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धर्मपरी ब्रह्मा लक्षण केतां वखाणुं ॥ मा॥ २०॥ बीजा खंडनी ग्यारमी ढाल, सुणजो|
सहुको बाल गोपाल ॥ मा० ॥ रंगविजयनो कहे एम शिष्य, नेमविजयनी पहोंती जगीश ॥ मा० ॥१॥
उदा. श्राप कहुं वात एहनी, सांजल डाया मात ॥ वेद पुराणमां एहवी, साची कडं नाएक वात ॥१॥ सावित्री नार ब्रह्मा तणी, बेटी जग गुणधार ॥ सारदा कुमरी रंगा|
जीसी, देखी चलीयो तेणी वार ॥२॥ कामे पीड्यो पुंठे थयो, नारती नागी जाय ॥ INवनमां नासी ते गर, पुत्री पुंठे थाय ॥३॥ ब्रह्मा बेतरवा सही, मृगली रूप धयु
सार ॥ तव ब्रह्मा कुरंगनो, रूप धरी व्यभिचार ॥४॥ पुत्रीने विलसी करी, एडवो जेनो काम ॥ तो पुत्री बाया श्रापणी, केम जलावीए ताम ॥ ५॥ तापस कदे नारी | नणी, पुत्री न बोमे एह ॥ हरि हर ब्रह्मा सारिखा, पर नारी न मूके तेह ॥ ६॥ कर जोमी तापसी जणे, सांजल स्वामि कंत ॥ सूरज पासे सोंपीए, बाया बाला संत ॥७॥ तापस कहे सुण तापसी, दिनकर ने बीनाल ॥ कुंती कन्या जेणे लोगवी, किम गेमे ते बाल ॥ ७॥
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