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अनागत वर्तमानमारे ॥ सां० ॥ ४॥ विश्वानल तस पेट मोकार, पोहोर एक जोगवे नाररे ॥ ज्ञाने करी जाण्यो नहीं तेह, जमे ढूकमो आपणो देहरे ॥ सां० ॥ ५॥ तो केम जाणे त्रिजुवन वात, दोष मोटो एक घातरे ॥जम सघलो जाणे संसार, अगनि न जाण्यो उदर मोकाररे ॥ सांग ॥ ६ ॥ तेम मुज मीना गंधी जाय, बार जोजन | बंदर न थाय रे ॥ जेम हिज सहुए जमने मान्यो, तेम मिंजार गुणनो वानोरे ॥ सांग ॥ ७॥ वली सांजलो ब्राह्मण तमे वात, एक दोषे गुण नोहे घातरे ॥ उमीया ईश्वरने अर्धांग, जटा मांही राखे गंगरे ॥ सां॥॥ पारवती गंगाशुं नेह, तारक केम कहीए तेहरे । नारायण लंपट अपार, गोवालणीशु कीधो व्यभिचाररे ॥ सांग॥ए॥ रीडमी सुताशुं कीधो संग, ब्रह्मचर्य ब्रह्मानो जंगरे ॥ सूरजने समरो तुमे सार, कुंतीशु कीधो व्यनिचाररे ॥ सांग ॥ १० ॥ सोम सदा सहुए थाराध्यो, गुरुपत्नीनो दोष वाध्योरे ॥ इंद्र देव जपे सहु कर जोड, अहिल्यानी लागी खोमरे ॥सांग ॥ ११॥ सुरगुरुने बे वहूनुं श्राल, जाणे ने बाल गोपालरे ॥ विश्वानल नर घणो व्यभिचारी, हवन । होमनो अधिकारीरे ॥ सां० ॥ १२ ॥ जमने सहु कहे धर्मनोराय, बाया सरसो करे - अन्यायरे ॥ इषि तापस मिथ्याती तेह, तेहना लिम अति घणां जेहरे ॥सां०॥१३॥