________________ 'श्रीपाल चरित्र. // 52 // SINGALAAMAA देनेवालेकी क्या दशा हुई, भो धवल! जो पर-स्त्री तथा पर-धनमें चपलता करता है उसकी यह प्रस्ताव | स्थिति होती है, उनका कथन धूर्त धवलने न माना, सच है / यथा गतिस्तथा मतिः ' जैसी | तीसरा. गति हो वैसी ही मति उत्पन्न होती है-अब जहाजोंको सागरमें चलते हुवे कितनेक दिन बीत गये हैं तब एक दिन धवलने विचार किया-अहा! अब तक भी मेरे पुण्य अवश्य हैं कि || प्राप्तकष्ट नष्ट हो गया, श्रीपालजीकी लक्ष्मी यदि मेरे हाथ लगे तो मैं ईन्द्र तुल्य हो जाउं, || दोनो कामिनियोंको वसमें करनेका कोई उपाय सोचना चाहिये; किसी एक दिन काम-भावसे | उन्मत्त धवल नारीका वेष करके उन मदनाओंके जहाजमें आया, मगर सुरमालाके प्रनावसे || | देखतेही तत्क्षण अंधासा होगया, इससे. इधर उधर गिरने लगा, तब दासीने धवल है ऐसा | जानकर मुष्टि प्रहार-लत प्रहार-हस्त चपेटा-लकड़ी सन्मान वगेराओंसे खूब सत्कार किया | जिससे उसका शरीर निःसत्व होगया, बड़ी भारी मुश्कीलीसे वहांसे भगकर अपनी जहाजमें || // 52 // पहुँचा-दैव योगसे जहाजें अपना प्रस्तुत निशान चूक कर सब कुंकण देशके किनारे जा पहुँचों, SA- ATES SHP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradi!