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________________ धर्मपरी० 1122901 पछी विचार कर्यो में एहरे ॥ जाइ काजे फल घणां जोयेरे, दांते चुंटी नाख्यां भूमि सोयरे ॥ १२ ॥ देह बले वृक्ष धंधोल्यो जामरे, मस्तक लाग्यं श्रावी निज गमरे ॥ मायुं धम हुवा बेउ एकरे, पोटली कोठ बांध्यां वली बेकरे ॥ १३ ॥ कोठ गांठमो मस्तक लेइरे, वन मांहीं जाइ जोयो फरी तेहीरे ॥ जोतां थकां दीगे लघु चातरे, सूतो निद्राजर तेहशुं जातरे ॥ १४ ॥ साद करी उठाड्यो जाइरे, गामर क्यों बेरे किदां जाइरे ॥ लघु जाइ जणे बांधव तुमे सुणजोरे, कुधा दोष मुज उपन्यो गणजोरे ॥ १५ ॥ तरुवर तले सूतो हुं जामरे, मेंढां न जाएं गया कोण ठामरे ॥ बेहु जाइ मली जोयां वन मांहीरे, नहीं दीठां गामर अज त्यांहींरे ॥ १६ ॥ मन जयजीत हुवो हुं जामरे, लघु जाने कहुं हुं तामरे ॥ सांजल जाई श्रापणो पितारे, कोप करशे श्रापणने जी - तारे ॥ १७ ॥ माता श्रापणी जूठी बहु अबेरे, मंदिर पेसवा नहीं दीए पढेरे ॥ वारु विचार घटे बे एहरे, आपण जइए परदेश बेहेरे ॥ १८ ॥ पेट जरवानी परेज कीधीरे, | मस्तक मुंडावी दीक्षा लीधीरे ॥ कंठ कंठा काने मुद्रा कीधरे, हस्त दंग धर्यो हुवा | एम सिद्धरे ॥ १७ ॥ देश विदेशे निक्षाने जमतांरे, एणी परे काल बेदु निगम| तारे ॥ पाटलीपुरमां फरता याव्यारे, जोतां देखी भूमिका फाव्यारे ॥२०॥ वादशालाने ཁྐྲི་ ॥ ११७
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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