Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीजिनाय नमः
श्रीपंचपरमेष्ठिन्यो नमः अथ श्रीधर्मपरीदानो रास.
meer
उहा. प्रथम जिनेश्वर पय नमुं, वृषन- लंडन जास॥ मरुदेवी नंदन पन, नानीराया | कुल तास ॥१॥ अढार वर्ष श्रारा तणां, सागर कोमा कोम ॥गयो धर्म वादयो जिणे, || तेह नमुं कर जोड ॥२॥श्रादि चारित्र आदरी, दीधो विधा धर्म ॥मन वच काया या Vवश करी, बेदी आठे कर्म ॥३॥ शिवपुरना वासी थया, अजरामर सुख मम॥ चोवीरो।
तीर्थकरा, तेहने करुं प्रणाम ॥४॥ समरूं श्रुतदेवी सदा, थापे वचन विलास ।। तुष्टमान थाजो तमे, सफल फले मुज श्राश ॥५॥ गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु तु| गमहोय ॥ गुरु कहीए माता पिता, गुरुथी अधिक न कोय ॥६॥ नवियण जावे सांजलो, धरमाधरम विचार ॥ वेष बुद्धि दूरे करी, परीक्षा करजो सार ॥ ७॥ उत्पत्ति तेदनी
नयी
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
उचलं, धर्मपरीक्षा रास॥वातो विविध प्रकारनी, श्राणी हरख उल्लास ॥॥ सांजलतां । सुख उपजे, मत नावे मन मांय॥ सौ जाणे साचो धरम, नाख्यो तिमज कहाय॥ ए॥
ढाल ली.
देशी चोपाश्नी. जंबहीप जोयण एक लाख, जंबू वृदनी नामे साख ॥ असंख्याता सायर द्वीप कह्या, केवली जाख्या ते में लह्या ॥१॥ जंबूझीप मध्य मेरु जोय, सुदर्शन नामे ते होय ॥ बीजा पर्वत कह्या अनेक, मेरु लाख जोयणनो एक ॥२॥ तेथी दक्षिण दिश जणी कडं, नरत देत्र ते शास्त्रे लांपांचसें बवीश ने उ कला, बत्रीश सहस देश निरमला ॥३॥ साढा पचवीश आरज देश, बीजा अनारज कहीए लेश ॥ थारज धरम मरमनो जाण, म्लेट वर्णनो अनारज गण ॥४॥ पचास जोयणनो। परमाण, रूपामय वैताढ्य वखाण ॥ एहवो पर्वत शाश्वतो मान, श्वेत वर्ण ऊलहलते वान ॥५॥ पचवीश जोयण नूमि मांहि, उंचो पचीश जोयण उबांहिं ॥ दश जोयण ॥ डुंगरथी जोय, दक्षिण दिश जणी ते होय ॥६॥ कह्यां नगर मोटा पचास, नगर पुंठ कोम गाम निवास ॥ मुख्य पचास नगरमां जेह, वैजयंतपुर कहीए तेह
-
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
| ॥ ७ ॥ बार जोयणनो लांबो अबे, नव जोयणनो पोहोलो पढे ॥ गढ मढ मंदिर पोल प्रकार, सोहे लाल आगार ॥ ८ ॥ वाव्य कुवा सरोवर जिहां, जिननां शिवनां मंदिर तिहां ॥ धर्म तणी पोशालो घणी, एवी नगरी विद्याधर तणी ॥ ५ ॥ वसे विप्र विद्याना धणी, वनिता रूपे रतीश्रामणी ॥ वणिक करे मोटा व्यापार, वस्तुना नाना अंबार ॥ १० ॥ बावन वीर तणां त्यां स्थान, वित्तधारीनां मुख पर वान ॥ नव नारु नव कारु लोक, वस्त्र पड्यां पचरंगी थोक ॥ ११ ॥ विद्या शक्तिए चाले आकाश, विमान रचना जाणे आवास ॥ तीर्थयात्रा करतां दिन जाय, पुण्ये प्राणी निगमे श्राय ॥ १२ ॥ तिए नगरी जीतारि नूप, अद्भुत इंद्रं सरिखुं रूप ॥ न्यायमारगमां चाले राय, रामचंद्र उपम कदेवाय ॥ १३ ॥ राय तणी राणीनुं नाम, पवनवेगाथी वाधे काम ॥ दंपति बेहुने वाध्यो नेह, हरख थाये जिम यावे मेह ॥ १४ ॥ रूपे अद्भुत दीसे नार, इंद्राणी जाणे थवतार ॥ बेने धर्म तो वे राग, केवली जाख्यो पाले माग ॥ १५ ॥ एम जोगवतां सुख अथाग, यावी उपन्यो कर्मने जाग ॥ राणी कुखे थया नव मास, प्रसव्यो पुत्र सफल थइ आश || १६ || Jaव महोठव कीधा घणा, साजन श्राव्या पोता तथा, जमाड्या जोजन पक्वान, ते साखे थाप्यं
-
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरि
1
॥
अनिधान ॥ १७ ॥ मनोवेग नामे कुमार, देखी रंजे सहु नरनार ॥ नणी गणीने खंग? प्रौढो थयो, मात पिता मन आनंद नयो ॥ १७ ॥ शीखी विद्या नवनवी रीत, मी बोले वाधे प्रीत ॥ वन उपवनना खेले ख्याल, जीव नाषाना जोवे फाल ॥ १५ ॥ जमी मूलीना जाणे नेद, मंत्र जंत्रथी पूरे उमेद ॥ ढाल नेमविजये ए कही, प्रथम खंडनी पदेली सही ॥२०॥
मुहा. जो वैताढ्य गिरि थकी, उत्तर श्रेणि कहाय ॥ दश जोजन पूरे कयां, साठ नगर) समुदाय ॥१॥ एक एक नगर प्रत्ये कह्यां, कोम कोम बे गाम ॥ मानव लोक वसे तिहां, विद्याधरनां गम ॥२॥ साठ नगरमां शोजतुं, नयर विजयपुर नाम ॥ लंक समोवम जाणीए, अलखत ने श्रनिराम॥३॥प्रजास नामे नूपति, पाले राज अखंग॥ मान्य करे मिथ्यातने, पापी मांहे प्रचंड ॥ ४॥ विपुला राणी तेहनी, सुख जोगवतां| सार ॥ पुत्र थयो एक एहवो, पवनवेग कुमार ॥५॥ जोवन पाम्यो अनुक्रमे, मिथ्या-|||॥२॥ मतनी बुकि ॥ माने नहीं जिनधर्मने, एहवी जेनी शुफि॥६॥ विद्या तण) शकते करी, उमी जाय आकाश ॥ फिरतो हरतो यावी, मनोवेगनी पास ॥७॥बे जण
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
बेठा एकता, बहु बंधाणो नेह || नित्य घावे एकेकने, फरी फरीने गेह ॥ ८ ॥ वातो विविध प्रकारनी, करता महोमद ॥ धर्म वखाणे आपणो, अन्यो अन्य उछाह ॥ ॥ ढाल बीजी.
रे जीवमा दीधानां फल जोय - ए देशी.
मनोवेग कढे सांजलोजी, जैनधरम जग सार ॥ केवली जाषित निरमलोजी, उतारे। जव पार रे जाइ ॥ धरम समो नहीं कोय ॥ ए की ॥ १ ॥ दान शीयल तप जावनाजी, धर्मना चार प्रकार ॥ जीवदया जतने करीजी, जे पाले नरनाररे ॥ जा० ध० ॥ २ ॥ सुक्ष्म बादर जाणीएजी, त्रस थावर दोय जीव ॥ सन्नी असन्नीजी, संमुर्छिम गर्जज हीवरे ॥ जा० ध० ॥ ३ ॥ अनेक भेद बे धर्मनाजी, कहेतां नावे पार ॥ तव पवनवेग बोलीजी, हुं नवी जाणुं लगाररे ॥ जा० ध० ॥ ४ ॥ त्यांथी बे जण आवी आजी, पुष्पदंत गुरु पास ॥ अध्यारु बे यादिनोजी, छात्र जणावे तासरे ॥ जा० ध० ॥ ५ ॥ जणवा बेठा बे जणाजी, ज्योतिष वैदक सार ॥ मंत्र मंत्र जमी मूलीजी, वेद शास्त्र पाररे ॥ जा० ध० ॥ ६ ॥ जणी गणी प्रौढा थयाजी, पाम्या परम यानंद ॥ मनोवेग श्रावक जलोजी, पवनवेग मिथ्या कंदरे ॥ जा० ध० ॥ ७ ॥ विमाने बेसी दोय
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
खक ?
वर्मपरिचालीश्राजी, रामत क्रीमारे काज ॥ कुल पर्वत वाव्यो नदीजी, सर अह गिरि सीर-
ताजरे ॥ ना० ध० ॥ ७ ॥ गीत नृत्य गाता फरेजी, स्नान नोजन तंबोल ॥ हास्य विनोद कौतक करेजी, एक एकनो राखे तोलरे॥ ना ध० ॥ ए ॥ एक दिन मनोवेग बोलीउजी, सांजल नाश् तुं वात ॥ थापण कीजे पारखंजी, धर्म पापनी तांतरे ॥ ना ध ॥ १० ॥ सारनूत संसारमांजी, जैनधरमनोरे जोग॥जो तमे ते पालो सहीजी,पामशो| बोहोलो नोगरे ॥ना ध॥ ११॥ पवनवेग एम सांजलीजी, बोल्यो नहीं मुख वाण ॥ जाणे मनमां प्रीतमीजी, तुटे बोदये ताणरे ॥ ना ध०॥ १२॥ मनोवेग मन चिंतवेजी, बुद्धि करुं को देव ॥ मिथ्या धंधे ए पड्योजी, नवी माने जिनदेवरे ॥ नाण ध॥ १३ ॥ विमाने बेसी एकलोजी, आकाशमारग जाय ॥ अढीहीप मांही फिरेजी जात्रा करे जिनरायरे ॥ ना० ध० ॥ १४ ॥ अनुक्रमे फरतो आवीउजी, मालव देश मोकार ॥ उजेणीने परिसरेजी, विमान थंन्यु तेणी वाररे॥ ना ध० ॥१५॥ वासुपूज्य मुनि केवलीजी, दीग त्रिजुवन वाम ॥ हेगे श्राव्यो उतरीजी, वांद्या मुनिने तामरे ॥ ना ॥ ध ॥ १६ ॥ धर्मकथा मुनिवर कहीजी, सांजली हरख्यो राय ॥ श्रावकव्रत सुधां लहीजी, वली वली प्रणमे पायरे॥ना ध० ॥१७॥ कर जोड़ी करे विनतिजी,
॥३॥
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वामिन् तुं अवधार ॥ पवनवेग मुज मित्र जी, तेहनो कहो विचाररे ॥ ना ध०| ॥ १७ ॥ नव्य जीव ने तेहनोजी, किंवा अन्नव्य नर एह ॥ कदाग्रही माने नहींजी, जिनवर वचनज तेहरे ॥ ना ध० ॥ १५ ॥ मुनिवर कहे तुमे सांजलोजी, मनोवेग| राय सुजाण ॥ नेमविजय ढाल बीजीएजी, प्रथम खंमनी परमाणरे ॥ ना० धम् ॥॥
उदा. पवनवेग तुज मित्र जे, उत्तम जीव ने तेह ॥जव्य जीव करी जाणजो, एमां नहीं संदेह । १॥ ते माटे तमने कडं, एनो एक उपाय ॥ पामलीपुर दक्षिण दिशे, तुमे जाजो| तिणे गय ॥२॥ बिडं बंधव मली एकग, अपूरव करीने वेश॥वादी लोक वसे तिहां, उरधर दक्षिण देश ॥३॥ ब्राह्मण नाती मली तिहां, जाग जग्ननो ठाम ॥ श्राडंबर अधिके करी, करे होमनां काम ॥४॥ होमे हिंसा के घणी, बकाय विराधन थाय॥ |पंचेंजि जीव मोटका, होमे अग्निमांय ॥५॥ त्यां तुमे वाद करो जइ, विप्रना उतारो नाद॥ लान थशे तुमने घणो, जब सांजलशे साद ॥६॥ गुप्त राखजो जिनधरम, नाखजो मरम पुराण ॥ श्रगम थर थापा जश, केजो कथा कुपुराण ॥७॥ पवनवेग
१ अहंकार.
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
| खंग र
मिपरितुम मित्रनो, जाशे मन संदेह ॥जैनधरम सादर करी, पालशे तव सही तेह॥
वाणी मुनिनी सांजली, हरख्यो हयमां मांय ॥ प्रणमीने चाल्यो तुरत, बेसी विमान ॥४॥
उबांय ॥ ॥ मन चिंता करतो घणी, बंधव मलशे कयांहिं ॥ जोवाने फिरतो फिरे. देश विदेशज त्यांहिं ॥ १० ॥ एम करतां आवी मल्यो, पूर्वी कुशलनी वात ॥ मोहे विंध्या बे जणा, थया हरख सुख सात ॥ ११॥
ढाल ३ जी. फतमल पाणीमा गश्ती तलाव, लश्कर आयो हामा रायरो-ए देशी. वीरा मारा पवनवेग कहे वात, श्राज मुने हरख वधामणा ॥ वीरा मारा जोयां में गमोगम, साजन पूच्या में तुम तणा ॥१॥ वीरा मारा आवी मल्या मुने श्राज, एता दिवस तुमे क्या हता ॥ वीरा कहो धुरथी ते वात, कीहां जश्श्राव्या थया बता॥ वीरा ॥२॥ वीरा मनोवेग कहे तव एम, देश विदेशे ढुं जन्यो।वीरा कौतिक दीगं अनेक, अढीछीप माहे हुँ रम्यो । वी० ॥३॥ वीरा काश्मीर अने गुजरात, गौम चौड सोहामणां ॥ वीरा नोट बाजीर सोजीर, कुंकण कलिंग कनोज तणां ॥वी॥४॥ वीरा मलबार सोरठ हालार, हीरंजज मुलतान जाणीए ॥ वीरा अंग वंग कुल्यंग ति
॥४॥
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
व्यंग, मरुधर देश वखाणीए ॥ वी० ॥५॥ वीरा वागड लाट कर्णाट, कानड मेवाम माळवो ॥ वीरा वैराट वच्छ कच्छ नाम, कजळ नेपाळ जाळवो ॥ वी० ॥३॥ वीरा कणवीर कानन देश, काबील वीव्यंग मेवातमां ॥वीरा गंधार वैदर्जनो गम, बबर कामरु जातिमां ॥ वी० ॥ ७॥ वीरा जोतां जोतां जग मांदे, फरतो दक्षिण दिश श्रावी ॥ वीरा पाडलीपुर नगर मांदे, दीठे हरख बहु व्यापी ॥वी॥ ॥ वीरा बार जोयणने विस्तार, नयर पाडलीपुर जाणीए ॥ वीरा चार पोळ तुंग प्राकार, गढ मढ कोरणी वखाणीए ॥ वी० ॥ ए ॥ वीरा चोराशी चोवटां बजार, हाटनी श्रेणी सोहामणी ॥ वीरा सात नूमि मोहोल आवास, गोख ऊरुखे चितरामणी ॥वी॥१॥ वीरा माणिक मोती व्यापार, रतन प्रवालानी नहीं मणा ॥ वीरा हीरा जवेर सुवर्ण, वणिज चलावे || वणिक घणा ॥ वी० ॥ ११॥ वीरा ब्राह्मण वरण विशेष, विद्या नणावे विद्यारथी ॥ वीरा वेदीया वेद विचार, सांजले बेग खारथी ॥वी॥ १२ ॥ वीरा यज्ञ करी मांड्या याग, मध मदिरा दूध दही घणां ॥ वीरा ज्वलित खारेक खांड, सरसव घृत टोपरां तणां ॥ वी० ॥ १३ ॥ वीरा जोगी तापस संन्यास, तेहना मठ रलियामणा ॥ वीरा देवल दीसे अनेक, ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तणां ॥ वी० ॥ १४ ॥ वीरा हनुमंत गौरी
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
परि०
॥५॥
गणपति, यक्ष शेषनाग ने नागणी ॥ वीरा जवानी खेतरपाल, चंडी चामुंडी नरसिंह धणी ॥ वी० ॥ १५ ॥ वीरा गम ाम देवल पोशाल गीत नृत्य वाजिंत्र घणां ॥ वीरा वादी विविध प्रकार, वेद निर्घोष बोले जणां ॥ वी० ॥ १६ ॥ वीरा नक्ति करे जोला लोक, घरघर पुराणनी वारता ॥ वीरा जंगम साज सैव, नाट जोजक दिल गरता ॥ वी० ॥ १७ ॥ वीरा नगर विलोकतां वार, लागी कतुहल जोवतां ॥ वीरा बोल्यो पवनवेग मन, केम चाल्युं मने मेलतां ॥ वी० ॥ १८ ॥ वीरा मित्रनां लक्षण एह, सुख दुःख नेलां ते जोगवे ॥ वीरा प्रीत बंधाणी होय जेह, रुडे प्रकारे जोगवे ॥ वी० ॥१८॥ वीरा मित्राइ साची तेह, तेडीने साथै संचरे ॥ वीरा नेमविजय कहे एम, ढाल त्रीजी दिल एम ठरे ॥ वी० ॥ २० ॥
उदा.
पयने पाणीनी परे, प्रीत रीत कही एम ॥ स्वारथ कीधो तुम तणो, कूडो दीसे | प्रेम ॥ १ ॥ दुष्ट हृदयना ठो धणी, बोलो मीठा बोल ॥ निश्वे निरवाहो नहीं, कोमीनो | तुम तोल ॥ २ ॥ विश्वासघाती होय जे, कृतघ्न कहीए तेह || गुण अवगुण जाणे नहीं, डुरजनना गुण एह ॥ ३ ॥ जाइ तुमे खोटा सही, (मुज) मूकी जोया देश ॥
खंग १
॥ ५ ॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाडलीपुर जोवा तणी, मुजने होंश विशेष ॥४॥ देखामो नहीं जो तुमे, रुसणो करशं। |एम ॥ श्रमे जा\ घर आपणे, मुख नवी जोशुं तम ॥५॥ मनोवेग बोल्यो तिहां, मित्रजी म करो रोष ॥ जाशुं आपण बे जणा, जो जे तुमने शोष ॥६॥ पामलीपुर तुम दाखवू, हश्डे राखो हाम ॥ कशी न करशो शोचना, करशुं सही ए काम ॥ पवनवेग ते सांजली, थयो मन्न रखियात ॥बे जण बेसी एकग, करवा मामी वात, ॥ ॥ निज घर जश् परवारीने, चालो जइए तांहिं ॥ शोने ने शणगारथी, अजुत| तरु उपगंहिं ॥ए॥ परठण करीने उठीश्रा,थाववा निज श्रावास ॥ मनोवेग लटपट करी, मित्र तेडी तास ॥१०॥
ढाल चोथी.
ते तरियारे नाइ ते तरिया-ए देशी. ___ उष्ण पाणीए स्नान करावी, देवपूजा कीधी रंगेरे ॥ चुथा चंदननी अर्चा कीधी, अनोपम वस्त्र पहेयां अंगेरे ॥ प्रीतिनी रीत जुलं तुमे ना ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ नोजन करवा बे जण बेग, नेला साजन मांदेरे ॥ पीरसवा मांडी सुखडी सारी,
१ठराव.
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
परि०
॥६॥
अनोप अधिक उठांदेरे ||ी ||२|| घेवर मोतीचूर ने लाऊ, खाजां खुरमां ने पूरी रे ॥ साटां फीणी हेसमी मरकी, जलेवी मेसुब चूरीरे ॥ प्री० ॥ ३ ॥ सेव सुंहाली लापसी ताजी, खीर खांडांवां केलांरे ॥ अखोड डाख ने खजुर खारेक, सुगंधी शाको लारे ॥ प्री० ॥ ४ ॥ कुरदाली दधि दूध उपर, घृत जानी परनालरे ॥ सालेवां पापड तली बे वमी, जमी उठ्या तत्कालरे ॥ प्री० ॥ ५ ॥ पान सोपारी लवींग एलची, मुख तंबोल दीघां वारुरे ॥ कपुर वास्यां नीर मंगावी, शौच थया चालवा सारुरे ॥ प्री० ॥ ६ ॥ चंदन कपुर केशर घोली, अंग विलेपन की धरे ॥ कुसुममाला पहेरी कोटे, मुहूरत वेला लीधरे ॥ प्री० ॥ ७ ॥ साज लेइने सामग्री कीधी, विमानमां बेसी तामरे ॥ याव्या ततक्षण पामली परिसर, दीवां मनोहर वामरे || प्री० ॥ ८ ॥ उतरी देग विमान मांहेथी, पहेर्यां वस्त्र ते साररे ॥ माथे मुकुट काने कुंमल, कोटे मोतीनो दाररे ॥ प्री० ॥ ए ॥ बांदे बाजुबंध बेरखा बांध्या, मुद्रिका कटी कंदोरारे ॥ पाये मोजडी सोल शणगारे, वशीकरण पासे मोहोरारे ॥ प्री० ॥ १० ॥ एकने मस्तक खडनो जारो, | बीजाने मस्तक काठीरे ॥ हाथ कोहामो दातरमां लेश, बीजा हाथमां लाठीरे ॥ प्री०
१ जात दाल.
म १
॥ ६॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ११ ॥ रूप कबाडीनो करी याव्या, नगर प्रवेश ते कीधोरे ॥ रूप जोश्ने अचंबो पाम्या, लोकने याशिष दीधोरे ॥ प्री० ॥ १२ ॥ जेरी वजाडी मोटे साढ़े, घंटानाद सुणायोरे ॥ पूरव दिशे वादीनी शाला, जोवा अनेक लोक आयोरे ॥ प्री० ॥ १३ ॥ सिंहासन बेटा बे जाइ, अचरिज सहुने खावेरे ॥ गुण गिरुश्रा बेहु पुरुष नोंपम, किहांथी श्राव्या किहां जावेरे ॥ प्री० ॥ १४ ॥ सारा नगरमां शब्द सुपायो, नेर घंटानो नादरे ॥ द्विज सघला सांजलीने श्राव्या, करवा विद्यानो वादरे ॥ प्री०॥१५॥ वादी कहे मे वाद करीशुं, ज्ञानी कहे जोशुं वेदरे ॥ एहने पूढशुं जो तुमे जाणो, तो कहो मांहेलो जेदरे ॥ प्री० ॥ १६ ॥ जोतिषी जंपे जोष मारो, जो काढो कोइ | दोषरे ॥ सवालाख ज्योतिषनुं मान बे, केतोक केशे जोषरे ॥ प्री० ॥ १७ ॥ जट्ट कहे श्रमे जारत मांहेलो, गहन अरथ पूर्वी लेशुंरे ॥ कवि बोले मे बंदनी जाति, पूढीने | देशोटो देशुंरे ॥ प्री० ॥ १८ ॥ व्यास वदे श्रमे पूराण वातो, जाएं केम हवे जाशेरे ॥ कामी कहे मे कामने जाएं, श्रम यागल खष्ट थाशेरे ॥ प्री० ॥ १७ ॥ वैद कहे अमे नाडीनी विधिमा, जांगशुं एहना होमरे ॥ व्याकरणी कहे वाद ते श्रमशुं, केम करशे पमशे खोडरे ॥ प्री० ॥ २० ॥ पाठक पंड्या बोल्या ततखिणे, ढीक पाटुना
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरि० प्रहाररे ॥ हुंहुंकार करता याव्या, अनुक्रमे सहु तेषी वाररे ॥ प्री० ॥ २१ ॥ क्रोध मान माया लोज जरीया, राग द्वेषनां गेहरे ॥ पहेला खंडनी ढाल चोथीमां, नेमविजय कहे एहरे ॥ प्री० ॥ २२ ॥
॥ ५ ॥
उदा.
तखत उपर बेठा चढी, दीठो सहु परिवार ॥ थालोचे मनमां तिहां, ए कुण कहीए कुमार ॥ १ ॥ श्रनूषण अधिके करी, पहेर्या सोल शणगार ॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र ए, अथवा देवकुमार ॥ २ ॥ श्रन्यो अन्य सांसे पड्या, जक्ति करे बहु जेव ॥ जगन्य जागना होमयी, श्राव्या सही ए देव ॥ ३ ॥ पुण्य आपणां पाधरां, आव्या | परमेश ॥ तुष्टमान याशे सही, धर्या अनोपम वेश ॥ ४ ॥ कोइ कहे ए बे सही, नारायणनुं रूप ॥ श्रापण सहुने तारशे, पड्या बीए जवकूप ॥ ५ ॥ कोई कहे महादेवजी, श्राव्या आपण सेव ॥ हरहर मुख जपे सदु, सदुधी अधिको देव ॥ ६ ॥ कोइ कहे ब्रह्माजी तणो, अनुपम रूप आकार ॥ ब्रह्मलोकधी श्रावीया, तारे सहु नरनार ॥ ७ ॥ कोई कहे ए ड बे, को कहे सूरज चंद्र ॥ को वासी पातालनो,
१ संशयमां.
खंग १
॥ ७ ॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
शेषनाग नागें ॥॥ हिज पनीया सांसे सह, प्रणमे वारोवार ॥ नाव जगति || करतां घणी, कलना न पमी लगार ॥ ए ॥ विप्र एक बोल्यो तिहां, सघला दीसो मूढ ॥ प्रणति करो जो तमे घणी, गुण नवी जाणो गूढ ॥ १० ॥ विष्णु रूप जग ए नहीं, शंख चक्र नवी पास ॥ ईश्वरनुं रूप केम कहो, त्रिशुल त्रिलोचन तास ॥११॥ चार वेद ब्रह्मा मुखे, श्रझानी तुमे लोक ॥ शुज शणगारो देखीया, काष्ठ उपाडे थोक ॥१॥
ढाल पांचमी. श्रा चित्रशाली था सुख सज्यारे, जो मन माने तो करो लजारे-ए देशी. अकल सरूपी दीसे डे एहरे, करीने विचार पूढगुं देहरे ॥ साच जूठनुं पारखं| कीजेरे, नहींतर एउने देशोटो दीजेरे ॥१॥ ब्राह्मण सघला बोल्या वाणीरे, कवण | नगरीथी आव्या जाणीरे ॥ कवण जातिना लो तुमे नारे, किण कारण श्राव्या रूप|| बनारे ॥२॥ कवण धरम करो डो साररे, कवण शास्त्र जएया गुण धाररे ॥ वाद | करो अमशुं निरधाररे, तो श्रम उपजे हरख अपाररे ॥३॥ मनोवेग कहे सांजलो विप्ररे, अमे बीए कबामी दीप्ररे॥ वाद कहो केम कीजे तुमशुरे, तमे सहु श्राव्या | मलीने श्रमशुंरे ॥४॥न्याय पुराणनी नवी जाणुं वातोरे, धरमाधरमनी न बुर्छ तांतोरे॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम ?
॥
७
॥
मपरिवरान मांहे रोकमा जेम जीवरे, ते सरिखा अमे ९ सदैवरे ॥५॥ द्विजवर तव कोपा-
नल थाएरे, जो नवी जाणो तुमे बेहु कांएरे ॥ तो घंटानो केम कीधो नादरे, नेरी वजाडी पाड्यो तुमे सादरे ॥६॥ गर्व घणो आणी मन मांहीरे, ऊंचा चढी बेग बो| उछांहीरे ॥ अति घणो कीधो तुमे श्रन्यायरे, नरम थ बोलो इवे न्यायरे ॥७॥ मनोवेग कहे श्रमे एमरे, नाद कीयो ते कौतुक जेमरे ॥ ते माटे तमे सहु मली श्राव्यारे, तुमने श्रमे बे दिलमां नाव्यारे ॥७॥ जो न गमे सिंहासन पर बेगरे, तो अमे उतरी बेसुं हेगरे ॥रीस न करो श्रमने तुमे देवरे, ज्यांची आव्या जाशं ततखेवरे ॥ ॥ राजी थश्ने विप्र कहे नारे, रूप देखीने कहीए चित्त लारे ॥ वस्त्र थानूषणे दीसो ताजारे, मीगबोला मोटी माजारे॥ १० ॥ नीच काम कां करो कुमाररे, खड इंधणना श्राणो नाररे ॥ साच कहो जूतुं मत बोलरे, जेहवा रूपे डो तेहवो तोलरे ॥ ११ ॥ नाति जातिनो कुल मत लोपोरे, साचुं कहेतां रखे तुमे कोपोरे ॥ मनोवेग कहे तुमे बो मोटारे, न्याय पुराणमा श्रमे बुं खोटारे ॥ १२॥ नीच तणां श्रादयाँ श्रमे कामरे, केम पुराय विवादे हामरे ॥ बहु बलवंता संगाते वादरे, कीजे तो वधे विखवादरे॥ १३ ॥श्रमे एकाकी परदेशी लोकरे, जे बोर्बु ते सर्वे थाए फोकरे॥
-
॥७॥
-
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
NIसगां साजन नहीं हां कोयरे, तो श्रमारो साखी कोण होयरे ॥१४॥ ब्राह्मण सह | बोख्या तेणी वाररे, तुमे बेहु लाइ देवकुमाररे ॥ साची वात कहेजो निरधाररे, कयां पुराण साचां सिरदाररे॥ १५॥ न्याय नीति साची कहो वातरे, असत्य नाख्याथी होशे घातरे ॥ मनोवेग कहे सांजलो वाचरे, घात होये बोलतां साचरे ॥१६॥ सोल मूठी नर कडो एकरे, साच बोड्याथी पाम्यो ठेकरे ॥ गरदन उपर सोल मूठ खाधीरे,ते नर नीत रह्यो तिहां बांधीरे ॥१७॥ हिज सघला तव कहे कर जोमरे, श्रमने सांजलवानो | कोडरे ॥ सोल मूठीया नर तणी वातोरे, साच बोव्याथी केम पाम्यो घातोरे ॥१॥ मनोवेग बोल्यो गुणवंतरे, मलबार देश देशोमां संतरे॥ मंगलपुर नामे गामरे,वृक्ष । वाडीए करी धनिरामरे ॥रणा अगर तगर उंचा तालरे,श्रीफल फोफल फणस तमालरे ॥ मरी लवींग सहकारनां गमरे, धनवंत लोक वसे तेणे गामरे ॥२॥जमर नामे कुणबी ने एकरे, रूपणी नामे नार सुविवेकरे॥पहेला खंडनी पांचमी ढालरे,नेमविजय कहे थ उजमालरे ॥१॥
उदा. मधुकर नामे पुत्र थे, क्रोधी मूरख रीसाल ॥ निज घरनुं धन खोस्ने, विणस्यो
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग
मपरिखेती माल ॥१॥ एक दिन बापे पुत्रने, मोटी कीधी रीस॥कोप चढावी चालीयो, गयो
गाम दश वीश ॥२॥ श्राहीर देशमांश्रावीयो, पिंपल नामे गाम॥ धान खेत्रनां आणी-| ने, (खला) कीधां गमोठगम ॥३॥ मधुकर कहे लोको जणी, (आ)धान तणा अंबार ॥ |घ चणा चोला घणा, मग मठनो नहीं पार ॥४॥ देश तुमारामां सही, निपन्यां एहवां धान ॥ देश अमारे एहवां, निपजे फोफल पान ॥५॥मरी सवींग ने एलची, श्रीफल केला जाख ॥ अनेक वस्तु उपजे, आंबा केरी शाख ॥ ६ ॥ वात मधुकरनी सुणी, अचरिज पाम्या लोक ॥ एक कहे नवी मानीए, जे बोलेते फोक ॥ ७॥ पटेल तलाटी एम कहे, एहने कीजे केम ॥गकोर तेडी पूबीए, करशुं कदेशे जेम ॥॥ कोप करी गकोर कहे, खोडे' घालो एह ॥ वेदो नाक पटेल के', तलाटी बोले तेह ॥ए हाथ पाय दो परा, जूगबोलो लोक ॥ तेहराखवो नवि घटे, कलंक मूके फोक ॥१॥
ढाल ही. __ राम सीताने छीज करावेरे, घणसे हाथ खा खणावेरे-ए देशी. देवो शेठ बोल्या दयावंतरे, स्वामी एह दीसे वे संतरे ॥ चीजडा चोरने बूसट १ हेममां.
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
दी जेरे, एवडो ए काम केम कीजेरे ॥ १ ॥ श्राव ढींक गरदन मांहींरे, दीजे वात कही सत तांहींरे ॥ राजा श्रादे वात सदु मानीरे, दीधी श्राव ढींक तेढ्ने बानीरे ॥ २ ॥ मधुकर चिंतवे मन मांहींरे, साच बोल्ये खाधो मार यांहींरे ॥ जीवतो निज पूर जो जाउंरे, तो एहवो मार नवी खाउंरे ॥३॥ एम चिंतवी चाल्यो तेी वाररे, वेगे यायो देश मलबाररे ॥ लवींग एलची मरी देखीरे, लोको प्रते कड़े तव चेखीरे ॥ ४ ॥ सांजलो तुमे मलबारी लोकरे, वयण मारुं मत जाणो फोकरे | एक श्राहीर देश वे एहवोरे, में जइ जोयो ते कहेवोरे ॥५॥ घटं साली चणानी राशरे, मग मठ चोला जव ते खासरे ॥ एलची ने लवींग सोपारीरे, शुं करीए जुवो चित्त धारीरे ॥ ६ ॥ मलबारी लोको सुणी कोप्यारे, मधुकरनां वयण ते लोप्यारे ॥ पूरव रीति तेणे कीधीरे, आठ मूठीनी मार ते दीधीरे ॥ ७ ॥ खोटाबोलो नर बे एहरे, अन्यो अन्य कहे सहु तेहरे ॥ लोक यागे कही सत्य वातरे, सोल मूठीनी खाधी घातरे ॥ ८ ॥ मलबारी लोके तेणे ठामरे, सोल मूवी धराव्यं नामरे ॥ मनोवेग कहे विप्र आगेरे, साच बोल्ये वयर ते जागेरे ॥ ए ॥ निज निज देश तणी जे वाचरे, अवर | देश न माने साचरे ॥ आपणा मत चागल जे वातरे, न गमे कोइक थाय उत्पातरे
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
परि
१०॥
॥ १०॥ तेम तुम आगे कहीए वातरे, ते उथापो साची होय ख्यातरे ॥ एम करतां उपजे विरोधरे, अति वाधे मन मांही क्रोधरे ॥ ११॥ विप्र बोल्या सांजली वाणीरे, उपजे नहीं जुःखनी खाणीरे ॥ एवो अज्ञानी नथी यांहि कोरे, कदेशे वात तुमारी जोरे ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे तुमे वादीरे, वाद करवाने उन्मादीरे ॥ शंका श्रम मन मांहे एहवीरे, मानो नहीं सही तेहवीरे ॥ १३ ॥ विप्र सांजलीने तव जंपेरे, साच कह्याथी कुण कंपेरे ॥ साच तणो जे कह्यो गूढरे, अममां नहीं कोई मूढरे ॥१४॥ मनोवेग अडो तुमे जाणरे, वात कहो साची परमाणरे ॥ कहेजो कोश्वात विचारी रे, कोश न करे मारी तारीरे ॥ १५ ॥ मनोवेग कहे सहु साथरे, तुमे सांजलो विद्याना आथरे ॥ मूढ उपर कथा कहुँ जेहरे, जूठ बोल्या उपर तेहरे ॥ १६ ॥ कदे| कथा ते तो रुडीरे, मत जाणो तुमे कोश् कुडीरे ॥ कंगपुर एहईं एक बजेरे, नगर अवरमांहीं विराजेरे ॥ १७ ॥ प्रजापाच मामे तिहां राजारे, तेहनी ने मोटी माजा रे॥ ब्राह्मण वरणना वासरे, वेद जणावे अति खासरे ॥ १७ ॥ नूतमति नामे .. एकरे, विद्यावंत विनय विवेकरे ॥ वरस पचास थयां वारुरे, निरधनमां सिरदारुरे
१ नंमार.
॥१०॥
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ १५ ॥ समस्त मलीने परणाव्योरे, जगनदत्ता नारीने लाव्योरे ॥ पहेला खंगनी ढाल ते बहीरे॥ नेमविजये जाखी ते मीठीरे ॥
मुढा. | घर श्राप्यु सबले मली, मंडावी निशाल ॥ ब्राह्मण पुत्र नणे घणा, जमण दीये | कुरदाल ॥१॥ नूतमति ब्राह्मण जलो, जगन जाग करे होम ॥ नगरलोक माने घj, राखे मनमां जोम' ॥॥ जगनदत्ता नारी नणी, क्रीडा उपर नाव ॥ गरढो मोह्यो ने घणो, खेले अवसर दाव ॥३॥रात दिवस सुख जोगवे, विद्यानो श्रन्यास ॥ देशी परदेशी घणा, माने वैदज व्यास ॥४॥ श्राव्यो एक विद्यारथी, देवदत्त ने नाम ॥ नूतमतिने वांदीने, बेगे जर एक गम ॥५॥ नूतमतिए पूर्वीयुं, तुम श्राव्या कुण काज ॥ रूप सोजागे पागला, कहो अमने महाराज ॥६॥ देवदत्त तव विनवे, बे कर जोमी ताम ॥ श्रम श्राव्या जणवा जणी, तुम पासे सुण खाम ॥७॥ नूतमतिए राखीयो, मांड्यो शास्त्र अन्यास ॥ वेद नणावे निरमला, रात दिवस ते पास ॥ ॥ जगनदत्ता नारी थकी, करतां व्होली हास ॥ जोड मली बिहु सारखी, . १ जोर.
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
परि०
११ ॥
हसतां दास्य विलास ॥ ए ॥ इम अनुदिन ते बेदुने, बाऊयो बोहोलो नेह ॥ कांति कला वाधी घणी, रूप छानोपम देह ॥ १० ॥
ढाल सातमी.
सीता ते रूपे रुडी, जाणे थांबा काले सूडी हो सीता ति सोहे-ए देशी. एक दिन याव्या जण चार, मथुरां नगरीथी तेणी वार हो ॥ जावे जवि सुणो ॥ नूतमति तेरुवा सारु, विनति करे श्रावी ते वारु हो ॥०॥ १ ॥ पधारो अमारे देश, सेवा चाकरी करशुं विशेष हो ॥ जा० ॥ अश्व अजामेध थाशे, मोटो जगन जाग कहेवाशे ॥ जा०||२|| तुम विना ते कोण जाणे, तेणे कारण मेल्या टाणे हो ॥ जा०॥ तिहां आव्या लोक अनेक, कोण जाणे जगन विवेक हो ॥ जा० ॥ ३ ॥ जूतमतिए हा वाली, साच वेपनी दीधी ताली हो ॥ जा० ॥ नारीने तेमी एकांते, शिखामण दे जली जाते हो ॥ जा०॥४॥ घर मांही पोढजो राते, लंडन लागे कोइ वाते हो ॥जा० ॥ ते तुमे मत करो काम, फरशो दरशो मां कोइ ठाम हो ॥ जा० ॥ ५ ॥ जोवनमां जोखम लागे, मोह वाधे मदन बहु जागे हो ॥जा० ॥ श्रति घणुं शुं कहुं तुमने, मास चार याशे तिहां श्रमने हो ॥ जा० ॥ ६ ॥ देवदत्तने बोलाव्यो, घर ए तुमने जलाव्यो हो ॥
खंग १
॥ ११ ॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
ना॥ शिखामण कहुं बुं सारी, एकली घरमां ने नारी हो ॥ना॥७॥ जजो गण... जो ने रहेजो,मरजादे करीने वहेजो हो ॥जाराते श्रोटले श्रावी सूजो, तेमशो मां| कोइ न पूजो हो ॥ना॥ ७ ॥ एम कहीने चाल्यो साथ,एक एकना ग्रहीने हाथ हो
ना॥ मथुरा नगरीमा पहोता, त्यां सहु साथ वाट जोता हो ॥ना॥ ए॥ मान दश |बेसाड्या गम, सहु लाग्या श्रापणे काम हो ॥ना॥ घरे जगनदत्ता नारी, नव जोवन
बालकुमारी हो ॥ना॥ १० ॥ देवदत्त विद्यारथी तेह, मांड्या घणो तेहथी सनेह हो |॥नाबोले जगनदत्ता नारी, मुजशुं राखो एकतारी हो ॥ ना॥११॥ गरढो गयो गाम,
आपण बेहुनुं थयुं काम हो ॥ ना॥अस्थी नारीने जाणी, देवदत्त बोले हवे वाणी हो ॥जा॥१२॥गोराणी नाम कहावे, तेणे मनमांशंका आवे हो ॥ ना०॥ शुं करीए कर्मनी |केम वातो, मेलीए वयण तुम जातो हो ॥ना॥ १३ ॥ हरि हर ब्रह्मादिक देव, कामे |पीडाणा ततखेव हो॥ना॥श्रापण बीए मानवी देह,त्रिकरण केम राखे तेह हो ॥ला ॥१॥तुम वयण केम लोपाए, ब्रह्महत्या मुजने थाए हो॥नाा वेधक वयणे एम मलीयां, एक एकनां हृदयश्री जलीयां हो॥ ना० ॥ १५ ॥ गोराणी देवदत्त बात्र, क्रीमा करवा
१ गरजाउ.
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२॥
लाग्या सुख पात्र हो ॥ना बेहुनो सरखो मल्यो जोग, राति दिवस माणे लोग हो । ना॥१६॥ एम करतां चारे मोसे,गया बेहु जण बेसी विमासे हो ॥ना॥ श्रावशे तुम जव प्यारो, तव मुजने मेलशो न्यारो हो ॥ जाण॥ १७ ॥ एकांते बेहु जण बेसी, वात करतां नारीव्हेसी हो ॥ना॥ तुमे दिलगीर मत था, मेधुं नहीं जीव जो जाउँ हो ।
ना॥१७॥प्रपंच करुं एक एहवो, आपण नेलां रहुं तेहवो हो ॥ना तो मुजने साची जाणो, तुमे पुःख हरए मत श्राणो हो ॥ जाण॥ १५ ॥ जगनदत्ता तव चाली, मध्य रात्रि काली करवाली' हो ॥नामा पहेला खमनी सातमी ढाल, नेमविजय कहे ततकाल हो ॥ ना ॥२०॥
उहा. . मसाणमां गश् एकली, श्राण्यां ममां बे रंग ॥ एक मूक्युं निज ढोलीए, अवर उंटला चंग ॥१॥धन सघलो काढी लीयो, घरे लगावी आग ॥ मध्य रात्रि दो नीकल्यां, चाव्यां उत्तर जाग ॥२॥ मंदिर लाग्यु अति घणु, मलीया लोक अपार ॥ करता हाहाकार त्यां, सर्व बट्युं तेणी वार ॥३॥ जल बंटीने उलव्यु, बख्यां दीगं
१ तरवार.
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
बेहु जिन्न ॥ शोक करे ब्राह्मण घणा, थया खेदथी खिन्न ॥४॥राम राम सहु उचरे, IN सती शिरोमणि तेह ॥ मीगंबोली गोरमी, एहवी नहीं गुणगेह ॥५॥ विष्णु विष्णु| एक कहे, मोटो हुई अखत्र ॥ गुरुन्नक्ति विद्यारथी, जस्म थयो हिज पुत्र ॥६॥ शोक करे जन त्यां घणा, कीधां स्नान अपार ॥ ब्राह्मण सहु विचारता, नफर मेलीए सार ॥ ७॥ लेख लखीने ब्राह्मणे, नफर मूक्यो निरधार ॥ नूतमति आवो जलद, ढील म करो लगार ॥ ॥ बली गयुं घर तम तणुं, विद्यारथी वनिताय ॥ श्रगनिमां बलीयां बेहु, थयुं अघटतुं श्राय ॥॥ उन्ना नव रहेशो तिहां, पाणी पीवा काज ॥ दहन थयुं घर तुम तणुं, घणुं शुं लखीए राज ॥ १०॥
ढाल आठमी. ढोलो मुख मारुरे, एहनी अांखमीए कलक्यो दारुरे,मारा धऍरेसवारे ढोला-ए देशी. | मथुरां पहोतो क्षिप्र, जिहां नूतमति ने विप्ररे ॥ मारा परम सनेही सुणजो॥ ए, टेक ॥ करी प्रणाम पत्र दीधो, नूतमतिए हाथे लीधोरे ॥मा ॥१॥ शोक थाल्यो मन माहीं, उःख दोहग उपन्यो त्याहिंरे ॥ मा ॥ श्राव्यो कंठपुर शीघ्र, घर परजल्यो| दोगे विधरे। मा० ॥२॥ मूरा श्रावी ततकाल, तिहां मलीयां बाल गोपालरे । मा
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
परीकीधो सचेत तेणी वार, मांड्यो करवा पोकाररे ॥ मा०॥३॥ हैयुं दले माथु कूटे खंग ? IN हाहा दैव शुं चुंटेरे ॥ मा॥ एहवी नहीं मले नारी, घरनुं सुख गयो हुँ हारीरे॥ मा
॥४॥ मस्तक मूढना केश, लोच करे गेडी वेशरे॥ मा०॥सुनी धार विबुटी, पडी। धाम जाणे लीधो खुंटीरे॥माण ॥५॥जगनदत्ता सुण नारी, मुज मूकी गइ निरधारीरे॥y मा॥ तुंप्राणप्रिया गुण जारी,मुज दर्शन दे एक वारीरे॥मा॥६॥ तुज चंवदन हरीलंक, कनक कलश कुच शंकरे ॥मा॥ तुज विण दीसुं हुं रंक, मुज मेली गइ विण वंकरे ॥ मा० ॥ ॥ अगनि देव तें शुं कीधुं, मुज रामा प्राण हरी लीधुंरे ॥मा॥ अरे पापी तुं दैव ब्रह्म, हत्या कीधी तें सैवरे॥ मा० ॥ ॥ मुज हरि हर ब्रह्मा रुट्या, सघला पड्या ते जूगरे ॥ मा०॥ करता गोत्रजनी सेव, ते नागे गुरुकुल देवरे ॥ माण ॥ ए॥ विद्यारथी तुं पवित्र, परफुःख भंजननो मित्ररे॥मा॥हाहा हिजवर पुत्र, किम रहेशे तुज घर सूत्ररे॥ मा० ॥ १० ॥ ब्रह्मचारी तुधीर, परस्त्रीनो सहोदर वीररे॥ मा० ॥तुं . |सुतो घंटला तीर, तुज लाहे बढ्युं शरीररे ॥ मा० ॥ ११॥ मरजो ए ब्राह्मण पापी,
|॥१३॥ मुज तेमी गया मीसापीरे ॥ मा० ॥ यज्ञ कारण सहु व्यापी, मुज घरधरणी जस्मापीरे॥y मा०॥ १२॥ तिणे अवसर ब्राह्मण एक, श्रावी कहे वातो विवेकरे॥मा०॥ नारी कारण
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुमे एम, दुःख जोगवो बो खोटुं जेमरे ॥ मा० ॥ १३ ॥ प्राये नारी कही बे खोटी, कूड कपटनी मति बे बोटीरे ॥ मा० ॥ हैयानी वात न वि खोले, सजावे जूनुं बोले रे ॥ मा०॥१४॥ बार द्वार अशुचिनां ठाम, लोजी निरदयनी हामरे || मा० ॥ शोक करो कि काम, | लोक मांहीं जासे तुम मामरे ॥ मा० ॥ १५ ॥ तुमे पंडित मोटा जानी, जण्या गण्या बो गुण ज्ञानीरे ॥ मा० ॥ धरी वैराग मन मांहीं, राम नाम लाजे उबांहींरे ॥ मा० ॥ १६ ॥ नूतमति सांजली कोप्यो, ब्राह्मणनो वयण ते लोप्योरे ॥ मा० ॥ तुं शुं जाणे अजाण, | मुज धागे वात परमाणरे || मा० ॥ १७ ॥ हरि हर ब्रह्मादिक जेह, नारीने वश पड्या तेहरे ॥ मा० ॥ श्रम सरिखा पाठक पंड्या, शास्त्र विद्यानी वाते मंड्यारे ॥ मा० ॥ १८ ॥ मति तुं श्रमने थापे, एहवी बुद्धि अमारी उथापेरे ॥ मा० ॥ महा रांगना जा तुं इहांथी, मति देवा श्राव्यो बे क्यांथी रे ॥ मा० ॥ १८ ॥ ते ब्राह्मण गयो एम वारी, जूतमतिए बुद्धि विचारीरे ॥ मा० ॥ पहेले खंडे कही ढाल आठ, नेम विजय कहे जुई ठाठ रे ॥ मा० ॥ २० ॥
डदा.
बेदु तुंब हा ग्रही, अस्थि घाल्यां मांहीं ॥ स्त्री विद्यारथी बे तणां, लई चाल्यो उबांही ॥ १ ॥ गंगाजी जात्रा जणी, मारग जातां गाम ॥ आव्यो एमां ए गयो,
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग?
१४॥
परीमस्यो विद्यारथी ताम॥२॥जूतमति जणी लख्या, श्रावी लाग्यों पाय ॥ विद्यारथी INहुं तुम तणो, तुम पंमित महाराज ॥३॥ अपराधी हुँ ताहरो, गुनोद करजो माफ ॥
पगे लागवा श्रावी, मारा को माबाप ॥४॥पापी में तुम नारीनु, हरण करीयुं श्रांहीं ॥ श्रावीने यहां रह्यो, देजो मुजने बांहीं ॥५॥ नूतमति सुणीने कहे, दीसे दासी-| पुत्र ॥ कुण तुं क्यांथी श्रावी, धूरत दीसे कुंत्र ॥६॥बोले खोटुं तुं सही, ब्रह्मचारी श्रम नार॥ देवदत्त विद्यारथी, एहनो नहीं श्राचार ॥७॥ अस्थि डे ए बेहुनां, कावम मांही जेह ॥ गंगाजी मांहे जश्, तरतां मेलीश तेद ॥ ॥ तेमी थाण्यो घर नणी, देवदत्त कुमार ॥ ज्ञानी बेठो चिंतवे, ए कोण दीसेनार ॥ए॥ जगनदत्ता मन चिंतवे, जानी श्राव्यो पास ॥ पगे लागीने विनवे, अपराध खमजो वाम ॥ १० ॥
ढाल नवमी.
कपूर होवे अति उजलो रे-ए देशी. ___ कामनी कहे खामी सुणोरे, संजालो पूरव प्रीत ॥ वमपणे परएया मुजनेरे, राखो|
तेहीज रीतरे॥साजन सांजलजो सहु कोय॥ए श्रांकणी ॥१॥ कोपे जानी कहे तिहारे, लातुं केहेनी कहे रांड॥ था गाम तणां लोक एहवारे, फोक बोले मांग मांगरे ॥सा
॥ १४ ॥
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
K२॥मुज रामा सती निरमलीरे, अगनिमां परजली तेह ॥ विद्यारथी मुज नारीनारे,
अस्थि लक्ष जाऊं एहरे॥सा ॥३॥ मनोवेगे कथा कहीरे, सांजलो विप्र विचार ॥ अज्ञानी तेणे बापडेरे, वचन न मान्युं साररे॥सा० ॥४॥ नूतमतिए जेम कह्योरे, तेम तुमे करशो आज ॥ सत्य वचन मुज बोलतारे, नवी मानो गुणजाजरे ॥सा ॥५॥ कथा सुणी हिजवर कहेरे, सांजलो तुमे कुमार ॥ एवो नहीं अममां कोरे, स्त्रीमोही| मूढ गमाररे॥सा ॥६॥ सत्य वचन तुम नाषतारे, हिजवर नहीं आणे खेद ॥ जे होय तेहएँ कहोरे, श्रमे करी मानशुं वेदरे ॥ सा ॥ ७॥ तुमने देखी श्रम तणेरे, कौतिक उपजे आज ॥राजकुमार रविश्रामणारे, केम कीजे नीच काजरे । सा ॥
रूप सोनागे रुयमारे, हीन करम वल। कांय ॥ बिहु वानां घटतां नयीरे, स्वरूप कहो| नवली तायरे॥ सा ॥ ए॥ मनोवेग तव बोलीरे, सांजलो नट्ट विचार ॥ एकमना मन
आणजोरे, उत्तर देजो साररे॥ सा ॥ १०॥ राजकुमर अमे रुअमारे, नीच करूं वली काम ॥ ते बेहु वानां घटतां कहुंरे, ब्राह्मण सुणजो तामरे ॥ सा ॥ ११॥ पूर्वापर विचारजोरे, करजो वचन विचार ॥ विष्णुवाद कहुं रुअडोरे, संदेपे ते साररे ॥ सा ॥ १५ ॥ जमुना नदी रखीधामणीरे, तेह तणे उपकंठ ॥ गोकुल वन विस्तार
NEWSSSSSSB Shirpa Me
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
जर्मपरी
खंग ?
रे, तिहां वसे श्रीकंठरेसा॥१३॥ नारायण देव तुम तणोरे, चौद जुवन विख्यात चौद जुवन मुखमां वसेरे, शत्रु तणो करे घातरे ॥सा ॥ १४॥ पुरुषोत्तम पवित्र जलोरे, चौद जुवननो राय ॥ लोक सहुने उधरेरे, वांदे तेह तणा पायरे ॥ सा ॥ १५॥ शंख चक्र गदा धरेरे, सारंग धनुष वली सार ॥ मस्तक मुगट सोहामणोरे, कंठे एकावल हाररे ॥सा ॥ १६ ॥ काने कुंमल ऊलकतारे, बहेरखा बांहिं अपार ॥ सोल बाजूषण शोजतारे, गुण नवि लाने पाररे ॥सा ॥१७॥ दामोदर एहवो कह्योरे, अथवा साचुं| के जूठ ॥ विप्र विचारी बोलजोरे, उचरीए नहीं कुठरे ॥सा ॥ १० ॥ पुराण प्रसिद्ध ए जाणीएरे, महीतल मोटो देव ॥तुम वचन मान्यां खरांरे, श्रमे करीए एनी सेवरे॥ सा० ॥ १५ ॥ ब्राह्मण तव सहु हरखीयारे, कर जोडी कहे सार ॥ साचां वयणां तुमे कहोरे, खोटां नहीं लगाररे॥सा० ॥ २०॥ ए वात साची श्रमे लडंरे, तुमे कही ततकाल ॥ पहेले खंडे मुनि नलीरे, नेमविजय उजमालरे ॥ सा ॥१॥
.
उदा. मनोवेग तव बोली, सुणो द्विजवर वाण ॥ नंद गोप गोवाली, नीच कुले ते जाण Mu१॥ गाय नेंस तेहने घणी, बालांनो नहीं पार ॥ ते सहु चारे कानुडो, वारु वन
।
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
मोकार ॥ कानो कर काठी धरी, गले गुंजानो हार ॥ मस्तके फुल केशु तणां, खांधे alकामल सार ॥३॥ वंसी वाये मुख रुडो, महुयर करे सुनाद ॥ नारायण गोवालीयो,
गाइ करे वली साद ॥ ४ ॥ गोकुल गौलणीशुं रमे, गाढे तेहज ढोर ॥ रुडो त्रिजुवन नाथ ते, नीच करम करे घोर ॥ ५॥ राजकुंवर रुमा अमे, नीच करम करूं जेम ॥ विश्वनाथ वली वीउलो, नीच करम कीयां तेम ॥ ६॥ सामान्य करम जे आचरे, ते केम कहीए देव ॥ खोटुं के साचुं कहो, विप्र विचारो देव ॥ ७ ॥ तव ते ब्राह्मण |y बोलीया, सत्य वचन जे होय ॥ उत्तर दीधो जाय नहीं, वेद पुराणे सोय ॥ ७॥ श्रमे ते (कहो) किम लोपीए, तुमने करुं प्रणाम ॥ घटतां वचन वली कह्यां, गुणह तणां तुम गम ॥ ए॥
ढाल दशमी. काबिलरो पाणी लागणो, काबिल मत चाल्यो-ए देशी. मनोवेग बोले इस्युं, पुराणनी कहुँ वातो ॥ हस्तीनागपुर जाणीए, पांमव पांच | विख्यातो ॥१॥ जीम युधिष्टर अर्जुन, सहदेव नकुल कुमार॥ पांच नाश् सुत्नट जला,
१ चणोगी.
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग ?
राज पाले गुण धार ॥२॥र्योधन राज करे तिहां, कौरव शत नाइ साथ ॥ राज्य- मष आणे घणा, पांमवशुं लीए बाथ ॥ ३॥ एक वार कूम कपटे करी, जुवटे हार्यों १६ ॥ देश ॥ देशोटो बार वरस तणो, चाल्या धरी हिजवेष ॥४॥वैराट देशमां जश् रह्या,
वैराट तणी करे सेव ॥ गोकुल वास्यो कौरवे, संग्राम कीधो तिणे खेव ॥५॥ पांमव द्वारिकापुरी गया, नारायण नेव्या तेह ॥ कृष्णे काज विमासीठं, मान दश राख्या गेह ॥ ६ ॥ स्नेह धरी परणावीया, सुजमा अर्जुन ताम ॥ सुख जोगवे पांमव | तिहां, सेव करे कृष्ण राम ॥७॥ अरजुने तव विनवीया, दामोदर ते राय ॥ काज | करो तुम श्रम तणां, भूतपणुं धरी काय ॥ ७ ॥ हस्तीनागपुर जाय, जांजवो कौरव | धीश ॥नगर पांच श्रापुं तुमने, श्रानंद धरी नामो शीश ॥ए॥ सेवावरती थ रहो, जाइ कहो तुम देव ॥ कर जोमी कहे त्रीकमो, काम करशुं श्रमे देव ॥१॥तपणुं लश् चालीया, हस्तीनागपुर पोत्या कान ॥ दासीपुत्र विफुर घरे, कृष्ण गया दीधा । मान ॥ ११॥ श्रादर तेणे दीधा घणा, शाक ने नोजन दीध ॥ अवसर जो नेटणुं,
र्योधन राजानुं कीध ॥ १५ ॥ कौरवे मान दीधां घणां, पूब्यु केम श्राव्या कान ॥ नारायण तव बोलीया, सुणो वयण श्रमारां तान ॥१३॥ त थ थमे श्रावीया,
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
करजो पांडवगुं प्रीत ॥नगर पांच से तुमे, सेवा करजो ए रीत ॥१४॥ बोल श्रमारो मानजो, सबला पुरुषना पाय ॥ सत्य वचन कहुं हुं अमे, नहीं तो मराशो राय ॥१५॥
र्योधन तव बोलीया, फेर्नु पांमवनां गम॥ विष्णु एवं मत कहो, नीच करमनां काम ॥ १६ ॥ नाग पांचे पांडव तिहां, पेग तुमारे गेह ॥ काज करो तेहनां घणां, दूत थश् श्राव्या जेह ॥ १७ ॥ बीजं अघटतुं तमे कर्यु, नीच घरे जोजन कीध ॥ दासीपुत्र | विपुर घरे, मुंडापणुं ते लीध ॥ १७ ॥ पांडव त थ श्रावीया, गकोर फीटी थया दास ॥ कठिण बोल तुमे कह्या, फेडं तुम तणा वास ॥ १५ ॥ पांमवने कदेजो तुमे जश, करजो संग्रामनी त्यारी ॥ ढाल दशमी पहेला खंडनी, नेमविजये कही सारी॥॥
. उदा. सांजली नारायण वयण, श्राव्या निज आवास ॥ पांव तेमी एम कहे, हवे| जुध करशुं तास ॥१॥ कटक करी चाल्या तिहां, कौरव उपर तेह ॥ अर्जुन कहे केशव सुणो, रथ खेमो तुमे एह ॥२॥ सारथी थाजो अम तणा, श्रमे थाशु फुकार ॥ कौरव तणा कटक नणी, माथे पडशे मार ॥३॥ गोविंदे त्यां हा जणी, रथ चडी
१ नाश करूं. .
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग ?
र्मिपरीबेग त्यांहिं ॥ रास परोणो कर ग्रही, हवे रथ खेडे श्रांहि ॥४॥ कौरव सेना उपरे,
मार पमी तेणी वार ॥ पांच पांमव जय पामीया, जगमा जस विस्तार ॥ ५॥ जीती। निज घर श्रावीया, पहोता निज निज गम ॥ कथा पुराणे ते कही, मनोवेग कहे तमाम ॥६॥ ब्राह्मण सहुको सांजलो, पांडव पूत मोरार ॥ गामीत करम को सही, नीच करम श्राचार ॥ ७॥ नारायण रुखमणी बने, जोतरी रथ पुरवासाय ॥ चाबक |चोडे तेहने, कीधां कांणां ताय ॥ ७॥ विश्वलोक विहल तणां, सुर झषि पूजे पाय ॥ रथ खेडे ते केम जणी, विप्र विचारो काय ॥ ए॥
ढाल अगीरमी. श्मर आंबा थांबलीरे, श्मर दामिम धाख-ए देशी. विप्र विचारो तुमे जलारे, विष्णु विगोव्यो अपार ॥ वेद पुराणे जे कयुरे, सत्य वचन कहुँ सार॥ सजन जन मनशुं करोरे विचार ॥ए आंकणी ॥१॥ जश्मांगद ऋषि तप करेरे, ईश्वरनुं धरे ध्यान ॥ पंचाग्नि साधी खरीरे, बार वरस गयां मान स॥ वृषन चड्या ईश उमीयारे, मारग दीगे ताम ॥ गौरी पूढे ईश्वर नणीरे, ए ध्याये केहy नाम ॥ स० ॥ ३ ॥ महादेव कहे सुण नारी तुंरे, मुजने ध्याये सहु लोक ॥
॥१७॥
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
गौरी नणे तो शुं एहनेरे, केम होये दर्शन फोक ॥स ॥४॥ तव तुठ्या दर तपसीनेरे, मागो श्रापुं वरदान ॥ तपसी चिंते ए पार्वतीरे, विजुवन मांहे निधान ॥ स ॥ ५ ॥ शंकर मारी हुँ जोगद्रे, नश्मांगद नणे सार ॥ जो तुव्या आपो अमेरे, वंबित फल दातार ॥स०॥ ६॥ जेने माथे मूकुं हाथमोरे, जस्म थाये बली तेह ॥ महादेवे दीधो वर नलोरे, दानव पुंठे थयो जेह ॥स ॥ ७॥ ईश्वर नाग जाय सहीरे, तापसे तव कीधी केम ॥ ईश्वर चिंतवे मन मांहिरे, हाथ\ घाली में हेड ॥ स ॥ ७॥ नासीने किहां जायवुरे, पापी लाग्यो मुज पुंठ ॥ हुँ अज्ञानी घेलो थयोरे, नारी बोले एने| तुठ ॥ स ए॥ सघला देव तुमे सांजलोरे, हुँ फुःख पामुं बुं श्राज ॥ दानवने मारो| तुमेरे, नवि श्रापुं वरराज ॥ स० ॥ १०॥ ब्रह्मा विष्णु पधारजोरे, ए पापीनो करो नाश ॥ एक मूरति त्रिहुंनी थापणीरे, वेगे धासहु पास॥ स ॥ ११॥ केशव झान विचारी-| नेरे, ईश्वरनी जाणी वात ॥ पार्वती रूप करी तदारे, दैत्यनो करवा घात ॥स॥१२॥ वेगे श्रावी देवी उमीयारे, लीधुं कंकण तिण खेव ॥ हर गौरी दोय उलव्यारे, घायु | कंकण कर देव ॥सा ॥ १३ ॥ रूप थयुं पार्वती तणुंरे, उमीया बोली तेणी वार ॥ कुण रूप कुण तमे अबोरे, तापसीने कहे तेणी वार ॥ स० ॥१४॥ सांजलो गौरी तुमे कहुंरे,
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
१८ ॥
| जश्मासुर मारुं नाम ॥ बार घरस तप आचर्यांरे, शंकर तुठ्या ताम ॥ स० ॥ १५ ॥ तेह प्रसादे हर मारशुंरे, जोगवशुं तुम देह ॥ इसी करी गौरी जणेरे, सांजलो खामी कहुं तेह || स० ॥ १६ ॥ ईश्वर मुजने नवी गमेरे, बांडे वृषन चमी जाय ॥ जस्म लगावे देहनेरे, जांग धतुरो घणो खाय ॥ स० ॥ १७ ॥ सर्प तणो हार कोटमांरे, किन्नरी वाये निज हाथ ॥ कांख फोली जिक्षा जमेरे, मूढ थर घाले बाथ ॥ स० ॥ १८ ॥ घर छाने हाट एने नहींरे, मसाण गुफा निज वास ॥ नागो बीहामणो दीसतोरे, गंधाये एहनो सास ॥ | स० ॥ १७ ॥ दीगे आंखे नवी गमेरे, ईश्वरनो संजोग ॥ श्रा मनमां माहरे हतोरे, रुषिशुं माशुं जोग ॥ स० ॥ २० ॥ ए धूरत नासी गयोरे, थापणने दुई रंग ॥ इंद्र तणां सुख माणसुंरे, वंटित फले वली चंग ॥ स० ॥ २१ ॥ मन मांहे आनंद धरीरे, जो करो नाटिक स्वामी ॥ तो मुजने संतोष होयेरे, जोगवीए जोग कामी ॥स० ॥ २२ ॥ तापसी वचन अंगी करीरे, ईश्वर वेष धरी तेह ॥ उमीया श्रागल नृत्य करेरे, तान मान गुण| गेह ॥ ० ॥ २३ ॥ जिम जिम उमीया शीखवेरे, तेम नाचे कृषि सार ॥ मस्तक हाथ मूकावीयोरे, तापस बली थयो बार ॥ स० ॥ २४ ॥ तेणे अवसर तिहां श्रावीयोरे, नूप विरोचन नाम ॥ गौरी रूप देखी करीरे, दरख पाम्यो नृप ताम ॥ स० ॥ २५ ॥ तेड़ी
खंग १
॥ १८ ॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
निज घर ले गयोरे, रात दिवस माणे जोग ॥ नारायणशुं नेह धरीरे, संसारनां सुख संजोग ॥ स० ॥ २६ ॥ मनोवेग बोले तिहांरे, जो जो ईश्वरनां काम ॥ पहेले खंडे अग्यारमीरे, नेमविजय कड़े ताम ॥ स० ॥ २७ ॥
डुदा.
ब्राह्मण सांजलजो तुमे, दरि रमे स्त्रीरूप ॥ नानां भूषण वस्त्र रस, चूश्रा चंदननो चूप ॥ १ ॥ फल तंबोल सुगंध बहु, वंदित विरोचन राय ॥ दास्य विलास रंग रोलमें, घणो काल एम जाय ॥२॥ रह्यो गर्न करमे करी, पंच मासे घरणी कीध ॥ नाति जाति संतोषीने, गर्न महोत्सव सिध ॥ ३ ॥ एक दिन नारद घ्यावीया, दीगे नारी स्वरूप ॥ ज्ञान बले विचारीयुं, दामोदर एद रूप ॥ ४ ॥ श्रानंद यो रुषिने घणो, कौतुक जोशुं एड् ॥ ब्रह्मा शंकर शोधे सहु, जाइ कदेशुं तेट् ॥ ५ ॥ सहस्र श्रव्याशी कृषीश्वरे, शोध्या विष्णु सोय ॥ सकल देव जोया सदु, (पण ) केशव गोत न कोय ॥ ६ ॥ नारद तिदांथी चालीया, (कृषि) देवने कीध प्रणाम ॥ दामोदर देखामीए, | जेम सरे तुमारुं काम ॥ ७ ॥ ब्रह्मादिकने तेमीया, विरोचन पटसाल ॥ ऋषि देव नेला मल्या, जोवा काज ततकाल ॥ ८॥ घरमाथी राय नी कली, ब्रह्मादिकने पाय ॥ कहो वा मि
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग
केम श्रावीया, सफल जमारो थाय ॥ ए॥ नारद बोल्या ततखिणे, विरोचन सुखनी खाण ॥ तुम धरणीने जोश्ने, श्रमने सफल विहाण ॥ १० ॥
ढाल बारमी. फुसडी ते काजल सारे, ए तो नमर नजारां मारे राज ॥ ए तो फुलमीनो रूप रंग
जोजो-ए देशी. | राजाए तव श्राणी नार राज, कर कांकण डोड्यु तेणी वार राज ॥ तुमे सांजलजो सहु को॥ ए आंकणी ॥नारायण हुवा तव त्यार राज, विस्मय पाम्या लोक अपार राज ॥तु ॥१॥ एक कहे कारण केस्युं राज, नांदी जेवळं पेटज एस्युं राज ॥तु॥ एक कहे नारायण नोहे. राज, विपरीत रूप सही सोहे राज ॥तु॥॥एक कहे गोविंदनी लील राज, देव चरित्र जाणे नवि सील राज ॥तु॥एक कहे केम वाध्यु पेट राज, जश् पूडीए | राजाने ठेठ राज ॥ तु ॥३॥ तव पूज्या विरोचन राज राज, तुमे शुंकीधुंएद अकाज राज ॥तु॥ विष्णु तणुं वधार्यु पेट राज, पापे करी जाशो तुमे हे राज ॥ तु॥४॥ राजा तव कांखो थयो त्यांहिं राज,कालुं मुख ले गयो घर मांही राज ॥तुःख सोग | करे अपार राज, हुं केम बुटीश एह संसार राज ॥ तु॥५॥ हर ब्रह्माए तेड्या
॥रण
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
ताम राज, विष्णु देव पधारो श्राम राज ॥ तु॥ कहो कारण हुईं ले केहबुं राज, विपरीत रूप दीसे एह राज ॥ तु० ॥६॥ नारायणे कयुं तव मांगी राज, शरीर वितक जेतुं लडं बांमी राज ॥ तु ॥ खमखड ते सहु हसीया राज, सांजली वात अचंबे वसीया राज ॥ तु ॥ ७॥ महादेवे हाकोट्या अति घणा राज, काला मुख हुश्रा तेह तणा राज ॥ तु॥ देव दामोदर त्रिजुवन राय राज, सहुको लागे एहने पाय राज ॥ तु० ॥॥ प्रीव्या वचन महेसर मली राज, पूज्या पाय नारायणना वली राज ॥ तु ॥ दमा करजो खामी हे देव राज, अमे अपराधी हुवा ततखेव | राज ॥ तु ॥ ए ॥ सघला मली विमासण करे राज, गर्न काढशुं हवे केणी परे राज ॥ तु ॥ ब्रह्मा शंकर बोल्या नेद राज, जांग वाढी करी काढो बेद राज ॥ तु॥१॥ तेद वचन मनमां धरी राज, देव सघले हास्यज करी राज ॥ तु॥ जोर करी काढ्यु बोकरुं राज, ते कारण बलि नामज धयु राज ॥ तु ॥ ११॥ विष्णु सदन वैकुंज थया राज, देव सहु निज गमज गया राज ॥तु॥ मनोवेग कहे कह्यो संखेव राज, अवर पुराण सांजलजो देव राज ॥ तु॥ १२॥ बलि राजा बलवंता जाम राज, राज रिडि पाम्यो तेणे गम राज ॥ तु ॥ अपूरव इंज थवा तणी राज, श्छा
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
र्मिपरी
उपनी मनमा घणीराज॥ तु ॥१३॥ जगन मांड्या हवे तेणे क्षिप्र राज, अनेक तेमा
व्या त्यां विप्र राज ॥ तु० ॥ होम हुताशन परजले राज, पुण्यदान दे जे नर मले राज Gतु ॥ १४ ॥ जाग नवाणुं थया जब पूरा राज, कंप्युं इंसासन थर सनुरा राज alu तु० ॥ झाने करी विचार्यु जेह राज, मुज पदवी पेशे सही तेह राज ॥ तु ॥१५॥ विष्णु मंदिर मथवा गयो राज, सांजल गोविंद वात उनयो राज ॥तु॥ बलि राजा जगन बहु करे राज, मुज पदवी तणो घातज हरे राज ॥तु०॥१६॥ कूम रचो जगनाथ | देव राज, नाश करो दैत्य तणो ततखेव राज तु०॥बलिने बलो करीने उपाय राज, श्राश पुरो मनोरथ थाय राज ॥ तु० ॥१७॥ कृपा करी बोल्या तव हरि राज, जाउँ तुमे थापणे उगम फरी राज ॥तु॥ निज पदवी जोगवो जाइ राज, अमे करशुं काम तुम सा राज ॥ तु ॥ १७ ॥ रच्यो दामोदरे विचार राज, काश्यप ऋषि तस नार राज ॥ तु० ॥ श्रादिति नामे कही नार राज, तेहनी कूखे लीयो अवतार राज|| ॥तु॥१५॥ जाणीए त्रेतायुग मांही राज, वामन रूप धरी उबांही राज ॥ तु॥ |पहेले खंभे बारमी ढाल राज, नेमविजय कहे तेणे ताल राज ॥ तु॥२०॥
H॥१०
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. खीयो अवतार ए पांचमो, वसिष्ठ गुरु ने तास ॥ नित्य नमे ते गुरु जणी, राखीने विश्वास ॥१॥ भृगु क्षेत्र जणी चालीयो, बांधवा बलिने उपाय ॥ जाग मंडपमा श्रावीयो, सौ सजन पुंठे थाय ॥२॥ हाथ पाय टुंका अडे, धोतकषांबर अंग ॥ चुयांचली वाली काठमी, मस्तक फाली चंग ॥३॥ बाग लीयो कर एक|वमो, दर्ज पुर्वा वली लीध॥ कंठ जनो निरमली, कसवटे टीपणुं कीध ॥४॥ छादश तिलक कर्यां जलां, चार जणे मुख वेद ॥ अज्या द्विज देखीने, श्रपर वचन | हुवा बेद ॥ ५॥ काठीधरे पूज्यो वामणा, कहोजी खरूप तुम देव ॥ हिज बोल्यो | नाश् श्रावीयो, जाचवाने बलि देव॥६॥ हुँ जीखारी ब्राह्मणो, अमने मेलवोनूप ॥ रखवाले जश् विनव्यु, वामन कयुं स्वरूप ॥ ७॥ बलि श्राव्या वामन कने, वेद सुणी हरख्यो चित्त ॥ कर जोमीने बलि नणे, मागो वंडित वित्त ॥ ॥ देश गाम मागो घणां, मागो मंदिर कलत्र ॥ गाय नेस मागो पूजती,गज रथ घोमा बत्र ॥ ए ॥ मणि माणिक मोती घणां,नू कनक रूपुंफार॥शुक्र नणे सांजल बलि, विप्र नहीं ए सार॥१०॥al
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
ढाल तेरमी.
