________________ (श्लोक ) ये सिद्धचक्रं परमं पवित्रं / ध्यायन्ति नित्यं निजमानसे हि / / तेषां नराणां च तथा हि स्त्रीणां / वांच्छाफलं चित्तगतं भवेच्च // 1 // * भावार्थः-जो लोग परम-पवित्र श्रीसिद्धचक्र महापदको हृदयमें हमेशा ध्याते हैं उन पुरुष / है और स्त्रीयोंको मनोगत वांच्छित-फल मिलता है. . विचक्षणा बोली- अन्यच्च लोकेऽत्र विलापतुल्यम् " इस लोकमें बाकी सब विलापात है 1के तुल्य है; अर्थात् सार क्या है ? पुत्तलीका बोली: (श्लोक) देवे जिनेशो शुरुषु यथार्थ-वक्ता हि धर्मेषु दया प्रधानः॥ . - मन्त्रेषु सारं परमेष्ठिमन्त्रं / अन्यच्च लोकेऽत्र विलापतुल्यम् // 2 // Jun Gun Aaradha T EAC.Gunratnasun M.S.