________________ 5 चारित्र श्रीपाल-15 साथ क्या विवाद है, यह उत्तम कुलमें उत्पन्न हुई रूपवती, चन्द्रमुखी आदि गुण सम्पन्ना है, देखियेः- || प्रम - (श्लोक) पहिला. // 11 // गजराजगतिः मृगराजकटिः / तरुराजविराजितज़ानुतटिः॥ .. यदि सा तरुणी हृदये वसति / क जपः क तपः क समाधिविधिः // 1 // * भावार्थः-हाथी के समान जिसकी घूमत चाल है, मृगराजके सदृश जिसकी लचकेदार || कमर है, विस्तृत तरुवरके सरीखी जिसकी जङ्घा तटी सुशोभित है; वह ललना यदि किसीके Pl| मनोमन्दिरमें वसे तो उसके तप, जप और समाधि वगेरा कहां रह सकते हैं; अर्थात् सबही नष्टप्रायः हो जाते हैं. .. यह मदनसुन्दरी चन्द्रवदनी तो हंसनीके समान है और मैं तो कुष्टी काकके समान हूँ, इसके साथ मेरा सम्बंध युक्त नहीं; हे राजन्! इसमें आपकी अप्कीर्ति होगी, यह वचन सुन CESSUSUSASURAL Hall Ac. Gunratnasuri MS Jun Gun'Aaradha