वीर वखाणी राणी चेलणाजी-ए देशी. वामन रूप धरी केशवोजी, कपट करी मागे दान ॥ तरशे तुने बल करीजी, जजमान ग तुज सान ॥ सूरिजन सांजलजो कथाजी ॥ ए श्रांकणी ॥ १ ॥ दान म देजो एहनेजी, मानो श्रमारो तमे बोल ॥ बलि बोल्या मम बोलनोजी, शुक्र तमे नवी| जाणो तोल ॥ सू० ॥२॥ वासुदेव जाचक थर आवीयाजी, धन धन मुज अवतार ॥ जे जोश्ए ते मागो वामणाजी, राज रिकि श्रापुं अपार ॥ सू० ॥३॥ वामन वाडव बोलीयोजी, मारे नहीं बहु काज ॥ मढली करवाने कारणेजी, त्रिण क्रम द्यो महाराज ॥ सू० ॥४॥ आणी उदक कोरे करवमेजी, दान दीए बलि सार ॥ जाचक मोटा श्रीकंठनेजी, हस्त मांहीं धरे जलधार ॥ सू० ॥५॥ नाखुन शुक्रे रुंधीजी, डान घाली फोड्युं नेत्र ॥ दानव गुरु काणो हुजी, स्वस्ति कह्यो हिज मित्र ॥ सू० ॥६॥ नारायण अंग वधारीयोजी, ब्रह्मलोके लाग्यो शरीर ॥ नूमि सघली जरी बेहु क्रमेजी, एक क्रम मागे ते धीर ॥सू॥ ७ ॥ बलि राजाए पुंठ धरीजी, वचन राखवाने काज || वैकुंठे पग मूक्यो त्रीजोजी, चांपवा लाग्यो बलि राय ॥सू०॥ ७ ॥ तुष्टमान हुवा जग
॥१
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
धणीजी, सेवकने सुख थाय ॥ वामन रूप करी श्रावीयाजी, जय जय हुवा जग माय॥ सु० ॥ए। तुव्या तो आपो दामोदराजी, सेवावरती था सार ॥ मुज किंकरपणुं तमे करो|| जी, काठी धरी रहो बार ॥॥१॥महा विष्णु सेवक थयाजी, काठी धरी रह्या हाथy वचन बांध्या पुःखीश्रा थयाजी, कष्ट पाम्या जगनाथ ॥सू० ॥ ११॥ दीवालीए गण तणोजी, बलि राणो करे लोक ॥ गोयर घरघर थापीएजी, कृष्ण तणां करी फोक ॥ सू० ॥ १२ ॥ वेद पुराणे कथा कहीजी, विप्र जाणो तुमे नेद ॥ खोटुं के साचुं होयेजी,IN| कहो विचारी वेद ॥सू॥ १३॥ विप्र वचन वलदं कहेजी, खोटुं नहींय लगार ॥ वेद पुराणे नाखीयोजी, सत्य वचन तुम सार ॥ सू० ॥ २४ ॥ मनोवेग वली बोलीयोजी, सांजलो विप्र सुजाण ॥ लोककथा कहुँ एक जलीजी, मधुरी सुललित वाण ॥ सू०॥
२५ ॥ दक्षिण देश मांहे नलोजी, गाम ते वसे कच्छ नाम ॥ श्रीपुरजी सुचिकार ने तिहांजी, नामो सुत सइ काम ॥ सूत्र ॥ १६ ॥ श्रीपुरजी हरिजक्त हवेजी, विष्णु देहरे नित्य जाय ॥ पंचामृत थाली करीजी, तेह विण अन्न न खाय ॥ सू० ॥ १७ ॥
श्रीपुरजी परगाम चालतांजी, नामा सुतने देश शीख ॥ दामोदर देरे जाजे सहीजी, प्राजेम तुज टले जवनीख ॥ सू० ॥ १७ ॥ पंचामृत जोजन देजोजी, एम कही चाख्यो |
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
२२ ॥
गाम ॥ डूध लइने नामो गयोजी, दरिनुं उचरे नाम ॥ सु० ॥ १९ ॥ दूध लइने मुख आागलेजी, कहे पीयो नारायण देव || पाषाण बिंब बोले नहींजी, बालक रडे पडे खेव ॥ सू० ॥ २० ॥ तव दरिने दया उपनीज | दूध पीधुं ततकाल ॥ पहेले खंडे ढाल तेरमीज, नेमविजय सुविसाल ॥ सू० ॥ २१ ॥
डुदा.
सुचिकार श्रीपुरजी, तेनो सुत ततकाल ॥ तुख्या नारायण नामाने, जगति जलो ए बाल ॥१॥ एक वार नामो जमे, जमतां चिंते ताम ॥ श्रावे नारायण इण समे, जाखरी श्रपुं राम ॥ २ ॥ ज्ञानदृष्टे करी जोइयुं, (नामो) जोये मादरी वाट ॥ श्वान रूप धरी श्रावीया, दीठो जाखर घाट ॥ ३ ॥ दोय चार मुखमां ग्रही, नाग श्वान तिये रूप ॥ नामो पुंठे धाइ, यही लेउं हरि भूप ॥४॥ श्राघा जइ रूप फेरव्युं, नामो गयो निज गेह ॥ नामो घर बांये एकलो, विष्णु श्राव्या स्वयं देद ॥ ५ ॥ गोविंदे घर बांइट, (घर) बेंडी नामे की ॥ पोली लइ हरि दुखीया, पोहोता वैकुंठ सिद्ध ॥ ६ ॥ विप्र सुणो तमे बुद्धिबला, नीच करम कीया देव ॥ पुराण वचन लोक वातथी, सत्य के जूनुं देव ॥ ७ ॥ विष्णु उदर मांदी जला, चौद भुवन रहे थेट ॥ बलि राजाए
खंग १
॥ २२
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
किंकरी, मोटो हुवो केम पेट ॥ ॥ माह्या थर विचारजो, गर्धव श्रश्व न होय ॥ पुरुष नारी केम संनवे, विप्र विचारी जोय ॥ ए ॥ चौद जुवनपति जे कह्यो, ते केम वामन वास ॥ दीन जीखारी बांजणो, बलि जाच्यो थ दास ॥१०॥
ढाल चौदमी. दमिरीया तारा ने मारा टोडीया, चरता एकण नाल-ए देशी. __ लोक प्रसिद्ध वली सांजलो, दामोदर थया श्वान ॥ सनेही ॥ नामा सुश्नी ना-|
खरी, लेश नाग जगवान ॥ सनेही ॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए श्रांकणी ॥ ||॥१॥ घर बायो नामा तणो, पोली श्रापी कान ॥ स० ॥ नीच करम नहीं ए थकी, विचार करो सावधान ॥ स॥ सू० ॥२॥ दोय वानां नवि संजवे, मुज माता एह। विध्य ॥ स० ॥ नारी बेटा घर घणां, ब्रह्मचारी काउबंध ॥ स॥ सू ॥३॥ परनारी चंघाउली, राधा गोवालणी जेद ॥ सानोगवी स्त्री गोवालणी, न्यायवंत किम तेह सासू॥ ४॥ सिक स्वरूपी जे हवा, ते किम धरे अवतार ॥सा पहेलो अवतार मच्छ तणो, संखाशूर संहार ॥ स ॥ सू॥५॥ बीजो अवतार कच्छनो,कैटन मार्यो| ताम ॥ स॥ नव नोजो वाराहनो, दाणव मार्यो गम ॥स०॥सू॥६॥ चोथे नरसिंह
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
। २३ ॥
श्रवतर्या, हिरणकश्यपनो नाश ॥ स० ॥ पांचमे वामन रूप लीयो, बलि चांप्यो भूमि पास ॥ स० ॥ सू० ॥ ७ ॥ फरसराम बडे सुणो, सहसार्जुन फेड्यो गम ॥ स०॥ सातमे राम दुवो जलो, रावण टाब्युं नाम ॥ स० ॥ सू० ॥ ८ ॥ केशव ठमे अवतर्यो, जरासिंध इण्यो कंस || स० ॥ अढार दोषी दल रण इण्यो, कय कर्यो जादव वंश ॥स०सू०॥ ए॥ नवमो बोध जवांतरे, म्लेच्छ मांही कीधो व्याप ॥स०॥ दशमे कलंकी राजी, जननी चंगाली द्विज बाप ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ एकाकार करी घणुं, अच|रावे अनाचार ॥ स० ॥ देव निरंजन जे हवा, ते केम लीये अवतार ॥ सासू०॥ ११ ॥ घृत जेम दूध ते नवि थाये, सिद्ध संसारी न होय ॥ स०॥ पाको धान मही नवि उगे, सिध्यो जीव तेम जोय ॥ स० ॥ सू० ॥ १२ ॥ पाषाण मयी सोनुं काढीयुं, ते केम पत्थर थाय ॥ स०॥ कर्म हणी जे सिद्ध हुवा, ते केम पुद्गल पाय ॥ सासू० ॥ १३ ॥ | देव दयाल नर जे कह्या, केम करे जीव संहार ॥ स० ॥ राग द्वेष मद मच्छर नहीं, | दैत्यने किम ते मार ॥ स०॥ सू०॥ १४ ॥ नारी विजोग पड्यो रामने, सीता सीता पोकार ॥ स० ॥ नर तरु पशुने पूढे घणुं, दरशन होशे मुज नार ॥०॥ सू०॥ १५ ॥ सर्वज्ञ ते जाणे सहु, पूढे बीजाने केम ॥ स० ॥ चौद नूवन मुख मांहि बे, चढे केम लंका जेम
खंग
॥ २३
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥०॥ सू० ॥ १६ ॥ विप्र विचारो देवनां, लक्षण कहीए संखेव ॥ स०॥ सिद्ध स्वरूपी जे होये, तेहने ए नहीं देष ॥ स० ॥ सू० ॥ १७ ॥ दूध मांहि घृत रस रहे, विश्वा नल काष्ठ मांहि ॥ स० ॥ तिल मांहे तेल जिम रहे, जीव कलेवर थांहीं ॥ स० ॥ सू० ॥ १८ ॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तथा, जे कह्या पालणहार ॥ स० ॥ लख चोराशी फेमीने, नावे नर अवतार ॥ स० ॥ सू० ॥ १७ ॥ ध्यान शुकल मन ध्यावतां, मुगति रमणी होये हाथ ॥ स० ॥ पहेले खंडे ढाल चौदमी, नेम कहे सांजलो साथ ॥ स० ॥ सू० ॥ २० ॥
उदा.,
रूप रस गंध वरण नहीं, उदादिकादि नाहिं ॥ जेह निरंजन नित्य बे, ज्ञानमय या त्यांहिं ॥ १ ॥ ते विष्णु सदाशिव जणी, ते किम कहीए देव ॥ अवर अज्ञानी जे नरा, तेहनी करे बे सेव ॥ २ ॥ नाम मात्र जे उपन्या, गुण अवगुण जे होय ॥ बुद्धि विना केम उपजे, सुणो वात सौ कोय ॥ ॥ वलतो उत्तर केम होये, विप्र तणां मन जंग ॥ हाथ जोमी प्रणिपति करी, कड़े सहु अनुषंग ॥ ४ ॥ वाद करंता दारीया, जीत्या तमे बेहु जाय ॥ कथा कहो कोइक नवी, सांजलवा होंश थाय ॥ ५ ॥ मनोवेग बोल्यो तिढां, संखेपे करूं एक ॥ गणेश विचार विवरी करी,
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥२४॥
VPNE
ब्राह्मण सुणो विवेक ॥ ६॥ नीच उंच कर्मो कर्या, ब्राह्मण सुणजो मर्म ॥ धृरथी मामीने कडं, ए देवमां श्यो धर्म॥७॥ गौरी नंदन गणपति, सकल देवमा सार ॥ प्रथम विनायक सहु जपे, विघन हरे नर नार ॥ ॥गजवदन गिरु अने, इंदालो वीदार ॥ मूषक वाहन शुजगति, पाय घुघरी घमकार ॥ए॥ सिकि नामे नारी जे. लक्ष लाल वली देय॥ मोटा मोदक श्रापे सही, कुटुंब मागे सहु तेय ॥१०॥ महीमां मोटो देवता, सुर नर सारे सेव ॥ प्राणीनां विघन हरे, काम करे ततखेव ॥११॥ विवाद कामे पूजीए, (घर) हाट वखारे तेह ॥ गणपतिने संजारीए, अवसर थावे एह ॥१२॥
___ढाल पंदरमी.
मीहरीया मन लाग्यो-ए देशी. | रावण विमासे मन इस्युं, आराधन करूं देवरे ॥ साजन सांजलो ॥ विनायक आवे
जो इहां, विघन जांजे सहु देवरे ॥ सा॥१॥ प्रपंच रची साधु एहने, पढी सुर नर साधुं जेहरे॥सा ॥ किंबहुना गणेश साधी, बंधीखाने घास्यो तेहरे॥सा ॥२॥ | विघनराजे हाथ जोमीया, विनवीयो रावण रायरे ॥ सा ॥ काज तमारां स्वामि हुँ
॥ २४
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
करूं, अहनीश सेतुं पायरे ॥ सा० ॥ ३ ॥ रावणे मूक्यो विनायक जणी, रासन चरावो | देवरे ॥ सा० ॥ काठी जारो लेता यावजो, दातर कोहाडो देवरे ॥ सा० ॥ ४ ॥ रासन चारे रावण तथा नीच करम करे नित्यरे ॥ सा० ॥ जारो लेइ मस्तक प्रते, रासन हांके एणी रीतरे ॥ सा० ॥ ५॥ खम कापी जारो करे, छाणउपकतो लीए शिशरे ॥ सा० ॥ आणी चारे रासन जणी, करम जोगवे निशदिशरे ॥ सा० ॥ ६ ॥ रासन राख्या नवी रहे, वाडि कांखरनी करे तामरे ॥ सा० ॥ विधनराज करणी करे, पाप तणुं फल मरे ॥ सा० ॥ ७ ॥ करम करे देव एहवां, तो अमने श्यो दोषरे ॥ सा० ॥ विचार संखेपे करी कह्यो, ब्राह्मण राखजो संतोषरे ॥ सा० ॥८॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो वाव वातरे ॥ सा० ॥ खोटुं के में साधुं कयुं, उत्तर देजो चातरे ॥ | सा० ॥ ए ॥ विप्र वचन वलतां जण्या, सत्य वचन तुमे जायरे ॥ सा० ॥ वेद पुराणे एम कयुं, ते अम केम लोपायरे ॥ सा० ॥ ४० ॥ मित्र वदन अवलोकीयुं, सामुं जोयुं तामरे ॥ सा० ॥ समस्या करीने यवीया, पूरवले वन ठामरे ॥ सा० ॥ ११ ॥ पवनवेग प्रतिबोधवा, मनोवेग कड़े साररे ॥ सा० ॥ पूर्वापर विरोध नहीं, जैनसूत्रे सुविचा
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
ररे॥सा॥१॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे साररेसा॥ नारायणउत्पत्ति कडं, जैनशासननो विचाररे ॥सा॥१३॥ सुखम सुखम पहेला जएयो, बीजो सुखमज कालरे| ॥साासुखम उखम त्रीजो सुण्यो, उखम सुखम सुविशालरे॥सा॥१४॥पांचमो उखम दोहीलो, दुखम मुखम विकरालरे ॥सा॥ नाम तेहवां परिणाम , चडतो पम्तो ने कालरे ॥सा॥ १५॥ सुखम उखम अंते अवतर्या, आदिनाथ नवताररे॥सा॥ तेहनो पुत्र जरतेसरो, प्रथम जिन चक्री ते साररे ॥सा॥ १६ ॥चोथे काले त्रेवीश हुवा, तीर्थकर गुणधाररे ॥ सा॥ अजितादि ए जाणजो, महावीर अंतिम साररे॥सा॥ १७ ॥ जरतादिक ब्रह्मदत्त लगे, चक्री हादश जाणरे ॥ सा॥नव नारायण निरमला, त्रिपिष्ट श्रादि सुख खाणरे ॥ सा ॥ १७ ॥ हयग्रीव श्रादे जरासंध ये, पर्यंत नव ए होयरे ॥ सा॥प्रतिनारायण चक्रधरा, श्रढार अधोगति जोयरे॥ सा ॥१॥ विजय हलधर | धूरे कह्यो, अंते महापद्म नामरे ॥सा॥ नव वलजा बलवंत नला, ऊर्ध्वगामी अनि
100२५॥ रामरे॥ सा० ॥२०॥ त्रिषष्टि पुरुष ए रुयडा, जव्य जीव नवताररे ॥ सा० ॥ पन्नरमी Vढाल पहेला खंगनी, नेमविजय निरधाररे॥ सा ॥१॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा.
ह्या महापुराणमां,
जो त्यां विस्तार ॥ विचार कहुं हवे वर्णवी, निश्चय करी निरधार ॥ १ ॥ नुमानी वली स्थिति कहुं, निरंजन कहे मूढ लोक ॥ पूर्व नवे बहु परे जम्यो, निर्नामिक हुई सोक ॥ २ ॥ दुःखे दीक्षा याचरी, राज रिद्ध देखी ताम || निदान बांध्यो निर्नामिके, स्वर्ग लह्यो सुखठाम ॥ ३ ॥ तिहां थकी चवी करी, वसुदेव देवकी चंग ॥ कुखे यावी अवतर्यो, कृष्ण हुई उत्तंग ॥ ४ ॥ त्रण खंड साध्या जला, सेवे सुर नर राय ॥ न्यायवंत दामोदरो, परनारी सहु माय ॥ ५ ॥ लाख बेतालीश रथ जला, तेटला गजवर सार ॥ नव कोम घोमा हणहणे, जोगवे त्रिखं मोरार ॥ ६ ॥ सोल सहस्र राणी जली, तेदशुं सुख विलास ॥ लोक लंपट लंपट लवे, परनारीशुं निवास ॥ ७ ॥ तेटला भूप सेवा करे, सुर किंकर बेसार ॥ राज रिद्ध केशव तणी, कहेतां न लहुं पार ॥ ८ ॥ श्रावती. चोवीशीए जलो, अरिहंत होशे देव ॥ पंच कल्याणकनो धणी, सुर नर करशे सेव ॥ ५ ॥ पवनवेग तुमे सांजलो, बलि बंधन विचार | जिनवाणी बे रुाडी, संखेपे कहुं सार ॥ १० ॥
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल सोलमी. रंग मोहोलमा राधिका, मुखकमल निहाले ॥ दरपण खेर मुख देखती,
सीणगार संजाले-ए देशी. मालव देश मांहिं नली, नयरी उजेणी तेह ॥ श्रीब्रह्मा राज करे तिहां, श्रीमती राणी जेह ॥ १॥ चार मंत्री चतुर जला, बलि बृहस्पति प्रल्हाद ॥ नमुचि मिथ्याते धागलो, जैनशुं करे बहु वाद ॥२॥ गोख उपर बेग थका, जाता दीग लोक ॥ नरपति मंत्रीने कहे, किहां जाय ने ए थोक ॥३॥ बलि प्रधान तव बोली, सांजल स्वामी राय ॥ श्रावकलोक अति घणा, साधु वंदण जाय॥४॥श्रीब्रह्मा नृप हरखीयो, जतिवर वांदण जाय ॥ चार मंत्री साथे लीया, परिवार पार न पाय ॥५॥ प्रथम
कथा तुमे सजिलो, उजेणी वन माहे ॥ अकंपनाचार्य श्रावीया, सातसें मुनि डे सहाए। K॥ ६॥ ज्ञानी गुरु ते श्रति जला, शिख दीये मुनिराय ॥ जो राजपुरुषशुं बोलशो, तो
विघन होशे एणे गय ॥ ७॥ गुरु वचन मनमा धाँ, धरी ध्यान तेणे गम ॥ राजा तव तिहां श्रावीयो, मुनि वांद्या नृपे ताम ॥७॥ ते साधुने बोलावीया, उत्तर वलतो न दीध ॥ ढोर अज्ञानी बापडा, मंत्रीए निंदा कीध ॥ ए ॥ राजा तव पालो वढ्यो,
॥ २६ ॥
-
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
आव्यो नगर मोकार ॥ श्रुतसागर मुनि जेटीया, विद्या तणोरे भंडार ॥ १० ॥ दुष्ट वाक्य मंत्री बोलीया, वाद कीधो तिहां सार ॥ विप्र चार दावीया, मान खंड्यं तेणी वार ॥ ११ ॥ नरपतिए निचंबीया, एके दराव्या खाज ॥ मुरखा गर्व न आणीए करो न एवां काज ॥ १२ ॥ ऊखवाणा पडी गया, नीचे जुवे निज पाय ॥ कृष्ण वदन तेहनां दुख, मारवा कीधो उपाय ॥ १३ ॥ ब्राह्मण वादे हरावीया, गुरु श्रागे कड़े वात ॥ श्राचार्य त्यां तव बोलीया, मुनिवरनो होशे घात ॥ १४ ॥ श्रुतसागरे गुरु पूठीया, विघन किम पूरे जाय || गुरुजीए तव जाखीयुं, वादस्थानके तुमे जाय ॥ १५ ॥ ध्यान धरजो रुयको, उपसर्ग जाशे तेम ॥ सांजलीने मुनि तिहां गयो, कायोत्सर्ग रह्यो जेम ॥ १६ ॥ चार मंत्री तिहां यवीया, खड्ग काढी ते वार ॥ चारे जण एक घा करे, खील्या जदे ते सार ॥ १७ ॥ सूर्योदये तिदां यवीया, लोक तणां वली वृंद ॥ फट फट जंमा सहु जणे, पाप तणां एह कंद ॥ १० ॥ राजा तव तिहां यवीयो, गाल दीए अघोर ॥ ध्यान पारी मुनि बोलीयो, उखेलो एह जोर ॥ १९ ॥ राजाए दंडी करी, खर रोहण वली कीध ॥ विगोश्ने काढीया, देसोटो तिदां दीध ॥ २० ॥ पहेला खंडनी सोलमी, ढाल कही सुविसाल || नेमविजय कहे सांजलो, आागल वात रसाल ॥ २१ ॥
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम
- उदा. अपर कथा तुमे सांजलो, संखेपे कहुँ सार ॥ हस्तीनागपुर रुयडो, उत्तर देश मोकार ॥१॥ मेघरथ नूपति जलो, पदमावती जरतार ॥ पदम लघु विष्णु वडो, पुत्र |बेहु ने उदार ॥२॥ मेघरथ विष्णु मुनि हुवा, पदमरथ श्रापी राज ॥ चारित्र पाले
अमो, बेहु करे बातम काज ॥३॥ गजपुरमा तव श्रावीया, हिज मंत्री ते चार ॥ राजाने जश्नेटीया, दान मान दीधां सार ॥४॥ मंत्रीपद थाप्यां जलां, सुख पाम्या ते चार ॥ सिंहवली शत्रु तेह तणो, देश उजामी अपार ॥५॥राजाने चिंता घणी, दिन दिन अंगे खीण ॥ मंत्रीए तव पूढीलं, शरीर दीसे कां हीण ॥६॥ पदमरथ राजा कहे, सुणो तमे बलि प्रधान ॥ सिंहवली वयरी श्रम अजे, तेणे करी नहीं सुख । |मान ॥७॥आदेश लश् नृपति तणो, प्रधाने कर्यो प्रयाण ॥ सैन्य सुनट निज सज करी, बलि मंत्री बुद्धिनाण ॥७॥ सबल संग्राम तिहां जर कीयो, शत्रु कटक हुवो जंग ॥ सिंहवलीने बांध्यो तदा, पाम्या जय जय रंग ॥ ए ॥ वयरी बांधी आणीने, नेट रायने कीध ॥ पदमरथ आणंद हुङ, बलिने वरदान दीध ॥ १०॥ वलतो मंत्री| बोलीयो, सांजलो श्रीमहाराज ॥ मा{ त्यारे श्रापजो, वर आवे मुज काज ॥ ११ ॥
॥
७
॥
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
नरपतिए तव हा जणी, बखि हवो हरख अपार॥सुखजर राज्य करे सदा, अवर कथा कई सार ॥ १५ ॥
ढाल सतरमी.
___ यतनीनी देशी. | हस्तीनागपुर वन मांहे, अकंपनाचार्य श्राव्या त्यांहे ॥ सातसें मुनिवर ने साथे, विद्या तणी बहु आये ॥१॥ बलि मंत्री तेने देखी, वयर जावे पूव लेखी ॥ पदमरथ राय पासे आवी, विनति करे तिहां समजावी ॥२॥ वर श्रापो श्रमने आज, |दिवस सातनुं आपो राज ॥ काज सारो श्रमारु प्रजुजी, तुम विना कोण बीजो| विजुजी ॥३॥ राजाए तव वर आप्यो, राजनार तेहनो थाप्यो ॥ पापी कूड कपट || मन मांहीं, धरी सहीये क्रोधातुर तांहीं ॥४॥ वाड करी मुनिने वींच्या, साधुने घणुंए थाषेव्या ॥ नरमेध जगन जाग मांड्यो, जति कारण बीजो काम बांड्यो ॥५॥ जलचर ने थलचर जीव, ननचर ते पाता रिव ॥ वेद पाठक ब्राह्मण श्राव्या, घणुं| उजमाल थइ मन जाव्या ॥६॥ जीव हणवा वामव मलीया, हवन करवा हरखमां| नलीया ॥ चरम अस्थि ले शिर नाखे, मुनि उपर सहु मली धांखे ॥ ७॥ एवं
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग?
नाखे अति घणुं विप्र, रेवणी करे धुम्र गोटे विप्र॥एहवा उपसर्ग करी संतापे, तोही
मुनि चुके नहीं जापे ॥ ७ ॥ अवर वात कहुँ एक एहवी, पवनवेग सुणोतुमे जेहवी y 6 मेघरथ विष्णुकुमार, गिरि उपर तप करे अपार ॥ ए ॥ श्रवण नक्षत्र श्राकाशे कंपे, विष्णु मुनि गुरु प्रते जपे । कहो स्वामि नक्षत्र कंपे, कुण कारण एह अजंपे ॥ १० ॥ अवधिज्ञानी मुनि एम बोले, गजपुरने नहीं कोई तोले ॥ तिहां मुनि बेग ध्यान थापी, उपसर्ग करे विप्र पापी ॥ ११॥ तिण कारण कंपे श्रवण, विष्णु कहे उपाय कवण ॥ मेघरथ मुनि जणे शिष्य, वच्छ ब्राह्मणने देशुं जीख ॥ १२ ॥ वैक्रियलबधि | करो सार, वामन रूप धारो निरधार ॥ मुनिवरनां जतन करो जाइ, वेगे करो एहनी | सजाय ॥ १३॥ फोरवी ततक्षण लवधि, उत्पत्ति जाए के उदधि ॥ गजपुर नगरमां आव्यो, पदमरथ रायने नमाव्यो ॥ १४ ॥ वर श्राप्यो हतो तमे तेहने, घणुं शुं कडं ना तुमने ॥ मुनिवरनो मांड्यो घात, थाशे तेहथी घणो उतपात ॥ १५ ॥ पदमरथ कहे सुणो नाश, वचन पाटुं श्रमे नवी था ॥ कोइ करो तमे उपाय, तेथी विघन सवे वली जाय ॥ १६ ॥ विष्णु चाल्यो मंगप देश, वामन विप्रनो धर्यो वेष ॥ दर्न पुर्वा जनो कंठ, पहेरी धोती ने हाथमें लंठ ॥ १७ ॥ वेदनी ध्वनि उचरे मुख, विष
॥२
॥
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
सांजली पामे सुख ॥ बलि राजा हयडे हरखी, वामन रूप नजरे परखी ॥ १७ ॥ वामन वांद्यो पमीने पाये, विनति करे कर जोमी तांये ॥ जे जोश्ए ते मागो स्वामि, मुज पासे अंतरजामी ॥ १ए ॥ वामन विप्र वोल्या ताम, मुज नहीं नृप लोने काम ॥ त्रण क्रमनी नूमि जरी श्रापो, मठ बांधवा सारूं थापो ॥ २० ॥ वलतुं बलि बोले | एहवं, विप्र कहो माग्युं केहबुं ॥ मागोने को राज नंमार, घोमा हाथी वृषन अपार ॥१॥ विष कहे सुणो महाराज, अवर मारे ने नहीं काज ॥ क्रम त्रण मठ करवाने, मही मांहि नूमि जरवाने ॥२॥ पात्र लेश् कर दीए धार,खस्ति दान दीधुं तेणी वार॥मुनिवरे वधार्यो अंग, अति घणो देखी थया नंग ॥३॥ प्रथम पाय ठव्योज्यां मेर, मानुषोत्तर वीजो ठेर ॥ पाय त्रीजानो नहीं गम, विष्णु कोप्यो बोले ताम ॥ २४ ॥ वलि बांधी पूठे पाय दीधो, सुर नर मली जय जय कीधो ॥ हाथ जोडीने मुनिवरने, कहे दमा करो स्वामि थमने ॥ २५ ॥ एह बंधन ठोमो स्वामि, क्रोध न कीजे गुणग्रामी ॥ उपशममें थया साधु. वलिवंधन बोड्यो निरीवाधु ॥ २६ ॥ विष्णुने सहु लाग्या पाये, मंत्रीए धर्म आचर्यों ध्याये ॥ समकित लीधुं सह लोके, जिनधर्म पाले जन थोके ॥ २७ ॥ श्रावकव्रत बलिए सीधां, मुनिवर वांदे सुख सीधां ॥ पद्मरथ राजाए आण्यो
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग?
नाव, मुनि वांदीने सेजे जाय ॥२०॥ विष्णुकुमार वाढल्य कीधो, सातसें मुनि रक्षण लीधो| ॥ राखमी बांधे लोक तेथी, बलेवनो दिन कह्यो एथी ॥३॥ विष्णुकुमार गुरु कने जा, लीधोप्रायश्चित व्रत धाश्॥ निरमल नाव धर्मने साधे, क्रिया तप जप झान ते लाधे ॥३॥
उदा. ___ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग विवेक ॥ जिनशासन महीमा खरो, के मिथ्या धर्म डेक ॥ १॥ पवनवेग बोल्यो तुरत, निश्चय करी सुख गम ॥सत्य वचन तुमे जे| कह्यां, रही तुमारी माम ॥२॥श्री हीरविजय सूरि तणो, शुनविजय कवि शिष ॥ नाव विजय नावे करी, नमुं तेहने निशदिश ॥३ ॥ सिजिविजय शिष्य तेहना, रूपविजय कविराय ॥ कृष्ण विजय कर जोडीने, रंगविजय रंग लाय ॥४॥ पहेलो खंड पूरो थयो, सतरे ढाले करीसत्य॥नेमविजय कहे नेहथी,श्रोता सुणो एक चित्त ॥५॥ इति श्री विष्णुवाद, ब्रह्मविवाद, गणेशोत्पत्ति नीच करमाचरणे,
प्रथमोबास प्रथम खंग संपूर्ण १ लाज, शोला.
॥श्ए॥
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंड २ जो.
डुदा.
मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुम जाय ॥ विप्र पुराणनी वारता, पूर्वापर चित्त लाय ॥१॥ विरोध घणां हुं दाखवुं घटतां असत्य तेद || सांजलतां याशो खुशी, एमां नही संदेह ॥ २ ॥ पवनवेग कहे तुमे, जो शास्त्र विचार || शिघ्र नाइ मुज दाखवो, विनोद तणो भंडार ॥ ३ ॥
ढाल पहेली.
लाख चोराशी रथ जला ए, तेहना वृषन धोरी सुकुमाल - ए देशी. विद्या प्रजावे बेहुजणे ए, जील तणुं रूप कीध ॥ साजन सहु सांजलो ए ॥ कृष्ण वरण बीदामणा ए, धनुषबाण कर लीध ॥ सा० ॥ १ ॥ मस्तक केश वे बाबरा ए, चोपमा नाक वली मुंड ॥ सा०॥ रातां नेत्र गुंजा समां ए, दांत लांबा होठ मूंब ॥ सा० ॥२॥ कठिण हैया करकस देहीए, पुफ वेला शिर जार ॥ सा०॥ मयूर पिंठ घरेणां धर्यां ए, लोह कंकण गुंजादार ॥ सा० ॥ ३ ॥ विद्याबल मंजार कर्यो ए, घट मांही लेइ धर्यो
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी० ० ॥
ते ॥ सा० ॥ काने बुचो कालो घणो ए, लेइ चाब्या नर वेय ॥ सा० ॥ ४ ॥ ब्रह्मशाला उत्तर दिशे ए, जील श्राव्या दोय ताम ॥ सा० ॥ घंटानाद मेरी तामीने ए, बेठा सिंहासन ठाम ॥ सा० ॥ ५ ॥ बाद सुणी विप्र घ्यावीया ए, वाद करीशुं अपार ॥ सा० ॥ वचन खंमशुं तेह तणां ए, जीतीने कुटशुं ते वार ॥ सा० ॥ ६ ॥ | देखीने वागव कोपीया ए, रेरे अधम नर तिम ॥ सा० ॥ सिंहासन चोट्या तुमे ए, नेर वजामी किम ॥ सा० ॥ ७ ॥ श्रघट काम कर्तुं घणुं ए, छाव्या कहो कोण काज ॥ सा० ॥ मनोवेग तव बोलीयो ए, सांजलो तमे द्विजराज ॥ सा० ॥ ८ ॥ मीनको वेचवा श्रावीया ए, पुलिंदे श्रमारी जात ॥ सा० ॥ विप्र वचन वलतो जणे ए, जु जुर्ज मूर्खनी वात ॥ सा० ॥ ए ॥ लंग मोटा महा रंगना ए, घंटानाद कियो जेण ॥ सा० ॥ विप्रशुं वाद कर्या विना ए, बेठा सिंहासन ते ॥ सा० ॥ १० ॥ मनोवेग जणे सांजलो ए, विप्र म धरशो रोष ॥ सा० ॥ नेर घंटारव श्रमे कर्यो ए, विनोद कारण नहीं दोष ॥ सा० ॥ ११ ॥ जो तुमने बेठा नवी गमे ए, तो उतरी बेसुं देव ॥ सा० ॥ मा करो द्विज तुमे जलाए, हर्ष धरी चित्त ठेठ ॥ सा० ॥ १२ ॥ विप्र जणे सुए नील
१ नील.
खंग २
॥ ३० ॥
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
डाए, मिंजारना गुण केत ॥ सा० ॥ मनोवेग कहे सांजलो ए, मुज मिंजार गुण एत ॥ सा० ॥ १३ ॥ एंह शरीर गंध विस्तरे ए, बार जोयण परिमाण ॥ सा० ॥ मूषक नावे त्यां लगे ए, ए पूरव गुण जाण ॥ सा० ॥ १४ ॥ सांजलीने विप्र दरखीया ए, मांहो| मांदे बोले ताम ॥ सा० ॥ लीजीए मीनडो रुयडो ए, तो सरे सहुनां काम ॥ सा० ॥ १५ ॥ आपणे गाम जंदर घणा ए, दाण करे कणसूले ॥ सा० ॥ वेचातो लीजे मीनको ए, जील कहो तुमे मूल ॥ सा० ॥ १६ ॥ एह मीनो मे लेयशुं ए, सत्य वचन जाखो सार ॥ सा० ॥ मनोवेग कहे सांजलोए, एहनो मूल साठ दीनारं ॥ सा० ॥ १७ ॥ विप्र सहुए विचारी ए, मूल थोडो भिंजार ॥ सा० ॥ एटलो जान एक दिवसे होये ए, मूषक करे घरबार ॥ सा० ॥ १८ ॥ एक कहे मूज धोतीयां ए, एक कहे नारी घाट ॥ सा० ॥ चीर सामी फामी जंदरे ए, एक कहे खएयुं हाट ॥ सा० ॥ १८ ॥ एक कहे करड्यां कापडां ए, एक कहे खाधां धान ॥ सा० ॥ एक कहे पग दोय तथा ए, अंगुली ये वही वान ॥ सा० ॥ २० ॥ एम कही मलीया सदु ए, एकेक लीधो दाम ॥ सा० ॥ साठ सोनैया जोमीया ए, आव्या शालाए ताम ॥ सा० ॥ २१ ॥ वारुव कहे जीलगा
१ पाक.
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
चर्मपरीसुणो ए, अव्य लइ पो मीन ॥सा॥ मनोवेग कहे परीक्षा करी ए, लेज प कहेशोखक
हीन ॥ सा ॥ २२ ॥ एक कहे साचुं सही ए, घट मांहीथी काढ्यो तेह सा॥ हिज - ३१T
सहुए मीनो नीरखी ए, बुचो रुधिर जर्यो देह ॥ सा ॥ ३ ॥ विप्र जणे सुण
hankar नीलमा ए, मीनमो बुचोसें कान ॥ सा ॥ रुधिरालो दीसे वली ए, कहो कारण गुणवान ॥ सा ॥ २४॥पहेली ढाल बीजा खंडनी ए, रंगविजय कविराय ॥सा॥ तस शिष्य नेमविजय कहे ए, वात सुणो चित्त लाय ॥ सा ॥२५॥
मुहा. मनोवेग कहे सांजलो, वनवासी अमे नील ॥ अपूरव दीगे मीनमो, लीधो जाणी गुण मील ॥१॥ पाली पोषी मोटो कर्यो, अव्य जोए ने आज ॥ घटमां घाली मीनमो, श्राव्या वेचवा काज ॥२॥ नूमि पणी चाली करी, श्राव्या वाडव गाम ॥ दिवस गयो रजनी थर, विश्राम रह्या एक गम ॥३॥ थाक्यो नूख्यो मीनडो, घट थकी काढ्यो दीन ॥ एक गमे पमी रह्यो, निशा श्रावी खेद खीन ॥४॥ श्रमे सुता
॥३१॥ निडावशे, नीकली बंदर श्रेण॥ सुतो दीगे मीनडो, मूषक मली करे केण ॥५॥ सबल शत्रु जे आपणो, दुःखी कीजे एह ॥ मोटो उंदर श्रावीयो, (मीनो) सुतो
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
दीगे तेह ॥६॥ कान दोय तेणे करमीया, बुचो थयो तिणी वार ॥ सांजली ब्राह्मण कोपीया, खोटो नील गमार ॥ ७॥ बार जोजन गंधे करी, उंदर नासे पूर॥ तेना कान केम करडीया, निसा तणे जरपूर ॥ ७ ॥ एहवी अचेतन जेहने, सुगंध दीसे क्रूर ॥ तेहने कहो किम लीजीए, श्राजमीये केम नूर ॥ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो विप्र सुजाण ॥ एक दोष मंजारनो, अवर गुणनी खाण ॥ १० ॥ विप्र वदे ए केम घटे, श्राबण विणसे दूध ॥ स्नेह तूटे लोज स्वल्पथी, विचारी जुर्म निज बुझ ॥ ११॥ सुगंधी वस्तुमा एक कली, लसण करे पुगंध ॥ गुण घणा शुं कीजीए, एक दोष टले बंध ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे हिज सुणो, जो कीजे वादनी वात ॥ मिंजार दोष हुँ परहरूं, तो छिज करे मुज घात ॥१३॥ सत्य वचन मुज नाषतां, लोक न माने । आज ॥ कदाग्रही राजकुमर परे, केम कीजे द्विजराज ॥१४॥
ढाल बीजी. . तुमे पितांबर पहेरी थाव्याजी, मुखने मरकलडे-ए देशी. सकल वामव बोल्या वाणीजी, नाश्तुमे सांजलो॥पुलिंद तमे गुण खाणीजी ॥१॥ कदाग्रही पुरुष ते केहवोजी॥ना ॥तेहनो गुण हतो जेहवोजी ॥ ना ॥ वात सुणावो
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
खरु
ते अमनेजी ॥ना॥शाबाशी दीजे तमनेजी ॥ जा ॥२॥ वचन सुणी मनोवेगजी ॥ना कहे तुमे राखजो नेगजी ॥नाणा कथा सुणी रखे कोपोजी ॥ना॥ वचन माहरो रखे लोपोजी॥ना॥३॥बगलाण देश मोकारजी ॥जा॥नंदरबार नगर उदारजी ॥ना॥ नरपति नामे के राजाजी ना॥ रूपिण राणीना गुण ताजाजी ॥ ना० ॥॥ पुत्र हु| जनम अंधजी ॥ना॥ सदु कहे कुमार अंधजीना॥ नाट नीखारीने तेहजीना॥ शृंगार दान दीए एहजी ॥ ना० ॥५॥ नित नवां दीए श्रानरणजी ॥ जा ॥ मंत्री विनवे ज राय चरणजी ॥ नाण॥ कुमार करे धन हाणजी ॥ना॥ नंमारीने कहे तिण गणजी ॥ ना० ॥ ६॥ कुमारे माग्यां अलंकारजी ॥ना॥ नंमारी कहे तिणी वारजी ॥ ना॥ आनूषण खुट्यां नंडारजी॥ना॥ शुं श्रापुं तुमने कुमारजी ॥ ना ॥७॥ अंध कुमरे तज्यां अन्नपानजी ॥ जा ॥ सुमनो थर सुतो एक थानजी ॥ नरपतिए सांजली वातजी ॥नाणा प्रधान तेमीने एकांतजी ॥ ना० ॥॥ श्रम घर एकज पुत्रजी ॥नातेह रुट्यो नाखे नबत्रजी ॥ना॥ बुद्धिसागर मंत्री कहे तामजी ॥ना॥ कुमर|MH३ ॥ मनातुं हुं श्रामजी ॥ जा०॥ ए॥मंत्रीए तेड्या सोनारजी ॥जाणालोहना घमी थापो
१ प्रीति.
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
शृंगारजी ॥ ना ॥ सोनीए घडीने श्राप्याजी ॥ नाण॥ कुमरने हाथे जश थाप्याजी Kाना ॥ १० ॥ नोजन कराव्युं कुमारजी ॥ना॥ मंत्री बोले तिणी वारजी ॥ ना० ॥
कुमर सुणो तुमे वातजी ॥ना जंमारमाथी काढ्या तुम तातजी ॥ ना०॥ ११ ॥ एद
शृंगार बे एहवाजी ॥ना॥ विघन निवारे तेहवाजी ॥ ना० ॥ श्रापशो मां तुमे कोश निजी ॥ना॥ श्रमे अपायुं तुम जोश्नेजी ॥नाण॥ १५॥ जे कोइ कहे लोहाजरणजी पनामा तेहने मार देजो आवे मरणजी ॥ जा ॥ कुमरे मान्यो तेहनो बोलजीजा राख्यो मंत्रीनो तव तोलजी ॥ १३॥ लोक नणे ए अलंकारजी ॥ना॥ लोढानां श्रापे निरधारजी ॥ ना ॥ ताम कुमर करे तव रीसजी ॥ना॥ लकुटी मारे तस शिशजी ॥ ना ॥ १४ ॥ दुःखी थया सहु लोकजी ॥ जा॥ कदाग्रही नाम दीयो थोकजी ॥ जाण ॥ जेहवो हु तेहवो बोलजी ॥ना॥ कदाग्रहीनी परे शो तोलजी ॥ १५ ॥ मनोवेग कहे सारजी ॥ ना० ॥ सत्य वचन निरधारजी ॥ ना ॥ विप्र न मानो तुमे
बोलजी ॥ना॥ केम रहे अमारो तोलजी ॥ ना ॥ १६ ॥ तुम तणां वेद पुराणजी Vला अरथ करतां करो जो देराणजी ॥ना ते माटे केम कहेवायजी ॥ना॥श्रम |
तणी लाज लोपायजी ॥ जा ॥ १७ ॥ जेणे श्रादयुं काम वली जेहजी ॥ना॥ते जाणे
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ३३ ॥
खरुं सही तेहजी ॥ जा० ॥ श्रतिमोही नर एक मूढजी ॥ जा०॥ तेहनी कथा चित्त धरो गूढजी ॥१८॥ बीजा खंडनी ढाल कही बीजीजी ॥जा० ॥ श्रोता सहु कहेजो जीजीजी ॥ जा० ॥ रंगविजय कविनो शिष्यजी ॥ जा० ॥ नेमविजय प्रणमे निशदिशजी ॥ १ ॥
उदा.
विप्रवचन तव बोलीया, सुबरे जील सुजाण ॥ कथा कहो तिमोही तणी, सांजलवा सावधान ॥ १ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, ब्राह्मण सुखजो सार ॥ कथा कहुं हुं रुयमी, विनोद तो चंडार ॥ २ ॥ नमीयाम देशमां निरमली, नर्मदा नदी वहे सार ॥ दक्षिण तट तिहां गामको, शामंत नाम अपार ॥ ३ ॥ लोक वसे तिहां रुयमा, धर्म करे अभिराम ॥ माधव मेदेतो अति जलो, अधिकारी ति गाम ॥ ४ ॥ सुंदरी नारी तेह तणी, शीयलवंत गुणवंत ॥ ते बेदु जणथी पुत्र दुवो, सोनपाल नाम महंत ॥ ५ ॥ पुत्र प्रसुत हुवा पढी, माधव न गमे तेह ॥ सुंदरी रूप शुं कीजीए, जोवन | नातुं देह ॥ ६ ॥ शामंत गाम वसुदत्त वसे, सुरंगी नार सुचंग ॥ कुरंगी पुत्री ते तणी, रूप कला सुरंग ॥ ७ ॥ माधवे धन आपी घणुं, परणी कुरंगी नार ॥ जोवनजर रली श्रामणी, तेहशुं नेद अपार ॥ ८ ॥ काम कुतूहल करे घणुं, इंडी लंपट तेह ॥
खंग १
॥ ३३ ।
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुरंगीए अति मोहीयो, जोगवे जोग तस देइ ॥ ए ॥ सेजे कुरंगी कुलक्षणी, अपरशुं वांडे जोग ॥ कामे पीमी कामिनी, न मले तेने जोग ॥ १० ॥
ढाल त्रीजी. कंत तमाकु परिहरो - ए देशी.
सुंदरीनां लक्षण जलां, शीलवंती शुभ नार ॥ मोरा लाल ॥ पर नर दीठो नवि गमे, | पाले शुद्ध आचार || मो० ॥ १ ॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए यांकणी ॥ सुंदरीनो शील नवी गमे, कुरंगी करेरे कुरंग ॥ मो० ॥ कोपे चमी नित्य कलकले, आप वखाणे अंग ॥ मो० ॥ सू० ॥ २ ॥ जरतारनो वली बल घणो दीये घटतां श्राल ॥ मो० ॥ सापण सरीखी फुंफुंए, मुख मोड बोले गाल || मो० ॥ सू० ॥ ३ ॥ सुंदरी मनमां खीमा धरी, उपशमे आणे अंग ॥ मो० ॥ अशुभ कर्म कीधां में घणां धर्म तणो कीयो जंग ॥ मो० ॥ सू० ॥ ४ ॥ कुरंगी कंथ श्रागल कहे, सांजलो स्वामि एकंत ॥ मो० ॥ वमी नारी तुम न रुयमी, अवगुणनो नहीं अंत ॥ मो० ॥ सू० ॥ ५ ॥ शोकनी वात कशी कहुं, कहेतां श्रावे मुज लाज || मो० ॥ द्वेष माटे तुमे जाणशो, नहीं कहीए ते याज || मो० ॥ सू० ॥ ६ ॥ माधव कोप्यो धमहड्यो, तेहना सांजली बोल ॥ मो० ॥
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरीवनितानो विश्वास करे, ते जाणीए निटोल ॥ मो॥ सू०॥॥माधवे सुंदरी परहरी,
अलगुं प्राप्युं गेह ॥ मो० ॥ पुत्र सरसी जुश् करी, वहेंची थाप्युं तेह ॥ मो० ॥ सून २UMN ॥ श्राव बलद थाप्या जला, दश आपी वली गाय ॥ मो० ॥ नाग करी सहु वेंचीयो,
लोके कीधो न्याय ॥ मो ॥सूणाए। अपर मंदिर सुंदरी रहे, नंदन सरसी तेह ॥मो सद्गुरु ते प्रतिबोधीया, जैन धरममां बेह ॥मोासू० ॥१॥ माधव कुरंगी\ मोहीयो, बोले जीजी जाप ॥ मो० ॥ अबलानी आणा धरे, तेह तणो हु दास ॥ मो० ॥ सूON ॥ ११ ॥ कटकाए चालीयो, देश तणो महीपाल ॥मो॥ माधव नणी पूत मोकव्यो, तेमी लावो ततकाल ॥ मो० ॥ सू० ॥ १२ ॥ ते तव श्रावी का, माधव म ला वार मो॥ राजा कटके चालीयो, बोलाव्या फुकार॥मो॥सू॥१३॥ माधवने तव उ-IN पन्यो, कुरंगी उपर मोह ॥ मो० ॥ नारीने तेमी वीनवे, आपण होशे विडोह ॥ मोग सू० ॥ १४ ॥ कुरंगी कहे स्वामि सुणो, तुम विण घमीयन जाय ॥ मो० ॥ अन्नपान | ते नवि रुचे, दिवस वरसां सो थाय ॥ मो॥सू० ॥ १५ ॥ अमे तुम साथे श्रावशें, नहीं तो करशुं आपघात॥मो ॥ मुज उपर किरपा करी, मानो अम तणी वात ॥मो० ॥ सू० ॥१६॥ तव माधव श्म बोलीयो, सांजल शीलवंती नार॥मो॥थोडे दिवसे अमे
३४॥
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रावशें, रुमी परे रहेजो घरबार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ तुज सतीमां गुण ने घणा, लंपट लोक श्ह गाम ॥ मो० ॥ जगनी सुत महाबुद्धिने, शीष दश् करजो घरकाम | ॥ मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ एम कहीने ते चालीयो, पहोतो कटक मोकार ॥मो० ॥ माधव मनमां चिंतवे, सदाए कुरंगी नार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १५ ॥ ढाल त्रीजी बीजा खंगनी, रंगविजय कविराय ॥ मो० ॥ तस शिष्य नेमविजय कहे, आगे कहुं वात बनाय ॥ मो० ॥सू॥२०॥
उहा.
| कटके जव कंत चालीयो, तव हुवो हर्ष अपार ॥ कुरंगीने काम व्यापीयो, मांड्यो कुव्यापार ॥१॥ योवन नर रूपे जलो, सोनार चंगो नाम॥ प्रपंच करी घर तेमीयो, एकांत बोली ताम ॥२॥ सांजलो स्वामि रुयमा, रूप तणा नंमार ॥ जोवनवंतां| बेहु जणां, लाहो लीजे संसार ॥३॥ बुद्धि माधव श्रम धणी, इंक काटj तेह ॥ सफल जनम थाय श्रापणो, तुम मले सुख थाय देह ॥ ४॥ धूरत चंगो बोलीयो, सांनल जोली नार ॥ सात व्यसन से, सदा, ए मुज गमे विचार ॥ ५॥ तुम वचन | मुज लोपतां, ब्रह्महत्यादिक होय ॥ वेद पुराणे आदर्यु, चतुर नर लोपे कोय ॥ ६॥
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
३५
एम कही बिहु जण मल्यां, जोगवे जोग विलास ॥ रात दिवस व्यभिचारीखा, धन विलसे करे हांस ॥ ७ ॥ वर्ष एक एणी परे गयो, पाप करंतां ते ॥ माधवनो श्रागज हुवो, दिन च श्रावे गेह ॥ ८ ॥ जारे श्रावतो जाणीने, वाही कुरंगी नार ॥ घूरत धन लेइ गयो, ठगली कीध अपार ॥ ए ॥ कटकी करीने यावीयो, माधव मोह धरंत ॥ श्रागलथी नर मोकल्यो, कुरंगी श्राव्यो कंत ॥ १० ॥
ढाल चोथी. राणकपुर रलीयामरे लाल - ए देशी.
जोजन जलां वेगे करोरेलाल, मूख्या बे जरतार ॥ सनेहीरे ॥ तेणे वचने जांखी थइरे लाल, चिंता उपनी अपार ॥ सनेहीरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथारे लाल ॥ ए
कणी ॥ १ ॥ सुंदरीने मंदिर गइरे लाल, बेठी करीने प्रणाम || स० ॥ वमी बेहेन सुणो विनतिरे लाल, घरे श्राव्या श्रापणा स्वाम ॥ स०॥ सू० ॥२॥ तुं बाइ वमी जामनीरे लाल, हुं नानी ढुं तेह || स० ॥ जोजन करावो जरतारनेरे लाल, राखो वमपण | देह || स० ॥ सू० ॥ ३ ॥ तव सुंदरी बोली इसुंरे लाल, मुजशुं प्रीत नहीं कंत ॥ स० ॥ जोजन नहीं करे मुज घरेरे लाल, कुरंगी सुण संत ॥ स०॥ सू० ॥ ४ ॥ जमाडुं
खंग २
॥ ३५ ॥
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुज घर कंतनेरे लाल, श्म कही गई निज गेह ॥ स ॥ सरल खनाव सुंदरी तणोरे| लाल, रसवती नीपाइ तेह ॥ स० ॥ सू० ॥५॥ माधव श्राव्यो कुरंगी घरेरे लाल, मोह धरी बेगे बार ॥ स० ॥ मधुर खरे सादज करेरे लाल, उत्तर दीयो कुरंगी| नार ॥ स० ॥ सू० ॥६॥ घणे दीवसे अमे श्रावीयारे लाल, (हवे) सर्या बेहुनां काज ॥ स० ॥ मनोहर तुं मुज कामनीरे लाल, बाहिर श्रावो तजी लाज ॥ स ॥ सू० ॥ ७॥ शब्द सुणी लोक बहु मल्यारे लाल, ( तेणे ) कडं कां पोकारो नार || सम्॥ सबल लंपट बपी रहीरे लाल, गली कीधी कोठे जार ॥ स० ॥ सू० ॥ माधव कहे जूठ कां लवोरे लाल, शीलवंती मुज एह ॥ स० ॥ मोह धरी घरमांक गयोरे लाल, पाय पमी मनावे तेह ॥ स ॥ सू० ॥ ए॥ हुँ नूख्यो नोजन दीयोरे| लाल, लाज न कीजे जरतार ॥ स ॥ कोप धरी कुरंगी जणेरे लाल, तुं मोटो उतार ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ सुंदरीशुं मोह तुज तणोरे लाल, जोजन रंधाव्युं ते त्यांहिं ॥ सण ॥ उठ जा घरमा तेह तणेरे लाल, पाखंड करी थाव्यो थांहीं ॥ स ॥ सू० ॥ ॥ ११ ॥ सोनपाल नंदन बोलीयोरे लाल, बापना प्रणमी पाय ॥ स ॥ मंदिर पधारो पिता आपणेरे लाल, रसोइ नीपाश् मुज माय ॥ स० ॥सू०॥१२॥ वयण सांजली तव ।
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरी
पुत्रनारे लाल, नय पाम्यो माधव ताम ॥ स० ॥ बोल बोले कुरंगी श्राकरारे लाल, लाखक मुख निहाले नारी तणुं श्राम ॥सण॥ सू०॥१३॥ कोहाड डसी दांत एम कहेरे लाल, शहां थकी जा जा धूतार ॥ स ॥ ठेक करवाने श्राव्यो श्हारे लाल, जणनारने जा घरबार ॥ स ॥ सू० ॥ १४ ॥ कोप नारोनो जाणी आवीयोरे लाख, सुंदरी घरे । ततकाल ॥ स ॥ मान दी, घणुं श्रावतारे लाल, सुंदरी मनमां उजमाल ॥ स॥ सू० ॥ १५ ॥ लेखे अवतार आज आवीयोरे लाल, स्नान करावे सुंदरी नार ॥ स॥ थाल मांड्यो जमवा जणीरे लाल, पासे कचोलांनी हार ॥ स ॥ सू० ॥ १६ ॥ पक्-II. वान्न पीरस्यां प्रेमे करीरे लाल, साल दाल घृत पूर ॥ स ॥ माधव महेतो मन चिंतवेरे लाल, कुरंगी रूपी दुःख नूर ॥ स ॥ सू० ॥ १७ ॥ मधुरी वाण सुंदरी करे लाल, जोजन नवी करो केम ॥ स ॥ तव माधव एम चरेरे लाल, नवि नावे अन्न मुज जेम ॥ स ॥सूारजा लघु जामनी शाक आणे शहारेलाल, तो अमृत लागे अन्न ॥ स ॥ तव सुंदरी लेवा गरे लाल, हाथ कचोलो लेश मन ॥ स || सू० ॥ १५ ॥ ढाल चोथी बीजा खंडनीरे लाल, रंगविजय कवि शिष्य ॥ सol नेमविजय कहे नित प्रतेरे लाल, प्रणति करुं निशदिश ॥ स ॥ सू ॥॥
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा.
कुरंगी बेन तमे सांजलो, न करे जोजन जरतार ॥ मुजने मोकली लेवा जणी, शाक उपर बहु प्यार ॥ १ ॥ कुरंगी जाएयुं कंत मोहीयो, परीक्षा करूं दवे एह ॥ वृद्ध बलदनो बाण देखीने, चणा दाल खाधी जेद ॥ २ ॥ बाण कचोलुं नरी करी,
प्यो सुंदरी हाथ ॥ माधव जणी जइ श्रापीयो, उष्ण शाक बे नाथ ॥ ३ ॥ कुरं गीए शाक मोकल्युं, देखी रीज्यो नाथ ॥ जमतां वखाणे घणुं, रुडा एहना हाथ ॥४॥ जमी उठ्या माधव तिहां, तेड्यो निज जाणेज ॥ एकांत जर पूढे सही, केम उतार्यो कुरंगी हेज ॥ ५ ॥ महाबुद्धि तव बोलीयो, सुप मामा एक वात ॥ शील लोप्युं तुम कामनी, खाधुं धन जार संघात ॥ ६ ॥ माधव बोल्यो सांजली, सांजल तुं लघु नार ॥ संपदा सघली किहां अबे, तुमे वावरी कुण ठार ॥ ७ ॥ कुरंगी बोली ततक्षीणे, जाणेजनो ए नेद ॥ सांजलजो धुरथी सहु, वात कहुं ध्रुव वेद ॥८॥ मुजशुं हास्य करे बहु, एक दिन वलग्यो ते ॥ हृदय वलुर्यु मुज त, अधिक कहुं शुं एए ॥ ए॥ पुष्य तथा परजावथी, शील राख्युं में नेट ॥ कष्ट दीधुं मुजने घणुं, घणी पाडी मुज वेवं ॥ १० ॥ धन खाधुं एणे बहु, तस्करी करतो नित्य ॥ जइ परने देतो सदा, वावर्युं एम घर वित्त ॥११॥ सुणी माधव
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ३७ ॥
कोपे चड्यो, तेमावी ततकाल ॥ जाणेज जणी ढींक पाटुए, मार दीधी तेणे ताल ॥ १२ ॥ घरथी काढी मेलीयो, लोक करे अपवाद ॥ वांक नहीं जाऐजनो, विष वांके कीधो वाद ॥ १३ ॥ लोके मली विचारीने, माधवनो दीयो नाम ॥ श्रतिमोही नर एहवो, संहु कहे ठामोाम ॥ १४ ॥ ढाल पांचमी.
जंबूद्वीपना जरतमां, एलावरधनपुर सारोरे - ए देशी.
मनोवेग कहे सांजलो, विप्र विचारो जेमरे ॥ श्रतिमोही नरनी परे, तुमे करशो वली तेरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ जे जेणे वस्तु मोहीया, ते जाणे एह साररे ॥ शुभ अशुभ जाणे नहीं, मूला जमे गमाररे ॥ सू० ॥ २ ॥ वेद पुराण जे तुम तषां तेणे मोह्या अपाररे ॥ वचन तेह तणां श्रादरी, घटतुं करे संसाररे ॥ सू० ॥ ३ ॥ यथार्थ वचन मुज जाखतां, जो होय शिक्षा पातरे ॥ जाणेज महाबुद्धिनी परे, ( केम न ) होये काम तो घातरे ॥ सू० ॥ ४ ॥ न अन अंतर कह्यो, पेय पेय विचाररे ॥ अनाचार याचार नहीं, ते नर मूढ गमाररे ॥ सू० ॥ ५ ॥ ब्राह्मण वयण तव बोलीया, सांजलो नाइ जीलोरे ॥ श्रम मांहीं मूढ को नहीं, अतिमोही कुशीलोरे ॥ सू० ॥ ६ ॥ वाव कहे जाए सांजलो, मंजारमां एक
खं
॥ ३७
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
दोषरे ॥ केम परहरशो अमने कहो, कोइ न करे तुम रोषरे ॥ सू० ॥ ॥ ७ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, विप्र सदुको सुजाणरे ॥ वेद पुराणमां जे कयुं, तेहवी बोलुं श्रमे वापरे ॥ ८ ॥ नर्मदा नीर वहे निरमलुं, ते कांठे वन सोदे साररे ॥ तापसी पल्ली तिहां अबे, तापस तपसी अपाररे ॥ सू० ॥ ए ॥ मंडपकोशीक तप करे, अहोरात्रि जपे हरि रामरे ॥ तापस सर्व बहु तप तपे, स्नान मज्जन रेवा ठामरे ॥ सू० ॥ १० ॥ पंचाग्नि धुम्रपानशुं, कंद मूल नक्षण तेहरे | मोटी जटा मस्तक धरे, पांच इंद्रि दमे देहरे ॥ सू० ॥ ११ ॥ सोमदत्त जजमान जलो, तपसीयांने दीये | दानरे ॥ एकदा तापसी नोतर्या, तेड्या सहु देइ मानरे ॥ सू० ॥ १२ ॥ विविध प्रकारे जोजन कर्यां, बेसणां मांड्यां हारबंधरे ॥ थाल कचोलां मांड्यां घणां, शाक पक्वान्न सुगंधरे ॥ सू० ॥ १३ ॥ रुपकोशीक देखीने, बीजे तापसे निंदा कीधरे ॥ थाल मूकीने चाब्या सदु, कोपे दंताधर लीधरे ॥ सू० ॥ १४ ॥ धाइ जजमाने पूर्वीथा, जमवा बेठा उव्या केमरे ॥ शुं अपराध मारडो, काज विणास्यो मुज तेमरे ॥ सू० ॥ १५ ॥ वृद्ध तापस तिहां बोलीया, सांजलो सोमदत्त देवरे ॥ मंडपकोशीक तमे नोतर्या, | पंक्तिमां बेसाड्यो खेवरे ॥ सू० ॥ १६ ॥ मंरुपकोशी के पूबीजं, में शुं कीधो अपराधरे ॥ दोष
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
मिपरी
खम
काढ्यो तापसे श्रम तणो, फोगट विगोयो कांश साधरे ॥ सू० ॥ १७॥ घरढा तापस तव बोलीया, सांजल मूढ गमाररे ॥ नारी विना तुं वांजीयो, ब्रह्महत्या पग पग साररे ॥ सू० ॥ १७ ॥ पुत्र विना सद्गति नहीं, स्वर्ग मुक्ति नवि होयरे ॥ पुत्र तणुं| मुख जोश्ने, तापस दीदा धरे सोयरे ॥ सू० ॥ १५ ॥ मोटो अपराध तुमे कर्यो, थाल विचे चोव्यो तेहरे ॥ पापी नर जाणी उठीया, मूकी जाणां नयां गेहरे ॥०॥ ॥ २० ॥ मंडपकौशीक एम नणे, सांजलो तापस राजरे ॥बुढो देखी मुज कोण दीए, | विप्र कन्या सारे काजरे ॥ १॥ तापस बोल्या सुणो तापस, पुराण स्मृति बोट्यु एमरे ॥ पांच श्रापद जे स्त्रीने होये, परणो ते मांहेनी तेमरे ॥ सू० ॥ २२ ॥ नासी गयो नर जेहनो, मरण पाम्यो वली जेहरे ॥ तापस थयो नारी तजी, नपुंसक हुवो पडे तेहरे ॥ सू० ॥ २३॥ घरमो हुई कंत जे तणो, नारीने आपदा पंचरे ॥ एह || मांही जेहवी मले, एक परणो करी संचरे॥सू०॥४॥ नष्टेमृते प्रव्रजेच, क्विबे च पतिते पतौ ॥ पंचखापत्सु नारीणां, पतिरन्यो विधीयते ॥ २५ ॥ बीजा खंड तणी कही, ढाल पांचमी वारुरे ॥ रंगविजय कविरायनो, नेम कहे श्रोता सारुरे॥ सू० ॥ ६ ॥
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. अपत्य सहित जे कामिनी, पुरुष चाख्यो परदेश ॥ आठ वरष वाट जोड्ने, अन्य || नर साथ प्रवेश ॥१॥ संतान रहित जे ब्राह्मणी, कंत गयो व्यापार ॥ चार वरष.
लगे वाट जोश, पत्रे श्रवर जरथार॥२॥स्मृति वाक्यम् ॥अष्टौ वर्षाणि पश्येत, ब्राह्मणी जापतिते पतौ ॥ अप्रसूता च चत्वारि, पुरतोऽन्यः समाचरेत् ॥ वचन सुणी तापस तणां,
मंगप हरख्यो ताम ॥ रामी ब्राह्मणी परणीजे, पंमाणी तेहy नाम ॥ ३॥ जोग जोगवतां बेहु थकी, पुत्री हुइ गुण माल ॥ स्वर्ग रंजा जाणे अवतरी, गया नाम रसाल |॥४॥ श्राप वरषनी जव थर, (कहे ) मंडपकौशीक सार ॥ सांजल जामनी तुज .. कहुँ, तीरथ जात्रा कीजे अपार ॥५॥ बाया (पुत्री) मूकीशुं किहां, ठगम कहो
मुज खास ॥ तापसी कहे खामि सुणो, मेलो थापण शंकर पास ॥६॥ मंडपकौशीक सएम जणे, सांजल जोली नार ॥ हर लंपट चंचल सदा, नवि डोडे कन्या सार ॥ ॥M |कामनी कहे बोलो करुं, महादेव त्रिजुवन धीश ॥ लोक सहु पूजे तेहने, व्यभिचारी
नोहे ईश ॥ ७ ॥ तापस कहे सुण कामनी, ईश्वरचरित्र कडं जेह ॥ महीमंगल मोटो निलो, कैलास पर्वत तेह ॥ ए॥ गौरी शंकर सुख जोगवे, करे तप जप धरी ध्यान ॥
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी० त्रिकाल संध्या कारणे, गंगाए गया नगवान् ॥ १० ॥ स्नान करी देव पूजीया, संध्या । ३एवंदन कर्यु सार ॥ तिणे अवसर कांठे देखीजं, गंगा नारी रूप फार ॥ ११ ॥ गंगा
देखी विद्ववल थयो, कामबाण पीड्यो ईश ॥ ध्यान मूकी मन चिंतवे, उर्वशी रंजा सुरीश ॥ १२ ॥ एह कन्या मुजने वरे, सफल देह पण थाय ॥ रूप रच्यु कुंवर तणुं, लघु वय कोमल काय ॥ १३ ॥
ढाल ही. एणे पुर कंबल को न वेशी, फेर पाना चाल्या परदेशी-ए देशी. फेरवी रूप हुवो जग त्रात, गंगा सरसी मामी वात॥ सांजल कुमरी मनोहर नार, y मुज वाणी तुं हृदय विचार ॥ १॥ एकला वनमां कारण कशुं, मारुं मन तुज उपर वस्युं ॥ त्रिजुवन मांहिं तुं रुमी नार, जोवन सफल करो संसार ॥२॥ कुमरी कहे| मुज गंगा नाम, परणी नथी कंथ श्रनिराम ॥ केम करीए मोटो व्यभिचार, ए नोहे| उत्तम आचार ॥ ३ ॥ शंकर कहे सांजल कुमारी, हुं कुंवारो बुं निरधारी ॥ सरीखो| In जोग मल्यो ने घणो, करीए कारण विवाह तणो ॥४॥ गंगा वचन गम्युं ते सार, संदेपे कीधो श्राचार ॥ काम क्रीमा कीधी बेहु घणी, सुख पाम्यो तव ईश्वर धणी |
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ५॥ कैलास चडवा चाल्यो जाम, कामनीए कंथ पूज्यु ताम ॥ परणीने क्या जाशो नाथ, अमे आवीशुं तमारे साथ ॥ ६॥ शंकर कहे सांजल तुं सुंदरी, मुज मंदिर ने गिरि उपरी ॥ तिहां रही निरमल ध्यान धरूं, नारी संगति तव परिहरु ॥७॥ त्रण काल आq तुम जणी, काम क्रीडा करशुं बेहु घणी ॥ तमे रहेजो तमारे गम, शीघ्र श्रावीशुं श्रमे करी काम ॥ ॥ एम कही ते चाट्यो जाम, पुंठे लागी गंगा ताम ॥ कैलास उपर चमी बेय, पारवतीए दीगं तेय ॥ ए ॥ गौरी कड़े सांजल | सुंदरी, कोण नारी तुं केने वरी ॥ गंगा कदे सांजलरे संत, अमे जान्हवी एमुज कंथ ॥ १० ॥ पारवती कहे तुमे अंज, केम जोगवशो मुज वालंज ॥ गंगा कहे पूडो वृतांत, मुज रतिक्रीमा कदेशे कंथ ॥ ११॥ उमीया कहे सांजलो नरतार, कुण कामनी ए केहेंनी नार ॥ शंकर पनणे सुण सुंदरी, क्रीडा करतां में गंगा वरी ॥ १५ ॥ गौरी कहे सुण निर्लज निगेर, लंपट धुतारो तुं ने जोर ॥ असंतोषी कामी तुं सही, हुँ नारीए तृप्ति तुज नहीं ॥ १३ ॥ गंगा सरीखो करशो नेह, तो हुं मारी मूकीश देह ॥ly सांजली शंकर बोल्या ताम, रूपवती तुं दे अनिराम ॥ १४ ॥ तुज उपर मुज प्रेम अपार, गंगा तणो करशुं परिहार ॥ संतोषी पारवती सार, मूकवा चाल्यो गंगा नार
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ४० ॥
॥ १५ ॥ जान्हवी तीरे लाव्यो जाम, काम कुतूहल कीधो ताम ॥ गंगा राखी जटा मोकार, नारी बेशुं करे व्यापार ॥ १६ ॥ मंरुपकौशीक कहे वृतांत, शंकर न होये एहज संत ॥ सुर नर खेचर जाणे सहु, महादेव व्यभिचारी बहु ॥१७॥ थापण ठवीए ईश्वर पास, तो सही पामे पुत्री विणास ॥ दूध जलावीए जो मंजार, तो शंकर शुं करो व्यापार ॥ १८ ॥ तापस नारी बोली ताम, ईश्वर मोटो एहनो ठाम ॥ बायाने मूकीशुं तिहां, विचार करीने बीजो जिहां ॥ १५ ॥ कामनी कहे सांजलो तुमे कंत, बाया ठवीए पासे अनंत ॥ वासुदेव भुवन त्रय राय, सुर नर जेना सेव पाय ॥ २० ॥ तापस कहे सांजलरे नार, ए मोटो गोवालणीनो जार ॥ केम उवीए ए पासे बाल, सहु जाणे ए परस्त्री काल ॥ २१ ॥ तापसीए विनवीया कंत, स्वामि कथा कहो ते संत ॥ मंरुपकौशीक बोल्यो ताम, सांजलजो नारी अभिराम ॥ २२ ॥ ढाल बही बीजा खंगनी सारी, नेमविजय कड़े निरधारी ॥ श्रोता सांजलजो सहु कोय, वात कहुं जे आगल होय ॥ २३ ॥
डुदा.
रामती नगरी डे, दामोदर त्यां राय ॥ नारी सोल सहस्रनो, अधिपति ते कदेवाय ॥ १ ॥ एक दिन दीठी गोवालणी, राधा जेनुं नाम ॥ मही मटुकी मस्तक
खंग
॥ ४०
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
धरी, वेचण श्रावी ताम ॥२॥ दही खूध जाजन जरी, श्रावी केशव पास ॥ श्रचरिज पाम्या रूपथी, ते वितक सुण तास ॥३॥कामे पीमाणो घणो, विरदानल संताप ॥श्रवर नारी ते नवि गमे, लेह लागी ते आप ॥४॥ सोल सहस्र गोपी तणो, त्यां उतार्यों मोह ॥ राधा उपर श्रति घणो, पाम्यो त्यां व्यामोह ॥ ५ ॥ सुण राधा गोवालणी, तुजशुंरंग अपार ॥ अवर नार मुज नविगमे, तुज सम को नहीं संसार ॥६॥ दाण थाप मटुकी तणुं, सांजल मारी वाण ॥ प्रेम धरो श्रमशुं तमे, म करो खेंचा ताण ॥ ७॥ तव बोली राधा तिहां, सांजल राजा राम ॥ पुरुषोत्तम ए वातमां, किम सीजे तुम काम ॥ ॥ नारायण सुर नर कहे, अयुक्त बोलो श्राज ॥ मोटा पण खोटा हिये, राखो तुमारी लाज ॥ ए॥ नीच जाति श्राहीरनी, जोला अमे नरवाम ॥ तेहने एवं|| कम घटे, पेखी किम पमो खाम ॥ १०॥
ढाल सातमी. कर जोमी कामनी जपे, कहेतां थरहर काया कंपे-ए देशी. सांनलो धर्मशास्त्र विचार, ए नहीं उत्तम श्राचार ॥ परनारी लंपट नर जेह, मरीने उरगति जाये तेह ॥ हो लाल ॥ सुणजो साजन सहुको ॥ ए श्रांकणी ॥१॥
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ४१ ॥
रात दिवस जे बांधे पाप, नगर मांहीं लड़े ते संताप ॥ सदा जव होये अशुभ ध्यान, तेहने को नवि दीये मान ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ २ ॥ कर्मजोगे जो राजा जाणे, बेदन जेदन बहु करे कामे ॥ दंडे मुंडे लोकने बांधे, करावे गर्दन रोहण खांधे ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ३ ॥ लिंग नासिका होये बेद, सजन सहुको पामे खेद ॥ कालां मुख होवे बांधव तणां, लका पामे कुलवंत घणा ॥ हो ला० ॥ सु०॥४॥ फिट फिट करे सहु कोय, मित्रवर्ग सदु दुःखी होय ॥ दान पूजा जश लोपाय, कृष्ण वदन लोकमां थाय ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ५ ॥ ते उपर कथा सुणो एक, जेथी यावे तुमने विवेक || कोइ गाम रहे एक शेठ, राज काजनी करे वे वेठ ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ६ ॥ तेहने श्रीमती नामे नारी, रूपे रंजा सुर अवतारी ॥ शेवने प्रोहीतशुं मित्रा, नित यावे जावे घर धाइ ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ७ ॥ एक दिन ते शेठ विचारी, परदेश चाढ्या परवारी ॥ प्रोहीतने जलावी गेह, तस नारीशुं मांड्यो नेह || होला० ॥ सु० ॥ ८ ॥ शीलवंत नारी कहे ताम, केम कहो वो मुजने आम ॥ तव बोल्या प्रोहीत तेह, जो करशो मुजशुं नेह ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ए ॥ तो सुख धाशे तुमने, राजी करशो जो श्रमने ॥ जे कहेशो ते विधि करशुं, तुम वयण मे दिल धरशुं ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ १० ॥ तव चिंतवे नारी एम, शील रहेशे माहरु |
खंग श
॥ ४१
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
केम ॥ एवी बुद्धि कोश्क उपाऊं, प्रोहीतनी लाज लोपावें ॥ हो ला ॥ सु० ॥११॥ एम चिंतवी बुद्धि उपाश्, प्रोहीतने कहे समजा ॥ पोहोर रात्रि जाये तेणी वार, श्रावजो था हुशियार ॥ हो ला ॥ सु० ॥ १२ ॥ प्रोहीत थयो तव राजी, गयो निज, घर मनमां गाजी॥ कोटवाल पासे गश् नारी, तमे डो नगर तणा अधिकारी हो ला सु० ॥१३॥ प्रोहीत वांडे मुजशुं प्रीत, तेनी कहेवा आवी ढुं रीत ॥ सांजली कोटवाल तव बोले, नहीं नारी अवर तुम तोले ॥हो ला ॥ १४ ॥ अमशुं जो राखशो राग, तो प्रोहीतनो शो लाग ॥ एम सांजली नारी कहे वात, बीजे पोहोरे आवजो रात ॥ होला ॥ १५ ॥ तिहांथी गश् सचीवनी पासे, वात धुरथी कही जबासे ॥ तुमे नगर तणा अधिकारी, कोटवालने राखो वारी ॥ होला ॥ सु० ॥ १६ ॥ कामांध थयो नारी देखी, कोटवालने नाखुं उवेखी ॥ मुज आगे बल यो एहनो, वयण मानशो मां कां कहेनो ॥ हो ला ॥सु॥१॥ सचीव कहे मुज साथे, मेलो मेलव्यो जे जगनाथे॥
सुंदरी कहे त्रीजे पहोरे, थावजो थर थापणे तोरे ॥हो ला ॥ सु ॥१७॥ राजा नMणी चाली श्रावी, वात धुरथी कही संजलावी ॥ राजा पण राज्यो जोइने, बीसो मां
वयण कहे कोश्ने ॥ हो ला॥सु० ॥ १५॥ ढुंगाम तणो राजा, कोण लोपे माहरी
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
४२ ॥
माजा ॥ प्रोहीत प्रधान कोटवाल, तेहने काढी मूकुंरे ततकाल ॥ हो ला० ॥ सु० ॥२०॥ हुं थापुं करी पटराणी, वीजी तुम आये पाणी ॥ तव सुंदरी कहे तुमे राय, चोथे पोहरे मुज घर मांय ॥ दो ला० ॥ सु० ॥ २१ ॥ त्यांथी श्रावी निज घर मांहे, पाडोसप डोसी बे त्यां ॥ तेने ते मी समजावे एम, कागल लखी यापुं जेम ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ २२ ॥ बीजा खंमनी सातमी ढाल, नेमविजय कहे उजमाल ॥ तुमे सुणजो बाल गोपाल, आगल कहुं वात रसाल ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ २३ ॥
उदा.
