________________ 9GACSC ESEAR-AAG भावार्थः-चैत्य द्रव्य (देव व्य)का नाश, मुनिका घात, शासनकी हिलना और आर्याके ब्रह्मचर्यव्रतका जंग करना इससे बोधवीज (समकित) रूप लाजके मूलमें अग्नि दिया जाता है. इस प्रकार सुनकर राजा कुछ धर्म नावमें हर्षित होकर बोला-दे प्रिये! अब इस प्रकार है। र काम न करूंगा और कितनेक दिनतक हिंसा-काण्ड न भी किया फिर जी प्रजापति तो.ज्योंका त्यों है श्रीमतीकी शीक्षा भूल गया-एक वख्त नृपति अपने महलके गोखमें बैठा हुवा है इस वख्त एक * मुनिराजको भिक्षा लेनेके लिये शहरमें आते हुवे देखे तब राजा. बोला-अहो सेवकों ! इस मलीन है। डूमको नगरके बाहर निकाल दो, इसने मेरी नगरी मलीन करदी है, आज्ञा पातेही नोकरोंने है। कण्ठ पकड़कर बाहर निकाल दिये; इस करुणा जनक स्वरूपको गवाक्षमें बैठी हुश् श्रीमतीने | देखा, तुरन्तही राजाको बुलाया और कोपातुर होकर उसका भारी तिरस्कार किया, इस समय के | पृथ्वीपति लजित होकर कहने लगा-हे प्रिये! उन महात्माको यहांपर बुलाओ में उनसे क्षमा / HAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki