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धर्मपरी०
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बुट तपो उपायरे ॥ क० ॥ ७ ॥ जोवन मद मतवाला मुंरख जे, नवि मान्युं मुज वयपरे ॥ तेह तणां फल ए बे प्रत्यक्ष, देखो आपणे नयपरे ॥ क० ॥ ८ ॥ - जाणे अथवा परमादे, कारज विषतुं संजालरे || पढे प्रयास होये विफल सघलो, जल गये बांधी पालरे || कु० ॥ ए ॥ दीन वचने बोले उ दादाजी, तुमे बो बुद्धिनिधानरे ॥ दया करी निज बालक उपरे, दीजे वंडित दानरे ॥ क० ॥ १० ॥ प्राण रहित सरीखा थइ रहेजो, सघले मानी शीखरे ॥ परजाते देखी ते पापीयो, चिंते जांगी जीखरे ॥ क० ॥ ११ ॥ हंस सकलने देवा नाखीया, उड्या ते समकालरे ॥ मान्युं वचन वमानुं तेमणे, पाम्या सुख विशालरे ॥ १२ ॥
गाथा -- - दीहकालंठीया जब, पायवे निरुवदवे ।
मुला उठीयावली, जायं सरणं उजयं ॥ १ ॥
गाथा ह की बेवडे हंसे, समजो राय मयालरे ॥ कथा पहेली संपूरण ए कही, समजो श्रोता दयालरे ॥ क० ॥ १३ ॥ सातमा खंड तणी ढाल त्रीजीए, समजाव्यो राय सुजापरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय परमाणरे
॥ क० ॥ २४ ॥
खंग 9
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