कागल लइ उतावली, रात रहे घमी चार ॥ रोती रमती श्रावजे, करती ति | पोकार ॥ १ ॥ समजावी पामोसणी, घरमां एक मजूस ॥ तेहमां खानां चार बे, चोखी करी लइ लूस ॥ १ ॥ एम करतां संध्या थइ, थाव्यो प्रोहीत जाम ॥ आदरमान दीधो घणो, लटपट करती ताम ॥ ३ ॥ जोजन जाजन करे घणां सजी सोल शणगार ॥ हाव जाव देखामती, पोहोर रात तेणी वार ॥ ४ ॥ कोटवाल रही बारणे, कहे कमाड उघा ॥ मांहीं थकी बोली तिहां, हुं जोतीती वाट ॥ ५ ॥ तव प्रोहीत नारी जणी, कहे दवे कोण हेवाल | जो जाणे मुजने सही, टाले वाम ततकाल ॥ ६ ॥
खं श
॥ ४२
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
मजूस एक मादरी, तुम पेसो ते मांहिं ॥ गम न पडे कोने कशी, मौन करी रहो त्यांहिं ॥ ७ ॥प्रोहीतने मांहिं घालीयो, यंत्र जमीने झार ॥ तलार घरमां तेमीयो, बोलावे तेणी वार ॥ ७॥ खातां पीतां खांतशु, दोय पोहोर ग रात ॥ त्रीजा पोहोरे श्रावीयो, सचीव थर रखियात ॥ ए॥ बीन्यो कोटवाल एम कहे, मुज सांतो को गम ॥ मुजने देखे जो हां, न रहे माहरी माम ॥१०॥ बीजे खाने घालीयो, सची|वने लीधो मांय ॥गीत गान करती थकी,सचीव तणो गुण गाय ॥११॥ चोथो पोहोर जव श्रावीयो, राजा बोल्यो वाण ॥कमाम उघाडो उतावलां, देखे को अजाण ॥१२॥y सचीवे सादज सांजल्यो, थरथर ध्रुजे काय ॥ नारी जणी बोले तिहां, मुज सांतो को गय ॥ १३ ॥ त्रीजे खाने घालीयो, राजा लीधो मांहिं ॥ नयण बाण लगामता, रीजवे राजा तांहिं ॥ १५ ॥ चार घमी रात पाडली, श्रावी पामोसण नार ॥ कागल हाथमां लेश्करी, निपट करती पोकार ॥ १५ ॥
ढाल आठमी. करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे-ए देशी. उठ उठ. रे रांग तुं सूझ रहीरे, मूळ तुज जरतार ॥ कागल श्राव्योरे श्राज परछी-1
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरीपनोरे, सलिल मूर्ख निरधार ॥ सांजलजो श्रोतारे, कथा अचरिज तणीरे ॥
ए खक श्रांकणी ॥१॥ सांजली नारी रुदन करे अति घणुंरे, कुटे हृदय ने शीष ॥ सगां ४३॥
साजन सहु श्रावी मल्यारे, हार जनां पाडे चीस ॥ सां॥२॥ मांहे बेगे राजा मन चिंतवेरे, हुवोरंगमां नंग॥मुजने सांतो को एकांतमारे, श्रावी लाग्यो व्यंग॥ सांग॥ ॥३॥ नारी कहे तुमे मोटा राजवीरे, किहां सांतुं नथी गम ॥कहो तो मजूस एक मोटो अडेरे, मौन करी रहो धाम ॥सांगा॥ कहे राजा तुमे शीघ्र थर हवेरे,म करो , ढील लगार ॥ चोथे खाने राजाने घालीयोरे, प्रपंच करी तेणी वार ॥ सांग ॥५॥ नर नारी श्राव्यां घरमां वहीरे, श्रारीम कारीम कीध ॥ एम करतां परमात थयो । हवेरे, वात थ परसीध ॥ सांग ॥६॥ वात सुणी दरबारमा राणीएरे, खबर करो । जश राय ॥ चाकर दोड्या नूपने शोधवारे, दीग नहीं कोई राय ॥ सांग ॥ ७॥ सचीवने शोध्या सारा शहरमारे, दीसे नहीं कोटवाल ॥प्रोहीतने जोया वली चिहुं दिशेरे, फरी थाव्या ततकाल ॥ सांग ॥ ॥ राणी कहे ए शेठ हतो वांकीयोरे, I.GI॥४३
एहनो माल होये जेह ॥ राणी जाणे गुपत राजा वच्चेरे, मंगावी ले तेह ॥ सां॥ Vए ॥ सेवक दोडाव्या राणीए तताखणेरे, एहना घरमा वस्तु सार ॥ लावो जश्ने
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
को जाणे नहींरे, ढील म करजो लगार ॥ सांग ॥ १० ॥ चाकर चाट्या सहु थर एक मनारे, पहोंत्या शेग्ने गेह ॥ नारीए दीधो श्रादरजाव श्रावतारे, बोल्या | अनुक्रमे तेह ॥ सांग ॥ ११॥ सार वस्तु जे तुज घरमां होयरे, ते श्रापो श्रमने श्राज ॥ तव बोली ते नारी सांजलीरे, साचा कहुं तुमे राज ॥ सांग ॥ १५ ॥ मजूस मोटी घरमां अरे, माल मांहीं ले सार ॥ वृषन जोडी खेर जावो तुमेरे, मेख्यो ने मुज जरतार ॥ सांग ॥ १३॥ सांजली दोड्या अनुचर उतावलारे, वृषन थाण्या ततकाल ॥ जोडी वृषन तणावी ले गयारे, राणी थ उजमाल ॥ सांग ॥ १४ ॥ ताला उघामी मांदेथी काढीयोरे, प्रोहीतने तेणी वार ॥ राणी कहे तुमे पेग केम शहारे, श्रद्जुत वात अपार ॥ सांग ॥ १५ ॥ तव प्रोहीत कहे बीजं बार[रे, उघामी देखो | देव ॥ ततकण उघाड्यो जव सहु मलीरे, दीगे कोटवाल ततखेव ॥ सांग ॥ १६ ॥ श्रचरिज देखी राणी एम कहेरे, चोकी करवा काज ॥ तस्कर पकमवा पेग तुमेरे, नली राखी तुमे लाज ॥ सांग ॥ १७ ॥ मुख ढांकीने कोटवाल एम करे, उघामो त्रीजुं बार ॥ तेहवे राणीए कपाट उघामीरे, सचीव दीगे तेणी वार ॥ सांग ॥ ॥ १७ ॥ राणी कदे तुमे दफतर मांमवारे, जश् पेग एकांत ॥ सचीव कहे तुमे मुजने
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरी
4
४४॥
शुं कहोरे, केम थइ रह्या निर्चित ॥ सांग ॥ १ ॥ राजाजी साथे सहु मसी अमे|| गयारे, चोथो उघामो गम ॥ ततक्षण राणीए छार उघामीयुरे, नीचुंघाल्युं ताम ॥ सांग ॥ २० ॥ चादर उढी मुखने सांतीयुरे, फिट फिट करे सहु लोक ॥ उठी त्यांची गया निज निज घरेरे, चिंतवे मनशुं फोक ॥ सांग ॥१॥ बीजा खमनी ढाल ए श्रामीरे, नेमविजय कहे सार ॥ श्रोता सांजलजो सहु एक मनारे, जे वात होये निरधार ॥ सांग ॥॥
उदा. चारे मली मन चुंपशु, पाणी शुद्धि विवेक ॥ सासरवासो करीये सही, तो उतरे| श्रापणी ठेक ॥ १॥ ते नारी तेडावीने, कीधी जगनी तेह ॥ सासरवासो करी जलो, |वोलावी फरी गेह ॥२॥ एम राधा केशव जणी, समजावे कही वात ॥ परनारीना| संगथी, उपजावे उतपात ॥३॥ नारायण मोटा देवता, लागी मुंडी टेव ॥ दामोदर बोल्या तुरत, सांजलो राधा देव ॥४॥ धर्मशास्त्र जाणुं श्रमे, वचन म लोपो आज
परउपगारी परगजु, मोटी तुमारी लाज ॥ ५ ॥ अमे जामनी बहु उधरी, लाकुबजा सरखा केय ॥ पुराण प्रसिद्ध जाणे सहु, नाकारो मत देय ॥ ६ ॥ राधा तव |
।
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजी थर, गलो घर को जोय ॥ तेमां ग उतावली, बेहु जण मलीयां सोय ॥७॥ वैकुंठे संतोषी घj, राधा जोमी हाथ ॥ कहे स्वामी मुज जाण यो, रीस करशे मुज नाथ ॥ ॥ काम काज घरमा घणां, बुच्चो मुज जरतार ॥ क्रोधी गाल थापे घणी, जो जाणे व्यभिचार ॥ ए ॥ राते मुज घर थावजो, गुप्त करी तुम देह ॥ घर निशानी सौ कही, पोहोती निज घर तेह ॥ १० ॥
ढाल नवमी. कीसके चेले कीसके पूत, आतम एकीला हे अवधूत-ए देशी-(राग बंगाली.) विरहानल वाध्यो गोविंद, सघले देखे राधा वृंद ॥मन मान ले ॥ तालावेलि' टलवले तन, कोड सूरज बसे आकाशे मन ॥ म॥१॥ शीत लागे जे अगनी समान, एम करतां श्राथमीयो जाण ॥ म ॥ रात पमी दुवो अंधकार, गोविंद पहोंतो गोवालपी बार ॥ म्॥२॥ तस्करनी परे श्राव्या देव, छार दीधां दीगं ततखेव ॥ म॥ वैकुंठनाथ विमासे ताम, लोक सुता ने एणे गम ॥ म ॥३॥ बोलावीश तो जागशे लोक, चाम चोरी पमशे मुज फोक ॥ मण॥ मौन धरूं तो काम न होय,
१ एकज ध्यान.
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेपरी
खंमा
१५
IN
बोढुं तो जाणे सहु कोय ॥ म ॥ ४॥ अंगुलीनो संचल कीध, टपोरे कपाटे दीध ॥ म॥ राधा बोली जोती वाट, अंगुलीए कोण हणे कपाट ॥ म ॥५॥ अमे माधव
ते महंत, राधा कहे तुमे दो वसंत ॥ म ॥ नहींरे कामनी हुँ चक्रीश, राधा कहे कुंजारनो ईश ॥ म ॥ ६॥ धरणीधर हुँ मोटो देव, शेषनाग तुं श्राव्यो देव |
म० ॥ नारे अहीमर्दन श्रनिराम, राधा कहे गरुड तुज नाम ॥ म ॥ ७॥ नहींरे । हुं हरि जगदीश, राधा कहे तुं वानर ईश ॥ म ॥ विष्णु कहे राधा म करो इल, उत्तर देवाने अमे डंठ ॥ म ॥ ७ ॥राधा रंगे हास्युं एम करी, बार उघाडी लीधा मांहे हरि ॥मा काम कुतूहल मांड्यो ताम, नानूदय पाम्यो वली जाम ॥ माए॥ रात्रिए जर अन्यायज करे, दिवसे श्रावी राज्य उधरे ॥म ॥ नारायण लक्षण जे एह, बाल गोपाल जाणे तेह ॥म॥ १० ॥ तापस कहे सांजल तापसी, वात विचारी जुर्डने र असि ॥मा सोल सहस्र स्त्री नहीं संतोष, हरिने मोटो परनारी दोष ॥ म०॥ ११ ॥ थापण ग्वीए हरिनी पास, तो पुत्रीनो होये नाश ॥म॥ अवर विचार करीशुं जेम, बाया बाला मूकीए तेम ॥ म ॥ १२ ॥ ताम तापसी वदे वर वाण, सांजलो खामि तुमे बो जाण ॥ म ॥ वात कडं एम विचारी एक, सृष्टि निपार ब्रह्माए विवेक
४५ ॥
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ १३ ॥ तप जप संजम करता एह, शषि सघलामां मूलगो तेह ॥ म० ॥ सुर नर मांहीं कहीए सार, बाया पुत्री नलावो कुंवार ॥ म॥ १४ ॥ आपण जश्ए जात्राने काज, तो आपणी रहे जगमा लाज ॥म ॥ खंम बीजानी नवमी ढाल, नेमविजय कहे थश् उजमाल म० ॥१५॥
उदा.
| नारी वचन सुणी करी, तापस कहे गुणधार ॥ ब्रह्मा लंपट नहीं जलो, नवी बोडे परनार ॥१॥ पुराण मांहे कडं श्स्युं, ते सहु जाणे लोक ॥कांता कपटी ए कह्यो, मुज वाणी नहीं फोक ॥२॥ ब्रह्मा तप जप करे घणो, गंगा कांठे निवास ॥ कंठ जनोश करवडो', जप माला जपे जास ॥३॥ मृग चर्म ओढे पाथरे, इंजि दमे अपार ॥ क्रो|ध लोन माया तजी, ब्रह्म ध्यान ध्याये सार ॥ ४॥ सहस्र श्रव्याशी ऋषिने, बेगे नवी| जोये नेत्र ॥ इंसासनने कारणे, कष्ट करे पुण्य क्षेत्र ॥ ५ ॥ चोकमी उंठ काल गयो जव, तप करतां ब्रह्मराज ॥ तव इंसासन डोलीयु, सुरपति कहे कुण काज ॥६॥ बृहस्पतिने इंजे पूर्वीयुं, कहो गुरु कारण एह ॥ मुज श्रासन कंप्युं नर्बु, शुं होशे - १ नालवाळु वासण.
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
परीना कहो तेह ॥ ७॥ गुरु कहे इंश सांजलो, ब्रह्मा तप करे अघोर ॥ अरधी चोकमी हुवा
पड़ी, तुम पद लेशे जोर ॥ ७॥ सांजली इंछ उपाय रचे, अपबरा तेडी तिण काज || । ४६॥
ब्रह्मा तपथी चालवो, जिम रहे आपणो राज ॥ ए ॥ नृत्यकी कहे देवेंज सुणो, ए नवि होय श्रम काम ॥ गरढो कपटी कोपशे, श्राप दे फेडे गम ॥१०॥
ढाल दशमी.
नणदलनी देशी. | प्रीतम हे प्रीतम इंज, कहे सघली मली॥ तिल तिल दी मुज रूप॥प्री० ॥ तिलोत्तमा निपजावीशु,सर्व कलानो कूप ॥प्री॥ सुणजो साजन वातलमी ॥ ए आंकणी| ॥१॥ तिल तिल रूप नृत्यकी दीयो, तिलोत्तमा घमी सुरराज ॥प्री॥ कर 'जोमी उनी|| रही,श्रादेश द्यो कोण जे काज ॥ प्री० ॥सु॥२॥ अमरपति कहे रंजा सुणो, ब्रह्मा
॥४६॥ तप करो नाश ॥ प्री० ॥ एह चिंता सहुने घणी, पूरो अमारी श्राश ॥प्रीसु॥३॥ तिलोत्तमा बीरुं धरी, नारद तुंमर देव ॥ प्री० ॥ तप करतो ब्रह्मा जिहां, तिहां श्रावी
ततखेव ॥जी॥सु॥४॥ सनमुख नाटक मांडीयु, धप मप धौ धौं कार ॥प्री० ॥मादल | ||वाजे मधुर खरे, नं नं नेरी विस्तार ॥ प्री०॥ स ॥ ५॥ घम घम घघरी घमकती.IN ||
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
कड कड मोमी काय ॥प्री०॥ हाव लाव देखामती, नव रस नाटिक थाय ॥प्रीासु ॥६॥ जेम जेम नीरखे नारीने, तेम तेम ध्यान गयो पूर ॥प्री०॥ तिलोत्तमा रूप देखी करी, हरख उपन्यो जरपूर ॥प्री० ॥ सु०॥ ७॥ सारी ग म पधनी गायतां, चलीयुं ऋषितुं चित्त ॥णी॥ विकल रूप ब्रह्मा हुवो, श्रवणे सुणी ते गीत ॥प्रीासु ॥ ॥ ब्रह्मा चल चित्त जाणीने, वामांगे मांड्यो नाट॥प्री० ॥ राग बत्रीशे पालवी, ताल मेले नहीं घाट ॥प्री० ॥ सु०॥ए॥ मोह पाम्यो ब्रह्मा घणुं, चिंतवे मन मांहे एम ॥ प्री० ॥ झषि सघलामा हुँ वमो, मुख फेरवी जोडं केम॥ प्री० ॥ सु० ॥ १० ॥ जो| नवी नीर नृत्यकी, तो मुज दुःख होये देह ॥ प्री० ॥ नयणे निहालुं तिलोत्तमा, सफल जनम मुज तेह॥ प्री० ॥सु० ॥ ११ ॥ एक चोकमी तपने फले, मुख होजो माबे पास ॥प्री०॥ वदन बीजुं ब्रह्मानुं हुवो, देखी रूप विलास ॥प्री० ॥सु॥१२॥ पीन पयोधर पेखतां, रंज्या धाता जाम ॥ प्री० ॥ नाटक रचीयु पाडले, श्रानंद नृत्य | तिहां ताम ॥प्री० ॥ सु० ॥ १३ ॥ सारी ग म प ध नी गायतां, ब्रह्मा विमासे तेह ॥ प्री० ॥ पालुं फरी अवलोकतां, लाज श्रावे मुज देह ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १४ ॥ बीजी | चोकमी तपे करी, नीकलजो मुख पुंठ ॥प्री०॥वदन हुवो ब्रह्मा तणो, रूप जो हृदये
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ४५ ॥
तूठ ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १५ ॥ चित्त चल्युं जाणी करी, नाटक मांड्यं जमणे अंग ॥ प्री० ॥ जाव नेद देखामे घणा, ब्रह्मा नवि जोये रंग ॥ प्री० ॥सु०॥ १६ ॥ कामबाणे वीं ध्यो तदा, मन मांहीं चिंते ताम ॥ प्री० ॥ लाज लागे मुख फेरतां, विण जोए विषसे काम ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १७ ॥ चोकडी त्रीजी तपे करी, मुख नीकलजो सार ॥ प्री० ॥ चोथुं वदन हुवुं जलुं, दीसे दक्षिण नार ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १८ ॥ तव नाटिक गगने कर्यु, नव रस ब्रह्म विलास ॥ श्री० ॥ सृष्टिकर्ता मन चिंतवे, केम करी देखुं श्राका श || प्री० ॥ सु० ॥ १९॥ उंचुं जोतां हास्युं इसे, जोया विण न रहाय ॥ प्री० ॥ श्ररध चोककी तप तणे फले, मुज मुख गगने थाय ॥ प्री० ॥ सु० ॥ २० ॥ गर्दन वदन नीकल्युं तदा, मूंकारव करे विकराल || प्री० ॥ तव नाठी तिलोत्तमा, स्वर्ग गइ इंद्रने कहे हेवाल || प्री० ॥ सु० ॥ २१ ॥ दशमी ढाल बीजा खंडनी, रंग विजय कविराय ॥ प्री० ॥ तस शिष्य नेमविजय कहे, सांजलजो चित्त लाय ॥ प्री० ॥ सु० ॥ २२ ॥
उदा.
सांज जो खामितुमे, ब्रह्मानो तप जेह ॥ उंठ चोकडीनो कष्ट कर्यो, विफल थयो सहु तेह ॥ १ ॥ मुख चारे मुज देखीने, पांचमुं रासजनुं होय ॥ विकल थयो नृत्य जोवतां,
खंग श
॥ ४७
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
नूं जूं करे मुख तोय ॥२॥श्राचंच्या सुर सामटा, श्राव्या जोवा काज ॥ विपरीत रूपने देखीने, खम खम हसत समाज ॥३॥ तव ब्रह्मा कोपे चढ्यो, सुर उपर कीधी केम॥ नाग जाए घर जणी, तोहि नाव्यो नीवेम ॥४॥ जूजूंकार करतो थको, धायो केमे जाय ॥ कोलाहल वर्गमें थयो, अचरिज सहुने थाय ॥ ५॥ के खाशे के मारशे, त्रिजुवनमां पड्यो त्रास ॥ जय पाम्या तापस सहु, तप जप मूकी तास ॥ ६॥ नाग | लोक बहु ध्रुजता, केश पामे पोकार ॥ सुर नर किंनर थागले, थावे करतां मार मार | ॥७॥ ईश्वर शरणे श्रावीया, कहे मुज राखो हेव ॥ब्रह्मा संतापे ने घj, उःख नांजो| अम देव ॥ ७ ॥ रुष नाव रुखे कों, खुंजु मस्तक खर नख ॥ पीडा उपनी ब्रह्मा घ-14
णी, बोले मुखथी अशन ॥ ए॥ हत हत्यारा पापीया, तुजने लुमो देव ॥ मस्त क मानाहीं तोमीयुं, हत्या चड तुज हेव ॥ १० ॥
ढाल अगीयारमी. साहेबा मोती द्यो हमारो, मोहना मोती द्यो-ए देशी. मुज कपाल चमो तुज हाथ, जेम न करे एहवो किहां साथ ॥मानो तुमे वयण हमारो, सही करी मन मांही धारो ॥ ए श्रांकणी ॥ श्रापे ईश्वर थयो तव कालो, महादेव
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
परीकहे मतवालो ॥ मा ॥१॥ शंकर लागे ब्रह्मा पाय, कर जोडी कह्यो जग राय ॥
मा० ॥ में पापीए कीधो बाध, खीमा करी खमजो अपराध ॥मा ॥२॥ मुज पापीनी हत्या जाय, खामि ते कहेजो उपाय ॥ मा० ॥ खर कपाल पमे वली जेम, वचन नाखजो ब्रह्मा तेम ॥ मा० ॥३॥ कोमल वचने कृपा तव कीध, कोप तजी शिखामण, दीध ॥मा॥ ब्रह्मा कहे सांजलरे ईश, पापी मोटो तुं जगदीशमा॥॥ हत्या माह। श्रा उतरे एम, वचन कहुं ते करे तुं तेम ॥मा॥जटाजूट माथे हर राखो, मसाण राख विलेपन राखोमा॥नर कपाल तणो रचो दार, अस्थि रोम मांही गुंथो फारमा कोटे घालो ते वलीमाल, देखीती मोटी विकराल ॥माणा॥माक ने किन्नरी वा अपार, नांग धतुरो खार्ड फार ॥मा नगन थ हीमोगामो गाम, निक्षा मागो गमो गम |
मा॥॥ वरणावरण म करशो नेद, सघले लेजो निदा छेद ॥मा॥मुज कपाल माही घालोजेह, रात दिवस तमे जमजो तेह ॥माणाणा एणी परे हत्या जाशे तारी, ए शिखामण सारी मा॥ रुधिर देश को पुरशे कपाल, खर मस्तक पडशे तत्काल ॥मा॥ए॥ ब्रह्मा। वचन सुणी तव ईश, जोगी रूप धयु जगदीश ॥ मा० ॥कपालीक धरीयो तेह नाम, रात दिवस हीमे गामो गाम ॥मा॥१॥ एम करतां गयो घणो काल, मसाण नूमि सेवी
॥४
॥
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
जमाल ॥०॥ पापीने घरे गयो ततकाल, रुधिर पूर्यु ब्रह्मा कपाल ||मा०|| ११ || ईश्वरनी जमी लीधी हत्या, हाथ थकी तुंबकी पमी धरत्या ॥ मा० ॥ कपालीक शंकरनो नाम, लोक कहे जपो शिव ठाम ॥ मा०||१२|| वेद पुराण कथा वे एह, बाल गोपाल जाणे बे तेह ॥ मा० ॥ ब्रह्मानी सांजलजो वात, तप संजम कीधो बे घात ॥ मा० ॥ १३ ॥ छंबर गइ तिलो. त्तमा जाम, कामे पीड्यो ब्रह्मा ताम ॥ मा० ॥ विकल रूप दुवो बे अपार, भुवन नर्यु | देखे ते नार ॥ मा० ॥ १४ ॥ विह्वल थयो मलवाने धाय, नर नारी सदु नागं जाय ॥ मा० ॥ काड बीने सांइ देय, देवी जाणे तिलोत्तमा एय ॥ मा० ॥ १५ ॥ मृग पशु तणे धामे जाम, लंपट देखी नासे ताम ॥ मा० ॥ डमी एक मली वन मांय, लयबथ करीने तेहने साय ॥ मा० ॥ १६ ॥ रूप जाएयुं रंजानुं एह, वृद्ध ब्रह्माए जोगवी तेह ॥ मा०॥ रुतुवंती ते हुती ताम, जंबुवंत उपन्यो अजिराम ॥ मा० ॥ १७ ॥ बलवंत बुद्धि तणो निधान, प्रसिद्ध जाणे सहु वेद पुराण ॥ मा० ॥ रामचंद्र तणो दुवो ते छूत, जग विख्यात ब्रह्मनो सूत ॥ मा० ॥ १८ ॥ गरढानी करणी बे एद, किम उवीए पुत्री पासे | तेह || मा० ॥ सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को सार, नीपाइ नहीं एके नार ॥ मा० ॥ १५ ॥ डमीशुं कीधो व्यजिचार, मुंरुपणुं एहने अपार ॥ मा० ॥ तापस श्रमे सहुको जाएं,
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
।
धर्मपरी ब्रह्मा लक्षण केतां वखाणुं ॥ मा॥ २०॥ बीजा खंडनी ग्यारमी ढाल, सुणजो|
सहुको बाल गोपाल ॥ मा० ॥ रंगविजयनो कहे एम शिष्य, नेमविजयनी पहोंती जगीश ॥ मा० ॥१॥
उदा. श्राप कहुं वात एहनी, सांजल डाया मात ॥ वेद पुराणमां एहवी, साची कडं नाएक वात ॥१॥ सावित्री नार ब्रह्मा तणी, बेटी जग गुणधार ॥ सारदा कुमरी रंगा|
जीसी, देखी चलीयो तेणी वार ॥२॥ कामे पीड्यो पुंठे थयो, नारती नागी जाय ॥ INवनमां नासी ते गर, पुत्री पुंठे थाय ॥३॥ ब्रह्मा बेतरवा सही, मृगली रूप धयु
सार ॥ तव ब्रह्मा कुरंगनो, रूप धरी व्यभिचार ॥४॥ पुत्रीने विलसी करी, एडवो जेनो काम ॥ तो पुत्री बाया श्रापणी, केम जलावीए ताम ॥ ५॥ तापस कदे नारी | नणी, पुत्री न बोमे एह ॥ हरि हर ब्रह्मा सारिखा, पर नारी न मूके तेह ॥ ६॥ कर जोमी तापसी जणे, सांजल स्वामि कंत ॥ सूरज पासे सोंपीए, बाया बाला संत ॥७॥ तापस कहे सुण तापसी, दिनकर ने बीनाल ॥ कुंती कन्या जेणे लोगवी, किम गेमे ते बाल ॥ ७॥
॥४ए
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल बारमी. दील लगारे वादल वरणी - ए देशी.
सांज तापसी जादव राजा, समुद्रविजय सुखकारी ॥ तुमे सुणजोरे ॥ श्रागे होइ जे वात, मूकी पर तणी तात ॥ तु॥ ए यांकणी ॥ तेहनी जगनी कुंती कन्या, रूपे रंजा अवतारी ॥ तु० ॥ १ ॥ चतुर्थ स्नान करवाने बाला, जमुना नदी गइ तेह ॥ तु० ॥ वस्त्र विवर्जित स्नान करंती, सूर्यदेवे दीवी तेह ॥ तु० ॥ २ ॥ रूप देखी तव मदने पीड्यो, विप्र वेश वेगे लीधो ॥ तु० ॥ कषांवर पेहेर्यां जनोइ श्रारोपी, सर्वांग तिलकज कीधो ॥ तु० ॥ ३ ॥ राम राम मुख बोलतो निरमल, आव्यो कुंतीनी पासे ॥ तु० ॥ आशिर्वाद देश करी जंपे, सांजलो कुमरी उल्लासे ॥ तु० ॥ ४ ॥ काम क्रीडा श्रमशुं तमे खेलो, जोवननो लादो लीजे ॥ तु० ॥ कुंती कहे कुमारिका श्रमे तुं, श्रघट काम किम कीजे ॥ ॥ ८ ॥ द्विज रूपी सूरज वदे वाणी, सांजलो कुमरी अजाण ॥ तु० ॥ उत्तम वर्ण ब्राह्मण वेद जाण, विना नवि धरुं प्राण ॥ तु० ॥ ६ ॥ पवित्र पात्र श्रमे जगत् प्रसिद्धा, अमने थापे जे दान ॥ तु० ॥ पाप जाय सुख संपत्ति पामे, | स्वर्ग लोके लहे मान ॥ तु० ॥ ७ ॥ विप्र वचन कुमरी मन मान्युं, स्वस्ति जणावी का
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
खंग
परीय ॥ तु०॥ जोग विलास हुको रंग रोल, इर्ष प्रीत बेड थाय ॥ तु०॥७॥ गर्न Vinों कुंतीए तेणे अवसर, जोग करी वलीयो जाण ॥ तु० ॥ कुमरी कहे किहां जा|
जो खामि, वृतांत कहो बांडी काण ॥ तु॥ ए॥ हिजवर कहे सुणो सुंदरी कन्या, सूर्यदेव श्रम नाम ॥ तु ॥ रूप देखी चित्त श्रम तणुं चलीयु, विप्र हो कीधो काम |॥तु॥ १० ॥ जुवन प्रकाश करुं दिन गगने, जावा द्यो मुज श्राज ॥ तु०॥ कुंती कहे नहुं बाल कुमारी, उधान रह्यो दिनराज ॥ तुम्॥११॥ नासुर नणे नामनी तुम कूखे,
पुत्र होशे दातार ॥ तु० ॥ रूप कला बल बुद्धि विचक्षण, त्रीजा दिवस मोकार ॥ तु॥ १५ ॥ मंत्र अपूर्व वली आपुं तुमने, नर आकर्षण होय ॥ तु०॥ समरतां श्रा|वे सहु पासे, काज करशुं श्रापण दोय ॥तु॥१३॥ मंत्र श्रापी करी कुंती संतोषी, जानु गयो निज गम ॥ तु ॥ कन्याए काने जण्यो सुत सुंदर, करण हुवो तेह नाम ॥ तु०॥ १४ ॥ मंझपकौशीक कहे सुण तापसी, कुंतीने जोगवे जेद ॥तु०॥ सूरज देवता मोटो लंपट, गयाने केम बोडे तेह ॥ तु०॥ १५ ॥ ढाल बारमी खंड बीजानी, कही। श्रोताजन सारु॥तु॥रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥तु०॥१६॥
५० ॥
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा.
___ तापसी कहे स्वामि सुणो, चंड अडे महा संत॥पुत्री ते पासे उवी, जात्रा जशए कंत) K ॥ मंगपकौशीक तव कहे,सुण बायानी मात॥चं चपल लंपट घणो, घटती न होय
वात ॥॥ तेह कथा वली सांजलो,सोमे कीध अनाचार ॥ गुरुपत्नी तेणे जोगवी, कहेशु तेह विचार ॥ ३ ॥ बृहस्पति वसुधामां वडो, सुर सघलानो गोर ॥ तस नारी दी। रुयडी, चंझे लीधी चोर ॥४॥व्यभिचार तेहशुं श्राचर्यो, रात दिवस ते चं ॥ सुर गुरुए जाणी करी, राव करी तव इंऊ ॥ ५ ॥ जजमान तुमे सांजलो, चंडेहरी मुज |नार ॥ अन्याय कीधो एणे घणो, वेगे करोश्रम सार॥६॥सुरपति सैन्य ले संचर्यो, जुध | करवाने जाम ॥ सोमे शिव संख्या करी, श्राव्यो ईश्वरने धाम ॥ ७॥ कर जोमी। शशीकर नणे, सुणो शंकर महाराज ॥ एक कला देउ लांचनी, अम तणो करो काज ॥ ७ ॥ शंकर तव सेना लश्, त्रिशुल धरी निज हाथ ॥ ७ सामो वेगे जश्, युद्ध करे ते साथ ॥ ए ॥ उन्नय दल फूळ घणां, सुरपति शंकर बेद ॥ संग्राम करतां दिन घणा, केहेतां नावे बेद ॥ १० ॥
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ५१ ॥
ढाल तेरमी. कंकण मोल लीयो-ए देशी.
संधी तव देवे करीरे साजन, संग्राम निवार्यो ताम । सुगुणा सांजलो ॥ गुरुपत्नी आपो वलीरे ॥ सा० ॥ जार्ज तुमे यपणे गम ॥ सु० ॥ १ ॥ सोम कहे सुर सांजलोरे ॥ सा० ॥ बोरु बे श्रम तपुं जेह ॥ सु० ॥ उदर मांहीं अबला तरे ॥ सा० ॥
पावो अमने तेह ॥ सु० ॥ २ ॥ सुरगुरु तव तिदां बोली योरे ॥ सा० ॥ सांनलो तुमे सहु देव ॥ सु० ॥ उदरे अपत्य बे मादरुंरे ॥ सा० ॥ किम छापावो ततखेव ॥ सु० ॥ ३ ॥ सोम कड़े बोरु माहोरे ॥ सा० ॥ बृहस्पति कहे ए मुज ॥ सु० ॥ गुरु जजमान ऊगको करेरे ॥ सा० ॥ नवि पामे कोइ सूज | सु०॥४॥ वढतां थकां बेदु वारीयारे ॥ सा० ॥ न्याय कीधो तिणे एह ॥ सु० ॥ गर्भवती स्त्रीने पूढी एरे ॥ सा० ॥ साधुं | कदेशे तेह ॥ सु० ॥ ५ ॥ सुर सघले मली पूढी युंरे ॥ सा० ॥ गुरु कामनीने ताम ॥ सु० ॥ सुधुं बोलो मावमीरे ॥ सा० ॥ केनो छापत्य अभिराम ॥ सु० ॥ ६ ॥ गुरुपत्नी कहे सांजलोरे ॥ सा०॥ उदर मांदे बे जेह || सु० ॥ तेने तमे पूबजोरे ॥ सा० ॥ साधुं | कदेशे वली ते ॥ सु० ॥ ७ ॥ तव तेषी ते जनमीयोरे ॥ सा० ॥ पुत्र दुवो नि
खंग २
॥ ५१
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
| राम ॥ सु० ॥ बाप तणां लक्षण घर्णारेि ॥ सा० ॥ देवे मली पूब्यो ताम ॥ सु० ॥ ७ ॥ सुत साधुं तव उंचरेरे ॥ सा० ॥ सोम तो हुं पुत्र ॥ सु० ॥ सुर सघला जाणे सहीरे ॥ | सा० ॥ इणी जननीए प्रसूत ॥ सु०॥ ॥ सोम सूत सहुए कहेरे ॥ सा०॥ जाराजात वली नाम ॥ सु० ॥ बुधवार बुद्धि श्रागलोरे ॥ सा० ॥ पुराण प्रसिद्धो ताम ॥ सु० ॥ १० ॥ चंद्र तणां लक्षण एवांरे ॥ सा० ॥ जाणे बाल गोपाल ॥ सु० ॥ एद पासे केम मूकीएरे ॥ सा० ॥ पुत्री छाया बाल ॥ सु० ॥ ११ ॥ तापसी कहे तापस सुणोरे ॥ सा० ॥ इंद्र अपूरव श्राज ॥ सु० ॥ तेह पासे पुत्री मेलीनेरे ॥ सा० ॥ पढी कीजे निज काज ॥ सु० ॥ १२ ॥ तापस कहे सुण कामनीरे ॥ सा० ॥ इंद्र तणो व्यभिचार ॥ सु० ॥ पुराण प्रसिद्ध जाणे सहुरे ॥ सा० ॥ कहेशुं ते विचार ॥ सु० ॥ १३ ॥ गंगा नदी बे निर्मलीरे ॥ सा० ॥ तापस वसे तिहां सार ॥ सु० ॥ गौतम ऋषि सहुमां वमोरे ॥ सा० ॥ अहिल्या तणो जरतार ॥ सु० ॥ १४ ॥ एक वार स्वर्गद थकीरे ॥ सा० ॥ इंद्र सुरासुर | राय ॥ सु० ॥ विमान बेसीने यवीयोरे ॥ सा० ॥ वांदवा ऋषिवर पाय ॥ सु० ॥ १५ ॥ अहिल्या दीवी तिहां रुयमीरे ॥ सा० ॥ रूपे करी रंजा समान ॥ सु० ॥ देखी इंड विवल वोरे ॥ सा० ॥ लाग्यां अंग कामनां बाण ॥ सु० ॥ १६ ॥ रूप रची तेणे
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
मैपरी
रुयमोरे ॥ सा॥ अहिल्या निज वश कीध ॥ सु०॥ मढी माहे पेसी करीरे ॥सा॥ इंश थालिंगन दीध ॥ सु० ॥ १७ ॥ स्नान करी तव श्रावीयोरे ॥ सा॥ गौतम तापस जाम ॥ सु० ॥ हार दीधां देखी करीरे ॥ सा ॥ श्राचंन्यो तेह ताम ॥ सु० ॥१७॥ पर पुरुष देखी करीरे ॥सा० ॥ उपन्यो कोप अपार ॥सुणारंडे मुंडे तापसीरे ॥साणा उघाम वेगे करी बार ॥ सु० ॥ १५ ॥ जय पाम्या तव बेहु जणांरे ॥ सा ॥ इंड हुवो मिंजार ॥ सु०॥ घर मांहीं नासी गयोरे ॥सा॥ पेठो चूला मोकार ॥ सु०॥ ॥ २०॥ खंड बीजानी ढाल तेरमीरे ॥ सा ॥ श्रागे जे होये वात ॥ सु ॥ रंगविजय कविरायनोरे ॥ सा ॥ नेमने हर्ष सुखसात ॥ सु ॥१॥
उदा. | तव धूजंती तापसी, बार उघाड्यो जाम ॥ महारंड रांगनी शुं कर्यु, गौतम पूजे ताम ॥ १॥ कोण पुरुष ते घालीयो, लंपट बुच्चो जार ॥ साचुं कहेरे पापणी, श्रापे| करूं तुज गर ॥२॥ कामनी कहे कंथ सांजलो, घरमां ने मिजार ॥ ब्रांत पमी | तुम घणी, नहीं कीधो व्यभिचार ॥३॥ गौतमे ज्ञान विचारीयु, जाएयुं बेहुनुं पाप शीला कीध पाषाणनी, अहिल्याने दीध श्राप ॥ ४ ॥ बिलामो थ नासतो, इंज
॥५५ ।
..
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
धस्यो तेणी वार ॥ फिट पापी महा रंगना, तापसी कीध व्यनिचार ॥ ५॥ पर नारी तें जोगवी, ते उपर तुज रंग ॥ सहस्र शरीरे नीकलो, जगाकार उत्तंग ॥ ६ ॥ तापसने श्रापे करी, जोनि हुश् ततकाल ॥ मघवा शरीर जर्यु खलं, अशुज दीसे विकराल ॥ ७ ॥ पाय लागी इंज विनवे, सांजल तुं शषिराज ॥ लोक हांसुं होशे घj, लागशे बोहोली लाज ॥ ॥ क्षमा करो स्वामि तुमे, जग टालो मुज अंग ॥ हुँ| अपराधी पापोयो, मुज उपर करो रंग ॥ ए ॥ इं७ वचने उपशम करी, गौतम बोल्या | ताम ॥ होजो माहारी कृपा थकी, सहस्र लोचन श्रनिराम ॥ १० ॥ सहस्राक्ष ||नाम तेहनो हुवो, वेद पुराणे तेह ॥ लंपट पासे केम मेलीए, बाया पुत्री एह॥१९॥ तापसी कहे तापस सुणो, बृहस्पति विद्यानो वास॥सुर सघलानो गुरु जलो, पुत्री उवो तेह पास ॥ १५ ॥ तापस कहे सुण कामनी, तुं मोटी ने थजाण ॥ नाश्नी नामिनी| जोगवी, केम वीए होय हाण ॥ १३ ॥
ढाल चौदमी. बावा किसनपुरी, तुम विना मढियां उजड पमी-ए देशी. ताम तापस कहे सुण नार, सुर सघला लंपट निरघार ॥ साजन वात सुणो, सां
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी ॥५३॥
नली सहुको मत अवगुणो ॥ ए आंकणी ॥ ते पासे केम उवीए बाल, जामनी सुण | खंम तुं थइ उजमाल साासा॥१॥ एक वात में हृदय विचार, जम जग मांहीं रुडो ते सार ॥ सा ॥ जो धर्म विचारे तेह, बाया पुत्री पासे मूकीए एह ।सा॥सां०॥२॥ मंडपकौशीक तापस ताम, बाया लाव्यो जमने गाम ॥ सा ॥ कर जोडी कहे सुण महाराय, धर्माधर्म जाणो तुमे न्याय ॥सा॥ सांग ॥३॥ शीलवंत स्वामि गुणवंत, महीयल मोटो तुं महांत ॥ सा ॥ निकलंक तुं सुणीए महाराज, विनति माहरी सांजलो आज ॥ सा॥सांग ॥४॥ तीर्थजात्राए श्रमे जाऊं देव, गया थापिण राखो| हेव ॥ सा ॥ तुम प्रासादे करुं श्रमे जात्र, पवित्र होशे अमारां गात्र ॥ सा॥ सां| |॥५॥ जम कहे सुण तापस राज, ए अमने नहीं लागे लाज ॥ सा ॥ बोकी जा तुमे बाया एह, अनोगत श्रावी लेजो तेह ॥ सा ॥ सांग ॥ ६ ॥ तापस तव रलियात थयो, जम पासे मूकीने गयो ॥ सा ॥ श्रडसठ तीरथ करे फरी जाम, कृतांत | |वात सांजलजो ताम ॥ सा ॥ सांग ॥ ७॥ बाया रूप देखी अजिराम, जम सर्वांगे|NI व्याप्यो काम ॥ सा० ॥ मनमां चिंतवे नोगq एह, सफल जनम करूं मुज देह ॥ सा० ॥ सांग ॥ ७॥ नोलवी घरमांहे तेमी बाल, पाप करम मांड्यो विकराल ॥ सा ॥
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
घट काम कन्याशुं कीध, धर्मराज महीयल परसीध ॥ सा० ॥ सां० ॥ ए ॥ छाया सरसुं सुख जोगवे, रात दिवस ते जनम अनुजवे ॥ सा० ॥ सुर सघले तव जाणी नार, एहवी नहीं त्रिभुवन मोजार ॥ सा० ॥ सां० ॥ १० ॥ हरवा देरे पमीया देव, यममंदिरनी मांगी सेव ॥ सा० ॥ रात दिवस ते टांपे घणुं, ध्यान लाग्युं बे बाया तपुं ॥ सा० ॥ सां० ॥ ११ ॥ जमे जाण्यो तेइनो संच, सुर सघला मुज करशे वंच ॥ सा० ॥ उपाडीने गली ततकाल, उदर मांहीं उतारी बाल ॥ सा० ॥ सां० ॥ १२ ॥ देव देखे नहीं बाया तेह, माधुं खंजोली गया निज गेह ॥ सा० ॥ धर्मराज विमासण करे, सुर रखे मुज नारी हरे ॥ सा० ॥ सां० ॥ १३ ॥ एकलो निज मंदिरमां जइ, सघले निरखे उनो थइ ॥ सा० ॥ जोतां स्थान नवि देखे कोय, जबकीने जम काढे सोय ॥ सा० ॥ सा० ॥ १४ ॥ पाप करम तेहशुं संचरे, काम कुतूहल एणी परे करे ॥ सा० ॥ काम पड्ये काढे ततकाल, जोग करीने गले ते बाल ॥ सा० ॥ सां० ॥ १५ ॥ इषी परे काल बहु तस जाय, जमकर केहने ठावी न थाय ॥ सा० ॥ पवनदेव पृथ्वी मांहे जमे, जलमां थलमां श्राकाश ते रमे ॥ सा० ॥ सां० ॥ १६ ॥ श्रदृश्य रूपे सघले संचरे, ||देलाए ते कारज करे ॥ सा० ॥ तेथे दीठी बाया जाम, अग्नि मित्रने घर श्राव्यो
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ५४ ॥
ताम ॥ सा० ॥ सां० ॥ १७ ॥ विश्वानल तुं सांजल खाज, जनम सफल करे महाराज ॥ सा० ॥ रूपर्वत बायानो संजोग, तेहशुं जम करे नित जोग ॥ सा० ॥ सां० ॥ १८ ॥ उदर मांही राखे ते बाल, काज पड्ये काढे ततकाल ॥ सा०॥ विश्वानल कहे सांजल जाय, त्रिभुवन मांहे तुं मोटो वाय ॥ सा० ॥ सां०॥ १९ ॥ खंग बीजानी चौदमी ढाल, नेमविजय कदे उजमाल ॥ सा० ॥ श्रगल सांजलजो सहु कोय, वायुकुमार करे ते होय ॥ सा० ॥ सां० ॥ २० ॥
उदा.
जोग मले तेहशुं करो, जीव जातो मुज राख ॥ सांजलजो वायु कहे, वचन अमारां जाख ॥ १ ॥ जम जूठो कामी घणो, घडी एक न मेले बाल ॥ केम मेलाप तेहशुं होये, उदरमां राखे ततकाल ॥ २ ॥ याज एक बात विचारी में, पुण्ये सरशे काज ॥ गंगा स्नान करवा जणी, जम राजा करी साज ॥ ३ ॥ पोहोर एक जाय ध्यानमां, बाया मेली एक ठाम ॥ संध्या जाप करे तिहां, आपणो होशे काम ॥ ४ ॥ एक पोहोर अवकाशमां, जम नावे बाया पास || तेणे समे तिहां जाइने, बाया हरीए तास ॥ ५ ॥
खंग २
॥ २४
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल पंदरमी.
अणसणरारे योगी–ए देशी. विश्वानल आनंद्योताम, सांजल पवन अमारो कामरे ॥ सुणजो तमे जाय॥जो एक पोहोर मलशे संजोग, तो नवि पमशे कांश विजोगरे ॥सु॥१॥ बिरूल बोलीने चाल्यो जाम, अगनि गयो गंगातट तामरे ॥ सु० ॥ स्नान करवा श्राव्यो जम जांहीं, विश्वानल खोसीयो त्यांहीरे ॥ सु० ॥२॥ जम श्राव्यो जमना तट जाम, संघले देखी | निरंजन गमरे ॥ सु० ॥ वमन करी तव काढी नार, गया सांती कोतर मोकाररे ॥ सु० ॥३॥ जम जल पेसी करे सनान, संध्या तरपण मांड्यो ध्यानरे ॥ सु०॥ श्रगनि अपूरव रूपज लीध, श्रानूषण सघलां अंगे कीधरे ॥ सु०॥४॥ गया पासे श्राव्यो ताम, हास्य वचन बोल्यो अनिरामरे ॥ सु०॥ साचुं सांजल सुंदरी आज, श्रमे साty तमारुं काजरे ॥ सु० ॥५॥ त्रिजुवन मांहीं मोटो हुँ देव, सुर नर किंनर करे मुज सेवरे ॥ सु० ॥ तेत्रीश क्रोम तणो हुं मुख, दुं दे सघलाने सुखरे ॥ सु॥६॥ होम हुताशन जे करे मुज, मारो नाम राखे ते गुजरे ॥ सु० ॥ मुजने जे वली दीये दान, तेहने वाधे सुख संतानरे ॥ सु० ॥॥ श्रापण बेहु ढुं रूप निधान, नावे दीजीए
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
५५ ॥
जोगनुं दानरे ॥ सु०॥ बायाने तव उपनो रंग, स्वाहा करीने श्राप्युं अंगरे || | सु० ॥ ८ ॥ काम क्रीमा कीधी ततकाल, जम यावतो दीठो विकरालरे ॥ सु० बाया कहे तुं सांजल कंत, कृतांत करशे तुमारो अंतरे ॥ सु० ॥ ए ॥ जीवता जार्ज तुमे हवे याज, नहीं तो बेहुने लागशे लाजरे ॥ सु० ॥ कान नाक बेदे तव माहारो, मारी करशे कोथलो ताहरोरे ॥ सु० ॥ १ ॥ कशी संख्या न करो ए वात, नहीं तो आपणो होशे घातरे ॥ सु० ॥ श्रागे जीववधी यमराय, ते उपरे कीधो अन्यायरे ॥ सु० ॥ ११ ॥ विश्वानल कहे सांजल नार, हुं पग पांगलो ढुं अपाररे ॥ सु० ॥ चरण होय तो दोऊं आज, यम आगलथी करुं हुं काजरे ॥ सु० ॥ १२ ॥ यम जय पामी बाया बाल, नि देव गल्यो ततकालरे ॥ सु० ॥ धर्मराज आव्यो तेणी वार, उपाडी गली बाया नाररे ॥ सु० ॥ १३ ॥ घर थावीने जबके जेद, जोग करीने वली गले | तेहरे ॥ सु० ॥ स्नान करवा जम गंगा जाय, पोहोर एक तप जपने थायरे ॥ सु० ॥ ॥ १४ ॥ बाया तव उबके बे आग, पोहोर एक यावे तसु जागरे ॥ सु० ॥ यम देखीने गले याग बाया, नारीने लागी एम मायारे ॥ सु० ॥ १५ ॥ एणी परे कामिनी जोगवे बेद, छापर वात सांजलजो तेहरे ॥ सु० ॥ दिवस मास बहु जाये एह, अगनि
खंग २
॥ ५५ ॥
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
नाठो जग मांहीं तेहरे ॥ सु० ॥ १६ ॥ लोक तणां तव रांधणां रहीयां, घर दाटे अंधारां वहीयांरे ॥ सु० ॥ काचो कोरो खाए लोक, पेटपीडे करी पाडे पोकरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ सोनार लोहार पोकज पाडे, अगनि विना केम घाट घाडेरे ॥ सु० ॥ केम करे जगन जानी जाग, नहीं जाप विना कोइ लागरे ॥ सु० ॥ १८ ॥ जाप विना देव थया बे घेला, इंद्र यागे पोकारे गया वेहेलारे ॥ सु० ॥ सुरपति चिंता उपनी जाम, पवनदेव पूब्यो तेणे तामरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ वायु वदे सांजल मेघवान, अगनि जोयो में सघले ठामरे ॥ सु० ॥ एक जायगा बे ते तणी वारु, जोश्ने कदेशुं बीहुति' वारुरे ॥ सु० ॥ २० ॥ ढाल पंदरमी खंग बीजानी, आगे कहेशुं वात त्रीजानीरे ॥ सु० ॥ रंग विजयनो शिष्य एम बोले, नेमविजय नवि वात खोलेरे ॥ सु०॥
डुदा.
पवने तव सहु नोतर्या, सुर नर किन्नर देव ॥ जमने मांड्यां बेसणां, त्रण जणांनां | देव ॥ १ ॥ जम मन मांहे चमकीयो, वायु कवण ए काम ॥ एकेको शासन सहु जणी, | श्रमने केम त्रण ठाम ॥ २ ॥ वायु कहे साधुं कहुं, उदर मांहीं तुम तेह | सहुना
१ पत्तो.
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
५६ ॥
संदेह जांजशे, प्रत्यक्ष याशे जेह ॥ ३ ॥ जमने काढी जबकी, बायाने ततकाल ॥ पवन कहे जानी सुपो, मित्र श्रमारो थाल ॥ ४ ॥ बायाए वमी करी, विश्वदेव कदाड्यो ताम ॥ जम जूठो कोप्यो घणुं, अग्निनो टालुं ठाम ॥ ५ ॥ विश्वानल नागे तदा, कृतांत पुंठे धाय ॥ पग पांगलो गनिदेव ते, परुतो नागे जाय ॥ ६ ॥ तमोवम नाग बेहु जणा, व्यजिचारी मारुं आज || पेठो जइ पाषाणमां, विश्वानल तिए ताज ॥ ७ ॥
ढाल सोलमी.
सार,
सुण बेनी पीयुको परदेशी - ए देशी. अनि लोप न दीसे जाम, जम पाठो श्राव्यो ठामरे ॥ घरे लेइ गयो बायाने जोगवे कृतांत पाररे ॥ सांजलजो साजन जे कहुं वात ॥ ए कणी ॥ १ ॥ मनोवेग कहे सांजलो साच, वामव बोल्युं जे वाचरे ॥ वेद पुराणे बे ए वात, साचुं जूनुं कहो जातरे ॥ सां० ॥ २ ॥ द्विजवर बोल्या सांजल वाच, वचन तुमारो साचरे ॥ शास्त्र श्रमारे बोल्युं एम, श्रमे लोप्युं जाये केमरे ॥ सां० ॥ ३ ॥ मनोवेग बोल्यो वली ताम, सांजलो ब्राह्मण गुणधामरे ॥ जमदेव जाणे सहुए जगमां, श्रतीत
खंभ २
॥ ५६ ॥
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनागत वर्तमानमारे ॥ सां० ॥ ४॥ विश्वानल तस पेट मोकार, पोहोर एक जोगवे नाररे ॥ ज्ञाने करी जाण्यो नहीं तेह, जमे ढूकमो आपणो देहरे ॥ सां० ॥ ५॥ तो केम जाणे त्रिजुवन वात, दोष मोटो एक घातरे ॥जम सघलो जाणे संसार, अगनि न जाण्यो उदर मोकाररे ॥ सांग ॥ ६ ॥ तेम मुज मीना गंधी जाय, बार जोजन | बंदर न थाय रे ॥ जेम हिज सहुए जमने मान्यो, तेम मिंजार गुणनो वानोरे ॥ सांग ॥ ७॥ वली सांजलो ब्राह्मण तमे वात, एक दोषे गुण नोहे घातरे ॥ उमीया ईश्वरने अर्धांग, जटा मांही राखे गंगरे ॥ सां॥॥ पारवती गंगाशुं नेह, तारक केम कहीए तेहरे । नारायण लंपट अपार, गोवालणीशु कीधो व्यभिचाररे ॥ सांग॥ए॥ रीडमी सुताशुं कीधो संग, ब्रह्मचर्य ब्रह्मानो जंगरे ॥ सूरजने समरो तुमे सार, कुंतीशु कीधो व्यनिचाररे ॥ सांग ॥ १० ॥ सोम सदा सहुए थाराध्यो, गुरुपत्नीनो दोष वाध्योरे ॥ इंद्र देव जपे सहु कर जोड, अहिल्यानी लागी खोमरे ॥सांग ॥ ११॥ सुरगुरुने बे वहूनुं श्राल, जाणे ने बाल गोपालरे ॥ विश्वानल नर घणो व्यभिचारी, हवन । होमनो अधिकारीरे ॥ सां० ॥ १२ ॥ जमने सहु कहे धर्मनोराय, बाया सरसो करे - अन्यायरे ॥ इषि तापस मिथ्याती तेह, तेहना लिम अति घणां जेहरे ॥सां०॥१३॥
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
परीकी परनारी तणो दोष एक, वेद पुराणे जु विवेकरे ॥जो देव तणा नहीं लीजे दोष, तो खंग
मीनमानो श्यो रोषरे ॥ सांग ॥ १४ ॥ वाडव वचन बोल्या तव सार, तुं वादी मोटो । गुणधाररे ॥ जयवाद पाम्या तुमे अपार, विप्र हार्या श्रमे वीश वाररे ॥ सांग ॥१५॥ मनोवेग वली बोल्यो ताम, पवनवेग सुणो अनिरामरे ॥ देव तणा गुण दीग तुममे, |काम विकार कह्या अममेरे ॥सांग॥१६॥ मदन महा सुनट जीत्यो जेह, देव करी मानो ||
तुमे तेहरे ॥ नवी चले रामा रूपने देखी, विषयने नाखे उवेखीरे ॥ सांग ॥१७॥ |सराग वचन जे बोले वाम, ते उपर न धरे मन कामरे ॥ इंजिनां सुख करे असार,
ते देव कहीए निरधाररे ॥सां॥१॥ शील सहस्र पाले श्रढार, ते तारण तरण संसा-IN लारे ॥ एहवा जाणो जिनवर देव, नावे जगते करो सेवरे ॥ सांग ॥ १७ ॥ त्रिजुवन |
नायक सेवे जेह, स्वर्ग मुक्ति पामे तेहरे ॥ जीती करी वामवने वेगे, वनमां श्राव्या N||धरी तेगेरे ॥ सांग ॥ २० ॥ खंड बीजानी सोलमी ढाल, सांजलजो बाल गोपालरे ॥ रंगविजयनो शिष्य दयाल, नेम कदे थर जमालरे ॥ सांग ॥१॥
उदा. पवनवेग तव बोलीयो, सांजलो जाइ विचार॥देव दोष जे दाखव्या, सत्य वचन ते|
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
सार ॥१॥ एक उत्तर आपो वली, मनोवेग महंत ॥ देव मांहिं जे गुण अने, ते सटु । कहो तुमे संत ॥२॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग पवित्र ॥ सुर सघलाना गुण कहुँ, मनमां विचारो चित्र ॥ ३॥ जुवन व्यंतर ज्योतषी, स्वर्गवासी जे देव ॥ तेह तणा गुण सांजलो, श्राप कहुँ संखेव॥॥श्रणिमा अणुं मात्रज करे, मणिमा मेरु समान॥लघिमा
लघुपणुं श्राचरे, गरिमा नारी जाण ॥५॥ प्राप्ति सर्व प्राक्रम करे, इस तणो गुण देय॥ yकाम रूप चिंत्यु करे, वशीकरण वशी तेय ॥६॥ आठ गुणो ने एह जला, देव तणे जे
अंग, ब्रह्मादिकने ते नहीं, एक गुण जे उत्तंग ॥ ७॥ लघिमा गुण ते पामीया, जेणे हो. ये वहोत्तर लाज ॥ लोक मांहीं हलवा हुवा, ते कहीशु गुण आज ॥७॥ सहु पर्वत | माहे जलो, कैलास उत्तम गम ॥ शंकर तप जप तिहां करे, एकाकी गुणधाम ॥ ए॥ नारद ऋषि तिहां आवीया, हरने करी प्रमाण ॥ कर जोमी वदे विनति, सांजलो हर मुज वाण ॥ १० ॥ पुत्र विना गति नवी होये, पहेले परणो नार॥ पुत्र तणी उत्पत्ति | करी, पड़ी शषि व्रत धार ॥११॥ईश्वर तव तिहां बोलीयो, सांजल तुं मुनिराज ॥ कन्या जुवो तमे रुयमी, वेगे करो श्रम काज ॥१२॥ उत्पत्ति करुं संताननी, वाधे मुज |तो वंश ॥ परणाव्यानुं पुण्य घj, तुम होशे सुख हंस ॥ १३ ॥ नारद तव ते सांगली,
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
20 11
परी० चाल्यो कन्या काज ॥ हेमाचलने जइ मल्यो, सांजल तुं गिरिराज ॥ १४ ॥ तुम कुमरी बे रुयडी, शंकरने द्यो तेह ॥ वर कन्या ए योग्य बे, महादेवशुं करो नेह ॥ १५ ॥ हेमाचल कहे नारद सुलो, पारवती में दीध ॥ लगन लेइ ऋषि चालीयो, हरने जाए तव की ॥ १६ ॥
ढाल सत्तरमी.
चरणाली चामुंका रण चढे – ए देशी.
ईश्वर वर तव सज, वृषन पलाणी चमीयोरे ॥ नेरव नूत जोटींग घणां, जान सहित पंथ पडीयोरे ॥ सुणजो साजन वातडी ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ शंकर सासु बे मीनका, वर देखी होइ जांखीरे || मीनका कड़े सहु सांजलो, मुज बेटी इहां कुणे नाखीरे ॥ | सु० ॥ २ ॥ जग जीरण गरढो ए अबे, चमत्रानो बलद बे बांगोरे ॥ गाम ठाम एहने नहीं, मात पिता नहीं रांडोरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ जात ने जात को नवि कहे, जस्म विभूषित || देहरे ॥ कोटे वे साप बीहामणो, उढण गजचर्म तेहरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ नरमुंक माला गले अबे, जांग धतुरो ते खायरे ॥ हस्त कपाल कांखे कोली, शिर जटा किन्नरी वायेरे ॥ सु०॥ ५ ॥ एणे जमाइ मुज खप नहीं, जो देशो तो मरशुं श्राजरे ॥ जल मांदे
खंग २
॥ ५८ ॥
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
नालु ए बालिका, विष चारुं नहीं हर काजरे ॥ सु०॥ ६ ॥ ब्रह्मा वमसाले भावीया, मीनाने कहे सुणो मातरे ॥ नोली चक्रवरती ईशनी, विजुवन मांहिं विख्यातरे ॥ ॥सु॥७॥ पारवती परणावो ईशने, विवाह म मोमो ए बाजरे ॥ जो रे कोपे एह शंकरो, करशे अनरथ काजरे ॥ सु० ॥ ७॥ सहुने श्रापी जस्म एह करे, तुम तो टाले ए गमरे ॥ मीनाए मौन धर्यु तदा, विवाह तणो मांड्यो कामरे ॥ सु० ॥ ए॥ || वरराजा तोरण श्रावीयो, मलीयुं कामिनी थोक रे ॥ पोमादे हांसलदे जली, हर-| षादे सोमादे धोक रे ॥सु॥१॥ रंगादे नामसदे देमादे, टहकादे खलके कर चुमीरे ॥ माणकदे श्रावी मलपती,रतनादे टबकादे रुमीरे॥सु॥११॥कमलादे काकी नामादे नानी, ||मामी मोकलदे फुर फालुरे ॥ गोरी सखी चांमी चेटीका, जोगण सीकोतरी लालुरे॥ सु॥१२॥ वर पासे नूत जोटींग घणां,दानव जंगम जोगीरे॥ तेत्रीश कोम देव संचर्या, कृषि ब्रह्मा दामोदर जोगीरे ॥सु॥१३॥ पोखीने वर लीधो मांदरे,ब्रह्मा साधे लगन ते साररे ॥ समय वरते सहु सावधान,पाणीवल अंतर नहीं वाररे ॥सु॥१४॥ ब्रह्माए हर गौरी तणो, हस्त मेलापक कीधरे॥ गीत गावे वर कामनी, वृछने लघु कन्या दीधरे॥सु॥१५॥ चोरी मांहे बेगं वर वहू, ब्रह्मा जणे वेद चाररे ॥ मंगल चार ते वरतीयां, हुवो तिहां
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
मैपरी
जय जयकाररे ॥ सु० ॥ १६ ॥ शंकर श्रागल संचरे, पालथी गौरी नारीरे ॥फेरा दीये. चोरी पाखले, ब्रह्मा वांचे वेद उचारीरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ हुताशन साखे अक्षत नाखे, पाणेतर गौरीए पहेयोरे ॥ डेमो लाग्यो उमीया तणो, जंचो व उलवतां विदयोंरे॥ सु०॥ १७ ॥ जंघा दी तव रुयमी, विकल थयो ब्रह्मा तामरे ॥ काम कुतूहल चिंतवतां, खलण हुवो तेणे गमरे ॥ सु ॥ १५ ॥ देव सघला तिहां देखता, लाज्यो ब्रह्मा मन मांहिंरे । वेवु वाली पगे मरदले, वीर्य ढांक्यो निज त्यांहिंरे ॥ सु ॥॥ चुरी वेलु मांही उपन्या, सहस्र श्रव्याशी ऋषिरायरे ॥ कमंडल मंड हाथे धाँ, उठीने लाग्या ते पायरे ॥सु॥१॥ वानुष नाम श्रादे करीरे, ब्रह्मा पुत्र पुराणे प्रसिझरे॥ वाबुखल रूपे ते रुयमा, तप जप तिहां थकी लीधरे ॥ सु० ॥ २२ ॥ खंड बीजानी ढाल |ए कही, सत्तरमी सुणजो वारुरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय श्रोता सारुरे ॥ सु॥२३॥
उदा.
मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग विचार ॥ब्रह्मचर्य ब्रह्मा तणुं,नाएं तिहां अपार ॥१॥
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुर नर सघला देखतां ला पाम्या तेह ॥ दलुपणुं ब्रह्मा दुवो, लघिमा गुण बे तेह ॥ २ ॥ ब्रह्म पुराणे जाखीयो, मिथ्या मत विचार ॥ जिनशासन नहीं मानीए, खोटुं एह सार ॥ ३ ॥ जगगुरु जिनवर जाणजो, निकलंक स्वामि देव ॥ दोष एक दीसे नहीं, तेह तणी करो सेव ॥ ४ ॥ ईश्वर लघुपएं पामीयो, सांजलो तेह विचार ॥ कुकविए एम जाखीयुं, लिंग पुराण मोजार ॥ ५ ॥
ढाल ढारमी.
तो चढीयो घण माण गजे – ए देशी.
माचल कुमरी वरी ए, शंकर मन उल्लास ॥ हर कैलासे श्रावी करी ए, गौरीशुं जोग विलास तो ॥ १ ॥ उमीया कहे शंकर सुणो ए, नृत्य करो मनोहार तो ॥ देवदार वनमां जश्ने, नाटिक मांड्यो सार तो ॥ २ ॥ मस्तक शेखर शशिकला ए, गले गरल' बांहिं नाग तो ॥ नरमुंड माला शोजती ए, कटी मेखल कटी जाग तो ॥३॥ जस्म विलेपन अंग रच्युं ए, घुघरीनो घमकार तो ॥ नव रस नाटिक नाचतां ए, कांऊरनो ऊमकार तो ॥ ४ ॥ नृत्य करीने चालीयो ए, निक्षा तापस वास तो ॥ तापस तरुणी विह्वल हुइ ए,
१ फेर.
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
६० ॥
मोद धरे विश्वास तो ॥ ५ ॥ लांबु लिंग देखी करी ए, जिक्षा घाले सार तो ॥ कंदमूल वनफल घणां ए, हरने थापे नार तो ॥ ६ ॥ जरतार जगत बोकी करी ए, हींडे ईश्वर साथ तो ॥ सुंदरी कहे शंभु सांजलो ए, लीजे आपण बाथ तो ॥ ७ ॥ एक कड़े शंकर सुणो ए, उधरजो महाराज तो ॥ अंगे आलिंगन रुयको ए, कृपा करी यो खाज तो ॥ ८ ॥ वनमां शंकर जइ रह्यो ए, ध्यान धरे अपार तो ॥ तापस कामनी तिहां गइ ए, | ईश्वरशुं जोग विकार तो || || तापस तव दुःखीया थया ए, नारीए मूक्यो संग तो ॥ विचार करे सघला मली ए, केम रहेशे घर रंग तो ॥ १०॥ देवपूजा रही आपणी ए, अंगे गयां | सनान तो ॥ रांधण सिंघण सहु तज्यां ए, भूखे गया जीव ज्ञान तो ॥ ११ ॥ श्रपने मूकी धरे ए, हरने सेवे नार तो ॥ शंकरने केम श्रापीए ए, एबे त्रिभुवन तार तो ॥ १२ ॥ नारी मोही आपणी ए, जेह देखीने अंग तो ॥ दंग करो तुमे तेहनो ए, श्रापीने करो जंग तो ॥ १३ ॥ तापस मलीने श्रापीयो ए, लिंग पड्युं ततकाल तो ॥ भुवन मांदे ते विस्तर्यु ए, कर्म करे विकराल तो ॥ १४ ॥ लिंगे लक्षण प्रगट की यो ए, त्रिभुवन पांड्यो त्रास तो ॥ नर नारी संजावीया ए, लोक पामे बहु दास्य तो ॥ १५ ॥ रुद्र कोप्यो
खंग २
॥ ६० ॥
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
कृषि उपरे ए, लिंग बेधुं मुज आज तो ॥ शंकरे कृषि तव श्रापीया ए, लिंग पड्यां सर्व काल तो ॥ १६ ॥ लिंग तुट्यां तापस तणां ए, वेदना व्यापी अंग तो ॥ वृहदल कृषि सघला हुवा ए, हर शरणे गया चंग तो ॥ १७ ॥ शंकर स्वामि सांजलो ए, तुं मोटो महादेव तो ॥ कृपा करो श्रम परे ए, श्रमे करूं तुम सेव तो ॥ १८ ॥ द्रि दूर ब्रह्मा तुं जलो ए, भुवन तणो तुं त्रात तो ॥ सरजी पाली पोषे घणुं ए, सेष्ट करे वली घात तो ॥ १ ॥ श्रघट काम श्रमे श्राचर्यु ए, क्षमा करो तुमे एह तो ॥ बोरु कठोरु होये घणुं ए, | माबाप नहीं दीए बेह तो ॥ २० ॥ ढाल कही अढारमी ए, खंड बीजानी एह तो ॥ रंगविजयनो शिष्य कहे ए, नेमविजयने नेह तो ॥ २१ ॥
डुदा.
जोलो शंकर बोलीयो, सांजलो तापस सार ॥ लिंग अमारो लेइ करी, ठवजो यो नि मोकार ॥ १ ॥ प्रतिष्ठा करो तुमे तेह तणी, पूजा रचो सुखकार ॥ जाव जगति करो घणी, श्राराधां नित्य सार ॥ २ ॥ कामनीशुं सुख जोगवो, लिंग लागे तुम दे ॥ तापस तव सङ्घले मली, लिंग धर्यु तिष तेह ॥ ३ ॥ नामा दोरे लिंग बांध।युं, बल करे तापस विवेक ॥ दाल हाल करे घणुं तव तुख्यां दोर अनेक ॥ ४ ॥ खांध जांग्या तापस तथा,
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी ॥६॥
केताकना गया प्राण ॥ दोहले थश्ने श्राणीयो, तापस थाश्रम ताण ॥ ५ ॥लिंग प्रतिष्ठा इषि करे, सुर नर मलीया ताम ॥ हवन होम मंत्री करी, योनि मांही व्यु जाम ॥६॥ कोटे बांधे नर केटला, राखे मस्तक मांहीं ॥ लिंगायत लोक हुवा घणा, लिंग बांध्यां बेहु बांहीं॥ातेह दिवस श्रादे करी,मूढ पूजे लिंग तेह॥श्रापे लिंग गली पड्यु, नांड विगोव्यो एह॥७॥ शंकर लघुपणुं पामीयो, लिंग पुराणे सार॥हरि अचं वा सुरपति, पर रमणी लघुपणुं धार ॥ ए॥मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे श्राज॥ सुर सघलाना गुण कह्या, जिणे पामीए बहु लाज ॥१०॥ परनारी जे जोगवे, तेहने मोटा पाप ॥ उरगति ःख पामे घणां, नरके लहे संताप ॥११॥परनारीजे नोगवे, दोषवंत ते देव ॥ पूज्यपणुं तेने नहीं,किम कीजे तस सेव ॥१२॥ निष्कलंक जिन जाणजो, दोष नहींय लगार ॥ पर तारक श्रापे तरे, देव जाणो ते सार ॥ १३॥ पवनवेग तुमे सांजलो, जैनशास्त्र विचार ॥शंकर ब्रह्मा उत्पत्ति कहुँ, सत्य वचन जिन सार ॥१४॥
___ढाल जंगणीशमी... उनी बावाजीरी पोल, देवर थाणे श्रावीयोरे लाल-ए देशी. भरत क्षेत्र मांही सार, गंधार देश रलीधामणोरे लाल ॥ वसीपुर नगर उदार,
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
सत्यंधर राजा सोहामणोरे लाल ॥१॥सत्यवती राणी तास, सत्यकी सूत नामे जलोरे लाल ॥ सिंधु देश मांही जाण, विशाला नगरी पति नीलोरे लाल ॥२॥चेटक राय करे राज, सुजमाशुं सुख जोगवेरे लाल ॥ तेहने कन्या हुश्सात, प्रीत कारणी मी चवेरे लाल ॥३॥ मृगावती सुप्रजा बाल, प्रजावती चेलणा गुणवतीरे लाल ॥ज्येष्टा बही| सार, चंदना लघु सातमी सतीरे लाल ॥४॥राजग्रही श्रेणिक नूप, तस पुत्र बुझेागलोरे लाल ॥अजयकुमार गुणवंत,प्रधान पद जोगवे जलोरे लाल ॥५॥ पदम चितारो जेह, चेलणा पट लखी लावीरे लाल ॥रूप देखी अचंच्यो राय, श्रेणिक मनमां नावीयोरे लाल ॥६॥श्रेणिक ले आदेश, अन्नयकुमार उद्यम करीरे लाल ॥ श्रेणिक पट लखी रूप, वणकारा वेशे बलद नरीरे लाल ॥ ७॥ विशाला नगरी उद्यान, जिन जुवने जश् उतोरे लाल ॥ चेलणा ज्येष्टा श्रावी ताम, जिन प्रतिमा वंदन कोरे लाल In ॥ कुमरे प्रसार्यो पट ताम, रूप जोश कन्या विदवलहुरे लाल॥ था नवे ए जरतार, चेलणा कुमरी एम लवीरे लाल ॥॥अजयकुमर नणे ताम, तुम मेर्बु श्रेणिक नूपतिरे लाल ॥ सुरंगमां थर थावजो देव, अमे ले जाशुं तुम सतीरे लाल ॥ १०॥ कुमरी घर गइ दोय, चिंतातुर थ बालिकारे लाल ॥ श्रेणिक वर मन धार, श्रृंगार
|
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
खंगर
RINKRAMMAaindaka
र्मिपरीपेडेरी उजमाखिकारे लाल ॥११॥श्रावी वन विशाल, बीजे दिने बेहबेनमारे लाल ॥ । ६ ॥
| टायु सोकनुं सास, चेलणाए चिंतव्यु तिण घमीरे लाल ॥ १५ ॥श्रम विसरीयां बाइ,
चेलणा कहे ज्येष्टा सुणोरे लाल ॥ उतावलां तुमे जा, बाजरण लावो श्रम तणारे लाल ॥ १३ ॥ खेवाने तव जाम, ज्येष्टा जब पानी वलीरे लाल॥श्रावी सहीयरने गम, चेलणा तव श्रावी मलीरे लाल ॥१४॥ अपहरी अजयकुमार, लाव्यो निज पुर गममारे लाल ॥श्रेणिक चेलणा दोय, परणाव्यां उबरंगमारे लाल ॥ १५ ॥ श्राजरण ज्येष्टा सेय, श्रावी तेणे गमे वहीरे लाल ॥ चेलणाने वन मांहीं, जोश जाम देखे नहींरे लाल ॥ १६ ॥ श्रावी जिनने गेह, दुःख करी पानी वलीरे लाल ॥ एणे मुज देहनो नेम, परणेवा संयम नलीरे लाल ॥ १७ ॥ ज्येष्टाए तव जाम, दीक्षा लीधी रुयमीरे लाल ॥ शास्त्र शीखी ताम, जशोमती बाइ पासे खडीरे लाल ॥१७ ॥ ज्येष्टानी जे वात, सातकी राजाए सांजलीरे लाल ॥ दुवो जोगनो घात, मुज देवी बोली हतीरे लाल॥ रए॥श्राव्यो ते मन मांहीं, परणवानो नेम करीरे लाल ॥ दीदा लीधी त्यांहिं, समाधि गुप्ति गुरु पय धरीरेलाल ॥२०॥उंगणीशमी कही ढाल, खेम बीजानी ए सहीरे लाल ॥ रंगविजयनो शिष्य, नेमविजय कहे में कहीरे लाल ॥ १ ॥
a
HAARAM
६५
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
डुदा.
