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जाइ मोटो मन चिंतवे, मुजने कीधो नचिंतरे ॥ व्यापारी मोटो थयो, मात पिता मन खंतरे ॥ म० ॥ १५ ॥ साच बोले लाज केम होये, कूम कपट मांहिं लाजरे ॥ कूको संसार सौए कह्यो, कूको जलधर श्रानरे ॥ म० ॥ १६ ॥ व्यापार करतां दिन घणा, गया तव लाज न दीसेरे ॥ मात पिता जाइ सदु मली, यावी बेठा बोले | रीसेरे ॥ म० ॥ १७ ॥ कहे जाइ तुं शुं करे, लोक यावी नेलां थायरे ॥ एहवो व्यापार किहां शीखीठं, द्रव्य लेइ किहां खायरे ॥ म० ॥ १८ ॥ के लुब्ध्यो वेश्या नारीशुं, के गुप्त दान दीधोरे ॥ के कोइ व्यसन पड्यो अबे, तुं तो दीसे वे सीधोरे ॥ म० ॥ १९ ॥ नामां लेखां संनालीने, बोलावे लघु जाइरे ॥ लाज गमे खोट केम होये, ए शी कीधी कमाइरे ॥ म० ॥ २० ॥ ढाल पेली त्रीजा खंगनी, सांजलो बाल | गोपालरे || रंगविजय कविराय बे, नेमविजय उजमालरे ॥ म० ॥ २१ ॥
उदा.
तव बोल्यो लघु चात ए, तमने द्रव्यनी हुंश ॥ कोटिध्वज था तमे, कूम करी लो लुंस ॥ १ ॥ श्रमने ए तो नावडे, तुमने तो घणो लोन || बेसो हाटे जइ हवे, घरना बो तमे मोज ॥ २ ॥ साचे मारे चालवुं, कहेतुं मारे साच ॥ देवुं लेवुं साचनुं, इसी परे पालुं