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धर्मपरी०
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|सलेखणा कीध ॥ सु० ॥ अंते असण आदरीरे हां, पहोती शिवपुर सीध ॥ सु० ॥ ए॥ रामचंद्र पण नावधीरे हां, पोहोता सिद्धने गम ॥ सु० ॥ लक्ष्मणनो जीव नारकीरे हां, कर्म तणां एह काम ॥ सु० ॥ १० ॥ लव ने कुश राज थापीयारे हां, सुख विलसे संसार ॥ सु० ए अधिकार एम जाणजोरे हां, सूत्र थकी निरधार ॥ सु० ॥ ११ ॥ बहु श्रुत होशे ते जाणशेरे हां, निर्बुद्धि शुं जाणे लोक ॥ सु० ॥ शास्त्र प्रमाणे कथा कहीरे हां, वांची जोजो थोक ॥ सु० ॥ १२ ॥ हीर विजय सूरिसरुरे हां, शुजविजय तस शिष्य ॥ सु० ॥ जावविजय जगते करीरे हां, सिद्धि नमुं निश दिस ॥ सु० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करीरे हां, कृष्णविजय कर जोम ॥ सु० ॥ रंग विजयना रूपनेरे हां, नावे अवर कोइ होम ॥ सु० ॥ १४ ॥ पांचमो खंग पूरो थयोरे हां, ढाल अग्यारे रसाल ॥ सु० ॥ नेमविजयने नित्य प्रतेरे हां, होजो मंगल माल ॥ सु० ॥ १५ ॥
इति श्री मिथ्यात्खंकन, रावणोत्पत्ति, सीताहरण, रामचंद्र मिलण, धर्मपरीक्षारासे पांचमो खंड संपूर्ण.
खं
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