सातकी मुनि तप यादरे, पाले पंचाचार ॥ ध्यान धरे अति निरमलुं, गिरि गुफा मोकार || २ || महावीर चोवीशमो, तीर्थंकर ते खाम ॥ बाइ सघली ते वांदवा, आवे छे ते धाम ॥ २ ॥ काल मेघ तव उमट्यो, गाज वीज पार ॥ वरसाद वरसे सरवडे, दुवो घणो अंधकार ॥ ३ ॥ चिंहुं दिशि नाठी आर्जिका, जय पामी तेणे ठार ॥ ज्येष्टा तव नासी गर, गिरि गुफा मोकार ॥ ४ ॥ अंधकार अधिको थयो, मुनि न दीठो जाम ॥ जीनां वस्त्र मूकी करी, नीचोवे तेणे ठाम ॥५॥ सातकीए देखी करी, ज्येष्टानो वली अंग ॥ चित्त चल्युं मुनिवर तपुं, कीधो शीलनो जंग ॥ ६ ॥ उदरे उधान उपनो, | ज्येष्टा गइ तव जाम ॥ पुनरपि दीक्षा गुरु कने, लोधी सातकी ताम ॥ ७ ॥ चिह्न जाण्यां ज्येष्टा तणां, जशोमतीए ताम ॥ चेलणा घर आणी करी, आपी तेहने नाम ॥ ८ ॥ उपासना अधिकी करे, टाली शासन लाज ॥ समकित सुधुं दृढ धरे, एह जविनां | काज ॥ ७ ॥ नव मास वडे जनमीयो, ज्येष्टाए सुत जाम ॥ चलणाए सुत प्रसवीयो, राजा बोले ताम ॥ १० ॥
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
प
| ६३ ॥
ढाल वीशमी.
बे को आप मेलावे साजना, साजना बेगले लागनां बे-ए देशी. श्रेणिक तव महोaa कर्यो, दीघां बोहोलां दाम हो ॥ पुत्र जनम जणावीयो, लोक | मांही ताम हो ॥ हो साजन वात सुखो इसी ॥ ए यांकणी ॥१॥ नंदन तव मोटो हुवो, हींडे ते अन्याय हो ॥ रुद्र जाव करे पर तणां पुत्रने देइ याय हो ||हो ॥२॥ राणीए रुद्र नाम कयुं, लोक ते जपे ताम हो ॥ रुद्र नाम कहे बोकरां, नासे ठामो गम हो । हो ० ॥३॥ ढींके पाटु चाबखे, मारे तेह अपार हो ॥ दुष्टपणे दंडे दणे, लोक पांडे पोकार हो ॥ हो० ॥४॥ चेलणाने घ्यावी कयुं, बहु लोके मली ताम हो ॥ राणी मन मांही चिंतवे, एहने नहीं कोई गम हो ॥ हो० ॥ ५ ॥ अणाचारथी उपन्यो, केम होए ते संत हो ॥ दूधे सिंच्यो जेम लींबको, केम होए ते महंत हो ॥ हो० ॥ ६ ॥ रीस करी राणी कदे, सांजल पापी जात हो । कुण तन कुणे जनमीयो, कोण ताहरो तात हो ॥ हो० ॥ ७ ॥ सांजलीने रुद्र चिंतवे, एह कारण बे केशुं हो ॥ श्रेणिकने आवी कयुं, श्रमे तो नहीं जमेशुं हो ॥ हो० ॥ ८ ॥ मुज माता पिता कहो, कारण शुं बे एह हो ॥ राजाए मांडीने कयुं, सहु वीत्युं तेह हो || हो० ॥ ए ॥ तव रुद्र तिहां गयो, ज्यां बे पिता ठाम हो ॥ सातकी
खंग
॥ ३
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
मुनि पिता कने, लीधी दीक्षा ताम हो ॥ हो ॥ १०॥ सिद्धांत शास्त्र शिखे घj, नणे अंग अग्यार हो ॥ दश पूरव पाठे करू, लीधी विद्या सार हो॥ हो ॥ ११॥ वडी विद्या वसुधा नली, जाणे ते सत पंच हो ॥ लघु विद्या ने सातसें, बोले ते वली संच हो ॥ हो ॥ १२ ॥ पुण्य प्रनावे तुम तणे, सिधां सहु श्रमे श्राज होकर जोमी विद्या नणे, कां दीयो श्रम काज होहो॥१३॥ रुखे विद्या वश करी, राखी सहु जाम हो॥गोकरण गिरि थावे घणा, श्रावक अनिराम हो हो॥१४॥ सातकी मुनिवर वांदवा, श्रावक बहुश्राव्याहो ॥ वाघ सिंह रूप रुझे करी, घणो त्रास पडाव्यारे हो॥ होण॥१५॥ सातकी मुनिवर एम जणे, रुप सांजलो आज हो ॥ उष्ट चेष्टा तुं कां करे, नहीं तुजने लाज हो ॥ हो॥ १६ ॥ नारी निमित्त तुज तप तणो, होशे तेदनो जंग हो ॥ सांजलीने रुज वेगे गयो, कैलास गिरि उत्तंग हो ॥ हो०१७ ॥ श्रातापन जोगे| रह्यो, कैलास गिरिए जाम हो ॥श्रवर कथा तुमे सांजलो, कहेशं ते श्रनिराम हो। हो ॥ २०॥ विजयारध पर्वत अडे, दक्षण श्रेणि जाणी हो ॥ त्रिपुर नगर राजा हेमरथ, तस मनोरमा राणी हो ॥ होग॥ १५॥ प्रथम पुत्र ते देवदारु, बीजा विद्युत नाम हो ॥ राज्ये थापी देवदारुने, दीक्षा लीधी ताम हो ॥ हो ॥२०॥ खंग बीजानी||
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
६४॥
र्मपरी ढाल वीशमी, श्रोताजनने काज हो॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय लहे साज हो । हो ॥१॥
उदा. हेमरथ बहु तप करे, पाले पंचाचार ॥ राज करे ते रुअमो, देवदारु कुमार ॥१॥ विद्युते विश्वास करी, तव मांड्यो संग्राम ॥ वमो नाइ मावीयो, निज राज्यनो गम ॥२॥ कैलासे नासी गयो, देवदारु कुमार ॥ अव्य कुटुंब विमान रची, श्राव्यो सहु । परिवार ॥३॥ श्राप कन्या तस रुयडी, रूपे रंना समान ॥ रमल करती सरोवरे, ग करवाने स्नान ॥४॥ बाजरण वस्त्र मूकी करी, अंघोल करवा ताम ॥ रुखे दीवी रुयमी, कन्या रूप निधान ॥५॥ ते देखी विह्वल थयो, कामे पीड्यो अपार ॥ विद्याए
वेगे करी, हाँ वस्त्र शणगार ॥ ६॥ कन्या कहे मुनिवर सुणो, श्रम देहनो शणगार | an तुमे उतां कोणे अपहयां, कीहां ने खामि सार ॥७॥रुष मुनि तव एम जणे, सांज
खजो तुमे बाल ॥ अंगीकार करो श्रम तणो, तो श्रापुं सुविशाल ॥ ॥ कन्या कहे मुनि सांजलो, केम लोपीए लाज॥श्रमे विद्याधर बेटडी, पिता अपपूज्यां काज ॥ए॥
॥६॥
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुष कहे कन्या सुणो, पिता नणी पूढो श्राज ॥ वस्त्र विजूषण तुम तणां, खेश करजो काज ॥१०॥
ढाल एकवीशमी.
करेलमां घर वेरो-ए देशी. कुमरी ते तव तिहां गइ, पिता तणे ते पास॥ वात विचारी सहु कही, विवाहनी ते श्रास ॥ सुगुण जन सांजलोरे ॥ ए श्रांकणी॥१॥ विद्याधर देवदारुए, मोकल्या तव प्रधान ॥ रुड पासे आवी कहे, सांजलजो सावधान ॥ सु॥२॥ विद्युत विद्याधर श्रम तणो, मोटो रिपु राज ॥ राज लीधुं श्रम तणुं, तेहने मारो आज ॥ सु० ॥३॥ काज करो जो श्रम तणो, कन्या देशुं तेह ॥ रु तव तेहने कडं, काज करीशुं एह । ॥ सु०॥४॥ विद्याए विमान रची, करी कटक अपार ॥ विजयार्धे वेगे जइ, मांड्यु |जुद्ध फुकार ॥ सु० ॥५॥ विद्युत तव सामो थयो, करे सुर संग्राम ॥ रुखे रूप घणां करी, फेड्यो तेहनो गम ॥ सु०॥६॥ विद्याए विनांमीयो, सहनो कीधो घात ॥ त्रिपुर नगर तेणे जालीयुं, लघु मार्यो तिहां जात॥सु०॥७॥ देवदारु राजेठवी, कीधो अति उलाह॥ विद्याधर सहु नेटीया, मांड्यो तिहां विवाह ॥सु०॥॥ कुमरी परणी आठ ते, रुजे
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥६५॥
रूपवंती नार ॥ अपर कन्या परणी घणी, नवि जाणुं तेहनो पार ॥ सु०॥ ए॥ सबल Nकाम सेवा जणी, रुखे नहीं संतोष ॥ जे जे कामनी नोगवे, ते ते पामे दोष॥ सु॥१०॥
मरण पामी ते अति घणी, रुढे मांड्यो अन्याय ॥ विद्याधर मारी करी, परण्यो कन्या जाय ॥ सु० ॥११॥कन्यानो तेणे क्षय कर्यो, नवि लाने को पार ॥ हेमाचल राजा नलो, विद्याधरनो सार ॥सु॥१२॥ तस नारी रुयमी, मीना तेहनो नाम ॥पुत्री पारवती तस कातणी, रूपे रंना समान ॥ सु० ॥ १३ ॥ पारवती परणी करी, रुखे थाणी ताम ॥ काम ||
नोग तेहशुं करे, पामे सुख सुधाम ॥ सु० ॥ १४॥ पारवतीशुं संग करी, उठ्यो रुष ते जाम ॥ अपवित्र अंगे पूजतां, नाठी विद्या ताम ॥ सु० ॥१५॥ व्रमा नामे विद्या गर, रुखे रच्यो उपाय ॥प्रतिमा कीधी तसुतणी, मामीने ते ध्याय॥सु०॥१६॥ व्रमा विद्यानो जाप जपे, रुस रचीने ध्यान ॥ विघन करे मांडीयु, विद्याने बलतान ॥सु०॥१७॥ नृत्यकी नारी रूप धरी, गीत गावे ते सार॥आकाशे उंची रही, नाचे विविध प्रकार
॥ सु० ॥१७॥ नव रस नाटक सांजली, तव चलीयो ते ध्यान॥ईश्वर मुख करी, ||जोयुं नृत्यकी तान ॥ सु०॥१५॥ढाल ए एकवीशमी, खंम बीजानी एह ॥ रंगविज-| |यनो शिष्य कहे, नेमविजयने नेद ॥ सु० ॥२०॥
॥ ६५
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. मोह पाम्यो नृत्य देखता, नाटकी नख जोश ताम ॥ विद्याए विपरीत रूप कर्यु, नीचुं रुपेदीकुंजाम ॥१॥प्रतिमास्थाने पुरुष एक, वदन चारदीसे तेह ॥ पांचमुं मुख उचं खर तर्पु, लुलुंकार जुंके जेह ॥२॥ कविण चित्त रुखे करी, कर नखे कपाल ॥ ब्रह्मा विद्या नासी गश्, हस्त चोंट्यं विकराल ॥३॥कपाविक नाम रुपर्नु, ते दिनथी कहे लोक ॥ एकदा रुष गौरी बेहु, विमान बेसी तजी शोक॥४॥वणारसी वन जायतां, वीर उना धरी ध्यान ॥ गौरी शंकरने कहे, तुम नाइ रह्यो मूकी मान ॥५॥ प्रिय कारणी सुत संजमी, तुमे श्रति लंपट नूर ॥ हास्य करीश्म रुजणे, ध्यान करूं एह |चूर ॥६॥ रुखे उपसर्ग मांमीयो, मेघवृष्टि करी घोर ॥ गाज वीज घणुं गरगडे, वाघ * सिंह सर्प घोर ॥ ७॥ वायु अने पाषाणनी, वृष्टि कीधी घणी वार॥ रात सघली उपभव
कर्यो, जिन मन न चल्युं लगार ॥॥प्रजात हुवो शिव चिंतवे, में पापी कीधथकाज y ॥ मेरु सरिखो निश्चल मुनि, क्षमावंत जिनराज ॥ ए॥ निंदा गुरु श्रति घणी करी, महावीर धर्यु नाम ॥जक्ति जावे पाय चांपीया, खर मस्तक पड्युं ताम ॥१०॥
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी0
॥ ६६ ॥
ढाल बावीशमी.
प्रीत पूरव पुण्ये पामीए -- ए देशी.
अज्ञानी मूढे याच चतुर्मुख ब्रह्मा तेहदे ॥ साजन ॥ ब्रह्मविद्या नामे जाणजो, | जिनशासन सत्य एहे ॥ सा० ॥ १ ॥ सुजो वात सोहामणी ॥ ए यांकणी ॥ जिन वांदी रुद्र घरे गयो, गौरीशुं प्रति बहु नेहहे ॥ सा० ॥ सांजलो काम शुं शुं करे, | विद्याबले शंकर तेरहे ॥ सा० ॥ सु० ॥ २ ॥ ससरो सालो घणुं पीकीया, माने गणे नहीं केहे ॥ सा० ॥ जाताएं पारवतीने पूढीयुं, हरथी केम रहे विद्या बेहड़े ॥ सा०॥ सु०॥३॥ गौरी कहे नाइ सांजलो, शरीर राखे विद्या पूरहे ॥ सा० ॥ काम सेवा शंकर करे, तप विद्या रहे दूरहे ॥ सा० ॥ सु० ॥ ४ ॥ जगनी संतोषी वचन रसे, कूड रच्यो उपायदे ॥ सा० ॥ हर गौरी शंकर समे, खने हुण्यां बेदु कायदे ॥ सा० ॥ सु० ॥ ५ ॥ ईश्वर अधोगति पामीयो, विद्याए विडंबीया लोकहे ॥ सा० ॥ मरकीए माणस मरे, राजभुवन प्रजा शोकदे ॥ सा० ॥ सु० ॥ ६ ॥ निमित्त जोइ निमित्ति कहे, विद्या संतापे सारहे ॥ सा० ॥ आचरण जेने बेहु मुखां, लिंग उपर जलाधारहे ॥ सा० ॥ सु० ॥ ७ ॥ शिखामण एवी करे, विद्या संतोषाए चंगदे ॥ सा० ॥ तव लोके सहु तिम कर्यु, जोनि
खंग
॥ ६६
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
उपर व्युं लिंगदे ॥ सा ॥ सु० ॥ ॥ पूजी प्रतिष्ठी वंदीयो, तव रोग सोग गया रहे ॥ सा ॥ विद्याए विघन निवारीयां, सुख संतान घर पूरहे॥ सा ॥ सु० ॥५॥ हस्त पाय मस्तक नहीं, जलाधारी मांहे लिंगहे ॥ सा ॥ निर्लज लोक लाजे नहीं,
बीली धंतुरो चढे अंगहे ॥ सा ॥ सु०॥ १० ॥ मूरख मूढ मिथ्यातीश्रा, हस्त शिर || कंठे बांधे तेहहे ॥ सा ॥ हर हर मुख हश्डे धरे, पूजे पखाले वली जेहहे ॥ सा ॥
||सु ॥ ११॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे सारहे ॥ सा ॥ सत्य वचन जे नाजिन तणां, धरजो मन निरधारहे ॥सा॥सुणार॥ सत्य धरम जिनवर तणो, जिहां जोए तिहां सारहे ॥ सा ॥ जे नर निश्चे चित्त धरे, ते पामे नव पारहे ॥ सा० ॥
सु०॥ १३ ॥ मिथ्या मत जे मोहीया, घेला ते मूढ गमारहे ॥ सा ॥ असत्य वचन Kावली आचरे, जव जव जमशे संसारहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १४ ॥ पवनवेग तव
बोली, सांजलो नाश् चंगहे ॥ सा ॥ सत्य धरम जिनवर तणो, ते उपर मुज रंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ कुदेव कुशास्त्र कुगुरु सहु, में परीहयों मिथ्या धर्महे! ॥ सा ॥ वचन तुमारां सांजली, नांग्यो सघलो मन नर्महे ॥ सा ॥ सु० ॥ १६ ॥ सुदेव सुगुरुने आदर्या, आदर्यो जैननो धर्महे ॥ सा ॥ मित्र मनोरथ मुज फट्या,
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
अशुज टव्यां मुज कर्महे ॥ सा ॥सु०॥१७॥श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय शिष्य तेहहे ॥ सा॥ नाव विजय शिष्य तेहना, सिजिविजय शिष्य एहहे ॥ सा॥ सु॥१०॥ रूपविजय रंगे करी, कृष्ण विजय कर जोमहे ॥ सा ॥ रंगविजय कविराजनी, नावे कोश होडहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ खंग बीजो पूरो थयो, ढाल बावीशे सारहे ॥ सा ॥ नेमविजयने नित्य प्रत्ये, जगमांहीं जयकारहे॥ सा ॥ सु० ॥ २० ॥
॥ इति श्री हरिहरब्रह्मार्कचंध्यमसुरेंजसुरगुरु देवादि
दूषणनामा द्वितीयोऽधिकारः॥
॥॥६
॥
-
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
म ३ जो.
डुदा.
सकल जिनवर पय नमी, सद्गुरु चरण नमेव ॥ त्रीजो खंड कहेशुं दवे, नेमविजय कड़े देव ॥ १ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे चंग ॥ मिथ्यात पुराण वली दाखवुं, फेरवी रूप उत्तंग ॥ २ ॥
ढाल पी. मन मधुकर मोही रह्यो -
विद्या प्रजावे रूप पालट्यां, बेहु दुवा साधु महंतरे ॥ पश्चिम पोले प्रवेश करी, द्विजशालाए खावी संतरे ॥ मनोवेग बुद्धि विचक्षणो ॥ ए यांकणी ॥१॥ दंड धरी नेरी आलवी, कीधो घंटारव तामरे || सिंहासन बेठा मुनि रुखमा, जोवा मल्युं सज गामरे ॥ म० ॥ २ ॥ शब्द सुणी द्विज श्रावीया, बोले बिरुद अनेकरे ॥ देखी जति प्रते एम कहे, जो मुनि प्रत्युत्तर एकरे ॥ म०॥३॥ व दर्शन बन्नुं मत तथा करो यमथी वाद विशालरे ॥ कोण दर्शन कोण गुरु शिष्य, जवाब देजो दयापाल रे ॥ मा० ॥४॥ विप्र
- ए देशी.
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
खग ३
प्रते मनोवेग जणे, साजलो विप्र सुजाणरे ॥ वाद विद्या अमे नवी लह, केवां शास्त्र
पुराणरे ॥ म ॥ ५॥ जतिवेष श्रापणे पाली, गुरु नथी श्रम तणे शिषरे ॥ पाटमालीपुर जोवा श्रावीश्रा, निगुरा बश्ए द्विज धिषरे ॥ म ॥ ६॥ कोप करी हिज
बोलीथा, सुणो मुनि मूढ गमाररे॥ वाद विवाद जाण्यो नहीं, केम कीधो नेरी प्रहाकाररे ॥ म॥॥ घंटारव बहु वार कर्यो, सिंहासन बेग केमरे ॥ नवी गुरु विना
चेला सांजव्या, नगर को प्रेमरे ॥ म ॥ ७॥ माया जति कहे सांजलो, हेलाए वजाव्या घंट जेरीरे ॥ सहजे सिंहासन चांपीश्रां, न गमे तो बेसीए फेरीरे ॥ म॥ ॥ ए॥ विप्र वचन एम उचरे, दपणक मोटा धुताररे ॥ मुनि नणे वामव तुमे ५ सुणो, सत्य केतां लहीए माररे ॥म ॥ १०॥ ते उपर कथा कहुँ, सांजलजा सन साथरे ॥ कोश्क गामे एक शेठ रहे, घरमां ने बहु आथरे॥ म ॥ ११ ॥ पुत्र बेहु शेग्ने अडे, जिनपाल अने जिनदत्तरे ॥ गुरु मझ्या जिनदत्तने, लीधुं| समकित सतरे ॥ म ॥ १२॥ साचं बोले वणजता, कूम कपट नवि राखेरे ॥ साचाबोलो सहु कहे, नगर लोक एम जाखेरे ॥ म० ॥ १३ ॥ हाटे बेगे नित्य रहे, श्रावे लोक अनेकरे ॥ साचो जाणी थावे घणा, बोले विनय विवेकरे ॥ म ॥१४॥
६॥
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाइ मोटो मन चिंतवे, मुजने कीधो नचिंतरे ॥ व्यापारी मोटो थयो, मात पिता मन खंतरे ॥ म० ॥ १५ ॥ साच बोले लाज केम होये, कूम कपट मांहिं लाजरे ॥ कूको संसार सौए कह्यो, कूको जलधर श्रानरे ॥ म० ॥ १६ ॥ व्यापार करतां दिन घणा, गया तव लाज न दीसेरे ॥ मात पिता जाइ सदु मली, यावी बेठा बोले | रीसेरे ॥ म० ॥ १७ ॥ कहे जाइ तुं शुं करे, लोक यावी नेलां थायरे ॥ एहवो व्यापार किहां शीखीठं, द्रव्य लेइ किहां खायरे ॥ म० ॥ १८ ॥ के लुब्ध्यो वेश्या नारीशुं, के गुप्त दान दीधोरे ॥ के कोइ व्यसन पड्यो अबे, तुं तो दीसे वे सीधोरे ॥ म० ॥ १९ ॥ नामां लेखां संनालीने, बोलावे लघु जाइरे ॥ लाज गमे खोट केम होये, ए शी कीधी कमाइरे ॥ म० ॥ २० ॥ ढाल पेली त्रीजा खंगनी, सांजलो बाल | गोपालरे || रंगविजय कविराय बे, नेमविजय उजमालरे ॥ म० ॥ २१ ॥
उदा.
तव बोल्यो लघु चात ए, तमने द्रव्यनी हुंश ॥ कोटिध्वज था तमे, कूम करी लो लुंस ॥ १ ॥ श्रमने ए तो नावडे, तुमने तो घणो लोन || बेसो हाटे जइ हवे, घरना बो तमे मोज ॥ २ ॥ साचे मारे चालवुं, कहेतुं मारे साच ॥ देवुं लेवुं साचनुं, इसी परे पालुं
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
वाच ॥ ३ ॥ समकित मारे पालतुं, गुरु वयण केम लोपाय ॥ जीव जाये तो पण सही, किम करुं हुं अन्याय ॥ ४ ॥ एवं वयण ते सांजली, रीस चमी वृद्ध जाय ॥ धर्मी य बेठो दवे, एने केम कद्देवाय ॥ ५ ॥ पांच शेरी लइ हाथमां, नाखी सामे लघु जात ॥ लागी मर्म वामे तदा, मरण पाम्यो जीव जात ॥ ६ ॥ साच बोट्याथी ए थयो, मनोवेग कहे ताम ॥ पुनरपि वात कहुं वली, सांजलजो सहु श्राम ॥ ७ ॥
ढाल बीजी.
खाणे पडवे ससरो सूता, पहेले परुवे बाइजी ॥ एक घमीनी ढील करो तो करशुं राजी, बेडो नांजी - ए देशी.
पुरोहित हरिजट्टे जेम लही, बंधन तामन दंग || जेवुं होय तेनुं जाखतां, तेम अमने थाये जंग ॥ सहुको सुणजो ॥ हांरे तुमे सांजलीने मत कोपो ॥ स०॥ श्रकणी ॥१॥ द्विजवर पणे मुनि तमे सुणजो, हरिजट्ट तणी कहो वात ॥ आप वीती पढी परकाशजो, सांजलशुं ते ख्यात ॥ स० ॥ २ ॥ वेशधारिक मनोवेग कहे तव, सुणजो विप्र सुजाण ॥ खाडकथा निरमली हुं कहुं हुं, सांजलो सुखनी खाण ॥ स०॥ ३ ॥ अंग देश चंपापुरी नगरी, गुणसागर महाराज || हरि ब्राह्मण राजगर बे तेहना, सेवे भूपति पाय
खंग ३
॥ ६५ ॥
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
Nस ॥ ४॥ एक दिन अशूचि टालवा काजे, कारी जरी चाल्यो पूर ॥ मल मोचन
करी उठ्यो तव, दी नदी श्राव्युं पूर॥ स०॥५॥ शिला तरती श्रावीजल पर, देखी अचंन्यो ताम ॥ वेगे जश्ने नृपने विनव्यु, सांजलो कौतक वाम ॥ स०॥६॥ बाहिर नूमि गयो हुँ वेगलो, नदी कीनारे उनो जाम ॥ मोटी शिला एक जलमां तरती, दीठी अमे अनिराम ॥ स ॥७॥पुरोहितनी वाणी सांजलीने, राजाकहे विख्यात ॥ नूत जोटिंग व्यंतरे बलीयो, असंनव बोले वात ॥ स ॥ ॥ हरिजट्ट शाही दृढतर बांध्यो, ढींक पाटु घणी मूके ॥जोपा आण्या मंडप तव मांड्यो, चाबख दोरी न चूके
स० ॥ ए॥ धूणे धंधोले श्रदत डांटे, हाथ पाय शिर कूटे ॥ बुंब करतो हरिन चिंते, मरण श्राव्युं श्रणखूटे ॥ स० ॥ १० ॥ पुरोहित कहे सांजलो नृप लोका, जू बोल्युं नोहे साच॥नूत जोटिंग वलग्यो नथी मुजने, खोटुं हास्युंहस्यो वाच ॥स०॥११॥ शिला तरंती नदीए नदीती, बोडावो महाराज ॥ गुणसागरे ततखिण डोमाव्यो, हरिजट पाम्यो घणी लाज ॥ स ॥ १२ ॥ घरे जइ पुरोहित चित्त चिंते, मुज मुख नूपे कयु कालु ॥ सत्य वचन बोलतां मुने कूट्यो, श्ह साढे केम वायूँ ॥ स० ॥ १३ ॥ एकदा हरिनट्ट वनमां चाट्यो, वामीमां वानर दीग॥राजागुरुए शिखव्या नृत करवा, नव रस
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंम३
V
नाटक करे मीग ॥ स०॥ १४ ॥ रमवा राजा वनमा गयो तेहवे, राणीशुं प्रेम धरंतो, ॥ एकलो वनवाडी जय जोश, दीगे वानर नृत्य करतो॥स० ॥ १५ ॥ नव रस नाटक जोतां नहीं तृपति, श्रावो राणी जुर्ज एह॥साद सुणी राजा तणो बीना, वानर नाग तव | | तेह ॥सण॥१६॥ राणीने श्रावी नृप कहे सुंदरी, वानरनृत्य देख्युं सार ॥ राजसना श्रावी नृप बेगे, प्रोहित सहु परिवार ॥सण॥१७॥राजा कहे सहुको सांजलजो, कौतिक दी में आज ॥ नव रस नाटिक वानर करता, जोतां थका सीजे काज ॥ स ॥ १७॥ तव राणी कहे में नवदी, सुणजो लोक विचार ॥नवीदीसांनट्यु आज पहेढुं, नूपति खे असार ॥ स०॥ १७ ॥ हरि प्रोहित कहे सांजलो सजन, राजाने वलगाड वन मांहीं ॥ ए वचने ताणी नृपबांध्यो, नोपा वैद मल्या त्यांहिं॥स ॥२०॥धूणे धंधोले अंग पगडे, हरिनट्ट निवार्या तेह ॥ निज हस्ते राजाना बंध जोड्या, वस्त्र विनूषित देह |॥ स॥१॥प्रोहित जाणे नूपति सुणो लोका, वानर नाटिक जेम वारु॥ नदी मांदे तरती थकी दीठी, तेम शिला सत्य मन धारं ॥ स ॥२॥ श्लोक-असंजाव्यं न वक्तव्यं, प्रत्यक्षमपि यद्नवेत् ॥
यथा वानरसंगीतं, तथा सा तरति शिला ॥१॥
॥
॥
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजा तव दरख्यो, सत्य वाणी एह सार ॥ प्रत्यक्ष दीतुं तो नवि कहेतुं, नवि माने मूढ गमार ॥ स० ॥ २३ ॥ त्रीजा खंग तणी ढाल बीजी, कही श्रोताजन सारु ॥ रंग विजयनो शिष्य एम पजणे, नेमविजय कहे वारु ॥ स० ॥ २४ ॥
उदा.
रजनी कथा रुकी, विप्र सुणी तमे तेह ॥ अद्भुत वचन मुज बोलतां तामन करशो देह ॥ १ ॥ ते वागव तव बोलीया, सांजलो नाइ नूर ॥ सत्य वचन तुम बोलतां, श्रमे नवि थाशुं क्रूर ॥ २ ॥ माया मुनि तव बोलीयो, मनोवेग वर वाण ॥ कथा कहुँ वली मुज तणी, सुणजो तेह सुजाण ॥ ३ ॥
ढाल त्रीजी.
केसर वरण हो के काढ़ी कसुंबो मोरा लाल -- ए देशी
श्रीपुर नगरे हो वणिकोत्तम नाम ॥ मारा लाल || जिनदत्त शेठ हो श्रावक कुला ॥ मारा लाल ॥ जिनदत्ता नामे हो कहीए तस नारी ॥ मारा० ॥ तेहनो हुं पुत्र हो गुणवंत धारी ॥ मा० ॥ १ ॥ माहरो नाम दीधो हो जिनचरणदास ॥ मा० ॥ जणवा मूक्यो हो मुनिवर पास ॥ मा० ॥ जणी गणीने हो विद्या अनेक ॥ मा० ॥
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
गुरुने आराध्यो हो विनय विवेक || मा० ॥ २ ॥ एक दिन मुजने हो दीधुं काम ॥ | मा० ॥ कमंगल जरी आवो हो गुणना ग्राम ॥ मा० ॥ मारग जरवा हो चाल्यो जाम ॥ मा० बोकरां रमतां हो दीगं ताम ॥ मा० ॥ ३ ॥ रमतां देखी हो जोवा रही यो ॥ मा० ॥ निशालीए जश्ने हो गुरुने कहीयो ॥ मा० ॥ जिनचरणदास हो करे बहु क्रीमा | मा० ॥ गुरुजी कमंडल हो नहीं नरे व्रीडा ॥ मा० ॥ ४ ॥ जति जोवाने हो नीकल्या जाम ॥ मा० ॥ छात्र एक श्रावी हो कहे मुज ताम ॥ मा० ॥ नासी जाए हो गुरु श्रव्या एह ॥ मा० ॥ रुट्या रीस करशे हो जारे तुज देह ॥ मा०॥ ५ ॥ जयजीत नागे हो तव हुं जाम ॥ मा० ॥ कर धरी कमंगल हो बीजे गाम ॥ मा०॥ जा तां जातां हो श्राव्युं एक गाम ॥ मा० ॥ हस्ती पुंठे हो लाग्यो ताम ॥ मा० ॥ ६ ॥ पूर्वे कीधां हो जे जेम पाप ॥ मा० ॥ करिवर केको हो न बांके श्राप ॥ मा० ॥ जयजीत मुजने हो कंपे देह ॥ मा० ॥ काल कृतांतज दो सरिखो तेह ॥ मा० ॥ ७ ॥ नासी न शकुं हो करिवर खागे ॥ मा० ॥ चिंतव्युं में किहां हो रहेशुं लागे ॥ मा० ॥ जींमीनो बरेटो हो में दीठो जाम ॥ मा० ॥ माले वलगाड्यो हो कमंगल ताम ॥ मा०॥८॥ कर्मफलना मुखमां हो हुं जइ पेठो ॥ मा० ॥ रीसे जरीयो हो हाथीए दीठो ॥ मा० ॥ नालुए
खंग ३
॥ ७१ ॥
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
हेरी हो जोयुं में जाम ॥ मा॥ हुँ मांही पेठगे हो दीठो ताम ॥ मा॥ एy
माहारी पुंठे हो पेठो ते नाग ॥ मा ॥ ढुं नासंतो हो नवी देखू लाग ॥ मा०॥ || कमंडल मांहीं हो करे बहु केम ॥ मा० ॥ उजावानी हो न करूं जेड ॥ मा ॥ १०॥
काल घणो मुजने हो नासंतां थयो ॥ मा॥ गजवर केडो हो बांडी न गयो ॥ ||माण ॥ उजातां मारी हो बुटी काढमी॥मा॥हस्तीशु तव हो सुंढे धरी हडी ॥मा॥ |॥ ११॥ नागो थश्ने हो नागे हुँ ताम ॥ मा॥रीसे करिवर हो केमे जाम ॥मा ॥
नाबुए नीकली होजो इंजेह ॥मा॥ पुंठेथी हाथी हो नीकले ले तेह ॥ मा॥१२॥ ||नाद बेदी हो नीकल्यो देह ॥मा ॥ पुंबनो केश हो वलग्यो बे तेह ॥ मा० ॥ कोप |
करी में हो दीधी गाल ॥मा॥ मर मर हाथी हो तुं अकाल ॥ मा० ॥१३ पापी जे| ||नर हो पर पीमा करे ॥ मा०॥ गजनी परे हो ते नहीं संचरे॥मा॥अवकाश लहीने हो नागे हुं जाम ॥मा॥ अपर नगर हो दीवं में ताम ॥मा॥१४॥ जिनवर जुवन हो ।
दी में विंग ॥मा॥ मुज मन जपनो हो बहोलो रंग॥मायाजाव करीने हो वांया अरिहंत Nuमा०॥ निराजरण हो नासुर माहंत ॥मा॥१५॥ वांदी करीने होडं बेठगे जाम ॥मा॥
नर नारी नवि देखुं ताम ॥मा॥ शून्य जुवन डे हो जिनवर केरुं मानामे गमे हो
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
जोउं अजिनेरुं ॥मा०॥१६॥ उंची दृष्टि हो जायुं जाम ॥ मा० ॥ पींडी कमंगल हो दीतुं ताम ॥ मा० ॥ जतन करीने हो बांध्यां वे जेह ॥ मा०॥ हस्ते करी ने हो उतार्यां तेह ॥ मा० ॥ १७ ॥ मन | मांहीं से विचार्य एहवुं ॥ मा० ॥ वस्त्र विदुषा हो करशुं के हेतुं ॥ मा०॥ श्रावक सुतने हो जाचुं अहीं केम ॥०॥ पींडी कमंगल धरीयां तेह ॥ मा० ॥ १८ ॥ गुरुजी पाखे हो दीक्षा में लीध ॥ मा० ॥ देश विदेशे हो विहारज कीध ॥ मा० ॥ पाटलीपुरमां हो श्राव्यो हुं याज ॥ मा०॥ कथा कही बे दो में मूकी लाज ॥ मा०॥१॥ संबंध कथानो हो कह्यो बे एह ॥ मा०॥ द्विजवर वातो हो विचारो तेह || मा० ॥ साचां वचन हो कह्यां वे छामो ॥ मा० ॥ खोटां वचन हो म करशो तमो ॥ मा० ॥२०॥ खंग त्रीजानी हो ढाल कही त्रीजी ॥ मा० ॥ श्रोता सहुको हो करे जो जीजी || मा० ॥ रंग विजयनो हो शिष्य एम बोले ॥ मा० ॥ निम विजयने दो नहीं कोई तोले ॥ मा० ॥ २१ ॥
उदा.
विप्र वचन तव बोलीया, सांजलरे अजाण ॥ जूठो किमही न बोलीए, कलि केम उगे जाण ॥ १ ॥ खोटां वचन तमे उचर्यां, दीसो बोरे लबान ॥ डिंग मोल्यां बे घड्यां, तुमे धूरत महा थाम ॥ २ ॥ कमंगल मांहीं मयगल तुमो, पेठा वो एह
खंग ३
॥ ७२ ॥
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
जूठ ॥ करि नीकलतां नालुए, केश वलग्यो महा कूट ॥ ३ ॥ माया मुनि तव बोलीयो, सांजलो विप्र विचार ॥ वचन श्रमारां खंमीयां, असत्य कीयां अपार ॥४॥ जूगं वचन तुमे कां कर्या, जो नहीं मानो ए६ ॥ वेद पुराणे जे कह्यां, सत्य करो कांई तेह ॥ ५ ॥ ब्राह्मण तव ते बोलीया, सांजलो जाइ सार ॥ वेद पुराणे नहीं सुण्यां, एहवां वचन लगार ॥ ६ ॥ दीवां सांजल्यां जो होये, वेद पुराणो मांहीं ॥ कपटी केता कां नश्री, विलंब करो वो कांहीं ॥ ७ ॥ नोवेग तव बोलीयो, सुणजो विप्र विचार | सत्य वचन मुज बोलतां शिक्षापात लहुं मार ॥ ८ ॥ ब्राह्मण वचन वलतो जणे, सांजल मूढ गमार ॥ योग्य वचन परकाशतां, कोइ नवि दीये प्रहार ॥ ए ॥ ढाल चोथी.
एक दिन दासी दोमती, आवी श्रेणिक पास रे—ए देशी.
वेषधारी मुनि तव कहे, सांगलो द्विजवर जेहरे ॥ वेद पुराण सुपयुं एशुं, तुम पास जाखशुं तेरे || वेषधारी ॥ १ ॥ कुरुजांगल हस्तीनागपुरे, पांव पांच ते जातरे ॥ युधिष्टर जीम अर्जुन जलो, सहदेव नकुल प्रख्यातरे ॥ वे० ॥ २ ॥ धर्मराजाए मन चितव्यं, पुण्य कीजे पाररे ॥ विनय करी तेमावीया, खेचर सुर नर साररे ॥ वे० ॥
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ७३ ॥
॥ ॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा, कृषि सहस्र अव्याशीरे ॥ कर जोडी युधिष्टर जणे, ब्रह्मा कोने विमासीरे ॥ वे० ॥ ४ ॥ धर्म केही परे उपजे, अमे करूं ते काजरे ॥ ब्रह्मा कहे युधिष्टर सुणो, जाग मांगो महाराजरे ॥ वे० ॥ ५ ॥ श्रश्वमेधे तुरंगम दणो, पुंडरिक मांदे हाथी रे || गोमेध पुण्य गायज दणी, अजामेध यज साथीरे ॥ वे ॥ ६ ॥ राजसूय महा जागमां, नरपति होमो साररे ॥ विविध जीव जागे कला, तेहनो पुण्य नहीं पाररे ॥ वे० ॥ ७ ॥
श्लोकः - गोसुवे सुरनिर्दन्यात्, राजसूये च भूभुजम् ॥ अश्वमेधे हयं हन्यात्, पुंमरिके च हस्तिनम् ॥ १॥ तव राजा प्रारंभीयो, राजसूर्य जागनो नामरे ॥ दैत सघला रोषे ढ्या, जांजी जागनो ठामरे ॥ वे० ॥८॥ युधिष्टर राजा तव जणे, अर्जुन सुणो तमे जाइरे ॥ शेषनाग तेको पातालथी, साते कृषि वेगे जाइरे ॥ वे० ॥ ए ॥ ते श्रावे तो कारज सरे, नहींतो विसे जागरे ॥ अर्जुने तव बाण मूकीयुं, फोड्यो भूमि नागरे ॥ वे० ॥ १०॥ बाण बिद्रे पेठो अर्जुनो, पाताल गयो तामरे ॥ नाग रिषिने सहु कयुं, पधारो स्वामि गामरे ॥ वे० ॥ ११ ॥ शेषनाग कृषि सातशुं, विचारी करी साररे ॥ धर्म काम करशुं मे,
॥ ॐ
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
लीधो सैन केडे फाररे ॥ वे ॥ १५ ॥ बाण विखे सहु नीकली, दश कोड ते सेनारे।।
दैत्य साथे संग्राम कर्यो, जाग्या दानव बीनारे ॥ वे ॥ १३ ॥ जगन संपूरण तव थिया, पांडव पांच ते हरख्यारे॥ वेद पुराणे बोट्युं एहवं, विप्र जुर्व तमे परीक्षारे ॥ वे ॥ १४ ॥ नट्ट नणे मुनिवर सुणो, सत्य वचन ए मोटुंरे ॥ स्मृति पुराण वेदे कडं, केम थाये श्रम खोटुंरे ॥ वे ॥ १५ ॥ माया मुनि कहे सांगलो, विप्र एहीज वातोरे ॥ हय गय पायक अहिपति, ऋषिवर चाल्या सातोरे ॥ वे ॥ १६ ॥ बाण बिझे समाया सहु, वली नीकल्या जेमरे ॥ कमंडल मुखे हुं करी, समया बेहु तेमरे ॥वे॥१७॥ विप्र वचन नणे मुनि सुणो, घटतां दीसे ए दोयरे॥वली विचारी कडं अमे, उत्तर देजो सोयरे ॥ वे ॥ १७ ॥ कमंडल मांहीं हस्ती तुमे, माया एह संदेहरे ॥ घणो काल नमतां थका, केम न नांगी नींमी तेहरे ॥ वे ॥ १५॥ नाखुए कुंजर केम नीकट्यो, केम वलग्यो मुड वालरे ॥ चार संदेह पड्या अडे नो, जुङ दयापालरे ॥ वे ॥ २० ॥ खंड त्रीजे ढाल ए कही, चोथी सुणो सुविशालरे ॥ ||रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय उजमालरे ॥ वे ॥२१॥
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥
४॥
उदा. जिनचरणदास बोल्यो जति, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अगस्त्य ऋषिवर अनिनवो, पुराण प्रसिद्ध ए ख्यात ॥१॥ उठ हस्तीनी देहमी, सायर समीपे वास ॥ तप जप ध्यान धरे बहु, सामग्री राखे पास ॥२॥ जोली माजन पात्रने, स्नाने शुद्ध करे . गात्र ॥ सायर तीरे बेसी करी, जोय मेव्यां सवि पात्र ॥३॥ चाल्यो करवा स्नान ते, समुनी लागी खेहेर ॥ जल कलोले लीधी सह, उपन्यो ऋषिने जेहेर ॥४॥ पूजा सामग्री माहरी, पापी जलधिए सीध ॥ तो संहारं एहने, तव तिहां सागर पौध ॥ ५॥ एक चबुमें एटलो, पीधो सागर सर्व ॥ केटलोक काल पेटमां रह्यो, हुं कडं मूकी गर्व ॥६॥ हिज सह को तमे सांजलो, पुराण प्रसिको ताम ॥इंडिमां समायो जो सही, तो हुँ हस्ती बेहु गम ॥ ७॥ अगस्त्य ऋषिए पीधो सहु, वहाण सायर मठ ॥ एह वात मानो खरी, तो माहरी वातो सच्च ॥ ॥ विप्र बोल्या तव सहु |मली, पुराणमां वात मनाय ॥ तुम वयण केम लोपीए, लाग्या तुमारे पाय ॥ ५ ॥ Musa माया मुनि तव बोलीयो, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अपर वात पुराणे कही, सांजलजो विख्यात ॥१०॥
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल पांचमी. नंद सखुणा नंदनारे लोल, तें मुने नाखी के फंदमारे लोल--ए देशी. सृष्टि उपाश् ब्रह्मानी कहीरे लोल, नूतल वायु वनस्पति महीरे लोल ॥ स्वर्ग मृत्यु पातालमारे लोस, जीव उपाया उजमालमारे लोल ॥ १॥ रुखे रुजपणुं तव कर्युरे लोल, ब्रह्मा सृष्टि वेगे संहरुरे लोल॥प्रलयकाल वरतावू श्राजधीरे लोल, श्रमे ईश्वर एवं काजधीरे लोल ॥२॥ विष्णु वात विचारी एडवेरे लोल, नुवन चौद पालशुं तेहवेरे लोल ॥ उदर मांही जग लीधो सहुरे लोल, जीवादिक तव राख्यो बहुरे लोल ॥३॥ विष्णु पोहोड्या जश् वम पानमेरे लोल, ब्रह्मा जोवे रान रानडेरे लोल ॥ बहु काल गयो| जग जोवतारे लोल, देखे नहीं अणखोवतारे लोल ॥॥ तलसीनो डोम तव दीठमोरे खोल, ब्रह्मा श्राव्यो दील करी मीठमोरे लोल ॥ अगस्त्य ऋषि दीग एटखेरे लोल, बेहु तापस एका मलेरे लोल ॥५॥ अन्यादे अन्यादे करीरे लोल, कोटे वलग्या बांही धीरे लोल ॥ सन्मान दीधुं ब्रह्मा जणीरे लोल, श्रासन उपर बेग धणीरे लोल ॥६॥अगस्त्य कहे ब्रह्मा सुणोरे लोल, केम पधार्या मुजने गणोरे लोल ॥ चिंतातुर दीतो को अधूरे लोल, कहेजो खामि काज श्रापऍरे लोल ॥ ७॥ धाता तव बोल्या
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ १५ ॥
धर्मपरी० वहीरे लोल, अगस्त्य सुणो वातो सहीरे लोल || सृष्टि निपाइ में श्रादर कर रे लोल, पापी नर कोणे संदरीरे लोल ॥ ८ ॥ जोयुं जगत्र न दीतुं कहीरे लोल, घणो काल जमीयो महीरे लोल ॥ भुवन चौदनी श्राशा मूकी खरीरे लोल, दुर्जन कोणे कीधो विणासहीरे लोल ॥ ए॥ अगस्त्य इषिबोल्या तदारे लोल, सांगलो ब्रह्मा ऋषि मुदारे लोल ॥ तलसी काले वलग्यो एदनो रे लोल, सरसव जेवडो कमंडल तेनो रे लोल ॥ १० ॥ कमंगल मुखमां पेसी जोयेरे लोल, विश्व व्यापणो वेगे होयेरे लोल || ब्रह्माने यानंद श्रावयोरे लोल, पेठो कर्मरुलमां जावीयोरे लोल ॥ ११ ॥ कुंकी मधे जोये वे जदारे लोल, वम वृक्ष मोटो दीठो तदारे लोल ॥ काले चढी जोये पाननेरे लोल, निद्राजर दीग तिहां काननेरे लोल ॥ १२ ॥ पासे खावी जोये जेहवेरे लोल, कोण पुरुष दीसे वे एहवेरे लोल ॥ किंवा विष्णु घटे गोवालीयोरे लोल, हरि विना नोहे नूपालीयोरे लोल ॥ १३ ॥ वरुपाने सुता जगनाथजीरे लोल, उठो स्वामि मलो देश हाथजीरे लोल || साद की धो उठ्या गोविंद धसीरे लोल, ब्रह्मा मस्या आनंद दसीरे लोल ॥ १४ ॥ नारायणे पूग्यो तदारे लोल, तुमे पधार्या केम मुदारे लोल ॥ ब्रह्मा मुख तद बोल्या एशुरे लोल, सांजलो विष्णु कहुं जेशुंरे लोल ॥ १५ ॥ सरजी सृष्टि न देखूं कहींरे लोल, घणो काल हुं न
खंग
॥ १५
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
म्यो महीरे लोल || दीठा जाणी श्राव्या तुम कनेरे लोल, कहो खामि श्राशा अम कनेरे लोल ॥ १६ ॥ विष्णु तव बोल्या सहीरे लोल, सांजलो ब्रह्मा कृषि वहीरे लोल ॥ | चौद छुवन निपाया तुमेरे लोल, तेहनी रक्षा करवी श्रमे रे लोल ॥ १७ ॥ रुद्रे जव मांड्यो संहारनोरे लोल, प्रलयकाल करे अपारनोरे लोल ॥ उदरमां तव वेगे करीरे लोल, सृष्टि तमारी में उधरीरे लोल ॥ १८ ॥ वचन सुणी रीज्या तदारे लोल, जलो कीधो तुमे श्रम मुदारे लोल ॥ खामि भुवन देखामो हवेरे लोल, जीव अमारो घणुं लवेरे लोल ॥ १७ ॥ हरि जणे सांजलो कृषि तमेरे लोल, मुखमां पेसो जइ उजमेरे लोल || सृष्टि जुर्ज तमारी एड्वी रे लोल, जागे मनना सहु संदेहवीरे लोल ॥ २०॥ खंड त्रीजे ढाल पांचमीरे लोल, श्रोता सहु जनने गमीरे लोल ॥ रंग विजयनो शिष्य एम कहेरे लोल, नेम ते जरा जगमें लहेरे लोल ॥ २१ ॥
उदा.
ब्रह्मा मुखमां पेठा जइ, चौद जुवन दीगं त्यांहिं ॥ स्वर्ग मृत्यु नरकावासनो, पर्वत सागर मही मांहीं ॥ १ ॥ सुर नर किन्नर देवता, हय गय पंखी अनेक ॥ उदर माहिं दीठो | सहु, जोतां काल गयो बेक ॥ २ ॥ श्रधोद्वारे नीकलवा, ब्रह्माए विचारी वात ॥ मल
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ७६ ॥
मूत्र शूचि कारनो, दुर्गंध गंध उतपात ॥ ३ ॥ इहां नीकलवुं न वि घटे, वदने थाये बहु वर्ष ॥ नाजिकमल जे विष्णुनी, तेमां का देह तो हर्ष ॥ ४ ॥ पहेलो काज विचाए, तेहने नावे को लाज ॥ विष्णु नाजिने बिद्रे करी, ब्रह्मा नीकल्या श्राज ॥ ५ ॥ इंटी वलग्यो केश अंगनो, धाता न लहे लवलेश ॥ ब्रह्मा तिहां वलगी रह्या, माटु यया वलगे केश ॥ ६ ॥ नाजिकमल रचना करी, पांखमी अष्ट प्रकार ॥ उपर यासन पूरीयुं नाम कमलासन सार ॥ ७ ॥ दिवस तेज यादे करी, पदम जात ते नाम ॥ नाजिकमले दरि उपन्या, कथा जाणो ब्रह्मानी ताम ॥ ८ ॥ माया मुनि इसी बोलीयो, विप्र विचारी जोय ॥ वेद पुराणे कथा कही, साची जूती होय ॥ ए॥ विप्र वचन तव बोलीया, पुराण प्रसिद्धो एम ॥ सर्व शास्त्र मांहीं कयुं, खोटं कहीए केम ॥ १० ॥
ढाल बी.
घी एक धोने राणी सुंबरो, सुंबरो दरियोरे न जाय - ए देश .
मनोवेग पवनवेग जणी, सामुं जोइ मित्त ॥ मित्र वचन मुज सांजलो, एक मनमां धरी चित्त ॥ साजन सहुको सांजलो ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ जेम कमंगल सरसव जेटले, मध्ये जग मायंत ॥ तो कमंगल मोटा मांहीं, गज छामे केम न पेसंत ॥ सा० ॥२॥ जेम चौद
॥ ७६
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुवन नारे करी, तुलसी माल नवि जंग ॥ तेम मयगल मुज जारथी, जींडी माल न मंग ॥ सा० ॥ ३ ॥ जेम विष्णु उदर मांहीं जम्यो, ब्रह्मा तिहां बहु काल ॥ अपणो जग जोतां थका, एम कहे बाल गोपाल ॥ सा० ॥ ४ ॥ कमंडल मांहीं बेदु जम्या, साव कहुं गज जेम ॥ करि पुंठे जमे घणुं, नागे जाउं तेम ॥ सा० ॥ ५ ॥ जेम नाजि - कमल बिद्रे करी, आखो नीकल्यो देह ॥ श्रमवाल वलगी रह्यो, ब्रह्मानो वली तेह ॥ सा० ॥ ६ ॥ तेम हस्ती नालुए नीकल्यो, पुंग्नो वलग्यो केश ॥ बलवतरे बहु बल कर्यो, हाल्यो नहीं लवलेश ॥ सा० ॥ ७ ॥ वचन सुणी द्विज बोलीया, सांजलो साधु | नरेश ॥ कर जोडी तुज पाय पड्या, उत्तर नोही लवलेश ॥ सा० ॥ ८ ॥ मनोवेग मन उलसी, बोल्यो मधुरी वाण ॥ पवनवेग सहु सांजलो, वचन विरोध पुरा ॥ सा० ॥ ए॥ जो विश्वलोक सघलो गल्यो, विष्णुए उदरज मांहीं ॥ तो कमंगल बाहेर केम रयुं, कहो केम पेठा त्यांहीं ॥ सा० ॥ १० ॥ अगस्त्य तुलसी जाडवे, कमंगल | तुछ मोजार ॥ वड वृक्ष तो पांदडे, पोढ्या देव मोरार ॥ सा० ॥ ११ ॥ ए सौ जग बाहिर घटे, तिहां करजो विचार ॥ विप्र सहु पुराणनां, वचन विरोध अपार ॥ सा० ॥ १२ ॥ | जे ब्रह्मा ध्याये थके, मूकाए जव पास ॥ विष्णुनी नाभिकमले रह्यो, पाम्यो दुःख निरास
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ सा०॥ १३ ॥ जो ज्ञानवंत ब्रह्मा होये, तो कां पूजे अगस्ति ॥सृष्टि मारी को हरी गयो, कहो षिवर किहां वस्ति ॥ सा ॥ १४ ॥ ब्रह्माए सहु सरजीयुं, तो सरजी नहीं एक नार ॥ रीडमीने सेवे सदा, कामांध होये गमार ॥ सा ॥ १५॥ नारायण जाणे सहु,
सृष्टि तणो संहार ॥ तो सीताहरण नहीं जाणीयो, पूज्यो सयल संसार ॥ १६ ॥ जकलमबंध बांध्या थका, बूटे सघला लोक ॥ रामचं समरथ सदा, नांजे सहुनो शोक ॥
सा ॥ १७ ॥ रावण पुत्र पराक्रमी, इंजित जेहनुं नाम ॥ सकल सैन तेणे बांधीयो, लक्ष्मण ने वली राम ॥ सा० ॥ २७ ॥ शोक सहुने उपन्यो, रवि जगमते एह ॥ सत्प विसख्या औषधी, नावे तो मरे तेह ॥ सा॥ २७ ॥ हणुमंते वेगे करी, आणी सल्प विसत्य ॥ राम लक्ष्मण सेना तणां, नांज्या सघलां शल्य ॥ सा ॥ २० ॥ निज बंधन जेणे नहीं टल्यां, नहीं टल्या शोक संताप ॥ परनां ते केम टालशे, विचारो महा पाप ॥ सा ॥ २१॥ खंम त्रीजे बही ढालमां, नाख्या नवनवा नेद ॥ रंगविजय | शिष्य एम कहे, नेमने हर्ष उमेद ॥ सा ॥ २ ॥
उहा. ब्राह्मण सहु बाना रह्या, नहीं उपजे ते बोल ॥ मनोवेग मन उलस्यो, विप्र हुवा
-
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
निहोल ॥ १ ॥ वाद जीती वनमां गया, विद्याधर बेहु मित्र ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग पवित्र ॥ २ ॥ पूर्वापर विरोध घणा कहेतां लागे लाज ॥ देव तथा गुण सांजलो, जेम सरे तुम काज ॥ ३ ॥ क्षुधा तृषा जय द्वेष नहीं, राग क्रोध मद लोन ॥ मान मोह माया नहीं, जन्म जरा मृत्यु दोन ॥ ४ ॥ खेद खेद विषाद नहीं, निद्रा चिंता नहीं जेह ॥ श्रष्टादश दोष वेगला, आराधो वली तेह ॥ २ ॥ अतिशय चोत्रीश जेहने, प्रातिहार्य श्रम सार ॥ अनंत चतुष्टय मंडीया, ते देव जवजल तार ॥ ६ ॥ ब्रह्मा हरि हर देवता, राग द्वेष जंकार ॥ डूषण भूषण भूषितां, पुत्र कलत्र परिवार ॥ ७ ॥ सुदेव कुदेव परीक्षा करो, धर्माधर्म विचार ॥ साधुं होय ते अंगी करो, हेम | प्रकार जेम चार ॥ ८ ॥ ताप ताडन बेद घर्षण, दान दया तप जाप ॥ शस्त्री शास्त्र गुरु कुगुरुनो, परीक्षा धरो निःपाप ॥ ए ॥
ढाल सातमी.
राधा रूपे दीसे रुमी, हाथे खलके सोनानी चुमी, मारी सइरे समाणी - ए देशी. कुगुरु कुदेव कुधर्म तथा जेह, दोष दाखव्या पूरवे घणा एहरे ॥ मारा साजन सुणजो, ग्रंथ वधवाने कारण जेह ॥ पाबल कह्या विचारो तेहरे ॥ मारा साजन० ॥
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
sexmameris
a
mansamanarassmessanANNIMIKANTAmmam
१॥ लोक अलोकाकाश मोकार, उंचो चौद राज विस्ताररे ॥ मा० ॥ सात राज! देगे अधो लोक, मेरु कंदथी गणजो थोकरे ॥ मा ॥२॥ मेरु समो उंचो मध्य । लोक, तिहांथी सात राज मोद रोकरे ॥ मा० ॥ अधो सात राज मध्य एक, पूर्वावापर करजो विवेकरे ॥ मा० ॥ ३ ॥ ब्रह्म लोक राज ने पांच, एक राज उपर वली।
खांचरे ॥ मा० ॥ दक्षिण उत्तर सघले तास, वायु त्रण विधो विख्यातरे ॥ मा०॥ लोक मध्य उन्नी तस नाल, चौद राज जंची विशालरे ॥ मा ॥ त्रस नानि त्रस थावर नरी, एक राज विस्तारे करी बेरे ॥ मा ॥ ५ ॥ बाहेर नरीया थावर पंच बागम कहीए एड्वो संचरे ॥ मा॥ धनराज जाणो त्रिलोक, त्रणसें तेंताली थोकरे ॥ मा ॥६॥ कटीकर कीधो पुरुषाकार, अथवा मादल दोढ आकाररे ॥ |माण ॥ अर्ध मादल धर्यु अधो लोक, आ मादल उपर कयु थोकरे ॥ मा० ॥
अधो लोक जे नरकावास, ब राज मांहीं सात अवकासरे ॥ मा० ॥ एक राज अधोर हेगे लोक, थावर पांच जर्यो ते थोकरे ॥ माण ॥ ७ ॥ लोक त्रणनो घणो विचार, सिद्धांत थकी सुणजो साररे ॥ मा० ॥ कोणे नहीं ए सृष्टि निपाश, अनादि कालनी| एह सदारे ॥ मा० ॥ ए ॥ मिथ्याती एम कहे जे केता, जल व्याप्त ब्रह्मांडे वदेतारे॥
nana
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
K
मा ॥ जल मांहीं उपन्यो पंपोट, तेहथी इंडं जायुं खोटरे ॥ मा ॥ १० ॥ की, त्रण खंग, तेथी उपन्यो सहु ब्रह्मांमरे ॥ मा० ॥जलमां मूक्युं ब्रह्माए इंडं, तेथी। जायुं बे वली रिंडुरे॥मा ॥ ११॥ सृष्टि नहोती किहां रह्या ब्रह्म, जल पोट इंडं केम जमारे ॥ मा० ॥ मिथ्या मतना कहुं विचार, सृष्टि उपनी घणे प्रकाररे ॥ मा०॥ ॥ १५॥ आदि हो तुं एक अनादि, तेथी उपन्यो श्रादिता सादिरे ॥मा॥ आदितनो उपन्यो कार जैकारनो वेद अपाररे ॥मा॥१३॥ वेदनो हव्य हव्यनो धूम, धूमनो। मेघ जल रूमरे ॥ मा० ॥ जल व्याप्युं उंचं अखंड, जर व्याप्युं एकवीश ब्रह्मांडरे ॥ मा ॥ १४ ॥ तेणे काल आदि विष्णु जलसार, जल साक्ष पोढ्या अपाररे ॥ मा० ॥ पोट्याधी गया बहु काल, वर्ष सहस्त्र वही गयां रसालरे ॥ सा ॥१५॥ तदा । काल नहीं श्रादि अनादि, पृथ्वी अप तेउ नहीं वली सादिरे॥मा० ॥ वायु आकाश तरुवर नहीं एह, चंड सूरज ग्रह नहीं वली तेहरे ॥मा ॥१६॥ अग्नि आदि करी नहीं एक, तदा श्रादि विष्णुए निपायो बेकरे ॥मा॥ प्रथम पेहे निपायुं तेज, तेज थकी ज्योति उपन्यो हेजरे ॥ मा० ॥ १७ ॥ ज्योति थकी उपन्यो वली फेन, फेनथी । उपन्यो श्रदबुद सेनरे ॥ मा० ॥ श्रदबुदथी उपन्यो बली अंम, अंड थकी उपन्यो
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंक ३
मिपरी पए॥
arsans
ब्रह्मा श्रखंगरे ॥माण्॥१॥ ब्रह्मानो काश्यपी ऋषि जात, काश्यपथी काश्यपी कृषि संघा
तरे ॥ मा० ॥ काश्यप ऋषि पतनी हु तेर, दीतीए जाया दैत्य दाणव ढेररे ॥ मा०॥ N॥ १ए ॥ श्रादितिथी उपन्या अपार, तेत्रीश क्रोम देव सुत साररे ॥ माण॥ कहुए
जाया नवकुली नाग, वनिता सुत गरुम विषनागरे ॥ मा० ॥ २० ॥ सुप्रनाए पुत्री जणी सात, नवसे नवाणुं नदी विख्यातरे ॥ मा ॥ एकीए जणीया छीपज सात, साते सागर जाया एकीए रातरे ॥ मा ॥ २१॥ एकीए जाया पर्वत वृंद, सेना ब्राह्मणी जणीया चंदरे ॥ मा० ॥ एकीए सहुए सूरज जाया, तारा ग्रह नक्षत्र बहु। मायारे ॥ मा० ॥ २२ ॥ हव्यकाए जाया ऋषिवर स्वाम, अव्याशी सहस्र तणां जे नामरे ॥ मा० ॥ खडनेत्री जणीया चारे खाण, खेद अंग जरा अदबुद जाणरे ॥ माम् ॥ ३॥ चार खाणथी चोराशी लाख, जीव योनिनी उत्पत्ति नाखरे ॥ मा० ॥ |बेंतालीश लाख थलचर जोय, जलचर नजचर बाकी होयरे ॥ मा० ॥ २४ ॥ जीव थकी उपन्या जुग चार, कृत त्रिता छापर कलि साररे ॥ मा० ॥ एणी परे सृष्टि । तणो बे लाग, मिथ्यादृष्टि कह्यो विजागरे ॥ मा० ॥ २५ ॥ खंम त्रीजानी सातमी
maaman
ए
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल, सुणजो सहु बाल गोपालरे ॥ मा० ॥ रंगविजय शिष्य एम गुण एम दाखेरे ॥ मा० ॥ २६ ॥
उदा. मनोवेग कहे सांबलो, पवनवेग गुणवंत ॥ मूढ मिथ्यातनी वारता, श्राप विगोए एकंत ॥१॥
ढाल आठमी.
वणजारानी देशी. मारा नायकरे,विष्णु ब्रह्मा बेह, वाद वदे सृष्टि कारणे॥माण॥ब्रह्मा कहे सृष्टि एह, में सरजी सुख कारणे॥मा॥॥माण॥ विष्णु वदे मुज तणी सार, सृष्टि रक्षा करूं श्रमे खरी॥ मा० ॥ मा०॥जुग काजे वलगतातेह, शंकर पासे गया मन धरी ॥ मा० ॥२॥ मा०॥ly कहो ईश्वर महाराज, अमे बेहु मांदे सृष्टि केहु तण। ॥ मा० ॥ मा० ॥ शंकर कहे सुणो ब्रह्मा विष्णु, मुज लिंग डे जाए ते धणी ॥मा०॥३॥मा॥ ब्रह्मा तुमे जाउँ उर्ध । लोक, मुज लिंगनो अंत ज्यां होये ॥ मा ॥ माण ॥ विष्णु जाउँ अधो लोक, लिंग
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
गर्मपरीमो आवे सोश॥मा॥५॥ मा॥ ब्रह्माए बथाव्यु लिंग, हस्त धरी उंचो चढे॥
माखम INमा०॥ लिंग वलगी चाख्यो कान, वेगे पाताले हरी जडे ॥ मा० ॥५॥मा०॥ जातां । ०॥
थयो घणो काल, लिंग अंत न पावीयो ॥ माण॥ मा० ॥ नारायण थाक्यो ताम, पाडगे वली हर कने श्रावीयो ॥ मा०॥६॥मा०॥ विष्णु कहे सुण ईश, लिंग पार में नविलह्यो ॥मा०॥ मा० ॥ दुःखी हुवो ब्रह्मा वाट, मुख फीको करीने रह्यो ॥ मा० ॥७॥ मा०॥ खसी पड्यु केवडी पत्र, लिंग उपरथी तले यदा ॥ मा ॥ माण पडतो काल्यो कहे ब्रह्म, कूकी साख देजो केवमी तदा ॥मा॥७॥ मा॥ बेहु श्राव्या ईश्वर पास, ब्रह्मा कहे हुं ठेठे गयो॥मा॥ मा॥ लिंग उपरथी एह, केवमी पाणी साचो जयो॥ मा० ॥ ए॥ मा० ॥ कहे केवडी साची वात, ब्रह्मा आव्यो तुज लगे ॥मा ॥ मा॥ केवमी कहे सुण खाम, ब्रह्मा वचन नवि मगे ॥ मा७ ॥ १० ॥ माम् ॥झाने जो करी श, खोटुंजाणीश्रापी केवडी ॥मा॥ मा॥ म चमीश माहरे लिंग, कांटा होजो तुज तेवडीमा॥११॥मा॥खोटाबोलो ब्रह्मा तुंनांम, सृष्टि न होशे तुज तणी॥ मा॥मा॥ सत्यवादी गोविंद, सृष्टि सहुनो ए धणी ॥मा १२ ॥मा ॥ पवनवेन विचारी जोय, मलती वात एके नहीं ॥ मा ॥ माण ॥ परीक्षा करी धरो चित्त, सुधुं समकित मन
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
ग्रही ॥ मा० ॥ १३ ॥ मा० ॥ जिनशासनना जेद, शास्त्र सिद्धांत विचारी ॥ मा० ॥ मा० ॥ वीतराग देव याराध, जैन वाक्य हृदय धारी ॥ मा०॥ १४॥ मा० ॥ श्री हीर विजय सूरिराय, शुभ विजय शिष्य तेहना ॥ मा० ॥ मा० ॥ जावविजय शिष्य तास, सिद्धि विजय शिष्य एहना ॥ मा० ॥ १५ ॥ मा० ॥ रूपविजय सही एड्, शिष्य कह्या जाणो सदी ॥ मा० ॥ मा० ॥ कृष्ण विजय कलि मांहीं, शिष्य नाम धराव्यो मही ॥ मा० ॥ १६ ॥ मा०॥ रंग विजय रंग लाय, शिष्य कहीए जगमें जदा ॥ मा० ॥ मा० ॥ नेम विजय शिष्य नाम, नित्य उदय होजो तदा ॥ मा० ॥ १७ ॥ मा० ॥ एद संसारमां सार, धर्मपरीक्षा जाणीए ॥ मा० ॥ मा० ॥ मिथ्या मत तो ध्वंस, त्रीजो अधिकार मन आणी ए ॥ मा० ॥ १८ ॥ मा० ॥ त्रीजो पूरो थयो खंग, ढाल आठे पूरण करी ॥ मा० ॥ मा० ॥ नेमविजय कहे नित्य, गुरुनुं नाम हृदय धरी ॥ मा० ॥ १७ ॥
इति श्रीधर्मपरीक्षायां मिथ्यादेवशास्त्रपुराणगुरुडूषण नामा तृतीयोऽधिकारः
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥॥
खंड ४ थो.
