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धर्मपरीसु० ॥ नीकट्यो हुँ गर्न मांहींथी, शीघ्र थइ एहवे ॥ मा० ॥ शो ॥ १५ ॥ खालं
खाडं वारोवार, करुं हुं तव जदा ॥ मा० ॥ कण ॥ जमण दीयो मुज मात, कहुं तुमने ॥ ७॥
मुदा ॥ मा० ॥ कण ॥ तापस कहे तेणी वार, ए पुत्र कुलक्षणो ॥ मा० ॥ ए॥ धन धान्यनो संहार, करे कुल लक्षणो ॥ मा० ॥ कण् ॥ १३ ॥ जे नूषणे तुटे कान, ते सोने शुंकीजीए ॥ मा ॥ ते ॥ कोडं धान जो होय, वाडे नाखी दीजीए ॥ मा वा ॥जा जारे मुज श्रागलथी, मुख लेश पापीया ॥ मा० ॥मु० ॥ नहीं तो फेडीश गम, सही उःख व्यापीया ॥ मा० ॥ स० ॥ १४ ॥ मंदिर माहरा मांहीं, हवे तुं मत रहे ॥ मा० ॥ ४० ॥ सांजली मातानां वरण, कुमर तिहांथी वहे ॥ मा० ॥ कु० ॥ चाल्यो जाउं परदेश, तापस टोलामा जल्यो । मा० ॥ ता॥ इषिनो लीधो वेश, अयोध्या आवी मल्यो ॥ मा ॥ ० ॥ १५ ॥ तिहां परणी मुज माय, दीठी में तेहवे ॥ मा० ॥ दी० ॥ तापस प्रणमी पाय, पूज्या में एहवे ॥ मा० ॥ पू० ॥ तव तापस कहे एम, सांजल तुं वारता ॥ मा॥ सांग ॥ स्मृति पुराण जे शास्त्र, मांहीं अमे धारता ॥ मा ॥ मांग ॥ १६ ॥ अक्षत योनि परणी ते, नहीं दोष एहमां ॥ मा० ॥ न ॥ जे नारीनो नाथ, गयो परदेशमां ॥ मा० ॥ ग ॥ चार वरष लगे वाट,