________________ श्रीपाल- चरित्र // 29 // Pornototanssig जाकर अपने जुजाबलसे धन-जनका संग्रह करके अपने पिताका राज्य करूंगा वास्ते देशान्तर || प्रस्ताव | गमनकी आपसे आज्ञा मांगता हूँ, माताने उत्तर दिया-पुत्र! विदेश-गमन बड़ा कठिन है! श्री. दूसरा. पालने झड़पसे जबाब दिया, माताजी! कायर पुरुषोंके लिये सब कुछ मुश्किल है, सुरवीरोंके लिये नहीं, माताने कहा-अस्तु, तब मदना के सहित मैं भी साथ चलूंगी, कुंवर बोले विदेशमें PI स्त्रियोंका साथ अच्छा नहीं, मुझे एकाकी जानेकी इजाजत दो; कमलप्रभाने लाचार होकर स्वीकार किया तब मदना बोली-हे प्राणेश्वर! देवछायावत् मैं अलग नहीं रह सकती, आपके 5| 3 साथ ही चलूँगी, यह सुन कुमारने बड़े गंभीरतासे कहा-प्राणप्रिये ! तेरा कहना ठीक है म-8|| || गर तीर्थ समान मेरे वृक्ष मातेश्वरीकी सेवामें तूं यहीं पर ठहर, विदेशमें खतन्त्रता पूर्वक ए. [6] | काकी जाना ही श्रेष्ठ है, स्त्रीका साथ रहनेसे पग बंधन हो जाता है और कार्य में अनेक विध हानियें पहुँचती हैं-सुशीला मदनाने अपने पतिराज के वचन सादर शिरोधार्य किये और निवेदन किया कि हे प्राणेश! कुशलतासे पधारना, मार्गमें नव पद महाराज का ध्यान करना और पीछे JHAc.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha