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धर्मपरी०
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कीधो तास ॥ १ ॥ लश्कर पाजे उतर्यो, लंका नेडी लीध ॥ खबर थइ रावण जणी, नगरमां वात प्रसिद्ध ॥ २ ॥ बिभीषण जाने कहे, राम चम्। श्रव्या आज ॥ जाइ करीने थापीए, सरवे सरशे काज ॥ ३ ॥ रावण कहे जाइ सुणो, राम बे दुश्मन जात ॥ बनेवी श्रापणो मारीयो, विघनपति नाम सुजात ॥ ४ ॥ एवो वेरी मेलीए, तो अप| जश जग होय ॥ घर श्रांगण श्राव्यो थको, जावा दे कहो कोय ॥ ५ ॥ बिजीषण कहे रामशुं, जाइजी म करो वेर ॥ वेध पमशे ए वातमां, याशे ए कामे फेर ॥ ६ ॥ तव रावण कहे जाइने, न गमे तुजने एम ॥ तो तुं राम नेलो जइ, थापे जाइ करी जेम ॥ ७ ॥ बिभीषण राम नेलो मध्यो, रावणने चड्यो मान ॥ सेना सरवे सज करी, मेरा दीधा रण थान ॥ ८ ॥
ढाल नवमी. कखानी देशी.
दल वादल चड्या मेह सम गाजीया, वाजिंत्रनी ध्वंस श्राकाश वागी ॥ बत्रीश श्रायुध सज्यां श्रमुहा सामुहा, जूऊनी हुब उमंग लागी ॥ ० ॥ १ ॥ सिंडूरीया गज दल आगल कर्या, अश्व तणी पाखरे रोल जाऊी ॥ नाल घोका तणी धसमस प
खंग
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