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क॥ पीहर ते रही कुण, करे वात तेहनी ॥ मा० ॥ क० ॥ ॥ नव मास वाडा, पूरण थवा श्रावीया ॥ मा० ॥ पू० ॥ जमवा कारण तापस, घणा तेमावीया ॥ मा०॥ |घ० ॥ विश्वनूतिए श्रघरणी, करी जमामीया ॥ मा० ॥ कण्॥ सनमुख उनो विनति, करे हाथ जोमीया ॥ मा०॥ क० ॥ ॥ नारी तणो तिहां तात, पूजे तापस जणी ॥ मा० ॥ पू॥ नवितव्यतानो विचार, कहो बुझिना धणी ॥ मा० ॥ कण ॥ कहे तापस तमे सांजलो, वात कडं नवी ॥ मा० ॥ वा ॥ तुम देश माही फुकाल, थाशे सही| संजवी ॥माथा ॥णा बार वरसांनो काल, सही करी जाणजो ॥मा॥स०॥ पेट , मांहींथी में सुणी, वाणी परमाणजो ॥ मा० ॥वा॥ हुँ हवे रहुँ पेट मांहीं, उकाल एम लागीए ॥ मा० ॥ 5 ॥ बोख्या तापस वयण, थाशे एम पालीए ॥मा॥ था॥ ॥ १०॥ सुकाल थया पली नीकडं, तो सुखी थाइए ॥ मा ॥ सु ॥ जो नीकर्बु उकाल मांहीं, तो मा थाइए ॥ मा ॥ तो ॥ ते तापस तेणी वार, चाल्या परदेशमां ॥ मा० ॥ चा ॥ बार वरस फरी श्राव्या, नवनवा देशमां ॥ मा०॥न॥११॥ दीधो श्रादरमान, आहार घणो आपीयो ॥ मा० ॥ आण ॥ पाम्या हरख अपार, सुकाल नाम थापीयो ॥ मा० ॥ सु०॥ उदर मांहींथी वात, सुणी में तेहवे ॥ मा०॥