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खम
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धर्मपरीसुत विवेक ॥१॥ मस्तक जणीयु केवल, देह नहीं ते सार ॥ दधिमुख वेद पुराण
जणे, नगर प्रसिक कुमार ॥२॥ पुण्य दान दिन दिन करे, पिता तणे घर रहे रंग ||॥ अगस्त्य ऋषि तव आवीयो, दधिमुख मंदिर चंग ॥३॥ मान सनमान दीधां घणां, अन्यादे करीय प्रणाम ॥ पवित्र मंदिर आज अम तणो, बोले दधिमुख जाम ॥४॥ विनय करी कहे पग धुर्ड, जोजन करो शषिराय ॥ जनम सफल होये अम तणो, तुम दरशने सुख थाय ॥५॥
ढाल चोथी.
आज हजारी ढोलो प्राहुणो-ए देशी. | अगस्त्य ऋषि बोल्या एशु, सांजलो दधिमुख तुमे वाण ॥ साजन मारा हे ॥ विनय विवेकी तुज समो, नहीं दीगे को सुजाण ॥ साजन मारा हे ॥ श्रोता सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ दधिमुख तुं ने कुंवारडो, नारी परण्यो नहीं सार ॥ सा| ॥ कुंवाराने घेर जमवो नहीं घटे, अघटतो दीसे आचार ॥ सा० ॥ श्रो० ॥२॥ दान देवा नर योग्य ते, जेहने घरे नारी होय ॥ सा ॥ स्त्री विना दान पुण्य नहीं, स्मृति श्लोक एहवो जोय ॥ सा ॥ श्रो० ॥३॥
॥११॥