________________ 943 श्रीपाल . . प्रशस्तिका. Gal@ Ge Soon AXIRLIGIG4-%-OSAK 8 वीर प्रजुके पाटपर / हुवे अनेक यतीन्द्र // गच्छ चौरासी अधिपति / उद्योतन सुगणीन्द्र // 1 | सरि जिनेश्वर दीपते। ज्ञान दिवाकर सार // चैत्यवासि मृगकेसरी। खरतरपद अवधार // | अभयदेव मुनिवर प्रजु / नवाङ्गी वृत्तिकार // जिनवखन जग वलभ / शासनके हितकार // 3 // युगप्रधान दादागुरु / श्रीजिनदत्त सुरिन्द // श्रीजिनचन्द्र कुशल सूरि / जगमें महामुनिन्द // 4 // श्रीजिननक्ति सूरीश्वर / सप्त-सष्ठि पटधार // शिष्य रत्न पटधर गणि। प्रीत्यब्धि श्रीकार // 5 // अमृतधर्म पाठक क्षमा-कल्याणक सुखकार // सुखसागर गणनाथ गुरु / उकारक जयकार // 6 // Gunratnasuri M.S. . Jun Gan Aaradhak