________________ यह सुनकर उस राज कुंवरीने उस बनावटी कुंबड़ेके गलेमें मोहन-वरमाला डाल दी, तब तमाम // 5/ राजा लोग कुब्जको कहने लगे-अरेरे-कुब्ज! इस मालाको छोड दे 2 वर्ना तेरे शीर पर काल आगया 15 समझ लेना, कन्या भी महा मूर्खा है कि हंस सदृश राज कुमारोंको छोड़कर काक सदृश तुझ कुबड़ेको 6 वरा, तब कुब्ज हस कर बोला-अहो भाईयों! क्रोध मत करो इस राज-कन्याने तुम सबको नाकके मेलकी तरह त्याग कर रत्न समान मुझे स्वीकारा है; सुनते ही कुबड़ेको मारनेके लिये और वर-5 | माला छीन लेलेनेके लिये तमाम राजाओं समकाल टूट पडे, परस्पर भारी संग्राम छिड पडा. कुब्जने अपना जुजाबल दिखलाया जिससे वे राजाओं दशों दिशाओंमें पलायमान हो गये, इस वख्त नवपद महाराजके पसायसे देवताओंने कुब्जाकार श्रीपाल कुमारपर कुसुम-वृष्टि की, यह | स्वरूप वज्रसेन राजाने अपनी नज़रों-नज़र देखा तब कुबड़ेके पास आकर कहने लगे-हे कला|5|| वान् ! जिस तरह तुमने नुजाबल दिखलाया उसही तरह अपना मूल रूप दिखलाकर हमें आ|| नन्दित करो! तब कुब्जने अपना दिव्य रूप प्रकट किया बस राजाने अत्यन्त हर्षित हो तुरन्त HO6-04वककवर DIAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak