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उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे श्राज ॥ स्मृति वेद पुराणनां, वयण विपरीत अकाज ॥१॥ उपवन श्रापण जर करी, कहेशं तुमने सार ॥ जिनशासन मत दाखवू, सुणजो सार विचार ॥२॥ पूर्व वनमां तव गया, रह्या अपूरव गम ॥ कर्ण |कथा पांमव तणी, मनोवेग कहे ताम ॥३॥
ढाल नवमी.
धण समरथ पीयु नानडो-ए देशी. मित्र वचन मुज सांजलो, होजी पवनवेग गुणधार ॥ कुरुजांगल देशज जलो, होजी हस्तीनागपुर सार ॥ साजन सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ कुरु वंशी राजा हुवो, होजी सोमप्रन श्रेयांस ॥ तेह परंपरा उपन्या, होजी नृपति | |घणा अवतंस ॥ सा ॥२॥सांतनु सुत सोहामणो, होजी व्यास नाम गुणवंत ॥ रूपणी नामा जामनी, होजी पुत्र त्रण हुवा संत ॥ सा ॥ ३ ॥ धृतराष्ट्र पहेलो जलो, होजी पांसु बीजो जेह ॥ त्रीजो विउर मनोहरु, होजी करे राज्य सहु तेह ॥ सा ॥४॥ पांमु कुंवर चिंता जर्यो, होजी गयो वन अनिराम ॥ कुसुम