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धर्मपरी०
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श्रवतर्या, हिरणकश्यपनो नाश ॥ स० ॥ पांचमे वामन रूप लीयो, बलि चांप्यो भूमि पास ॥ स० ॥ सू० ॥ ७ ॥ फरसराम बडे सुणो, सहसार्जुन फेड्यो गम ॥ स०॥ सातमे राम दुवो जलो, रावण टाब्युं नाम ॥ स० ॥ सू० ॥ ८ ॥ केशव ठमे अवतर्यो, जरासिंध इण्यो कंस || स० ॥ अढार दोषी दल रण इण्यो, कय कर्यो जादव वंश ॥स०सू०॥ ए॥ नवमो बोध जवांतरे, म्लेच्छ मांही कीधो व्याप ॥स०॥ दशमे कलंकी राजी, जननी चंगाली द्विज बाप ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ एकाकार करी घणुं, अच|रावे अनाचार ॥ स० ॥ देव निरंजन जे हवा, ते केम लीये अवतार ॥ सासू०॥ ११ ॥ घृत जेम दूध ते नवि थाये, सिद्ध संसारी न होय ॥ स०॥ पाको धान मही नवि उगे, सिध्यो जीव तेम जोय ॥ स० ॥ सू० ॥ १२ ॥ पाषाण मयी सोनुं काढीयुं, ते केम पत्थर थाय ॥ स०॥ कर्म हणी जे सिद्ध हुवा, ते केम पुद्गल पाय ॥ सासू० ॥ १३ ॥ | देव दयाल नर जे कह्या, केम करे जीव संहार ॥ स० ॥ राग द्वेष मद मच्छर नहीं, | दैत्यने किम ते मार ॥ स०॥ सू०॥ १४ ॥ नारी विजोग पड्यो रामने, सीता सीता पोकार ॥ स० ॥ नर तरु पशुने पूढे घणुं, दरशन होशे मुज नार ॥०॥ सू०॥ १५ ॥ सर्वज्ञ ते जाणे सहु, पूढे बीजाने केम ॥ स० ॥ चौद नूवन मुख मांहि बे, चढे केम लंका जेम
खंग
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