________________ __ आश्विन शुक्ला सप्तमीसे पूर्णिमा तक इसही प्रकार चैत्र मासमें यह तप करना चाहिये, || इस व्रतमें प्रतिदिन अष्टप्रकारी प्रजुपूजा तथा आचाम्ल ( आंबिल) करना चाहिये, नौमे दिन | पंचामृत पूर्वक शक्ति अनुसार सविस्तार पूजा करना चाहिये-वर्षमें दोवार करके साड़े चार वर्षमें | नौ ओलियें यानी इक्यासी आंबिलोंसे यह व्रत पूरा किया जाता है, व्रत सम्पूर्ण होनेपर यथा शक्ति उद्यापन ( उजमणा) करना चाहिये, जिसकी विधि प्रसङ्गोपात आगे दिखलाई जायगी; 4 | इस व्रतके करने वालेको सम्पूर्ण समृद्धि-सिद्धि-बुद्धि एवं परंपदकी प्राप्ति होती है, नर नारियों के ज्वर, भगंदर, खास, स्वास, कुष्टादि सकल व्याधिये नाश होती हैं, पुत्र-पौत्रादिकी वृद्धि होती 15 है; हे धर्मानुरागियों! यह संक्षेप विधि तथा उसका फल तुमको दिखलाया-परमोपकारी गुरु महाराजके अमृतमय वचन मदनसुन्दरीने मय उम्बरराणाके सादर शिरोधार्य किये... . इसके बाद गुरु महाराजने भाविक श्रावकोंको इशारा किया कि अहो देवानुप्रिय! स्खध KolP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradt