्रमहाराजकी अपूर्व आराधना-राज्य वैनव-पूर्वभव सम्बंछ और नविष्य श्रेयका चित्राम | खेंचा गया है, श्रीनवपद महाराजकी परम शक्तिसे कैसी लीला-लहर होती है वह फोटोकी त. 6 रह इसमें आबेहूब दिखला दिया गया है; पुण्यशालियों! इस पवित्र चरित्रको सुननेका सार यही है कि उन महापुरुषके चरणे आप भी अपने जीवनको चलावें और उसही तरह ऐहिक और पारजविक अपूर्व सुखोंका आस्वादन करें; बस इसहीसे आपका सदा श्रेय होता रहेगा. * हिन्दी भाषाके श्रीपालचरित्रका चौथा प्रस्ताव सम्पूर्ण हुवा. * GAUNSEOCESCREEN55 5 Jun Gun Aaradhak GSTAC.Gunratnasun M.S.
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________________ 943 श्रीपाल . . प्रशस्तिका. Gal@ Ge Soon AXIRLIGIG4-%-OSAK 8 वीर प्रजुके पाटपर / हुवे अनेक यतीन्द्र // गच्छ चौरासी अधिपति / उद्योतन सुगणीन्द्र // 1 | सरि जिनेश्वर दीपते। ज्ञान दिवाकर सार // चैत्यवासि मृगकेसरी। खरतरपद अवधार // | अभयदेव मुनिवर प्रजु / नवाङ्गी वृत्तिकार // जिनवखन जग वलभ / शासनके हितकार // 3 // युगप्रधान दादागुरु / श्रीजिनदत्त सुरिन्द // श्रीजिनचन्द्र कुशल सूरि / जगमें महामुनिन्द // 4 // श्रीजिननक्ति सूरीश्वर / सप्त-सष्ठि पटधार // शिष्य रत्न पटधर गणि। प्रीत्यब्धि श्रीकार // 5 // अमृतधर्म पाठक क्षमा-कल्याणक सुखकार // सुखसागर गणनाथ गुरु / उकारक जयकार // 6 // Gunratnasuri M.S. . Jun Gan Aaradhak
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________________ AAAAAAAAA | गुरु जगवान मोटे मुनि / उपकारक अविराम // महातपस्वी छगन गुरु / भव्यजीव विश्राम // 7 // | परम दयालु महामुनि।शान्त मूर्ति अनिराम // त्रैलोक्यसिंधु परम गुरु। ज्ञान चरण के धाम // 8 // | तस्य चरण सेवक सदा / वीरपुत्र आनन्द // रत्नाकर मुनिने सरस / ग्रंथ रचा सानन्द // 9 // | संवत् शशि सिध्यङ्कनू(१९८१) दीवाली दिलधारकच्छदेश जुज नगरमें। पूर्ण किया शुभकार // 10 // | वक्ता श्रोताकी सदा / चड़े कला सुखकार // श्रेय होय सबका सदा / वर्ते जय-जयकार // 11 // ASTRASTRaa-Seate सम्पूर्णम्. 57 VEER PUTRA ANANDSAGAR. BHUJ ( CUTCH ) *i! Ac. Gunsatnasuri M.S. Jun Gun Aaradha
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________________ र श्री श्रीपाल चरित्र समाप्त. कर ले सेवा मगन पुराफाल्य) महासमुन्द - APPAC.GunanasunM.S.