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वर्मपरिचालीश्राजी, रामत क्रीमारे काज ॥ कुल पर्वत वाव्यो नदीजी, सर अह गिरि सीर-
ताजरे ॥ ना० ध० ॥ ७ ॥ गीत नृत्य गाता फरेजी, स्नान नोजन तंबोल ॥ हास्य विनोद कौतक करेजी, एक एकनो राखे तोलरे॥ ना ध० ॥ ए ॥ एक दिन मनोवेग बोलीउजी, सांजल नाश् तुं वात ॥ थापण कीजे पारखंजी, धर्म पापनी तांतरे ॥ ना ध ॥ १० ॥ सारनूत संसारमांजी, जैनधरमनोरे जोग॥जो तमे ते पालो सहीजी,पामशो| बोहोलो नोगरे ॥ना ध॥ ११॥ पवनवेग एम सांजलीजी, बोल्यो नहीं मुख वाण ॥ जाणे मनमां प्रीतमीजी, तुटे बोदये ताणरे ॥ ना ध०॥ १२॥ मनोवेग मन चिंतवेजी, बुद्धि करुं को देव ॥ मिथ्या धंधे ए पड्योजी, नवी माने जिनदेवरे ॥ नाण ध॥ १३ ॥ विमाने बेसी एकलोजी, आकाशमारग जाय ॥ अढीहीप मांही फिरेजी जात्रा करे जिनरायरे ॥ ना० ध० ॥ १४ ॥ अनुक्रमे फरतो आवीउजी, मालव देश मोकार ॥ उजेणीने परिसरेजी, विमान थंन्यु तेणी वाररे॥ ना ध० ॥१५॥ वासुपूज्य मुनि केवलीजी, दीग त्रिजुवन वाम ॥ हेगे श्राव्यो उतरीजी, वांद्या मुनिने तामरे ॥ ना ॥ ध ॥ १६ ॥ धर्मकथा मुनिवर कहीजी, सांजली हरख्यो राय ॥ श्रावकव्रत सुधां लहीजी, वली वली प्रणमे पायरे॥ना ध० ॥१७॥ कर जोड़ी करे विनतिजी,
॥३॥