________________ UCAUGAAAAAG मदनसुन्दरीको पूछा-दे प्रिये! अब तेरे पिताके साथ अपनेको क्या करना चाहिये ? तब मयणा - बोली-हे नाथ! खंधेपर कुठार (कुहाड़ा) और मुंहमें घास लिवाकर मेरे पिताको बुलावो मदनसुन्दरीका यह कहना मानो अपने पिताको दृढ़ श्रद्धालु बनाना ही आशय था; अख़ीर र श्रीपाल नरेन्द्र वगेरा सब आन्दसे सो गये. है प्रातःकालमें महाराज श्रीपालने निश्चित कीहुइ हकीकत दूतके साथ राजाको कहल वाई, प्रजापालको दूतने आबेहूब वचन कह सुनाये और यह सूचनाकी कि यदि तुम्हें मंजूर है। न हो तो युद्धके लिये तैयार होजावो-राजाने विचारा की मैं इनके बराबर किसी तरह न पहुँच से / सकुंगा तो व्यर्थ प्रजाका नाश करना उचित नहीं, बस दूतका कहना तुरन्त स्वीकार लिया और प्रजापाल भूपाल खंधे पर कुठार धारणकर मुखमें तृण लेकर अर्थात् किशान-बेलसा रूप बनाकर महाराज श्रीपालजीके दरवज्जेपर आया, तब महाराजने देखते ही वह वेष दूर कर 1969-04ROCCAREER-PRORK AAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhaka