________________
धर्मपरी०
॥ ४१ ॥
रात दिवस जे बांधे पाप, नगर मांहीं लड़े ते संताप ॥ सदा जव होये अशुभ ध्यान, तेहने को नवि दीये मान ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ २ ॥ कर्मजोगे जो राजा जाणे, बेदन जेदन बहु करे कामे ॥ दंडे मुंडे लोकने बांधे, करावे गर्दन रोहण खांधे ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ३ ॥ लिंग नासिका होये बेद, सजन सहुको पामे खेद ॥ कालां मुख होवे बांधव तणां, लका पामे कुलवंत घणा ॥ हो ला० ॥ सु०॥४॥ फिट फिट करे सहु कोय, मित्रवर्ग सदु दुःखी होय ॥ दान पूजा जश लोपाय, कृष्ण वदन लोकमां थाय ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ५ ॥ ते उपर कथा सुणो एक, जेथी यावे तुमने विवेक || कोइ गाम रहे एक शेठ, राज काजनी करे वे वेठ ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ६ ॥ तेहने श्रीमती नामे नारी, रूपे रंजा सुर अवतारी ॥ शेवने प्रोहीतशुं मित्रा, नित यावे जावे घर धाइ ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ७ ॥ एक दिन ते शेठ विचारी, परदेश चाढ्या परवारी ॥ प्रोहीतने जलावी गेह, तस नारीशुं मांड्यो नेह || होला० ॥ सु० ॥ ८ ॥ शीलवंत नारी कहे ताम, केम कहो वो मुजने आम ॥ तव बोल्या प्रोहीत तेह, जो करशो मुजशुं नेह ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ ए ॥ तो सुख धाशे तुमने, राजी करशो जो श्रमने ॥ जे कहेशो ते विधि करशुं, तुम वयण मे दिल धरशुं ॥ हो ला० ॥ सु० ॥ १० ॥ तव चिंतवे नारी एम, शील रहेशे माहरु |
खंग श
॥ ४१