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________________ ढाल आठमी. कोयलो परवत धुंधलोरे लोल-ए देशी. मंदिरथी सुत काढीयोरे लोल, सांजली नृपनी वाणरे॥सुगुण नर ॥सागर कोसंबीर गयोरे लोल, जिन जगिनीने जाणरे ॥ सु॥१॥ व्यसन निवारो वेगला रे लोल, (ए आं०) व्यसन अ कुःखदायरे ॥सु॥ व्यसन संगति वारजोरे लोल, जेम तुमने सुख थायरे ॥ सु० व्य० ॥॥ व्यसनी सांजली तेहनेरे लोल, बेहेने न दीधो मानरे ॥ सुणा नाग्यहिण जाये जिहारे लोल, तिहां पामे अपमानरे ॥ सु० व्य० ॥३॥ नगर मांही सागर नमेरे लोल, कोइ न पूजे वातरे ॥ सु०॥ मुनि दीगे एक तेहवेरे लोल, सहयडे हरख न मातरे ॥ सु० व्य० ॥ ४॥ चरणकमल नमी तेहनां रे लोल, सुणे | उपदेश सुजाणरे ॥ सु॥ अनंतकाय अजय तज्यारे लोल, व्यसन तणां पच्चरकापरे Fl० व्याय॥ हरखी जिनदत्त इयमलेरे लोल, धरमी सांजली जायरे ॥सु॥ माणस मूकी तेडावीयोरे लोल, जगति करे मन लायरे ॥ सु० व्य॥ ६॥ आपीने धन आपए॒रे लोल, मंडाव्यो व्यापाररे ॥ सुणा हलवे हलवे पामीयोरे लोल, शोना अव्य अपाररे ॥ सु व्य० ॥ ७॥ तिहां व्यापारे श्रावीयारे लोल, सूरजपुरना शाहरे ॥ सु०॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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