________________ श्रीपाल-|| इस वख्त दोनो स्त्रियें अपने मस्तकके घूघर बालोंको लटूरियेकी तरह बीखेरकर अविरल रुदन || प्रस्ताव चारित्र करने लगी:-हे प्राणनाथ-हा गुणभंडार-हा हृदयहार-हा नयन सुखसदन-हा चन्द्रवदन- तीसरा. // 50 // हा कामभवन-हा रूपजित् मदन-हा महाधीर-हा ज्ञानसागर-हे स्वामिन् ! आप कहां चले |गये! हम दोनोका मरण क्यों न कर दिया? हमारा असीम दुःख ज्ञानी महाराज ही जान स कते हैं, हे प्रभो! हम किसके आगे अपनी पुकार करें, हमारा पीयर तो पेले किनारे रहा, हम 5 निराधारणियोंको अब किसका आधार है; इत्यादि विरह विलाप करने लगीं-'किसका आधार | 18 है' यह वचन सुन आश्वासनके लिये धूर्त धवल आकर कहने लगा-हे भामिनियों! मेरी आज्ञा-15|| || का पालन करो जिससे तुमको सुख होगा, यह ' कर्णशूलवत् ' वचन सुन वे चतुरा नारियें | है बखूबी समझ गई कि इसही दुष्टने अपने पतिको समुद्र में गिराया है, तब रुदनको दूरकर दृढ 6 चित्ता हो शीलकी रक्षाके लिये अपने इष्टदेवको स्मरण करने लगीं; इनके शीलके महाप्रभावसे | // 50 // वहांपर इस प्रकार घोर उत्पाद प्रकट हुवा-कल्पान्त कालके समान महावायुसे समुद्रका जल मSAHASKAR : VIP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha