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धर्मपरी ०
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बले अंग सार ॥ सा० ॥ तेम शास्त्र तणो दोष कदामतां, सा० कक्षेतां न पाप लगार ॥ सा० ॥ ८ ॥ तव वचन सुखीने एशुं रे, सा० जय तजी बोल्यो ऋषिदेव ॥ सा० ॥ हुं तो वेद पुराणनारे, सा० दोष सुणो कहुं खेव ॥ सा० ॥ ए ॥ एक नगर मांहीं रहेरे, सा० नारी दोय यति सार ॥ सा० ॥ एक जागी बीजी रथीरे, सा० जोवनजर मनोहार ॥ सा० ॥ १० ॥ बाल कुंवारी ते बेदुरें, सा० बेहु सूती सेहेज मोकार ॥ सा० ॥ ते बेहु नारी संजोगधीरे, सा० जायो सुत सुविचार ॥ सा० ॥ ११ ॥ नाम दीधुं तव तेहनोरे, सा० जागीरथी पुत्र चंग ॥ सा० ॥ ए तो जारत पुराणमांरे, सा० वखाप्यो मनने रंग ॥ सा० ॥ ॥ १२ ॥ जुर्ड नारीना जोगथीरे, सा० जायो पुत्र सुविचार ॥ सा० ॥ तो नारी नर संजोगधीरे, सा० हुं जनम्यो तेम सार ॥ सा० ॥ १३ ॥ अवर दृष्टांत वली कहुंरे, सा० सांजलो द्विजवर राज ॥ सा०॥ जेम संदेह मन जांजशेरे, सा० सरशे तमारां काज ॥ सा० ॥ १४ ॥ गंधारी एक नारीएरे, सा० धृतराष्ट्र करे ए काज ॥ सा० ॥ एवो निश्चय कीधो तिहारे, सा० सांजलो तुमे द्विजराज ॥ सा० ॥ १५ ॥ तव नारी गंधारी सहीरे, सा० रोमांचित दुइ जाम ॥ सा० ॥ तव नारी तो धरमें हुइरे, सा० माथे हुइ ते ताम ॥ सा० ॥ १६ ॥ चोथे दिवसे नारीएरे, सा० स्नान कर्यु तेणी वार ॥ सा० ॥ पढी वस्त्र विदुषी दतीरे, सा०
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ון פה