उदा. जिनशासन समरी करी, प्रणमी बे कर जोम ॥ चोथा अधिकारनी कथा, कहुँ बु गर्वने बोम ॥१॥ मनोवेग वलतो जणे, पवनवेग जणी वात ॥ अवर पुराणनी वारता, सांनलजो तुमे जात ॥ २॥ निरमल मन तुमे राखजो, जैन धर्म पर रंग ॥ समजावू सहु हिज नणी, विचार देखाडं चंग ॥३॥अजुत रूप करी नवां, जइए आपण बेया एकांते नवि उलखे, फरी श्रावणुं एणे गेह ॥ ४ ॥ तापस रूप धर्यां जलां, पाटलीपुर मनोहार॥उत्तर दिशि पोले संचर्या, हिजशालाए तेणी वार ॥५॥
ढाल पदेली. __गोकुल गामने गोंदरेरे, म करो बुटाबुट, मारा वालारे, हुं नहीं जालं
मटी वेचवारे-ए देशी. नेर वजाडी रुयमीरे, घंटा तणो कीधो नाद ॥मारा साजनरे॥सिंहासन बेग चमीरे, | विप्रथाव्या करवा वाद ॥ मा ॥ कौतिक वात सुणजो सहुरे ॥ ए श्रांकणी ॥१॥
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
तापस देखी अचंनीयारे, जट्ट एक बोल्यो मन रंग ॥ मा० ॥ वाद वदो तुमे अति घणारे, प्रथम वचन करुं नंग ॥ मा० ॥ कौ ॥२॥ घंटा धंधोली श्रम तणीरे, नेर व-| जावी वली श्राप ॥ मा० ॥चांप्यु सिंहासन हेमनुरे, तेहनो देजो एम जबाप ॥मा ॥ कौ ॥३॥ मनोवेग तव बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचार ॥मा०॥ विनोद कारण वाजां| वाश्यारे, सिंहासन बेग श्रमे सार॥माण॥ कौ०॥४॥ बेग तुमने नवि गमेरे, उतरीए. नीचा ततकाल ॥माण॥वाद न जाणुं होय केहवोरे, नण्या नहीं निशाल ॥मा कौ॥५॥ विप्र वचन तव उचरेरे, सांजलो तापस राज ॥ मा॥ किंहा थकी तुमे आवीयारे, कोण उपन्यो बे काज॥मा॥कौ॥६॥कोण कुले तमे उपन्यारे, कोण दे तमारी जात | ॥ मा०॥ वास निवासे किहां रहोरे, उत्तर दे अम जात ॥ मा० ॥ कौ० ॥ ७॥ मनोवेग तव बोलीयोरे, सुणजो विप्र विचार ॥मा ॥ साचं कहेतां सुख नहींरे, जूठे बोले लहीए मार ॥मा ॥ कौ॥७॥ तरती शिला वली जेणे कहीरे, जेणे कह्यो मर्कट ना|च ॥ मा० ॥ असंजव वाक्य लवता थकारे, ताडन लडं तेणे घाट॥माण॥ कौ॥ए॥
मूरख मोटा होये घणारे, सन्ना मांहीं नर वली जेह ॥ मा० ॥ विवेक विचार जाणे नहींरे, शुं कहीए श्रागल तेह ॥माण ॥ कौ० ॥१०॥ हिजवर वाणी बोलीयारे, तापस
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
८२ ॥
कहो तुमे सार ॥ मा० ॥ मोटा मूरख के किसारे, बोलो तेह अधिकार ॥ मा० ॥ कौ० ॥ ११ ॥ मनोवेग तव उचरेरे, सुणजो विप्र विचार ॥ मा० ॥ मूरख कथा तुमने कहुं रे, श्रुतसागर तुमे पार || मा० ॥ कौ० ॥ १२ ॥ सजा मांहीं मूरख नरेरे, कोइ होशे द्विजवर आज || मा० ॥ तो खोटी कथा करे मुज तणीरे, नवि सरे अमारो काज ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १३ ॥ मूरख होय ते शुं करेरे, सुणजो कथानो समाज ॥ मा० ॥ एक चित्ते मौनज धरीरे, दरख उपजे जेम द्या ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १४ ॥ चार नर मारग सांचर्यारे, मूरख मोटा वली तेह ॥ मा० ॥ सुनिवर एक सामो मल्योरे, उत्तम चारित्र गेह ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १५ ॥ मौन धारी जोग आगलोरे, सुमति गुपति व्रत धार ॥ मा० ॥ नगन मुद्रा परिसह सहेरे, जव्य जीव जवजल तार ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १६ ॥ एहवो मुनिवर दीठमोरे, तव | मूरख चारे चंग ॥ मा० ॥ वांद्यो मुनिवर जाव धरीरे, तव जतिवर बोल्यो रंग ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १७ ॥ धर्मवृद्धि तुमने होजोरे, वचन सुणी चारे ताम ॥ मा० ॥ मारग चाल्या | मलपतारे, जोजन दोढ गया जाम ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १८॥ चोथा खंड तणी कहीरे, प्रथम ढाल रसाल ॥ माण रंग विजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ मा०॥ कौ० ॥ १७ ॥
खंग ४
॥ ८ ।
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. तव मूरख एक बोलीयो, आशिष दीधी मुनिराज ॥धर्मवृद्धि मुजने कही, सरशे अमारो काज ॥१॥ बीजो कहे मुजने कही, त्रीजो बोले तेणी वार ॥ चोथो कहे। मूजने कह्यो, श्राशिष मुनि गुणधार॥२॥मांहोमांहे वलगे घj, पाला श्राव्या तिणे गम, मुनिवर तिहां दीग नहीं, न्याय कारण अन्य ग्राम ॥३॥ बुद्धिवंत व्यवहारीश्रा, तेहने जश् मख्या ताम ॥ न्याय करो शेठ श्रम तणो, महा मूरख अम नाम ॥४॥ तव || शेठे ते पूढीया, के शी मूरखा अंग ॥ चार मध्ये एक बोलीयो,मूरख मूरखाश्चंग ॥५॥
ढाल बीजी. टुंक अने टोमा वचेरे, मेंदीनां दोय रूंख, मेंदी रंग लागो-ए देशी. मारे मंदिर दो नारी अरे, चंगी निरंगी सुखखाण॥ साजन सांजलो।एक दिवस सूतो सज्यारे, थयो निसावश श्राण ॥ सा ॥१॥ तव जामनी श्रावी बेहुरे, सूती | |माबे जमणे पास ॥ सा ॥ एकेको हाथ मारो ग्रहीरे, हृदय उपर करी श्रास ॥ सा ॥२॥ तेणे अवसर मुज मंदिररे, दीपक हतो एक चंग ॥ सा ॥ तव उंदर वलग्यो आवीरे, दीवट ताणी चाट्यो रंग ॥ सा ॥३॥ मुज उपर उँचो रहीरे,
-
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
मिपरी
। ३॥
वामांग नेत्रे पाडी वाट ॥ सा ॥ में मनशुं विचारीयुं रे, हस्ते करी टालुं उपघात ॥ खंग सा ॥४॥ जो मावो हाथ चालवुरे, तो रंगी करे मुज रीस ॥ सा ॥ जमणो हाथ जो फेरवुरे, चंगी कलेशे हणे शीश ॥ सा ॥ ५ ॥ नारी नेह तुटे रखेरे, नेत्र तणो नहीं काज ॥ सा ॥ माबो चतु तव बल्योरे, नाम दीधो शुक्रराज ॥सा॥६॥नारी नेहने कारणेरे, नेत्र तणी करी हाण ॥सा॥महामूरखपणुं माहरे, विचारो तमे बुद्धि जाण ॥सा॥७॥तव बीजो नर एमजणेरे,मुज मूरखनी सुणो वात ॥सा॥मुज घर नारी बे सहीरे, खरी रीठमी नामे ख्यात ॥ सा ॥ ॥ जमणो पग खरीने दीयोरे, माबो सबनीने ताम ॥ सा ॥ एणी परे सुख हुँ नोगद्रे, महीला सरसो काम ॥ सा INT ॥ ए॥ एक दिवस घरे हुँ गयोरे, खरी श्रावी जल लेय ॥ सा ॥ जमणो पग पखालवारे, सैमी जोय दृष्टि देय ॥ सा ॥ १० ॥ जव खरी जमणो धो गरे, मावा, उपर में धर्यो पाय ॥ सा ॥ तव रीठमी कोपे नरीरे, मुसल श्राणी को घाय ॥ सा ॥ ११ ॥ जमणो पग मुज नांजीयोरे, तव खरी करी घणो रोष ॥सा ॥ तुं मोटी|| ३ । फुवम रीठमीरे, मान मच्छर अति शोष ॥ सा ॥ १५ ॥ निज पतिने तुं नवि धरेरे, अन्य पुरुषशुं रमे रात ॥ सा ॥ तव रीडमी कहे मुने कहोरे, श्रापणी बांगो था
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
जूंमी जात ॥ सा ॥ १३॥ चोरे चोवटे तुं रमेरे, अन्य जाणे सहु लोक ॥ सा ॥ जरतार बापमो पाधरोरे, नाक कान दे बीजो रोक ॥ सा ॥ १४ ॥ तव खरीने चमी रीसमीरे, सबलो मुसल कर लीध ॥ सा ॥ प्रहार मेट्यो पग उपरेरे, चरण माबो| खोमो कीध ॥ सा ॥ १५ ॥ मारो पगतें जांजीयोरे, तारो पग कयों में जंग ॥ सा॥ साट साटुं वद्युं श्रापणुंरे, हवे बेहु शोक्योमां रंग ॥ सा ॥ १६ ॥ पग बेहु कूटी जांजीयारे, नारी में उहवी न लगार ॥ सा ॥ मोटो मूरख मुज समोरे, कोश् नवि दीसे गमार ॥ सा० ॥ १७ ॥ चोथा खंड तणी कहीरे, ढाल वीजी सुविशाल ॥सा॥ रंगविजय शिष्य नेमनेरे, होजो मंगल माल ॥ सा ॥ १७ ॥
उहा. तव त्रीजो एणी परे नणे, सांजलो बुद्धि निधान ॥ मुज सरीखो मूरख नहीं, श्री गुरु केरी थाण ॥ १॥ नागर लोक पूढे तदा, कहे मूरख तुज वात ॥ जेम न्याय विचारी कीजीए, विनोद होये विख्यात ॥२॥
ढाल त्रीजी. नाह गयो तो वामीएरे, लाव्यो चंपानो फूल । नानो नाहलोरे--ए देशी.
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरी
MAMAN
तव त्रीजो मूरख कहेरे, तुमे सहु सांजलो आज ॥ साजन सांजलोरे ॥ मुजखम ४ मूरखपणुं वरणQरे, जेम सरशे मुज काज ॥ सा ॥१॥ एक दिवस नारी अमेरे, मलीयां एकण सेज ॥ सा ॥ होड पामी मौने रह्यारे, एम बोली बेहु देज ॥ सा॥ ॥२॥ जे. हारे ते होडे दीएरे, घृत खांम नरी दश पोली ॥ सा ॥ साकर साथे मिश्र करीरे, सुगंध घृतमा ऊबोली ॥ सा ॥३॥ एम परठी मौन रह्यारे, नर नारी बेहु चंग ॥ सा ॥ तेहवे तस्कर आवीयारे, धन हरवा उत्तंग ॥ सा ॥४॥खात्र देश घरमां गयोरे, वित्त काढ्यु अपार ॥ सा ॥ शाजरण वस्त्र घणां लीयारे, मोती लीयां दीनार ॥ सा ॥ ५॥ तोही श्रमे नवि बोलीयारे, होम हारवा माट ॥सा स्त्री शणगार उतारीनेरे, खेवा लाग्यो तव घाट॥सा०॥ ६ ॥नारी कहे कंत सांजलोरे, चोरे हर्यु अव्य क्रोम ॥ सा ॥ हसी करी में ताली दीधीरे, नारी तुं हारी होम ॥ सा ॥७॥ पोली घृत खांडे नरीरे, मुज थापो तुमे आज ॥ सा ॥ तस्कर वित्त ले गयारे, लोक मांही लागी लाज ॥ सा ॥॥ एवी कथा ने मुज तणीरे, महान् । मूरख मारो नाम ॥ सा ॥ सकल लोक विचारजोरे, धर्म वृझिनो हुँ ठाम ॥ सा ॥ | ए ॥ चोथो नर तव बोलीयोरे, खकीय कथा परसंग ॥ सा० ॥ मुज मूरखपणुं NI
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
सांजलोरे, जेम होये तुमने रंग ॥ सा० ॥ १० ॥ एक दिवस सासरे गयोरे, स्त्री श्राणाने काज ॥ सा० ॥ तव माता मुज शिखव्युंरे, सांजल पुत्र तुं श्राज ॥ सा० ॥ ११ ॥ सासरे नित्य जमीए नहींरे, उदर जरीने अपार ॥ सा० ॥ एक दिवस मूख्या रहोरे, बीजे पण थोमो आहार ॥ सा० ॥ १२ ॥ शिखामण देश मोकल्योरे, वहु लेवाने काज ॥ | सा० ॥ सासरे गयो उलट धरीरे, सहुने मल्यो हुइ लाज ॥ सा० ॥ १३ ॥ खेम कुशल पूढी सालकेरे, जमवा उठो जगनी वोर ॥ सा० ॥ श्रमे कयुं तमे सांजलोरे, जमी श्राव्यो हुं घोर ॥ सा० ॥ १४ ॥ बीजे दिन लोक श्रावीयारे, जमण तणो नहीं लाग ॥ सा० ॥ रात पडी साला बोलीयारे, जमाइ श्ररोगो महा जाग ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ साला प्रते हुं बोलीयोरे, निशिनोजन नहीं चंग ॥ सा० ॥ भूख नथी मुज अति घणीरे, अबाधा उपनी वली अंग ॥ सा० ॥ १६ ॥ सासुए मनशुं विचारीयुंरे, हलु कीजे अन्न ॥ सा० ॥ चोखा जींजव्या वाटलीरे, कुर निपावाने मन्न ॥ सा० ॥ ॥ १७ ॥ जव मागशे तव पीरसशुंरे, एवो करी सुविचार ॥ सा० ॥ कचोलुं जरी तंडुल मूकीयोरे, ढोलीया देठे आधार ॥ सा० ॥ १८ ॥ मुज महिला तव सांचरीरे, यांगणे लघुनित काज ॥ सा० ॥ नवरुं देखी में चिंतव्युंरे, ते सांजलो धनराज ॥ सा० ॥
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ जय ॥
॥ १७ ॥ धाए पीड्यो रही नव शकुंरे, दोय लांघण थइ मुज ॥ सा० ॥ तांडुल लेइ में मुख जर्युरे, नहीं जाणे कोइ गुज ॥ सा० ॥ २० ॥ तव नारी श्रावी मुज तणीरे, मुख दीतुं विकराल ॥ सा० ॥ बोलाव्यो हुं बोलुं नहींरे, जामनी की यो बुंबाल ॥ सा० ॥ २१ ॥ खंग चोथानी ए कहीरे, ढाल त्रीजी गुणखाण ॥ सा० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहीरे, नेमे उलट श्रण ॥ सा० ॥ २२ ॥
उदा.
मुज स्वामी मुख शुं थयुं, धाजो जाइ बाप ॥ लोक बहु यावी मट्यो, कोलाहल संताप ॥ १ ॥ वेगे वैद बोलावीया, माह्या सात ने पांच ॥ ते श्राव्या उलट धरी, औषध मेल करी सांच ॥ २ ॥ रोग परखे लोक अति घणा, कर्णशूल गंगोल ॥ एक कहे पीत कोप यो, जोग मंगावो मंगोल ॥३॥ उतारणां करो शक्तिनां, कुलदेवीने जोग ॥ गोगा गणेश जरू पूजतां, टले गलानो रोग ॥४॥ वेगे वैद निहालीयो, खाट देठे नर्यो वाट ॥ तांडुले जर्यो कंठ समो, मध्ये दीठो घाट ॥ ५ ॥ मस्तक धूणी ते बोलीया, न | जीवे जमाइ श्राज ॥ तांडुल व्याधि ए उपनी, गलामां रोग असाज ॥६॥ तांडुल सरिखा उपन्या, कीटक विषम बे अंग ॥ वित्त वस्त्र घणां श्रापजो, जमाइने करूं चंग ॥७॥
खंग
॥ न्य
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
सशस्त्र काढी गाल बेदीयो, साही रह्या जण चार ॥ बुंबारव करता थका, काढ्या तांदुला
तेणी वार ॥ ७॥ रुधिराला ते नीकल्या, वैदे सीधां वस्त्र दान ॥ गालस्फोटक मुज नाम दीयो, मूरख मोटो नहीं सान ॥ ए ॥ मूरख चारे कथा कही, सांजली संघले लोक ॥ न्याय नहीं ए तुम तणो, शुं कहीए अमे फोक ॥ १० ॥ धर्मवृद्धि मुनीश्वरे कही, महा मूरख तमे चार ॥ वढवाम तजी जा मंदिरे, एकेक अदर लेवो तार ॥ M॥ ११॥ तव हिजवर ते बोलीया, सांजलो तापस वात ॥ एवो मूरख अममां नहीं, 1Y कहो हवे तमारी ख्यात ॥ १२ ॥
ढाल चोथी. एणे सरोवरी यारी पाली, उनी दोय नागरी मोरा लाल-ए देशी. मनोवेग नणे द्विजराज, सुणो तमे सहु मली ॥ मारा लाल ॥ सु० ॥ साकेत्ता नामे नगरी, अडे ते निरमली ॥ मारा लाल ॥ १० ॥ विश्वनूति नामे ब्राह्मण, एक तिहां रहे ॥ मारा लाल ॥ ए० ॥ तेहने कन्या ने एक, जोवन वयमां वहे ॥ मारा लाल ॥जो० ॥१॥ मुज पिता जणी ताम, विवाह ते मेलीयो०मा०॥ वि०॥मांडयो विवाह | मोच्छव, मनोरंगे नेलीयो ॥ मा० ॥ म० ॥ कीधो हाथ मेलावो, वर कन्या बेढु तणो ।
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ८६ ॥
॥ मा० ॥ व० ॥ तेहवे हाल कलोल, थयो नगरीमां घणो ॥ मा० ॥ थ० ॥ २ ॥ त्रास पड्यो सदु लोक, नासे रोये घणुं ॥ मारा लाल ॥ ना० ॥ रडे पडे उजा थाय न, चाले बल को तणुं ॥ मा० ॥ चा० ॥ एक एकने पूढे लोक, जाशुं आपण किदां ॥ मा० ॥ जा० ॥ श्रांनो उपामी नाठो, हाथी यावे इहां ॥ मा० ॥ हा० ॥ ३ ॥ तेहवे मुज माताने, मेली नागे मुज पिता || मा० ॥ मे ० ॥ जीव्यानी बहु याशा, लागी मन में जीता ॥ मा० ॥ ला० ॥ नासंता लागी बांहीं, संजोगे गर्ज धर्यो ॥ मा० ॥ सं० ॥ उदर रह्यो हुं त्यांह, मातानी कुखे जर्यो ॥ मा० ॥ मा० ॥ ४ ॥ तात गयो मुजमाताने, मेली एकली ॥ मा० ॥ मे० ॥ नाठी जाये मात, विकट जाणी वली ॥ मा० ॥ वि० ॥ कोमल कंपे काय ते, लोक बोले तिहां ॥ मा० ॥ लो० ॥ दीसे नहीं जरतार, ताहरो गयो किहां ॥ मा० ॥ ता० ॥ ५ ॥ चाल्यो ते परदेश गयो जे परहरी ॥ मा० ॥ ग० ॥ दिन दिन वाघे गर्ज, लोके वात दिल धरी ॥ मा० ॥ लो० ॥ पूढे लोक अनेक, तारे गर्न केम थयो | मा० ॥ ता० ॥ श्रमे जाएं तुं सर्व तुज, धणी नासी गयो ॥ मा० ॥ ध० ॥ ६ ॥ तव नारी कहे जार, पुरुष संग नवि कर्यो | मा० ॥ पु० ॥ हाथ मेलावे संकट, लाग्यो तेणे धर्यो | मा० ॥ ला० ॥ मानी लोके वात, कर्मगति एहनी ॥ मा० ॥
खंभ
॥ ८६
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
क॥ पीहर ते रही कुण, करे वात तेहनी ॥ मा० ॥ क० ॥ ॥ नव मास वाडा, पूरण थवा श्रावीया ॥ मा० ॥ पू० ॥ जमवा कारण तापस, घणा तेमावीया ॥ मा०॥ |घ० ॥ विश्वनूतिए श्रघरणी, करी जमामीया ॥ मा० ॥ कण्॥ सनमुख उनो विनति, करे हाथ जोमीया ॥ मा०॥ क० ॥ ॥ नारी तणो तिहां तात, पूजे तापस जणी ॥ मा० ॥ पू॥ नवितव्यतानो विचार, कहो बुझिना धणी ॥ मा० ॥ कण ॥ कहे तापस तमे सांजलो, वात कडं नवी ॥ मा० ॥ वा ॥ तुम देश माही फुकाल, थाशे सही| संजवी ॥माथा ॥णा बार वरसांनो काल, सही करी जाणजो ॥मा॥स०॥ पेट , मांहींथी में सुणी, वाणी परमाणजो ॥ मा० ॥वा॥ हुँ हवे रहुँ पेट मांहीं, उकाल एम लागीए ॥ मा० ॥ 5 ॥ बोख्या तापस वयण, थाशे एम पालीए ॥मा॥ था॥ ॥ १०॥ सुकाल थया पली नीकडं, तो सुखी थाइए ॥ मा ॥ सु ॥ जो नीकर्बु उकाल मांहीं, तो मा थाइए ॥ मा ॥ तो ॥ ते तापस तेणी वार, चाल्या परदेशमां ॥ मा० ॥ चा ॥ बार वरस फरी श्राव्या, नवनवा देशमां ॥ मा०॥न॥११॥ दीधो श्रादरमान, आहार घणो आपीयो ॥ मा० ॥ आण ॥ पाम्या हरख अपार, सुकाल नाम थापीयो ॥ मा० ॥ सु०॥ उदर मांहींथी वात, सुणी में तेहवे ॥ मा०॥
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरीसु० ॥ नीकट्यो हुँ गर्न मांहींथी, शीघ्र थइ एहवे ॥ मा० ॥ शो ॥ १५ ॥ खालं
खाडं वारोवार, करुं हुं तव जदा ॥ मा० ॥ कण ॥ जमण दीयो मुज मात, कहुं तुमने ॥ ७॥
मुदा ॥ मा० ॥ कण ॥ तापस कहे तेणी वार, ए पुत्र कुलक्षणो ॥ मा० ॥ ए॥ धन धान्यनो संहार, करे कुल लक्षणो ॥ मा० ॥ कण् ॥ १३ ॥ जे नूषणे तुटे कान, ते सोने शुंकीजीए ॥ मा ॥ ते ॥ कोडं धान जो होय, वाडे नाखी दीजीए ॥ मा वा ॥जा जारे मुज श्रागलथी, मुख लेश पापीया ॥ मा० ॥मु० ॥ नहीं तो फेडीश गम, सही उःख व्यापीया ॥ मा० ॥ स० ॥ १४ ॥ मंदिर माहरा मांहीं, हवे तुं मत रहे ॥ मा० ॥ ४० ॥ सांजली मातानां वरण, कुमर तिहांथी वहे ॥ मा० ॥ कु० ॥ चाल्यो जाउं परदेश, तापस टोलामा जल्यो । मा० ॥ ता॥ इषिनो लीधो वेश, अयोध्या आवी मल्यो ॥ मा ॥ ० ॥ १५ ॥ तिहां परणी मुज माय, दीठी में तेहवे ॥ मा० ॥ दी० ॥ तापस प्रणमी पाय, पूज्या में एहवे ॥ मा० ॥ पू० ॥ तव तापस कहे एम, सांजल तुं वारता ॥ मा॥ सांग ॥ स्मृति पुराण जे शास्त्र, मांहीं अमे धारता ॥ मा ॥ मांग ॥ १६ ॥ अक्षत योनि परणी ते, नहीं दोष एहमां ॥ मा० ॥ न ॥ जे नारीनो नाथ, गयो परदेशमां ॥ मा० ॥ ग ॥ चार वरष लगे वाट,
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते जुवे वेशमां ॥ मा० ॥ ते० ॥ जो जरतार नाव्यो, करे बीजो लेशमां
मा० ॥ क० ॥ १७ ॥
स्मृत्युक्तं - सनिर्वाचा प्रदत्ता या, यदि पूर्वतरो मृतः ॥
सा चेदकतयोनिः स्यात्, पुनः संस्कारमर्हति ॥ १ ॥
पुत्रवती जे नार, मु धणी तेइनो || मा० ॥ मु० ॥ बेठी रहे आठ वरस, लगे मान एहनो ॥ मा० ॥ ल० ॥ फरी बीजो जरतार, करे नारी वली ॥ मा० ॥ क० ॥ तो शास्त्रे को दोष, नारीने जाये टली || मा० ॥ ना० ॥ १८ ॥
श्लोकः - अष्टौ वर्षाणि सपुत्रा, ब्राह्मणी पतितंपति ॥ प्रसूता च चत्वारि, पुरतोन्यः समाचरेत् ॥ २ ॥
परी तुम माय, विचार तेह्नो नहीं || मा० ॥ वि० ॥ ते सांजलीने हुं श्राव्यो, कारण नेर, घंटानाद में कीयो ॥ मा० ॥ लीयो ॥ मा० ॥ ति० ॥ १९ ॥ चोथा खंमनी रंग विजयना शिष्य, नेमविजये कही ॥
ब्रह्मशाला मही ॥ मा० ॥ ० ॥ कौतिक धं० ॥ चाट्यो तापस साथ, तिहां वेश में ढाल, चोथी ए सही ॥ मा० ॥ चो० ॥
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ८८ ॥
| मा० ॥ ने० ॥ सांजलजो सहु कोय, यागल वात बे घणी ॥ मा० ॥ ० ॥ वचनमां न करशो व्याघात, राखो रंग सहु मली ॥ मा० ॥ रा० ॥ २० ॥
उदा.
तव ब्राह्मण एम बोलीया, असत्य वचन गमार ॥ पुरुष जुज लाग्या थकी, केम रहे गर्न श्राधार ॥ १ ॥ गर्ज मांहींथी केम सांजले, तापस कह्यो जे विचार ॥ बार वरस कहो केम रहे, उदरमां गर्ज ते सार ॥ २ ॥ जात मात्र बालक कहो, केम ते वेश धरंत ॥ तुज सरीखो खोटो नहीं, मही मंगल जोयंत ॥ ३ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो द्विजवर वाच ॥ स्मृति पुराणे जे कयुं, ते शुं वचन असाच ? ॥ ४ ॥ तव वांडव कोपी कहे, रे तापस अजाण ॥ वेद पुराणे जे कयुं, ते कहो श्रमने वाण ॥ ५ ॥ ढाल बही.
मेडते नगारो वाजीयोरे ढोला, पमीरे दवा में ठगेर ढोला, जाजी मत जाजोरे सगतार्जत ढोला - ए देशी.
मनोवेग तव बोलीयोरे, साजन सांजलो ब्राह्मण वात ॥ साजन तुम जयश्री धुजुं घरे, सा० केम करूं शास्त्र विख्यात ॥ सा० ॥ १ ॥ साजन सहु सुणजोरे, आगे जे होय
खं
11 00
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
Ken साण ॥ ए आंकणी ॥ तव हिजवर बोड्या वलीरे, सा सुणजो तापस चंग ॥ सा॥
शंका जय मेली करीरे, सा पुराण कथा कहो रंग ॥ सा॥२॥ मनोवेग चित्त हरखीयोरे, साबोल्यो तव मनोहार॥सावेद पुराण माने नहीरे,साण ते नर जाणो गमार ॥सा॥३॥मनोवेग तापस तणीरे, साण् वाणी पुराणनी अनंगसा॥अंग उपांगप्रसिद्ध मेरे, सावेद माने ते चंग॥सा॥४॥चिकित्सा वली वैद्यनीरे, सा ज्योतिष शास्त्र देश आदि॥सा॥सीधी आज्ञाए सहीरे, सा शास्त्र वचन अनादि ॥ सा ॥५॥ उक्तं च-पुराणमानवोधर्म-सांगोवेद चिकित्सितम् ॥
आशासिद्धानि चत्वारि, न हंतव्यानि हेतुनिः॥१॥ | सर्व वेद रीखीनी कहीरे, सा वाणी करे अप्रमाण ॥ सा ॥ ते ब्रह्म हत्यारो कह्योरे, सारा नवजव होये अजाण ॥ सा ॥६॥ उक्तं च-मंतव्यं व्यासवासिष्टं, वचनं वेदसंयुतम् ॥
अप्रमाणं तु यो ब्रूयात्, स नवेधर्मघातकः॥१॥ तव ते छिजवर बोलीयारे, सा कहो तापस ए सार ॥ सा ॥ कांश्क वचन मात्रथीरे, सा पाप न लागे लगार ॥ सा॥७॥ जेम श्रगनि उनो घणुरे, सा कहेतां न
-
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी ०
॥ na
बले अंग सार ॥ सा० ॥ तेम शास्त्र तणो दोष कदामतां, सा० कक्षेतां न पाप लगार ॥ सा० ॥ ८ ॥ तव वचन सुखीने एशुं रे, सा० जय तजी बोल्यो ऋषिदेव ॥ सा० ॥ हुं तो वेद पुराणनारे, सा० दोष सुणो कहुं खेव ॥ सा० ॥ ए ॥ एक नगर मांहीं रहेरे, सा० नारी दोय यति सार ॥ सा० ॥ एक जागी बीजी रथीरे, सा० जोवनजर मनोहार ॥ सा० ॥ १० ॥ बाल कुंवारी ते बेदुरें, सा० बेहु सूती सेहेज मोकार ॥ सा० ॥ ते बेहु नारी संजोगधीरे, सा० जायो सुत सुविचार ॥ सा० ॥ ११ ॥ नाम दीधुं तव तेहनोरे, सा० जागीरथी पुत्र चंग ॥ सा० ॥ ए तो जारत पुराणमांरे, सा० वखाप्यो मनने रंग ॥ सा० ॥ ॥ १२ ॥ जुर्ड नारीना जोगथीरे, सा० जायो पुत्र सुविचार ॥ सा० ॥ तो नारी नर संजोगधीरे, सा० हुं जनम्यो तेम सार ॥ सा० ॥ १३ ॥ अवर दृष्टांत वली कहुंरे, सा० सांजलो द्विजवर राज ॥ सा०॥ जेम संदेह मन जांजशेरे, सा० सरशे तमारां काज ॥ सा० ॥ १४ ॥ गंधारी एक नारीएरे, सा० धृतराष्ट्र करे ए काज ॥ सा० ॥ एवो निश्चय कीधो तिहारे, सा० सांजलो तुमे द्विजराज ॥ सा० ॥ १५ ॥ तव नारी गंधारी सहीरे, सा० रोमांचित दुइ जाम ॥ सा० ॥ तव नारी तो धरमें हुइरे, सा० माथे हुइ ते ताम ॥ सा० ॥ १६ ॥ चोथे दिवसे नारीएरे, सा० स्नान कर्यु तेणी वार ॥ सा० ॥ पढी वस्त्र विदुषी दतीरे, सा०
ཁྐྲ་
ון פה
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
फणस आलिंगन अपार ॥ सा ॥ १७ ॥ तेह काल समे पनीरे, साण मास गयो जव एक ॥ सा ॥ तेह नाथ परएयो तिहारे, साग धृतराष्ट्र धरतो विवेक ॥ सा ॥ १७॥ तव पुष्पवती नारी तणीरे, सा नवि ग मुखनी गंद ॥सा ॥ कंत जय थकी नारी
एरे, सा नर विष्णुनी धरी बांह ॥ सा ॥ १७ ॥ तेह वृत्तांत गर्ननोरे, सा० नाव | का कह्यो तेणी वार॥ सा०॥नर नारायणे करीरे, सा० मनशुं करीय विचार ॥ सा ॥॥
चोथा खंग तणी कहीरे, सा पांचमी ढाल ए सार ॥सा॥ रंगविजय तस शिष्यनेरे, | सा० नेमविजय जयकार ॥ सा ॥२२॥
उदा. ___ तव कुटुंब तेमावीया, अंधक विष्णु श्रादि सार ॥धृतराष्ट्र बेसामीने, कह्यो तेहने सुविचार ॥१॥तव सहुने संतोषीया, दिवस गया तेणी वार ॥ एक दिवस गंधारीए, फणस जायो उदार ॥२॥ ते तो फणस माहीथी, सुत नीकट्या शत एक ॥ ए तो नारते. नाखीयुं, तुम तणे शास्त्र विवेक ॥ ३॥ मुज माता ने तातने, संजोगे हुवो ढुं सार ॥ तो मुज माता पिता तणो, केम कीजे ते विचार ॥॥ तव वाडव बोव्यासहु, तुम तणां वचनो सत्य ॥ तमे तापस मुखा नली, नवि जाखो असत्य ॥५॥पण सांजलो एक वात-al
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मप
॥ ए ॥
में, बोल्यो खोटो जेम ॥ गर्न थकी केम सांजस्युं, खोटुं वयणज एम ॥ ६ ॥ एह वचन | केम मानीए, सांजलो तापस राय ॥ एह कथा अमने कहो, मन धरी बहु पसाय ॥ ७ ॥ ढाल सातमी. प्रीतमी न कीजेरे नारी परदेशीयारे -- ए देशी.
वचन सुणी तव मनोवेग बोली योरे, सांजलो वामव तुमे विचार ॥ गर्ज मांहींथी साद ते में सुण्योरे, वाद निवारुं ते निरधार ॥ सुणजो साजन जे कहुं वातकीरे ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ महाजारत मांहे वाणी जे कहीरे, ते नवि जाणो सुख अभंग ॥ एक मना थइ सुणजो सदु तमेरे, संदेह निवारण ए उत्तंग ॥ सु० ॥ २ ॥ जादव वंशे वसुदेव जाणी एरे, तेनी बेटी अमृत वाण ॥ रूप कला विक्रम विलासनीरे. सुना नाम गुणखाण ॥ सु० ॥३॥ विष्णु तणी ए जगनी जाणजोरे, अर्जुन वर कीधो जरतार ॥ गर्न धर्यो सुनद्रा नारीएरे, पूरा मास हुवा जव त्यार ॥ सु० ॥ ४ ॥ श्रसमाधि उपनी तव ते बालनेरे, कृष्ण कथा कहो नाइ विचार ॥ चक्रावो वर्णन करीने दाखव्योरे, सुभद्रा पामी निद्रा अपार ॥ सु० ॥ ५ ॥ प्रत्युत्तर नवि बोले को तिहारे, गर्ने हुंकारो दीधो ताम ॥ नारायण तव मन विस्मय पड्योरे, ए कोई पुरुष मोटो जाम ॥ सु० ॥ ६ ॥ गर्ज
ཁྐྲི་
॥ एठ
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
हुंकारो सुणी जेहवेरे, दामोदर चिंतवे तेह ॥कथा सुणीने हुंकारो दीयोरे, तेम तापस वचन सही एह ॥ सु० ॥७॥हिजवर कहे सहु साचुं कह्युरे, स्मृति पुराणे बोट्यु जेह ॥ वली अमने एक विस्मय उपन्योरे, बार वरस रह्यो गर्ने तेह ॥ सु० ॥ ॥ मनोवेग बोल्यो तव फरी वलीरे, ऋषि वचन न जाणो गमार ॥ मय नामा तापस एक रुयमोरे, वनमें रहे निरधार ॥ सु०॥ए॥ एक दिन रजनी सूतो ने तिहारे, स्वप्न | दीगे निझामां ताम ॥ नारी सरसो जोग मनशुं करेरे, वीर्य खलित हुवो श्राम ॥ सुण ॥१॥ते वीर्य संदर्यु हाथ मांहीं जदारे, मनशुं कीधोरे विचार ॥ रखे मुज वीर्य फोक जाये सहीरे, देखी हसशे नर नार ॥ सु०॥ ११॥ कोपीने वीर्यने वेश पत्र कमलनरे, बीहुँ वाली तेणी वार ॥ निरमल नदीना जल मांहीं तदारे, वेहेतुं मेट्यु निराधार ॥ सु० ॥ १२॥ देडकीए ते खाधुं पांदमुरे, गर्भ रह्यो उदर मांहीं ॥ तव तेहने रुतुनो समो हतोरे, उर्दरीने पेट रह्यं त्यांहीं ॥ सु० ॥ १३ ॥ स्त्रीनां लक्षण प्रगट्यां अंगमेंरे, मास दिवस गया अपार ॥ जनम हुवो शुन्न लगने करीरे, उंच ग्रह उपन्या डे फार ॥ सु० ॥ १४ ॥ बेटीनुं नाम दी, मंदोदरीरे, रूप सोजागी अनिराम ॥ माताने रूप जोवाथी होंश घणीरे, बोलावे लेश नाम ॥ सु ॥ १५ ॥
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी ॥ १॥
एहवं रूप केनुं नवि होयरे, एहने बेगं माणस जोय ॥ कीधो विचार तेणे एम चिंत: खंग वीरे, प्रौढ कमलदले मेली सोय ॥ सु० ॥ १६ ॥ स्नान करेवा नित्य जाये वहीरे, नदीए थावे मय शषि सार ॥ कमल उपर दीठी ते कुमारिकारे, तापस चिंतवे मन मोकार ॥ सु० ॥ १७ ॥ मुज वीर्य थकी उपनी ए बालिकारे, ते कारण मुज वाधे नेह ॥ मादरी पुत्री हो संसारमारे, रूप लक्षणे दीसे एह ॥ सु० ॥१॥ नाम थाप्यु। बेटीनुं मंदोदरीरे, लश्श्राव्यो निज स्थानक ताम ॥ जोजन करीने जमाडे बालिकारे, जोवनवंती हो जाम ॥ सु० ॥ १७ ॥ चोथा खंड तणी बही ढालमांरे, रंगविजय कवि सार ॥ श्रोता सांजलजो सहु एक मनारे, नेमविजय जयकार॥सु ॥२०॥
उहा. | एक दिन ऋतुवंती हुश्, कोपीन तापसनी सार ॥ वीर्य तणी खरडी अजे, पेहेरी पुत्रीए तेणी वार ॥१॥ ते कोपीन परवेशथी, गर्न रह्यो तिहां मांहीं ॥ दिन दिन वाधे अनुक्रमे, कुमरीने मुख बांहीं ॥२॥ तापस जाणे चित्तमें, मुज वीर्य निरभार॥ गर्न धर्यो ए कुमरीए, होशे कोश्क अवतार ॥ ३ ॥ जो श्रवर शषि कोइ जाणशे, तो हसशे निश दिश ॥ लाज शरम जाशे खरी, इये मुख बोलीश जीह ॥ ४॥
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
एहवी करी विचारणा, गर्जने राखुं गोप ॥ खीलुं मंत्र मंत्रे करी, कोइ नवि जाणे लोप ॥ ५ ॥ कमंडल लेइ दाथमां, जल बांटे जणे मंत्र ॥ जिहां लगे वर पामे नहीं, गर्भ रहेजो मांहीं जंत्र ॥ ६ ॥ बेटी बोले बापने, गर्न खीव्यो महा पाप ॥ तव मय तापस बोलीयो, जवितव्यताने प्रताप ॥ ७ ॥ राक्षस कुले लंकापति, विश्ववसु तात कैकै माय ॥ रावण परण्यो मंदोदरी, बार वरसनी अवधे थाय ॥ ८ ॥ रावणने पहेलो जाणजो, सात सहस गयां वर्ष ॥ रावणने पुत्र ए कह्यो, उपन्यो पाम्या हर्ष ॥ ए ॥ सात सहस वर्ष गये हुते, इंद्रजित नाम कुमार ॥ बार वरस हुं रह्यो गर्नमें, तो शुं करो विचार ॥ १० ॥ सांजलीने द्विज बोलीया, सत्य वचन तुम सार ॥ जात मात्र थका तुमे, वेष लीधो निरधार ॥ ११ ॥ जे नारीए जनमीयो, फरी परणी ते नार ॥ तुम जनम थया पढी, केम परणी बीजी वार ॥ १२ ॥ दोय संदेह एवा अवे, तेह निवारो आज ॥ जेम मत निश्चय श्रम तथा, सरे सहुनां काज ॥ १३ ॥
ढाल सातमी.
अमली लाल रंगावो वरनां मोलीयां-ए देशी.
मनोवेग कहे जा सांजलो, सूत्रकंठ तुमे बो सुजापरे ॥ चांति जाजे जेम
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
11 12 11
सघली मन तणी, तेम बोलुं हुं हवे वाणरे || स्मृति पुराण वेदमां जुटे ॥ ए की ॥ १ ॥ मोटो पारासर रिषिमां कह्यो, एक दिवस कीधो विहाररे ॥ गंगा नदी उपकंठे रही तिहां, नाव खेडे कन्या एक साररे ॥ स्मृ ॥२॥ महगंधा नाम बे तेहनो, कुरूप जागणी देहरे ॥ गंधाय शरीर जोजन लगे, वीजुं नाम धर्यु वली तेहरे ॥ स्मृ ॥ ॥ ३ ॥ दीठी एकली कन्या पारासरे, नावे बेठो जोइ तस रूपरे ॥ जाग्यो मनोजव तव स्तन देखीने, विकल थयुं तव स्वरूपरे ॥ स्मृ ॥ ४ ॥ रुषि कहे मशुं कृपा करो, दान देउ कायानी सारीरे ॥ सुपो तपसी तव जणे कामनी, मुज तनु दुर्गंध धारीरे ॥ स्मृ० ॥ ५ ॥ जुखाले लोक देखे सहु, घटतुं केम कीजे काजरे ॥ देह कीधो सुगंध हाथ फेरीने, धुंयर केरी लोपी लाजरे ॥ स्मृ० ॥ ६ ॥ जोग विलास करतां अनुक्रमे, जनम हुई वेद व्यासरे ॥ मुब कुंबने कमंगल धर्यो हाथमें, वेद | पुराण मुख बोले जासरे ॥ स्मृ० ॥ ७ ॥ कोटे जनोइ कर जपमालिका, मृगचर्म दंड उत्तंगरे ॥ कर जोकी लाग्यो तापस रूपे, मात तात पाय मन रंगरे ॥ स्मृ ॥ ८ ॥ श्रादेश पारासुरनो लही, तप मांड्यो गंगाने तीररे ॥ वेद व्यास मोटो रुषीश्वर अबे, ध्यान धरे महावंत धीररे ॥ स्मृ० ॥ ए ॥ वनमां शिख देश कृषि गयो, एकली
खंभ
॥ ए
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
रही बाला जामरे ॥ सांत राजा क्रीडा करवा श्रावीयो, दीजी जोजनगंधा तामरे । स्मृ॥ १० ॥ सुगंध शरीर देखी रंजीयो, विवाह विधे परणी तेहरे ॥ जेम कन्याए वेद व्यास जार्ज, तास सरूप शुज देहरे ॥ स्मृ ॥ ११॥ ततकाल जण्यो तापस जेम हुवो, तेम मुजने हिज जाणोरे ॥ जेम परणी जोजनगंधा वली, तेम मुज जननी वखाणोरे ॥ स्मृ० ॥ १५ ॥ वलता विप्र फरी एम उचरे, सुणो तापस | तुमे गे सुजाणरे ॥ सत्य वचन तुमे जे श्रमने कह्यां, ते सहु वेद पुराणरे । ॥ स्मृ०॥ २३ ॥ वली विप्र सांजलो वारता, मनोवेग कहे अवर विचाररे ॥ अंधकवृष्टि जादव रायनो, हरिवंशी नर सेवे पायरे ॥ स्मृ ॥ १४ ॥ कुंती नामे तेहनी कुमारिका, रूप सोजागी अनिरामरे ॥ घर बिछे किरण सूरज तणां, पेगं कुंता काने तामरे ॥ स्मृ ॥ १५ ॥ गर्न धर्यो तव ते सूरज तणो, काने करण ते बेटो जायोरे॥ पडे पांकु राजाने परणावीने, अदत जोनि तणे उमायोरे ॥स्मृ०॥१६॥ करण तणी माता कन्या कही, तो मुज जननीमां शी खोडरे ॥ जेम करण हुवो तेम हुं हुवो, वली सांजलो बे कर जोमरे ॥ स्मृ ॥ १७ ॥ चोथा खंग तणी ढाल सातमी, कही विशेष करी विगतारे॥रंगविजयनो शिष्य एम कहे, सांजलजो सहु चित्त लारे॥स्मृ॥॥१७॥
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मप
॥ ए३॥
डुदा.
ताप, तप जप करे उदार ॥ क्लेश करावे क्रोधथी, तेणे वीहे नर | नार ॥ १ ॥ एक दिवस सूतो थको, स्वप्नमां जोगवे काम || वीर्य खलित हुवो तदा, मनशुं विचारे ताम ॥ २ ॥ वीर्य मूकवाने कारणे, गंगा गयो ततखेव ॥ कमलमां वीर्य मूकीने, स्नान कर्यु तेणे देव ॥ ३ ॥ रघुराजानी पुत्रिका, चंद्रमती नाम विवेक ॥ गंगा नदीए कीलवा, श्रोषी एकाएक ॥ ४ ॥ पुष्पवती ते बालिका, कमलशुं कीधी याल ॥ पदम ल नाके धर्यु, गर्भ रह्यो तेणे काल ॥ ५ ॥
ढाल आमी. वाघाना जावनीरे -- ए देशी.
सगर्जा बेटी दीठी मात, सांजल बेटीना तात ॥ ससनेही सुंदर ॥ अनाचार पुत्री ए कीधो, गर्न पारको लीधोड़े ॥स०॥ साजन सहुको सांजलो ॥ एांकणी ॥१॥ रघु राजाए लाज धरी मनमां, बेटी मूकी वन मांदे ॥ स० ॥ वाघ सिंहना शब्द घणा याये, दुःखे करीने जरायेदे ॥स०॥ सा०॥२॥ ते वन मांड़े तापस वास, वांडु तापस मोटो आसहे ॥ स०॥ बहु करे जतन तापस तेहनो, नारीने मन एहनोहे ॥ स०॥ सा० ॥३॥ नागकुमर तेपीए
खंग
॥ श्
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
जएयो सार, रूपे जाणे नागकुमारहे ॥ स० ॥ तव चंद्रमती एम कहे माय, पुत्र तुं तात | जोवाने जायदे ॥ स० ॥ सा० ॥ ४ ॥ मजूस मांहे सुत घाट्यो जाम, गंगा प्रवाहे मेल्यो तामहे ॥ स० ॥ प्रवाह मांदे मजूस ते चाली, उदायिने दीठी काली हे ॥ स० ॥ सा० ॥ ५ ॥ श्राणी ठाम उघामी जाम, पिताए पुत्र दीठो निरामहे ॥ स० ॥ सुत देखी उपन्यो बहु नेह, चंद्रमती श्रावी तव गेहरे ॥ स०॥ सा० ॥६॥ कुंवरी कन्या कडे बे सार, उदायिन तुं मुज जरतारहे ॥ स० ॥ विवाह करी तुमे परणो थाज, जेम सरे बेहुनां काजदे ॥ स० ॥ सा० ॥ ७ ॥ उदायिन तव बोल्यो जति, ए वात श्रमने नहीं घटती हे ॥ स० ॥ तुज पिता परणावे सोय, ते तारो जरतारज होय ॥ स० ॥ सा० ॥ ८ ॥ तापसे जइ माग्यो रघु राय, बेटी श्रमने करो पसायदे ॥ स० ॥ नहींतो श्रापीने नस्मज करूं, के तुज मारुं के हुं मरुंदे ॥ स० ॥ सा० ॥ ए ॥ राजा कहे बेटीने वरो, उदायिन तमे कोप परिहरो || स० ॥ तापस तव जमा कर्यो, चंद्रमतीने वेगे वयो॑हे ॥ स०॥ सा० | ॥ १० ॥ वेद पुराणे बोल्यो एम, चंद्रमती परणी ते केमहे ॥ स० ॥ पुत्र जणे कन्या जे होय, पढी विवाह करो ते जोयदे ॥ स० ॥ सा० ॥ ११ ॥ जेम चंद्रमती कन्या कही सार, तेम मुज मातानो कशो विचारहे ॥ स० ॥ सूत्रकंठ कहे साची वात, तुमे कयुं
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी ते जग विख्यातहे ॥ स ॥ सा ॥१२॥मनोवेग बोल्यो गुणनाज, पवनवेग संबोधन में खन
aकाजहे ॥ स० ॥ वेद पुराण कथा कही सारी, तुम पागल कही विस्तारीहे ॥ स० ॥
सा ॥ १३ ॥ पुत्र जणी कन्या विवाह, स्त्री संजोगे उपजे गर्न उदारहे ॥ स ॥ फणस
थालिंगन नारी सार, शत बेटानो हुवो अवतारहे ॥ स ॥ सा ॥ १४ ॥ सुजमानो Kगर्न सांजली शब्द, नारायण हुंकारो लब्धहे ॥ स ॥ देमकीए जणी मंदोदरी नार,
गर्न रह्या पितानो सारहे ॥ स० ॥ सा ॥ १५ ॥ सात सहस्र थयां ने वर्ष, पुत्र इंजजित रावण हर्ष ॥ स ॥ पारासुर जोगवतां नार, वेद व्यास सुत उपन्यो सारहे ॥ स॥ सा ॥ १६ ॥ काने कर्ण जएयो दातार, कमल सुगंधना गर्न अपारहे ॥ स॥ पूर्वापर ने विरोध अपार, तुम पुराण साचां न लगारहे ॥ स ॥ सा०॥ १७ ॥ बोलतां बहु लागे खेद, तुम पुराण नहीं साचां वेदहे ॥ स० ॥ सुधर्म श्राराधो जो वली तमे, जिन नाष्यु ते कहीए अमेहे ॥ स ॥ सा ॥१७॥ चोथा खमनी पाठमी ढाल, कहे ए|
आगल वात रसालदे ॥ स० ॥ रंगविजयनो शिष्य एम जंपे, नेमविजय एम पयंपेहे ॥ स ॥ सा ॥ १७ ॥
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे श्राज ॥ स्मृति वेद पुराणनां, वयण विपरीत अकाज ॥१॥ उपवन श्रापण जर करी, कहेशं तुमने सार ॥ जिनशासन मत दाखवू, सुणजो सार विचार ॥२॥ पूर्व वनमां तव गया, रह्या अपूरव गम ॥ कर्ण |कथा पांमव तणी, मनोवेग कहे ताम ॥३॥
ढाल नवमी.
धण समरथ पीयु नानडो-ए देशी. मित्र वचन मुज सांजलो, होजी पवनवेग गुणधार ॥ कुरुजांगल देशज जलो, होजी हस्तीनागपुर सार ॥ साजन सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ कुरु वंशी राजा हुवो, होजी सोमप्रन श्रेयांस ॥ तेह परंपरा उपन्या, होजी नृपति | |घणा अवतंस ॥ सा ॥२॥सांतनु सुत सोहामणो, होजी व्यास नाम गुणवंत ॥ रूपणी नामा जामनी, होजी पुत्र त्रण हुवा संत ॥ सा ॥ ३ ॥ धृतराष्ट्र पहेलो जलो, होजी पांसु बीजो जेह ॥ त्रीजो विउर मनोहरु, होजी करे राज्य सहु तेह ॥ सा ॥४॥ पांमु कुंवर चिंता जर्यो, होजी गयो वन अनिराम ॥ कुसुम
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरीसज्या दीगी जली, होजी मुफिका पड़ी तेणे गम ॥ सा ॥ ५॥ अपूरव देखी
मन उलस्यो, होजी कर कीधी तेणी वार ॥ विद्याधर तव श्रावीयो, होजी चित्रांगद ॥ ५॥
कुमार ॥ सा ॥ ६ ॥ फुलशयन जो घणुं, होजी गम गम अनेक ॥ पांमु दीगे | रलियामणो, होजी पूढे करीय विवेक ॥ सा॥ ॥ मुज कर मुखिका रुयडी, होजी Kापमी एहीज गम ॥ कामरूपी कर मुषमी, होजी जो बुं श्रनिराम ॥ सा ॥ Guy
हाथ ले आगल धरी, होजी पांसु नृप कहे तेह ॥ मुखिका ली खग तुम तणी, होजी चित्रांगद हुवो नेद ॥ सा ॥ ए॥ कृश शरीर दीसे तुम तणुं, होजी मित्र | कहोने विचार ॥ पांमुजणे वचन सुणो, होजी विद्याधर तुमे सार ॥ सा० ॥ १० ॥y सुरीपुर राजा रुयमो, होजी अंधकवृष्टि नाम ॥ तस पुत्री रूपे जली, होजी कुंती | गुणग्राम ॥ सा० ॥ ११॥ विवाह पहेलो गुज मेलीयो, होजी पडे जाण्यो रोग ॥
अंधकवृष्टिए अनादों, होजी नोग कीधो विजोग ॥ सा ॥ १२॥ विरहानल व्याप्पो भाषणो, होजी चिंतातुर अतीव ॥ मित्र माटे में तुज कह्यो, होजी संदेह पड्यो जीव॥||
सा ॥ १३ ॥ चित्रांगद खग बोलीयो, होजी सांजली जाई वात ॥ कामरूपी मुज मुजमी, होजी रूप करेरे विख्यात ॥ सा ॥ १४ ॥ श्रदृष्टि करण होये करी, होजी
एय
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाजो वली तुमे सार ॥ रूपवंत थइ विलसजो, दोजी कुंतीशुं घरबार ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ नवमी ढाल चोथा खंमनी, होजी सांजलो बाल गोपाल ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, होजी नेमने मंगल माल ॥ सा० ॥ १६ ॥
डुदा.
मुद्री लीधी रुडी, चाल्यो सुरीपुर वास ॥ अदृश्य रूप लेइ करी, गयो कुंती आवास ॥ १ ॥ काम कुतूहल करी रमे, कुंतीशुं करे वात ॥ रात्रि दिवस एम जोगवे, गया वासर सात ॥ २ ॥ पांशु कुमर निज घर गयो, गर्ज धर्यो कुंती कुमार ॥ सुना जननीए जाणीयो, प्रगट गर्न श्राकार ॥ ३ ॥ गुप्तपणे घरमां रही, पुत्र जयो विख्यात ॥ कुटुंब बेसी विचारीयुं, वाधशे अपक्षपात ॥ ४ ॥ मंजूस मांहीं घाली करी, मूक्यो जमुना मांहीं ॥ चंपापुरी गइ पाधरी, श्रादित्य राजा वे त्यांहीं ॥ ५ ॥
ढाल दशमी.
काली पीली वाली राज, वरसण लाग्यो मेह, साही बोरे, मारो कबहीक घर वे हो रंग लाय—ए देशी. निज मंदिर श्री करी राज, मजूस उधामी जाम || बालक दीठो रुपको राज,
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्म प०
॥ ए६ ॥
संतोष थयो वली ताम ॥ मारा साजन || सुणजो एक मना थइ, वात चित्त लाय ॥ ए की ॥ १ ॥ उत्तम लक्षण एह तषां राज, कर दोय कीधा कान ॥ गात्र पवित्र देखी करीरे राज, करण धर्यु श्रनिधान || मा० ॥ २ ॥ पुत्रीयो राजा रवि राज, रतनादे राणी तास ॥ तेहने दस्ते समरपीयो राज, दुवो ते सुख निवास ॥ मा० ॥ ३ ॥ पांसु पुत्र पावन जलोरे राज, करण ते महा राय ॥ काने सुत ते केम जण्यो राज, धातु रहित रवि राय ॥ मा० ॥ ४ ॥ अंधकवृष्टिए तेमी करी राज, पांडु कीधो विवाद || कुंती मुंडी परणावीया राज, कीधो अति उच्छाद ॥ मा० ॥ ५ ॥ अंधकवृष्टि जाइ जलो राज, नरपति विष्टि नाम ॥ गंधारी पुत्री रुयमी राज, धृतराष्ट्र परणी ताम ॥ मा० ॥ ६ ॥ पांऊ कुंतीए पुत्र जया राज, युधिष्टर जीम ने पार्थ ॥ मुंडीए बे जनमीया राज, नकुल सहदेव सार्थ ॥ मा० ॥ ७ ॥ धृतराष्ट्र राजा थकी | राज, गंधारी अभिराम ॥ शत पुत्र कुखे उपन्या राज, दुर्योधनादिक नाम ॥ मा० ॥ ॥ ८ ॥ पांव करण उत्पत्ति कही राज, कौरवनी वात एह ॥ जरासंध चक्री जलो राज, उत्तम नर बे तेह ॥ मा० ॥ ए ॥ घट मान तुमे परिहरो राज, रवि सुत नोहे करण ॥ युधिष्टर नोहे जम तणो राज, उत्तम नर ए वरण ॥ मा० ॥ १० ॥
खंग
॥ ए६
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
वायु पुत्र नोहे जीमडो राज, नोहे शक्रनो अर्जुन ॥ श्रश्वनीकुमारथी नहीं उपन्या राज, सहदेव नकुल बे धन ॥ मा० ॥ ११ ॥ अर्जुन नारी रुयमी राज, सती डुपदी जे सार ॥ मिथ्या वचन नवि मानीए राज, जे खोटां वे सार ॥ मा० ॥ १२॥ मय विद्याधर महीपति राज, मदनसुंदरी नार ॥ तस बेटी मंदोदरी राज, सती शिरो| मणि सार ॥ मा० ॥ १३ ॥ रावण रंगे परणी राज, मंदोदरी शुन नार ॥ इंद्रजित सुत उपन्यो राज, मोक्षगामी जवतार ॥ मा० ॥ १४ ॥ दशमी ढाल चोथा खंगनी राज, सांजलजो नरं नार ॥ रंग विजय शिष्य एम कहे राज, नेमने जयजयकार ॥ मा० ॥ १२५ ॥
उदा.
मिथ्या वचन न मानीए, पवनवेग खगेश ॥ व्यासे महाजारत रच्यो, सत्य तो नहीं लेश ॥ १ ॥
ढाल गीयारमी.
नदी जमुनाके तीर उमे दोय पंखीया - ए देशी. सांगलो जाइ वात जे वेद पुराणनी, व्यासे रच्यो ग्रंथ लाख ॥ सचाइ चुरणनी से न विचार्य, एम मूरख सहु लोकमां ॥ महाभारतनी वात करशे सहु फोकमां ॥ १ ॥
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मप
॥ ए ॥
किंवा सत्य करशे एह किंवा नहीं करे, ए वातनो संदेह ते मनमां श्रति धरे । पुस्तक | लेइने चाल्यो व्यास जात्रा जणी, गंगा श्राव्यो शुभ गात्र करवा हुंश घणी ॥ २ ॥ ताम्र तणुं एक जाजन जलुं बे माहरूं, रखे तस्कर लेइ जाय इहांथी परुं ॥ वेलुनो कीधो पुंज गंगा तटमां जर, ते मांही घाट्यो जाजन शंका मननी गइ ॥ ३ ॥ गंगा नदी मांही व्यास पेठो यावी वही, हरि हरि करी मुख जंपे उबाले जल रही ॥ जात्रा करण बहु लोक मली सदु श्रावीया, व्यासे की धो वेलु थोक देखी मन जावीया ॥ ॥ ४ ॥ कोई कहे एवं लिंग होये ईश्वर तणुं हुं पण थापुं एवं करीने प्रतिपणुं ॥ जे श्राव्या इता लोक तेणे पुंज थापीया, वेलु तथा हुवा गंज अन्योन्य व्यापीया ॥ ॥५॥ स्नान तर्पण करी व्यास नीकल्यो उतावलो, ताम्र जाजनना पुंज देखी थयो जांजलो ॥ पोता तणो कीधो पुंज ते नवि उलख्यो, सरखा सरखं रूप देखी मनमां धख्यो ॥ ६ ॥ जो जांजुं सवि पुंज तो अपजश सदु करे, ईश्वर देवना लिंग तणो रूप केम फिरे ॥ ताम्रतपुं मुज जाजन जार्ज तो जार्ज परुं, अपजश बोले लोक तेहथी हुं मरुं ॥ ७ ॥ तेम माद्री कथा फोक ते केम होये वली, जेम एक ढगली देखी कर्या सहुए मली ॥ एक करे तेम सर्व करे लोक एणी परे, परमारथनी बुद्ध कोश मन नहीं
॥ ए
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
घरे ॥ ८ ॥ मूरख लोक मल्या बे ए सहु खारथी, ताम्र जाजन खोयुं ताम एणी परे हारथी || महाभारतनी वात विस्तारे थायशे, साधुं खोटुं परीक्षा करीने जायशे ॥ ए ॥ श्लोक - गतानुगतिको लोको, न लोकः परमार्थिकः ॥ पश्य लोकस्य मूर्खत्वं, हारितं ताम्रजाजनम् ॥ १ ॥
पवनवेग सुणो मित्र विचार जे एटला, मिथ्या वचन विचार करूं लकु केटला ॥ जिनशासननो धर्म साकर सम जाणीए, खाइए जे वारे तेह मीठो परमाणीए ॥१०॥ श्राव करमना वारक देवता ते खरा, तरण तारण गुरु नाम कहीए जे नरा ॥ केवली जाषित धर्म कहीए ते खरो, अवर मिथ्या जर्म तेहने कां वरो ॥ ११ ॥ सूत्र सिद्धांत ने शास्त्र जाख्यां जे जिन तणां, तेहमां विनय विवेक गहन अर्थ बे घणा ॥ जिनवाणीनी वात साची करी मानीए, तो सरशे तुम काज शिवसुखने जाणीए ॥ ॥ १२ ॥ सांजली पवनवेग कहे पावन थया, द्विज सघला मली ताम कहे संदेह गया ॥ जगमां जोतां जेने धरमनो श्रधार बे, मूला जे नवि लोक तेहने ए पार बे ॥ १३ ॥ दे जाइ तुम वात हश्ये मारे वसी, पाम्यो शुद्ध आचार फिकर नहीं कसी ॥ मनो| वेग तुमे जाइ साचा तो सही, एटला दिवस गम मुजने रही नहीं ॥ १४ ॥ ब्राह्मण
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ए ॥
बोले तव वाणी मनोवेग सांजलो, धर्म परीक्षा कीध नथी कांइ श्रमलो ॥ पूरण चोथो खंग ढाल अग्यारमी, श्रोता सुधड होये तो दिल तेहने रमी ॥ १५ ॥ ही रविजय सूरिराय तपगछनो धणी, अकबर शाह प्रतिबोधित अमार पमावी घणी ॥ शुभविजय तस शिष्य नाव विजय कवि, सिद्धिविजय तस शिष्य वात हुइ तेवी ॥ १६ ॥ रूपविजय रंग लाय कृष्ण विजय कहुं, रंगविजयने नित्य हुं प्रणिपति वहुं ॥ नेमविजय कहे एम ढाल ग्यारमी, पूरण चोथो खंक कर्यो ते सहुने गमी ॥ १७ ॥ इति धर्मपरीक्षा से मिथ्यातपुराणडूषणे मिथ्यामतध्वंसनो नामा चतुर्थोऽधिकारः
खंभ
॥ ए
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग ५ मो.
डुदा.
पवनवेग जाइ सांजलो, मनोवेग कहे सार ॥ अवर पुराण वली दाखवुं, जेम लहो विवेक विचार ॥ १ ॥ शुद्ध जिन धर्म कीजीए, नहीं विरुद्ध लगार ॥ मिथ्या मारग परिहरो, जेम तरो संसार ॥ २ ॥ बोध रूप बेहु जणे धर्यां, पहेर्यां रक्त सुवस्त्र ॥ शिर मुंगा जोली बांही बे, कर दंग धरीने शस्त्र ॥ ३ ॥ पाटलीपुर प्रवेश करी, वादशालाए गया चंग ॥ नेर घंटारव तव कीयो, बेठा सिंहासन रंग ॥ ४ ॥ नाद सुणी विप्र यवीया, देखी बोल्या ताम ॥ खट् दर्शन विवाद करो, उंचा बेठा श्रम ठाम ॥ ५ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, विप्र तमो बो सुजाण ॥ वाद शास्त्र जाएं नहीं, अमे खरे तुं अजाण ॥ ६ ॥ विप्र कहे मूरख सुणो, केम कर्यो घंटानाद ॥ केम सिंहासन चांपीयुं, जो नहीं जण्या विवाद ॥ ७ ॥ कुण गाम गमथी आवीया, कुप दीक्षा धरी अंग ॥ कपट तजी साधुं कहो, नहींतो लदेशो जंग ॥ ८ ॥ बोध रूपे मनोवेग वदे, सुणो जट्ट जाइ सार ॥ साधुं कहेतां मे एकला, कुटाइए निराधार ॥ ए ॥ तुम
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
'धर्मपरी०
॥ एए॥
सजा मांही को नरवर, विधन संतोषी होय ॥ तो तुम श्रागल केम कहुं, श्रम ती वातो सोय ॥ १० ॥ तव ते द्विजवर बोलीया, विधन संतोषी नर केह ॥ प्रथम कथा कहो ते तणी, जय नहीं धरशो देह ॥ ११ ॥
ढाल पढेली.
नगर रतनपुर जाणीए, ते सुरनिधि समो वखाणीए, आणीए अवर उपम कहो कोणती ए--ए देशी.
मनोवेग कहे ब्राह्मण सुणो, श्रहीर देश रायपुर ते गणो, नरपति राजा राज्य पाले जलों ए ॥ राजाए सेवक थापीयो, लुब्धदत्त नामे ते पापीयो, दया दान रहित डुष्ट ते प्राणीयो ए ॥ १ ॥ परधन देखी द्वेषज धरे, कुरु कपट मनमां धरे, दंगावे राय कने उपाय करी ए || खोटां घाल चडावे बहु, लोक संताप्या तेणे सदु, धण कण स्त्र विभूषित टालीयां ए ॥ २ ॥ नगर लोक घणुं दुःख वदे, गाम कुटन तेनुं नाम कहे, लुब्धदत्तने पर पीडया विना संतोष नहीं ए ॥ तिहां कणबी एक वसे जलो, तुंगनऊ नाम धण कण नीलो, दान पुण्ये लोक मांही महिमा अति घणो ए ॥ ३ ॥ तुंगन उपर कोप करे, दंगावना लुब्धदत्त पुंठे फरे, कणबीए धन बहोलुं
खंग !
॥ एए
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
| तेहने दीयुं ए ॥ जव मन जाणे तेह तणुं, तव लांच पे ते धन घणुं, एणी परे बुद्धि बले काम निगमे ए ॥ ४ ॥ लुब्धनी देहे उपन्यो, पाप प्रजावे रोग उपन्यो, औषध अनेक कर्यां तोही नवि टले ए ॥ भूमि घाल्यो लुब्धदत्त जेहवे, श्रायुकर्म तु दतुं तेहवे, श्रारतध्यान पाम्यो ते तरफडे ए ॥ ५ ॥ पुत्र कड़े पिताजी सांजलो, चिंतातुर कांइ टलवलो, दान पुण्य जे कहो ते कीजीए ए ॥ वृद्ध पापी ते कहे ताम, धर्म दान नहीं मुज काम, पुत्र तमे सांजलजो जे हुं कहुं ए ॥ ६ ॥ नेम जांग्यो एक मुज तणो, कार्य करो तुमे प्रति घणो, तो वली प्राण जाये सुख माहरो ए ॥ सकल लोक दंगावीया, तुंगनऊ दंग नहीं फावीया, लांच थापीने एणे हुं वारीयो ए ॥ ७ ॥ बाजे काज एहनो सिद्धो, राजदंग शिरमें नवि कीधो, गो महिषी धण कप एहने बे बहु ए ॥ माहरी बुद्धि इश्डे धरो, बकनी वात रखे कंए करो, रोर्ड तो आप देउं बुं मुज तणी ए ॥ ८ ॥ प्राण गया पठी मुज वली, वस्त्र शृंगार पहेरावो वली, पाबली रात्रि मुज लेइ उजो राखजो ए ॥ तुंगनऊ खेत्र सेढे रही, मुज इस्ते काढी ग्रही, गाय भैंस घाली तुमे उलवी रहो ए ॥ ए ॥ कणबी श्रावी मुज लकथमशे, जीव रहित अंग जूमि परुशे, बूम पानी तुमे लोक बहु मेलजो ए ॥ मुज तातनो की धो
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरीघात
॥१०॥
घात, हत्यारो ए लोक सुणो वात, पोकारी राजा कने दंगावजो ए॥ १० ॥मुज हस्ते तुमे बोल देठ, शिख सघली पाली खेड, तव पुत्र बोल दीधो पिता करे ए ॥ प्राण गया बुब्धदत्तना, नरक हारे पहोंच्या तर्तना, शिख सहु करी पुत्रे तुंगना दंडावीयो ए ॥ ११॥ पर विधन संतोषीयो, नर होये जो एहवो राशीयो, तो केम विप्र सनामां बोलीए ए ॥ वाडव कहे तुमे सांजलो, श्रममा एडवो मा बोलो, साचा ते वचन बोलो तुमे श्रापणां ए ॥ ११ ॥ पांचमा खंड तणी कही, ढाल पहेली ए सही, श्रोता सांजलजो तुमे सहु मली ए ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय ते सहहे, निरवहे साचो नर संसारमा ए ॥ १३ ॥
उदा.
| ॥१००
खगपति कहे द्विजवर सुणो, पूरव दिशि सुखखाण ॥ विक्रमपुर सोहामj, चतुर नर नारी वखाण ॥१॥ तात मात मुज तिहां वसे, बोध जक्ति करे तेह ॥ बोध पासे श्रम मूकीया, लेवा विद्यानो बेद ॥२॥ नणुं गणुं शास्त्रज घणां, गुरुनां करूं बहु काम ॥ एक वार गुरु बुगा, नदीए धो सुकाव्यां ताम ॥३॥
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल बीजी.
जो हो, गढरा नायक, विनति श्रवधारी गुजर पधारजोजी–ए देशी.
मार
पाणी बाहिर जली भूमि हो, गुण नायक, सुकवीए रतांबर मे बेदु जणाजी ॥ शियाल बे श्राव्यां ताम हो, गु० जय उपन्या श्रमने श्रति घणाजी ॥ १ ॥ रातां युगमां लेइ दोय हो, गु० जाइ श्रमे दोय नाठा उतावला ॥ पुंठे धायां ते शियाल हो, गु० तव गिरि उपर चड्या मे बलाजी ॥ २ ॥ बूम पाडी मे बेहु जाय हो, गु० धाठे लोक अम रक्षा करोजी ॥ मुंगर उचेली ताम हो, गु० श्रम बेदु सहित श्राकाशे धरोजी ॥ ३ ॥ ले गया शियाल हो, गु० जोजन बार विक्रमपुर थकीजी ॥ मूकी वन मोकार हो, गु० जक्षण लाग्यां शियाल वे बकीजी ॥ ४ ॥ बेदु जंबुक मली जाम हो, गु० श्रमने खाशे कुधा वश पड्याजी ॥ पारधी श्राव्या ताम हो, गु० श्वान सहित पापे नड्याजी ॥ ५ ॥ श्वान जयथी तेइ हो, गु० नावगं बेदु ते शियालीयांजी ॥ डुंगरथी उतर्यां बेद हो, गु० पारधी पुंठे चालीयाजी ॥ ६ ॥ जयजीत यया श्रमे बेह हो, गु० भूमि जोइ तव श्रति घणीजी ॥
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
धम
संबल रहित अपार हो, गु० वार नहीं वली केह तणीजी ॥ ७ ॥ वली विचायुका
एम हो, गु० बोध धर्म श्रम तणोजी ॥ श्ए दीदा बेह हो, गुण रक्त ॥११॥
वस्त्र ने गुरु गुणाजी ॥७॥ बेहु लाइ चिंतवी एम हो, गुण मस्तक मुंगाव्यां बेहु । जणाजी ॥ रातां वस्त्र पहेरेय हो, गु० बौध धर्म मुखे लण्योजी ॥ ए॥ काठी कर धरेव हो, गुण घर घर निदा बेहु नमुंजी ॥ पात्र पडे ते देय हो, गु० सात सात घमी मांहे जमुंजी ॥१॥ जमतां देश विदेश हो, गु० तुम नगरे थावीयाजी ॥ तव बोल्या द्विजराज हो, गुण असत्य वचन तुमे लावीयाजी ॥ ११ ॥ जे सह खोटुं संसार हो, गु० तोली करी तुने घड्याजी ॥ तव बोल्यो मनोवेग हो, गुण ए सहु तुम पुराणे जड्याजी ॥ १२ ॥ सांजलजो हिजराज हो, गुण देखाडं जेजे || जिहां कह्युजी ॥ रामायण पुराण हो, गुण वाल्मिके जाख्युं ते लपुंजी ॥ १३ ॥ एक वार श्रीराम हो, गु० सीताशुं वनवासे गयाजी ॥ खरदूषण मारी जाम हो, गु० लक्ष्मण सहु वन मांही रह्याजी ॥ १४ ॥ सुर्पनखा गश् ताम हो, गुण ॥१०१
रावण राजा उपाजी ॥ सीता लेवाने काज हो, गु० धसमस्यो रावण धाश्योजी | KOn २५ ॥ सीता बेश गयो तेह हो, गुण मोहथी राम कुःखीयो हुवोजी ॥ एहवे ||
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
वानर राज हो, गुण् सुग्रीवनो विचार नुयोजी ॥ १६ ॥ सुग्रीव तणी जे नार हो, गुण वाली वानर ले हारीयोजी ॥ तव श्रीरामे तेह हो, गुण वाली वानर ते मारीयोजी ॥ १७॥ सुग्रीव थापीयो राज हो, गुण् नारी श्रावी तारा रंग जरीजी तव बोल्यो सुग्रीव राय हो, गु० कार्य कहो स्वामि कृपा करीजी ॥ २७ ॥ तुमे परपकारी हो, गु० कीधो स्वामि मुज श्रति घणोजी॥ नेह थकी तुमे देव हो, गुण सेवक हुँ ढं स्वामि तुम तणोजी ॥ १५ ॥ राम कहे सुणो मित्र हो, गु० नारी ग मुज तणीजी॥ तेहनो करो संजाल हो, गु० किदां ने सीता वसन घणीजी ॥२०॥ पांचमा खंम तणी ढाल हो, गु० बीजीए कही निरमलीजी ॥ रंगविजयनो शिष्य हो, गुळ नेमविजय कहे अति जलीजी ॥१॥
उदा सोरठी. सुग्रीवे तेड्यो ताम, हनुमंत वीर सोहामणो ॥ ते गयो लंकाए सार, शुरू करेवा नामणो ॥१॥ मुधिका थापी सार, संदेशा कह्या श्रीराम तणा ॥ प्रशंसी सीता नार, कह्यो कुशल ने बेहु जणा ॥२॥ लंका बाली हनुए, शुद्ध श्राणी सीता तणी ॥ श्रीराम दुवो संतोष, सैन्य चाब्युं लंका नणी ॥३॥ वानर सहु मिलेव, परवत उचेली
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥१०॥
श्राणीया ॥ बांधी समुप्रमा पाज, पाणी उपर तर्या पाहाणीया ॥४॥ राम लक्ष्मणना सेन, सागर पाजे उतारीया ॥ लंका जश् कीधुं युद्ध, रावण राक्षस मारीया ॥५॥ सख्य विसल्या काज, औषधिगिरि उचेली धरीय ॥ आण्यो लंकापुरी मांही, हनुमंत सेन बेगे करीय ॥ ६ ॥ रामायण वाल्मिक रिषि, जाषित ते मांही कां ॥ जो साचुं होय एह, मुज नाख्युं खोटें केम लद्यु ॥ ७॥ तव बोल्या द्विजराज, ए खोटुं
केम जाखीए ॥ वली मनोवेग कहे वात, एक वयण तुम दाखीए ॥ ७॥ वानर पांचे हामिलेव, डुंगर मोटा उचेलीया ॥ लाव्या जोजन लाख, सागर बांध्यो ज्युं नेलीया ॥
ए ॥ तो लघु डुंगर तेह, शियाल बे केम नवि धरे ॥ वचन सुणी द्विजराज, सत्य सत्य कही गया घरे ॥ १० ॥ वाद जीपी वन मांही, श्राव्या पूर्वली परे ॥ मनोवेग कहे सुणो नाय, सुग्रीव हनुमंत वानर करे ॥११॥ विद्याधर ढुवा राम, रावण राक्षस नवि होये॥ खगपति तणो वंश चंग, पवनवेग तुमे सांजलो ॥१५॥
ढाल त्रीजी.
