________________ MAHARAK इस अभिप्रायको जानते ही दस गुणा भाड़ा दे दिया; अस्तु, अब जहाजे वहांसे रवाना होकर पवनवेगकी तरह क्रमशः रत्नशीप जा पहुँची; नौकाओंमेंसे सब माल असबाव उतारा, किना-है। रे पर तम्बू-डेरे तान कर यात्री लोग सानन्द रहने लगे; श्रीपाल कुमार भी सपरिवार सुन्दर है। 2 पटमन्दिरमें नृत्य वगेराका आनन्द लूँटते हुवे मदनसेना के साथ सुखपूर्वक निवास करते हैं| इस वख्त धवलसेठ कुमारको पूछता है-तुमारी जहाजोंके क्रयाणे बेंच डालो! जबाब मिला कि | तुमही मेरे क्रयाणेको बेंच देना और योग्य लगे उस तरह नवीन खरीद लेना, सेठने सहर्ष / स्वीकारा, हृदयमें विचारा कि अहा! मेरे हाथमें वैपार आया बस मन माना काम बन गया, | सेठको इस वख्त उतनाही आनन्द हुवा जितना कि बिलाड़ेको दूधकी निगरानी सोंपनेसे होता है. / / अब देवकुंवर सदृश अश्वरत्नपर बैठ कर एक पुरुष श्रीपालजीके पटमन्दिर पर आया, | पहरेदारने कुंवरको निवेदन किया, आज्ञा पाकर उस पुरुषको कुंवरके समीप पहुँचा दिया, नम (GoliAc.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhal