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परी०
८२ ॥
कहो तुमे सार ॥ मा० ॥ मोटा मूरख के किसारे, बोलो तेह अधिकार ॥ मा० ॥ कौ० ॥ ११ ॥ मनोवेग तव उचरेरे, सुणजो विप्र विचार ॥ मा० ॥ मूरख कथा तुमने कहुं रे, श्रुतसागर तुमे पार || मा० ॥ कौ० ॥ १२ ॥ सजा मांहीं मूरख नरेरे, कोइ होशे द्विजवर आज || मा० ॥ तो खोटी कथा करे मुज तणीरे, नवि सरे अमारो काज ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १३ ॥ मूरख होय ते शुं करेरे, सुणजो कथानो समाज ॥ मा० ॥ एक चित्ते मौनज धरीरे, दरख उपजे जेम द्या ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १४ ॥ चार नर मारग सांचर्यारे, मूरख मोटा वली तेह ॥ मा० ॥ सुनिवर एक सामो मल्योरे, उत्तम चारित्र गेह ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १५ ॥ मौन धारी जोग आगलोरे, सुमति गुपति व्रत धार ॥ मा० ॥ नगन मुद्रा परिसह सहेरे, जव्य जीव जवजल तार ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १६ ॥ एहवो मुनिवर दीठमोरे, तव | मूरख चारे चंग ॥ मा० ॥ वांद्यो मुनिवर जाव धरीरे, तव जतिवर बोल्यो रंग ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १७ ॥ धर्मवृद्धि तुमने होजोरे, वचन सुणी चारे ताम ॥ मा० ॥ मारग चाल्या | मलपतारे, जोजन दोढ गया जाम ॥ मा० ॥ कौ० ॥ १८॥ चोथा खंड तणी कहीरे, प्रथम ढाल रसाल ॥ माण रंग विजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ मा०॥ कौ० ॥ १७ ॥
खंग ४
॥ ८ ।