________________
धर्मपरी ॥५३॥
नली सहुको मत अवगुणो ॥ ए आंकणी ॥ ते पासे केम उवीए बाल, जामनी सुण | खंम तुं थइ उजमाल साासा॥१॥ एक वात में हृदय विचार, जम जग मांहीं रुडो ते सार ॥ सा ॥ जो धर्म विचारे तेह, बाया पुत्री पासे मूकीए एह ।सा॥सां०॥२॥ मंडपकौशीक तापस ताम, बाया लाव्यो जमने गाम ॥ सा ॥ कर जोडी कहे सुण महाराय, धर्माधर्म जाणो तुमे न्याय ॥सा॥ सांग ॥३॥ शीलवंत स्वामि गुणवंत, महीयल मोटो तुं महांत ॥ सा ॥ निकलंक तुं सुणीए महाराज, विनति माहरी सांजलो आज ॥ सा॥सांग ॥४॥ तीर्थजात्राए श्रमे जाऊं देव, गया थापिण राखो| हेव ॥ सा ॥ तुम प्रासादे करुं श्रमे जात्र, पवित्र होशे अमारां गात्र ॥ सा॥ सां| |॥५॥ जम कहे सुण तापस राज, ए अमने नहीं लागे लाज ॥ सा ॥ बोकी जा तुमे बाया एह, अनोगत श्रावी लेजो तेह ॥ सा ॥ सांग ॥ ६ ॥ तापस तव रलियात थयो, जम पासे मूकीने गयो ॥ सा ॥ श्रडसठ तीरथ करे फरी जाम, कृतांत | |वात सांजलजो ताम ॥ सा ॥ सांग ॥ ७॥ बाया रूप देखी अजिराम, जम सर्वांगे|NI व्याप्यो काम ॥ सा० ॥ मनमां चिंतवे नोगq एह, सफल जनम करूं मुज देह ॥ सा० ॥ सांग ॥ ७॥ नोलवी घरमांहे तेमी बाल, पाप करम मांड्यो विकराल ॥ सा ॥