________________ श्रीपालपरित्र. व-- 54 - चौथा. वाया और नवीन वस्त्र-अलंकार पहना कर बहु मानपूर्वक अपने पास बैठाया; इस वख्त / 8 मदना मर्मसे बोली-हे तात! मेरे कर्मसे प्राप्त हुवा वर देखा ? जिसने आपकी कुठार दूर 6 किया है, तब लज्जित होकर राजाने कर्मस्वरूपको अटूट श्रद्धासे माना, श्रीपालजीका समस्त || स्वरूप जानकर आनन्दित हुवा और वहां पर ठहरा; इस वख्त सारी उज्जयनी नगरी में परम शान्ति होगई.. -0% A * अरिदमन कुमार और सुरसुन्दरीकी शुद्धि.. 5 // 72 // अब सौभाग्यसुन्दरी और रूपसुन्दरी सपरिवार वहां पर आई हुई हैं तथा प्रजाकेभी / | अनेक लोग उस स्थान पर प्राप्त हुवे हैं, इस तरह श्रीपालजीके पड़ावमें एक मोटा जमाव जमा ||| AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak