________________ श्रावक रहता है, उनका पुत्र में जिनदास हूँ, आपके सम्मुख एक अपूर्व आश्चर्य निवेदन करता हूँः - अहो महाभाग ! रत्नसानुशिखर पर कनककेतुके पिताका बनाया हुवा अंधकारको नष्ट करने8|| वाला सूर्यमंडल समान देदिप्यमान, उत्तंग, धवल ऐसा एक जगत्प्रनु श्रीऋषभदेवस्वामीका IS मंदिर है उसके अन्दर सुवर्णमयी प्रतिमा है उसकी वह विद्याधर राजा प्रतिदिन पूजन करता हा है, उसकी लड़की विशेष आदरपूर्वक जिनेश्वर प्रजुकी अष्टप्रकारी पूजा और अंग रचना करती हैएक दिन उस कन्याने विस्तारसे प्र[पूजा की और सुन्दर अंगरचना बनाई, आजकी अंगरचनाको देख राजा बड़ा प्रसन्न होकर विचारने लगा-अहा! धन्य है ! इस सुपुत्रीको कि जिसने इस प्रकार दिव्य-भक्ति की, सच मुचही यह कृतपुण्या है, सुशीला, दक्षा, और जिन | भक्तिरक्ता है; इसही के समान यदि कोई योग्य वर मिल जाय तो बड़ा अच्छा हो; इस प्रकार सोचता हुवा क्षणमात्र शून्य भावी हुवा, बाद शीघ्रही शुद्ध भावसे वीतराग देवके दर्शन कर AAAAAEROESCANASALALA IAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha