________________ * आपका निज़ राज्य खुशीसे भोगवो, अन्य चाहिये सो लेओ! तब अजितसेन विचारने लगे|| मैने दूतका वचन न माना यह अयोग्य किया. . अजितसेनको वैराग्य और दिदा. (श्रीपालजीको स्वराज्य प्राप्ति) अब महाराज अजितसेनका वीररस वैराग्य-रसमें प्रणित हो गया, अतः विचार करने लगे-कहां तो मैं वृक्ष पापिष्ट परद्रोह परायण और कहां यह बालक परोपकारी-धर्म परायण, || अरे! गौत्र द्रोहसे कीर्तिका नाश होता है, राज द्रोहसे नीतिका नाश होता है और बाल ||| द्रोहसे सुगतिका नाश होता है; हा! ये तीनोही अकृत्य मैने किये-हे प्रभो! मेरी क्या गति || R Ac. Guriratnasuri thi.s. - Jun Gun Aacadhal