राम पुरा बजारमां-ए देशी. कोशल देश अयोध्यापुरी, राज पाले नानि नरिंद ॥ तोरी बलीहारीरे श्रादि जिणंदनी॥
॥१०३
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए श्रांकणी ॥ हाजी मरुदेवी उदरे उपन्या, रिषजदेव प्रथम जिणंद ॥ तो ॥१॥ त्र्याशी लाख पूरव गया पठी, नरतने आप्यु निज राज ॥ तो ॥ आदि देवे दीदा। ते अनुसरी, कायोत्सर्ग धरी करे काज ॥ तो ॥२॥ ध्यान धरे जिन जेहवे, तेहवे याव्या साला बेह ॥ तो ॥ नमि विनमी नामे नला, श्रादि देव प्रते कहे तेह ॥ तो० ॥ ३ ॥ पुत्र सहुने व्हेंची आपीया, देश नगर तुमे देव ॥ तोणाश्रमने का नहीं आपीयु, तुमारी घणी कीधी सेव ॥तो॥॥एणी परे मागे साला दोय, ह लेश्वरी रद्या पाय ॥ तो ॥ ध्यान विघन स्वामीने करे, दीन वचने कृपा थाय ॥ तो ॥५॥ श्रासन कंप्यु धरणेऽनु, नागराज श्रावी करे काज ॥ तो॥ विद्या आपी बेहुने घणी, रूप धरी जिनराज ॥ तो॥६॥ विजयारध बेश् चालीयो, दक्षिण श्रेण नगर पचास ॥ तो ॥ पचास कोमी गाम तिहां जलां, नमि थाप्यो चक्रवालपुर वास ॥ तो ॥KI ७॥ उत्तर श्रेणि नगर साउ, तेटला क्रोम ने वली गाम ॥ तो ॥ रथनोपुर खामी विनमी करी, नागराज गयो निज गम ॥ तो ॥ ॥ नमिवंशे विद्याधर घणा हुवा, चक्रवालपुर तणा ईश ॥ तो ॥ अनुक्रमे पूर्णमेघ नृप हुवो, दक्षिण श्रेण तो महीश ॥ तो॥ ए ॥ विनमी अनुक्रमे नृप हुवा, उत्तर श्रेणना राय ॥ तो०॥ शत
aamana
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरीलोचन खगपति नलो, रथनुपुर सेवे नर पाय ॥ तो ॥ १०॥ चक्रवालपुर जइ वी-1
टीयो, शतलोचने तेणी वार ॥ तो ॥ पूर्णमेघ रणवट करी, हणीयो शतलोचन मार IN तो ॥ ११ ॥ सहस्रलोचन तिहां श्रावीयो, पिता तणो सांजली मरण ॥ तो॥
विषम संग्राम ताम तव तेणे कर्या, पूर्णमेघ गयो जम शरण ॥ तो ॥ १२ ॥ तेह तणो सुत मेघवाहन, सहस्रलोचन साथे संग्राम ॥ तो ॥ मेघवाहन नागे जाजीने, वि
माने बेसी निज जाम ॥ तो ॥ १३ ॥ सहस्रलोचन पुंठे थयो, समोसरण दीतुं मMनोहार ॥ तो ॥ मेघवाहने प्रवेश कर्यो, अजितनाथ वांया नवतार ॥ तो ॥ १४ ॥ पाउलथी शत्रु थावीयो, सहस्रलोचन वली काल ॥ तो ॥ मानस्थल दीमानज
गल्युं, शांत रूप थर वांद्या दयाल ॥ तो ॥ १५ ॥ वयर मूकी दोय जण मल्या, KIनर कोठे बेग जाम ॥ तो॥ पूर्व नवांतर जिनेश्वर कह्या, सांजली हरखीया ताम on तो॥ १६ ॥ पांचमा खंग तणी जली, ढाल त्रीजी कही सुविशाल ॥ तो ॥ रंगविजयनो शिष्य एम जणे, नेमविजयने मंगल माल ॥ तो ॥१७॥
उदा. राक्षस इंजीम महाजीम, व्यंतर कोटी सुण तेह ॥ मेघवाहन नवांतर जा
॥१३॥
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाणीयो, पूर्वे अम पुत्र एह ॥ १॥ राक्षसने स्नेह उपन्यो, राक्षसी विद्या दीध ॥ नव
सर हार प्राप्यो जलो, नव मुख दीसे मांही सीध ॥ २॥ मेघवादन लंका द्वीप,
सातसें जोजन मान ॥ त्रिकुट गढ नव जोजन लगे, बत्रीश जोजन पुर थांन ॥३॥ Kalत्र मुगट धजादिक शीरे, राक्षस लांबन सोय ॥ जीम महानीमे सहु दीयो, मेघ-1 वाहन लंकापति मोय ॥४॥
ढाल चोथी. ए केम विसरेरे सुखडां, वालाजीना जोवा मुखमा ॥ मुखडे मोह्यारे इंदा, वदन
कमल जाणे शारद चंदा-ए देशी... मेघवाहन राणी तनुमती, महा राक्षस सुत हुवो शुन मति ॥ गुणवंती राणीना |पुत्र बेह, नानु राक्षस देव राक्षस तेह ॥१॥ समुज मांही दीप अनेक, लोक व-12 साव्या तेणे विवेक ॥ नानु राक्षस देव राक्षस केडे, एकसठ राजा गया ने तेडे ॥ly २॥ कीर्तिधवल राजानो वंश, लंका राज करे परशंस ॥ लक्ष्मीमती डे राणी तास, सुख जोगवे करेय विलास ॥३॥ रतनसंचय पुर दक्षिण श्रेण, श्रीकंठ खगपति | राजा तेण ॥ तिहांथी लंकापुरी श्राव्यो, बेन बनेवी मलवा धायो ॥४॥ कीर्तिधवल
aaNamans
-
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी राजा आनंद, सालाने श्रालिंग्या जन बंद ॥ लक्ष्मीमती मली नाश्ने, मान सनमान का खं।
दीधां धाश्ने ॥ ५॥ कीर्तिधवल कहे सांजलो सार, तुज साथे मुज स्नेह अपार ॥ ।१०४॥
जे जे सदमी अमारे, ते ते श्रीकंठ ने तुमारे ॥६॥छीप देश पुर पाटण जाणो, जे आपणे जे ते तुमे माणो ॥ जे जोइए ते मागो आज, रत्नहीपादिक नोगवो राज ॥७॥ वानरठीप माग्युं श्रनिराम, श्रीकंठ सालाने श्राप्यु ताम ॥ बेन बनेवीने मोकलावी, वानरछीपे आण पलावी ॥ ॥ कुटुंब सेनादिक परिवार, छीपे आणी वास्या नर नार ॥ वानरठीप मध्ये सार, कीष्कंध पर्वत उंचो अपार ॥ ए ॥ कंधपुर
वास्यो श्रीकंठ, राज्य जोगवे मन उत्कंठ ॥ खगे विद्या वानरी साधी, ते माटे कना हेवाय हरिबांधी ॥ १०॥ वानरछीपे घणा वानर, विनोद क्रीमा करे ते फरफर ॥
श्रीकंठ विद्याधर नरवरेश, वानर रमत करे विशेष ॥ ११॥ मुगट बत्र धजादिक |गेह, सघले वानर लीखीया तेह ॥ वानर कहे लोक अजाण, विद्याधर राजाए सु||जाण ॥ १२ ॥ एणी परे मेघवाहन लंकेश, मुगट ध्वज बत्रे रादेस ॥ मेघवाहन ॥१०॥
कुले उपन्या राय, त्रिखंग पति रावण ते थाय ॥ १३॥ श्रीकंठ खगेश परंपरा जाण, Vवाली सग्रीव पवनाटिक जाण ॥ नमि विनमी वंशे विख्यात. वानर राक्षस नोहि ।।
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
वात ॥ १४ ॥ वानर तो तिर्यंचनी जाति, व्यंतर राक्षस होये नाति ॥ पशु व्यंतर Kलाकेम होय युद्ध, ए सहु जाणो महा विरुङ ॥ १५ ॥ विद्याधर विद्याबल चाले, गिरि
उचलतांततक्षिण काले॥कदाचित् होये तो सबली होय, सागर बंधन घटतुं जोय ॥१६॥ मनोवेगे कथा कही साची, पवनवेग मनमा रह्यो राची ॥ जिनवर वचन कर्यां अंगीकार, मिथ्या वचन कीधां परिहार ॥ १७॥ पांचमा खंम तणी ढाल, चोथी कहीए । निपट रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम बोले, नेमविजयने नहीं कोई तोले ॥ ७ ॥
उहा. ___ पवनवेग कहे जाश्ने, रावण केरो वृत्तांत ॥ के मिथ्यातिए अडे, के जिनशासन सांत ॥१॥ मनोवेग कहे सांजलो, रावण केरी वात ॥ जेम निश्चय तुमने पडे, नांगे मननी ब्रांत ॥२॥ त्रिकुट गढ लंका तणो, मोटो महीयल मांहीं ॥ रावण राज तिहां जोगवे, हार तणे महीमाहीं ॥३॥ त्रिखंड राज्य तणो धणी, नव ग्रह बांध्या पाय ॥ वीश नुजा तेणे करी, सुर नर सेवे पाय ॥ ४ ॥ त्रीश सहस वर्षों तणी, आयुस्थिति कहेवाय ॥ नव धनुष काया तणो, मान कह्यो जिनराय ॥५॥ वत्रीश सहस नारी अडे, पुत्र पुत्री परिवार ॥ जामाताए जस घणा, कहेतां नावे
-
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ २०५ ॥
पार || ६ || लाख बैतालीश गज तुरी, लाख बेंतालीश रथ ॥ क्रोम तालीश पा यक जला, श्रायुध बत्रीशं सब ॥ ७ ॥ सोल सहस सामंत बे, क्रोम थमतालीश गाम ॥ ढार कोणी कटक तणो, राजा रावण नाम ॥ ८ ॥
ढाल पांचमी. वरागी थयो - ए देशी.
लंका परिसर एकदारे, मुनिसुव्रत जिनराय ॥ विहार करता यावीयारे, साधु तो समुदायोरे ॥ सुगुण सांजलो ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ खरदूषण भूपति नलोरे, रावण बनेवी तेह || चंद्रनखा नारी तणोरे, पति कहेवाये एहोरे ॥ सु० ॥ २ ॥ स मोसरण देवे रच्युंरे, जामंगले करी सार ॥ त्रगडे बेठा देशनारे, करे जविक जन निस्तारोरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ वनपालक जइ विनवेरे, सांजलो खामिरे वात ॥ याज आव्या बे आपणेरे, त्रिभुवन स्वामी विख्यातोरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ वारु दीध वधामणीरे, थयो मन उबरंग ॥ चतुरंग सेना लेइ करीरे, वाजते ढोल मृदंगोरे ॥ सु० ॥ ५ ॥ बेठा जिन वांदी करीरे, निगम सांचवी पांच ॥ देशना सांजली जिन
खंग
॥ १०५
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
तणीरे, मूकी मन खल खांचोरे ॥ सु० ॥ ६ ॥ दीजे श्रमने सुखा सिकारे, स्वामि आपो सेस ॥ रथ सरे श्रमने घणोरे, तुमने लाज विशेषोरे ॥ सु०॥७॥ तव त्रिभुवन स्वामी कहेरे, सांजलो राय सुजाण ॥ जोग करम तुमने घणोरे, केम पालशो पचखाणोरे ॥ ८ ॥ तव रावण फरी विनवेरे, मुजश्री पाये जेह || तेह उपाय कहो - वेरे, पालुं निश्चय तेहोरे ॥ सु० ॥ ए ॥ वीशमा स्वामी तव कहेरे, तुमची थाशे जे ॥ नव नेदे जे शील बेरे, तेनो नांगो होरे ॥ सु० ॥ १० ॥ जे स्त्री राजी य कहेरे, तेहशुं जोग विलास ॥ राजी विना श्रमशो मतीरे, एड्वो व्रत उल्लासोरे ॥ सु० ॥ ११ ॥ तव व्रत लीधो जिनने मुखेरे, रावण मनने रंग ॥ तव खरडूषण एम कहेरे, व्रत लेवा जबरंगोरे ॥ सु० ॥ १२ ॥ जिननी मूरति नित्य प्रतेरे, पूजीने लेनं अन्न || न करूं दातण पूज्या विनारे, त्रिकरण राखुं मन्नरे ॥ सु० ॥ १३ ॥ व्रत लीधो वे जणे तिहारे, आव्या आपणे वास ॥ मन शुद्धे पाले तिहारे, पाम्या दरख उल्लासोरे ॥ सु० ॥ १४ ॥ विद्यानी शक्तिए करीरे, चाले अंबर वेग ॥ तीर्थयात्रा करता फरेरे, सबली जेहनी तेगोरे ॥ सु० ॥ १५ ॥ विहार कर्यो जिनवरे तिहारे, फरता देश विदेश || जविजनने प्रतिबोधवारे, तरण तारण विशेषोरे ॥ १६ ॥ पांचमा
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरीखंड तणी कहीरे, पांचमी ढाल रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमने मंगल
मालोरे ॥ सु ॥ १७ ॥ ॥१६॥
उहा. MT सवि सामग्री सज करी, रावण राजा जाय ॥ मंदोदरी राणी सहित, अष्टापद
तीरथ श्राय ॥ १॥ विद्या तणी शक्ते करी, चढी उंचा ततकाल ॥ प्रणम्या रिषनदेवने, पहेरावी मंगल माल ॥२॥ धूप दीप आरती करी, सवि सजी शणगार ॥ मंदोदरी अधर रही, नाचे देवल मोकार ॥३॥ रावण जंत्री लेने, गाये वाये गीत ॥ नावे नावे नावना, बत्रीश बडनां नृत्य ॥४॥श्रीमंमलने सज करी, तांत बत्रीशे तार ॥ उलट आणी अंगमें, तान मान ऊणकार ॥५॥ अढलिक नावे जे नवि, नावे|| अधिक जे जाव ॥ तेहने सागर संसारनो, उतारे जव नाव ॥६॥ नाव बबे करी जा. वतां, वातां तांतनो तार ॥ तुट्यो तेण समे रावणे, नस काढी तेणी वार ॥ ७॥ सांधी तांत तेणे समे, खंमित न कर्यो लगार ॥ नहींतो मंदोदरी. नारीनो, मरण होत
तेणी वार ॥ ७ ॥ लान उपायो अति घणो, लीधो तीर्थंकर पाट ॥ श्रावती चोवी-] काशीमां होशे, जिनरूपी सम घाट ॥ ए॥
॥१६
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल बही. त्रीपदीनी बेकर जोमी तामरे न विनवे-ए देशी. तिहांथी श्राव्या निज घरेरे, रावणनो परिवार, चंडनखा जगनी सही एy लातेहनो पुत्र ने एकरे, विधनपति नामे, नित्य जाये ले वन वही ए॥१॥ पर विघननी विद्यारे, साधवाने काजे, वंशजाल गुन्डा मांही ए ॥ साधे नित्य प्रते तेहरे, एकाकी| वन मांहे, नवी देखे कोइ तांदे ए ॥२॥ तेहने नोजन काजरे, माता तेहनी, ल
आवे ने नित्य प्रते ए॥ एम करतां एक दिनरे, राम ने लक्ष्मण, सीता साथे ले बते भाए ॥३॥ श्राव्या ने वनवासरे, तेह निज गमे, लक्ष्मण चोकी करता फरे ए ॥चिंतवी | | मनमां एमरे, पुर्धर कोश्क जीव, उपव श्रावीने करे ए॥४॥ते माटे ले खमगरे, वांसनी जालमां, बेदे ते खड्गे करी ए॥ ते कुंवर विघनपतिरे, बेगे ले ध्याने, घा वाग्ये गयो मरी ए ॥ ५॥ दीगे लक्ष्मणे तामरे, उरतो को घणो, निमित्त मात्र मिटे नहीं | |ए ॥ पाबा फरी वली श्रावेरे, कुंवरनी माता तिहां ॥ जोजन लेश श्रावी वही ए॥६॥ देखी कलेवर तामरे, रुदन करे घj, पुत्र कोणे मारो मारीयो ए॥शीश कुटे लट तोडेरे, हृदये श्रास्फाले, नयणे आंसु जारीयो ए॥७॥ मनमांचिंतवे एमरे, कोण होशे 5-1
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १०५ ॥
श्मन, जइ नीहालुं तेहने ए ॥ श्रवे पग जोती तामरे, दीठो लखमण, श्रावीने कहे एहने ए ॥ ८ ॥ देखी लक्ष्मण रूपरे, विकल थर मने, पुत्र चिंता मटी गई ए ॥ कहे मुखथी तब बोलरे, अहो हो सोजागी, हुं तुम पर राजी 5 ए ॥ ए ॥ तुं माहरो जरताररे, माहरे इण जवे, एम निश्चय करी जाणजो ए ॥ ताही उत्तम प्रजातरे, जो होये तो सही, नाकारो मत श्राणजो ए ॥ १० ॥ लक्ष्मण कहे तव वातरे, ए काम ढुं नवि करूं, परनी स्त्री केम जोगवुं ए ॥ मीतुं पण थयुं एतुंरे, परनुं जे चाख्युं, ते तो हुं नवि जोगवुं ए ॥ ११ ॥ चंद्रनखा कहे वातरे, मादरे में कयुं, मत थापे तुं हवे ए ॥ जो सुख वांबे एमरे, तो मन धारजे, कुरु वयण तुं मत लवे ए ॥ १२ ॥ लक्ष्मण कहे हवे एमरे, जगनी माहरी, धर्मनी माता तुं अबे ए ॥ क्रोधातुर थइ एमरे, खबर राखे माहरी, एम कहीने पाठी गढे ए ॥१३॥ तुज सरीखो वे जाइरे, तो चिंता कशी, एम हुं नित्य जाणती हती ए ॥ माहरो विघनपति पुत्ररे, मार्यो लक्ष्मणे, तो हुं नारी अबती बती ए ॥ १४ ॥ वार करो हवे मारीरे, ढील न करो कशी, जे घर्मी जाये जुग समी ए ॥ सांजली रावण तामरे, डूत एक मोकल्यो, सामंत नेला कर्या नमी ए ॥ १५ ॥ खरदूषण परिवाररे, लश्कर करी नेलो, चढ्या कटक गेडी थइ ए ॥ यावी मेरा दीधारे,
खंग ५
॥ १०७
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
सायरने कांठे, प्रतिमा घरे विसरी गइ ए ॥ १६ ॥ दातण करवा नीमरे, लीधो पचखाण, जनवचन केम नांगीए ए ॥ गण वेबु करी नेलोरे, बिंब कीधो नवो, पूजा करी पगे लागीए ए ॥ १७ ॥ अनुक्रमे दरशन कीधोरे, प्रतिमा कुपक मांही, मूकीने सहु चालीया ए ॥ घणा काल लगी मांहीरे, अधिष्टाता तिहां, धरणे तिहां जालीया ए ॥ १७॥ श्रावी काढ्यो बिंबरे, अंबर अधर राखी, अंतरिक नाम थापीयो ए ॥थागे एहनो विस्ताररे, बहुश्रुत ते जाणे, माहरी मत सारु व्यापीयो ए॥१५॥ पांचमा खंड तणीरे, ढाल बही ए कही, श्रोता सुगुण जणी गमी ए॥ रंगविज-|| यनो शिष्यरे, नेमविजय कहे, माहरा दिलमां ए रमी ए ॥२०॥
उदा. लश्कर सह नेलो मली, श्राव्या वन वंशजाल ॥ रामचंड लक्ष्मण बेने, खबर थइ ततकाल ॥ १॥ लक्ष्मण कहे रामचंउने, तुमे सीताने पास ॥ रहेजो सावधान थका, हुँ जाउं लडवा तास ॥२॥ जो हुं नाद करूं सिंहनो, तो मुज करजो वार मेलशो मां सीता रली, कहुं बुं वारंवार ॥३॥ लक्ष्मण चाट्या फुजवा, लश्कर सन
|
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरीमुख जाय ॥ एक बाण नाखे थके, सहस्र संख्या थाय ॥४॥ वासुदेव बल धागले, खंग।
सहस पचवीश देव ॥ एता शरीरना देवता, रक्षा करे नित्यमेव ॥ ५ ॥ जे श्रा॥२ ॥
युध लश्कर तणां, लक्ष्मण उपर आवे ॥ ते देवता रदा करे, ते सर्वे निष्फल | थावे ॥६॥ जे लक्ष्मण नाखे तदा, जे उपर ताणी बाण ॥ तेहने सहस गमे सही, जाये तेहना प्राण ॥ ७॥ खरदूषण राजा तिहां, मरण गयो ततकाल ॥ तेणे अवसर लक्ष्मण तव, मनशुं थर उजमाल ॥ ७॥ सिंहनाद करूं जो हवे, कटक जाये सवी नाज ॥ एम चिंतवी तेणे कर्यो, सिंह समो आवाज ॥ ए ॥ ते अवसर रामे तिहां, सुणीयो सिंहनो नाद ॥ सीता मूकी एकली, श्राव्यो करवा वाद ॥ १० ॥ बे माना मली एकग, मार्यो काढ्यो दूर ॥ नागे ले लश्कर वेगलो, जीतनां वाग्यां|
तूर ॥ ११॥ चंपनखा उतावली, ग रावणनी पास ॥ श्राकुल व्याकुल थाती थकी, मूकती मुख निःश्वास ॥ १२ ॥ कहेवा लागी नाश्ने, मार्यो मुज जरतार ॥ मुख \
INR देखाडे लोकमें, लाजे नहीं लगार ॥ १३ ॥ रावण उठ्यो सांजली, पुफक देश वि. मान ॥ अद्भुत रूप नवो करी, श्राव्यो सीता गम ॥ १४॥
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल सातमी. शियालो हे जले श्रावीयो - ए देशी. सीता दीठी एकली, चिंतवे मन मांही रावण विचार के || कोइक बुद्धि हवे केलवुं, जेम यावे हे माहरे हाथे नार के ॥ सुगुण सोनागी सांजलो ॥ ए यांकणी | ॥ १ ॥ श्रतित रूप करी प्रति जलो, निक्षा कारण हे आव्यो ततकाल के || लेक जगाव्यो ांगणे, सीता घ्यावी हे उनी उजमाल के ॥ सु० ॥ २ ॥ केम स्वामि तुमे श्रावीया, तव जोगी हे वोले मुख वाल के ॥ ताहरे पीयु मने मोकल्यो, तेम्वा श्राव्यो | हे तुमने ति ठाण के ॥ सु० ॥ ३ ॥ लश्कर श्राव्यो बे घणो, कोई दुश्मन हे तुमने | लेइ जाय के ॥ ते माटे उतावलां, तुमे बेसो हे या विमान मांय के ॥ सु० ॥ ४ ॥ सीताए जाएयुं ए सही, मांहे बेठां हे उघाड्यं विमान के ॥ गल जातां सामो मिल्यो, विद्याधर हे एकलो तेथे स्थान के ॥ सु० ॥ ५॥ पूब्धुं रावणने तिहां, कुण नारी हे के|दनी कद्देवाय के ॥ तव रावण कहे रामनी, सीता नारी हे कहेजे लेइ जाय के ॥ सु० ॥ ६ ॥ ते विद्याधरे रामने, संजलावी हे सीतानी वात के | रामने लक्ष्मण बे मली, दुःख पाम्या हे कहेतां नावे घात के ॥ सु० ॥ ७ ॥ राम रोइ घणुं टलवले, मुख
॥
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
खम
॥१०
॥
जपे हे तरुवर जणी एम के ॥ कहो मुजने तुम इहां रह्या, केम मलशे हे सीता मुज जेम के ॥ सु० ॥ ॥ तरुवर वाये मोलतां, राम जाणे हे कहे धुणीने शीश के ॥ श्रमे न जाणुं किहां गश्, एम धारी हे मुजने करे रीस के ॥ सु०॥ ए ॥ तव केकी पंखी प्रते, राम बोले हे तुमे उमो श्राकाश के ॥ सीता माहरीनी वातमी, बतावो हे हुँ श्रापुं शाबाश के ॥ सु ॥ १०॥ तव पंखी बोले मुख थकी, क्या वा क्यां वाहे न जाणुं श्रमे श्राप के ॥ राम जाणे ए जे कहे, किम खोवे हे आपनो माप के ॥ सु० ॥ ११ ॥ पशु चोपगने पूढे वली, जातां वलतां हे दीठी सीता नार| के ॥ शियाल बोल्यां ततहणे, सांजलीने हे रामे कीधो विचार के ॥ सु० ॥१५॥ उंचं जे मुखथी कहे, खेर जातां हे न दीनी जण गण के ॥ लक्ष्मण राम जणी| कहे, जंजालनां हे बोलो मुख वाण के ॥ सु० ॥ १३ ॥ ना तुमने केम घटे, स्त्री माटे हे श्यो करो वेखास के ॥ जो विद्यमान बेग तुमे, काले लावणुं हे राखो विश्वास के ॥ सु० ॥ १४ ॥ रोयां राज न पामीए, राखो धीरज हे श्रावे श्रापण लाज | |के ॥ लाजे काज बगाडीए, ना तुमने हे केम घटे श्राज के ॥ सु० ॥ १५ ॥ धीरा | धीरा राउता, धीरां धीरां हे सर्वे काज होय के ॥ चार पहोरने आंतरे, दूध फीटी
॥१०॥
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
हे दहीं थाये जोय के ॥ सु० ॥ १६ ॥ धीरा धीरा जे करे, मालीनी परे हे सो घडा सिंचाय के ॥ पण ऋतु श्रावे नीपजे, ऋतु वगर हे फल कीणी परे थाय के ॥ सु०॥ १७ ॥ तो हवे उद्यम कीजीए, तेहथी जाये हे श्रारति सवी पूर के ॥ हनुमानने ते. डावीए, मोकलीए हे तेमवा दलपूर के ॥ सु० ॥ २७ ॥ विद्याधर वाली वानरा, राउत राणा हे जद सरूप के ॥ हाथी घोमा रथ पालखी, उंट पोटी हे अणावो अनुप के ॥ सु० ॥ १५ ॥ पांचमा खंड तणी कही, ढाल सातमी हे सहु सुणजो सुजाण के ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय हे कीधा रुमां वखाण के ॥ सु०॥२०॥
पुढा. | बोलाव्यो हनुमानने, संजलावी सवी वात ॥ देशे परदेशे फरी, नेली करो सह न्यात ॥१॥ हनुमान तिहाथी चालीयो, गयो देश विदेश ॥ उमराव अनेक नेला दुवा, विद्याधर वानर विशेष ॥॥ यद राक्षस वली श्रावीया, चतुरंग दल परिवार ॥ संख्या करतां नवि बने, लश्कर मलीयो अपार ॥३॥ श्रासो सुदि दशम दिने, शुज वेला शुज | वार ॥ शुज शुकने सिझ करी, थर घोडे अश्वार ॥४॥ सायर कांठे आवीया, दी || देवल एक ॥ ते पासे श्रावी उतर्या, दर्शन कीध विवेक ॥५॥करे अरदास बेग तिहां, ।।
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
।११०॥
सायर केम उतराय ॥ सात मास ने नव दिने, सायर पाज बंधाय ॥६॥ सीताने खे गयो, रावण लंका मांय ॥ फुलवामी श्रावासमां, राखी ने तेणे गय ॥७॥ नित्य श्रावे सीता प्रते, पूजे वारंवार ॥पट्टराणी यापुं करी, मान वचन निरधार ॥ ७ ॥
ढाल आठमी.
बेमले नार घणो डे राज-ए देशी. KI जनक सुता हुं नाम धरावं, राम अंतर जामी ॥ पल्लो अमारो बोकी दे पापी,
कुलमां लागशे खामी ॥ मुजने श्रमसो मा जो राज, नाहलीयो उहवाशे ॥ए श्रांकणी । ॥१॥ मरु महीधर गम तजे जो, पथ्थर पंकज उगे ॥सायर जो मरजादा मूके, पांगलो अंबर पुगे ॥ मु० ॥ २ ॥ तोपण तुं सांजलरे रावण, निश्चे हुं शील न खंठं ॥ प्राण श्रमारा परलोके जाये, तोपण सत न ॐ ॥ मु०॥३॥ हुँ धणीयाती पीयु गुणराती, हाथ ने माहरे बाती ॥ रहे अलगो न चवू तुज वयणे, कां कुल वाये काती ॥ मुण
॥ कोण मणिधरनी मणि लेवाने, हश्मे घाले हाम ॥ सतीय संघाते स्नेह धरीने, कहो कोण साधे काम ॥ मु० ॥५॥ कहो परदारा संग करीने, आखो कोण उगरीयो॥ उंडं तुं तो जोय आलोची, सही तुज दहामो फरीयो ॥ मु० ॥६॥ अग्निकुंममां निज
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
तनु होमे, वाम्युं विष कोण लेवे॥जेह थगंजित कुलना जोगी, ते केम फरी विष सेवे ॥मु० ॥७॥लोक हसे निज गुण सवि नीकसे, विकसे पुरगति बारी॥ एम जाणीने कहो कोण सेवे, पाप पंक पर नारी ॥मु॥७॥ वलीय विशेषे स्त्रीने संगे, बोध बीज वली जावे ॥ लोको मांही अपजश थावे ,तो केम मरण न आवे ॥मुणा॥ को मूरख चंदन काजे, बारके कोयला थाणे ॥ विष हलाहल पीधा थकी जे, कोण चिरंजीवित माणे ॥ मु० ॥१०॥सीता बोली वचन रसाला, जेम अंकुश शुंडाल ॥तोपण रावण न मेले चाला, ए-IN हनां कर्मनां काला ॥ मु०॥ ११ ॥ एहवी सीतानी जे वाणी, सांजले नित्य एम जाणी ॥ सती जाणीने न कहे ताणी, आणतां शुं तो आणी ॥ मु० ॥१२॥ लीधा मेली) |वात थ ते, अहिए बढुंदरी पकमी ॥ मेले तो थाय श्रांखे अंधो, खाधे मरे पड्यो जकमी ॥ मु० ॥ १३ ॥ एणी परे मनमां जाणे रावण, करतां शुं तो कीधी ॥ थानारो थाशे जे आगल, लेतां शुंजे लीधी।मु० ॥१४॥ पांचमा खेम तणी ए ढाल, थाउमी सही करी जाणो॥रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमनी वात वखाणो ॥ मु॥१५॥
उदा. सात मास नव दिन लगे, पूज्या थंजणपास ॥ अधिष्ठाता शेषनागजी, पसाय,
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १११ ॥
कीधो तास ॥ १ ॥ लश्कर पाजे उतर्यो, लंका नेडी लीध ॥ खबर थइ रावण जणी, नगरमां वात प्रसिद्ध ॥ २ ॥ बिभीषण जाने कहे, राम चम्। श्रव्या आज ॥ जाइ करीने थापीए, सरवे सरशे काज ॥ ३ ॥ रावण कहे जाइ सुणो, राम बे दुश्मन जात ॥ बनेवी श्रापणो मारीयो, विघनपति नाम सुजात ॥ ४ ॥ एवो वेरी मेलीए, तो अप| जश जग होय ॥ घर श्रांगण श्राव्यो थको, जावा दे कहो कोय ॥ ५ ॥ बिजीषण कहे रामशुं, जाइजी म करो वेर ॥ वेध पमशे ए वातमां, याशे ए कामे फेर ॥ ६ ॥ तव रावण कहे जाइने, न गमे तुजने एम ॥ तो तुं राम नेलो जइ, थापे जाइ करी जेम ॥ ७ ॥ बिभीषण राम नेलो मध्यो, रावणने चड्यो मान ॥ सेना सरवे सज करी, मेरा दीधा रण थान ॥ ८ ॥
ढाल नवमी. कखानी देशी.
दल वादल चड्या मेह सम गाजीया, वाजिंत्रनी ध्वंस श्राकाश वागी ॥ बत्रीश श्रायुध सज्यां श्रमुहा सामुहा, जूऊनी हुब उमंग लागी ॥ ० ॥ १ ॥ सिंडूरीया गज दल आगल कर्या, अश्व तणी पाखरे रोल जाऊी ॥ नाल घोका तणी धसमस प
खंग
॥ १११
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
घणी, आवी अड्या घणा शूरमांजी ॥ द ॥२॥ सिंधू राग सरणाइए टहुकीयो, बंदीए सरस गाया पवामा ॥ चारणे चरचीया बिरुद उहडालमा, मेली नेला कर्या| मल अखामा ॥द॥३॥ शक्ति विद्या तणी अंबर चमी कूकता, रूप करी कारीमा जा मांडे ॥ श्रायुध श्राकाशमां घन जेम गडगमे,वीज ऊलका सम ज्योति खांमे॥॥॥ त्रिीबीयो बरबीयो पार निरबीयो, सणण वहे वाण अरि वेग हरवा ॥ चणण गोली वहे ढाल तिहां खमखडे, कडकमे तुंड रहमाही फरवा ॥ द० ॥ ५॥ गोलीए कंश मुथा बाण लाग्यां घणां, केश पड्या हय गय पय पसारी॥थारमे केश्याकुल व्याकुल थका, जाणे वणजारनी पोउ उतारी ॥ द ॥ ६ ॥ जम लोहा थकी जे नर नागीया, लडथमता धड उठे वली एम ॥ शूर फूळ तिहां कायर कंपे घणा, थरथरे काय मुख, तृण लीधां जेम ॥ दण् ॥७॥ केश रथ चूरीया नालद्युरीया, के उमी गया त्रधारी ॥ केश सुखासन मांहे बेग थका, थकाल मरणे गया घणुंज हारी ॥ द॥ ॥ दश मस्तकी तणी तत्र श्रावी बनी, वासुदेव उपरे चक्र फेर्यो ॥ त्रेसठ शलाखा पुरुष ते| उपरे, सहस पचवीश ते देवे घेर्यो ॥ द० ॥ ए॥ अवरना मारीया केम मरे एहवा, तेहवे चक्र पालो चलायो ॥ लक्ष्मणे रावण मारवा कारणे, शीश दश बेदी धराशुं
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
११२ ॥
जलायो ॥ द० ॥ १० ॥ तेहवे तिहां हाहाकार वरत्यो घणो, रामनी जीत जगति प्रसिद्धी | लक्ष्मण बिजीषण बेहु जेला मैली, नगरी लंका ततकाल लीधी ॥ ० ॥ ॥ ११ ॥ पाट थाप्यो बिजीषणने बक्षीसमां, त्रिकूट गढमे आण फेरी ॥ तेहवे राम ने लक्ष्मण बेदु जणे, तेमावी नारी सीताजी आप केरी ॥ द० ॥ १२ ॥ दंपती बेदु मव्यां दर्षमां सहु जल्या, बिजीषणे तिहां बहु जक्ति कीधी ॥ घणा दिवस रही रिद्ध समृद्धि लही, शीख दीधी वल्या पाज सिसि ॥ ०॥ १३ ॥ अनुक्रमे श्रावीया थंजणपासे देवले, मास चोमास रह्या तेह गमे ॥ पूजा प्रजावना मोछव कीधा घण्णा, थापना कीधी थंजणोपास नामे ॥ ५० ॥ १४ ॥ पांचमा खंग तणी ढाल नवमी जली, रंगविजय गणि शिष्य जाखी ॥ नेमविजय कहे श्रोता सहु सांजलो, रावण रायनी वात श्रखी ॥ द० ॥ १५ ॥
डुदा.
अनुक्रमे सीता नारीने, स्वकीय उदर मांय ॥ गर्न वाधे दिन दिन जलो, दश्डे हरख न माय ॥ १ ॥ एक दिन लक्ष्मण सीता बने, सूतां बे बे जण पास || लक्ष्मणने माता समी, सीता नारी तास ॥ २ ॥ निद्रावश सूतां थकां वस्त्र रहित थयां बेद ॥
खं थ
॥ ११२
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
नदीगं रामचंझे तिहां, शंका उपनी तेह ॥३॥ लक्ष्मण सरिखो जाइ मुज, मारवो न
घटे मुज ॥ सीताने हुँ जाणतो, सीतानां लक्षण गुऊ ॥४॥ ए तो बगमी ने सही, मायें अपजश थाय ॥ तो केम हुँ हवे करूं, काढी मेनुं वन मांय ॥५॥ लक्ष्मणने | वातो कही, एहने मेलो वनवास ॥ तव लक्ष्मण बोल्या तिहां, ना तुमने श्यावास ॥ ६ ॥ कष्ट उपजावी लावीया, सीता सुलक्षणी नार ॥ एहने वनवासे मेलतां, लाज जाये संसार ॥७॥ रामचंद्रमाने नहीं,मनमां पमी बहु ब्रांत ॥ साचे साचुं चालशे, कर्म न जाणे नाति जात ॥७॥
ढाल दशमी.
निजमी वेरण हुइ रही-ए देशी. रामे मेली सीता वनवासमां, तिहाथी श्रावी हो तापसने श्रावास के ॥ गिरि के दर गुफा जिहां, तापसनां हो आश्रम निवास के ॥ सुगुण सोजागी सांजलो ॥ ए आंकणी ॥ १॥ अंतराय कर्मना योगथी, श्रावी लाग्यां हो कर्मनां फल एह के ॥ राम गया घर श्रापणे, सीता नारी हो विसारी मेली तेह के ॥ सु० ॥२॥ अनुक्रमे || मास पूरण थया, दोय कुमर हो जनम्या श्रीकार के ॥ लव ने कुश नाम थापीयां,
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
पिरी०सेवा चाकरी हो करे तापस नार के ॥ सु ॥३॥ खिणखिणमां करे श्रावीने, पुण्य
योगे हो सर्व विधि व्यवहार के ॥ अनुक्रमे कुंवर मोटा थया, जर जोबन हो पाम्या तेणी वार के ॥ सु० ॥४॥ करम जोगेश्रावी मल्यो, लश्कर नेलो हो कीधो अपार के॥ वनिता नगरी उपरे, चडी श्राव्या हो लमवाने तेणी वार के॥ सु०॥५॥ को विद्याधर आवी विनवे, तुम जनक हो रामचंदर राय के ॥ ते साथे तुम लमतां थका, जगमां अपजश हो तुमने घणो थाय के ॥ सु ॥६॥ वली विद्याधर जश् कहे, राम श्रागल हो विनवे महाराज के ॥ ए कुंवर दोय तुम तणा, तेहने तेमी हो मनावो| आज के ॥ सु० ॥ ७॥ तव राम ने लक्ष्मण बे मली, दोय कुमर हो तेमाव्या तेणी|| वार के ॥ साजन सहु आवी मल्या, अंग उलट हो उपन्यो अपार के ॥ सु० ॥ ७ ॥ सीता तेमावी ततक्षणे, शंका टाली हो मननी ततकाल के ॥ उजम अंगमें अति घणा, सुख विलसे हो दंपती उजमाल के ॥ सु० ॥ ए ॥ सीतानी शोक ते एम | कड़े, राम पागल हो कुड कपटनी वात के ॥ सीता नारी जे तुम तणी, रावणे राखी हो लंपट कुजात के ॥ सु० ॥१०॥ बगडी नारी जे तेहने, केम राखवी हो । घटे घर मांय के ॥ निंदा थाय ने नातिमां, काढी मेलो हो बीजे कोय गय के ॥
॥१९३
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
सु०॥ ११ ॥ तव राम मनमां चिंतवे, शोकनो संबंध हो लागे मनमां खार के ॥ ते माटे सहु एम कहे, मुज न घटे हो काढवी घर बार के ॥ सु० ॥१२॥ एक दिन वस्त्र ते धोयवा, धोबीने दीधां हो रामचंड तेणी वार के ॥ राते पलाळी मूकीयां, प्रजात||
उठी हो जगाडे नार के ॥ सु० ॥१३॥ उठरे रांड तुं सुश् रही, राजा करशे हो आपपाणने रीस के ॥ वेहेला वस्त्र जो श्रापीए, तो नूपति हो थापे आशीष के ॥ सु०
॥ १४ ॥ तव धोबण मुखथी कहे, जे मूरख हो शुं लव करे आज के ॥ तुं ने राजाबे जण मली, जाउं जंचा हो ज्यां ने जमराज के ॥ सु०॥१५॥ राजानो सेवक एक जणो, सूची थावा हो बेठो तेणे गम के॥सांजले धोबीनी वातमी, कहे नारीने हो तुं सांजल | थाम के ॥ सु० ॥ १६ ॥ ताहरा नाक कान वाटुं हुं तो, राजाने घरे हो एहवा थाये, चयन के ॥ रावणे बार वरस लगे, सीता राखी हो कीधां मोटां फयन के॥सु० ॥१७॥
ते बगमी घर माय बे, हुं तो नवि राखं हो एहवी जे नार के ॥ ते सेवके वात सांजानली, राय पासे हो विनवे तेणी वार के ॥ सु० ॥ १७ ॥ रामचं मन चिंतवे, नारी
माथे हो कलंक चड्यो जेह के ॥ सीता सती माहरी खरी, पण एहनो हो उतारं एक
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
१९९४॥
के ॥ सु०॥ १५ ॥ पांचमा खम तणी कही, ढाल दशमी हो सुणजो नर नारी के ॥al रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय हो नित्य नित्य जयकारी के ॥सु० ॥५॥
मुहा. रामचंड सीता प्रते, कहे एक दिन वात ॥ निंदा करे जे लोक सहु, कलंक चमावे |नात ॥१॥ तेहनो साच करो तुमे, पावकमां द्यो पग ॥ निंदा न थाये नातमां, वातो श्रावे वग ॥२॥सीता कहे साचुं का, लोकापवाद न जाय ॥ साहेब करशे ते सही, थानारो ते थाय ॥३॥ त्रणसें हाथ खा खणी, जर्यो खेर अंगार ॥ रा राणा नेगा मल्या,श्राव्या जोवा नर नार ॥ ४॥ ना धोइ सीता सती, पहेरी उत्तम चीर॥ समरण करी साहेब तणो, संजार्यों इष्ट वीर ॥५॥ पावक मांही प्रवेश कर्यो, श्रगन फीटी थयो नीर ॥ अचरिज पाम्यां आदमी, धन धन एहनी धीर ॥६॥धन धन एहना शीलने, धन धन एहनी जाति ॥धन एहना मावित्रने, धन कुंवरी सुजाति ॥७॥ पावक मांहींथी नीकली, प्रगटी अगननी काल ॥ सती सती मुख सहु कहे, देव वाणी ततकाल ॥ ॥ पुष्पवृष्टि थश् तदा, जयजयकारनी वाण ॥ चरम शरीरी ते अजे, मुक्तिरूप निरवाण ॥ ए॥
॥१९४
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल अगीयारमी.
मयणरे हा सती–ए देशी. उबरंगे सीता नणीरे हां,रामचंद रंग लाय॥सुगुणा सांजलो ॥धामा हाथी शणगारीया रे हां, गीत गान गवराय ॥ सु० ॥१॥ सुखासने बेसामीनेरे हां, श्राव्या निज |घर मांय ॥ सु० ॥ शोक सरवे रीसे बलीरे हां, नीचुं मुख करी जाय ॥ सु॥२॥ तेणे अवसर सीता सतीरे हां, विनवे निज पति पास ॥ सु०॥ जो आज्ञा
आपो तुमेरे हां, दीक्षा हरख उदास ॥ सु० ॥ ३॥ रामचंज सीता नणीरे हां, कहे| वचन अमोल ॥ सु० ॥ न घटे एवं बोलतारे हां, राखो मोटो तोल ॥ सु० ॥४॥
खामि कर्म घणां अडेरे हां, ते क्षय करवा काज ॥ सु॥ तप जप करूं एक ध्यान-1 लथीरे हां, आज्ञा आपो श्राज ॥ सु० ॥ ५ ॥ श्राझा लीधी निज पतिरे हां, सहुशुं
कीधी शीख ॥ सु०॥ साधुना संजोगथीरे हां, उबरंगेलीधी दीख ॥ सु० ॥६॥ विहार कयों अन्य देशमारे हां, पाले चारित्र पांच ॥सु॥पांच महाव्रत पालतारे हां, पांच सुमतिना संच ॥ सु०॥७॥त्रण गुपतिने गोपवीरे हां, चार कषायने वार॥ सु॥राग द्वेषने टालीनेरे हां, उतायों कर्मनो जार ॥ सु० ॥ ॥ आयुस्थिति पूरी करीरे हां, मास
-
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ ११५ ॥
|सलेखणा कीध ॥ सु० ॥ अंते असण आदरीरे हां, पहोती शिवपुर सीध ॥ सु० ॥ ए॥ रामचंद्र पण नावधीरे हां, पोहोता सिद्धने गम ॥ सु० ॥ लक्ष्मणनो जीव नारकीरे हां, कर्म तणां एह काम ॥ सु० ॥ १० ॥ लव ने कुश राज थापीयारे हां, सुख विलसे संसार ॥ सु० ए अधिकार एम जाणजोरे हां, सूत्र थकी निरधार ॥ सु० ॥ ११ ॥ बहु श्रुत होशे ते जाणशेरे हां, निर्बुद्धि शुं जाणे लोक ॥ सु० ॥ शास्त्र प्रमाणे कथा कहीरे हां, वांची जोजो थोक ॥ सु० ॥ १२ ॥ हीर विजय सूरिसरुरे हां, शुजविजय तस शिष्य ॥ सु० ॥ जावविजय जगते करीरे हां, सिद्धि नमुं निश दिस ॥ सु० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करीरे हां, कृष्णविजय कर जोम ॥ सु० ॥ रंग विजयना रूपनेरे हां, नावे अवर कोइ होम ॥ सु० ॥ १४ ॥ पांचमो खंग पूरो थयोरे हां, ढाल अग्यारे रसाल ॥ सु० ॥ नेमविजयने नित्य प्रतेरे हां, होजो मंगल माल ॥ सु० ॥ १५ ॥
इति श्री मिथ्यात्खंकन, रावणोत्पत्ति, सीताहरण, रामचंद्र मिलण, धर्मपरीक्षारासे पांचमो खंड संपूर्ण.
खं
॥ ११५
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग ६ हो.
उदा.
मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग सुजाण ॥ बडो अधिकार दाखवुं, मिथ्यामत ावर पुराण ॥ १॥
ढाल पहेली. जाटनी देशी.
विद्याधर कुंवर बेहु जणे, कीधां जोगीनां रूप ॥ पाटलीपुर मांहे सांचर्या, लोक | जोवे कल सरूप ॥ १ ॥ जाइ तुमे जोजो मिथ्यात वातडी ॥ ए यांकणी ॥ ब्रह्मशालाए बेहु जण श्रावीया, कीधो नेरी घंटानाद ॥ कनक सिंहासन आरोहीयुं, द्विज आव्या करवा वाद ॥ जा० ॥ २ ॥ जोगी सिंहासन देखीने, विप्र कड़े सुणो तमे वात ॥ वाद जीती बेसो श्रासने, नहीं तो थाशे तुम तो घात ॥ जा० ॥ ३ ॥ मनोवेग तिहां बोलीयो, नहीं गमे जो तुमने एम ॥ तो अमे उतरी देवा बेसशुं, सहु सुख पामो द्विज तेम ॥ जा० ॥ ४ ॥ जट्ट बोले सुणजो जाइ तुमे, कोण वाद
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
खंग
॥१६॥
करशो सुजाण ॥ शैव सांख्य बौध जैनना, जे जाणो ते बोलो वाण ॥जा ॥५॥ कोण देश कोण तुम गाम , कोण जातिना कोण गोर ॥ कोण कारण इहां श्रावीया, सत्य कहो मामीने धूर ॥ जाण ॥६॥ जोगी रूपे खगपति ते लणे, सांजलो हिजवर तुमे सार ॥ वाद विवाद अमे जाणुं नहीं , केवा कहीए शास्त्र प्रकार ॥ ना० ॥
॥ श्रापणपो वेष अमे धर्यो, गुरु नवि दीगे कोय जोय ॥ गाम गम कुल जाति हुँ कहुँ, सुणजो हिजवर वातो सोय॥ ना॥७॥ बहा खंग तण। ए में कही, पहेली ढाल ए सोय ॥ रंगविजयनो शिष्य ते एम कहे, नेमनी आशा पूरण होय ॥y ना०॥ ए॥
ढाल बीजी. - श्रा चित्रशाली था सुख सज्यारे-ए देशी. | गुर्जर देश वंशवाडे सुणो गामरे, जरवाम वासो वसे अजिरामरे ॥ अम तणो पिता मांमण जरवामरे, बालां बाली गामर बहु धामरे ॥ १॥ बालां गासरनो घणो उजाणोरे, सकल कुटुंब सुखीयो तुमे जाणोरे ॥ अमो गाडर रक्षक गोवालरे, गामर सहु राखुं वनमालरे ॥२॥ एक दिवस पिता मांदो पमीयोरे, पुत्र सांजलो थमने ज्वर
॥ ११६
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
चडीयोरे ॥ बालां गाडर रक्षक तुमे जाउरे, सुखे करी घर निरवार । ॥३॥ मांगण घरढे एम शीख दीधीरे, तात श्राझा अमे मस्तक कीधीरे ॥ गामर रक्षण गया श्रमे बेयरे, वमो नाइ हुं लघु नाश् एहरे ॥४॥ वन माहीं गामर राखु बुं जेहरे, वनक्रीमा करीए वली ना बेहरे ॥कोउ वृद दोगे तिहां साररे, पाकां को दीगं अपाररे॥ ५ ॥ लघु नाश्ने कयुं में तामरे, गामर मेंढां राखो तुमे जामरे ॥ कोठ तणां फल खाजं एहरे, तिहां लगे राखो बालां तेहरे ॥ ६ ॥ कपीठ फल लावू घणां तुमनेरे, कुधा तणी वेदन जाये अमनेरे ॥ गामर वन नणी हांकी जायरे, तेम चारे जेम सुखीयां थायरे ॥ ७॥ मढां गलां चारी लावजे हारे, पडे श्रापण बे मलगुं तिहारे ॥ गामर हांकी चाल्यो वन मांहीरे, कोठ खाराने रह्यो हुं त्यांहिंरे ॥ ७॥ कोठ वृक्ष दीगे उत्तंगरे, चमवा शक्ति नहीं मुज अंगरे ॥ विचार्यों में वृक्ष घणो उंचोरे, चमाय नहीं हुं बुं नीचोरे ॥ ए ॥ कटी मांहींथी कातुं काढीरे, मस्तक निज हायेशुं वाढीरे ॥GL ठेलीने मूक्युं हाथेरे, चडी बेतुं कोग तणे माथेरे। ॥१॥ दांते त्रोमी खाधां घणां कोठरे, मुख जरायुं नवि श्रावे वेठरे ॥ जेम जेम माथे खाधुं कोउ ठेठरे, तेम तेम पेट जरायुं हेठरे ॥११॥ तृप्ति पाम्यां मुज मस्तक देहरे,
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
1122901
पछी विचार कर्यो में एहरे ॥ जाइ काजे फल घणां जोयेरे, दांते चुंटी नाख्यां भूमि सोयरे ॥ १२ ॥ देह बले वृक्ष धंधोल्यो जामरे, मस्तक लाग्यं श्रावी निज गमरे ॥ मायुं धम हुवा बेउ एकरे, पोटली कोठ बांध्यां वली बेकरे ॥ १३ ॥ कोठ गांठमो मस्तक लेइरे, वन मांहीं जाइ जोयो फरी तेहीरे ॥ जोतां थकां दीगे लघु चातरे, सूतो निद्राजर तेहशुं जातरे ॥ १४ ॥ साद करी उठाड्यो जाइरे, गामर क्यों बेरे किदां जाइरे ॥ लघु जाइ जणे बांधव तुमे सुणजोरे, कुधा दोष मुज उपन्यो गणजोरे ॥ १५ ॥ तरुवर तले सूतो हुं जामरे, मेंढां न जाएं गया कोण ठामरे ॥ बेहु जाइ मली जोयां वन मांहीरे, नहीं दीठां गामर अज त्यांहींरे ॥ १६ ॥ मन जयजीत हुवो हुं जामरे, लघु जाने कहुं हुं तामरे ॥ सांजल जाई श्रापणो पितारे, कोप करशे श्रापणने जी - तारे ॥ १७ ॥ माता श्रापणी जूठी बहु अबेरे, मंदिर पेसवा नहीं दीए पढेरे ॥ वारु विचार घटे बे एहरे, आपण जइए परदेश बेहेरे ॥ १८ ॥ पेट जरवानी परेज कीधीरे, | मस्तक मुंडावी दीक्षा लीधीरे ॥ कंठ कंठा काने मुद्रा कीधरे, हस्त दंग धर्यो हुवा | एम सिद्धरे ॥ १७ ॥ देश विदेशे निक्षाने जमतांरे, एणी परे काल बेदु निगम| तारे ॥ पाटलीपुरमां फरता याव्यारे, जोतां देखी भूमिका फाव्यारे ॥२०॥ वादशालाने
ཁྐྲི་
॥ ११७
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
देखी हरख्यारे, नेर घंटा वजामी परख्यारे ॥ कोडे वजाड्यां श्रमे वाजांरे, सिंहासन | बेठा न रही माजारे ॥ २१ ॥ द्विजवर वादी बोले बे एमरे, खोटा मांहेला दीसो बो | तेमरे ॥ माया कपटी जूठाबोलारे, तुम तोले आवे कोइ गोलारे ॥ २२ ॥ बहा खंग तणी ढाल बीजीरे, श्रोता सहुको कलेजो जीजीरे ॥ रंग विजयनो शिष्य कहे वारुरे, नेमविजय कहे श्रोता सारुरे ॥ २३ ॥
उदा.
मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो नाइ नह ॥ स्मृति पुराणे जे कयुं, नवि सांजस्युं तुमे कह ॥ १ ॥ विप्र वादी तव बोलीया, कहेरे किहां बे एम ॥ ढींक पाटुए करशुं जाजरा, जो खोढुं कदेशो तेम ॥ २ ॥ स्मृति पुराण जाण्यां घणां प्रमाण शास्त्र वली वेद || जोग जुगति वली जाखतां, छामे न धरवो खेद ॥ ३ ॥
॥
ढाल त्रीजी.
ad मुनिवर हिरण पांगरे - ए देशी.
वेषधारी मनोवेग बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचाररे ॥ साचां वचनरे मुजने बोलतांरे, | खेद नवि करवो लगाररे ॥ ५० ॥ १ ॥ दशमुख रावण राणो जाणीएरे, सबल शरीर अपार
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
लाखक
धर्मपरी ॥११॥
॥त्रिजुवन धणी थावाने कारणेरे, उपाय रचे तेणी वाररे ॥ द ॥२॥ईश्वरने नावे जो थाराधीएरे, तो श्रापे त्रिजुवन राजरे॥एम मनमां विचारीने गयोरे, हर प्रासादे करवा ।। काजरे ॥ द० ॥ ३॥ एक दिन ईश्वरनी पूजा करीरे, आराधे अतिही चंगरे ॥ नव मस्तक हस्ते बेदी करीरे, पूज्युं ईश्वरनुं लिंगरे ॥ द० ॥ ४ ॥ एक मस्तक राख्युं धड।
उपरेरे, नवि कीधी एह तणी पूजरे॥ईश्वर तो मुजने त्रसे नहींरे, केशुं करुंरे श्रबुजरे॥द० Son५॥नव शिरकमले शंकर अरचीयारे, लोचनकमल अढाररे॥ईश्वरे वरदान नहीं श्रापी-1
योरे, कशो वली करुं हुं विचाररे ॥ द ॥ ६ ॥रावणे निज बांहीं सघला बेदीयारे, नस काढी वली देहरे ॥ रावणहथो बांधी तेणे कीयोरे, नसा जाली गुंथी तेहरे ॥ दः ॥७॥ सारी ग म प ध नी सरस नलीरे, तान मान ध्यान उसासरे ॥ गीत गान गाये श्रति घणुं रे, उ राग बत्रीशे जासरे ॥ द० ॥ ॥ तांडव नाटिक नृत्य करे वलीरे, गीत तणो उबले घोषरे ॥ ईश्वर तव मनमां उलस्यारे, पाम्या अतिही संतोषरे ॥ द० ॥ ए ॥ चौद चोकमी राज नोगवोरे, मस्तक मलजो गमरे ॥ रामायण वाल्मिके ॥११ |एम बोलीयुरे, अन्य पुराणे वली तामरे ॥ द० ॥ १० ॥ विप्र वचन वलतुं बोलीयारे, |सांजल नाश् श्रम तणी वाचरे ॥ पुराण प्रसिद्ध रावण तणीरे, कथा कही ते साचरे
-
-
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ द० ॥ ११ ॥ नव मस्तक बेदी हस्ते करीरे, पूज्युं ईश्वर तपुं लिंगरे ॥ चौद चोकमी राज्य आप्युं खरुं रे, माथां वलग्यां तेह तणां अंगरे ॥ ५० ॥ १२ ॥ रावणहथो रा जाए करीरे, गीत गान नृत्य की धरे ॥ हर तुठ्या ते मे सुण्युं घणुंरे, पुराण मांही बे प्रसिद्ध || द० ॥ १३ ॥ मनोवेग तव एवं बोलीयोरे, सांजलो द्विजवर एहरे ॥ नव शिर चोट्यां जो रावण तणांरे, तो एक शिर लाग्यो मुज देहरे ॥ ० ॥ १४ ॥ मनोवेग वली एम बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचाररे ॥ तापस सघले ईश्वर श्रापी - योरे, लिंग पड्युं तेज साररे ॥ द० ॥ १५ ॥ ईश्वरे वलता कृषिवर श्रापीयारे, तापस लिंग पड्यां साररे ॥ पर मरणादिक दुःख टालीएरे, आपण सहीए अपाररे ॥ द | ॥ १६ ॥ अपर कथा पुराणनी सांजलोरे, विप्र करोरे विचाररे ॥ मस्तक मात्रज जे वली उपन्योरे, दधिमुख नामे कुमाररे ॥ द० ॥ १७ ॥ बघा खंरु तणी ढाल त्रीजीएरे, वात कही सुविचाररे ॥ श्रागल सहुको साजन सांजलोरे, नेमविजय कहे वि स्ताररे ॥ ० ॥ १८ ॥
डा.
श्रीकंठ नगर सोहाम, विप्र वसे तिहां एक ॥ तेहनी ब्राह्मणी रुपमी, दधिमुख
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम
॥१९॥
धर्मपरीसुत विवेक ॥१॥ मस्तक जणीयु केवल, देह नहीं ते सार ॥ दधिमुख वेद पुराण
जणे, नगर प्रसिक कुमार ॥२॥ पुण्य दान दिन दिन करे, पिता तणे घर रहे रंग ||॥ अगस्त्य ऋषि तव आवीयो, दधिमुख मंदिर चंग ॥३॥ मान सनमान दीधां घणां, अन्यादे करीय प्रणाम ॥ पवित्र मंदिर आज अम तणो, बोले दधिमुख जाम ॥४॥ विनय करी कहे पग धुर्ड, जोजन करो शषिराय ॥ जनम सफल होये अम तणो, तुम दरशने सुख थाय ॥५॥
ढाल चोथी.
आज हजारी ढोलो प्राहुणो-ए देशी. | अगस्त्य ऋषि बोल्या एशु, सांजलो दधिमुख तुमे वाण ॥ साजन मारा हे ॥ विनय विवेकी तुज समो, नहीं दीगे को सुजाण ॥ साजन मारा हे ॥ श्रोता सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ दधिमुख तुं ने कुंवारडो, नारी परण्यो नहीं सार ॥ सा| ॥ कुंवाराने घेर जमवो नहीं घटे, अघटतो दीसे आचार ॥ सा० ॥ श्रो० ॥२॥ दान देवा नर योग्य ते, जेहने घरे नारी होय ॥ सा ॥ स्त्री विना दान पुण्य नहीं, स्मृति श्लोक एहवो जोय ॥ सा ॥ श्रो० ॥३॥
॥११॥
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्लोकः-दानयोग्यो गृहस्थश्च, कुमारो न दमो नवेत् ॥
दानधर्मक्षमः साधु- गृहीणी गृहमुच्यते ॥१॥ एम कहीने अगस्ति गया, दधिमुख तव निज गेह ॥ सा ॥ श्रादर कयों विवाह तणो, मात तात परणावे बेह ॥ सा ॥ श्रो॥४॥ पिता कहे पुत्र तुमे सुणो, क-y न्या नवि दीए विप्र कोय ॥ सा ॥ परण्या विना जोजन तणो, दधिमुख निम लीधो. सोय ॥ सा ॥श्रो ॥५॥ मातपिता शोक उपन्यो, तेह नगरे विप्रज एक ॥ सा ॥ पुर्बलने धन प्राप्यु घणुं, तेहनी पुत्री परणी विवेक ॥ सा ॥ श्रो० ॥६॥ विवाह करी घरे श्रावीया, घरे अव्य नहींरे लगार ॥ सा ॥ चार माणस घर खरच घणो, पिता तव कहे तेणी वार ॥ सा ॥ श्रो० ॥ ७॥ दधिमुख सुत तमे सांगलो,। वित्त खरच्यु अमे विवाह ॥ सा ॥ अमे उद्यम हवे नहीं थाये, तुमे करो खर्च नि-IN हि ॥ सा ॥ श्रो० ॥ ॥ दधिमुख कहे कामनी सुणो, मातपितानो अपमान ॥lal सा० ॥ घर रहेवा घटतुं नथी, जो होय हश्मामा सान । सा० ॥ श्रो० ॥ ए॥ दधिमुख शिर सीके धर्यु, तेह नारी लेइ चाली ताम ॥ सा ॥ देश नगर गामे सां-| चरे, पतिव्रता नारीनो नाम ॥ सा ॥ श्रो० ॥ १० ॥ जरतार जगति घणी करे, सती
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मप
॥ १२० ॥
| जाणीने सहु लोक ॥ सा० ॥ धण कण दान दीये घणुं, सुख पाम्यां दोये गयो शोक ॥ सा० ॥ श्र० ॥ ११ ॥ जमतां जमतां उजेली गया, इतनी शाला मोकार ॥ सा० ॥ जुवारी घणा जुवटे रमे, तिहां लावी तेह जरतार ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १२ ॥ सीकुं खुंटे बांधीने गई, सती हाट शेरी जिक्षा काज ॥ सा० ॥ एहवे जुखारीने फुफ दुवो, खड्ने हण्यो दूतराज ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १३ ॥ शिर तुटी भूमिए पड्युं, सीकुं बेदाएं वली ताम ॥ सा० ॥ दधिमुख पुण्य प्रगट थयुं, मस्तक लाग्युं धड ठाम ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १४ ॥ अन्य कबंध शिरपर तणुं, दधिमुख निपन्यो एह ॥ सा० ॥ विप्र कहो केम नवि मिले, मुज शिर मुज तो देह ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १५ ॥ बहा खंडनी ढाल | चोथीए, विवेक ती कही वात ॥ सा० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजयने सुख सात ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १६ ॥
उदा.
ब्राह्मण कहे जोगी सुपो, सत्य वचन तुम एह ॥ स्मृति पुराणे श्रमे सांजस्युं, खोटुं कहीए केम ते ॥ १॥ खग कहे अपर वली सुणो, रावण लाव्यो हरी सीत ॥ ह नुमंत अंगद मोकल्यो, रामे विस्टाली प्रीत ॥ २ ॥ वाली पुत्र अंगद जलो, बोल्यो
खंग
॥ १२०
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
मोटा बोल ॥ रावणे से मारीयो, खड्गे कीधो बे तोल ॥३॥ अंगद फाडी दोय फाडीयां, हनुमंते लीधां बेद ॥ वनमा आणी सांधीयां, लाग्यो तेहनो देह॥४॥ पुनरपि ते वली जीवीयो, अंगद अपूरव जेह ॥ माहरूं मस्तक मुज धड चड्यु, केम न मले मुज तेह ॥५॥
ढाल पांचमी.
चोपाश्नी देशी. | अपर कथा ब्राह्मण तुमे सुणो, संबंध कहुं पुराण तुम तणो ॥ दानवपति ते दशरथ नाम, बे नारी तेह्ने अनिराम ॥१॥ पुत्र पाखे ते दुःखीयां थया, ईश्वर जणी ते त्रणे गयां ॥ महादेवनी मांमी जक्ति, आराधे पूजे बहु जुक्ति ॥२॥ महादेव तव तुव्या तेह, पुत्र होशे तुमारे देह ॥ मुज लामु चमीयो ने एक, लक्षण नामनी करो विवेक ॥३॥ में वरदान दीधो ले आज, पुत्र होशे तुमारे काज ॥ घर निज लश् गया लाडु तेह, बे फामी कीधो वली एह ॥ ४ ॥ नामनी बेहुने वेंची| दीध, जार्याए ते जहण कीध ॥ गर्न रह्या बेहुने वली ताम, नव मास वाडा गया ते जाम ॥ ५॥ एके दिवसे ते बेहु जण्या, अरधो अरध अंग तेहज नएयां ॥ जश
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२१ ॥
0
संजलाव्यो दशरथ तात, पुत्र एक दोय खंकज जात ॥ ६ ॥ बापे दीधी श्राज्ञा तेह, लेइ नाखो वनमां एह ॥ माताने तव उपन्यो नेह, जोर करी संधाड्यो देह ॥ ७ ॥ जरासंध परव्यो वली तेह, जोरे बंधाणो तेहज देह ॥ जरासंध ते नामज धर्यु, नारायणाशुं वेरज कयुं ॥ ८ ॥ सबल संग्रामे ते गुजार, शरीर मल्युं बे खंग अपार ॥ तेम मुज मायुं माहरे देह, एह वातनो नहीं संदेह ॥ ए ॥ अपर वली कहुं सांजलो वात, शास्त्र पुराणे तेह विख्यात ॥ ईश्वर मोटो सबलो देव, पारवती नारीशुं देव ॥ १० ॥ उमीयाने जोगवतां गयां, सहस वरस देवतानां थयां ॥ सुर सघलाने चिंता थाय, केम करीशुं आपण जाय ॥ ११ ॥ पुत्र उपजशे एहनो जेह, सबल संतापी | होशे तेह || देव दानवने करशे ताम, जगत् जगमशे ते महा पाप ॥ १२ ॥ तो आपण हवे करीए एम, जोग दिजोग उपाइए तेम ॥ देव मली विचार ए कीध, गोरी बांधवने आज्ञा दीध ॥ १३ ॥ विश्वानर तुमे विश्वना देव, सुर नर करे तुमारी | सेव ॥ पार्वतीना जाइ जणी, काज यावो सहु देवज तणी ॥ १४ ॥ ईश्वर जोग करो अंतराय, तो सहुने सुख दर्षज थाय ॥ अग्निदेव तेणे मान्यो बोल, उमीया ईश तिहां गयो निटोल ॥ १५ ॥ जइ खोंखारो बाहीर जाम, विघन उपन्युं वीर्य खलतां
खंग
॥ १२१
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
ताम ॥ पार्वती उठी तेणी वार, जाइ देखी लाजी अगर ॥ १६ ॥ईश्वरने बहु कोपज चड्यो, लष्टि मुष्टि विश्वानर पड्यो ॥ साला माटे मार्यों नहीं, मुख धररे वीर्य मूकुं सही ॥ १७ ॥ वीर्य पृथ्वी रेला सहु, ते माटे मुख धररे कडं ॥ तव विश्वानरे मुख ते धर्यु, उदरे वीर्य सघj सांचयु ॥ १७ ॥ वीर्य बले तव कोढी थयो, अग्निदेव ते दुःखीयो जयो ॥ इषिपत्नी तव गंगा जश, स्नान करी थावे ते सही ॥१५॥ नारी कार्तिका तेहनो नाम, अग्नि सगमीए तापे जे ताम ॥ वीर्य काढ्यु मुख माही थुक, योनि संचायु मांही फुक ॥ २० ॥ गर्न वाधे हवे नारी तणो, इषिए जाएयो| नहीं थापणो ॥ पेट माहीथी काढी करी, सर्वण वनमा मूक्यो धरी ॥१॥ गर्न तणा कटका तेह, एकग मेली कीधो देह ॥ कार्तिकेय हुवो तस नाम, षड्जनमा बीजो श्रनिराम ॥ २५ ॥ षड्मुख नाम कहे ते सहु, षड्मातुर जाणे ते बहु ॥ ब कटका तस देहज मले, तो मुज शिर धडसें नवि मले ॥ ३ ॥ हा खंडनी पांचमी ढाल, सांजलजो तमे बाल गोपाल ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजयनो, वयण सहहे ॥२४॥
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
गर्मपरी
उदा.
। १२॥
अपर कथा तुमे सांजलो, गोरीनंदन गणपत ॥ पार्वती एक अवसरे, महान करवा निमित्त ॥१॥ अंग मेल उतारवा, सखी संघाते बेठ ॥ अंग उगटणो घणो, पुरुष निपायो तेठ ॥२॥ गणेश रूप करी थापीयो, जीवतो कीधो तेह ॥ खड़ग थाप्यो निज हाथमें, समजावे वली जेह ॥३॥ बेसाड्यो ते बारणे, चोकी करवा काज ॥ अवर म देजे श्राववा, नावा बेठी श्राज ॥४॥ईश्वर आव्या उतावला, |बेगे दीगे तेह ॥ अन्योअन्य पूजे फरी, कोण तुं माहरे गेह ॥५॥
ढाल बही.
. चोपाश्नी देशी. | गणेश बोल्यो तव कोण जे तुं, घरमा पेसण नहीं देख ॥ तव ते लाग्यो जुञ्ज
अपार, गणेश ईश्वर फुजे फुकार ॥ १॥ तव ते ईश्वर कोपे करी, खड़गे मायुं मस्तक धरी ॥ उमी गडे मस्तक ते तएं, ज्यासी जोजन पोच्युं घj ॥२॥ ईश्वर तव श्राव्या घर मांहीं, पार्वती नाहे जे त्याहीं ॥ केम स्वामि श्राव्या हां ईश, झारपाल मार्यों में रीस ॥३॥ पार्वती बोल्यां जगदीश, एह पाप शुं कीधुं श ॥ पुत्र माहरो
॥१२
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
मार्यो तुमे, नहीं बोलुं हवे तुमशुं मे ॥ ४ ॥ पुत्र हत्या लागी तुज हाथ, ए अघ|टतुं कीधुं काज ॥ पुत्र हत्यारा घरथी जाय, काला मुखवालो केम थाय ॥ ५ ॥ जो जीवंतो करशो एह, तो तुमशुं धरीशुं स्नेह ॥ ईश्वर तव आवी जोये बार, धम दीतुं | एकलुं तेणी वार ॥ ६ ॥ खेत्रपालने तव दीधी शीख, जोइ लावो गणपतिनुं शीश ॥ खेत्रपाल जोवे जग मांहीं, नवि देखे मस्तक वली कयांहीं ॥ ७ ॥ गम गम जोयुं ते मुंग, नवि दीसे गणपतिनुं तुंम ॥ मुत्र हस्तीनी आणी सुंढ, चोडी गणेश तणे जे रुंक ॥ ८ ॥ गजवदन दुवो तसु नाम, जीवतो दुवो तेहज ताम ॥ मिथ्याति सह पूजे लोक, एह वचन साचां के फोक ॥ ए ॥ विप्र सांगलो एहज साच, अमारी नहीं मानो तुमे वाच ॥ आपणुं वचन आपणने गमे, बाकी सहु ते फोके धमे ॥ १० ॥ शूद्र अन्य ग्राह्य एम कहे, घृत पक्क ते सहुने ग्रहे ॥ द्विजवर सदु ते कांखा थया, मौन धरीने वलता रह्या ॥ ११ ॥ ब्राह्मण एक वोल्यो वली एम, धूर्त बेहु दी सो बो तेम ॥ तुमे कह्या ते मान्या सहु, एक संदेह बे अमने बहु ॥ १२ ॥ कोट उपरथी खाधां मुंग, देतुं केम धरायुं क ॥ पर खाय ने पर केम भ्राय, एह वात केम घटती श्राय ॥ १३ ॥ मनोवेग तव बोल्यो वाण, सांजलो वाकव तुमे अजाण ॥ इह लोके विप्र
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
१२३ ॥
जोजन करे, परलोके पूर्वज तृप्ति धरे ॥ १४ ॥ मातपिता सहु मुवा घर्षा, चोराशी लाख जोनिए जयां ॥ काल घणो दुवो बे तेह, न जाणीए अवतरीया केद ॥ १५ ॥ अर्ध पक्षना पंदर दीस, संवबरी बमासी प्रीस ॥ ब्राह्मण सगां जमे बे सहु, ते पामे पूरवज वली | बहु ॥ १६ ॥ पितर जवांतर पाम्या जेह, विप्र सगां जमतां पामे ते ॥ तो मुज माथु कोठां खाय, मारुं पेट कहो केम न नराय ॥ १७ ॥ बही ढाल खंग बहा तणी, एहवी वात ते द्विजवर सुणी ॥ रंग विजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजयनी वात एम रहे ॥ १८ ॥
डदा.
ब्राह्मण सहु हाथ जोकीया, बोले वचन अनाथ ॥ जीत्यो जीत्यो मुखथी वदे, दार्या श्रमे जगनाथ ॥ १ ॥ तुम साथै श्रमे बोलतां, नथी पुरवतो कोय ॥ साचा संघाते केम घटे, स्मृति पुराणे होय ॥ २ ॥ वाद जीती वनमां गया, मित्र बेहु आणंद || पवनवेग कहे जाइ सुणो, मिथ्या पुराण कह्यो वृंद ॥ ३ ॥ ते में खोटां जाणीयां, जिनवचननो नहीं जेद ॥ तेह कथा कहो निरमली, मिथ्या कथा | करो बेद ॥ ४ ॥
खंग
॥ १२३
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल सातमी श्रांगण वावु एलचीरे, पमवे नागरवेल, धणरा ढोला-ए देशी. मनोवेग तव बोलीयोरे, सांजलो मित्र सुजाण ॥ मतरा लोजी ॥ रावण श्रादे || देश कहुँरे, जिन जाषित सुख खाण ॥ म॥१॥ मानो मानोरे सुगुण कहीयो
मानो, माहारी एक अरदास ॥ म ॥ ए श्रांकणी ॥ मेघवाइन अनुक्रमे हुवारे, लंकाजापति नरेश ॥ म ॥ संख्या पार न पामीएरे, कहं शास्त्र लवलेशरे॥म०॥ मा॥२॥y रतनश्रवा लंका धणीरे, केकै जसी राणी राय ॥ म ॥रावण पुत्र ते श्रवतर्योरे, सुर नर सेवे पाय ॥ म०॥ मा०॥३॥ मय विद्याधर पुत्री जलीरे, मंदोदरी रूपनी खाणी॥ म ॥ ते श्रादे रावण परणीयोरे, अढार सहस्र घर राणी॥म०॥ मा०॥४॥ इय गय रथ सुजट तणोरे, चक्रीनो अरधो मान ॥ म ॥प्रतिनारायण वाग्मोरे, जिन पूजे दीये दान ॥ म॥ मा० ॥५॥ हार प्रनावे नव मुख होयरे,मुलघु एकज देह ॥ म०॥ दशमुख नाम हारे करीरे, लोक मांहीं हुवो तेह ॥ म०॥ मा० ॥६॥ राम नारी सीता हरीरे, राम रावण हुवो संग्राम ॥ म॥ रावणर्नु दल जांजीयुरे, राम सुजटे फेज्यो गम ॥ म ॥ मा॥ ७॥ लक्ष्मणे मार्यो लंकापतिरे, नरक चोथी
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १२४ ॥
गयो तेह ॥ ० ॥ अनागत चोवीशीए जिन होशेरे, पंच कल्याणक गेह ॥ मा० ॥ ८ ॥ जैन रामायण मांही कहीरे, विस्तारपूर्वक कथा राम ॥ दधिमुख कथा तिहां जाणजोरे, बीजा अधिकार मांही ताम ॥ म० ॥ मा० ॥ ए ॥ ईश्वर लिंग तणी कथारे, बीजे अधिकारे कह्यो नेद ॥ म० ॥ जिनमत शिवमत बेहु तणेरे, ते जोइ करजो बेद ॥ म० ॥ मा० ॥ १० ॥ जरासंधनी उत्पत्ति सुणोरे, संखेपे कहुंरे विचार || म० ॥ मगध देश राजग्रहीरे, नृप हुवा संख्या न पार ॥ म० ॥ मा० ॥ ११ ॥ हरिवंशे मुनिसुव्रत दुवारे, तेहज अनुक्रमे जाण ॥ म० बृहद्रथ राजा रुयमोरे, श्रीमती राणी गुणखाण ॥ म० ॥ मा० ॥ १२ ॥ जरासंध सुत उपन्योरे, अरध चक्री तुमे एइ ॥ म० ॥ कालिंदी आदि करीरे, सोल सदस | गुण गेह ॥ म० ॥ मा० ॥ १३ ॥ कालयवन आदे करीरे, पुत्र हुवा महा शूर ॥ म० ॥ अश्व करि रथ सुजट जलारे, त्रिखंड लक्ष्मी जरपूर ॥ म० ॥ मा० ॥ १४ ॥ श्र विद्याधर प्रतिहरि, मूचर नवमो जरासंध ॥ म० ॥ कुरुक्षेत्रे संग्राम हुर्जरे, नारायो बेद्यो कंध ॥ ० ॥ मा० ॥ १५ ॥ त्रीजी पृथ्वी गया ते दोइरे, होशे तीर्थंकर | देव ॥ म० ॥ पवनवेग विचारजोरे, शास्त्र कयुं में संखेव ॥ म० ॥ मा० ॥ १६ ॥
म० ॥
म० ॥
खंग
॥ १२४
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
सातमी ढाल बहा खमनीरे, सुणजो सहु नर नार ॥ म० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमने हर्ष अपार ॥ म ॥ मा० ॥१७॥
उदा.
