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धर्मपरीसज्या दीगी जली, होजी मुफिका पड़ी तेणे गम ॥ सा ॥ ५॥ अपूरव देखी
मन उलस्यो, होजी कर कीधी तेणी वार ॥ विद्याधर तव श्रावीयो, होजी चित्रांगद ॥ ५॥
कुमार ॥ सा ॥ ६ ॥ फुलशयन जो घणुं, होजी गम गम अनेक ॥ पांमु दीगे | रलियामणो, होजी पूढे करीय विवेक ॥ सा॥ ॥ मुज कर मुखिका रुयडी, होजी Kापमी एहीज गम ॥ कामरूपी कर मुषमी, होजी जो बुं श्रनिराम ॥ सा ॥ Guy
हाथ ले आगल धरी, होजी पांसु नृप कहे तेह ॥ मुखिका ली खग तुम तणी, होजी चित्रांगद हुवो नेद ॥ सा ॥ ए॥ कृश शरीर दीसे तुम तणुं, होजी मित्र | कहोने विचार ॥ पांमुजणे वचन सुणो, होजी विद्याधर तुमे सार ॥ सा० ॥ १० ॥y सुरीपुर राजा रुयमो, होजी अंधकवृष्टि नाम ॥ तस पुत्री रूपे जली, होजी कुंती | गुणग्राम ॥ सा० ॥ ११॥ विवाह पहेलो गुज मेलीयो, होजी पडे जाण्यो रोग ॥
अंधकवृष्टिए अनादों, होजी नोग कीधो विजोग ॥ सा ॥ १२॥ विरहानल व्याप्पो भाषणो, होजी चिंतातुर अतीव ॥ मित्र माटे में तुज कह्यो, होजी संदेह पड्यो जीव॥||
सा ॥ १३ ॥ चित्रांगद खग बोलीयो, होजी सांजली जाई वात ॥ कामरूपी मुज मुजमी, होजी रूप करेरे विख्यात ॥ सा ॥ १४ ॥ श्रदृष्टि करण होये करी, होजी
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