________________ V // 46 // SSICAISHIGASHISASHASHASH54 ई विश्वासघातक धवल उसपर वेष धरता हुवा दुर्बल होने लगा, श्रीपालके सुखके आगे इसे | सेठकी भूख-तृषा सब भग गई, सच है! अन्य तरुवरोंको फूले फले देख कर जवासा सुक | जाता है, ठीक यही दशा सेठकी भी हुई-मारे आधिके (मन चिन्ताके ) धवल क्षणवार शय्यासे | Pउठता है, क्षणवार उसमें पड़ता है इस तरह असाधारण बेचैनी व्याप गई, धवलके चार | मित्रोंने अपने सेठकी इस बुरी दशाको देख कर निवेदन किया-हे श्रेष्ठि ! आपके शरीरमें क्या है को व्याधि है या मनमें कोई चिन्ता है-सत्य 2 कहिये है क्या? तब सेठ एकान्त अवसर जानकर बोला-अहो मेरे प्रिय मित्रों! तुमारे साथ मेरी बड़ी प्रीति है इसही लिये में अपने दिलकी बात तुमारे आगे कहता हूँ मगर ध्यान रहे तुम किसीके आगे न कहना, उन्होंने कहा बहुत अच्छा ! तब धवल सेठ अपनी कथनी कथने लगाः- . अहो मेरे परम मित्रों! यह श्रीपाल एकला पुरुष है, इसकी स्त्रीरत्नयुगल और मोटीऋद्धि 4GEOGRECOGESSESSURES DILAc.Gunratnasuri M.S. INDI Jun Gun Aaradhal