गणेश को देहमेलनो, केम श्राव्यो जीव मांही ॥ सप्त धात केम नीपजे, समजावो मुज श्रांही ॥१॥ मनोवेग कहे सांजलो, गणेश संबंध अधिकार ॥ जिनशासन मतमां घणो, सुणजो ते सुविचार ॥२॥ अयोध्या नगरी अनोपम कही, राम-y चंड नामे राय ॥ तेहनो हस्ती मद जों, मुनि पुंठे मारण धाय ॥ ३ ॥ समीपे । श्राव्यो जेहवे, मुनि देखी उपसंत ॥ पूरव जव मुनीश्वरे कह्यो, सुणतां उपनी खंत | ॥४॥ जातिस्मरण गज उपन्यो, वैराग पाम्यो श्रनिराम ॥ मुनि पासे व्रत उचर्या, छादश जिनमत ताम ॥५॥ फासु आहार करे निरमलो, फासु जल पीए ताम॥ लोक मांहीं जस वाप्यो घणो, बेगे रहे एक गम ॥६॥ धर्मथी सामी सहु कर्या, थाप्यो । विनायक नाम ॥ संयम पाली निरमलो, गज मरी देवलोक गम ॥ ७॥ ते लोक मांहीं व्यापीयो, गणेश विनायक नाम ॥ विपरीत रूप करी सहु, पूजे राखी धाम |॥ ॥ सिकि बुद्धि नामे नारी दो, लख लाल दो पुत्र ॥ मूढ मिथ्याति मानवी,
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥१५॥
मागे घरनां सूत्र ॥ ए॥ श्रढार दोषधी वेगला, वीतराग गुणवंत ॥ तेहने पूज्ये पामीए, सुगति सुख अनंत ॥ १० ॥ पवनवेग तुमे सांजलो, कार्तिकेय वृत्तांत ॥जिनवचने जेम जाखीयुं, एक मना सुणो शांत ॥ ११ ॥
ढाल आठमी. सुविवेक विचारी जुर्म, जुङ वस्तु खनाव-ए देशी. | कार्तिकपुर नगर नबुंजी, अगनिश्श नामे राय ॥ विमलमति ते जामनीजी,
उमीया सरखी काय ॥ पवनवेग जाणजो जैन विचार, करजो मिथ्यात परिहार, पव|| नवेग ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ कृतिका पुत्री रूयमीजी, रूपे रंज समान ॥ अष्टानिका| व्रत आचरीजी, महोत्सव नृत्यज ग्यान ॥ प० ॥२॥श्रावक साथे सहु घणाजी, राजा गयो वन मांहीं ॥ नवण कीयां जिनवर तणांजी, उपवास अष्टमी त्यांहीं ॥ प० ॥३॥ कार्तिका गंधोदक लेजी, पिता जणी आवी ताम ॥ तात वांदो ए निरमझुंजी, शेष लेजो जिन खाम ॥ प०॥४॥ शरीर देखी पुत्री तणुंजी, रूपे मोह्योरे राय॥ || कामबाणे करी तामीयोजी, नृपचित्त विह्वल थाय ॥१०॥५॥राजसजाए श्रावी करीजी,
खट् दर्शन तेमी लोक ॥शैव सांख्य बौध पूढीयाजी, जट्ट सन्यासीना थोक ॥१०॥६॥मुज
॥१२५
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
मंदिर रतन उपज्जी , कहेजो केनुरे तेह ॥ प्रत्येक पंच दरशनी कहेजी, राजा तj होय एह ॥ प० ॥ ७॥ मुनि पूज्या जिन दरशनीजी, कहो जति केहनो स्त्रीरत्न ॥ मुनिवर बोल्या नृप सुणोजी, जैन मारग कह्यां यत्न ॥ प० ॥ ७॥ चौद रतन विचार घणोजी, सात चेतन शुज होय ॥ अचेतन सात जाणजोजी, घर उपन्यु स्त्रीरतन जोय ॥ ५० ॥ ए ॥ वचन सुणी नूप कोपीयोजी, निंया तिहां मुनि तेह ॥ देशे न रहे श्रम तणेजी, जाजो सहु जैन लेह ॥ प० ॥ १०॥ मुनिवर तिहांधी चालीयाजी, दक्षिण देश मोकार ॥ पापी राजा परणीयोजी, पुत्री कीधी घर नार ॥ प० ॥११॥ अग्नीश कामांधो थकोजी, पुत्रीशु जोगवे लोग ॥ गर्न रह्यो कृतिका उदरेजी, जनक | तणे संजोग ॥ प० ॥ १२ ॥ पूरे मासे सुत जनमीयोजी, कार्तिकेय तेहy नाम ॥y रूपे सहु लोक रंजीयाजी, महोत्सव कीधो अजिराम ॥ १० ॥ १३ ॥ पुत्री जणी एक निरमलीजी, वीरमति नामे सार ॥ रूप सौजागे पागलीजी, कार्तिकेय सम मनोहार
प० ॥ १४ ॥ क्रौच नाम नरपति जलोजी, रोहीम नयरनो राय ॥ वीरमती परणावी तेहनेजी, महोत्सव करी जगह ॥ १० ॥१५॥ क्रौच परणी निज गामे गयोजी, वीरमतीने लेश ताम ॥ कार्तिकेय जणवा मूकीयोजी, गुरु पासे पढी शास्त्र जाम
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग
बर्मपरी प० ॥ १६ ॥ नीशालीश्रा ते अनेक जणेजी, सहु साथे रमे वली तेह ॥ एक दिवस
सुखमी आवीजी, मोशालथी घणी जेह ॥ प० ॥ १७ ॥ लाडु खाजां अति घणांजी, ।१२६॥
| मेवा मीगर अपार ॥ वस्त्र आजूषण उपतांजी, पहेयाँ सघले तेणी वार ॥०॥१७॥ || सुखडी वेहेंची श्राप आपणीजी, नीशालीए अनेक ॥ कार्तिकेय ना तुमे लेजी, |मोशालनी ने प्रत्येक ॥ प० ॥ १ए ॥ कार्तिकेय कोमामणोजी, वर्ष चौदनो कुमार ॥ |घरे श्रावी वेगे पूजीयुंजी, मुज कहो माय विचार ॥ प० ॥ २० ॥ अमने मोशालनी सुखमीजी, नवि आवे कांश माय ॥ अश्रुपात माताए कर्योजी, मन मांहे दुःख घj थाय ॥ प० ॥१॥ कृतिका बोले सुत सांजलोजी, कर्म काणी कहुं केम ॥ घाट न आवे कहेतां घणुंजी, पूछीश मां वली तेम ॥ प० ॥ २२ ॥ सुत बोल्यो माता सुणोजी,
तो जमशुं अमे आज ॥ जेवु होय तेहबुं कहोजी, मुज आगल डोमी लाज ॥ पण Lal ॥ २३ ॥ माता कहे तुज तणो पिताजी, मुज बाप तेहज होय ॥ अन्याय कीधो
राजाए घणोजी, बाप बेहुनो सोय ॥ ५० ॥ २४ ॥ हा खंडनी आग्मीजी, ढाल कही सुविशाल ॥ रंगविजयनो शिष्य कहेजी, नेमविजय मंगल माल ॥ १० ॥ २५ ॥
॥१६
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. कार्तिकेय नंदन कहे, सांजलो मोरी माय ॥ काम निवार्यों को नहीं, एहवो जे अन्याय ॥१॥ श्रघट मान एणे कीयो, को नहीं हुवो तव धर्म ॥ पापी अन्यायो। जीवमा, ते बांधे निज कर्म ॥२॥ मात कहे सुत सांजलो, मुनिवर जे गुरुराय ॥ | तेणे घणी परे प्रीव्यो, तोही कीधो अन्याय ॥३॥
दाख नवमी.
वर बाघेलो वामीए उतर्यो-ए देशी. कार्तिकेयरे कहे माता सुणो, किहां डे मुनिवर वली तेहरे ॥ जननी बोखेरे सुतजी। सांजलो, जैन मुनिवर हता जेहरे॥साजन सहुकोरे सुणजो एक मना ॥ ए श्रांकणी ॥ १॥ तुज पिताएरे ते निरघाटीया, हांथी गया दक्षिण देशरे ॥ जिहां तुज तातनी घाण फरे नहीं, लोक सहु जिनधर्म शीशरे ॥ सा ॥२॥मात कहो ते श्राचार केहवो, जेहनो श्रावो निरमल धर्मरे ॥ राजा अन्यायेरे जेणे वारीयो, पूषण रहिस| करे ने कर्मरे ॥ सा० ॥३॥ कुमरने मात कहे तुमे सुणो, चोवीश परिग्रहयी ले
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥२७॥
पूररे ॥ निग्रंथ साचा ते गुरु जाणीए, मोह मद टालण ते कह्या शूररे ॥ सा० ॥४॥lal उघो मुहपत्ति माला कर धरे, तप जप संजमनां ते गेहरे ॥ दोष बेंतालीश टाली थाहार करे, अंतराय बत्रीश पाले तेहरे ॥ सा ॥ ५॥ वचन एहवारे सुणी माता तणां, वैराग उपन्यो सुतने अंगरे ॥ क्षमा करीने तिहाथी नीकट्यो, मुनिवर गुरुने । जोवा रंगरे ॥ सा ॥६॥ दक्षिण देश कार्तिकेय गयो, वांद्या जश्ने मुनिना चरणरे
दीदा मागे श्रीगुरुनी कने, संसारसागर खामि तरणरे ॥ सा ॥७॥ गुरु तव बोल्या व तुमे सांजलो, दीक्षा मारग उक्कर तेहरे॥तुमे दो बालक लघुमतिना धणी, नवि संचवाए साधुपंथ जेहरे ॥ सा॥ ॥ श्रति आग्रह करी संजम लीयो, चारित्र थाचर्यु पांच प्रकाररे ॥ गुरुनी सेवा शास्त्र जणे घणां, राग द्वेष तजीने अहंकाररे ॥ सा ॥ए॥ कृत्तिका नारी पुत्र विजोगथी, भारत ध्याने तजीने देहरे ॥व्यंतर गतिमां जीव जर उपन्यो, सुख विलसे तिहां तेहरे ॥ सा ॥ १० ॥ विहार करंता कार्तिकेय, मुनि, रोहिम नगरे पोत्या जामरे ॥ ज्येष्ठ मास अमावास्याने दिने, पारणुं करवाने ते
करवान त ॥१७॥ तामरे ॥ सा ॥ ११॥ र्यापथिकी नूमिका शोधता, मौनव्रती मुनि श्रधीशरे ॥ कोच राजानी सप्त नूमि तले, सुतो राणी खोले शीशरे ॥ सा॥१२॥ नगिनीए ना |
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिहां देखीयो, मुनिवर साधुनो रूपरे ॥ना जाणीने मोह व्यापीयो, उसीसे मस्तक धरी नूपरे ॥ सा० ॥१३॥ वीरमती राणी हेठी उतरी, बांधवने कर्यो रे प्रणामरे ॥ थालिंगन देश घणुं नीमीयो, पोहोंचो ना आपणे धामरे ॥ सा ॥ १४ ॥ क्रौच | राजा तिहां तव जागीयो, राणी किहां गई कहो बाजरे ॥ पुष्ट मंत्री तिहां तव एम जणे, जु जु राणीने महाराजरे ॥ सा ॥ १५ ॥ खमणो वलग्यो तुम राणी जणी, हस्ते करी देखाडे तेहरे ॥क्रौच राजाए कोपी धनुष्य धर्यु, बाणे नेद्यो मुनिवर देहरे । ॥ सा ॥ १६ ॥ विषम बाण लाग्युं मुनिने घj, नूमि पडीयो मुनिवर खामरे ॥ राग केष मोह मान परिहरी, मन धरी जिनवरना गुणग्रामरे ॥ १७ ॥ वीरमती ते देखी उःख जयो, नाइ तणो उपन्यो सोगरे ॥ विलाप करे अति घणुं वलवले, धाजो सहु श्रावक लोकरे ॥ सा ॥१०॥ बहा खंगनी नवमी ढालमां, सुणजो सहुको बाल-| गोपालरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एणी परे नणे, नेमविजयने हर्ष उजमालसा॥
उदा.
वीरमति विलाप करे अति, मुख करे हाहाकार ॥ बांधव ए मुज सोहामणो,
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १२८ ॥
मुनिवर ए व्रतधार ॥ १ ॥ बन जाइ उगे तमे, मुज घर बेजो श्राहार ॥ निराधार हुं बेनमी, एक बार दी श्रधार ॥ २ ॥ जो वीरा तमे बोलशो, तो दुःख सुख कहुं वात ॥ पापी राजाए शुं कर्यु, हणीयो मारो जात ॥ ३ ॥ लघु वेशे संयम ग्रह्मो, मूकी | माय ने बाप ॥ राज रिद्धि सुख परिहरी, खम्यो परिसह ताप ॥४॥ मास पारणे पहोत्या मुज घरे, बाणे वींध्यो शुभ अंग ॥ वेदना व्यापी हशे घणी, दैव कीधो रंगनो जंग ॥ ५ ॥ ढाल दशमी.
aa कलाणी जर घडो रे - ए देशी.
एम विलपती कूटे हैयुं हे, शिर फोडे पाडे पोक || 'हाहाकार दुवो घणो हे, | मलीया नगरना लोक ॥ साजन सांजलो हे, कर्म तणी ए वात ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ महीपति पासे श्रावीयो दे, जाण्यो सहु वृत्तांत ॥ काम कीधो में पाकु ए, दुःख धरेरे एकांत ॥ सा० ॥ २ ॥ पापी मंत्रीए आज तो हे, कराव्यो वृथा पाप ॥ नरक निदान बंधावीयो हे, मुनि हत्यानो संताप ॥ सा० ॥ ३ ॥ व्यंतरीए तव जाणीयो हे, पुत्रने कष्ट अपार ॥ वेगे करी यावी तिहां हे, पूरव माय गणधार ॥ सा० ॥ ४ ॥
खंम
॥ १२८
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
रूप रच्युं मयूर तणुं हे, उजी कार्तिकेय पास ॥ मूर्छा पानी मुनिवर पड्यो दे, लीधो वृष्टि निवास ॥ सा० ॥ ५ ॥ मयूर चाल्यो सामी लेने दे, वन मांहीं बे प्रासाद ॥ शीतल जिनवरदेवनो दे, दीठे टले विषवाद ॥ सा० ॥ ६ ॥ तिहां मूक्यो जति निरमलो हे, श्रावक करे बहु सेव ॥ मूर्छा गइ सावधान या हे, मुनि ध्याये जिनदेव ॥ सा० ॥ ॥ ७ ॥ करीय संन्यासी मन चिंतवे हे, अनुपेक्षा ते वार ॥ पवनवेग तुमे सांजलो दे, जावना संखेप विचार ॥ सा० ॥ ७ ॥ धण कण शरीर थिर बे दे, नहीं थिर कुटुंब परिवार ॥ राज रिद्ध सहु अथिरा दे, जेसो वीज ऊबकार ॥ सा० ॥ ए ॥ शक सचीवने राखवा हे, समरथ नोहीं स्वष्ठ ॥ मरण काले प्राणीने जथा दे, सिंह धर्यो मृग छ ॥ सा० ॥ १० ॥ चार गति जीव दुःख सहे हे, कहेतां न बहुं पार ॥ द्रव्य खेत्र जव जावे जम्यो हे, काल ते पंच संसार ॥ सा० ॥ ११ ॥ चार गते जीव एकलो हे, साथे नहीं तिदां कोय ॥ दुःख सुख सहे ते एकलो हे, चोराशी लाख जोनि जोय ॥ सा० ॥ १२ ॥ अन्य कलेवर अन्य जीवडो हे, अन्य सहु परिवार ॥ जनम जनम ते जुजुया है, मोह म करशो लगार ॥ सा० ॥ १३ ॥ शरीर छाडे सात धातुमें हे, मल मुत्र तणो नंगार ॥ रेत मे रुधिरे उपन्युं हे, अशुचि देह मोजार ॥
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
११
॥
सा॥१४॥ मिथ्या मत अविरत कषायना दे, तेहना नेद अपार ॥ पन्नर प्रमाद वली खंग जोगना हे, कर्माश्रव ए धार ॥ सा॥ १५ ॥ समकित सुधे संजम हे, सुमति गुपति वर धर्म ॥ परिसर संवर उपजे हे, सुगति मुगति होय शर्म ॥ सा ॥१६॥ चार ग-1 तिना जीवने हे, निर्जरा होये सविपाक ॥ मुनिवर स्वामी तपबले हे, निर्जरा करे । अविपाक ॥ सा ॥ १७ ॥ अधो मध्य ऊर्ध्व कह्यो हे, त्रण प्रकारे लोक ॥ उंचो राज चौद तणो दे, त्रणसें त्रितालां थोक ॥ सा॥१७॥ नरजव दुलहो जाणवो हे, फुलहो, श्रावक धर्म ॥ रतन त्रय व्रत फुलहो हे, मुगति गमन जिहां शर्म ॥ सा॥१॥ दमा मार्दव आर्जव गुणे हे, संजम शौच तप त्याग ॥ सत्य निग्रंथ व्रत पालवू दे, एह धर्म तणा दश नाग ॥ सा० ॥२०॥ ढाल दशमी बहा खंगनी हे, सांजलजो सहु कोय || रंगविजय शिष्य एम कहे हे, नेमविजय सुख होय ॥सा॥१॥ उदा सोरठी.
॥१२॥ कार्तिकेय मुनि नाम, शुज ध्यान मनमां धरी ॥ श्रातम ध्याये सुख, होय सुगति || मुगति जीवे वरी॥१॥ वेद्यो नेद्यो नवि जाय, तेह शरीर बेदन नेदन सहे ॥ अप्पा
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
नप्पे जावजो तेम, जेम पासे मुगति रहे ॥२॥ पाषाण हेम घृत दूध, तिल मांही जेम तेल रह्यो॥करमे वींव्यो ए जीव, शरीर मेल जिनजीए करो ॥३॥
ढाल अगीआरमी. ___ मोरा साहेव हो श्री शीतलनाथके विनति सुणो एक मोरडी–ए देशी.
पुरुषाकारे हो ध्याउँ श्रातमा सारके, शरीर मांहे तेज पुतलो ॥ जेमं कोस मांहि | हो रहे तरवारके, तेम श्रातमा अति उजलो ॥१॥ सासो सासे हो रंधी करी ताम| के, दशमे ऽधारे वली लीजीए ॥ टालीए एम हो संकल्प विकल्प विचारके, मन निश्चल दृढ कीजीए ॥२॥शुध बुध हो चेतन चिदानंदके, केवलज्ञान सरूप २ ॥ शुद्ध चिड़प हो हुँ वली सिझके, परम जोति सुख कूप डे ॥३॥ एम चिंतवी हो श्रातम | ध्यानके, कार्तिकेय स्वामी मन रली ॥ समाधिमरणे हो साधी हुवो कालके, सर्वार्थ सिकि विमन फली ॥४॥ तेत्रीश सागर हो जोगवी थापके, मध्य लोके नरजव सही॥ कर्म हणीने हो लही केवलज्ञानके, शीवरमणे वरशे सही ॥५॥ देव सहु तिहां हो थाव्या ततकालके, पूजा महोबव घणो कर्यो ॥ लोक सहुए हो ए श्रादयु| तीर्थके, प्रसिद्ध सामी महिमा विस्तयों ॥६॥ माता व्यंतरी हो तेणे उपाइ व्याधके,
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्म प०
॥ १३० ॥
| लोक पमा घणी करे || श्रावे जात्राए हो जे नर नारके, तेदनां रोग संकट हरे ॥ ७ ॥ मयूरवाहनो हो स्वामी कार्तिकेयके, नाम कही लोक तीर्थे जाये ॥ वीरमती जगिनीथी होये जाबला बीजके, पर्व हवं ते दिनथी थाये ॥ ८ ॥ श्रीजिनवरदेवे हो कह्यो सकल विचारके, कुमार स्वामी कार्तिकेय तणो ॥ पवनवेग तुम हो ए जाएजो सत्यके, छापर ग्रंथ विस्तार घणो ॥ ए ॥ मिथ्यात्वीनां हो ए वचन असारके, मन मांही थकी ए टालजो ॥ जोला लोकज हो भूला जमे गमारके, जिनवर वचनज पालजो ॥ १० ॥ पवनवेगने हो आणंद जयो तामके, समकितधारी श्रावक थयो । मनोवेग मित्रने हो करी प्रणामके, विमान रची लेइ निज गामे गयो ॥ ११ ॥ मनोवेग कहे हो सांजलो मित्रके, श्रावकनो धर्म हुं कहुं ॥ श्रादि समकित हो सुधुं धरे चित्तके, सात व्यसनथी डूरे रधुं ॥ १२ ॥ मूल गुण हो पाले आज नेमके, कंदमूल सहु परिहरे ॥ व्रत पाले हो श्रावकनां वारके, सामायिक त्रण काल करे ॥ १३ ॥ तिथि पर्वणी हो पोसो करे शुद्धके, सचित वस्तु दूरे तजो ॥ रात्रिभोजन दो निवारो ब्रह्मचर्यके, पालो नव जेद शील जजो ॥ १४ ॥ गृह व्यापारे हो टालो पापारंजके, परिग्रह डूरे टालीए | विवाद यादे हो अनुमत नवि देयके, उदेस्यो थाहारने
खंग ६
॥ १३० ॥
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
निहालीए ॥१५॥ एकादश हो प्रतिमा ए सारके, श्रावकनी शुकि कही । सांजलीने | हो हरख्यो कुमारके, पवनवेगे मन दृढ ग्रही ॥ १६ ॥ पवनवेग हो पवित्र व्रतधारके, जैनधर्म लीधो खरो ॥ दोय मित्रज हो आनंद दुवो सारके, जव्य जीव धर्म स्नेह धरो॥ १७ ॥ व्रत पालीने हो श्रायुषा अंतके, बेहु मित्र खर्गे गया ॥ पाम्या अति घणी हो देवीनी रिडके, देवीशुं लोग सुखीया थया ॥ १७॥अवतरीने हो पामशे| मनुष्यनो जन्मके, चारित्र पाली जिन तणुं ॥ अष्ट करमनो हो वली करीने घातके, मोक्ष लक्ष्मी पामशे घणुं ॥१५॥ हीरविजय सूरि हो तपगठ मंमाणके, शुजविजय शिष्य | जाणीए ॥ नाव विजय हो जगमें जयवंतके, सि हिविजय परमाणीए ॥ २०॥ रूपवि | जय हो रूपवंत कहेवायके, कृष्ण विजय कर जोमीने ॥ रंगविजयने हो प्रणमुं निशदीसके, अंग बठे अंग मोमीने ॥१॥ खेम बहो हो पूरो थयो श्राजके, ढाल अग्यारे सुणो सही ॥नेमविजये हो.उलट मन थाणके, वात अनोपममें कही ॥२॥
इति धर्मपरीक्षारासे षष्ठोऽधिकारः संपूर्णः ॥
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
खंग मो.
उहा.. ॥११॥
एकदा पाटलीपुर जणी, विहार करंता एम ॥ श्राव्या आर्यसुहस्ती सूरि, परिवारे करी तेम ॥१॥ वनपालक दे वधामणी, संप्रति राजा नणी जाय ॥ सघलो साथ ले करी, वंदण आव्यो राय ॥२॥ द्विज श्राव्या सघला मली, सुणवाने उप-| देश ॥ गुरु कहे मूल ने धर्मनो, समकित मर्म विशेष ॥३॥ समकित विण शिव
पद नहीं, सांजलजो सहु कोय ॥ श्राण सहित क्रिया अलप, बहु फलदायक होय yn४॥ जिनवरदेव सुसाधु गुरु, केवली जाषित धर्म ॥ सदहीए सुधां सहित, ए
सम कितनो मर्म ॥ ५॥ तेणे कारण नवियण तुमे, वारी विकथा वात ॥ एक मना अवधारजो, समकितनां अवदात ॥६॥
ढाल पदेली.
समुजपाल मुनिवर जयो-ए देशी. जंबुष्टीप नरत क्षेत्रमा, ए तो मगध देश मनोहार ॥सनेही॥राजग्रही नयरी राजा
॥१३१॥
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिहां, ए तो श्रेणिक चेलणा नार॥ सनेही ॥१॥ संप्रति राजा सांजलो, समकित कथा सुजाण सनेही ॥ए श्रांकणी॥बुद्धिनिधान वडो पुत्र , ए तो नामे अजयकुमार॥ सनेही॥सर्व कला कही पुरुषनी, ए तो राजधुरंधर धार ॥ स० सं०॥२॥श्रहंदास शेउ तिहां वसे, जेहने घर वित्त जरपूर ॥ स॥ चित्त उदार जिन चरचीने, कुखी |जन करे पुःख दूर ॥ स० सं०॥३॥ श्राप रमणीशुं सुख जोगवे, पाले ते नव वाडे |. शुशील ॥ स ॥ समकित सुधुं सदहे, धर्म करतो न करे ढील ॥ स० सं० ॥४॥
गिरि वैजारे एकदा, समोसर्या श्रीमहावीर ॥ स० ॥ वनपालके वधामणी, पासे || गौतमस्वामी वजीर ॥ स० सं० ॥५॥ सांजली संतोष्यो शुज परे, पृथ्वीपतिए परजात ॥ स ॥ महा मोडव करी वांदवा, श्राव्यो श्राणंद अंग न मात ॥स सं॥ पांच श्रनिगम साचवी, जगवंत उपर धरी जाव ॥ स० ॥ वांदी बेठा विधिपूर्वके,| कहे नवजल तारण नाव ॥ स सं० ॥॥ पूजाप्नाव थाणे चित्तमें, ए तो चोथ | तणो फल जोय ॥ स ॥ पूजोपगरण हाथे ग्रहे, ह तणो फल होय ॥ स सं० ॥ ॥ गमणागमणे फल अहमे, पासे श्राव्यो दशम फल जाण ॥ स ॥ ज्वालस फल जिन परवेशे, प्रदक्षिणे पक्ष फल आण ॥ स० सं० ॥ ए॥ मास फल जिन
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १३२ ॥
बिंब देखीए, पमजणे शत उपवास ॥ स० ॥ सहस्र फल विलेपने कह्यो, फुलमालाए लाख फल तास ॥ स० सं० ॥ १० ॥ अनंत फल गीत नृत्यथी, एहवां फल सुणी शेठे तास ॥ स० ॥ नीम धार्यो त्रण कालनो, जिनपूजा विना उपवास ॥ स० सं० ॥ ११ ॥ श्राव्यो छव एहवे, कौमुदी कौतिककार ॥ स० ॥ सुंदर वेश सजी सवे, नगर बहार यावे नर नार ॥ स० सं० ॥ १२ ॥ खेलो हसो मन खांतशुं, हुकम करे राजान ॥ स० ॥ कार्तिक पुनेमने दिने, गाउँ वजार्ज तान ॥ स० सं० ॥ ॥ १३ ॥ बार वरसने अंतरे, महो वजाने एम ॥ स० ॥ श्रईदास शेठ मन चिंतवे, मुज व्रत रहेशे हवे केम ॥ स० सं० ॥ १४ ॥ उंडुं मनमां श्रालोचीने, श्राव्यो शेव नृपने पासे ॥ स० ॥ मोती श्रगल मूकीने, उजो अरज करे उल्लासे ॥ स० सं० ॥ ॥ १५ ॥ में लीधुं बे व्रत नेम जे, ते तुमे जाणो बो स्वाम ॥ स० ॥ याज श्रादेश दुवो एसो, केवुं करवुं हवे काम ॥ स० सं० ॥ १६ ॥ धन देइ धन धन कही, ए तो
प्रशंसे राज ॥ स० ॥ जिनधरमी जयवंत तुं, करो जइ घरनां काज ॥ स० सं० ॥ १७ ॥ चोकी मेली चिहुं दसे, ए तो सुट रह्या सावधान ॥ स० ॥ रात पकी राजा कहे, ए तो सांजल तुं परधान ॥ स० सं० ॥ १८ ॥ पहेली ढाल खंग
खंग अ
॥ १३२ ।
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
सातमे, सांजलजो सहु नर नार ॥ स० ॥ रंगविजय कविराजनो, नेमविजय जय
कार ॥ स० सं० ॥ १५ ॥
डुदा.
चालो जोवा जाइए, बोले श्रेणिक राय ॥ अजयकुमार वलतुं कहे, नावे मारे दाय ॥ १ ॥ नारी जाति मली तिहां, पुरुष नहीं वे बेक ॥ आपण केम जइए तिहां, मनमां धरो विवेक ॥ २ ॥ इंडि पांच जीती जीके, ते विनयी कहेवाय ॥ गुणवंत कही ए ते नरा, सहु जनमां पूजाय ॥ ३ ॥ राजा कहे परधानने, हुं हुं इंद्र समान ॥ लोको शुं करशे मने, बलवंत हुं राजान ॥ ४ ॥ प्रधान वलतुं एम कहे, अजिमान न कीजे फोक ॥ परजा थकी सुख पामीए, दुःख न दीजे लोक ॥ ५ ॥ वली नरपति एम उंचरे, घणे न सीजे काज ॥ सूरज उग्यो एकलो, तारा जाये नाज ॥ ६ ॥ प्रधान कड़े नरपति तमे, बहुशुं न करो वेर ॥ घणां मली कल्याण करे, घणांची उपजे फेर ॥ ७ ॥ ते उपरे कथा कहुं, सुजोधन नृपनी वात ॥ वातो मन शीतल करे, वात करे उतपात ॥ ८ ॥
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १३३ ॥
ढाल बीजी.
॥
कोया कामनी कहे चांदला, चांदा तुं बे परउपगारीरे - ए देशी. हस्ती नागपुर वर जलो, राजा सुजोधन तिहां रायरे ॥ मंत्री पुरुषोत्तम तेहने, राजा पुरोहित कापिल कदेवायरे ॥ १ ॥ जमदं नामे कोटवाल बे, राजा बैठा सजा मोकाररे ॥ दूत यावी एक एम कहे, राजा अरिदल श्राव्यं अपाररे ॥ २ ॥ नूतनुं वयण सुणी एशुं, राजा चकुटी चढावी जालरे || घार्ड निसाणे घमकीया, राजा कोप्यो रिपुनो कालरे ॥ ३ ॥ दय गय रथ पायक सजी, राजा राये प्रयाणज कीधरे ॥ राज नगरनी रक्षा करे, राजा जमदंमने जलामण दीधरे ॥ ४ ॥ लश्कर लेइ रि उपरे, राजा बेहु दल फुके अपाररे ॥ दिवस घणा तिहां लागीया, राजा सांजलो वात विचाररे ॥ ५ ॥ जमदंडे जस उपराजीर्ज, राजा रुमी परे प्रजा राखेरे ॥ राजकुंवर लोक वश थया, राजा यमदंड वयण जे जाखेरे ॥ ६ ॥ अरि जीती नृप श्रावी, राजा सनमुख सहु लोक जायरे ॥ राजा पूबे कुशल सहु, राजा कहे यमदंग पसायरे ॥ ७ ॥ विलंब करी पूढे वली, राजा तुमने अबे समाधिरे ॥ यमदंकना पर सादथी, राजा कशी नथी समाधिरे ॥ ८ ॥ चिंतवे भूपति चित्तमें, राजा राज्य
खंग 9
॥ १३३ ॥
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुखे जे जायरे ॥ दूध बिलामी खिवा, राजा पडे ते पस्तायरे ॥ ॥ कूड राखी मनमां घणो, राजा मौन करे नूपालरे ॥ इंगित श्राकारे उलखे, राजा जाणे मनमें कोटवालरे ॥१०॥ मंत्री पुरोहित नूपति, राजा त्रणे मली एक
गयरे ॥ यमदंमने यमघर जणी, राजा मूकण विचार करायरे ॥ ११॥ देखो पुर|जन दुरमति, राजा पर जश देख्यो न सुहायरे ॥ राजा परधान पुरोहित मली, राजा कुकरम एह कमायरे ॥ १५ ॥ खजानो निज खोसवा, राजा मध्य रात्रे पेगे| तेहरे ॥ कूम कपट करे घणां, राजा अंते पडी मुख खेहरे ॥ १३ ॥ मुखा जनोश |पादुका, राजा मुखे मूके वेश खात्ररे ॥ धन काढे ते धसमसी, राजा काम करे एह कुपात्ररे ॥ १४ ॥ खात्र मुखे विसरी गया, राजा पादुका मुखा जनोरे ॥ प्रातः समे यमदंमने, राजा तेडीने नाखे सोरे ॥ १५ ॥रे निर्लज तुं नगरने, राजा राखे | रुडी रीतरे ॥ श्राज मंडार फाडी गया, राजा तुं सुइ रह्यो निचिंतरे ॥ १६ ॥ वस्तु | सहित जो चोरने, राजा नहीं लावे माहरी पासरे ॥ चोर तणो दंग तुजने, राजा थाशे सही एम विमासरे ॥ १७ ॥ तुरत गयो मुख खात्रने, राजा पाउकादिक पड्या दीरे ॥ पाम्या चोर ते पापीया, राजा मन मांहीं हरख पश्चरे ॥ १७ ॥ कोटवाल ।
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
।१३
॥
चित्त चिंतवे, राजा जुर्व राय एम करंतरे॥तो कहीए केहने जश्, राजा सुणजो सर्व जन भी संतरे ॥ १५ ॥ राजा आगल श्रावीने, राजा चोर न लाध्यो खामरे ॥ कोपे करी|||| राय एम कहे, राजा एहने मारो तस ठामरे ॥ २० ॥ मली महाजन विनवे, राजा अवध दीजे दिन सातरे ॥ चोर वस्तु थाणे नहीं, राजा मनमानी करजो वातरे॥१॥ कष्टे भूपे कयु कयु, राजा परजार्नु राख्युं मन्नरे ॥ यमदंड सहु श्रागल कहे, राजा| सुणजो एक वचनरे ॥ २१॥ राजानुं मन एह, राजा कहोने हवे कीजे केमरे ॥ महाजन कहे बीजो रखे, राजा न्यायीने थाशे खेमरे ॥ २३॥ परमेश्वर पक्ष न्यायनो, राजा करशे सही जाणो साचरे ॥ ढाल बीजी खंग सातमे, राजा नेमविजलायनी वाचरे ॥२४॥
-
॥१३॥
| शपणे सघले फरे, चोर गवेषण काज ॥ पहेले दिवस सना गयो, तव पूढे महाराज ॥१॥ चोर न लाव्यो चोरटा, जमदंम कहे नरनाथ ॥गम गम में जोश्यो, चोर न श्राव्यो हाथ ॥२॥ एवमी वार किहां रह्यो, कहे कोटवाल ते वार ॥ कथा
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
* एक कहेतो हतो, सांजलतां थर वार ॥३॥ जेणे मरण तुज विसर्यु, ते कहे । मुजने वात ॥ उत्पातकी बुझे करी, कथा कहेशे सात ॥४॥
ढाल त्रीजी.
अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी-ए देशी. । कहे कथा यमदंग युक्तिशु, सांजल राय सुजोधरे ॥ मन मांही जाणे यमदंम जो वली, पामे किमही प्रतिबोधरे ॥ कहे कथा ॥ ए आंकणी ॥१॥ वन मांही एक मोटो सरोवर, सजल कमल विस्ताररे ॥ तेहनी पाले सरलो अति उंचो, तरुवर बजे उदाररे ॥ का ॥२॥ हंस घणा रहे जे तरु उपरे, व्याध तणो नहीं लागरे । वेले अंकुर तस मूले देखी, वमो हंस कहे महानागरे ॥ क० ॥३॥ चंचुपुटे करी अंकुर
त्रोमो, तो तुमने सुख थायरे ॥ वधती वधती एहज वेलना, थाशे तुम दुःखदायरे Nuक ॥४॥ तरुना हंस हस्या सवि तेहने, बीकण मोटो तुं वृद्धरे ॥ एम सांजली मौन
कर्यु तेणे, पामशे आपणुं की, रे ॥ ॥५॥ काले वधी ते सबली वेलकी, जर लागी तरु शीशरे ॥ ते व्याध चडी ते अवलंबीने, नाख्यो पास जगीशरेक ॥६॥ |चुण करीने सांजे हंस सघला, पासे पनीया श्रायरे ॥ थाक्रंद करतारे पूरे वृक्षने,
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १३५ ॥
बुट तपो उपायरे ॥ क० ॥ ७ ॥ जोवन मद मतवाला मुंरख जे, नवि मान्युं मुज वयपरे ॥ तेह तणां फल ए बे प्रत्यक्ष, देखो आपणे नयपरे ॥ क० ॥ ८ ॥ - जाणे अथवा परमादे, कारज विषतुं संजालरे || पढे प्रयास होये विफल सघलो, जल गये बांधी पालरे || कु० ॥ ए ॥ दीन वचने बोले उ दादाजी, तुमे बो बुद्धिनिधानरे ॥ दया करी निज बालक उपरे, दीजे वंडित दानरे ॥ क० ॥ १० ॥ प्राण रहित सरीखा थइ रहेजो, सघले मानी शीखरे ॥ परजाते देखी ते पापीयो, चिंते जांगी जीखरे ॥ क० ॥ ११ ॥ हंस सकलने देवा नाखीया, उड्या ते समकालरे ॥ मान्युं वचन वमानुं तेमणे, पाम्या सुख विशालरे ॥ १२ ॥
गाथा -- - दीहकालंठीया जब, पायवे निरुवदवे ।
मुला उठीयावली, जायं सरणं उजयं ॥ १ ॥
गाथा ह की बेवडे हंसे, समजो राय मयालरे ॥ कथा पहेली संपूरण ए कही, समजो श्रोता दयालरे ॥ क० ॥ १३ ॥ सातमा खंड तणी ढाल त्रीजीए, समजाव्यो राय सुजापरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय परमाणरे
॥ क० ॥ २४ ॥
खंग 9
॥ १३५
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदा. अभिप्राय पूज्यो नहीं, पुराग्रहवंत नरिंद ॥ मगसेलीयो जीजे नहीं, वरसे पुष्कर वृंद ॥१॥ बीजों दिन श्राव्यो वली, पूजे तेम महीराय ॥ कथा एक कहेतो हतो, ते| मुज श्रावी दाय ॥२॥ कोश्क नगर कुंजार एक, खाण खणी मन खंत ॥ नाजन निपजावी जलां, वेची थयो धनवंत ॥३॥जुवन कराव्यु थति नबुं, पुत्र विवाहज की-| ध॥ जाचक जन संतोषीया, नगर थयो प्रसिक ॥ ४ ॥ माटी खणवा एक दिन, गयो खाण मोकार ॥ तड तुटी उपर पमी, गाथा कहे कुंजार ॥५॥ .
गाथा-जेण निखं बलिंद मि । जेण पोसेमीनाय ॥
तेण मे पठिया जगा । जायं सरणं उनयं ॥१॥ ___ कथा कही निज घर गयो, समज्यो नहीं राजान ॥ त्रीजे दिन कथा कहे, ते सुणजो सावधान ॥६॥
ढाल चोथी.
बंगालो राग. देश पांचास कांपिलपुर सार, सुधरमा राजा सिरदार ॥सुणो वारता ॥ जैन धरम
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
| १३६ ॥
उपरे तसु राग, मंत्री जयदेव वे चार्वाक ॥ सु० ॥ १ ॥ शत्रु तणो पराजव जाण, चाल्यो | नरपति निग्रह जाए ॥ सु० ॥ जीती नगरमां श्रावे जाम, पोल वडी पमी श्रगल ताम ॥ सु० ॥ २ ॥ अपशुकन जाणी निरधार, बहार रह्यो राजा तेणी वार ॥ सु० ॥ उतावली कीधी ते पोल, पेसे बीजे दिन करत कलोल ॥ सु० ॥ ३ ॥ पकी वली तिमहीज ते पोल, मंत्री करावी देश बहु मोल ||सु०॥ त्रीजे दिने पेसे जब नूप, पुनरपि थयो तेह सरूप ॥० ॥४॥ मंत्री कहे राजन श्रवधार, कोइक सुर कोप्यो सुविचार ॥ सु०॥ निज हाथे माणस एक मार, तेहने रुधिरे जो दीजे धार ॥ सु० ॥ ५ ॥ तो निश्चय ए थाये स्वाम, छावर पूजा बलि नावे काम ॥ सु०॥ भूप जणे हिंसा जिहां होय, तेह नगरशुं काम न कोय ॥ सु० ॥ ६ ॥ जे सुवरणे तुटे कान, पहेरे तेने कोण अजाण ॥ सु० ॥ जिहां हुं तिहां नगर विशाल, कोण करे एड्वो जंजाल ॥ सु० ॥ ७ ॥ निश्चय राजानो ए जाए, मंत्री महाजनशुं करे वाण ॥ सु०॥ राजा नवि माने ए वात, निज नगर केम छोड्यो जात ॥ सु०॥ ८ ॥ सहु मली विनवी राय, छामे करशुं एह उपाय ॥ सु०॥ पुष्य तो जेम बडो विजाग, पामे नरपति पाप विभाग ॥ सु० ॥ ए ॥ पाप तणुं फल अमने देव, तमे पुण्यवंत प्रभु नित्यमेव ॥ कंचन पुरुष कराव्यो एक, अलंकर्यो तेने सुविवेक ॥ सु०
खंग
॥ १३६ ॥
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ १० ॥ रथ थारूढ करी नर तेय, नाखे पुत्र आपे सो लेय ॥ सु० ॥ वरदत्त नामे ब्राह्मण रंक, रुजदत्ताशुं कहे निःशंक ॥ सु० ॥११॥सातमो रुरुदत्त देश्ने दान, सोनुं लीजे जेम वाधे वान ॥ सु०॥ एम आलोच करी निज बाल, दीधो कनक लीधो ततकाल ॥ सु० ॥ १५ ॥ चिंते रुषदत्त मन मोकार, अहो खारथी मीठो संसार ॥ सु० ॥ श्राव्यो कुंवर राजाने पास, इस्यो कुंवर पूढे नृप तास ॥ सु० ॥ १३ ॥ बच्चा मरणथी नहीं तुज बीह, कारण हसवायूँ कहे सीह ॥ सु०॥ माता मारे सुतने जाम, पिता कने पुत्र जाये ताम ॥ सु० ॥१४॥मात पिता पीड्यो नृप पास, नूप पीड्यो महाजन श्रावास ॥ सु० ॥ जो माता हाथे विष देय, तात गले उरी वाहेय ॥ सु० ॥ १५ ॥ श्लोक-माता यदि विषं दद्यात् । पिता विक्रयते सुतम् ॥
राजा हरति सर्वस्वं । का तत्र प्रतिवेदना ॥१॥ नरपति प्रेरे तेहने वली, मारण महाजन धन दे मली ॥ सु० ॥ तो कहो केहवो हवे शोग, जुर्म करम तणो कोण जोग ॥ सु०॥ १६ ॥ पोल नगरशुं नहीं मुज काज, करुणासागर कहे महाराज ॥ सु० ॥ धराधव, धीरज देख, नयर देवी तुनी सुवि
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
धमपरा
शेष ॥ सु० ॥१७॥ कीधी फूल तणी तिहां वृष्टि, धरापतिने थइ सुख सृष्टि ॥ सु० सातमा खमनी चोथी ढाल, नेमविजय कहे रंग रसाल ॥ सु० ॥ १७ ॥
॥१३॥
meanTAIN
आरक्षक वली श्रावी, चोथे दिवस अकाल ॥ रे नवि लाव्यो चोरने, एम पूरे नरपाल ॥१॥ मारग माहीं श्रावतां, बाज अपूरव नाथ ॥ कथा एक में सांजली, सहु सांजलजो साथ ॥२॥
ढाल पांचमी. रे जाया तुज विण घडीय न जाय-ए देशी. वन मांहीं एक हरणलीजी, निज बालकने संग ॥ हरी चरे निकरण तणांजी, जल पीए मनरंग ॥ सुजोधन सांजलजो मुज वात, मत करजो व्याघात॥सुजोधन ए श्रांकणी ॥१॥ वनने पासे ढुंकडंजी, नयर वसे मनोहार ॥ नयर तणा राजाननेजी, बहोला बाल कुमार ॥ सु० ॥२॥ आहेडे वन एकदाजी, जश्ने मांड्यो जाल ||॥१३७ वीजा मृग नाती गयाजी, पास पड्यो एक बाल ॥सु०॥३॥ कोश्क नृपना कुंवरनेजी, थाणीने ते दीध ॥ बीजाने रमवा नवि दीएजी, तेणे सघले रढ बीध ॥ सु॥४॥
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
पारधी तेकी पूढीयुंजी, कुरंग घणां बे केथ ॥ वन तेणे ते बतावीयुंजी, चाट्यो राजा तेथ ॥ सु० ॥ ५ ॥ व्याध वेष राये पहेरीयोजी, पारधीनो परिवार ॥ पीडे मृगने पापीयोजी, व्याप्यो मोह अंधकार ॥ सु० ॥ ६ ॥ खणी अजामी खांतसुंजी, फोमी सरोवर पाल ॥ बंधन सघले मांगीनेजी, काव्यां मृगनां बाल ॥ सु० ॥ ७ ॥ पारधीने परशंसतोजी, हमइड नूप हसंत ॥ कोइक पंक्ति देखीनेजी, गाथा एम जयंत ॥ सु० ॥ ८ ॥
गाथा - सर्वादिसंजहिं सलीलं । सवारणं च कुवसंथन्नं ॥ राया यसवाहो । छमियाणं कर्ज वासो ॥ १ ॥
मूरख नृप समज्यो नहींजी, बुद्धि बमी संसार ॥ धन पामवुं ते सोहेलुंजी, समजए दोहिली नर नार ॥ सु०॥ ॥ पूढे वली दिन पांचमेजी, तिहीज परे भूपाल ॥ श्राज कथा में सांजलीजी, कहे वलतुं कोटवाल ॥ सु० ॥ १० ॥ देश नेपाल पाटलीपुरेजी, वस्तुपाल महीपाल ॥ कवित कला शुद्धि लहेजी, जाणे बालगोपाल ॥ सु० ॥ ११ ॥ नारतीभूषण तेहनोजी, मंत्रीश्वर कहेवाय ॥ राय कवित तेणे दुःखीयोजी, बेठा महा कविराय || सु० ॥ १२ ॥ रीसे नूपति धमहड्योजी, मंत्री बंधाव्यो ताम ॥
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
१३८ ॥
गंगा मांहीं नखावी योजी, वहेतो जाये जाम ॥ सु० ॥ १३ ॥ पुण्य जोगे यल पामी - नेजी, ल्ये विश्राम जे वार ॥ अकस्मात् पुर श्रावीयोजी, कहेवे करी पोकार ॥ सु० ॥ १४ ॥ यतः - जेण बीयावरोहन्ति । जेण सिचंति पायवा ॥ मरिस्सांमि । जायं सरणं उजयं ॥ १ ॥
तस्स म
शीतल जल गुण ताइरोजी, निरमल बे तुज देह ॥ अशुचि शुचि संगत हरेजी, याये नहीं संदेह ॥ सु० ॥ १५ ॥ तारा गुण केता कहुंजी, तुं जीवन श्राधार ॥ नीच पंथ तुं आदरेजी, तो कोण तारणहार ॥ सु० ॥ १६ ॥ बाना चर मूक्या हताजी, सांजव्यं तेणे सर्व ॥ राजाने यावी कहेजी, गिरुया न करे गर्व ॥ सु० ॥ १७ ॥ निंदा करतो श्रापणीजी, कोमल करी प्रणाम ॥ जलथी तुरत कढावीनेजी, थाप्यो पहेले गम ॥ सु० ॥ १८ ॥ वात सुणावी एट्वीजी, गयो जमदं निज गेह ॥ सातमा खंमनी पांचमीजी, ढाल कही नेमे एह || सु० ॥ १५ ॥
उदा.
जवाव्यो तव पूढीयो, उठे दिन भूपाल ॥ तस्कर खबर नवि करें, दीसे वमो वाचाल ॥ १ ॥ सूनां मंदिर शोधीयां, वेश्या तणां निवास ॥ जुखारी घर जोश्यां, पग
खंग ७
॥ १३८ ॥
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवि पासु तास ॥ २॥ सरस कथा में सांजली, लाग्यो तेणे मन्न ॥ प्रनु पासे मुज श्रावतां, अधिको श्रव्यो दन्न ॥३॥
ढाल बही. में तोजी खणावी वावडी-ए देशी. थाज कथा में सांजली, सुणजो सहु सावधानरे; राज॥ गजपुर नयर कुरु देशमां, नर कुबेर नयर समानरे ॥ राणाए आं०॥१॥राज करे तिहां रंगशु, नामे सुजन नरिंदरे ॥राण ॥ वमवमा राणा राजीया, वांदे चरण थरिवृंदरे ॥रा था० ॥॥ परितापे रवि सारिखो, को न खंडे आणरे ॥ रा ॥ शीषे फुल जेम सहु धरे, दिन दिन वधते वानरे ॥रा था ॥३॥ क्रीडा वानर तेहना, निरजय नगर भ्रमंतरे ॥राणा उपजव अति घणो करे, नवि को वरजंतरे ॥राण था ॥४॥ विविध जातिनां वृक्ष तिहां, वेल अनेक प्रकाररे॥रा॥पान फुल फले जयु, उद्यान ले सुखकाररे॥रा॥ श्रा ॥ ५॥ वनथी श्रावी वांदरा, तामी पी थया मत्तवासरे। राणा रक्षके वार्या नवि रहे, तोडे तरुवर मालरे ॥ रा० श्रा० ॥६॥ वनपालक आवी कहे, विनतमी अव-I धारोरे ॥ रा॥बाग विणासे वांदरा, वनचर वेगे वारोरे ॥ रा० आ ॥७॥ क्रीमा
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
| १३॥
कंपि राये मूकीया, तेहने जीतण काजेरे ॥ रा० ॥ जइ मलीया निज जातिशुं, वृक्ष विशेष जांजेरे ॥ रा० आ० ॥ ८ ॥ असमंजस देखी एशुं, एम चिंते रखवालरे ॥ रा० ॥ गाथा एक तिहां जणी, सुपो ते कहुं प्रजापालरे ॥ रा० आ० ॥ ए ॥
आमरण्यया जथ्य मक्कमा । सुरारष्यया मुंगा ॥ जारस्या विजया जय । मूल विषरंतु करूं ॥ १॥
पूरव वात संजलावीने, कही यमदंग गयो घेररे ॥रा० ॥ श्रणसमजु समजे नहीं, तेनी शी करवी पेररे ॥रा०या० ॥ १०॥ सातमे दिन सविशेषथी, मोडो आव्यो मांडरे ॥ रा० ॥ चकुटी जाले चमावीने, जमक्यो भूत जराडरे ॥ रा० आ० ॥ ११ ॥ रे निर्लज निरलक्षणा, सांजल माहरी वातरे ॥ रा० ॥ पारिपंथक पाम्या विना, केम बू|टीश तरजातरे ॥ रा० आ० ॥ १२ ॥ त्रिक चाचर ने चोवटा, धूरत लंपटनां ठामरे ॥ वन गहवर में जोइयां, चोर न लाघ्यो स्वामरे ॥ ० ० ॥ १३ ॥ पासे तुमारे आवतां, सुण्यो में एक विरतंतरे ॥ रा० ॥ कहुं हुं ते तुमने कथा, मन धरजो मतिवंतरे ॥ रा० ० ॥ १४ ॥ देश सकलमां दीपतो, मोटो मालव देशरे ॥ रा० ॥ उणी नगरी जली, जितशत्रु नामे नरेशरे ॥ रा० आ० ॥ १५ ॥ गढ़ मठ मंदिर गोरमी, नदी
खंग 9
॥ १३५ ॥
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
निर्वाण अनुपरे ॥ ० ॥ शिव मंदिर जिन देहरां, सरगपुरी सम रूपरे ॥ रा० आ० ॥ १६ ॥ देवदत्त नामे कापडी, तीरथ करे सुविवेकरे ॥रा०॥ देश नगर बहोला नमी, | श्रच रिज देखी अनेकरे ॥ रा० ॥ ० ० ॥ १७ ॥ जरा पहोती जाणीने, उझेणी थिर वासरे ॥ ० ॥ मसठ तीरथ एणे कर्यां, सेवे बहु जन तासरे ॥ रा०या० ॥ १८॥ श्राव्यो पर्व हवे एकदा, पाम्यो सरस आहाररे ॥ रा० ॥ लालचपणे लीधो घणो, निशि थयो उदर विकाररे ॥ रा० ० ॥ १७ ॥ जीरण तने जरे नहीं, जारी सबलुं अन्नरे ॥ रा० ॥ मंदानल जेम मोटके, इंधणे शमे अगनरे ॥ रा० आ० ॥ २० ॥ उपचार कीधा श्रति घणा, नवि उपशमी रोगरे ॥ रा० ॥ गाथा एक कहे कापमी, सांजलजो सदु लोगरे ॥ ० ० ॥ २१ ॥
गाथा - जया जीवंति विश्वानि, जया तुष्यन्ति देवता । तयाहं मारितो लोका, जातं सरतोजयं ॥ १ ॥
एम नृपति प्रतिबोधवा, कही कथा करी बुद्धरे ॥ रा० ॥ समस्या मांहीं समज्यो नहीं, मोटो राजा मूढरे ॥ रा० आ० ॥ २२ ॥ सातमा खंमनी ए कही, ढाल
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४०॥
हीए श्राव्यो आवासरे ॥ रा॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजयनी पूरवा थाशरे । रा श्रा० ॥ ३॥
बुढा. श्राव्यो वासर बाग्मे, यमदंम सजा मोकार ॥ तेमज नूप पूठ्यो तुरत, तस्कर तणो विचार ॥१॥ देव न लाध्यो एम सुणी, नरपति कीधो रोष ॥ परजाने कहे । सांजलो, मारो नहीं कांश दोष ॥२॥ कथा कही मुज वंचीयो, सात दिवस पर्यंत ॥ दंड चोरनो देश्ने, एहनो करशुं अंत ॥३॥ कहे माजन यमदंमने, चोर| तणुं कोई चिह्न ॥ देख्युं होय तो दाखवो, मत करजो जय मन्न ॥४॥
ढाल सातमी.
बांगरीयानी बारे गरबडो-ए देशी. वयण सुणी महाजन तणुंरे, एम बोले यमदंडरे ॥ परज सुणो ॥ अहिनाणी थाएया पनीरे, श्यो करशो तस दंगरे॥०॥ १॥ राजसुतादिक सहु कहेरे, जो होशे नरराजरे ॥ प०॥ चोर तणो दंड एहनेरे, करशुं मूकी लाजरे ॥ ॥०॥ २॥ निश्चय एहवो जाणीनेरे, काढ। त्रणे वस्तरे ॥ प०॥ सजा मांहे मेली
॥१४॥
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
कहेरे, ए चोर मोटो मस्तरे ॥ प० ॥ ३॥ पावमीए नृप परखीरे, वीटीए पर-| धानरे ॥१०॥ यग्नसूत्रि करी जाणीरे, पुरोहित पापनिधानरे ॥ प० ॥॥ वोलावो चोरी करेरे, वाम चीनमां खायरे ॥ प०॥ दांत विणासे जीननेरे, तिहां कोण श्रामो थायरे ॥ १० ॥५॥ चमक्या देखी चित्तमेंरे, चोर तणां अहिनाणरे ॥ प० ॥ जे मन माने ते करोरे, जेम न करे ए कामरे ॥ १० ॥६॥ नृपति कपिल प्रधाननारे, तुरत थयां मुख श्यामरे ॥ १० ॥ सहुको कहे हवे तेम करोरे, श्रागोह श्रामयदानरे ॥ ५० ॥ ७॥ नगर थकी ते काढीनेरे, पाटीए निज निज पुत्ररे ॥ ५० ॥ थाप्या महाजन मली करीरे, सहु राख्यु एम सूत्ररे ॥ १० ॥७॥ __यतः-मित्रं शाठ्यपदं कलत्रमसतीं पुत्रं कुलध्वंसिनम् ।
मूर्खमंत्रिणमुत्सुकं नरपति वैद्यं प्रमादास्पदम् ॥
देवं रागयुतं गुरुं विषयिणं धर्म दयावर्जितम् । ___ यो नैवं ब्रजति प्रमादवशतः स त्यज्यते श्रेयसा॥१॥ सुणी सुजोधन वारतारे, श्रेणिक करे प्रशंसरे ॥ १० ॥ धन्य प्रधान मति ताहरीरे, तुं मुज कुल श्रवतंसरे ॥ प०॥ ए॥ राजा कहे रजनी घणीरे, बे हजी अजयकुमा
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
र्मिपरी
खंग
।१४१॥
ररे ॥॥ कांश्क अचरिज जोश्एरे, जमीए नगर मोजाररे ॥॥॥ नमतां एकण चाचरेरे, दीठी माणस बांहरे ॥ प० ॥ पुरुष नारी दीसे नहींरे, अचरिज थयुं मन मांहीरे ॥ ५० ॥ ११ ॥ कहो प्रधान दीसे किशुरे, लोहषुरो प्रनु चोररे ॥ १०॥अंजन बल अदृश्य थरे, नगर पडावे सोररे ॥ १० ॥१॥जोइए ए किहां जाय डेरे, कौतके | चाल्या पीठरे ॥ प० ॥ अर्हदास घर आंगणेरे, वडे चमी बेठो धीरे ॥ प० ॥ ॥ १३॥ अलद थका बेहु जणारे, आवी बेग हेरे ॥ प० ॥ एहवे कुंदलता कहेरे, सुणो वयण मुज शेठरे ॥ प० ॥ १४ ॥ महोठव मूकी कौमुदीरे, देव पूजादिक कर्मरे
प० ॥मांमी बेग मेहेलमारे, केणे लगाड्यो नमरे॥१०॥ १५॥परलोकार्थी कीजी-IN एरे, ए करणी सुणी वामरे ॥ प॥केणे दीगे परलोकनेरे, इहलोके सुख कामरे ॥ प० ॥ १६ ॥ परलोके सही पामीएरे, धर्म थकी सुख लहरे ॥ ५० ॥ इहलोके फल एहवुरे, में दी प्रत्यक्षरे ॥ १० ॥ १७ ॥ कांता ते तुजने कहुँरे, धर्म तणां अवदातरे ॥ प० ॥ खेम सातमानी ए थश्रे, ढाल सातमी नेम विख्यातरे ॥ १० ॥१७॥
उहा. श्णहीज नगरे राजवी, थयो प्रसेनजीत नाम ॥ तास पुत्र राजा अजे,
॥ १४१॥
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रेणिक गुणनो धाम ॥ १ ॥ जिनदत्त शेठ दुवो हां, पिता माहरो जेह ॥ नंदन रूपपुरा तणो, लोहपुरो बे तेह ॥ २ ॥ सांजली चिंते चोर एम, कांइक मारी वात ॥ करशे तेणे निश्चल सुणो, राजा ते पण धात ॥ ३ ॥
ढाल आमी.
रामचंद्र के बाग चांपो मोरी रह्योरी - ए देशी.
शेव कहे सुप नार, रूपषुरो जे तस्कर ॥ चोरी करे पार, साथै कोइ न लश्कर ॥ १ ॥ अंजन विद्या सिद्ध, नगर मांहीं परसीधो ॥ हाथ न आवे तेह, नृप उपाय बहु कीधो ॥ २ ॥ जाणी ते दुःख साध्य, राजा एम पयंपे ॥ घरघर दीठ दीनार, दीजे तसु एम जंपे ॥ ३ ॥ मांगवीए वली तास, एक विश्वो करी दीधो ॥ वृत्तिए थयो निचित, वानर ने मद पीधो ॥ ४ ॥ माकण चडीय जरख, कोण तेहने कहो पाले ॥ नगरे फरे निःशंक, मन गमते पंथ माले ॥ ५ ॥ नट विटने रहे साथ. सात व्यसनने सेवे ॥ द्यूत मांस परदार, मदिरा चोरी लेवे ॥६॥ जइ श्राडे जीव, जात जातना मारे || वेश्याशुं बहु प्रीत, रात दिवस चित्त धारे ॥ ७ ॥ रूपषुरो एक दिन, नृप घर परिसर जावे ॥ रसवती सरस सुगंध, परिमल
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४॥
तेहनो श्रावे ॥॥ चिंते चित्तमा एम, अहो अहो ए नोजन॥करी कोइ दाय उपाय, जमीए तो धन दिन ॥ ए ॥ साली दाली घृत गोल, नात जातनां व्यंजन ॥ बेसी राजा साथ , जमे नयन करी अंजन ॥ १० ॥ रसलंपट थयो चोर, स्वाद ते न मूकाए ॥ खा जाये नित्य, राजा उर्बल थाये ॥ ११ ॥ मतिसागर परधान, पूरे नृपने नाखो ॥ देव उबला कांय, कारण मुजने दाखो ॥ १२ ॥ श्रन्न अरुचि तुम कोय, अथवा बीजी चिंता ॥ कहेवा सरखी वात, होये तो कहो गुणवंता ॥ १३॥ तुजयी बगनी वात, मारे नहीं कहे नूप ॥ पण ने अचरिज एक, सांजलो तेह सरूप ॥ १४ ॥ घणुं जमुं दिन दिन, तृप्ति न पामे देह ॥ हास्य वचन ए मांहे, कडुं न जाये तेह् ॥ १५ ॥ सांजली ए विरतंत, मंत्री चित्त धरेरी ॥ अदृश्य थको नर कोय, नोजन नक्की करेरी ॥ १६ ॥ निश्चय करी परधान, नोजन मंझप आगे॥सूका अर्कनां पान, फूल विखेाँ विजागे ॥ १७ ॥ श्राप रह्यो परदन, जोजन अवसर आयो ॥ चरणे चाप्यां पान, मंत्रीसर मन जायो ॥ १७ ॥ दीधां दृढतर बार, सुजट चिहुं दिश मूक्या ॥ करीख तणां जे गम, धूम श्ररथे ते फुक्यां ॥ १५ ॥ धूम तणे संजोग, नयन अंजन सवि नागे ॥ रूपषुरो प्रत्यद, सघले सुनटे दीगे ॥॥ पालेवा बांध, आएयो|
॥१४॥
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
नृपनी पासे ॥ ते वेला ते चार, मन मांही एम विमासे ॥ २१ ॥ हा शुं कीधुं काम, जीव जीवन केम राखुं ॥ विषठ्यां बेहु काज, हवे हुं केहने जाखुं ॥ २२ ॥ शो कीजे पस्ताव, जवितव्यता बलवंत || देह बाया जिम तेह, उलंघी नवि जंत ॥ २३ ॥ राजाने श्रादेश, तस्कर शूली दीधो ॥ एहशुं बोले जेह, तेहने ए दंड सीधो ॥ २४ ॥ मूक्या जोवा काज, बाना चर पोताना | कोइ न जाये पास, पामीजे बोतानां ॥ ॥ २५ ॥ ए अवसर ए ढाल, आठमी थइ ए पूरी ॥ नेम विजय कहे एह, कथा वे अधुरी ॥२६॥
उदा.
मुजने साथ लेने, चैत्य वांदवा शेठ ॥ गया दता वलतां थकां पापी पमीयो देव ॥ १ ॥ तव में पूब्धुं तातने, कवण पुरुष बे एह ॥ रूपषुरो व्यसनी जिको, राये विरुब्यो तेह ॥ २ ॥ द्यूत थकी सुत धर्मनो, मांस थकी बक जोय ॥ मद्य थकी य5नंदना, वेश्या चारु विगोय ॥ ३ ॥ ब्रह्मदत्त नृप मृगया थकी, चोरीथी शिवभूत ॥ परदाराना दोषथी, रावण ते विगुत ॥ ४ ॥ एक एक व्यसने करी, ए सहु पाम्या | दुःख ॥ सात व्वसन पूरां होये, ते केम पामे सुख ॥ ५ ॥
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
मिपरी
१४३॥
ढाल नवमी.
नमणी खमणी ने गयगमणी-ए देशी. चोर कहे सांजल व्यवहारी, तुं तो मोटो परउपगारी ॥ शियाले खाधा मुज चरण, कागे मस्तके पाड्यां वरण ॥ २॥ पूरव कर्मे कमाया पोते, ते सवि उदय श्राव्यां जोते ॥ पाणी माग्युं बहु जण पासे, कोश् न पाये सहुको नासे ॥२॥ त्रण दीवसनो तरस्यो हुँ ढुं, तुजयी पाणी पीवा वांडं ॥ तुं धरमी पाणी जो पाये, तो मुज प्राण सुखे सही जाये ॥३॥ उलसीत करुणा कहे शेठ वाणी, हमणां तुजने पाशुं पाणी ॥ हुँ लेवा जलं बुं श्राप, पंच परमेष्ठी जपे तुं जाप ॥४॥ एम कहीने तस मंत्रज जाख्यो, मुजने तेने थानके राख्यो ॥ जल लेश्ने श्रावे वेहेला, चोरे प्राण तज्या ते पेहेला ॥ ५॥ महा मंत्र मन निश्चल ध्यायो, पहेले देवलोके देवगति पायो ॥ जल लेश्ने श्राव्यो मुज तात, चोर तणी दीठी ते घात ॥६॥ मुजने घरनो उठ दीधो, पोते देहरे कास्सग्ग कीधो ॥ माणस जे मूक्यांतां बाने, तेणे वात कही। राजाने ॥ ॥ शेठ तणे घर मूडा धारो, कोप्यो नृप कहे जश्ने मारो ॥ दोड्या सेवक मारण सही, अवधिनाण दीगे सुर तवही ॥ ७॥ थाए सौनो डे उपकारी,
॥१४३॥
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
एणे माहरी पुरगति वारी ॥ मारा गुरुने ए फुःख देशे, छारे रह्यो दंम धरीने वेषे|
ए॥ एटले जण राजाना श्राव्या, हांक्या पेसण मांहि नव पाव्या ॥ रोष करी हणवा ते सुंड्या, देवे निज दंमे ते फुड्या ॥ १० ॥ पड़ी नृपे मूक्यो कोटवाल, तेहने
पण सुरे देश गाल ॥ दंडे हणीने वली ते पाड्यो, नूप सुणीने अति घणुं त्राड्यो । ||११॥ पोते बल वाहन ले चाख्यो, जव नजरे ते देवे निहाख्यो ॥ मारी हांक कटक सवी त्रागे, प्राण वेश्ने राजा नागे ॥ १२ ॥ एकले सकल नगर एम जीत्युं, मतिसागर मंत्रीसरे चिंत्यु ॥ माणस रूप नहीं सुण नूप, ए तो दीसे देव सरूप ॥ १३ ॥ धूप देप बल बाकुल दीधो, विनति करीने परगट कीधो ॥ केणे अपराध को तुज खामि, जाखो नाम कहुं शीर नामी ॥ १४ ॥ अविवेक ए राजा ताहारो, सऊन शिरोमण धर्मगुरु माहारो ॥ जिनदत्त शेउने निरापराध, करवा मांमी अति श्राबाध ॥ १५ ॥ तेणे ढुं नगर लोकने मारुं, माहारा गुरुनी पीडा वारु ॥ तुम गुरु शेठ थयो |केम देव, पूरव नव दाख्यो तव देव ॥ १६ ॥ धन्य तुं देव मंत्रीसर बोले, जन्मांतर उपगारी तुं तोले ॥ पदेली वय पाणी जे पीधुं, अंतकाले श्रीफल ते दी● ॥ १७ ॥
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
वर्मपरी ॥१४॥
यतः-प्रथमवयसि पीतं तोयमल्पं स्मरंतः।
शिरसि निहितनारा नासिकेरा नराणाम् ॥ उदकममृतकल्पं दाराजीवितांतं ।
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ॥१॥ नगर तणुं टालो पुःख देव, जे कहो ते हवे कीजे सेव ॥ सहुको शरण करो || | जिनदत्तनु, जो मन जे तुमने जीवितवें ॥ १७ ॥ राजा प्रजा सहु देहरे आवे, पगे | लागी अपराध खमावे ॥ हाथीपर बेसारी शीषे, नगर मांहीं आएयो अवनीशे ॥ १ए ॥ उव्या सुजट थयो जयकार, सोवन वृष्टि करी श्रति सार ॥ रतन त्रण अमु-| लक दीधां, शेठ तणां मनवंडित सीधां ॥ २० ॥ सहुको लोक करे परशंसा, धर्म तणी न करे को खींसा ॥ देखो धर्म तणां फल वीर, नवमी ढाल नेमे कही सधीर ॥२१॥
उदा. रतन ले ते मुज पिता, शेजय गिरनार ॥ चैत्य करावी अनिनवां, तिलक च
॥१४४ माव्यां सार ॥१॥ प्रसेनजीतने श्रापीयां, रतन त्रण उदार ॥मादा गुरुनोजक्त ए, ए। मन करी विचार ॥२॥ लोदषुराने वली दीयां, रतन त्रण सुखकार ॥ तेणे द्यूते ते
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
सु
हारीयां, सुर गयो स्वर्ग मोजार ॥ ३ ॥ केणे दीक्षा के बार व्रत, केणे समकित विशेष | बालपणे दृढ हुं थयो, धरम तणां फल देख ॥ ४ ॥ कहे सघली साधुं कयुं, कुंदलता कहे जून || राजा श्रेणिक चिंतवे, अहो नारी ए छूट ॥ ५ ॥ मुज पिताना राजमां, ए थइ सघली वात ॥ पापण ए माने नहीं, पूढीश हुं परजात ॥ ६ ॥ शेठ कहे जयश्री प्रते, सुण गोरी गुणराश ॥ तें दीव्रं कं सांजल्युं, धर्मफल तेह
प्रकाश ॥ ७ ॥
ढाल दशमी. चोपानी देशी .
कड़े पहेली नारी सुखो कंत, नगरी उजेपीए नृप गुणवंत ॥ संग्रामसुर नामे जयकारी, शेठ रिषजसेन समकितधारी ॥ १ ॥ तेहने घर जयसेना नारी, शील गुणे सीता श्रवतारी ॥ सम कितवंत सदा सत्य संधा, कर्म वशे करी ते बे वंध्या ॥ २ ॥ एकदा नाइ जणी ते जाखे, पुत्र विना कोण वंशने राखे ॥ एक घमीमां घमी जल बुझे, नंदन विष नाम क्षणमां कुले ॥ ३ ॥ बीजी नारी तणो विवाद, कंत करो करी मन उच्छाद ॥ वय परिणत थइ सुण नारी, वात म काढे ए मुख बहारी ॥
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १४५ ॥
१४ ॥ लोक इसे कहे बुढो बेल, वरघोडे चढी थर बेल ॥ संतति काजे नहीं कोई डूषण, पुत्र यया पढी याशे भूषण ॥ ५ ॥ जोरे इज्य तणी एक बेटी, परणावी सुंदरी गुण पेटी ॥ सुंदरीने सोंपी घर नार, जयसेना करे धर्म व्यापार ॥ ६ ॥ सुंदरीने जन्म्यो सुत सार, वांकीयानां उघड्यां घरबार || पीहर सुंदरी पहोती जाम, बंधूसरी माता पूबे ताम ॥ ७ ॥ सुखणी तुं बे माही जाइ, शोक्य संकटमां केशो सुख माइ ॥ शोक उपर दीधी तुमे जाणी, पूब घर पीने पाणी ॥ ८ ॥ शोक मांही घाली सुख इच्छा, माथु मुंगावी नक्षत्रनी प्रीठा ॥ जयसेना मुज घणुं संतापे, मादारी बांग देखे तिहां कापे ॥ ए ॥ जंजेरी मूक्यो जरतार, दासीथी अवगणे अ पार ॥ बंधूसरी सुणी ए वचन्न, जंपे पुत्री धीरज धर मन्न ॥ १० ॥ जयसेनानुं जी - वित दरशुं, तुजने सुख याशे तेम करशुं ॥ एहवे एक जोगी तिहां श्रव्यो, बंधूसरी मन अधिक सोहाव्यो ॥ ११ ॥ उठी उजी थइ चरणे लागी, सरस निक्षा दीधी अनुरागी ॥ संतोष्यो श्रासन बेसारी, मुज घर निक्षा लेजो हितकारी ॥ १२ ॥ श्रावे ते दिन दिन श्रावासे, नवि रसवती पे उल्वासे ॥ जगते रीजयो जोगी बोले, ताहरे
खंग 9
॥ १४५
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोइ न माइ तोले ॥ १३ ॥ मन माने ते हवे तुं माग, बंधूसरी चिंते मुज लाग ॥ गद्गद साद पुत्री विरतंत, जयसेनाने मारो महंत ॥ १४ ॥ कालीचौदश कहे क-1 पाली, विद्या साधीश समरीश बाली ॥ हरखी बंधूसरी मन कूमी, दशमी ढाल नेमे कही रुमी ॥ १५ ॥
उदा. कालीचौदशने दिने, जोगी जर मसाण ॥ वेताली देवी तणुं, समरण करे सुजाण ॥१॥प्रत्यद थ देवी कहे, वच्छ समरी श्ये काज ॥ जयसेनाने मारो जश, करो वेगे ए काज ॥२॥ देवी श्रावी मारवा, कर साही करवाल ॥ सामुं जोइ नवि शकी, पोसह व्रत रखवाल ॥३॥त्रण प्रदक्षणा देश्ने, आवी जोगी पास ॥ तिम-|| हिज पाठी मोकली, जयसेना श्रावास ॥४॥ वार त्रण एम देवता, श्रावी फरी म-14 साण ॥ जोगी चिंते मुजने, मारे हवे निदान ॥५॥ जयसेना अथ सुंदरी, बेहुमां विरुश् जेह ॥ मारो माता तेहने, म करो कोई संदेह ॥ ६ ॥ जश्ने मारी सुंदरी, देवीए ततकाल ॥ परने चिंते पाडुर्ज, तेना एवा हाल ॥७॥
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी०
॥ १४६ ॥
ढाल गरमी.
