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परीना कहो तेह ॥ ७॥ गुरु कहे इंश सांजलो, ब्रह्मा तप करे अघोर ॥ अरधी चोकमी हुवा
पड़ी, तुम पद लेशे जोर ॥ ७॥ सांजली इंछ उपाय रचे, अपबरा तेडी तिण काज || । ४६॥
ब्रह्मा तपथी चालवो, जिम रहे आपणो राज ॥ ए ॥ नृत्यकी कहे देवेंज सुणो, ए नवि होय श्रम काम ॥ गरढो कपटी कोपशे, श्राप दे फेडे गम ॥१०॥
ढाल दशमी.
नणदलनी देशी. | प्रीतम हे प्रीतम इंज, कहे सघली मली॥ तिल तिल दी मुज रूप॥प्री० ॥ तिलोत्तमा निपजावीशु,सर्व कलानो कूप ॥प्री॥ सुणजो साजन वातलमी ॥ ए आंकणी| ॥१॥ तिल तिल रूप नृत्यकी दीयो, तिलोत्तमा घमी सुरराज ॥प्री॥ कर 'जोमी उनी|| रही,श्रादेश द्यो कोण जे काज ॥ प्री० ॥सु॥२॥ अमरपति कहे रंजा सुणो, ब्रह्मा
॥४६॥ तप करो नाश ॥ प्री० ॥ एह चिंता सहुने घणी, पूरो अमारी श्राश ॥प्रीसु॥३॥ तिलोत्तमा बीरुं धरी, नारद तुंमर देव ॥ प्री० ॥ तप करतो ब्रह्मा जिहां, तिहां श्रावी
ततखेव ॥जी॥सु॥४॥ सनमुख नाटक मांडीयु, धप मप धौ धौं कार ॥प्री० ॥मादल | ||वाजे मधुर खरे, नं नं नेरी विस्तार ॥ प्री०॥ स ॥ ५॥ घम घम घघरी घमकती.IN ||