________________ क PER चार 53 // - इस वख्त गायनमें निपुण डुम लोग सेठके पास आये और अनेक प्रकार गायन किये प्रस्ताव मगर चिन्तातुर सेठने थोडासा दान दिया तब डुमोंने पूछा-हे ऋद्धिपते! आपने हमपर क्यों है। तीसरा. कोप कर रख्वा है ? सेठ बोला कोपका कोई कारण नहीं; अहो म्लेच्छों! विदेशसे आया हुवा राजाके जमाईको जो मारडालो तो मैं मन माना द्रव्य तुम्हें हूँ! पैसे के लोभसे गायकोने स्त्रीकार किया, सत्य है ! 'धनेन जायन्तेऽनर्थाः' धनसे अनर्थ होते हैं धवलने कहा क्या उपाय | करोगे, उत्तर मिला कि अज्ञात कुल ( म्लेच्छ कुल ) का दोष आरोपण करेगे, सेठने कहा || सत्य है म्लेच्छ समझकर राजा अपने आप मरवा डालेगा, तब लोभांध धवलने कोड़ मूल्यकी | एक मुद्रिका ( अंगुठी-वींटी ) देकर उने रवाना किये-अब गायक लोग सज-धज अपनी कला-सामग्री लेकर कुटुम्ब सहित राज सभामें गये, वहांपर राजाके आगे नाना विध नृत्यगान किये, तब भूपति प्रसन्न होकर बोला-अहो गायकों! इच्छित दान मागलो? उन्होंने निवेदन किया-हेमहाराज! हमें दानसे काम नहीं मानसे काम है, नृपति बोले कौन मान चाहते हो? ASA 4-4 // 53 // P AC.Gunratnasuri M.S.' Jun Gun Aaradhal