दवीला जादव व करी हरीय मनावीए हो लाल-ए देशी. जयसेनाए पारीयोरे लाल, पोसह व्रत परजातरे ॥ शासनदेवी ॥ मूइ दीठी सुंदरीरे लाल, हा केणे कीधी घातरे ॥ शा० ॥ सार करो मुज सामनीरे लाल ॥ ए श्रकणी ॥ १ ॥ साच जूठ कोण जाणशेरे लाल, शोक्या तणो व्यवहाररे ॥शा० ॥ सहु कदेशे मारी होशेरे लाल, कलंक तो अवताररे ॥ शा० सा० ॥ ॥ २॥ शासनसुरी याराधवारे लाल, काजस्सग्ग कीधो साररे ॥ शा० ॥ परगट यइ देवी कहेरे लाल, म करो दुःख लगाररे ॥ शा० सा० ॥ ३ ॥ बंधूसरी दरखित थकीरे लाल, जमाइने घर जायरे ॥ शा० ॥ जाएयुं जयसेना मूइ हशेरे लाल, सुंदरी देखी दुःख थायरे ॥ शा० सा० ॥ ४ ॥ रोती मायुं कूटतीरे लाल, आक्रंद करती अपाररे ॥ शा० ॥ जयसेनाए मारी सुंदरीरे लाल, जइ पोकारी दरवाररे ॥ शा० सा० ॥ ५ ॥ जयसेनाने तेमवारे लाल, माणस मूके रायरे ॥ शा० ॥ तव शासन रखवालीकारे लाल, जोगीने उपायरे ॥ शा० सा० ॥ ६ ॥ जयसेना मोटी सतीरे लाल, एहवां न करे कामरे ॥ शा० ॥ राय आगल जोगी कहेरे लाल, सोने न लागे श्यामरे ॥ शा० सा० ॥ ७ ॥ बंधूसरीए मु
खं
॥ २४६
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
जनेरे लाल, जमामी नली नातरे ॥ शा॥ प्रारथना एहवी करीरे लाल, जयसेना करो घातरे ॥ शा सा ॥ ७॥ में वेताली थाराधीनेरे लाल, मूकी मारण तासरे ॥ शा० ॥ कोण मारे पुण्यवंतनेरे लाल, सुंदरी मारी पापराशरे॥ शा० सा॥ए॥ एहवे| शासनदेवतारे लाल, श्रावी जाखे साखरे ॥ शा० ॥ वचन मख्यां बेड सारिखारे | लाल, वलतुं राजा नाखरे ॥शा सा ॥ १० ॥ बंधूसरी देश वाहरेरे लाल, काढो करे हुकमरे ॥ शा॥ श्राज पठी को एहवारे लाल, न करे अशुन कामरे ॥ शा सा ॥ ११॥ रिषजसेननी नारीनेरे लाल, महोच्छव करे महाराजरे ॥शा ॥ निज मंदिर पोहोती करीरे लाल, सिध्यां वंडित काजरे ॥शा सा॥ १२॥ सोवन वृष्टि करी तिहारे लाल, महिमा कीधो देवरे ॥ शा॥ साचो धरम संसारमारे लाल, सहु करजो नित्यमेवरे ॥ शाण सा ॥ १३ ॥ राजा समकित पामीरे लाल, धरम तणां फल देखरे ॥ शा ॥ हुं धरमे निश्चल थरे लाल, ते देखी सुविशेषरे ॥ शा सा
१४ ॥ शेठ सहित ब जामनीरे लाल, कहे साचु कडं एहरे ॥ शा॥ लता कहे मानुं नहींरे लाल, नाख्युं कूड़ें तेहरे ॥ शाप सा० ॥ १५ ॥ श्रेणिकादिक चिंतवेरे लाल, जुर्म हीली नाररे ॥ शा० ॥ सातमो खंग पूरो थयोरे लाल, नेमविजय सुख
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥ १४७॥
| काररे ॥ शा०. सा० ॥ १६ ॥ हीर विजय सूरि तणोरे लाल, शुज विजय तस शिष्यरे ॥ शा० ॥ जाव विजय कवि दीपतारे लाल, सिद्धि नमुं निशदिसरे ॥ शा० सा० ॥ १७ ॥ रूपविजय रंगे करीरे लाल, कृष्णविजय कर जोडरे ॥ शा० ॥ रंगविजय गुरु माहरारे लाल, नावे कोई एहनी होमरे ॥ शा० सा० ॥ १८ ॥ सातमा खंड तणी कहीरे लाल, अग्यारमी ढाल रसालरे ॥ शा० ॥ नेम कहे नवियण तुमेरे लाल, सांजलो बालगोपालरे ॥ शा० सा० ॥ १७ ॥
इति श्रीधर्मपरीक्षा से सप्तम खंड संपूर्ण.
खं
॥ १४७
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
|दिक मागीरे, हुआ बहु रागी जिन त्रिए थ नहींरे ॥ तुं तो जुधारीरे, सात व्यसननो धारीरे, केणी परे अविचारी पामशे एहनेरे ॥ ७ ॥ बोले अहंकारीरे, जो जो मति मारीरे, न परणुं ए नारी तो कहेजो पशुरे ॥ चाल्यो पर द्वीपेरे, एक साधु समीपेरें, सघली विधि दीपे जेम श्रावक शिशुरे ॥ ८ ॥ फरी श्रव्यो वेगेरे, मनने उद्वेगेरे, देहरे संवेगे यावी पूजा करीरे ॥ गाये गीत रसालरे, चोखी कहे ढालरे, देखी धनपाल पूढे उलट धरीरे ॥ ए ॥ किहांथी तुमे श्राव्यारे, कोण जाते कहाव्यारे, मनमां बहु जाव्या वाणारसी नयरे वसुंरे ॥ मा बापे कालरे, कीधो कालरे, ब्राह्मण दयाल अतुं कहुं केशुंरे ॥ १० ॥ धीरज मन धरतारे, तीरथ जात्रा करतारे, एणी परे फरतां एक दिन मुनिवर मल्योरे ॥ तेणे जाख्यो धर्मरे, जेहथी शिव शर्मरे, सुणी जिनधर्म मुज मिथ्या मत टब्योरे ॥ ११ ॥ चैत्यवंदन काजरे, आव्यो इहां खाजरे, अवधारो महाराज शेठ कहे अशुंरे ॥ घर
वो देवरे, करशुं तुम सेवरे, सोमा ततखेव तुजने परणावरे ॥ १२ ॥ विष सरीखी वामरे, तेहशुं नहीं कामरे, तस लीजे नहीं नाम वग एम कहेरे ॥ आग्रहअति कीधरे, जाएयुं कारज सीधरे, परणीने परसीध संधा निरवहीरे ॥ १३ ॥ जुवारी जेथरे,
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
गर्मपरी
||जाइ नाखे तेथरे, सह श्रावो एथ कंकण बांधी थावीरे ॥ कीधो परपंचरे, दुवो रोमंचरे, जुर्ड मुज संच सोमा घर लावीरे ॥ १४ ॥ करे कै तव प्रशंसारे,
कर जोमी नमस्यारे, न करे को खींसा ते सुख जोगवेरे ॥ पूरे मन श्राशरे, नर-16 मानारी आवासरे, सवि विलास रयणी दिन जोगवेरे ॥ १५ ॥ गयो केतो कालरे, वली
तेहज हवालरे, नवि जाये ढाल जेहने जे पमीरे ॥ प्रकृति जासरीररे, विचले नवि कधीररे, पहेली सुणो वीर ढाल खंग आग्मे जमीरे ॥ १६ ॥
उदा. ___ मरजादा पाली नली, दिवस केटला सीम ॥ द्यूतासक्त वली थयो, श्यो कपटीनो)
नीम ॥१॥ सुमित्रा वेश्या सुता, कामलता तसु नाम ॥ तेहगुं विलसे रातदिन, तजी | कापणी वाम ॥२॥सोमा मनमा मुख धरे, नयणे मूके नीर ॥ सुणी वात शेठे सहु,
दे पुत्रीने धीर ॥३॥ बेटी पुःख कीजे नहीं, दीजे कर्मने दोष ॥ सुख कुःख सरज्यां alपामीए, श्यो कीजे हवे शोष ॥४॥ आशा तजी जरतारनी, धरी बेठी धर्म ध्यान ॥१४॥
॥ श्ह नव परजव जेहथी, सुख पामशे निरवाण ॥५॥ मानी वात पिता तणी, एक प्रासाद कराव ॥ प्रतिमा श्री शांतिनाथनी, थापी मनने नाव ॥ ६ ॥ प्रतिष्ठा कीधी
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंम ७ मो.
उदा. पूजे चंदनश्री प्रते, अईदास उदास ॥ नामनी ते जगवंतनो, लह्यो धर्म तेम नास ॥१॥ कहे नारी कपीथपुरे, अरिमर्दन राजान ॥ सोमदत्त ब्राह्मण वसे, दारिख तणो निधान ॥२॥ तेहनी नारी सोमीला, ताप थकी मूझ सोय ॥ रति नवि,
पामे द्विज किहां, करे उःख बहु रोय ॥३॥ सोमदत्त वनमा गयो, मख्यो साधु मकाहानाग ॥ तेहने वचने उपन्यो, निर्जय मन वैराग ॥ ४॥
यतः- नवौतबिलेऽमुष्मिन् । कलेवरगृहे किल ॥
जीवस्य वसतः काल-व्यालतः कुशलं कियत् ॥ १॥ श्रावकनां व्रत आदरी, श्राव्यो नगर मोकार ॥ धर्म प्रनावे धन मट्यु, तज्या पाप व्यापार ॥ ५॥ वामवने माने घj, व्यवहारी धनपाल ॥ स्वामी जाणी थापणो,
करे सार संजाल ॥६॥ रोगाकुल थयो एकदा, ब्राह्मण ते सोमदत्त ॥ तेमावी धनलापालने, कहे बांधव सुण वत्त ॥ ७ ॥
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
| १४८ ॥
ढाल पहेली. मुज लाज वधारो रे-ए देशी.
ब्रह्म कवातरे, सुप शेव सुजातरे, दिन रयणी न जात चिंता वे मुजनेरे ॥ ते टालो जाइरे, जेम सद्गति थाइरे, तुं परम सखाइ कहुं हुं तुजनेरे ॥ १ ॥ चिंता | हेतु दाखोरे, कांइ मनमां न राखो, जे मुजने नाखो ते करशुं सहीरे ॥ सोमदत्त वली बोलेरे, तुं पुरुष अमोलेरे, तारे कोण तोले खावे इस महीरे ॥ २ ॥ सोमा मुज कन्यारे, गुण लक्षणे धन्यारे, नहीं एवी अन्या सोपुं तुज जणीरे ॥ ब्राह्मण नहीं खीखोरे, जिन धर्मे जीणोरे, जोइ प्रवीणो करजो एहनो धणीरे ॥ ३ ॥ शेठे कयुं वारुरे, परमेसर सारुरे, एम करशुं विचारी आणी निज मंदिरेरे ॥ द्विज सरगे पहोतरे, जिहां सुख बढ़ोतरे, शेठ गुणयुत पाले पुत्रीनी परेरे ॥ ४ ॥ संगति साध्वीनीरे, साते धाते जीनीरे, जिन धरमे लीनी करती जिन पूजनारे || दीवी रुद्रदत्तेरे, लागी तस चित्तेरे, निज मित्रने पूबे ए केहनी धूयारे ॥ ५ ॥ मित्र कहे सुख जाइरे, | सोमदत्तनी जाइरे, धनपाल घरे या वाधे सुंदरीरे ॥ रुद्रदत्त कहे परणीरे, करीश हुं घरणीरे, ए अनोपम तरुणी सोवन मुडमीरे ॥ ६ ॥ हुती वरुजागीरे, दीक्षिता
खं
२४८.
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
पढी, संघ जगत करी सार ॥ सुमित्रा कामलता सहित, तेड्यो रुद्र जुवार ॥ ७ ॥ जोजन जलां करावीने, दीघां फोफल पान ॥ नजे न उत्तम अधम पाप, चंद्र तणो श्रहिना ॥ ८ ॥
- निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु । दयां कुर्वति साधवः ॥
न हि संहरति ज्योत्स्नां । चंद्रश्चांमालवेश्मनि ॥ २ ॥ ढाल बीजी.
यतः
काची कलीय मतोम लविंगरी मालीयां, पीयु चांल्या परदेश बेठी होती मालीयां - ए देशी.
सोमानुं रूप देखी सुमित्रा शिर धूणे, चिंते चित्त मांही एम अहो ए किम बने ॥ एहवी सुंदर नारी तजी केम पापीए, अथवा कै तव बुद्धि विचारे नवि हीये ॥ १ ॥ काम एह कयुं जे पुत्रीने जायगे, जो रहे जीवती एह याये शल्य जायगे ॥ एम विचारी फूल सर्प घाली घडे, कामलता लेइ साथ यावी आदर वडे ॥ २ ॥ सरस कुसुमनी माल आणी में जोवती, पूजी एणे जिनराज पापमल धोवती ॥ सरलपणे करस्पर्श कर्यो घटे जेटले, जुजंगम फूलमाल थयो ते तेटले ॥ ३ ॥ लेइ सुगंधी
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपo
॥ १५० ॥
फूल जिनेश्वर अरचीया, केसर चंदन अगर कपूरे चरचीया ॥ कामलता गले हारें घाल्यो रमत मिषे, नाग डस्यो ततकाल पी जोंय तसे ॥ ४ ॥ मृत पुत्रीने देख अका कूटे हैयुं, आक्रंद करे यपार दैव तें शुं कीयुं ॥ करे विलाप अनेक नयणे यांसु ऊरे, घट सरप लेइ वेगे यावी नृप मंदिरे ॥ ५ ॥ करती हाहाकार कहे पोकार करी, देव सुणो अरदास सोमा अति मद जरी ॥ माहरी बाल हवे हुं केम करूं, हुं मोशी निराधार जीवित केणी परे धरूं ॥ ६ ॥ सोमा तेमावी राय कहे कुल खांपणी, कामलताने कांइ मारी तें पापिणी ॥ कहे सोमा महाराज वचन अवधारीए, जयणा सूक्ष्म जीव थूल केम मारीए ॥ ७ ॥ मांगी पूरव वात सोमाए सवी कही, देखाड्यो घट साप मित्रा अवसर लही ॥ पंच वरण फूलमाल सोमा हाथे धरी, मित्रा काले हाथ अहि याये फरी ॥ ८ ॥ वार त्रण एम नाग कुसुममाला दुवो, कहे सजा सहु कोय सोमा साची जुर्ज ॥ देखी चमक्यो भूप नहीं ए मानवी, प्रत्यक्ष देवी तेह एम मन थावी || कर जोमी करे राय सोमाशुं विनति, कामलता जीवाको अबो तुम महा सती ॥ मंत्र नवकार प्रजाव मूर्ग मटी ग, सती तणे करस्पर्श उठी बेठी थइ ॥ १० ॥ सुमित्रा निज करतूक प्रकाशी शुन मते, धर्म तणां फल देख लह्यो धर्म भूप ते ॥
खंग
॥ १५०
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुदत्तादिक छावर तिहां श्रावक थया, तेणे ठामे सुणी स्वामि पाप सवि मुज गयां ॥ ११ ॥ शेठ शेठाणी सर्व कहे साधुं कयुं, कुंदलता कहे जून में नवि सद्दधुं ॥ - शिक अजयकुमार वचन ते सांजली, चिंते हवीली नार न दीसे ए नली ॥ १२ ॥ देशुं दंग प्रजात राते नवि बोलीए, वेचीने निज जंघ उजागरो कोण लीए ॥ आठमे खंडे ढाल बीजी ए सोहती, कदेशे मित्र श्री वात नेम मन मोहती ॥ १३ ॥ डुहा.
अईदास मित्रश्री प्रते, पूबे बहु धरी प्रेम ॥ केम प्राप्ति थ धर्मनी, सा पामी कहे ते ॥ १ ॥ वच्छ देशे नगरी वमी, कोसंबी सुख थान ॥ धनंजय राजा तिहां, सोमशर्मा परधान ॥ २ ॥ मासोपवासी एकदा, आव्यो साधु उद्यान ॥ तास प्रजावे वन थयां, नवां फूल फल पान ॥ ३ ॥ मासखमणने पारणे, नगरमा कृषिराय ॥ श्रा व्या वोहोरण देखीने, प्रणमे मंत्री पाय ॥ ४ ॥ शुद्ध पान असने करी, प्रतिलाभ्यो धरी जाव ॥ पंच दिव्य प्रगट थयां, पात्र दान प्रस्ताव ॥ ५ ॥ विस्मय पाम्यो वेगशुं, आव्यो जिहां अणगार ॥ पूढे बे कर जोडीने, जगवन् कहो विचार ॥ ६ ॥ श्रनिहोत्री दिक्षित जणी, दीघां में बहु दान ॥ कनक नाग तिल अश्व रथ, दासी मही
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी परधान ॥ ७॥ कन्या कपिला धेनु वली, महादान दश एह ॥ पण अतिशय दीगे |
नहीं, शुं कारण जे तेह ॥ ७॥ ।१५१॥
ढाल त्रीजी.
नणदलनी देशी. मुनिवर कहे महेता सुणो, असंजति एह अजाण ॥ शुज मन ॥ कायनी हिंसा करे, तेणे फल नहीं मन आण ॥ शु मु॥ १॥ ए श्रांकणी ॥ उखर खेत्रे वावीयो, जेम निष्फल थाये बीज ॥ शु० ॥ तेम दीधुं कुपात्रने, ते पण गणो तिमहीज ॥ शु|
मु॥५॥ ज्ञानवंत क्रिया करे, ते जाणीजे सुपात्र ॥ शु॥तेहने दीधुं बहु फले, तप| IN करे निरमल गात्र ॥ शुग मु० ॥३॥
___ यतः-एकवापीजलं सिक्त-माने मधुरतां व्रजेत् ।
____निंबे च कटुतां याति । पात्रापात्र नियोजनात् ॥ १॥ IN पूजे मंत्री मुनि प्रते, चित्त कोमल नहीं धीठ॥शु०॥माहारी परे बीजे केणे, दान १५१
तणां फल दी ॥ शु० मु० ॥ ४॥ विश्वनूति ब्राह्मण तणी, कथा कहे मुनिराज ॥शु०॥ देश वैराट दक्षिण दिशे, सोमप्रन तिहां राज ॥शु मु०॥५॥ ब्राह्मणने माने घj,
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
नक्ति करे नित्यमेव ॥ शु० ॥ बेठो सजा मांहे एम कहें, वाकव जगमां देव ॥ शु० मु० ॥ ६ ॥ वित्त सफल करवा जणी, बहु सुवरण नामे जाग ॥ शु० ॥ ब्राह्मण पासे मंगावीयो, पुण्य उपर धरी राग ॥ शु० मु० ॥ ७ ॥ जगन करे तिहां दुकमो, विश्वभूति रहे विप्र ॥ शु० ॥ खले जइ जब जाचीने, साधुं करे ते विप्र ॥ शु० मु० ॥ ८ ॥ चार पींमी करे तेहनी, पहेली हुतवह पोख ॥ शु० ॥ बीजी तिथि त्रीजी पोते, चोथी नारी संतोष ॥ शु० मु० ॥ ए ॥ आव्यो मुनिवर गोचरी, विश्वभूतिने बार ॥ शु० ॥ बीजे पिंके निमंत्रीयो, नवि लीधो अणगार ॥ शु० मु० ॥ १० ॥ मुज पिंकी ल्यो खामिजी, सचित्ते मिश्रित दीठ ॥ शु० ॥ ते पण मुनि लीधी नहीं, नारी बोले मीठ ॥ शु० मु० ॥ ११ ॥ श्राहार माहारो प्रभु दीजीए, ए बे मोटुं पात्र ॥ शु० ॥ आज सफल दिन आपणो, जंगम तीरथ जात्र ॥ शु० मु० ॥ १२ ॥ आहार लीधो मुनिए सूजतो, | हेम रतन यर वृष्टि ॥ ० ॥ नर नारी बेदु थयां, सुधां सम कितदृष्टि ॥ शु० मु० ॥ १३ ॥ नरपतिने जर द्विज कहे, देखो जगन फल देव ॥ शु० ॥ कनक धारा वूटी घणी, नूप जणे ततखेव ॥ शु० मु० ॥ १४ ॥ में धन दीधुं तुम जणी, जश्ने त्यो तुमे तेह || शु० ॥ त्रीजी ढाल खंग श्रावमे, नेमविजय कहे एह ॥ शु० मु० ॥ १५ ॥
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी
242 11
डहा·
लेवा ब्राह्मण गया, तव ते थथा अंगाल ॥ क्षण एक रहीने वली ग्रहे, जब थाये ते व्याल ॥ १ ॥ वृद्धे भूपतिने कयुं, नहीं जगन फल नाथ ॥ विश्वभूति कृत दान फल, इह जव परजव साथ ॥ २ ॥ नूप जणे विश्वभूतिने, हुं श्राव्यो तुज गेह ॥ जगन्य श्राध फल लेश्ने, दान याध फल देह ॥ ३ ॥ विश्वभूति बोले हसी, दान फल न देवाय ॥ देव तणुं वित्त ल्यो तमे, अध फल यो कहे राय ॥ ४ ॥ विश्वभूति वलतुं कहे, सांजल राय सुजाण ॥ स्वर्ग मुक्ति सुख जेहमी, ते कोण वेचे दान ॥ ५ ॥ देखी सत्य नृप द्विज तणुं, त्रुट्यो आपे रिद्ध | दलिय गयुं विश्वमूतिनुं, जिहां साहस तिहां सिद्ध ॥ ६ ॥ नूपति पूबे मुनि प्रते, दान केतां कहो | स्वाम ॥ त्रिधा दान मुनिवर कहे, दीधे सीजे काम ॥ ७ ॥
ढाल चोथी.
नयरो नगीनो मारो, हाररो हीरो मारो, केसररो जीनो मारो साहेबो, राजेंद्र मारा, घडी एक रहो जूकाय हो-ए देशी
शास्त्रे दान ते जाणी, राजेंद्र मारा, रा० लिख लिखावी ग्रंथ हो ॥ साधु जी
खं
॥ १५२ ।
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते दीजीए, रा० वावे मुक्तिनो पंथ हो ॥ १॥ ए यांकणी ॥ दान जविक जन दीजीए, रा० दाने दोलत थाय हो । जश कीरति इह जब लहे, रा० परजव मुगति जाय हो ॥ दा० ॥ २ ॥ अजयदान नर जे दीए, रा० तेहने जय नवि कोय हो ॥ इद जव परजव जाणजो, रा० शिवपुरनां सुख होय हो || दा० ॥ ३ ॥ आहार उषध वस्त्रे करी, |रा० थिर धरमे थापी जे हो ॥ धरम थयो जाव दानथी, रा० आठ करम कापीजे | हो ॥ दा० ॥ ४ ॥ कर नीचा जिनवर करे, रा० अन्नदान परधान हो | तेहनी उपम कुण कहुं, रा० दीजे देइ मान हो ॥ दा० ॥ ५ ॥
यतः–ददखान्नं ददखान्नं । ददखान्नं युधिष्ठिर ॥
अन्नदः प्राणदो लोके । प्राणदः सर्वकामदः ॥ १ ॥ रोगियो भेषजं देयं । रोगा दे विनाशकाः ॥ देहनाशे कुतो ज्ञानं । ज्ञानानावे न निवृत्तिः ॥ २ ॥
व विविध प्रकारां, रा० हित करी थापे हाथे हो ॥ तेहनुं फल सद्गुरु कहे, रा० बत्र धरावे माथे हो ॥ दा० ॥ ६ ॥ दान त्रण एम सांजली, रा० पृथ्वीपति प्रतिबुद्ध हो । विश्वभूति पण तिहां थयो, रा० व्रतधर श्रावक शुद्ध हो ॥
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
। १५३ ॥
| दा० ॥ ७ ॥ सोमशर्मा मंत्री श्वरे, रा० कथा सुणी नीम लीध हो || लोहायुध धरूं नहीं, रा० काठ कृपाज कीध हो ॥ दा० ॥ ८ ॥ पिशुने काठ कृपापनी, रा० भूपतिने वात ते जाषी हो | सजा मांहे नृप बेसीने, रा० छासिनी वात प्रकाशी | हो || दा० ॥ ॥ खड्ग जोइ क्षत्रिय तणां, रा० मंत्रीनो असि माग्यो हो ॥ खल विलसित जाएयुं खरु, रा० जरम सही मुज जाग्यो हो ॥ दा० ॥ १० ॥
यतः - परवादे दशवदनः । पररंध्र निरीक्षणे सहस्राक्षः ॥
सधृती वित्तहरणे । बाहुसहस्रार्जुन पिशुनः ॥ १ ॥
साचो धरम जो माहरो, रा० तो लोहमय असि थाजो हो ॥ एम कही राजाने दीयो, रा० संकट डूरे जाजो हो ॥ दा० ॥ ११ ॥ कोश थकी राये काढी, रा० लोह फलदलतो दीठ हो ॥ खल साहमुं जोइ कहे, रा० केम जूटुं कयुं धीठ हो ॥दा ॥ १२ ॥ यतः - सर्वदेवमयो राजा । वदंति विबुधा जनाः ॥
तस्मात्तत्पुरो नैव । वदेन्मृषा कथंचन ॥ १ ॥
I
कालो चुगलने नृप वदे, रा० तव मंत्री एम श्राखे हो ॥ कोप प्रभुजी मत करो, रा० ए जूनुं नवि जाखे हो || दा० ॥ १३ ॥ में जिनधर्मज आदर्यो, रा० जाण्यो लोहनो
ཁྐྲི་
॥ १५३
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रत्यक्ष
दोष हो ॥ काष्ठ कृपाण करावीयो, रा० पुण्य तणो थयो पोष हो ॥ दा० ॥ १४ ॥ हमणां धर्म प्रजावथी, रा० लोह खड्ग ए दीसे हो ॥ सांजले राजा प्रजा सहु, रा० धरम करो निशदिसे हो ॥ दा० ॥ १५ ॥ हुं धरमे निश्चल थइ, रा० प्रत्यय जोय हो ॥ शेठ प्रमुख साधुं कहे, रा० लता न माने सोय हो ॥ दा० ॥ १६ ॥ चोर मंत्री राजा कहे, रा० तजे न डुरजन चाल हो ॥ खंग श्रमे चोथी जली, रा० | नेमविजय कहे ढाल हो ॥ दा० ॥ १७ ॥
उदा.
नागश्री पूढे की, जंपे मधुरी वाण ॥ में एम समकित पामीयुं, प्रीतम हयडे आप ॥ १ ॥ नगरी नाम वणारसी, जीतारि तिहां जूप ॥ कनकचित्रा राणी रतन, रंजा सरखी रूप ॥ २ ॥ सुता सुमित्रा तेहनी, माटी बहोली खाय ॥ पांडु रोग तेथी थयो, आर्या मली एक आय ॥ ३ ॥ तस उपदेशे तिषे तज्यां, अनंतकाय अक्ष ॥ निरुज य ते कन्यका, फल्यो नियम प्रत्यक्ष ॥ ४ ॥ जोवन श्रावी जाणीने, नृप विवाह निमित्त ॥ पट्ट अनेक देखामीया, कोइ न श्राव्यो चित्त ॥ ५ ॥
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेंपरी
१५४॥
ढाल पांचमी. सुमला संदेशो कहे मारा पूज्यनेरे, मानीश तुज उपगाररे-ए देशी.. एहवे अंगदेशनो धणीरे, नवदत्त नामे नूपालरे ॥ जीतारि नृप प्रते एम कहेरे, मुजशु करो विवसालरे ॥ ए०॥ १॥दासीना पुत्र तुज केम देरे, जाति हीण मनमा जाणरे ॥ राजकन्या जोग ए केम होयरे, बोलजे विमासी वाणरे ॥ ए॥२॥ नवदत्त कहे जाति शुं करेरे, जो मांहि गुण नवि होयरे ॥ गुणने आदर सहुँ करेरे, जाति न माने कोयरे ॥ ए० ॥३॥ गुणवंत तो पिण तुज जणीरे, कन्या केम देवायरे ॥ जो लाखिणी तोपण वाणहीरे, तेहिज पेहेरवी पायरे ॥ ए० ॥४॥ राज्य तणी करे कामनारे, तो पुत्री परणावरे ॥ नहिंतर बेवे लेयशुरे, मुज वचन मन लावरे ॥ ए॥ ५ ॥ जीतारि कहे जीतशेरे, संग्रामे मुज जेहरे ॥ मुजयी श्रधिको जे होशेरे, कुंवरी पति गणे तेहरे ॥ ए० ॥६॥ घर आवी सेना सजीरे, जव चाले नवदत्तरे ॥ राणी कहे तिणे अवसरेरे, एक सुणो प्रनु वत्तरे ॥ ए० ॥ ७॥ कन्या काजे कलह किशोरे, सरखे कुले विवाहरे ॥ नृप कहे वचन जीतारिनुरे, कारण ककारण उच्चाहरे ॥ ए० ॥ ७ ॥ नवदत्त आव्यो उतावलोरे, अरिनी सीम नजीकरे ॥
॥१५४
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीतारिए ते सांजलीरे, वदे वचन निरनीकरे ॥ ए० ॥ ए॥ मूषक जेम मंजारी त
णारे, दिल करे पामण दंतरे ॥ मृगलो सिंहने जेम मारवारे, खरी धरे मन खंतरे Vए ॥ १० ॥ वींटी नगरी ते चिहुं दिसेरे, मंत्री कहे तेणी वाररे ॥ कन्या स्वामि आपणी दीजीएरे, नीति वचन संजाररे ॥ एम् ॥ ११ ॥ यतः-त्यजेदेकं कुलस्यार्थे । ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ॥
ग्रामं जनपदार्थे च । आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत् ॥ १॥ बोले जीतारि रखे बीहोरे, अरि बल नाखू तोमरे ॥ साचुं कर्तुं तुमे स्वामिजीरे, पण परदल बहु जोररे ॥ ए० ॥ १२ ॥ साहस सिकि होशे सहीरे, नेली करो बहु नेडरे ॥ सत धरी राम लक्ष्मणेरे, रावण नाख्यो उथेमरे ॥ ए० ॥ १३॥ पूत मूकीने कहावीयोरे, नवदत्ते जली नातरे ॥ सुता देश्ने सुखे रहोरे, कां पमो मृत्युनी पांतरे ॥ ए० ॥ १४ ॥ वचन सुणीने परजल्योरे, पूतने कीधो दूररे ॥ रणमंका वजमावीनेरे, चमी प्रबल पररे ॥ ए॥ १५ ॥ नेला सुजट मली जड्यारे, जारी थयो । नारथरे ॥ नाठी सेना जीता रिनीरे, बोले मंत्रीसर तथरे ॥ ए०॥१६॥ राजन श्हां र
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेंपरी
१५५॥
हेवू नहींरे, जीतारि कहे तामरे ॥ जीयो नर लक्ष्मी लहेरे, वरे मृतने सुरवामरे ॥ ए॥१७॥
जीवेच लज्यते लक्ष्मीः। मृते चापि सुरांगना ॥
कायोऽयं क्षणविध्वंसी । का चिंता मरणे रणे ॥१॥ पामे शिवसुख जीवतोरे, एम समजाव्यो नरंदरे ॥ आठमा खमनी पांचमीरे, ढाल कही नेमे आणंदरे ॥ ए० ॥ १७ ॥
उदा. ___ जीतारि गढमा रह्यो, जवदत्त जांजी पोल ॥ नगर बुंटवा मांडीयो, थयो हाल कलोल ॥१॥ मुज कारण अनरथ होये, सुमित्रा देख सरूप ॥ सागारी अणसण करी, जाइ पमी जल कूप ॥२॥ पुण्य प्रजावे थल थयु, थावी सुरवर कोड ॥ सती थापी सिंहासने, उन्ना बे कर जोम ॥३॥ राजजुवनमा पेसतां, देवे थंन्यो नवदत्त॥ एहवे किणही श्रावीने, कहे सुमित्रा क्त्त ॥५॥ तज्यो क्रोध अहंकार सुण, पाम्यो परम समाध ॥ सुमित्राने श्रावी कहे, नगिनी खम अपराध ॥ ५ ॥ जीतारि जवदत्त
॥१५
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
बे, मलीया मांहो मांद ॥ पाटे थापी निज पुत्रने, लीधी दीक्ष उबांह ॥ ६ ॥ प्रत्यक्ष पुण्य फल देखीने, हुं थइ समकित धार ॥ कुंदलता कहे ए असत्य, तें नाख्युं निरधार ॥ ७ ॥
ढाल बडी. रसीया राचोरे दान तणे रसे - ए देशी.
"
बेताने शेवजी, केम थइ समकित प्राप्ति ॥ सोजागी ॥ सा कहे खामि कंपिलपुरवरे, हरिवाहन राजा शुन मति ॥ सो० पु० ॥ १ ॥ रिषनदासं शेठ तिहां वसे, पदमावती प्रिया श्राधार ॥ सो० ॥ पदमश्री पुत्री बे तेहने प्रत्यक्ष लक्ष्मीनो अवतार ॥ सो० पु० ॥ २ ॥ जरजोवन युवति यावी जली, एक दिन देहरे जातां दीव || सो० ॥ बुधदास शेठ तणे सुते वली, बुद्धसिंह घरे श्राव्यो नीठ ॥ सो० | पु० ॥ ३ ॥ काम तो बाणे करी पीमीयो, पमीयो जाइ जुने खाट ॥ सो० ॥ | जमणवेला थर पूढे शेवजी, जमे नहीं नंदन श्या माट || सो० पु० ॥ ४ ॥ लाज तजीने वात कही तेणे, बेटा जूठो न कीजे जक्क || सो० ॥ मदिरा मांस नखी जे आपणे, चंमालयी तिण गणे अधिक ॥ सो० पु० ॥ ५ ॥ तेहनी पुत्रीनी आशा
॥
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
। १५६ ॥
धर्मपरी० कीसी, वलतुं बोले बुद्धसिंह बोल || सो० ॥ के परशुं के सरणं श्रागनुं, ए मुज जाणो वचन अमोल || सो० पु० ॥ ६ ॥ श्राश्वासीने तेह जमामीयो, करशुं तादरुं वेगुं काम || सो० ॥ दिन दिन देहरे जाइ उपासरे, श्रावक थयो कपट परणाम ॥ सो० पु० ॥ ७ ॥ बुद्धसिंहे परणी रिषन सुता, पदमश्री आणी श्रावास ॥ सो० ॥ मिथ्या करणी देखी तेहनी, दिल मांही ते रही विमास ॥ सो० पु० ॥ ८ ॥ पदमश्रीने बुध गुरु एम कहे, पुत्री सिध्यां वंदित काम || सो० ॥ सर्व धर्म मांहे बोध धर्म वडो, जिहां दुःख तणुं नहीं नाम ॥ सो० पु० ॥ ए ॥ उत्तर वलतो पदमश्री दीए, हंस सरिखा जे नर होय ॥ सो० ॥ पाणी दूध पटंतर ते करे, अरिहंत धर्म समो नहीं कोय ॥ सो० पु० ॥ १० ॥ बिनदास असण करी आराधना, काळे प होतो मुगति मोऊार ॥ सो० ॥ सासु ससरो नणंद विशेषयी, संतापे वली तस जरतार ॥ सो० पु० ॥ ११ ॥ तोपण धरम न मूके मानिनी, ससरो कहे वहु सांजल वात ॥ सो० ॥ तारो बाप मरी मृगलो थयो, वनमां मुज गुरु लही अवदात ॥ सो० ॥ १२ ॥ जो तुम गुरु एवा ज्ञानी अबे, तो परजाते तेह जमान ॥ सो० ॥ हुं पण साचो धरम समाचरुं, नाखुं मिथ्यामति सवि बांग || सो० पु० ॥ १३ ॥ वहुनुं वचन सु
खंग
॥ १५६
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाणीने डरखीयो, तेब्यो जोजन करवा बुध ॥ सो० ॥ पग माबानुं गुरुर्नु पगर, गर्नु
लीधुं न जाणे मूढ ॥ सो पु० ॥ १४ ॥ सुक्ष्म खंड करी वधारीयुं, दहीनो दीधो काको कोल ॥ सो० ॥ शाक करी पीरसे निज हाथशु, गुरु शिष्य जमतां करे कलोल ॥ सो पु॥ १५ ॥ अद्भुत व्यंजन शाक समारीयो, पदमश्रीने दे श्याबास ॥ सो॥ थामा खमनी ढाल बही कही, नेमविजयनी बुद्धि प्रकाश ॥ सो पु० ॥ १६ ॥
उहा. जोजन करीने उठीया, दीधां फोफल पान ॥ श्राज कृतारथ हुँ थयो, गणुं जनम | सुप्रमाण ॥१॥ बाहिर थावी वाणही, जोवे गुरुजी जाम ॥ एक अ बीजी नहीं, पूजे सेवक ताम ॥२॥ शोध करी सघले कडं, अमे न जाणुं पूज्य ॥ पदमश्री श्रावीने | कहे, तुमने न पडे सूज ॥ ३॥ गति जाणो मुज तातनी, पेट पड्यु पगत्राण ॥ पोताने प्रीतो नहीं, अहो नबुं तुम ज्ञान ॥ ४॥ बुध गुरु रीसे धडधड्यो, मुखथी बोले गाल ॥ खाधुं अमे शुं खासकुँ, पापिणी बोल संजाल ॥५॥
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
24911
ढाल सातमी. बिंदलीनी देशी.
रिखजी रीस न कीजे, क्रोधे करी संजम बीजे हो | नारी मति निरखोजी ॥ हुं नवि बोलुं मरखा, प्रत्यक्ष देखाडुं परीक्षा हो ॥ ना० ॥ १ ॥ जो कुमी थइ रंग, देवो तुज एवो दंग हो ॥ ना० ॥ मुंगी मस्तक खर चामी, तुजने मूकीशुं कहामी हो ॥ ना० ॥ २ ॥ जो हुं थाउं साची, तुमे जैन धरमे रहो राची हो ॥ ना० ॥ एम मांहो मांहे जाखी, पामोशी राख्या साखी हो ॥ ना० ॥ ३ ॥ जबकाव्या ते मोगा, मिंडलना करी प्रयोगा हो ॥ ना० ॥ खंग चरमना जीणा, देखामी कीधा दीणा हो ॥ ना० ॥ ४ ॥ मठ पोताने श्राव्यो, बुधदास शेठ तेमाव्यो हो ॥ ना० ॥ कहे वहुने काढ घरणी, कुटुंबनो जो होये रथी हो ॥ ना० ॥ ५ ॥ काढी वहु काली हाथे, बुद्धसिंह निसरीयो साथै हो | ना० ॥ मान जिहां नवि लहीए, ते नगरी मांहे नवि रहीए हो ॥ ना० ॥ ६ ॥ एम चिंतवी नीकलीयां, सारथवाहने जइ मलीयां हो ॥ ना० ॥ पदमश्री देखी बलीयो, सारथवाहनो मनं चलीयो हो ॥ ना० ॥ ७ ॥ श्रादर बहोलो
१ मूर्ख.
ཟླ་
1 ՀԱՏ
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
7
तस कीधो, अरधासन बेसण दीधो हो ॥ ना० ॥ जो ए जम घर जावे, तो नारी मुज घर यावे हो | ना० ॥ ८ ॥ चिंतवी एम रसोइ, विष सहित करावे सोइ हो ॥ ना० ॥ जोजनवेला सुविसाले, जमवा बेठा एक थाले हो ॥ ना० ॥ ए ॥ रसवती पीरसी जुइ, बुद्धसिंह मन शंका दुइ हो ॥ ना० ॥ जला बेठा नाइ, एक थाल किसी जुदाई हो || ना० ॥ १० ॥ एम कही नेलं अन्न कीधुं जम्या विष मन्न हो ॥ ना० ॥ पड्या मूरबा खाइ, लोके कयुं शेठने जाइ हो ॥ ना० ॥ ११ ॥ शोकाकुल तिदां यावे, पदमश्री एम बोलावे हो ॥ ना० ॥ पुत्र सारथवाह खांणी, में साकणी तुं सही जाणी हो ॥ ना० ॥ १२ ॥ एहने तुं जीवामे, नहींतर घालुं तुज खांडे हो ॥ ना० ॥ संकट ए को श्राव्यं, पदमश्री मनमां जाव्युं हो ॥ ना० ॥ १३ ॥ सतीए जपी नवकार, उतार्यो विषनो जार हो | ना० ॥ पंच दिव्य तिहां वूगं, शासननी देवा तुम हो ॥ ना० ॥ १४ ॥ पदमश्री प्रिय साथे, नगरे आणी नरनाथे हो ॥ ना० ॥ बोध जति बुधदास, करे जैन धरम उल्लास हो ॥ ना० ॥ १५ ॥ हुं तिहां समकित पामी, प्रत्यक्ष | फल देखी स्वामि हो | ना० ॥ कुंदलतानी कसोटी, ए वातां सघली खोटी दो ॥ ना०
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
परी०
१५८ ॥
॥ १६ ॥ श्रवमा खंमनी ढाल, सातमी कही निपट रसाल हो ॥ ना० ॥ रंग विजयनो शिष्य, नेम प्रणति करे निशदिस हो ॥ ना० ॥ १७ ॥
उदा.
दवे कनकमाला प्रते, पूढे शेठ विचार ॥ तुज सम कितनी बात कहे, रे गुणवंती नार ॥ १ ॥ ते बोली पीड सांजलो, सूर्यपुरे नरपाल ॥ भूपति शेव समुद्रदत्त, सागरदत्ता सुकुमाल ॥ २ ॥ तेहनी कुखे उपनो, सागर नामे कुमार || जिनदत्ता बेटी वली, | मातपिता सुखकार ॥ ३ ॥ शेठ कोसंबी नगरने, जिनदत्ते परणी ते ॥ सागर करम वशे करे, व्यसन सातशुं नेट् ॥ ४ ॥ वचन न माने बापनुं, घणी वार तलार ॥ का ली मूक्यो तेहने, गणी शेठ सुत सार ॥ ५ ॥ श्रारक्षक वली एकदा, काली सौंप्यो राय ॥ कोमी जतन जो कीजीए, मूख्य खजाव न जाय ॥ ६ ॥ तेडी तेहना तातने, | राजा जाखे एम ॥ काढ एहने घर थकी, जो तुं वांबे खेम ॥ ७ ॥
दुर्जन जनसंसर्गात् । साधोरपि जवंति विपदो वा ॥ दशमुखकृतेऽपराधे | वारिधिरपि बंधनं प्राप्तः ॥ १ ॥
खंग
॥ १५८
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल आठमी.
कोयलो परवत धुंधलोरे लोल-ए देशी. मंदिरथी सुत काढीयोरे लोल, सांजली नृपनी वाणरे॥सुगुण नर ॥सागर कोसंबीर गयोरे लोल, जिन जगिनीने जाणरे ॥ सु॥१॥ व्यसन निवारो वेगला रे लोल, (ए आं०) व्यसन अ कुःखदायरे ॥सु॥ व्यसन संगति वारजोरे लोल, जेम तुमने सुख थायरे ॥ सु० व्य० ॥॥ व्यसनी सांजली तेहनेरे लोल, बेहेने न दीधो मानरे ॥ सुणा नाग्यहिण जाये जिहारे लोल, तिहां पामे अपमानरे ॥ सु० व्य० ॥३॥ नगर
मांही सागर नमेरे लोल, कोइ न पूजे वातरे ॥ सु०॥ मुनि दीगे एक तेहवेरे लोल, सहयडे हरख न मातरे ॥ सु० व्य० ॥ ४॥ चरणकमल नमी तेहनां रे लोल, सुणे |
उपदेश सुजाणरे ॥ सु॥ अनंतकाय अजय तज्यारे लोल, व्यसन तणां पच्चरकापरे Fl० व्याय॥ हरखी जिनदत्त इयमलेरे लोल, धरमी सांजली जायरे ॥सु॥ माणस
मूकी तेडावीयोरे लोल, जगति करे मन लायरे ॥ सु० व्य॥ ६॥ आपीने धन आपए॒रे लोल, मंडाव्यो व्यापाररे ॥ सुणा हलवे हलवे पामीयोरे लोल, शोना अव्य अपाररे ॥ सु व्य० ॥ ७॥ तिहां व्यापारे श्रावीयारे लोल, सूरजपुरना शाहरे ॥ सु०॥
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग
॥१५॥
धर्मपरी तेदने देखी तातनेरे लोल, मलवा करे उमाहरे ॥ सु० व्य० ॥ ॥ गामां उंट ने
पोठीयारे लोल, जलां जरी क्रयाणरे ॥ सु॥ बेहेन तणी अनुमति लेरे लोल, सागर कीध प्रयाणरे ॥ सु व्य० ॥ ए ॥ नगर अव्युं जव ढ़करुंरे लोल, निसरीया साथ मूकरे ॥ सु॥ उतावला घर जाइएरे लोल, राते गया वाट चूकरे ॥ सु० व्य० ॥१०॥ अटवी मांही जर पड्योरे लोल, नूखे अति पीमायरे ॥ सु॥ फल पाकां ने फूटरांरे लोल, सहुने श्राव्यां दायरे ॥ सु० व्य० ॥ १९॥ सागर पूजे तेहनेरे लोल, कहो
एहनुं तुमे नामरे ॥सु नाम अमे जाणुं नहींरे लोल, एशुं नहीं मुज कामरे ॥ सु० भव्य० ॥ १२ ॥ जेणे फल खाधां ते ढग्यारे लोल, धरणी तले ध्रसकायरे ॥ सु॥ स्त्रीरूप धरी वनदेवतारे लोल,नियम परीदे थायरे ॥सुव्य० ॥१३॥ सरस सुगंध फल
आगलेरे लोल, मूकी नाखे नारीरे ॥ सु०॥ ए फल सुंदर जे जखेरे लोल, रोग |जरा दे निवारीरे ॥ सुव्य ॥ १४ ॥ जरा जाजरी हुँ हतीरे लोल, तरुणी थ फल खायरे ॥ सु०॥ सागर कहे नाम एहनुंरे लोल, मुजने सुणावो मायरे ॥
सु व्य० ॥ १५ ॥ नाम नथी हुँ जाणतीरे लोल, तो मुजने डे निमरे ॥ सु०॥ व्रतनो नंग करूं नहींरे लोल, ज्या जीवं त्यां सीमरे ॥ सु० व्य० ॥ १६ ॥ दृढपणुं देखी
प ए
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
देवतारे लोल, त्रुटी कहे वर मागरे ॥ सु०॥ मित्र उठाको माहरारे लोल, जेम दुःख जाये जागरे ॥ सु० व्य० ॥ १७ ॥ टाली मूरबा तेहनीरे लोल, खाएया सूरजपुर | पासरे ॥ सु० ॥ रतनमंकपे सागर ठवेरे लोल, नाटक करे उल्लासरे ॥ सु० व्य० ॥ ॥ १८ ॥ राजा अचरिज सांजलीरे लोल, आव्यो जोवा काजरे ॥ सु० ॥ मातपिता श्रावी मल्यांरे लोल, धर्मथी सीध्यां काजरे ॥ सु० व्य० ॥ १७ ॥ धर्म जिनेश्वरनो तिहारे लोल, में पाम्यो मन जावरे ॥ सु० ॥ कुंदलता माने नहींरे लोल, तुमे कहो वात बनावरे ॥ सु० व्य० ॥ २० ॥ नूप सचिव मन चिंतवेरे लोल, पापणी न माने सारे ॥०॥ आठमा खंमनी आठमीरे लोल, ढाल कही नेमे वाचरे ॥सु० व्य० ॥२१॥
उदा.
विद्युत प्रवरा, दवे शेव पूढंत ॥ तुजने प्राप्ति धर्मनी, केम यर कहो विरतंत ॥ १ ॥ बोले ते विद्युल्लता, चंपापुरे सुदं ॥ भूपति राज करे जलो, वरते आप अखंड ॥ २ ॥ शेठ नाम सुरदेव बे, गयो व्यापारे विदेश ॥ अश्वरतन लेइ आवीयो, कुशल यपणे देश ॥ ३ ॥ मूल देइ राजा लीया, घोमा घणा प्रधान ॥ वधी प्रीति नृप शेठने, ते दिनयी बहु मान ॥ ४ ॥ मासखमणने पारणे, शेठ घरे
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
मपरी
१६०॥
एक साध ॥ श्राव्यो देखी चिंतवे, चिंतामणि में लाध ॥५॥ मोदक तस प्रतिला- खक नीने, वांदे बे कर जोम ॥ देवे करी घर आंगणे, वृष्टि कनकनी क्रोड ॥६॥ समुजदत्त नामे वणिक, दान तणां फल देख ॥निंदे निज निरधनपणुं, शेव प्रशंस विशेख ॥७॥
ढाल नवमी. सुण मेरी सजनी रजनी न जावेरे-ए देशी. हुँ हवे परदेशे जश् धन खाटुंरे, दलिखी तणुं नाम पूरे दाटुंरे ॥ चार मित्रशुं समुदत्त चाख्योरे, सिंहलदीप जश् नयणे निहाल्योरे ॥१॥ पलास गाम अनुक्रमे पहोतारे, मांहो मांही कदे गहगहतारे ॥ समुदत्त कहे रहे| अहींयारे, मन माने ते जाउँ तिहारे ॥२॥ सहुको वली शहां एकग था|रे, पनी आपणी दिशे जाशुरे ॥ बीजो साथ नगरमा पेगेरे, सरोवर पाळे समुदत्त बेगेरे ॥३॥ अशोक नामे सोदागर श्राव्योरे, समुपदत्तने तेणे बोलाव्योरे ॥ जो तुं माहरा घोमा पालेरे, ताहरु माग्युं करुं हवालेरे ॥ ४॥ दिन मांहे दोय वेला नूतिरे, खट मास
अंतरे कंबल जूतिरे ॥त्रण वरसनी अवधि कीजेरे, अश्व युगल मन गमता लीजेरे H॥५॥ एम परवीने रह्यो समुदत्तरे, अशोक पुत्रीशुं लाग्युं चित्तरे ॥ मीनं फल ||
॥१६०
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
तस आणी आपेरे, कमलश्री पति तेहने थापेरे ॥ ६ ॥ एक दिन कमलश्री प्रते जाख्युंरे, निज देश जवा में मन राख्युंरे ॥ ते कहे हुं तुज यावीश साथेरे, लखीयो पति तुं माहरे माथेरे ॥ ७ ॥ ईश्वर पुत्री तुं मृडु अंगीरे, सिंहण लंकी नयण कुरंगीरे ॥ हुं निरधनने पंथिक विदेशीरे, केम तुं माहरे साथ श्रावेशीरे ॥ ८ ॥ तुज गुण राती प्रीतम मोरारे, वचन न बोलो एवां कठोरांरे ॥ रागे महिला सोंपेरे प्राणरे, वीरवी रामा करे तस दापरे ॥ ए ॥
ददाति रागिणी प्राणान् । दन्ति द्वेषिणं पुनः ॥
राग विरागो वा । कोपि लोकोत्तरः स्त्रियः ॥ १ ॥
जव मुज तात देखाडे घोमारे, तव दुबला बे लेजो सजोडारे ॥ जे धोलो ते था काशे उडेरे, रातो ते जलमां नवि बुडेरे ॥ १० ॥ एम संकेत करी ते रहीयांरे, चारे मित्र श्राव्या उमीहारे ॥ चालो आपणे देशे जइएरे, कुटुंबशुं मली सुखीया थइएरे ॥ ११ ॥ समुद्रदत्त यावी अशोकने श्रागेरे, त्रण वर्षनी मस्तुकी मागेरे ॥ मै डुरा मोटी
१ चाकरी. २ अश्वशाळा.
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेंपरी
१६१॥
ते देखावेरे, अश्व युगल लो जे दाय श्रावेरे ॥१॥ उबला दीग ते बे लीधारे, समुनदत्तनां वांबित सिधारे॥आठमा खंडनी नवमी ढालरे, नेमविजये कही उजमालरे ॥१३॥
उदा. अशोक कदेरे मूढ तुं, आज कालमां प्राण ॥ मूके एहवा अश्वने, कां से ए अंध जाण ॥१॥ कनकाचरण अलंकर्या, माता उंचा वाह ॥ बीजा ले तुं बापडा, बांमी| एहनी चाह ॥२॥ समुदत्त कहे एणे सयु, नहीं अवरशुं काम ॥ पासे उना ते कहे, जम पुराग्रही नाम ॥३॥हित उपदेश एहने विषे, दीधो निष्फल थाय ॥ मूरखनु औषध नहीं, कहे महा कविराय ॥४॥
यतः- मूर्खस्य षड्चिह्नानि । गर्व पुर्वचनं मुखम्॥
विवादी विरोधी च । कृत्याकृत्यं न मन्यते ॥१॥ मुज पुत्री श्रासक्त , कह्यो हशे एह नेद ॥ गहन चरित्र ने नारीनो, किसो करूं मन खेद ॥ ५॥ जो ए अश्व श्रापुं नहीं, थाय प्रतिज्ञा नंग ॥ कमलश्री परणावीने, दीधा तेह तुरंग ॥६॥
६१।
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
ढाल दशमी.
उदया ते पुररो मांगवोरे, गढ अरबुदरी जान महाराजा, श्रमा मोरी, केसरीयो वर रुमोजी लागे - ए देशी. समुद्रदत्त दवे चालीयोरे, साथे कमल श्री लेय ॥ जन जोजो ॥ अशोक नौवाहक शिखव्यारे, उतरतां कड़े तेय ॥ जन जोजो सहु कोय ॥ वात पूरव जे होय ॥ ए कणी ॥ १ ॥ जिनधर्म सखाइ जीवनेरे, इण जव परजव जोय ॥ जन० ॥ धर्म विना धंधे पड्यारे, सुख नवि पामे कोय ॥ ज० वा० ॥ २ ॥ अश्व युगल जो तुं दीएरे, नदी उतारुं तुज ॥ ज० ॥ समुद्रदत्त कहे तुमे चोरटारे, बोलो एवं अबुज ॥ ज० वा० ॥ ३ ॥ जो तुं बेसीश नावमारे, तो रहेशे हय दोय ॥ ज० ॥ कमलश्री कहे पीयुजीरें, सवि चिंता नाखो खोय ॥ ज० वा० ॥ ४ ॥ आकाशगामी उपरेरे, चढी बेसो मुज संग ॥ ज० ॥ जलगामी हाथे धरीरे, जलनिधि तरो निःशंक ॥ ज० वा० ॥ ५ ॥ तेम करीने उतरे, श्राव्यां चंपापुरी मांद ॥ ज० ॥ एक अश्व नृपने दीयोरे, भूप पुत्री दे उबाह ॥ ज० वा० ॥ ६ ॥ अर्ध राज वली उपरेरे, बे नारीशुं सुख ॥ ज० ॥ समुद्रदत्त नित जोगवेरे, दूर गयां सवि दुःख ॥ ज० वा० ॥ ७ ॥
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६॥
मपरीसुरदेवने श्रापीयोरे, हय नृपरदा काज ॥ ज० ॥ सुर तीरथयात्रा करेरे,चढी विजय
तर वाज ॥ ज० वा ॥ ॥ गगने जातां देखीयोरे, पतिपतिए एक वार ॥ ज० ॥ सुजट सहुने ते कदेरे, बेगे सजा मोकार ॥ ज० वा० ॥ ए॥ ए अश्व श्राणी थापे । जीकेरे, पुत्री सहित अर्ध राज ॥ ज० ॥ तेहने आपुं सांजलीरे, कुंतल कहे लावु वाज ॥ ज० वा० ॥१०॥चंपा मांहे आवीनेरे, जश् हय हरण उपाय॥ज० ॥कोय न लाने तव | तिहारे, कपट श्रावक ते थाय ॥ ज० वा० ११॥सुरदेवने देहरेरे, आंखे पाटा बांध ॥ ज० ॥ पडीयो पूढे तेहनेरे, कहे मुजने आबाध ॥ ज० वा० ॥ १२ ॥ सुरदेव जिन | पूजीनेरे, पूज्यु ए जे कुण ॥ ज० ॥ महा श्रावक अचाक कहेरे, नेत्रा म गांठीन तुण ॥ ज० वा ॥ १३ ॥ पय प्रणमीने विनवेरे, दयावंत सुरदेव ॥ ज०॥ वाले श्रावो आ-IN पणेरे, घर करुं तुमारां नेव ॥ ज० ॥ वा ॥ १४ ॥ मंदिर तेड्यो हाथशुरे, करे परिचर्या तास ॥ ज० ॥ कपटी निशि अवसर लहीरे, हय चढी चाल्यो श्राकाश ॥ ज०| वा ॥ १५ ॥ वदेता वाहने चावखोरे, मार्यों कुंतल वीट ॥ ज० ॥ पाड्यो हेगे पापीनेरे, शत खंड थयो शरीर ॥ ज० वा० ॥ १६ ॥ अश्व जश् अष्टापदेरे, चैत्य तणे रह्यो बार ॥ ज० ॥ विद्याधर हरि देखीनेरे, शषिने पूजे विचार ॥ ज० वा ॥ १७ ॥
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
चारण मुनिए अवधे करीरे, कडं गंधर्व सरूप ॥ ज० ॥ तुरंग विना सुरदेवनेरे, वेदन करशे नूप ॥ ज० वा ॥ २७ ॥ श्रापमा खंड तणी कहीरे, दशमी ढाल रसाल ॥ जगाला ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ ज० वा ॥ १५ ॥
उदा. | सूतो उठ्यो शेठजी, हय नवि दीगे तेथ ॥ अश्वपालने पूर्वीयु, कोण जाणे गयो । केथ ॥१॥ उगी गयो ते धर्म ठग, श्यो उत्तर नृप देश ॥धर्म करंतां एडवो, श्रावी| पमीयो क्लेश ॥२॥ टाले श्री जगवंतजी, मरणांतग उवसग्ग ॥ शरण करी जिन-1 धर्मनो, चैत्य कर्यों का स्सग्ग ॥३॥ चुगले जश् चाडी करी, कह्यो अश्व उदंत ॥ घर, बुंटी नूपति कहे, करो एहनो अंत ॥४॥चाकर चैत्ये दोमीया, कर साही करवाल ॥y
देरा मांदी पेसतां, देवे थंच्या ततकाल ॥ ५॥ सेनानी नृप मूकीयो, कहेवा तेह हे. Vवाल ॥ कोपी सेना सज करी, चमी थाव्यो नूपाल ॥६॥ जूप विना सहु थंजीया,
चिंते राजा चित्त ॥ कोई उपाय इसो होये, रहे रतन ने मित ॥ ७॥ विद्याधर जिनवर नमी, सामी साहाय्य निमित्त ॥ श्रश्व वेश्ने श्रावीया, चंपापुरी तुरत ॥ ७ ॥
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
धर्मपरी
॥१३॥
ढाल अगीरमी.
जगजीवन जग वालहो-ए देशी. अश्वने मूकी श्रांगणे, जिनहर मांही जाय लालरे॥ पदपंकज परमेष्ठिनां, प्रणमी जणे सुणीताय लालरे ॥ साचो धरम संसारमा ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ साचो धरम संसारमां, धरम करो सहु कोय लालरे ॥ धरमे धण कण संपजे, धरमश्री शिवसुख होय लालरे ॥ सा ॥२॥ अमे विद्याधर आवीया, श्रष्टापदनी जात्र लालरे ॥ अश्व | तुमारो श्राणीयो, तुज दी ग्याँ गात्र लालरे ॥ सा॥३॥ शरण करी नृप शेठनो, चरण नमे वारंवार लालरे ॥ मूकी सेना मोकली, देवे थंनी जे छार लालरे ॥ सा ॥४॥ सुरदेव काउस्सग्ग पारीने, दय सोंप्यो नृप हाथ लालरे॥वय गये संयम लीयो, शेव नूपति बे साथ लालरे ॥५॥ विद्याधर उठव करी, पहोत्या निज आवास लालरे ॥ एम प्रत्यद फल देखीने, धरम को उबास लालरे ॥ सा ॥६॥ नारी सहित कहे शेठजी, ते नाख्यु ए सत्य लालरे ॥ कुंदलता कहे एकली, ए पण वात असत्य लालरे ॥ सा ॥७॥ चित्त मांहे एम चिंतवे, श्रेणिक अजयकुमार लालरे ॥ प्रत्यक्ष दी उलवे, अहो पापिणी ए नार लालरे ॥ सा ॥ ७ ॥ हुँ एहने रुमी परे,
॥१६३
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
| देशुं शिक्षा सवार लालरे ॥ याज पढी जेम एहवुं न कहे कुरूं केवार लालरे ॥ सा० ॥ ५ ॥ अरुणोदय देखी हवे, कुकडे कीधो सोर लालरे ॥ श्राव्यो मंदिर आपणे, राजा मंत्री चोर लालरे ॥ सा० ॥ १० ॥ परजाते परिवारशुं, परवरीयो भूपाल लालरे ॥ अर्हदासने घर यावीयो, शेठ रतन जरी थाल लालरे ॥ सा० ॥ ११ ॥ श्रगल मूकी नेटएं, कर जोमी पाये लाग लालरे ॥ उनो एम विनति करे, माहरो मोटो जाग लालरे ॥ सा० ॥ १२ ॥ जंगम तीरथ माहरे, घर आव्या महाराज लालरे ॥ प्रसन्न य प्रभु जाखीए, मुज सरिखुं जे काज लालरे ॥ सा० ॥ १३ ॥ श्रवनिपति कहे धर्मनी, कथा कही तुमे रात लालरे || निंदी नारी जेपीए, दाखवो ते मुज जात लालरे ॥ सा० ॥ १४ ॥ निग्रह करशुं तेनो, सुणी शेठ कांखो थाय लालरे ॥ शुं नूप पोते श्रावीयो, के दुर्जने कयुं जाय लालरे ॥ सा० ॥ १५ ॥ सत्ये नृप दंग पामीए, सा|चे नारी नाश लालरे ॥ एम त्यां जन कहेवे सदु, अईदास रह्यो विमास लालरे ॥ सा० ॥ १६ ॥ कुंदलता निसुणी एशुं, यावी नृपने पास लालरे ॥ दुष्ट नारी ते हुं अनुं, पण सुणजो अरदास लालरे ॥ सा० ॥ १७ ॥ धणी शोकने आवीयो, परियागत जिनधर्म लालरे ॥ पितर न जाणे माहरा, श्रीजिनशासन मर्म लालरे ॥ सा० ॥ १८ ॥
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vतोपण ए फल सांजली, पामी बु वैराग लालरे ॥ प्रिय पूबी करी पारj, व्रत बेशु
धरी राग लालरे ॥ सा ॥ १ए॥ महीमा दीगे धरमनो, एणे सघले साक्षात् लालरे || तोपण नोग तजे नहीं, तेणे जूठी कहुं वात लालरे ॥ सा ॥ २०॥ आठमा खंम
तणी कही, अग्यारमी ढाल रसाल लालरे ॥ रंगविजय शिष्य एम जणे, नेमविजय | उजमाल लालरे ॥ सा॥१॥
___ जो ए संयम श्रादरे, तो सघ कहुं सत्य ॥ नूपादिक सहुको कहे, अहो अहो |ताहरी मत्य ॥१॥ व्रत सेवा मुज मन हतुं, पड्यो जोगने पास ॥ दीक्षा बेशुं हवे श्रमे, एम जंपे अईदास ॥२॥जोजन नक्ति करी नली, नृप संप्रेड्यो धाम ॥ श्रान दिवस उंडव करी, धन खरच्युं शुज गम ॥३॥ सद्गुरु पासे संयम लीयो, आग नारीशुं अर्हदास ॥ तप जप कर्म खपावीने, कीधो शिवपुर वास ॥४॥ सुहस्ती सूरि देशन सुणी, संप्रति नाम नरेश ॥ जिनवर धर्म विशेषथी, वरतावे निज देश ॥५॥ धरम करो जवियण सदा, धरमे नावठ जाय ॥धरमे मनवंडित फले, वसे शिवपुर माय |॥ ६ ॥ जिन प्रासाद करावीयां, दीधां बहु परे दान ॥ जनम सफल करी आपणो,
॥१६४
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाम्यो अमर विमान ॥ ७ ॥ श्री हीर विजय सूरी सरु, शुज विजय तस शिष्य ॥ जावविजय कविजन जला, सिद्धि नमुं निशदिस ॥ ८ ॥ रूपविजय कविराजमां, कृष्ण वि जय कर जोक ॥ रंगविजय बे रंगीला, नावे एहनी होम ॥ ॥ श्रग्मो खंड पूरो थयो, ढाल अग्यारे सार ॥ नेमविजयने नित्य प्रते, होजो जयजयकार ॥ १० ॥ इति श्री धर्मपरीक्षारासे श्रष्टम खंमः
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंड ए मो.
ढाल पदेली.
ते मुज मिठामि पुकम-ए देशी. सांजलरे तुं प्राणीया, सद्गुरु उपदेश ॥ मानवनव दोहिलो लह्यो, उत्तम कुल एश ॥ सांग ॥१॥ देवतत्व नवि उलख्यो, गुरुतत्त्व न जाएयो ॥ धरमतत्त्व नवि सदह्यो, हयडे ज्ञान न थाण्यो ॥ सांग ॥२॥ मिथ्यात्वी जिन सूर प्रते, सरिखा करी जाण्या ॥ गुण अवगुण नवि उलख्या, वयणे वखाण्या ॥ सांग ॥३॥ देव थया मोदे ग्रह्या, पासे राखे ने नारी ॥ काम तणे वशे जे पड्या, अवगुण अधिकारी॥ सांग ॥४॥ कोश्क क्रोधी देवता, वली क्रोधना वाह्या ॥ को कीणथी ते बीहता, हथियार संवाह्या ॥ सांग ॥५॥ क्रूर नर जेहने घj, देखंतां मरीए ॥ मुसा जेहनी एहवी, तेहथी शु तरीए ॥ सांग ॥६॥श्राप करम सांकल जड्या, जमे जवही मोकारो ॥ जनम मरणां नव देखीने, पाम्यो नहीं पारो ॥ सांग ॥ ७॥ देव यश् नाटक करे, नाचे जण जण श्रागे॥ वेष करी राजा कृष्णनो, वली निदा मागे ॥ सांग ॥ ७॥ मुखकर वाये वांसली, पहेरे तन वागा ॥ जावतां मन जोजन करे, एहवा ब्रम लागा ॥ सांग ॥ ए॥दे
॥१६५
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
खो दैत्य संहारवा, थया उद्यमवंतो ॥ हरि हरणांकस मारीयो, नरसिंह बलवंतो ॥ सां० ॥ १० ॥ म क अवतार लेइ, सहु असुर विदार्या ॥ दश अवतारे जुजुश्रा, दश दैत्य संहारा ॥सां ॥ ११ ॥ माने मूढ मिथ्यामति, एहवा पण देवो ॥ फेर फेर अवतार |ले, देखो कर्मनी देवो ॥ सां० ॥ १२ ॥ स्वामि शोने जेवो, तेहवो परिवारो ॥ एम जाणीने परिहरो, नेमविजय विचारो ॥ सां० ॥ १३ ॥
ढाल बीजी. उधव माधवने केजो - ए देशी.
जगनायक जिनराजने, दाखवीए देव ॥ मूकाणा जे कर्मथी, सारे सुरपति सेव ॥ ज० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया नहीं, बांड्यां आठे मदथान ॥ रति रति वेदे नहीं, नहीं लोन अज्ञान ॥ ज० ॥ २ ॥ निद्रा शोक चोरी नहीं, नहीं वय अलीक ॥ म वर जय बंध प्राणीनो, न करे त्रण तीक ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रेम क्रीमा न करे कदी, नहीं नारी प्रसंग || हास्यादिक अढार ए, नहीं जेहने अंग ॥ ज० ॥ ४ ॥ पद्मासन पूरी करी, बेठा अरिहंत ॥ निश्चल लोयण जेहनां नाशाय रहंत ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिनमुद्रा जिनराजनी, दीठे परम उल्लास ॥ समकित थाये निरमलु, दीपे ज्ञान उजास
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
Ke ज० ॥ ६॥ गत श्रागत सह जीवनी, देखे लोकालोक ॥ जिन देखे सवि वस्तुने,
केवलज्ञाने श्रलोक ॥ जण ॥॥ मूरत श्री जिनराजनी, समतारस भंडार ॥ शीतल नयण सोहामणां, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ॥ हसित वदन हरखे हीयो, देखी श्री जिनराय ॥ सुंदर बबीप्रजु देहनी, शोना वरणी न जाय ॥ज०॥ ए॥अवर तणी एहवी बबी, कीहाए न दीसंत ॥ देवतत्त्व एम जाणीए, सहु सुणजो संत ॥ ज० ॥१०॥ नवमा खंड तणी कही, ढाल बीजी ए सार ॥ रंगविजय शिष्य नेमने, होजो जयजयकार ॥ ज० ॥ ११ ॥
ढाल त्रीजी.
यत्तनी देशी. श्री जिनवर प्रवचन जाख्या, मांही कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥ पासबादिक पंचेश्, |पाप श्रमण कह्या पंचे॥ १ ॥ गृहीनां मंदिरथी श्राणी, आहार करे नात पाणी ॥ सुश्बंधे जे निशदिस, मरमादि विसवा वीस ॥२॥क्रिया न करे केणे वार, पमिकमणुं सांज सवार॥न करे सूत्र अरथ सफाय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पच्चस्काण ॥ज्ञान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां ते सुपवित्र॥४॥सु.
॥१६६
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
विहित मुनि समाचारी, पाले नहीं ते अणगारी ॥ श्राहारना दोष बायाल, टाले नहीं
कीणही काल ॥५॥ धब धव धसमसतो चाले, काचे जले देह पखाले ॥ चरचा थर-| नाचना वंदावे, वस्त्रादिक शोज बनावे ॥६॥ परिग्रह वली जाको राखे, वली वली
अधिकाने धांखे ॥ माठी जे करणी कहीए, ते सघली जिणमें लहीए ॥ ॥ एवा जेह कुगुरु आरंजी, मुनि साधु कहेवाये दंनी ॥ किय कम्म प्रशंसा करीए, जव ज-IN व ग्रहमा अवतरीए ॥ ॥ लोढानी नावाने तोले, जवसायरमां जे बोले ॥ नेम कहे नलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो॥ ए
ढाल चोथी.
कर जोमी आगल रही-ए देशी. गुण गिरुआ गुरु उलखो, हयडे सुमति विचारीरे ॥ गुरु सुपरीदा दोहली, नूलां पडे नर नारीरे ॥ गुण ॥१॥ पांचे इंजि वश करे, पंच महावत पालेरे ॥ चार कषाय ||Y तजी जेणे, पांचे किरिया टालेरे ॥ गु० ॥ २॥ पांचे सुमते सूमता रहे, तीन गुपति जे धारेरे ॥ दोष बेंतालीश टालीने, पाणी जात आहारेरे ॥ गु॥३॥ ममता बांकी| देहनी, निरलोनी निरमायीरे ॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंत न करे|
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
गु० ॥४॥ पमिलेहण नित्ये विधे, करे प्रमाद निवारीरे ॥ काळे शुद्ध क्रिया करे, नापन्नर हायाग निवारीरे ॥ गु०॥५॥ धर्म तणां उपग्रण धरे, संयम पालवा काजेरे ॥
जोय जो पगलां जरे, लोक विरुङथी लाजेरे ॥ गु०॥६॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी, व्ये देखी सुविशेषरे ॥ काळ प्रमाणे खप करे, फूषण टलता देखेरे ॥ गु० ॥७॥ कुषी संबल जे कह्या, सानिध्य केमही न राखेरे ॥ दे उपदेश यथास्थिते, सत्य वचन मुख नाखेरे ॥ गु० ॥ ॥ तन मेला मन उजला, तप करी कोण देहरे ॥ बंधन बे बेदी करी, विचरे जन निसनेहीरे ॥ गु० ॥ ए॥ एहवा गुरु जोश करी, आदरीए शुन जावेरे ॥ बीजो तत्व सुगुरु तणो, जगमां एम कहावेरे ॥ गु० ॥ १० ॥ नवमा खमनी |ए कही, ढाल चोथी ए वारुरे ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय श्रोता सारुरे ॥ गु० ॥११॥
ढाल पांचमी.
करम न बूटेरे प्राणीया-ए देशी. जवसायर तरवा नणी, धरम करे सारंज ॥ पथ्थर नावेरे बेसणे, तरवो समुष १ कर्मादान.
॥१६७
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
| डुर्लन ॥० ॥ १ ॥ श्रापे गोकुल गायनां, आपे कन्यारे दान ॥ आपे क्षेत्रे पुण्यारथे, ब्राह्मणने देइ मान ॥ ज० ॥ २ ॥ लुटावे धाणी वली, पृथ्वी दानशुं प्रेम ॥ गोला कलसारे मोरीया, आपे हल तिल हेम ॥ ज० ॥ ३ ॥ वली खणावेरे खांतशुं, कुवा सुंदर वाव ॥ पुष्करणी करणी जली, सरवर सखर तलाव ॥ ज० ॥ ४ ॥ कंदमूल मूके नहीं, अग्यारस व्रत दीस ॥ श्ररंज ते दिन प्रति घणो, धरम किहां जगदीश ॥ ज० ॥ ५ ॥ याग करे होमे तिहां, घोडा नर ने रे बाग || होमे जलचर मींगकां, धर्म किहां वीत| राग ॥ ज० ॥ ६ ॥ करे सदाइरे नोरतां, जीव तथा था आरंभ ॥ हणे जेंसारे बोकडा, जेहथी नरक सुलंन ॥ ज० ॥ ७ ॥ सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वज तपोरे श्राद्ध ॥ ते मी पोंखेरे कागमा, देखो एह उपाध ॥ ज० ॥ ८ ॥ तीरथ जाये गोदावरी, गंगा ग यारे प्रयाग ॥ नाहे अणगल नीरमां, धरम तणो नहीं लाग ॥ ज० ॥ ए ॥ इत्यादिक करणी करे, परजव सुखनेरे काज ॥ एषी करणी मले नहीं, एहथी शिवपुर राज ॥ ज० ॥ १० ॥ नवमा खंग तणी जली, पांचमी ढाल रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम जणे, नेमने मंगल माल ॥ ज० ॥ ११ ॥
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________ // 16 // ढाल नही. जंबछीपना जरतमां-ए देशी. ___धरम खरो जिनवर तणोरे, शिवसुखनो दातार // श्री जिनराजे प्रकाशीयोरे, जेहना चार प्रकारोरे // ज्ञान विचारी जोय // उरगति पमतां जीवनेरे, धारे ते धर्म होयरे // झा० // 1 // पांच महाव्रत साधुनारे, दश विध धर्म विचार // हितकारी जिनवर कह्यारे, श्रावकनां व्रत बारोरे // झा // 2 // पांचुंबर चारे वगेरे, विष सहु माटी हेम // रात्रिनोजनने कह्यारे, बहुबीजांनो नेमरे // झा० // 3 // घोलवमा वली रींगणारे, अनंतकाय बत्रीश // श्रणजाण्यां फल फूलमारे, संधाणां निशदिसोरे // झा // 4 // चलित अन्न वासी कह्योरे, उंच सहु फल दद // धरमी नर खाये नहींरे, ए बावीश अनदरे // झा // 5 // न करे निधंधसपणेरे, घरना पण आरंज // जीव तणी जयणा घणीरे, न पीए अणगल अंबरे // झा // 6 // घृत परे| पाणी वावरेरे, बीदे करतो पाप // सामायिक व्रत पोषधेरे, टाले नवना तापोरे // NIRREG ज्ञा // 7 // सुगुरु सुदेव सुधर्मनीरे, सेवा जगति सदीव // धर्मशास्त्र सुणतां थकारे, समजे कोमल जीवोरे // झा // 7 // मास मासने यांतरेरे, कुश अग्र मुंजे बाल //