________________ C USS- 5-45%ECRUAR-H-MASSRO | विचरते 2 क्रमशः एक वख्त चंपानगरीके उद्यानमें पधारें हैं, वनपालने आकर श्रीपाल नूपेन्द्रको बधाई दी, राजाने उसे प्रीति दान दिया-नरेन्द्र अपनी माता-समस्त ललनाओं और कुटुंम्ब परिवार सहित महति ऋफि लेकर महात्माको वंदनके लिये उद्यान में आये, वहां पर पूज्यश्रीको तीन प्रदक्षिणा (ज्ञान-दर्शन-चारित्र शुद्धिकी क्रिया विशेष, अथवा भव भ्रमण नाशरूप विधान ) देकर मन-वचन और कायासे नमन किया, पश्चात् अपने 2 उचित स्थानपर सब लोग यथा योग्य शान्तिसे बैठ गये अवसरको जानकर महामुनिने भवतापहरणी-देशना | प्रारम्भ की: भो भो भव्यात्माओं! इस विकटाटवी रूप संसारमें चुल्लग-पासगादि ( उत्तराध्ययनमें आलेखितं दस दृष्टान्त ) दृष्टान्तों करके यह मनुष्य भव मिलना दुर्लभ है, कदाचित कोश पुण्य योगसे नर नव मिल जी गया तो आर्यक्षेत्र मिलना दुष्वार है इसही तरह क्रमशः उत्तम कुल परिपूर्ण पचेन्द्रीय, नीरोगता; दीर्घायु, सद्गुरु समागम, गुरु दर्शन, गुरु भक्ति, आगम I RiPAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh |