________________
धर्मपरी
॥ १४७॥
| काररे ॥ शा०. सा० ॥ १६ ॥ हीर विजय सूरि तणोरे लाल, शुज विजय तस शिष्यरे ॥ शा० ॥ जाव विजय कवि दीपतारे लाल, सिद्धि नमुं निशदिसरे ॥ शा० सा० ॥ १७ ॥ रूपविजय रंगे करीरे लाल, कृष्णविजय कर जोडरे ॥ शा० ॥ रंगविजय गुरु माहरारे लाल, नावे कोई एहनी होमरे ॥ शा० सा० ॥ १८ ॥ सातमा खंड तणी कहीरे लाल, अग्यारमी ढाल रसालरे ॥ शा० ॥ नेम कहे नवियण तुमेरे लाल, सांजलो बालगोपालरे ॥ शा० सा० ॥ १७ ॥
इति श्रीधर्मपरीक्षा से सप्तम खंड संपूर्ण.
खं
॥ १४७