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कड कड मोमी काय ॥प्री०॥ हाव लाव देखामती, नव रस नाटिक थाय ॥प्रीासु ॥६॥ जेम जेम नीरखे नारीने, तेम तेम ध्यान गयो पूर ॥प्री०॥ तिलोत्तमा रूप देखी करी, हरख उपन्यो जरपूर ॥प्री० ॥ सु०॥ ७॥ सारी ग म पधनी गायतां, चलीयुं ऋषितुं चित्त ॥णी॥ विकल रूप ब्रह्मा हुवो, श्रवणे सुणी ते गीत ॥प्रीासु ॥ ॥ ब्रह्मा चल चित्त जाणीने, वामांगे मांड्यो नाट॥प्री० ॥ राग बत्रीशे पालवी, ताल मेले नहीं घाट ॥प्री० ॥ सु०॥ए॥ मोह पाम्यो ब्रह्मा घणुं, चिंतवे मन मांहे एम ॥ प्री० ॥ झषि सघलामा हुँ वमो, मुख फेरवी जोडं केम॥ प्री० ॥ सु० ॥ १० ॥ जो| नवी नीर नृत्यकी, तो मुज दुःख होये देह ॥ प्री० ॥ नयणे निहालुं तिलोत्तमा, सफल जनम मुज तेह॥ प्री० ॥सु० ॥ ११ ॥ एक चोकमी तपने फले, मुख होजो माबे पास ॥प्री०॥ वदन बीजुं ब्रह्मानुं हुवो, देखी रूप विलास ॥प्री० ॥सु॥१२॥ पीन पयोधर पेखतां, रंज्या धाता जाम ॥ प्री० ॥ नाटक रचीयु पाडले, श्रानंद नृत्य | तिहां ताम ॥प्री० ॥ सु० ॥ १३ ॥ सारी ग म प ध नी गायतां, ब्रह्मा विमासे तेह ॥ प्री० ॥ पालुं फरी अवलोकतां, लाज श्रावे मुज देह ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १४ ॥ बीजी | चोकमी तपे करी, नीकलजो मुख पुंठ ॥प्री०॥वदन हुवो ब्रह्मा तणो, रूप जो हृदये