________________ तीसरा. . वन-रन- 15 ये चार वीर हाथमें मुद्गर लिये हुवे आपहुँचे, तब देव-वाणी हुई-अहो! प्रथम ही प्रथम इस || प्रस्ताव // दुष्ट बुद्धिदायक पुरुषको पक़डो-पकडो, बाद श्रीसिद्धचक्रके पदेरदार कुमुद-अंजन-वामन और || 6 पुष्पदन्त, ये चार हाथमें दंड धारणकर खड़े रहे, अन्तमें बहुत देवदेवियों सहित अग्नि शिखाः / है ओंसे झल-झलाट करते हुवे चक्रको घुमाती हुई-चक्रेश्वरी देवी अवतरी, बस प्रकट होते ही तुरन्त हुक्म किया-हे वीर! डोरीको काटने वाले दुष्ट पुरुषको झड़पसे पकडो, तब शीघ्रतर क्षेत्रपालने उस पुरुषको अवली मुस्की बांधकर कूप-स्तम्भपर उलटे शीर लटका दिया और 6 खद्गसे सारे शरीरके कटके 2 कर दशों दिशाओंमें शान्तिके लिये बलिदान दे दिया इस || विषम दशाको देख धवल डरता हुवा उन सतियोंके पास आकर कहने लगा-हे महा सतियों! रक्षा करो-रक्षा करो-मुझ शरणागतकी रक्षा करो! यह सुन चक्रेश्वरी देवी बोली-हे दुष्टपापिष्ट-धृष्ट तेरेको जीता कभी नहीं छोड़ सकती मगर सतियोंका शरण लेनेसे तुझे जीवन || मुक्त करती हूँ; पश्चात् दोनो स्त्रियों को इस प्रकार आश्वासन दियाः RSSIOSASRAEOSSANCECC BARSA Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak