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॥ ११ ॥ रूप कबाडीनो करी याव्या, नगर प्रवेश ते कीधोरे ॥ रूप जोश्ने अचंबो पाम्या, लोकने याशिष दीधोरे ॥ प्री० ॥ १२ ॥ जेरी वजाडी मोटे साढ़े, घंटानाद सुणायोरे ॥ पूरव दिशे वादीनी शाला, जोवा अनेक लोक आयोरे ॥ प्री० ॥ १३ ॥ सिंहासन बेटा बे जाइ, अचरिज सहुने खावेरे ॥ गुण गिरुश्रा बेहु पुरुष नोंपम, किहांथी श्राव्या किहां जावेरे ॥ प्री० ॥ १४ ॥ सारा नगरमां शब्द सुपायो, नेर घंटानो नादरे ॥ द्विज सघला सांजलीने श्राव्या, करवा विद्यानो वादरे ॥ प्री०॥१५॥ वादी कहे मे वाद करीशुं, ज्ञानी कहे जोशुं वेदरे ॥ एहने पूढशुं जो तुमे जाणो, तो कहो मांहेलो जेदरे ॥ प्री० ॥ १६ ॥ जोतिषी जंपे जोष मारो, जो काढो कोइ | दोषरे ॥ सवालाख ज्योतिषनुं मान बे, केतोक केशे जोषरे ॥ प्री० ॥ १७ ॥ जट्ट कहे श्रमे जारत मांहेलो, गहन अरथ पूर्वी लेशुंरे ॥ कवि बोले मे बंदनी जाति, पूढीने | देशोटो देशुंरे ॥ प्री० ॥ १८ ॥ व्यास वदे श्रमे पूराण वातो, जाएं केम हवे जाशेरे ॥ कामी कहे मे कामने जाएं, श्रम यागल खष्ट थाशेरे ॥ प्री० ॥ १७ ॥ वैद कहे अमे नाडीनी विधिमा, जांगशुं एहना होमरे ॥ व्याकरणी कहे वाद ते श्रमशुं, केम करशे पमशे खोडरे ॥ प्री० ॥ २० ॥ पाठक पंड्या बोल्या ततखिणे, ढीक पाटुना