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निर्वाण अनुपरे ॥ ० ॥ शिव मंदिर जिन देहरां, सरगपुरी सम रूपरे ॥ रा० आ० ॥ १६ ॥ देवदत्त नामे कापडी, तीरथ करे सुविवेकरे ॥रा०॥ देश नगर बहोला नमी, | श्रच रिज देखी अनेकरे ॥ रा० ॥ ० ० ॥ १७ ॥ जरा पहोती जाणीने, उझेणी थिर वासरे ॥ ० ॥ मसठ तीरथ एणे कर्यां, सेवे बहु जन तासरे ॥ रा०या० ॥ १८॥ श्राव्यो पर्व हवे एकदा, पाम्यो सरस आहाररे ॥ रा० ॥ लालचपणे लीधो घणो, निशि थयो उदर विकाररे ॥ रा० ० ॥ १७ ॥ जीरण तने जरे नहीं, जारी सबलुं अन्नरे ॥ रा० ॥ मंदानल जेम मोटके, इंधणे शमे अगनरे ॥ रा० आ० ॥ २० ॥ उपचार कीधा श्रति घणा, नवि उपशमी रोगरे ॥ रा० ॥ गाथा एक कहे कापमी, सांजलजो सदु लोगरे ॥ ० ० ॥ २१ ॥
गाथा - जया जीवंति विश्वानि, जया तुष्यन्ति देवता । तयाहं मारितो लोका, जातं सरतोजयं ॥ १ ॥
एम नृपति प्रतिबोधवा, कही कथा करी बुद्धरे ॥ रा० ॥ समस्या मांहीं समज्यो नहीं, मोटो राजा मूढरे ॥ रा० आ० ॥ २२ ॥ सातमा खंमनी ए कही, ढाल