________________ पहिला // 12 // (श्लोक) प्रस्ताव जननी केऽपि निन्दन्ति / केऽपि निन्दन्ति पाठकम् // पितरं केऽपि निन्दन्ति / धर्म निन्दन्ति केऽपि च // 1 // भावार्थः-कितनेक लोग माताकी और कितनेक पाठककी निन्दा करने लगे तथा कित. 8 नेक जैन धर्मकी और कितनेक पिताको निन्दा करने लगे—यह दुनियाके रिवाजके अनुसार ठीक ही है, कारण कि संसार चतुर्मुख दूतके समान है. राजा अपने अपवादको सुन हृदयमें विचारने लगा कि इस वख्त कोइ नवीन पवन फं Pi कना चाहिये जिससे प्रस्तूत बात जुला जाय, यह सोच नरेन्द्र ने शिवभूति पंडितको बुलाकर कहा-भो शिवभूते! सुरसुन्दरीके विवाहका मुहूर्त शीघ्र अवलोकन कर निश्चय करो, पंडितजी | | ने उत्तर दिया-महाराज! इस मासमें तो जो कुछ उत्तम मुहूर्त था वह मदन सुन्दरीके विवाह |5|| // 12 // |5/ में चला गया अब जल्दी में उत्तम लग्न समय नहीं है. राजाको यह जबाब पसन्द न पड़ा तब Ac Gunratnasuri MS. Jun Gun Aaradhak