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खंग
बर्मपरी प० ॥ १६ ॥ नीशालीश्रा ते अनेक जणेजी, सहु साथे रमे वली तेह ॥ एक दिवस
सुखमी आवीजी, मोशालथी घणी जेह ॥ प० ॥ १७ ॥ लाडु खाजां अति घणांजी, ।१२६॥
| मेवा मीगर अपार ॥ वस्त्र आजूषण उपतांजी, पहेयाँ सघले तेणी वार ॥०॥१७॥ || सुखडी वेहेंची श्राप आपणीजी, नीशालीए अनेक ॥ कार्तिकेय ना तुमे लेजी, |मोशालनी ने प्रत्येक ॥ प० ॥ १ए ॥ कार्तिकेय कोमामणोजी, वर्ष चौदनो कुमार ॥ |घरे श्रावी वेगे पूजीयुंजी, मुज कहो माय विचार ॥ प० ॥ २० ॥ अमने मोशालनी सुखमीजी, नवि आवे कांश माय ॥ अश्रुपात माताए कर्योजी, मन मांहे दुःख घj थाय ॥ प० ॥१॥ कृतिका बोले सुत सांजलोजी, कर्म काणी कहुं केम ॥ घाट न आवे कहेतां घणुंजी, पूछीश मां वली तेम ॥ प० ॥ २२ ॥ सुत बोल्यो माता सुणोजी,
तो जमशुं अमे आज ॥ जेवु होय तेहबुं कहोजी, मुज आगल डोमी लाज ॥ पण Lal ॥ २३ ॥ माता कहे तुज तणो पिताजी, मुज बाप तेहज होय ॥ अन्याय कीधो
राजाए घणोजी, बाप बेहुनो सोय ॥ ५० ॥ २४ ॥ हा खंडनी आग्मीजी, ढाल कही सुविशाल ॥ रंगविजयनो शिष्य कहेजी, नेमविजय मंगल माल ॥ १० ॥ २५ ॥
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